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________________ श्रमण : अतीत के झरोखे में और जिज्ञासु विद्यार्थियों को भी आध्यात्मिक विषयों के अध्ययन और शोधकार्य की प्रेरणा मिलेगी ताकि वे जैन विद्या के विविध आयामों को उदघाटित कर सकें। __ आपने बताया कि इंदौर परिसर में फिलहाल आठ हजार दर्लभ धर्मग्रंथों का पुस्तकालय है। इसमें शीघ्र ही तीन हजार पुस्तकें और आने वाली हैं। पत्रकार वार्ता में उपस्थित श्री शांतिलाल धाकड़, श्री जयंतीभाई संघवी एवं श्री एन० के० जैन ने बताया कि पी-एच० डी० और डी० लिट० के लिए शोध कार्य के साथ इस विद्यापीठ में स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर पर अन्य विषयों के पाठ्यक्रम भी चलाये जाएंगे। ये हैं- जैन विद्या (धर्म, दर्शन, समाज एवं संस्कृति), प्राकृत भाषा एवं जैन साहित्य, तनाव प्रबंधन, 'नैदानिकी मनोविज्ञान, ध्यान एवं योग तथा अहिंसा, शांति शोध एवं मूल्य शिक्षा।' इसके अतिरिक्त, विद्यापीठ जैन विद्या मनीषी और जैन विद्या वाचस्पति जैसी उपाधियों हेतु कक्षाएं भी संचालित करेगा। देश के लब्धप्रतिष्ठित जैन विद्वानों ने विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में आकर शोध-अध्ययन-संपादन को गतिशील बनाने के लिए अपनी स्वीकृति प्रदान की है। इस अवसर पर प्रसिद्ध समाजसेवी श्री शांतिलाल धाकड़ का श्री श्वेताम्बर जैन स्थानकवासी समाज की ओर से अभिनंदन किया गया। अभिनंदन का वाचन श्री जिनेश्वर जैन ने किया। * अभिनंनदनपत्र श्री गार्डी, श्री नेमनाथ जैन, श्री पाटोदी और डॉ. प्रकाश बांगानी ने भेंट किया। श्री धाकड़ ने कहा कि मैं समाज में समन्वय, संगठन और विकास के लिए कार्य करता रहूंगा उन्होंने समाज के प्रति आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर जैनिज्म इन ग्लोबल पर्सपेक्टिव, जैन कर्मोलॉजी और अपरिग्रह 'द ह्यूमन सोल्यूशन' पुस्तकों का विमोचन श्री गार्डी, डॉ० बांगानी और श्री पाटोदी ने किया। इस अवसर पर आचार्यश्री देवेन्द्र मुनिजी की पुस्तक श्रावकव्रत, आराधना एवं श्रावक के चौदह नियम पुस्तक का भी विमोचन किया गया। पार्श्वनाथ विद्यापीठ द्वारा प्रकाशित नवीन पुस्तकों का सेट श्री इन्द्रभूति बरार द्वारा आचार्य देवेन्द्र मुनि के चरणों में अर्पित किया गया। पार्श्वनाथ विद्यापीठ, इन्दौर परिसर के निदेशक डॉ० सागरमल जैन ने विद्यापीठ की कार्ययोजना व उद्देश्य की विस्तारपूर्वक जानकारी प्रदान की। पार्श्वनाथ विद्यापीठ के प्रशासनिक अधिकारी, प्रसिद्ध विद्वान् डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय भी इस अवसर पर विशेष रूप से उपस्थित रहे। मुख्य अतिथि श्री दीपचंद गार्डी ने बोलते हुए कहा कि हमें ज्ञान एवं ज्ञानियों की पूजा करनी चाहिए। उनका सम्मान करना चाहिए, ज्ञानियों के माध्यम से ही हमें ऐसे विद्यापीठ संचालित करने में सहयोग मिलता है। आज जैन धर्म का विशद् अध्ययन आवश्यक है, इन्दौर में इसका शुभारम्भ एक सुखद संयोग है। इसके माध्यम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525035
Book TitleSramana 1998 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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