SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अंक Jain Education International वर्ष ९ २ १२ लेख धर्म-कल्याण का मार्ग धर्म का बीज और उसका विकास धर्म का तत्त्व धर्म का बहिष्कार या परिष्कार धर्म का मूल आधार-अहिंसा धर्म का मर्म धर्म का स्वरूप धर्म क्या है ? श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक पं० मुनिश्री रामकृष्ण जी महाराज पं० सुखलालजी संघवी टॉलस्टॉय श्री अजातशत्रु श्री शिवनारायण सक्सेना श्री सुबोधकुमार जैन भंडारी सरदारचंद जैन डॉ० सागरमल जैन ३७९ पृष्ठ १६-१९ ९-१४ । २२-२६ १९-२२ २०-२३ २४-२९ ५-७ १६ १२ For Private & Personal Use Only orn » 39 » १-८ ई० सन् १९५७ १९५१ १९५२ १९६० १९६५ १९५३ १९८४ १९८० १९८० १९८० १९८३ १९५२ १९५२ १९७७ १९६३ १९५७ १९८२ १९६७ " » धर्म करते पाप तो होता ही है! धर्म की उत्पत्ति और उसका अर्थ धर्म को छानने की आवश्यकता धर्म क्षेत्रे-हिम क्षेत्रे धर्म निरपेक्ष या ईश्वर निरपेक्ष धर्म परिवर्तन-श्रमण धर्मों की भूमिका और निदान धर्म : मेरी दृष्टि में २८ २-५ २-७ २-४ ३५-३७ ९-१४ २९-३५ १९-२८ ४-८ ५-११ २४-२८ श्री प्रवाही श्री मोहनलाल मेहता श्री रतिलाल म० शाह श्री कानजी भाई पटेल श्री प्रभाकर गुप्त श्री महेन्द्रकुमार फुसकेले मुनिश्री नेमिचंद १४ www.jainelibrary.org ८ ३३ १८ १० ७ ४
SR No.525035
Book TitleSramana 1998 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy