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________________ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org लेख संस्कृत साहित्य में अभ्युदय नामान्त जैन काव्य सन्दर्भ एवं भाषायी दृष्टि से आचारांग के उपोद्घात में प्रयुक्त प्रथम वाक्य के पाठ की प्राचीनता पर कुछ विचार सप्तक्षेत्रिरासु सप्तसन्धानमहाकाव्य में ज्योतिष समयसार समणसुत्त समयसार : आचार-मीमांसा समयसार सप्तदशांगी टीका: एक साहित्यिक-मूल्यांकन समराइच्चकहा का अविकलगुर्जरानुवाद समराइच्चकहा की संक्षिप्त कथावस्तु और उसका सांस्कृतिक महत्त्व समवायांगसूत्र में विसंगति सर्वांगसुन्दरी-कथानक सात लाख श्लोक परिमित संस्कृत साहित्य के निर्माता जैनाचार्य विजयलावण्यसूरि साधुवन्दना के रचयिता सावयपण्णत्ति : एक तुलनात्मक अध्ययन - क्रमश : श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री जयकुमार जैन डॉ० के० आर० चन्द्र डॉ० सनत्कुमार रंगाटिया श्री श्रेयांसकुमार जैन श्री मिश्रीलाल जैन "" डॉ० दयानन्द भार्गव डॉ० नेमिचन्द जैन श्री कस्तूरमल बांठिया डॉ० झिनकू यादव श्री नंदलाल मारु डॉ० के० आर० चन्द्र श्री अगरचन्द नाहटा "" पं० बालचंद सिद्धान्तशास्त्री वर्ष २९ * a * * * ara a ४५ १९ २८ ३५ ३५ २९ २९ १९ २५ १९ २४ २३ २२ २१ अंक १ ov ७-९ ६ १२ ५ ७ १० १-२ ގ ގ 122 ८ २ २ ई० सन् १९७७ १९९४ १९६८ १९७७ १९८४ १९८४ १९७८ १९७८ १९६८ १९७३ १९६८ १९७३ १९७२ १९७० १९६९ ४१७ पृष्ठ ३-८ ५२-५९ २३-२८ १७-२१ ४२-५९ २७-४१ ३-११. ३-८ ६-१७ ३५-४२ ३२-३४ १६-२१ १९-२३ २९-३२ ५-११
SR No.525035
Book TitleSramana 1998 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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