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________________ Jain Education International 923 ई० सन् १९७७ . १९८५ १९८० ४५३ पृष्ठ । २१-२६ १२-१४ ९-११ For Private & Personal Use Only श्रमण : अतीत के झरोखे में लेख लेखक वर्ष अंक तीर्थंकरों की निश्चित संख्या क्यों ? श्री रतिलाल म० शाह तीर्थंकर महावीर की शिक्षाओं का सामाजिक महत्त्व डॉ० विनोदकुमार तिवारी त्याग का मूल्य उपाध्याय अमरमुनि त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में प्रतिपादित सांस्कृतिक - जीवन डॉ० उमेशचन्द्र श्रीवास्तव ४३ ४-६ ४-६ दक्षिण हिन्दुस्तान और जैनधर्म पं० दलसुख मालवणिया दया-दान की मान्यता श्री सतीशकुमार 'भैरव' २ दान की आत्मकथा श्री भग्न हृदय ११-१२ दान सम्बन्धी मान्यता पर विचार श्री अगरचंद नाहटा दार्शनिक पुरुष मुनिश्री रामकृष्ण ३२ ५ दार्शनिक क्षितिज का दीप्तिमान नक्षत्र उपाध्याय श्री अमरमुनि ३२ दिगम्बर रहना क्या महावीर का आचार था ? । श्री रतिलाल म० शाह २७ द्विसन्धानमहाकाव्य में राज्य और राजा का स्वरूप डॉ० रमेशचन्द्र जैन २५८ दीपमाला : एक अध्यात्मिक पर्व पं० श्री ज्ञानमुनि जी महाराज दीपावली : एक साधना पर्व डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव ८ १ दुःख का जनक लोभ आचार्य श्री आनन्दऋषि ३२ २ दुर्दान्त दस्यु दया का देवता बना श्री वीरेन्द्रकुमार जैन ___३३६ ६९-८४ १७-१९ ३३-३६ ३३-३६ ३-१० ३४ rur 333 vor or or w १९९२ १९५० १९५६ १९५८ १९५५ १९८१ १९८१ १९७६ १९७४ १९५५ १९५६ १९८० १९८२ ११-१३ २६-३० ३-१२ २५-२८ ३३-३५ ५-१२ ३९-४० www.jainelibrary.org
SR No.525035
Book TitleSramana 1998 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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