________________
Jain Education International
श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक
वर्ष
३९७ पृष्ठ
अंक
ई० सन्
श्री अगरचंद नाहटा
४१ २२
१०-१२ १२ ६
१९९० १९७१ १९५४
४९-५६ १३-१७ १६-१७
For Private & Personal Use Only
लेख क्षेत्रज्ञ शब्द के विविध रूपों की कथा और उसकाअर्धमागधी रूपान्तर चतुर्विंशतिस्तव का पाठ भेद और एक अतिरिक्त गाथा चन्द्रवेध्यक आदि-सूत्र अनुपलब्ध नहीं हैं। चन्द्रवेध्यक (प्रकीर्णक) एक आलोचनात्मक - परिचय चन्दन-मलयागिरि चूर्णियां और चूर्णिकार छीहल की एक दुर्लभं प्रबन्ध कृति जयप्रभसूरिरचित कुमारसंभवटीका जयसिंहसूरिरचित अप्रसिद्ध ऋषभदेव और वीरचरित्र युगल काव्य जिनचन्द्रसूरिकृत क्षपक शिक्षा का विषय जिनराजसूरिकृत नैषधमहाकाव्यवृत्ति । जिनसेन का पार्श्वभ्युदय : मेघदूत का माखौल जीवित साहित्य की वाणी जैकोबी और वासी-चन्दन-कल्प -क्रमश:
श्री सुरेश सिसोदिया श्री अशोक कुमार मिश्र डॉ० मोहनलाल मेहता श्री अशोककुमार मिश्र श्री अगरचंद नाहटा
२७ ६ २७
ruirym or vari
१९९२ १९७६ १९५५ १९७६ १९७०
४५-५३ २०-२५ १०-१४ २२-२८ ३१-३३
श्री अगरचंद भंवरलाल नाहटा
२०८
www.jainelibrary.org
श्री श्रीरंजन सूरिदेव श्री विजय मुनि मुनिश्री महेन्द्रकुमार जी 'द्वितीय'
* * * * * *
१९७९ १९७१ १९६९ १९६७ १९५१ १९६६
१९-२३ ३४-३५ १५-१८ २८-३२ ३६-३७ २७-३४