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अंक
७-८
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लेख बुझती हुई चिनगारियाँ मातृभाषा और उसका गौरव मानव कुछ तो विचार कर मानवमात्र का तीर्थ मानवता के दो अखंड प्रहरी मेरी बम्बई यात्रा मूक सेविका : विजया बहन मृत्युञ्जय यह अगस्त का महीना यह मनमानी कब तक युद्ध और श्रमण युवकों के प्रति रवीन्द्रनाथ के शिक्षा सिद्धान्त और विश्वभारती 'रोटी' शब्द की चर्चा लखनऊ अभिभाषण लेखक और विश्वशांति लिखाई का सस्तापन
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श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक मुनिश्री सुशीलकुमार शास्त्री ३ डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल मुनिश्री महाप्रभविजय जी महाराज । पं० सुखलाल जी श्री भरतसिंह उपाध्याय
___ ११ डॉ० इन्द्र श्री शरदकुमार साधक श्री मोहनलाल मेहता श्री एम० के० भारिल्ल श्री राकेश
३ पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री १ श्री चन्दनमल चांद
२१ श्री शिवनाथ
६ पं० बेचरदास दोशी
१८ पं० श्री सुखलाल जी संघवी डॉ० एस० राधाकृष्णन् श्री अगरचन्द नाहटा
ई० सन् १९५२ . १९६२ १९५५ १९५३ १९६० १९५३ १९९२ १९५० १९५६ १९५२ १९४९ १९६९ १९५५ १९६७ १९५१ १९५५ १९५८
पृष्ठ ३५-३७ ९-१३ २३-२४ १-२ १४-२० ११-१५ ४०-४१ १४-१८ ७-९ ३१-३३
१२ १०-१२ ७ १० ७-८ २
९-११
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१३-१४ ३-७ १५-१९ ३-२८ ३०-३२
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