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श्रमण : अतीत के झरोखे में शोधपीठ के निदेशक नियुक्त किये गये। जैन विद्या के क्षेत्र में शोध करने के इच्छुक निम्नलिखित पते पर आवेदन करें।
गणिनी ज्ञानमती शोधपीठ C/ दि० जैन त्रिलोक शोध संस्थान जम्बूद्वीप, हस्तिनापुर - २५०४०४ (मेरठ), उत्तर प्रदेश
पार्श्वनाथ विद्यापीठ परिसर का इन्दौर में शुभारम्भ
श्रीवर्धमान सेवा केन्द्र, इन्दौर के तत्त्वावधान में दिनांक १५ नवम्बर १९९८ को आचार्यसम्राट श्री देवेन्द्रमुनि जी महाराज की पावन निश्रा में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी के इन्दौर परिसर का शुभारम्भ हुआ। इस अवसर पर बोलते हुए आचार्यश्री ने कहा कि आध्यात्मिक शिक्षण द्वारा आत्मा का अंतर्वत्तियों को शिक्षित किया जा सकता है। यह शिक्षा सदैव कल्याणकारी होता है क्योंकि यह महत्त्वाकांक्षा नहीं अपितु नम्रता लाता है; विनय और विवेक को जागृत करता है। आचार्यश्री ने आगे कहा कि ज्ञान ज्योति है और अज्ञान अन्धकार है। ज्ञान आत्मा का निजगुण है और उसे प्रकट करने के लिये ही पार्श्वनाथ विद्यापीठ की स्थापना हो रही है। पूज्यश्री शालिभद्रजी महाराज के मंगलाचरण से प्रारम्भ हुए समारोह में महासती श्रीकनकरेखा जी, महासती श्री शांतिकुंवर जी, महासती श्री ललितप्रभाजी, श्री गौतममुनि जी, श्री जगतचन्द्र विजय जी महाराज और श्री नरेशमुनि जी महाराज ने भी अपने विचार व्यक्त किये।
___ समारोह के मुख्य अतिथि श्री दीपचन्द गार्डी एवं अध्यक्ष श्री इन्द्रभूति बरार थे। पद्मश्री श्री बाबूलाल पाटोदी, डॉ० प्रकाश बांगानी, श्री हीरालाल पारिख, श्री जोधराज लोढ़ा, श्री सुजानमल बोरा, श्री लक्ष्मीचंद मंडलिक, श्री शांतिलाल धाकड़, डॉ० एन० पी० जैन (पूर्व राजदूत) इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे। श्री वर्धमान सेवा केन्द्र के अध्यक्ष श्री नेमनाथ जैन ने अतिथियों का स्वागत किया और बताया कि पार्श्वनाथ विद्यापीठ के इंदौर परिसर की पूरी योजना एक करोड़ रूपये की हैं तथा इसके लिए भवन निर्माण हेतु पृथक से उपयुक्त जमीन की तलाश की जा रही है। पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी में पिछले साठ वर्षों से संचालित है। इंदौर के परिसर के निदेशक होंगे डॉ० सागरमल जैन, जिन्होंने बीस वर्षों के अथक प्रयासों से विद्यापीठ को विश्वविख्यात बनाया। उनके मार्गदर्शन में जैन धर्म पर अब तक चालीस विद्यार्थी पी-एच० डी० प्राप्त कर चके हैं। इंदौर में परिसर खलने से यहां के विद्वानों
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