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________________ ४४५ Jain Education International श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री गोपीचन्द धाड़ीवाल श्री कस्तूरमल बांठिया वर्ष १६ अंक ४ ई० सन् १९६५ - १९६५ .. १९६० पृष्ठ । २२-२५ १७-२१ लेख क्या जैनधर्म जीवित रह सकता है? क्या थे? क्या हैं? क्या होना है ? क्या भगवान् महावीर के विचारों से विश्वशांति-संभव है? क्या महावीर सामाजिक पुरुष थे ? क्या मैं जैन हूँ? क्या यही शिक्षा है? क्या राम कथा का वर्तमान रूप कल्पित है। डॉ० (कु०) मंजुला मेहता डॉ० मोहनलाल मेहता प्रो० दलसुख मालवणिया श्री राजाराम जैन श्री धन्यकुमार राजेश ३ For Private & Personal Use Only क्या स्त्रियाँ तीर्थंकर के सामने बैठती नहीं ? क्या हम अपराधी नहीं कानों सुनी सो झूठ सब क्रांतिकारी महावीर श्री नंदलाल मारु श्री जिनेन्द्र कुमार डॉ० रतनकुमार जैन पं० बेचरदास दोशी श्री रत्नचंद जैन शास्त्री डॉ. देवेन्द्रकुमार जैन श्री समीर मुनि मुनिश्री चन्द्रप्रभसागर २१ २१ २४ ___३५ ३३ १२ १५ १६ १५ ३४ or w or on gusano wa w or a १९८० १९६० १९५२ १९५२ १९७० १९७० १९७३ १९८३ १९८१ १९६१ १९६४ १९६५ १९६४ १९८३ १७-२२ १५-१६ ९-१२ ३०-३२ १०-१९ १८-२७ २७-३० ७-८ १२-१५ ४१-४४ १३-१६ ९-११ १८-२१ www.jainelibrary.org क्रांतिदर्शी महावीर क्रोध और क्षमा क्षमा-वाणी
SR No.525035
Book TitleSramana 1998 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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