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________________ साहित्य सत्कार निर्ग्रन्थ (अंग्रेजी, गुजराती और हिन्दी भाषा में प्रकाशित होने वाली वार्षिक शोध पत्रिका, सम्पादक - प्रा० एम० ए० ढांकी; डॉ० जीतेन्द्र बी० शाह; प्रवेशांक वर्ष १९९६; पृष्ठ ९+ १०८+ ११०+६२; द्वितीयांक पृष्ठ १४+१००+१०६+५०; प्रकाशक- शारदाबेन चिमनभाई एज्युकेशनल रिसर्च सेन्टर, शाहीबाग, अहमदाबाद; आकार-डबल डिमाई; मूल्य - एक सौ रूपया प्रत्येक। __प्रस्तुत अंक अहमदाबाद में हाल के वर्षों में स्थापित एक नूतन शोधसंस्थान शारदाबेन चिमनभाई एज्युकेशनल रिसर्च सेन्टर की शोध पत्रिका है। जैनधर्म-दर्शन, साहित्य और भारतीय स्थापत्य कला के विश्वविख्यात मर्मज्ञ प्राध्यापक श्री मधुसूदन ढांकी तथा प्राकृत भाषा एवं साहित्य के प्रकाण्ड विद्वान, युवा मनीषी डॉ० जीतेन्द्र बी० शाह के सम्पादकत्त्व में प्रकाशित यह शोध पत्रिका अब तक प्रकाशित जैन पत्रपत्रिकाओं में सर्वश्रेष्ठ है। तीन भाषाओं में प्रकाशित होने वाली यह दूसरी शोध पत्रिका है। डबल डिमाई आकार में मुद्रित इस शोध पत्रिका में जैन दर्शन,भाषा, साहित्य, कला, इतिहास और पुरातत्त्व आदि विषयों पर चने हए श्रेष्ठ लेखों का संकलन है। इस पत्रिका की यह विशेषता है कि इसमें जहाँ एक ओर जैनविद्या के मूर्धन्य विद्वानों के लेखों को स्थान दिया गया है. वहीं दूसरी ओर युवा लेखकों के शोध लेखों को भी आवश्यक महत्त्व प्रदान किया गया है। इस पत्रिका की साज-सज्जा अत्यन्त आकर्षक और मुद्रण त्रुटिरहित है। पत्रिका में लेखों से सम्बन्धित चित्रों को सर्वश्रेष्ठ आर्टपेपर पर मुद्रित किया गया है, जिससे इसका महत्त्व और भी ज्यादा बढ़ गया है। ऐसे सुन्दर प्रकाशन के लिए सम्पादक और प्रकाशक दोनों ही बधाई के पात्र हैं। ___मानतुंगाचार्य और उनके स्तोत्र : लेखक-प्राध्यापक श्री मधुसूदन ढांकी और जीतेन्द्र शाह : प्रकाशक -शारदाबेन चिमनभाई एज्युकेशनल रिसर्च सेन्टर, अहमदाबाद ३८०००४; प्रथम संस्करण १९९७ ई०, पृष्ठ १२+१३४; आकार-रायल आक्टो; मूल्य-सदुपयोग। - युगादीश्वर जिन ऋषभ के गुणस्तवस्वरूप भक्तामरस्तोत्र का जैन परम्परा में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही सम्प्रदायों में इसे प्राय: समान प्रतिष्ठा प्राप्त है। इस अति महिम्न स्तोत्र के कर्ता श्वेताम्बर हैं या दिगम्बर, उनका समय क्या है; इस स्तोत्र की श्लोक संख्या ४४ है या ४८; इन सभी प्रश्नों का उत्तर ढंढने का प्रयास अब तक अनेक जैन और अजैन विद्वानों ने किया है, परन्तु वे कोई निष्पक्ष और सर्वांगीण निर्णय प्रस्तुत नहीं कर सके हैं। इस पुस्तक में प्राध्यापक श्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525035
Book TitleSramana 1998 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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