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________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में ४०५ लेख Jain Education International लेखक श्री अगरचन्द नाहटा ई० सन् १९७६ पृष्ठ १०-१४ २७ ५ प्राकृत भद्रबाहुसंहिता का अर्धकाण्ड प्राकृत भाषा के कुछ ध्वनि-परिवर्तनों की ध्वनि - वैज्ञानिक व्याख्या प्राकृत भाषा और जैन आगम प्राकृत भाषा के चार कर्मग्रन्थ प्राकृत व्याकरण और भोजपुरी का 'केर' प्रत्यय-क्रमश: डॉ० देवेन्द्रकुमार जैन डॉ० रमेशचन्द्र जैन श्री अगरचन्द नाहटा पं० कपिलदेव गिरि १९७७ १९८७ १९६२ १९७१ १९७१ ३-७ १६-२२ २४-२५ २९-३८ २४-३८ For Private & Personal Use Only डॉ० के० आर० चन्द्र १९९१ ११-१९ प्राकृत व्याकरण : वररुचि बनाम हेमचन्द्र - अंधानुकरण या विशिष्ट प्रदान प्राकृत साहित्य के इतिहास के प्रकाशन की - आवश्यकता प्राकृत साहित्य में श्रीदेवी की लोक-परम्परा पार्श्वभ्युदयकाव्य : विचार-वितर्क प्रज्ञाचक्षु राजकवि श्रीपाल की एक अज्ञात रचना-शतार्थी प्रद्युम्नचरित में प्रयुक्त छन्द-एक अध्ययन प्राचीन जैन कथा साहित्य का उद्भव, विकास - और वसुदेवहिंडी श्री अगरचन्द नाहटा श्री रमेश जैन डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव श्री अगरचंद नाहटा कु० भारती ur - १९ १९५३ १९७७ १९६७ १९६७ १९९७ २१-२७ २१-२५ ३९-४२ ६-८ ६८-८० ७-९ www.jainelibrary.org डॉ० (श्रीमती) कमल जैन ४६ १०-१२ १९९५ ५२-६३
SR No.525035
Book TitleSramana 1998 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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