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वर्ष
अंक
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श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक मुनिश्री महेन्द्रकुमार जी (प्रथम) महात्मा भगवानदीन जी श्रीकृष्ण ‘जुगनू श्री रघुवीरशरण दिवाकर
लेख अपना और पराया अपने को पहचानिये अपराध की औषधि : क्षमा अपरिग्रहवाद -क्रमश:
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ई० सन् १९८४ १९८१ १९८५ १९५१ १९५१ १९५१ १९५२ १९५२ १९५२ १९५३ १९५३ १९६१ १९६० १९५८ १९८१ १९५५
९-१४ १२-१४ १८-२० ३४-३६ २५-२९ ३-८ ८-१२ ११-१५ २३-२५ ४१-४३ २२-२५ २-६ ३५-३६ ४७-५०
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अपरिग्रह अथवा अकर्मण्यता अपरिग्रह और आज का जैन समाज अपरिग्रह के तीन उपदेष्टा अपनी परमात्म शक्ति को पहचानो अपने व्यक्तित्व की परख कीजिये अपरिग्रह की नई दशा
श्री गोपीचन्द धारीवाल मुनिश्री समदर्शी डॉ० गुलाबचन्द्र चौधरी श्री सौभाग्यमल जैन श्री जे० एन० भारती श्री जमनालाल जैन
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