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श्रमण : अतीत के झरोखे में भगवान् ऋषभदेव राष्ट्रीय कुलपति सम्मेलन सम्पन्न ४-६ अक्टूबर : जम्बूद्वीप हस्तिनापुर में गणिनीप्रमुख अर्यिकारल श्री ज्ञानमती माता जी के सानिध्य में भगवान् ऋषभदेव राष्ट्रीय कलपति सम्मेलन सम्पन्न हआ जिसमें २० कुलपति/प्रतिकुलपति तथा देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के जैन विद्या विभागों, जैनपीठ तथा जैनधर्म-दर्शन के १०८ विद्वान् सम्मिलित हुए। तीन दिनों के ६ सत्रों में तिब्बती उच्च शिक्षा केन्द्र, वाराणसी के प्रो० एस० रिम्पोछे, जामिया हमदर्द विश्वविद्यालय, दिल्ली के कुलपति प्रो० अलादीन अहमद; महेशयोगी विश्वविद्यालय, जबलपुर के कुलपति प्रो० आद्याप्रसाद मिश्र, गुलवर्गा विश्वविद्यालय, गुलवर्गा के कुलपति प्रो० मुनियम्मा, मैसूर विश्वविद्यालय, मैसूर के कुलपति प्रो० एस० एन० हेगड़े, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र के कुलपति प्रो० एम० एस० रंगा आदि २० कुलपतियों ने भगवान् ऋषभदेव की शिक्षाओं, वैदिक ग्रन्थों में भगवान् ऋषभदेव के उल्लेखों, जैनधर्म का भारतीय संस्कृति पर प्रभाव, पर्यावरण-संरक्षण के सम्बन्ध में जैनधर्म की भूमिका और समाज व्यवस्था-राजनैतिक अवस्था आदि पर अपने विचार व्यक्त किये। इस पुण्य अवसर पर समागत विद्वानों द्वारा जम्बूद्वीप घोषणापत्र स्वीकार किया गया, जिसके अन्तर्गत विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से जैन अध्ययन केन्द्रों की स्थापना एवं तद्विषयक कार्यक्रमों को गति प्रदान करने का अनुरोध किया गया। इस सम्मेलन में विभिन्न प्रशासनिक प्रतियोगी परीक्षाओं में प्राकृत भाषा को भी स्थान देने की केन्द्र व राज्य सरकारों से मांग की गयी और विभिन्न विश्वविद्यालयों में वर्ष में एक दिन ऋषभदेव समारोह आयोजित करने तथा वर्तमान में जैनविद्या में कार्यरत अध्ययन केन्द्रों व शोधपीठों में प्राध्यापकों के समुचित पद स्वीकृत करने का अनुरोध किया गया।
इसी अवसर पर शरदपूर्णिमा के दिन आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माता जी की प्रेरणा एवं आशीर्वाद से ऋषभदेव राष्ट्रीय विद्वत महासंघ की स्थापना भी की गयी। जैन विद्या के लब्ध प्रतिष्ठित विद्वान् प्रो० प्रेमसुमन जैन इसके प्रथम अध्यक्ष मनोनीत किये गये और डॉ० अनुपम जैन, डॉ० शेखरचन्द जैन को क्रमश: महामंत्री और कार्याध्यक्ष पद का कार्यभार दिया गया। इस संघ के परामर्श मंडल में प्रो० भागचन्द जैन तथा ब्रह्मचारी रवीन्द्रकुमार को स्थान दिया गया।
आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माता जी के जन्मदिन के अवसर पर दि० त्रिलोक शोध संस्थान के उदार सहयोग से गणिनी ज्ञानमती शोधपीठ की भी स्थापना की गयी। विक्रमविश्वविद्यालय उज्जैन के पूर्व कुलपति प्रो० आर० आर० नादगांवकर इस
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