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________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में की विभिन्न शाखाओं में सागर संविग्न शाखा भी एक है। उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम चरण एवं बीसवीं शताब्दी के प्रथम चरण में हुए अध्यात्मयोगी, प्रखर चिन्तक, शंताधिक ग्रन्थों के रचयिता आचार्य बुद्धिसागर सूरि तपागच्छ की इसी शाखा के थे। आचार्य बुद्धिसागर सूरि के पश्चात् उनके पट्टधर कीर्तिसागर सूरि हुए। सागरसंविग्न शाखा के वर्तमान गच्छनायक श्री सुबोधसागर सूरि इन्हीं के पट्टधर हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ का प्रकाशन आचार्य कीर्तिसागर सूरि की जन्म शताब्दी और वर्तमान गच्छनायक श्री सुबोधसागर जी महाराज की आचार्यपद रजतजयन्ती महोत्सव (सं० २०२३-२०४७) के अवसर पर किया गया है। सर्वश्रेष्ठ आर्टपेपर पर मुद्रित सम्पूर्ण ग्रन्थ में बुद्धिसागर सूरि, आचार्य कीर्तिसागर सूरि और आचार्य सुबोधसागर सूरि के जीवन के विविध पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। पुस्तक में सैकड़ों रंगीन एवं सादे चित्र दिये गये हैं। अन्त में श्रीमद् बुद्धिसागरसूरि जैन समाधि मंदिर का सचित्र विवरण दिया गया है। अत्यधिक लागत से निर्मित यह ग्रन्थ प्रत्येक. श्रद्धालु उपासकों के लिये संग्रहणीय है। रामायणनो रसास्वाद : प्रवचनकार-पूज्य आचार्यश्री रामचन्द्र सूरि जी म०; संपादक-आचार्यश्री विजयकीर्तियशसूरीश्वर जी महाराज; प्रकाशक- सन्मार्ग प्रकाशन, श्वेताम्बर मूर्तिपूजक तपागच्छ जैन आराधना भवन, पाछीयानी पोल, रिलीफ रोड, अहमदाबाद - ३८० ००१, द्वितीय संस्करण १९९५ ई०, पृष्ठ ४६०; आकार - डिमाई; मूल्य ७५ रूपया। ... हिन्दू परम्परा की भांति जैन परम्परा में भी प्राचीन काल से ही राम की कथा अत्यन्त लोकप्रिय रही है और इसका प्रमाण है प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, गजराती, राजस्थानी आदि विभिन्न भाषाओं में विभिन्न जैन रचनाकारों द्वारा राम के चरित्र का वर्णन। प्रस्तुत पुस्तक तपागच्छीय संघनायक, पूज्य आचार्य विजयरामचन्द्र सूरि द्वारा रामायण पर दिये गये प्रवचन का द्वितीय संस्करण है। इसमें १० अध्यायों में दशरथ, उनकी रानियों, राम के राज्याभिषेक की तैयारी, राम को वन भेजने का निश्चय, भरत का राज्याभिषेक, सीताअपहरण, महासती अंजनासुन्दरी, लंकाविजय, अयोध्या में रामराज्य, सीता पर आक्षेप और अन्त में सीता का दिव्य और राम के निर्वाण का वर्णन किया गया है। सम्पूर्ण पुस्तक में रामायण के प्रमुख पात्रों - दशरथ, कौशल्या, कैकेयी, राम, लक्ष्मण, सीता, भरत, लवण, अंकुश, रावण, विभीषण, मंदोदरी, पवनंजय, महासती अंजनासुन्दरी, हनुमान, जटायु, नारद आदि के जीवन-सम्बन्धी विविध घटनाओं और आदर्शों को दर्शाते हुए उनसे मानव जीवन को ऊर्ध्वगामी बनाने की प्रेरणा दी गयी है। गजराती भाषा में होने के कारण हिन्दी भाषी इसके स्वाध्याय के लाभ से वंचित रहेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525035
Book TitleSramana 1998 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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