Book Title: Chari Palak Padyatra Sangh
Author(s): Rajhans Group of Industries
Publisher: Rajhans Group of Industries
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः भव्यातिभव्य ७ दिवसीय पालक पदयात्रा : प्रकाशक : मोखुंदा (राज.) निवासी श्री गोकुलचन्दजी हेमराजजी पोखरणा परिवार Jain Education Internat son PU Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। तपागच्छाचार्य श्री प्रेम-भुवनभानु जयघोष - जितेन्द्र- गुणरत्नसूरि सद्गुरुभ्यो नमः ।। पू.आ. श्री भुवनभानुसूरीश्वरजी म.सा. पू. आ. श्री प्रेमसूरीश्वरजी म.सा. दीक्षादानेश्वरी प.पू.आ.श्री गुणरत्नसूरीश्वरजी म.सा. Fo ersonal & Private Use Onl पू. आ. श्री जितेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. प.पू.आ. श्री रश्मिरत्नसूरीश्वरजी म.सा. Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धाचल गिरि नमो नम: विमलाचल गिरि नमो नमः (श्री शत्रुजय भावयात्रा तथा 17 उद्धार) है शुभ प्रेरणा पूज्यपाद 335 दीक्षादानेश्वरी आ.भ. श्रीमद् विजय गुणरत्नसूरीश्वरजी महाराजा है संकलन-संपादन पूज्यपाद आ.भ. श्रीमद् विजय रश्मिरत्नसूरीश्वरजी महाराजा ___ प्रकाशक व प्राप्तिस्थान मोखुंदा (राज.) निवासी श्री गोकुलचन्दजी हेमराजजी पोखरणा परिवार आयोजक : शा. शिवलाल गोकुलचन्दजी पोरदरणा RAJHANS DESAI-JAIN GROUP राजहंस ग्रुप ओफ इन्डस्ट्रीझ गीतांजली पेट्रोल पंप के सामने, वराछा रोड, सुरत-395006 (गुज.) ईन्डीया फोनः 0261-2551129, 2553307 “सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” 1 Jair Education International For Personal & Private Use Only a adpelletin Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शत्रुजय तीर्थाधिपति श्री आदिनाथ भगवान शाम में ऐसा वचन है कि... इस गिरिराज की आराधना करने वाला प्रायः तीसरे भव मोक्ष में जाता है, परंतु किसी आत्मा को अपूर्व उल्लास के साथ | उत्कृष्ट भाव आ जाय तो अन्तर्मुहूर्त में मोक्ष मिलता है. इस तीर्थ की आराधना में इतनी ताकत है ।। "सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः' 2 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तालध्वजगिरि(तलाजा) से कदम्बगिरि होकर श्री शत्रुजय महातीर्थ छ:री पालक भव्यातिभव्य ७ दिवसीय पदयात्रा संघ शुभंकर सानिध्य पूज्यपाद 335 दीक्षादानेश्वरी आ.भ. श्रीमद् विजय गुणरत्नसूरीश्वरजी महाराजा पूज्यपाद आ.भ. श्रीमद् विजय रश्मिरत्नसूरीश्वरजी महाराजा , आदि विशाल श्रमणवृंद श्रमणीवृंद पूज्य दीक्षा दानेश्वरी आ.भ.श्री के आज्ञानुवर्तिनी तपस्विनी सा. श्री पुष्पलताश्रीजी म.सा. . पूज्य 265 शिष्याओं की गुरुमाता प्रवर्तिनी साध्वी श्री पुण्यरेखाश्रीजी म.सा तथा उनकी शिष्या-प्रशिष्याए संघ प्रयाण : पोष वद-३, दि. 20-12-2013, शुक्रवार तीर्थ संघ प्रवेश : पोष वद-७, दि. 25-12-2013, बुधवार श्री संघ माला : पोष वद-८, दि. 26-12-2013, गुरुवार आयोजक मोखुंदा (राज.) निवासी | पूज्य मातुश्री सुंदरबाई गोकुलचन्दजी हेमराजजी पोखरणा परिवार topducation intomation Regluci नमानमःवमलाचल गारनमा P ersonal euserDriv G www.ja elibre Vorg Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान श्री समतीनाथ - तालध्वज गीरी yogyo ਬਣਾ ਕੇ ਵੰਨੇ ਨੇ तालध्वजगिरि श्री तालध्वज तीर्थेश - सत्यदेवाय भावतः । नमः सुमतिनाथाय विश्वशांति प्रदायिने ।। • जहाँ पर झूलते तोरण के समान उज्जवल - जिनगृह मंडलरुप अपूर्व हारमालाओं के दर्शन होते हैं, तथा दूर-दूर से ही यात्रिकों के मन को हरण करनेवाला, अनन्य श्रद्धा, अपूर्व भक्ति और नैसर्गिक सौन्दर्य की साक्षात् मूर्ति समान ऐसे तालध्वज तीर्थ को तीर्थाधिराज श्री शत्रुंजयतीर्थ का ही एक प्राचीन शिखर माना हुआ है । शत्रुंजय तीर्थ की तरह यह तालध्वजतीर्थ भी प्राचीन तीर्थ है। जिसमें मूलनायक श्री साचादेव सुमतिनाथ शोभ रहे है वे मकान की नींव से प्राप्त हुए है। तथा चौमुखजी की टुंक और अनेक छोटीबडी गुफाओं और भूगर्भ के अंदर भव्य इतिहास पडा हुआ है । For Personal & Private Use Only “सिद्धाचल गिरि नमः * गिरि नमो नमः” 4 Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७) GKOXOXOXOXOXOXOXOOOOOOO ©©©©©©©©©©©©©©© श्री समतिनाथ भगवान - कदम्बगीरी कारली SAKSEPER2828CRACSYGENESDAY 6000008 कदम्बगिवि तीर्थ का इतिहास । कदंबगिरि तीर्थ यानि तीर्थाधिराज श्री शत्रुजय की ढूंक | यहां गत चौवीशी के संप्रति नामक जिनेश्वर के कदंब नामक गणधर एक करोड मुनिवरों के साथ सर्व कर्मोका क्षय करके मोक्ष में पधारे थे । इसी कारण से इस तीर्थ का नाम कंदबगिरि हुआ | तथा प्राचीनकाल से कदंबगणधर के चरणपादुका की देरी कदंबगिरि पर्वत के टोच पर शोभ रही है । इस तीर्थ की मुख्य टुंक में श्री आदीश्वर भगवान मूलनायक रुप से बिराजमान है | इस टुंक को शेठताराचंदजी जावालवाले की टुंक कही जाती है । और प्रभुजी का परिकर विशाल और बारीक कोतरणी से युक्त है | चित्त को आनंद, आल्हाद और शांतिरस का पान करानेवाले प्रभुजी को वंदन-पूजन करके आत्मा को पवित्र करना चाहिए | oneha सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः"5 a oraryorg Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्रेम-भुवनभानु-जयघोष-जितेन्द्र-गुणरत्नसूरिजी वंशावली • मु. मौनरल वि. मु. जशरल वि.-मु. हेतरल वि, -मु. पूर्णरल वि. मु.त्रिपदीरलवि. मु.सुव्रतरत्न वि. मु.रम्यांगरल वि. मु. ज्ञानरत्न वि. मु. सिद्धांतरत्न वि. मु.जिनांगरत्न वि. मु. आत्मार्थीरल वि. पं. वैराग्यरत्न वि.मु. चारित्ररत्न वि. मु. श्रुतरत्न वि.मु. मित्ररत्न वि. मु. पावनरत्न वि.मु.नवकाररत्न वि.-मु. नितीरत्न वि. मु.पवित्ररल वि. -मु.तिलकरल वि. -मु.क्षमारल वि. मु.ह्रींकाररत्न वि. म. युगादिरत्न वि. मु. तत्वरल वि. मु. अपमरत्न वि. -(j) मु. सौम्यांगरत्न वि.. (k) मु. कल्याणरल वि. - मु.न्यायरल वि. मु. कुंथुरल वि. मु. मौर्यरत्न वि. -(i) म. देवरल वि. -(1) मु. समर्पितरल वि.-(m) मु.यशरल वि. मु.चित्तरत्न वि. (6) आ.भ.श्री.वि. पुन्यरलसूरिजी म.सा.. (7) आ.भ.श्री.वि.रविरलसूरिजी म.सा. (a) मु.हर्षरल वि.(b) मु.चिरंतनरत्न वि.'(c) मु. होररल वि.(d) मु.जितरल वि.(e) मु. मोक्षांगल वि.(0 मु. मतिरल वि. (g) मु. संभवरल वि. (h) मु. कैवल्यरल वि. -(S) मु. वर्धमानरल वि. मु. हेमरत्न वि. -पु.दीपरत्न वि. आ.भ.श्री.वि.यशोरलसूरिजी म.सा. मु. गंभीररल वि. मु.जिनवररल वि. पं.धर्मरल वि. --(p) मु. गणधररल वि. .मु.नंदिरल वि. मु.नप्ररत्ल वि. मु.प्रियेशरल वि. मु. तीर्थेशरत्न वि. -(9) पं. संयमरल वि. 3-(13) पं. मुनीशरत्न वि. -(14) पं. जयेशरत्न वि. -(15) मु. भाग्येशरत्न वि., -(16) मु.देवेशरल वि. -(17) मु.जिनेन्द्ररत्न वि. -(18) मु. अर्हमरत्न वि. मु. त्यागीरल वि. मु.हिरण्यरल वि. Personale मु. अजितरल वि. - मु.हितार्थरत्न वि. -(१) मु. तपोरल वि. -(0) मु. तीर्थरल वि. -(r) मु. तत्त्वार्थरत्न वि. -(n) मु. गीतार्थरल वि. (1) पं. वीररत्न वि. - .(2) पं. विश्वरल वि..(3) मु.निर्वाण वि.. .(4) मु.चरणगुण वि..(5) मु.मोक्षरत्न वि. - मु. लेखेशरत्न वि. 2 "सिद्भाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः । • मु. मुक्तिरल वि. (8) आ.भ.श्री.वि. रश्मिरलसूरिजी म.सा. (10) मु. उद्योतरत्न वि. -(12) मु. जयरत्न वि.. -(11) पं. जिनेशरल वि. मु.दक्षेशरत्न वि. मु. योगेशरत्न वि. पं. जीवेशरत्न वि. पं. पद्मभूषण वि. मु. परमरल वि. मु. कृपेशरत्न वि. मु.गौतमरत्न वि. मु. सुधर्मरल वि. -मु. दीक्षितरत्न वि. मु. तीर्थकररत्न वि. मु. ऋषभरत्न वि. (III) मु. आत्मगुण वि..मु. हेमसुंदर वि.-.(II) मु. गुणवर्धन वि. मु.त्रिभुवनरल वि. 323 दीक्षा दानेश्वरी आ.भ.श्री वि. गुणरत्नसूरीश्वरजी म.सा. ASSIHARSHILEGAROO –(19) मु. विनीतरत्न वि. -(20) मु. अहंदूल वि. म. निरागरत्न वि. मु. राजरत्ल वि. -(V) मु. प्रीतिरल वि. -VI) पं. निपुणरत्न वि. 6. (IV) मु. पंकजरल वि. -VII) मु. भावरल वि. मु. समकितरत्न वि. मु. विवुधरल वि. आ.भ.श्री.जितेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. :I TO VII आ.भ.श्री. गुणरत्नसूरीश्वरजी म मा 1 से 20 • मेवाड देशोद्धारक आ.भ.श्री वि. जितेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. आ.भ.श्री.वि. जयघोषसूरीश्वरजी म.सा. • आ.भ.श्री वि. भुवनभानुसूरीश्वरजी म.सा, •आ.भ.श्री वि. प्रेमसूरीश्वरजी म.सा. आ.भ.श्री. रश्मिरत्नसूरीश्वरजी म.सा.: aTot काळ धर्म Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रोहीत अमीत मुकेश स्वीटी नेहा रमेश पुखराज लीलाबाई प्रवीत मीकी दीपक ममता स्वीटी हर्षिल विक्रम सुमन सुरेशचंद्र सुशीलाबाई महेश वंदना नीशीत महेन्द्रकुमार राधाबाई रीशभ पंकज रीचा प्रीत तेजराज सुमन सीमा प्रिशा दीलीपजी शील्पा वीकासजी निवेध अस्ना सुनील जीनेश शीवलाल सुशीलाबाई संजय सीमा ललीत मोना वंटी रीधान प्राश कवीश वीश्वा प्रकाशचंद्र उषाबाई पीस्ताबाई लक्ष्मीलालजी (कोशीयाल) उगमवाई शंकरलालजी बोहरा (बेमाली) श्रीफतेहलालजी श्रीअंबालालजी श्रीसोहनलालजी श्रीनाथुलालजी श्रीचुनीबाई श्रीगेहरीबाई श्रीगोकुलचंदजी श्रीमतीसुंदरबाई मातुश्री श्रीमती बल्लुबाई हेमराजजी पोखराणा परिवार (मोखुन्दा, जी. भीलवाडा, राजस्थान) दि. 26-12-2013 Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भरतादि चौद क्षेत्रमां, ए सम तीरथ न कोय तिणे सुरगिरि नामे नमुं, ज्यां सुरवास अनेक... श्री शत्रुंजय महातीर्थ शचित्र भावयात्रा लेखक : दीक्षादानेश्वरी आ. श्री गुणरत्नसूरीश्वरजी म.सा. संपादन : प्रवचनप्रभावक आ. श्री रश्मिरत्नसूरीश्वरजी म.सा. पांच महाविदेह, पांच ऐरवत और चार भरत इन चौदह क्षेत्रों में श्री शत्रुंजय समान कोई तीर्थ नहीं है । त्रीजे भव सिद्ध रहे, ए पण प्राचिक वाच उत्कृष्टा परिणाम थी, अन्तरमुहूर्त साच... पंडित शुभवीरविजयजी Shatrunjay Bhav Yatra “सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः” 8 Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दादा की ट्रंक का सुहाना द्रश्य चेतन ! आज हमें तीर्थाधिराज शत्रुंजय महातीर्थ की भाव-यात्रा करनी है । यह सिद्धगिरिराज एक महान् पावन भूमि है । जगत के अन्य धर्मों में किसी न किसी स्थान विशेष को पवित्र माने जाने के उदाहरण दृष्टिगोचर हो रहे हैं। जैसे हिन्दू हिमालयादि को, मुसलमान मक्का-मदीना को, क्रिश्चियन जेरुसलम तथा बौद्ध गया - बोधिवृक्ष वगैरह स्थानों को पवित्र मानते आ रहे हैं । इन धर्मों के अनुयायी मनुष्य जिंदगी में एक बार अपने अपने इन पावन स्थानों में जाकर जन्म को सफल हुआ मानते हैं । जैन धर्म में भी ऐसे कितने ही स्थान पूजनीय व स्पर्शनीय माने गए हैं। जैसे शत्रुंजय, गिरनार, आबू, तारंगा व सम्मेतशिखर आदि स्थान । इनमें भी शत्रुंजय गिरिराज को सबसे अधिक श्रेष्ठ महापवित्र एवं पूज्य माना जाता है। यह तीर्थ इस संसार व शिवनगरी के मध्य का अखंड अभंग सेतु है । इस सेतु पर आपका पर्यटन चालू रखना। एक मंगल दिन में व मंगल धड़ी में हंसते हृदय से आप शिवनगरी में निश्चय ही प्रवेश कर सकेंगे......। जैसे यहां पांडवों के साथ 20 करोड़ आत्माएं मोक्ष सीधारी हैं, अजितसेन मुनि 17 करोड, सोमयश 13 करोड, शाम्बप्रद्युम्न साढ़े आठ करोड़, राम-भरत ३ करोड़, नमि-विनमि दो करोड़, श्रीसार मुनि - सागर मुनि एवं कदम्ब गणधर एक - एक करोड़, नारदजी 11 लाख, आदित्ययश एक लाख, वसुदेव की भूतपूर्व पत्नियां 35000, दमितारी 14 हजार, अजितनाथ भगवान के 10000, मुनि थावच्चा गणधर 1000 मुनि, थावच्चा पुत्र 1000, शुकाचार्य 1000, शेलकजी 500 मुनि, प्रद्युम्न की पत्नी वैदर्भी वगैरह 4400 साध्वियाँ एवं सुभद्र मुनि 700 मुनियों के साथ मोक्ष गये हैं। अधिक क्या कहेंयह तीर्थ शाश्वत होने के कारण अनादि अनंत अतीत काल इस भूमि के एक-एक कण पर अनंत आत्माएँ मोक्ष सिधारी हैं । एवं अनंत आत्माएँ भविष्य में मोक्ष जायेगी । इसी कारण स्तवन में गाया है कि "इण गिरि साधु अनन्ता सिध्या ".... Jain Education Internation' सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः” 9 Awww.jainellbrary Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेतन ! अनागत (भावी) चौबिशी के सभी तीर्थंकर यहां पधारकर देशना देंगे और मोक्ष सिधारेंगे। चेतन ! द्रव्य - यात्राएँ तो तुमने अनेक की होगी, परंतु आज भाव यात्रा करनी है। चेतन ! पुण्यशाली जैन एवं अजैन व्यक्ति श्री सिद्धगिरिराज . महातीर्थ पर जाकर आदीश्वर दादा को भाव पूर्वक वंदन करते हैं और अपने कर्मों का क्षय करते हैं । सिद्धगिरि की महिमा केवलज्ञानी ही जानते हैं । परंतु वे कह नहीं सकते, तीनों कालों में यह तीर्थाराज प्रायः शाश्वत हैं । इस तीर्थ की महिमा प्रदर्शित करनेवाली पंक्तियाँ तूने सुनी ही होंगी -"पापी अभव्य नजरे न देख्ने", "गिरिवर फरसण नवि कोए, ते रह्यो गर्भावास...", "पशु पंखी जे इण गिरि आवे, भव त्रीजे ते सिद्ध ज थावे ।" ऐसे अनुपम महातीर्थ की आज तुझे भाव पूर्वक यात्रा करनी है, जिससे भव यात्रा मिट जायें । इस भावयात्रा का अर्थ ही यह है कि "A complete Concentration; a Peaceful yoga and meditation of Shatrunjaya." ____चेतन ! शत्रुजय तीर्थ जगत के तीर्थों में महान प्रभावक और चमत्कारी है व आकाश में लाखों सितारों के बीच में जैसे चंद्र शोभता है, उसी तरह शत्रुजय अनेक तीर्थों में सुशोभित है । पुण्य पुंज का यह धाम है । जैसे रजनी के गाढ अंधकार में किसी मार्ग भूले प्रवासी को ध्रुव का तारा या झोपडी का दीपक भी सच्ची राह बताता है, उसी प्रकार संसार के आधि, व्याधि तथा उपाधि में ग्रस्त संतप्त मानव को पवित्र जीवन की राह शत्रुजय गिरि का उत्तुंग शिखर बता रहा है। चेतन ! तनिक ध्यान रखना और चलते समय अन्य कुछ भी बात मत करना । सिद्धगिरिराज की महापवित्र धरती में मोक्ष सिधारे ऐसे है महा पुण्यशाली आत्माओं का चिन्तन करते करते चलो आगे बढें - बीच-बीच में जहाँ तीर्थंकरों की चरण-पादुकाएँ एवं प्रतिमाजी । आयें, वहां "नमो जिणाणं" और जहां सिद्ध परमात्मा की चरणपादुकाएँ तथा प्रतिमाजी आयें, वहां"नमोसिद्धाणं" बोलना। o e nationes festa for Personen Private U V नमो नमः * विमलाचल गार नम Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेतन ! भावयात्रा के लिए आंखे बंद कर दें और कल्पना करना, कि अनंतोपकारी देवाधिदेव तथा परम गुरुदेव की कृपा से हमें आकाशगामिनी विद्या प्राप्त हुई है और हम आकाश के रास्ते से श्री सिद्धाचल महातीर्थ पर जा रहे हैं। बीच में शंखेश्वर वगैरह तीर्थ आते हैं। "नमो जिणाणं" कहके वल्लभीपुर होकर जा रहे हैं । आँख्ने खोलकर अहाहा.... ! देखो, हम देखते ही देखते शत्रुजय के समीप पहुंच गए हैं, देखो यह जो दिख रहा है, वही है श्री गिरिराज । बोलो "श्री शत्रुजय गिरिराज की जय" चलो हम नीचे उतरें। चेतन ! चलते रहें । अब हम जय तलहटी के समीप आ पहुँचे हैं। यहां निर्मित विशाल गेट के अंदर दोनों ओर दो हाथी शोभायमान हैं। जब राजा, महाराजा सिद्धगिरि की यात्रा पर आते तब वे हाथी से नीचे उतरकर पैदल यात्रा करते थे। उसके प्रतीक स्वरुप दोनों ओर हाथी के पुतले खड़े किये हुए प्रतीत होते हैं मानों वे तीर्थयात्रियों का स्वागत कर रहे हों। चेतन ! हम "निसीहि कह कर एक-एक कदम बढ़ाते हुए करोड़ों भवों के अपने पापों का नाश करते हुए एक-एक सीढ़ी चढ़ रहे है। सीढ़िये समाप्त होने पर चौक आया । चेतन ! हम चलते जाये और मन में सिद्धगिरि की महिमा का गुंजन करते जाये। वन्दना, वन्दना, वन्दना रे, गिरिराज को सदा मोरी वन्दना रे... "गिरिवर दर्शन विरला पावे, परव संचित कर्म खपावे चेतन ! यह जय तलेटी (तलहटी) आई । यह स्थान एक युग में "मनमोहन पाग" के नाम से विख्यात थी। परंतु यहाँ पर चैत्यवंदन के बाद भक्तों के हृदय में से "बोलो आदीश्वर भगवान की जय" यह उद्गार निकल पड़ता है । जय" शब्द से इसका नाम पावर T "सिद्धाचल गिरि लमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः 811 Manesatano Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "जय तलेटी' प्रसिद्ध हुआ । चेतन ! सम्मुख स्थित देहरियों में चरणपादुकाएं है । दाहिनी एवं बायीं ओर की विभिन्न देहरियों में भी चरणपादुकाएं हैं। चेतन ! आओ "नमो जिणाणं" बोलकर सबको वन्दन करें । देहरियों के नीचे पर्वत का एक छोटा सा भाग महा पवित्रता के प्रतीक रुप में स्थापित किया गया है । यूं तो संपूर्ण गिरिराज पूजनीय एवं महापवित्र है, परंतु संपूर्ण की पूजनीयता कैसे संभाली जा सकती है ? अत: महापुरुषों ने अमुक भूमि को सीमित कर दी है । प्रतिदिन इस गिरिशिला की केशर-चंदन से द्रव्य पूजा व स्तुति स्तवना द्वारा भावपूजा होती है, और इसका नित्य अभिषेक होता है, केशरादि से आँगी (अंगरचना) होती है, पुष्पारोपण होता है । इस पावन धरा का मस्तक से स्पर्श करके यहाँ हम प्रथम चैत्यवंदन करें। चेतन ! अब गिरिराज पर चढ़ने की तैयारी करें। बायीं तरफ श्री गोविंदजी जेवतजी खोना द्वारा निर्मित धर्मनाथ प्रभु के जिनालय में "नमो जिणाणं कहकर वंदना करें। | चेतन ! अब हम बाबू के जिनालय की ओर सीधी सीढ़ियों से उपर चढ़कर दाहिनी ओर श्री अजितनाथ भगवान की चरण - पादुकाके दर्शन करते है । श्री अजितनाथ परमात्मा ने वहाँ वर्षावास किया था । यहाँ उनके दस हजार मुनिगण मोक्ष सीधारे थे । निन्नाणवे प्रकार की पूजा में कहा है कि - "अजितनाथ मुनि चैत्र नी रे, पूनमे दस हजार सलूणा । "नमो जिणाणं चेतन ! गिरिराज की सीढ़ियों की दाहिनी ओर तीन देहरियाँ है, उसमें प्रथम देहरी में श्री गौतम स्वामी की चरण-पादुकाएँ हैं । Dain Education internatioffसिद्धाचल गिरि नमो नमः बिमलाचल गिरि नमो नमः” 12 Tww jaineliyon Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेतन ! गौतम स्वामी का मंगल करके जब हम आगे बढ़ते हैं, तब द्वितीय देहरी में श्री आदीश्वर भगवान की चरण-पादुका के दर्शन होते हैं। "नमो जिणाणं" चेतन ! समीप में ही तीसरी एक देहरी में श्री शान्तिनाथ चरण-पादुकाएँ हैं । श्री शान्तिनाथ भगवान ने 1,52,55,777 मुनिवरोंके साथ यहाँ वर्षावास किया था । वे समस्त मुनिवर इस गिरिराज पर मोक्ष सिधारे। निन्नाणवे प्रकार की पूजा में कहा है कि : "लन बावन ने एक कोडी रे, आदीश्वर अलबेलो रे। पंचावन सहस ने जोडी रे, आदीश्वर अलबेलो रे। सात सौ सत्योतर साधु रे, आदीश्वर अलबेलो रे । प्रभु शान्ति चौमासुं कीधुं रे, आदीश्वर अलबेलो रे । तव वरिया शिवनारी रे, आदीश्वर अलबेलो रे। सिद्धाचल शिखरे दीवो रे, आदीश्वर अलबेलो रे।" चेतन !"नमो जिणाण" कहकर चलें। चेतन ! वहां से तनिक आगे चलने पर मार्ग के दाहिनी ओर सरस्वती माताका मंदिर दृष्टिगोचर होता है । अब हम मूल सीढ़ियों को छोड़कर एक छोटी सी पगदंडी से सरस्वती देवी के मंदिर की ओर चलें। चेतन ! यहां पर ध्यान रखना, क्योंकि देहरी छोटी है, सिर झुकाकर श्री सरस्वती देवी के दर्शन करना । श्रावक को प्रणाम व साधु-साध्वीजी को धर्मलाभ कहना चाहिए। __चेतन ! भगवती सरस्वती के समक्ष निम्न स्तुति बोलें - "सुअ-देवया भगवई, नाणावरणीयकम्मसंघायं । तेसिं ख्रवेउ सययं, जेसिं सुअ सायरे भत्ती॥" “सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” 13 For Personal & Private Use Only . Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्थात् "जिन व्यक्तियों की श्रुतज्ञान रुपी सागर में भक्ति हो, उनके ज्ञानावरण कर्म के समूह का भगवती सरस्वती क्षय करें ।" चेतन ! अब हम वापस लौट चलें और मूल सीढ़ियों पर पहुंचें । चेतन ! यहां दाहिनी ओर भिन्नभिन्न तीन देहरियों में श्री धर्मनाथ प्रभु, श्री कुन्थुनाथ और श्री नेमिनाथ की चरण पादुकाओं के दर्शन करें। चेतन ! नेमिनाथ प्रभु इन्द्र की विनंति से शत्रुंजय तरफ पधारे थे, परंतु तलहटी तक ही पधारे थे । उपर नहीं चढ़े, गिरनारजी के श्री नेमिनाथ दादा की यात्रा का लाभ प्राप्त हो जाये, क्योंकि गिरनार भी इस गिरिराज का एक भाग है। श्री धर्मनाथ प्रभु ईधर समवसरे थे, और भव्य जीवों को देशना दी थी । प्रभु का उपदेश सुनकर अनेक जीव इस शत्रुज्य पर मोक्ष में गये । श्री कुंथुनाथ भगवान भी ईधर पधारे व देशना दी थी । इसलिए यहाँ उनकी ये चरण पादुकाएँ प्रतिष्ठित की गई है । चरण पादुकाओं को "नमो जिणाणं" कहकर वन्दन करें । चेतन ! अब हम बायीं ओर की सीढ़ियों से बाबू के मंदिर की ओर दर्शन करने के लिए चलें । सीढ़ियाँ चढ़ने पर बाबू के मन्दिर का द्वार आ गया है । arternational चेतन ! यहां से हम चौक में आ जाये । यहाँ चौकीदार को कहेंगे, तो वह हमें रत्न मन्दिर के दर्शन करायेगा । For Personal & Private Use Only “सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः" 14 99 Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ શ્રીરતનથિ મંદિરુ चेतन ! यह रत्न मन्दिर है । इसमें भिन्न-भिन्न रत्नों की प्रतिमाएँ हैं । हम समस्त प्रतिमाओं को वन्दन करें।"नमो जिणाणं"। चेतन ! अब हमें मंदिर के अंदर थोड़ा ऊपर चढ़ना है । यह बाबू का विशाल जिनालय लगभग "दादा की ट्रॅक' का अनुसरण है । कतिपय अशक्त नर - नारी दादा के दरबार तक ऊपर न चढ़ सके, उनकी सुविधा के लिए मुर्शिदाबाद के राय बहादुर बाबू धनपत सिंहजी ने अपनी मातुश्री मेहताब कुमारी की प्रेरणा से विक्रम संवत् १६५० में इस भव्य एवं विशाल जिनालय का निर्माण करवाया था। चेतन ! इस जिनालय में मूलनायक श्री ऋषभदेव, पुण्डरीक स्वामी, रायण पादुका आदि दादा की ढूंक की तरह सब सुव्यवस्थित हैं । कुल ८४ देहरियाँ हैं।"नमो जिणाणं", जिनालय में से समीपस्थ मार्ग से मूल सीढ़ियों पर आकर, चलो अब हम गिरिराज के ऊपर चढ़े। र चेतन ! नीचे से आ रहे सोपानों MAY का रास्ता यहां पर जुड़ता है । अब हम गिरिराज पर कुछ सीढ़ियां चढ़ें । दाहिनी ओर हमें विशाल "समवसरण मन्दिर के दर्शन होते हैं । समवसरण के भव्य आकार के इस जिनालय में सबसे ऊपर औरनीचे मूलनायकजी चौमखजी के दर्शन और भीतर देहरियों में बायीं ओर से गोलाकार दीवार में 108 पार्श्वनाथ की प्रतिमाओं के तथा चौबीश तीर्थंकरों के दर्शन होते हैं । दायीं ओर गोलाकार गेलेरी की दीवार में अनेक आचार्य श्री, मुनिश्री एवं श्रावक श्राविकाओं की जीवनियों को चित्र-पेईंटींग्स के माध्यम से प्रदर्शित की गई हैं। Jan Education internationa" सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः" 15.. Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेतन ! कुछ सीढ़ियाँ चढ़ने पर प्रथम विश्राम आता है । गिरिराज पर चढ़ते-चढ़ते थक जाये, तब थकान मिटाने के लिए ऐसे विश्रामस्थलों का निर्माण कराया गया है । चेतन ! वहाँ बैठकर कुछ समय तक सिद्धात्माओं का ध्यान करें, ताकि साँस बैठ जायेगी और थकान भी उतर जायेगी । चेतन ! देख यह दूसरा विश्राम-स्थल आया इसे " धोली पर " (श्वेत प्याऊ) कहते हैं । यहां गर्म पानी भी उपलब्ध होता है । चेतन ! प्रथम चढ़ाव पूरा होनेपर दाहिनी ओर चक्रवर्ती भरत महाराजा की अलौकिक अनासक्ति व आत्म समृद्धि की स्मृति कराती हुई देहरी आती है, जो अपने समक्ष एक भव्य भूतकाल को ताजा करती है । महाराजा भरत भगवान श्री ऋषभदेव के पुत्र और चक्रवर्ती थे । उन्होंने पूर्व में श्री शत्रुंजय कल्पवृत्ति ग्रंथ के अनुसार शत्रुंजय की महिमा श्रवण कर अभिग्रह किया था कि जब तक शत्रुंजय पर बिराजमान तीर्थंकरों को वंदन नहीं करूं, तब तक दिन में दो बार भोजन और एक विगई से ज्यादा नहीं खाऊंगा । इस अवसर्पिणी काल में उन्होंने इस महातीर्थ का प्रथम उद्धार कराया और वे यहाँ "छः" री पालक संघ लेकर सर्व प्रथम आये थे । तत्पश्चात् अनित्य भावना का चिंतन करते हुए उन्होंने घाति कर्मों का क्षय कर आरीसा भुवन में केवलज्ञान प्राप्त किया और मोक्ष में गये । चेतन ! भरत महाराजा के चरण पादुकाओं को नमन कर लें । ये चरण पादुकाएँ विक्रम संवत १६८५ में स्थापित की गई थी । चेतन ! अब चलने का सीधा मार्ग आ गया है । पालीताना का द्वितीय नाम है सिद्धाचल ! सीधाचल की अनुभूति हमें यहां होती है । यह शब्द हमें शिक्षा देता है कि माया-कपट की टेढ़ी चाल से हम अत्यन्त दुःखी हुए हैं । अब सीधे होकर चलें । “सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” For Personal & Private Use Only 16 Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व चेतन ! थोड़ा चलने पर बायीं ओर यह कुण्ड जो दृष्टिगोचर हो रहा है, उसका निर्माण सूरत निवासी सेठ इच्छाचंद ने विक्रम संवत् १८६१ में कराया था। अत: इसका नाम"इच्छा कुण्ड' रखा गया है। चेतन ! थोडा सा पर चढ़ने पर दाहिनी ओर एक देहरी में ऋषभदेव, नेमिनाथ एवं नेमिनाथजी के गणधर वरदत्त की चरण-पादुकाएँ दृष्टिगोचर होती हैं । उनके दर्शन करके "नमो जिणाणं" "नमो सिद्धाणं" बोलकर हम कृतार्थ बनें । वरदत्त गणधर का वैसे निर्वाण तो गिरनार पर हुआ था, फिर उनकी चरण-पादुकाएँ यहां क्यों ? उसका उत्तर यह है कि श्री वरदत्त गणधर ने शत्रुजय की महिमा का वर्णन किया था। इसी कारण से उनकी चरण पादुकाओं की यहां स्थापना की गई है। चेतन ! थोडासा ऊपर चढ़ने पर बायीं ओर लीली परब(हरी प्याऊ) आती है। यह तीसरा विश्राम - स्थल हैं। चेतन ! यहां प्याऊ के सामने दाहिनी ओर की एक देहरी में श्री आदीश्वर भगवान की चरण-पादुकाएँ हैं । "नमो जिणाणं" ____चेतन ! हम थोडा और ऊपर चढ़ें । दाहिनी ओर यह कुमार-कुण्ड आ गया। अठारह देशों के महाराजा कुमारपाल कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के उपदेश से "छ:" री पालक संघ लेकर यहाँ आये थे । उस समय सवा करोड मूल्य का रत्न अर्पण करके शेठ जगडूशाह ने अपनी मातुश्री को संघमाला पहनाई थी । ऐसे अद्भुत संघ की स्मृति में महाराजा कुमारपाल ने इस कुण्ड का निर्माण कराया था और गिरिराज पर 'कुमारपाल विहार' नाम की दूंक का भी निर्माण कराया था। "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” 178 in Education International For Personal & Private Use Only www.ateliersorg Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेतन ! यहाँ एक विशेष घटना भी हो चुकी है। एक बार वस्तुपाल-तेजपाल संघ लेकर गिरिराज आये थे। दादा आदीश्वर भगवान के दर्शन करके संघ लौटता हुआ यहाँतक आया, उस समय सामने ढेर के ढेर पुष्प लेकर माली चढ रहा था । संघ को लौटता देख्न वह अत्यन्त निराश होगया । माली को इस प्रकार निराश होता देख कर संघवी वस्तुपाल तेजपाल ने कहा, "अरे भाई ! जिस प्रकार आदीश्वर दादा पूजनीय है, उसी प्रकार यह गिरिराज भी पूजनीय है, ला तेरे पुष्प, हम यहाँ से गिरिराज का सम्मान करें, उसे बधायें ।" माली को उदारता पूर्वक खूब धन दिया, माली अत्यंत खुश हो गया। वाह रे संघवी ! धन्य है तेरी उदारता !! प्रभुजी आव्यो हिंगलाजनो हाड़ो के, केड़े हाथ देई चढ़ो रे लोल... चेतन ! अब तो सामने की ओर सीढ़ियाँ ही सीढ़ियाँ दृष्टिगोचर हो रही हैं, और वह है, हिंगलाज की चढ़ाई (हडा) है । घबराना मत । पहले जब सीढ़ियाँ नहीं थी, तब यह चढ़ाई अत्यन्त भयानक प्रतीत होती थी। अच्छे अच्छे बलिष्ठ व्यक्ति भी थक जाते थे और इसीलिए कहावत प्रसिद्ध हुई थी कि - "आव्यो हिंगलाजनो हड़ो, केड़े हाथ दई ने चढ़ो । फूट्यो पाप नो घडो, बाँधो पुण्य नो पड़ो।" इस प्रकार पुजारी यहाँ खड़ा -खड़ा इन पंक्तियों का उच्चारण करता था और यात्रियों के उत्साह में अभिवृद्धि करता था। (कुछ सीढ़ियाँ चढ़ने के पश्चात् चेतन प्रश्न करता है) गुरुदेव ! दाहिनी ओर की इस दीवार के गोख में जिस हिंगलाज माता की पूजा होती है, वह कौन है ? “सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः' 18 For Personal & Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेतन ! यह श्री नेमिनाथ भगवान की अधिष्ठायिका हिंगलाज माता सौराष्ट्र की रक्षिका मानी जाती थी। गिरिराज पर चढ़ते समय हिंगुल नामक राक्षस यात्रिकों को सन्तप्त करता था । अम्बिका देवी ने उसके साथ संघर्ष करके उस पराजित किया । तब उसने अपना नाम स्थायी रखने का निवेदन किया, तब अम्बिका माता ने उसकी प्रार्थना स्वीकार की । तब से अम्बिका देवी की हिंगलाज माता के रुप में पूजा होती है। "प्रणाम.... धर्मलाभ......." चेतन ! थोडा उपर चढते हैं । श्री कलिकुंड पार्श्वनाथ की चरण पादुकाएँ दाहिनी ओर की देहरी में प्रतिष्ठित हैं । हम उनके दर्शन करते हैं । चेतन ! कादम्बरी नामक वन में भगवान श्री पार्श्वनाथ कायोत्सर्ग ध्यान में थे । उस समय वहाँ वनहाथी ने श्रद्धा-भक्ति से अपनी ढूँढ़ में पानी भरकर प्रभुजी को पक्षाल किया और कमल पुष्प चढ़ाये। हाथी मर कर देवलोक में गया । वहाँ कलिकुण्ड पार्श्वनाथ तीर्थ की स्थापना हुई। - चेतन ! थोड़ा ऊपर चढने पर कुछ वर्षों पहले "नानो मान मोडीओ" व "मोटो मान मोडीओ" नामक प्रसिद्ध दो चढ़ाव यहाँ थे, जिसको चढ़ते हुए छोटे-बड़े सभी के मान मुड-टूट जाते थे। लेकिन अभी चेतन ! यहाँ नया रस्ता हो जाने से ये दो चढ़ाव अब लोग भूल गए हैं। - चेतन ! पुराने मार्ग में समवसरण के आकार की छोटी देहरी भी थी, जिसमें आसन्न उपकारी भगवान श्री महावीर स्वामी की चरणपादुकाएँ थीं, क्योंकि सिद्धगिरिराज पर भगवान श्री महावीर स्वामी का समवसरण रचा गया था। परंतु वे चरण पादुकायें अब श्रीपूज्य की ढूंक में श्री पद्मावती देवी के पास में बिराजमान की गई है । चेतन ! हम सीधे नवीन मार्ग से धीरे-धीरे सीढ़ियाँ चढ़ते जायें। बीच में कुछ समतल मार्ग भी आता है। SSES / “सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” 19 For Personal & Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेतन ! हम तनिक आगे बढ़े, जहाँ बायीं ओर विक्रम संवत् १८७० में अहमदाबाद निवासी सेठ श्री हेमाभाई वखतचन्द द्वारा निर्मित कुण्ड एवं प्याऊ हैं और उसके समीप ही नक्कासी युक्त देहरी में कमलपत्र में ऋषभ, चन्द्रानन, वारिषेण तथा वर्द्धमान- इन चार शाश्वत तीर्थंकरों की चरण पादुकाएँ है । नमो जिणाणं" कह कर उनके दर्शन करके हम अपना जीवन धन्य बनायें । - " चेतन ! इस देहरी के पीछे " छालाकुण्ड है । चेतन ! थोडी सीढ़ियाँ चढ़ने पर दायी ओर" श्री पूज्य की हूँक" दृष्टिगोचर होती है । चेतन ! इस श्री पूज्य टँक का निर्माण तपागच्छीय श्रीपूज्य देवेन्द्रसूरिजी म.सा. की Jain ducation International प्रेरणा से हुआ है । यहाँ चौदह देहरियाँ हैं । एक देहरी में श्री पार्श्वनाथ की अधिष्ठायिका पद्मावती की सात फणों से युक्त सत्रह इंच की मूर्ति है । उसके मस्तक पर पार्श्वनाथ भगवान की पाँच फणों से युक्त प्रतिमा है । चेतन ! पार्श्व प्रभु को " नमो जिणाणं" कहकर वन्दन करके साधर्मिक रुप में पद्मावती देवी को करबद्ध प्रणाम करना । द्वितीय देहरी में मणिभद्रजी की प्रतिमा है । चेतन ! श्रावक-श्राविकाओं को उन्हें प्रणाम करना चाहिये" और साधु-साध्वियों को "धर्मलाभ " बोलना चाहिये । चेतन ! यहाँ" एक कमरे में श्री गौतम स्वामी की मूर्ति है । लोग यहां पर एक लम्बा और मोटा साँप बहुत बार देखते हैं । शायद वह सांप यहाँ का अधिष्ठायक हो सकताहै. यहाँ आस-पास की देहरी में श्री पूज्य की चरण पादुकाएँ हैं । ईधर एक विशाल कुण्ड भी है, जिसके चारों ओर चार देहरियाँ हैं । इसमें क्रमश: गोडीजी पार्श्वनाथ, आदिाथ, “सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” 20 For Personal & Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमस्वामी और धर्मसूरिजी की चरण-पादुकाएँ हैं। "जैन परंपरा का इतिहास" पुस्तक के अनुसार यह ढूंक जिनेन्द्र सूरि की प्रेरणा से बनी है, जिससे इस ढूंक को जिनेन्द्र ढूंक भी कहते हैं। चेतन ! श्रीपूज्य दूंक से बाहर आकर कुछ कदम ऊपर चढ़ने पर दाहिनी ओर के चबूतरे पर एक देहरी में काउस्सग ध्यान में चार खड़ी श्याम प्रतिमाएँ हैं । उन्हें "नमो सिद्धाणं कहें । उसमें पहली और दूसरी प्रतिमा क्रमश: द्राविड़ और वारिखिल्ल्जी की हैं । तीसरी प्रतिमा अईमुत्ता मुनि की है। ___चेतन ! चौथी मूर्ति नारदजी की है । नारदजी यानि कौतुक - वृत्ति वाले पुरुष तथा कलह कराने में दक्ष ऐसी उनकी छाप थी । आज भी ईधर की ऊधर और ऊधर की ईधर बातों में भिड़ानेवाले व्यक्ति को "नारद का नाम दिया जाता है । परन्तु नारदजी उत्तम नैष्ठिक अखण्ड ब्रहाचर्य के धारक थे। यह बहुत कम लोग जानते हैं, श्री कृष्णजी की द्वारिका का दाह एवं उसमें करोड़ों यादवों के भस्म हो जाने के भयानक दृश्य को देखकर वे विरक्त हो गये और दीक्षा ग्रहण करके एंकाणवे लाख मुनियों के साथ इस गिरिराज पर आकर उन्होंने अनशन किया और मोक्ष सिधारें। चेतन ! तनिक आगे बढ़ने पर, बायीं ओर एक कुण्ड है, जो "हीराकुण्ड' कहा जाता है । विमलवसही (दादा की ट्रॅक) में जिनालय का निर्माण कराने वाली हीराबाई ने इस कुण्ड का निर्माण करवाया था। चेतन ! कुछ सीढ़ियां चढ़ने पर दाहिनी ओर की एक देहरी में हमें काउसग्ग ध्यान में खड़ी पाँच श्याम मूर्तियाँ दृष्टिगोचर होती है। उन्हें "नमो सिद्धाणं कहें । Jain Educati "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः"21 Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ VE चेतन ! इनमें से प्रथम दो मूर्तियाँ राम व भरत की है । दशरथ महाराजा के पुत्र रामचन्द्रजी तथा भरतजी ने इस शत्रुजय का श्री मुनिसुव्रत स्वामी के शासन में ग्यारहवां उद्धार कराया था। तत्पश्चात् राम एवं भरत संयम अंगीकार करके इस गिरिराज पर तीन करोड़ मुनियों के साथ अनशन करके मोक्ष गये हैं। चेतन ! तीसरी मूर्ति थावच्चा पुत्र की है । थावच्चा पुत्र एक हजार मुनियों के साथ इस गिरिराज पर अनशन करके मोक्ष गये हैं। . चेतन ! चौथी शुकाचार्य की मूर्ति है। एक हजार शिष्यों के साथ सिद्धगिरि पर आये और अनशन करके मोक्ष में गये। चेतन ! पाँचवी शैलकाचार्य की मूर्ति है। शैलकाचार्य सिद्धगिरि पर आकर ५०० शिष्यों के साथ अनशन करके मोक्ष गये। चेतन ! थोडासा आगे चलने पर बायीं ओर एक कुण्ड आता है। राणा बावडी तथा सात कमरों के समीप धर्मशाला का निर्माण करानेवाले सूरत के सेठ भूखणदास ने इस कुण्ड का निर्माण कराया था। मार्ग में आनेवाले कुण्डों में यह अंतिम कुण्ड है । यद्यपि रामपोल के पश्चात् सूरज कुण्ड आदि अन्य कुण्ड भी है। चेतन ! थोड़े सोपान चढ़ते हैं, तब बायीं ओर देहरी में आदीश्वर भगवान की चरण पादुकाएँ हैं । वहां "नमो जिणाणं" बोल कर ऊपर चढ़ें। चेतन ! सुकोशल मुनि के चरण पादुकाओं को "नमो सिद्धाणं" बोल कर हम आगे चलें। चेतन ! दूसरी छोटी देहरी में नमि की ६४ पुत्रियाँ जो गिरिराज पर मोक्ष उन्हें "नमो सिध्धाणं में गई हैं। चेतन ! वहाँ से कुछ सीढ़ियां चढ़ने पर हमें बाँयी ओर एक बरगद का वृक्ष दृष्टिगोचर होता है, यह छट्ठा विश्राम है, वृक्ष के नीचे गर्म पानी की प्याऊभी है, परन्तु शक्य हो, तो हमें सिद्धगिरिराज पर पानी का उपयोग नहीं करना है। "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाबल गिरि नमो नम: 220 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ မ ဖ ဖ सक चेतन ! उसके समीप देहरी में भगवान श्री ऋषभदेव की चरण-पादुकाएँ हैं । "नमो जिणाणं" दाहिनी ओर एक कमरे में हनुमानजी की मूर्ति है, अत: यह स्थान "हनुमान हड़ा" "हनुमान द्वार' एवं हनुमान धारा" के नाम से विख्यात है। ____चेतन ! यहां से दो मार्ग जाते हैं - एक मार्ग नौ |कों की ओर तथा दूसरा मार्ग दादा की ट्रॅक की ओर जाता है । जब मोतीशा ट्रॅक का निर्माण हुआ था । तब लोग हनुमान धारा से चौमुखजी की ढूंक में से होकर अद्भुतजी के पास में से गुजरते हुए हाथी पोल में जाते थे। चेतन ! तुझे दादा के दर्शन की उतावल है, अत: नौ ढूंकों का मार्ग छोड़कर अपन दादा की दूंक की ओर चले । बस ! अब दादा ऋषभदेव बहुत दूर नहीं हैं। __ चेतन ! हम कुछ सीढ़ियां चढ़ें, उसके बाद कुछ समतल मार्ग पर चलें, तब सामने रामपोल दिखती है, उसके तनिक पहले दाहिनी ओर पहाड़ में खुदी हुई सीढ़ियाँ है और ऊपर गुफा में काउस्सग्ग ध्यान में खड़ी श्याम तीन मूर्तियाँ हैं । ये श्री कृष्णजी के पुत्र जाली, मयाली और उवयाली हैं । इन तीनों महापुरुषों ने भगवान श्री नेमिनाथ के पास दीक्षा अंगीकार की थी और इस गिरिराज पर अनशन करके मोक्ष गये । उन्हे "नमो सिद्धाणं कहें। "प्रभुजी आवी रामपोल के, सामा मोती वसहि रे लोल" चेतन ! कुछ कदम आगे चलने पर रामपोल आती है। रामपाल सिद्धाजन गिरि नर्म नम: विमुलाचन गिरि-नमो नही - www.jainelibrariangi Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उसके बाहर दाहिनी ओर एक प्याऊ है, जिसमें गर्म पानी (उबाला हुआ) उपलब्ध होता है । यह सातवां विश्राम स्थान है। बायीं ओर दही बेचने वाले बैठते हैं । इस महातीर्थ पर दही खाने से घोर आशातना होती है। अत: चेतन ! तू दही मत खाना । अज्ञानी मनुष्य तलहटी से श्रम सहन करके यहाँ तक आते हैं और दहीं खाकर "पिकनिक मनाकर तीर्थ की घोर आशातना करते हैं। चेतन । उन मनुष्यों को तीर्थ की आशातना करने का कटु फल भोगना पड़ेगा । तीर्थ की आशातना करने से धन की हानि होती है, व्यापार में लाभ नहीं होता, भविष्य में अन्न-पानी नहीं मिलता, भूखाप्यासा रहना पड़ता है, देह रोगग्रस्त हो जाती है, परभव में नरकमें जाना पड़ता है और वहाँ परमाधामी की कठोर यातनायें सहनी पड़ती the ___ गुरुदेव ! अब मैं कदापि यहां दहीं नहीं खाऊंगा । चेतन ! यदि समस्त यात्री समझदारी से इस प्रकार दहीं नहीं खाने का निर्णय कर लें, तो तीर्थ की आशातना अवश्य रुकेगी । अत: तू अवश्य प्रयत्न करना । चलो, आगे बढ़ें अब हमारी मंजिल दूर नहीं है। दादा आदीश्वर भगवान का दरबार अब निकट आ रहा है। हमारे हर्ष का कोई पार नहीं है। चलो, हम रामपोल में प्रवेश करें। चेतन ! जब रामपोल से आगे बढ़ते हैं, तब वहाँ दाहिनी ओर पाँच शिखरयुक्त विशाल जिनालय है, जिससे विमलनाथ भगवान प्रतिष्ठित है। संपूर्ण गिरिराज पर पाँच शिखर युक्त यही एक जिनालय है । इसका निर्माण औरंगाबाद निवासी शेठ वल्लभभाई मोहनदास द्वारा कराया गया था। ___चेतन ! इसके समीप तीन शिखर युक्त जिनालय है, जिसमें श्री सुमतिनाथ भगवान प्रतिष्ठित हैं । इस जिनालय का निर्माण सेठ देवचन्द कल्याणभाई सुरतवाले ने करवाया था। इन दोनों मंदिरों को "नमो जिणाणं" कहकर आगे बढ़ें। - rational "सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः" 24°w.jainelibrary.org Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेतन ! उसके समीप मोतीशा सेठ की ट्रॅक है, जिसे मोती वसहि भी कहते हैं। ट्रंक में प्रवेश करने हेतु बड़ा दरवाजा है । हमें पहले आदीश्वर दादा को वन्दन करना है, अतः दूर से ही इस हूँक को " नमो जिणाणं" कह कर आगे बढ़ जायें । चेतन ! यहाँ पहले कुन्तासर नामक भयानक खाई थी, जिसे सेठ मोतीशा के द्वारा भखाई गयी और उस पर भव्य ढूंक का निर्माण कराया गया । उसके बाहर कुंतासर कुंड है । उसकी दीवार के गोख में कुन्तासर देवी की मूर्ति स्थापित की हुई है । कुछ सीढ़ियाँ चढ़ने पर सामने एक मार्ग चलता है, जो घेटी की पाग की ओर जाता है । चेतन ! बायीं ओर की थोड़ी सीढ़ियाँ चढ़ने पर "सगाल पोल" आती है । अपनी लाठी, छड़ी, छाता, भूल से लाये हुए बूट-चप्पल, ट्रांजिस्टर आदि यहाँ सगाल पोल में रखने पड़ते हैं । केवल साधु साध्वी अपना डंडा "बाघिन पोल" तक ले जा सकते है । " चेतन ! सगाल पोल से आगे चलने पर चौक आता है, जिसे "दोलाखाडी" कहा जाता है। इसके बायीं ओर नोंधण कुण्ड और सगाल कुण्ड है और उसके समीप ही आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी का कार्यालय है । चेतन ! कुछ सीढ़ियाँ चढ़ने पर "वाघण पोल" (बाघिन पोल) दृष्टिगोचर होती है। दाहिनी ओर दीवार पर बाहर बाघिन का पुतला है । चेतन ! चौदहवीं सदी में इस पोल का नाम "व्याधी प्रतोली" प्रचलित था । ऐसा आ. जिनप्रभसूरिजी की विविध तीर्थकल्प से ज्ञात होता है । यहाँ पोल में साधु-साध्वी अपने डण्डे आदि छोड़कर आगे जाते हैं । 99 Jain Educall सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः Onf * 25 SALAA www.jabellbrary.org Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेतन ! वाघण पोल में प्रविष्ट होने के पश्चात् "दादा के दरबार तक का मार्ग विमलवसही अथवा "दादाजी की ट्रॅक अथवा "मरुदेवा शिखर" भी कहा जाता है। अब हम शीध्र ही आदीश्वर दादा के दर्शन करेंगे । दाहिनी ओर सेठ केशवजी नायक की वैंक में जाने का मार्ग है। चेतन ! बायीं ओर सोलहवें श्री शान्तिनाथ भगवान का जिनालय है। उसमें प्रतिमाजी अत्यन्त मनोहर है । इसका निर्माण सं. १८६० में दमन निवासी सेठ हीराचन्द रायकरण ने कराया था। यहाँ प्रत्येक यात्री को द्वितीय चैत्यवन्दन करना आवश्यक होता है । अत: हम भी यहां द्वितीय चैत्यवन्दन कर लें। चेतन ! अब श्री शांतिनाथ भग. के मंदिर के बाहर निकल कर बायीं ओर सीढ़ियों से नीचे उतरते हैं, तब एक देहरी में श्री आदीश्वर भगवान की अधिष्ठायिका एवं कर्माशा की कुलदेवी "चक्केश्वरी' के दर्शन होते हैं । जब कर्माशा ने इस तीर्थ का पन्द्रहवाँ उद्धार कराया था, तब विक्रम संवत् १५८४ में इसकी स्थापना की थी। देवी की मूर्ति चमत्कारी व रमणीय है । स्तवन में कहा है कि - "प्रभुजी आवी वाधण पोल के, डाबा चक्केसरी रे लोल । चक्केसरी जिनशासन रखवाल के, संघनी सहाय करे रे लोल।" चेतन ! चक्केसरी देवी ने इस तीर्थ के लिए अनेक प्रयत्न किये थे। चक्केसरी देवी ने जावडशा को स्वप्न देकर तक्षशिला की मूर्ति प्राप्त कराई थी, कर्माशा को भी तीर्थोद्धार में वह सहायक हुई थी। शासन की सेवा करने गला कोई देव अथवा देवी हो, चेतन ! तुम्हें उसे प्रणाम कहकर नमस्कार करना चाहिए और साधु उसे धर्मलाभ कहें। - चेतन ! उसके समीप की दूसरी देरी में वागेसरी एवं पद्मावती देवी हैं। 6 . SanEducation international" सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः 26 Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेतन ! श्री चक्केसरी वगैरह देवियों के दर्शन करने के बाद हम वापस पीछे लौटकर सीढ़ियाँ चढ़कर नीचे से ऊपर आकर दादा के दरबार की ओर जाते हैं, तब दोनों ओर जिनालयों की श्रेणियाँ हैं । ज्यों ज्यों हम चलतें जायें, त्यों त्यों कम से कम प्रत्येक मंदिर के मूलनायकजी को " नमो जिणाणं" कहते जाए । चेतन ! विश्व में ज्यादा से ज्यादा एक समय में विचरते हुए भाव तीर्थंकर १७० होते हैं, उसका दृश्य इसमें बताया गया है । " नमो जिणाणं" चेतन ! इसे "नेमिनाथ की चौरी" अथवा " विमलवसही" अथवा "भूल भुलैया का मन्दिर" कहा जाता है । इसमें मूलनायक श्री सुपार्श्वनाथ हैं। यहां आबू - देलवाड़ा के समान कलात्मक नक्काशी है । प्रतीत होता है कि इस जिनालय का निर्माण मंत्रीश्वर विमल शाह ने कराया होगा । चेतन ! इसमें साक्षात् नेमिनाथ की चौरी, नेमिनाथ की जान (बारात) व पाँच कल्याणक स्तंभों की ऐसी रचना आदि होने से मनुष्य में अत्यन्त भूल-भुलैये में पड़ जाता हैं । गुम्बज कमल पत्र, नागपाश, राजुल का विलाप एवं अष्ट महासिद्धि आदि के दृश्य हैं । चेतन ! नेमिनाथ की चौरी के मंदिर से थोड़ा आगे जाने पर एक कमरा है, उसमें एक व्यक्ति ऊंट पर सवार और एक व्यक्ति नीचे खड़ा दृष्टिगोचर होता है । लोग इसे पुण्य पाप की खिड़की कहते हैं। जो इसके नीचे से निकल जाये, वह पुण्यशाली कहलाता है । चेतन ! अब क्रमश: दर्शन करके "नमो जिणाणं" कहना (३) वि. संवत् १६८८ में निर्मित विमलनाथ का मन्दिर । (४) वि. संवत् १६८८ में निर्मित अजितनाथ जी का मन्दिर । Jai Ale tucation International" सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः” 27 Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) वि. संवत् १८१५ में निर्मित सहस्रफणा पार्श्वनाथ का मन्दिर । (६) नलिन मनोहर देहरी । (७) धर्मनाथजी का मन्दिर । (८) चंद्रप्रभजी का मन्दिर । (९) पार्श्वनाथजी का मन्दिर । (१०) सुमतिनाथजी (मुर्शिदाबाद के जगत सेठ) का मन्दिर । (११) शान्तिनाथजी का मन्दिर । (१२) सहस्रफणा पार्श्वनाथ का मन्दिर। (१३) कुमारपाल का मन्दिर। चेतन ! कुमारपाल के मन्दिर के समीप से हाथीपोल के बाहर अपने बायीं ओर छोटी गली जैसा एक मार्ग सूरज कुण्ड की ओर जाता है। चेतन ! सूरज कुण्ड की दीवार पर पाषाण का मूर्गा व चंद्रराजा का पुतला बनाया हुआ है । उसके समीप में ही भीम कुण्ड ब्रह्माकुण्ड और ईश्वर कुण्ड भी है । अब चारों कुण्डों में से स्नानागार में पानी आता है। ___ (१) चेतन ! बाघनपोल में दाई ओर तीर्थ रक्ष कवडयक्ष है । प्रणाम कहना । शान्तिनाथजी के सामने मार्ग की दाहिनी ओर केशवजीनायक की ट्रॅक है । तत् पश्चात् विशेषावश्यक भाष्य ग्रन्थ के अनुसार निर्मित समवसरण, समेत शिखर, मेरु शिखर एवं अष्टापद वाला पंचतीर्थी मन्दिर वि.संवत १९२८ में पुण्डरीकजी का मन्दिर नरसी केशवजी द्वारा निर्मित है । इसमें ६८ देहरियाँ हैं । इसको दसवी ढूंक भी कहते हैं । "नमो जिणाणं" कहकर हम आगे बढ़ें। (२) पद्मप्रभजी का मन्दिर। (३) कवड यक्ष की देहरी । (४) समवसरण युक्त महावीर स्वामी का मन्दिर । (५) अमीझरा पार्श्वनाथ श्याम प्रतिमा का भव्य मन्दिर वि.सं. १७९१ में भंडारी रत्नसिंहजी ने निर्माण करवाया था। (६) चन्द्रप्रभुजी का मन्दिर Jain Education international “सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः” 28 Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) संभवनाथ भगवान का मन्दिर । (८) श्री पार्श्वनाथ भगवान का मन्दिर। (९) श्री चन्द्रप्रभ का मन्दिर। (१०) श्री संभवनाथ भगवान का मन्दिर । (११) श्री अजितनाथ भगवान का मन्दिर । (१२) श्री पार्श्वनाथ प्रभु का मन्दिर । (१३) श्री ऋषभदेव भगवान का मन्दिर । (१४) श्री धर्मनाथ भगवान का मन्दिर । (१५) श्री महावीर . स्वामीजी का मन्दिर । (१६) एक सौ स्तंभ युक्त चौमुखजी का मन्दिर । जिसका जोधपुर वाले मनोतमल्ल जयमल्लजी ने वि.स.१६८६ में निर्माण करवाया था । (१७) प.पु.आ.श्री धनेश्वरसूरीश्वरजी म.सा. (१८) श्री श्रेयांसनाथ का मन्दिर (१९) श्री संभवनाथ प्रभु का मन्दिर । (२०) श्री ऋषभदेव का मन्दिर कपडवंज वाली माणेक सेठानी द्वारा निर्मित किया गया है।"नमो जिणाणं" । चेतन ! कुमारपाल मन्दिर के सामने वृक्ष के नीचे एक पोलरक्षक (पोलिया) है। ___पालीताना में एक भावसार परिवार था, जिसमें दो भाई थे । बडा भाई विवाहित था और छोटा भाई विक्रमशी अविवाहित था । एक दिन वीर विक्रमशी कपड़े आदि धोकर घर आया, तब भोजन नहीं बन पाया था तब वह अपनी भाभी पर क्रोधित हुआ कि क्या किया इतनी देर तक ? क्या आप से भोजन भी नहीं पकाया जाता ? आदि बातें कहीं । इस पर भाभी ने व्यंग कसा कि "मुझ पर क्यों जोर बता रहे हो ? यदि शक्ति हो, तो शत्रुजय पर बाघिण के कारण यात्रा बंद हो गई है उसे प्रारंभ करा दो। Jain Education international सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” 29 For Personal & Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उक्त व्यंग्य उसके अंग-अंग में चुभ गया और विक्रमशी को जोश आ गया। तलहटी में लोगों को कह कर गया कि "मैं जा रहा हूँ. गिरिराज पर । यदि ऊपर जाकर घंट बजाऊं, तो आप लोग समझना कि बाघिन मारी गयी है और यात्रा प्रारंभ हो गई है।" विक्रमशी सोटा (डंडा) लेकर ऊपर चढ़ा । बाघिन सोई हुई थी। सोये हुए पर आक्रमण करना कायर का कार्य कहलाता है । उसने बाघिन को ललकारा और उसके सिर पर ऐसा प्रहार किया की बाघिन चक्कर खाकर गिर पड़ी और अचेत हो गई। विक्रमशी जब घंटा बजाने के लिए आगे बढ़ा कि बाघिन चेतना में आ गई । उसने विक्रमशी पर पीछे से छलांग लगाई कि वह युवक घायल हो गया, फिर भी उसने सोटे से ऐसा खतरनाक प्रहार किया कि घायल बाघिन लड़खड़ाकर गिर गई और उसके प्राण पखेरु उड़ गये । लड़खड़ाते पाँवों से जैसे तैसे खड़े होकर युवक विक्रमशी ने अपनी समस्त शक्ति एकत्रित करके आगे बढ़कर मंदिर में घंटा बजा दिया। उसके बाद तुरंत उसके प्राण पंखेरु उड़ गये । पूर्व संकेतानुसार मार्ग निर्विघ्न जान कर लोग गिरिराज पर आये। वहां आकर देखा तो क्रमश: बाघिन तथा युवक के शव पड़े हुए थे । वीर विक्रमशी का शव मंदिर में देखकर संघ फुट फुट कर रोने लगा । उसके बाद उसकी स्मृति के निमित्त से पोलिया स्थापित किया गया । सचमुच, यात्रा प्रारंभ करनेवाले वीर विक्रमशी का बलिदान अमर रहेगा। चेतन ! सामने ही हाथी पोल आती है । पोल के दोनों ओर कलात्मक हाथी उत्कीर्ण हैं । इसलिए यह हाथी पोल कही जाती है । हाथीपोल में प्रविष्ट होते समय बायीं ओर शिलालेख लगा हुआ है। "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नम:30/FORM www.jainelik og Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेतन ! हाथी पोल में प्रवेश करते हैं, तब दाहिनी और पुष्प बेचनेवाले बैठते हैं । बायीं ओर स्नानागार है । पोल के दोनों ओर कमरे में स्त्री-पुरुष के दोनों के लिए अलग "पूजा" के पास यहाँ वितरण किये जाते है। चेतन ! हाथी पोल के द्वार से आगे रतनपोल में आते हैं। चेतन ! इसमें चिंतामणि रत्न से भी अनंतगुणा महान अचिंत्य चिंतामणि रत्न तीर्थंकर भगवान बिराजमान है, इसलिए यह रतनपोल कहलाती है। इसमें प्रवेश करते हैं, तब दाहिनी ओर तेजपाल सोनी द्वारा वि. संवत १६५० में कराये गये जीर्णोद्धार का शिलालेख है । बायीं ओर वि. संवत १६५० में कराये गये जीर्णोद्धार का शिलालेख है तथा अकबर शहंशाह द्वारा वि. संवत् १६५० में की गई यात्राकर मुक्ति का शिलालेख है। चेतन ! कुछ सीढ़ियाँ चढ़ने पर सामने दादा का दरबार दृष्टिगोचर होता है। चेतन ! देख्न ले कितना विशाल और ऊंचा शिखर दादा के जिनालय का है कभी-कभी तो यहाँ पर मयूर केकारव करते हैं। अरे ! भूतल से ७८ फूट ऊंचा शिखर है । इसका कणपीठ कितना गहरा है, इसे जानने के लिए मंदिर के फर्श का एक भाग खुला रखा गया है, उसके ऊपर लोहे की एक चद्दर ढकी हुई है। अभी उसे भी बंद कर दिया गया है। "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः 31 नमो नमः ME For Personal & Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिखर पर लहराती हुई ध्वजायें तो मानो एक संदेश दे रही है कि अरे ! भाग्यशालियों ! Oshunya.net आप दूसरे स्थान पर क्यों घूम रहे हो ? यदि आप सच्ची विजय प्राप्त करना चाहते हो, तो आप युगादिदेव आदीश्वर प्रभु जाओ। आपकी विजय निश्चित है । की शरण में आ ao F यदि हम दादा के जिनालय के शिखर पर चढ़ जायें, तो हमें गजब सा दृश्य दिखाई देता है । जिनालयों की पंक्ति इस प्रकार शोभित हो उठती हैं मानों कि हिमालय के भ्रम से आकाश गंगा यहाँ पर उतर न आई हो ! इसलिए मुनियों ने गाया है - "मानु हिमगिरि विभ्रमे. आई अम्बर गंगा ।" गुरुदेव ! शीघ्र चलिये, अब तुरन्त दादा के दर्शन कर लें । चेतन ! शीघ्रता मत कर। दादा के दर्शन ऐसे ही नहीं किये जाते । क्योंकि जिस प्रकार भौंरा रस लेने के लिए पुष्प पर तुरंत नहीं बैठता है, परंतु पहले गुंजन करता है । फिर पुष्प पर बैठता है । उसी प्रकार से हमें भी प्रभु दर्शन रुपी रस लेने के लिए तीन प्रदक्षिणा देकर फिर दादा के समक्ष जाना चाहिए। " चैत्यवन्दन भाष्य" में भी प्रदक्षिणा देने की विधि बताई गई है । कहा है कि " तिन्नि निसीही पयाहिणा तिन्नि चेव पणामा" । यहां की प्रदक्षिणा में मानों अनेक तीर्थों की यात्रा का आनंद देने की अखूट शक्ति भरी हुई है। इसकी अनुभूति तो जो प्रदक्षिणा दे, वही कर सकता है । इन तीन प्रदक्षिणाओं के प्रवास में श्री सम्मेशिखरजी, अष्टापदजी, गिरनारजी, महाविदेह क्षेत्र, १०२४ जिन प्रतिमा १४५२ गणधर पादुकाएँ, नये आदीश्वरजी, रायणवृक्ष, नई टुंक आदि मंदिरों के दर्शन से अनेक तीर्थों की यात्रा जैसा अनुभव होता है । " सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः" & 32 Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ARRRRTM चेतन ! चलो अपन दादा के मंदिर में अपनी बाई ओर से प्रदक्षिणा चालू करें । प्रथम प्रदक्षिणा में हमें प्रथम सहस्रकुट मंदिर में दर्शन करने हैं। गुरुदेव ! इतनी सारी भगवान की मूर्तियाँ बनाई गई हैं ? चेतन ! भूत, भविष्य और वर्तमान इन तीन कालों में तीन चौबीसी होती हैं । इस तरह 24X3 = 72 भगवान हुए। ये तीनों चौबीसी ५ भरत एवं ५ ऐखत में हुई हैं । अत: 72X10 = 720 भगवान हुए । वर्तमान चौबीसी के प्रत्येक भगवान के पाँच कल्याणक होते हैं । अतः 24X5 = 120 भगवान हुए। इस प्रकार 720+120 = 840 भगवान हुए । महाविदेह की ३२ विजय में उत्कृष्ट से ३२ भगवान होते हैं और इस प्रकार के महाविदेह पाँच हैं। अत: 35X5 = 160 भगवान हुए । इस प्रकार 840X160 1000 भगवान, उनमें सीमंधर आदि २० विहरमान तीर्थंकर और ४ शाश्वत तीर्थंकर जोड़ने से 1000+20 + 4=1024 भगवान यहाँ प्रतिष्ठित किये गये हैं । इस कारण से यह "सहस्रकूट" कहा जाता है । = इसकी संकलना आचार्य भगवन्त श्री हीरसूरीश्वरजी म.सा. की परम्परा के आचार्य श्री विजयसिंहसूरिजी महाराज ने की है । इस सहस्रकूट मंदिर का निर्माण आगरा निवासी गुमानसिंह आदि भाईयों ने अपने पिता 'वर्धमान के वचन से व उनके पुण्यार्थ करवाया । तथा इसकी प्रतिष्ठा उपाध्याय श्री विनयविजयजी महाराज ने वि. संवत् १७१८ जेठ शुक्ला ६ को सम्पन्न कराई है । गुरुदेव ! इस सहस्रफूट का रहस्य तो मुझे आज ही ज्ञात हुआ । "नमो जिणाणं" ..... 99 “सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः 33 For Personal & Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेतन ! तत्पश्चात् हम दादा के मंदिर के पीछे की देहरियाँ तथा रायण पादुकाओं के दर्शन करें । इसके बाद आगे चलने पर बायीं ओर १४५२ गणधरों की पादुकाएँ हैं । चौबीश तीर्थंकरों के ऋषभसेन आदि कुल १४५२ गणधर हुए । अत: इतनी पादुकाएँ हैं । एवं विशेषता यह है कि, जिस तीर्थंकर के जितने गणधर हों, उतने गणधर की चरण पादुकाओं के प्रति उन तीर्थंकर की भी चरण पादुकाओं साथ में प्रतिष्ठित है अर्थात् २४ तीर्थंकर की भी चरण पादुकाएँ हैं, अतः उन्हें " नमो जिणाणं " व गणधर पादुकाओं को " नमो सिद्धाणं" कहकर आगे बढ़ें । चेतन ! थोड़ा आगे बायीं ओर हम सीमंधर स्वामी के मंदिर के दर्शन कर लें । " नमो जिणाणं" । विहरमान केवली तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी ने इस शत्रुंजय गिरिराज की महिमा गाई है । इस जिनालय का तथा नवीन आदीश्वरजी के जिनालय का वस्तुपाल तेजपाल ने निर्माण कराया था । वास्तविक बात तो यह है कि इस जिनालय में स्थापित मूर्ति पर आदीश्वर भगवान का लेख है, और वि.सं. १६७७ मिगसर सुद ५ को जगद्गुरु आ. हीरसूरिजी म.सा. ने प्रतिष्ठा करवाई थी । हाँ ! पहले ईधर श्री सीमंधर स्वामी की प्रतिमा स्थापन का विचार था । उस कारण से लोग इस मूर्ति को श्री सीमंधर स्वामी भगवान कहते हैं, अतः हम भी इसी नाम से पहचान रहे हैं । इस जिनालय में सरस्वती की प्राचीन प्रतिमा भी है । चेतन ! यहाँ रंग मंडप में देवी की मूर्ति है । उसे अमा (अम्बिका) देवी कहते हैं । चेतन ! इस दुनिया में सज्जन को ही सहन करना पड़ता है । धतूरे को कोई छूता भी नहीं, परन्तु चन्दन के वृक्ष पर कुल्हाडी आदि के प्रहार सहन करने पडते हैं । अमका के ससुराल पक्ष Jain Educ High lacthe “सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः” 34 For Personal & Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ में सभी मिथ्यात्वी थे । एक बार मासक्षमण के तपस्वी मुनि गोचरी वहोरने आये । उसकी सासू पानी भरने गई थी । अमका ने श्राद्ध के लिए बनाई हुई खीर मुनि को भाव-पूर्वक वहोरा दी । ईर्ष्यालु पडोसन ने चुगली खाई । सास और पति ने उसकी भर्त्सना व तिरस्कार किया अत: वह अपने दो छोटे बच्चो में से एक को अपने कमर में उठाकर और दूसरे को हाथ की अंगुली से पकड़ कर बाहर चली गई। वह दूसरों पर द्वेष करने के बदले अपने अशुभ कर्म का विचार करती हुई और सुकृत की अनुमोदना करती हुई आगे बढ़ी । एक पुत्र को प्यास लगी और दूसरे को भूख । उसने सरोवर में से पानी लेकर एक पुत्र की प्यास बुझाई और आम के वृक्ष पर से पके हुए आम का झूमका (लूम्ब) तोड़कर द्वितीय पुत्र की भूख शांत की। __दूसरी तरफ उसके घर में एक आश्चर्यजनक घटना घटी। खीर के उल्टे पड़े हुए खाली पात्र सीधे किये । वे सभी मिष्ठान्न से भरे देख अमसा (अम्बिका) को पुन: घर पर लाने के लिए चल पड़ा। अम्बिका ने दूर से उसे देखकर सोचा कि क्रुद्ध बना हुआ वह पति मेरे पास आ रहा है । मुझे पकड़ कर मेरी दुर्दशा करेगा । अत: वह जिनेश्वर परमात्मा की शरण लेकर दोनों पुत्रों के साथ समीपस्थ कुँए में कूद गई। तीनों शव तैरते हुए देख्ने । निराश बना हुआ पति भी कुँए में कूद पड़ा । अमका देवी बनी और उसका पति उसका वाहन सिंह के रुप में देव बना । ऐसा शिल्प यहां संगमरमर पर आलेखित किया है । चेतन ! यहाँ पर प्रणाम कर लें। ___चेतन ! श्री आत्मारामजी स्थानकवासी सम्प्रदाय में थे । मूर्तिपूजा का मार्ग सच्चा व आगमोक्त जानकर हिम्मत करके स्थानकवासी सम्प्रदाय का त्याग करके आचार्य देव श्री विजयानंदसूरीश्वरजी म.सा. के नाम से "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः" 35 For Personal & Private Use Only PAY Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन्दिरमार्गी आचार्य बने । जब वे सिद्धगिरिराज पर आये, तब दादा की स्तुति बोलते समय उन्होंने भगवान के समक्ष कुमत स्थानकवासी सम्प्रदाय में फंस जाने की बात का इकरार किया और सुमत स्थापनानिक्षेप मूर्ति तथा स्थावर तीर्थ का स्वीकार करने का आनन्द हर्षाश्रुओं के द्वारा व्यक्त किया। चेतन ! उनकी स्मृति में पंजाब जैन संघ एवं आत्मानंद जैन सभा भावनगर ने श्री सीमंधर स्वामी के मन्दिर के पूर्व दिशा के द्वार के बाहर दाहिनी ओर सुन्दर कलात्मक संगमरमर के गोख में पंच धातु की न्यायाम्भोनिधि पंजाब देशोद्धारक आचार्यदेवश्री विजयानंद सूरीश्वरजी महाराज की मूर्ति प्रतिष्ठित की है । आओ, हम गुरुवन्दन कर लें। गुरुदेव ! इस मूर्ति के दर्शन तो मैंने आज तक किये ही नहीं। चेतन ! दूसरी प्रदक्षिणा में प्रथम नये आदीश्वरजी का मंदिर आता है । बिझली गिरने से मूलनायकजी श्री आदीश्वर भगवान की प्रतिमाजी की नासिका खण्डित हो गई थी। दूसरी मूर्ति स्थापित करने के लिए श्री आदीश्वर प्रभु का नूतन बिम्ब लाया गया, परन्तु चमत्कारी प्राचीन दादा की मूर्ति का उत्थापन करते समय"म" कार की ध्वनि हुई । अधिष्ठायक देव ने आज्ञा नहीं दी, अत: यह नूतन मूर्ति श्री वस्तुपाल तेजपाल द्वारा निर्मित इस जिनालय में स्थापित की गई एवं दो बड़े काउस्सग्गिये तथा बड़ी चरण पादुका भी यहाँ सूरत निवासी शेठ श्री ताराचन्द संघवी द्वारा अपने स्वप्न के अनुसार प्रतिष्ठित की गई।"नमो जिणाणं" _इस जिनालय में पन्द्रहवाँ उद्धार करानेवाले समराशा के पिताश्री देशलशा के जयेष्ठ भ्राता आसधर तथा उनकी धर्मपत्नी रत्नी श्री की मूर्तियाँ स्थापित की गई हैं। "प्रणाम... धर्मलाभ... "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” 36 For Personal & Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेतन ! दूसरे गोख में १५ वाँ उद्धार कराने वाले पाटण के समराशाह व उनकी पत्नी समर श्री की मूर्ति वि.सं. १४१४ वै.सु. १० को उनके पुत्र सज्जन एवं सालग ने बनवाई । ऐसा मूर्ति के लेख से ज्ञात होता है। ___ चेतन ! बायीं ओर से बाहर निकलने पर देहरियों के दर्शन करके तनिक चलने पर सम्मेतशिखरजी तीर्थ के दर्शन करें। चेतन ! जो पुण्यात्माएँ सम्मेतशिखरजी नहीं जा सकती, वे यहाँ पर बिराजमान २० भगवान की चरण-पादुकाओं को वंदन कर लाभ ले सकती हैं । इसी कारण से यहाँ २० पादुकाएं प्रतिष्ठित की गई हैं। यहाँ पर २९ प्रतिमा भी हैं । "नमो जिणाणं" कहकर आगे चलने पर रायण वृक्ष के पीछे होकर एक देहरी में श्री आदीश्वर भगवान के अत्यन्त ध्यान से दर्शन करने चाहिये । भगवान के दोनों कंधों पर बालों की लटें हैं । तत्पश्चात् श्री सहस्रफणा पार्श्वनाथ के दर्शन करने पर द्वितीय प्रदक्षिणा पूर्ण हो जाती है। चेतन ! तीसरी प्रदक्षिणा में प्रथम उज्जैन के पाँच भाईयों का जिनालय है, जिसमें सं. १६६७ में प्रतिष्ठित मूलनायकजी श्री ऋषभदेवजी हैं । तत्पश्चात् वि. संवत् १६१५ में निर्मित बाजरिया के जिनालय में श्री सुमतिनाथजी हैं । "नमो जिणाणं" कहकर आगे बढ़ने पर एक देहरी आती है। चेतन ! यहाँ पर देहरी में अत्यंत मनोहर व अलौकिक श्यामवर्णी श्री नेमिनाथ प्रभु की प्रतिमा है । विशुद्ध ब्रहाचर्य की साधना के लिए बाल ब्रहाचारी नेमिनाथ प्रभु की भक्ति बहुत हितावह है । शत्रुजय माहात्म्य में लिखा है कि "इन्द्र की विनंती से गृहस्थावस्था में नेमिकुमार भी यहाँ पधारे थे । यह प्रतिमा an Education internaसिद्धाचल गिरि नमो नमःविमलाचल गिरि नमो नमः” 37 w wjanonibrary.org Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उस स्मृति को ताजी करती है । यहाँ पर बहुत आरे व्यक्ति चैत्यवंदन वगैरह करते हैं । जिनके वस्त्रों से सुगंध आती थी ऐसे दादा प्रेमसूरिजी यहाँ अवश्य चैत्यवंदन करते थे । चेतन ! " नमो जिणाणं" कहकर यहाँ से क्रमश: देहरियों के दर्शन करते हुए हम आगे बढ़ते हैं, तब दाहिनी तरफ मेरु पर्वत के दर्शन होते हैं । यहाँ पहले प्राचीन मेरु था । अहमदाबाद के शेठ माणेकलाल मनसुखभाई (सेठ माकु भाई) ने शत्रुंजय गिरनार का संघ निकाला, तब संगमरमर का नया मेरु पर्वत बनवा कर चौमुखजी बिराजमान किये । उनके दर्शन करने के बाद हम अलग-अलग देहरियों के दर्शन करते हुए आगे चलते हैं, तब हमें एक मंदिर में २० विरहमान भगवान के दर्शन होते हैं । बीस विहरमान मंदिर के भीतर के गंभारे में २० व गंभारे के बाहर रंग मण्डप में २४ तीर्थंकर और उसके बाद हम अष्टापदजी मंदिर में दर्शन करें। चेतन ! भरतचक्रवर्ती द्वारा निर्माण करवाया हुआ अष्टापदजी तीर्थ वर्तमान में लुप्त हो गया है । उसकी स्मृति में इस मंदिर में क्रमश: 4+8+10+2=24 भगवान के दर्शन करने हैं । वैसे तो अष्टापद तीर्थ पर २४ भगवान क्रमानुसार प्रतिष्ठित हैं, परन्तु यहाँ पर आदिनाथजी की - ६, धर्मनाथजी की ६, शान्तिनाथजी की- ४, पद्मप्रभजी की - ३, अनंतनाथजी की -२, चंद्रप्रभुजी की -१, पार्श्वनाथजी की - १ और महावीर स्वामीजी की - १ प्रतिमा है । " नमो जिणाणं" इस अष्टापदजी के - सिंहनिषघा नामक मंदिर में जिन बिंबों के अलावा वीणा को बजाता हुआ रावण, नृत्य करती हुई " " सिद्धाचल गिरिं नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः" 38ww.jainelibrary.org & * Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंदोदरी व लब्धिवंत गौतम स्वामी की मूर्ति स्थापित हुई है, तथा सीढ़ियों पर १५०० तापस बताए हुए हैं। I चेतन ! इस अष्टापदजी मंदिर में प.पू.आ हीरविजयसूरीश्वरजी म.सा. (आ.धनेश्वरसूरीश्वरजी म.सा.) की खडी मूर्ति है तथा संवत् १३८३ जेठ वद ८ को प्रतिष्ठित रुद्रपल्लीय श्री चारुचन्द्रसूरिजी म.सा.की दूसरी मूर्ति भी है । "मत्थएणवंदामि" चेतन ! बाहर निकल कर देहरियों के दर्शन करते हुए हम आगे बढ़ते हैं, तब रायण वृक्ष आता है। चेतन ! अब हम रायण वृक्ष को तीन प्रदक्षिणा दें। चेतन ! ऋषभदेव भगवान ६९ कोड़ा कोड़ी, ८५ लाख करोड़, ४४००० करोड़ (निन्नाणवे पूर्व) बार सिद्धाचल जी तीर्थ पर आये, तब इस रायण वृक्ष के नीचे समवसरे थे । इस रायण वृक्ष की डाल-डाल, पत्ते-पत्ते, पुष्प-पुष्प और हर फल पर देवताओं का वास है। यह वृक्ष अति प्राचीन है व देवदेवियों से सेवित हैं। अरे चेतन ! इस रायण के वृक्ष में से जिसके ऊपर दूध झरता है, वह आत्मा तीसरे भव में मोक्ष में जाती है, इसके पश्चिम में स्वर्ण सिद्धि व रस . कुंपिका है। रायण तले पगलां सुखदाई, श्री ऋषभ ___ तथा गुण गाई चेतन ! रायण वृक्ष के नीचे देहरी में आदीश्वर भगवान की विशाल सुन्दर चरण पादुका है, जिनको "रायण पगला" भी कहते हैं । इनकी प्रतिष्ठा वि. संवत् १५८७ में करमाशा ने सम्पन्न कराई थी। हमें | "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नाम?? & 39 aimerar org Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यहाँ तीसरा चैत्यवंदन करना है । उसके दाहिनी ओर की दीवार में मोर, साँप, सिंह व हाथी की मूर्तियाँ हैं। चेतन ! उस रायण पादुका की देहरी के पास बायीं ओर एक देहरी है । श्री धनपाल कवि द्वारा रचित "तिलक मंजरी" ग्रन्थ में कहाहै कि - "नमि विनमि कृपाणोत्संगदृश्यांग लक्ष्मी: इसके अनुसार इस देहरी में ऋषभदेव के दोनों ओर तलवार लेकर नमि विनमि खड़े प्रतीत होते हैं । "नमो सिद्धाणं...." तलवार में प्रभु का प्रतिबिम्ब दिखाई देता है। शिल्पी ने अपनी कला से यह दृश्य बताया है। चेतन ! इसके पास देहरी में मुनि श्री बाहुबली बताए हैं। उनकी दोनों तरफ स्थित ब्राह्मी और सुंदरी (बहिन साध्वी म.) प्रतिबोध दे रही हैं कि "वीरा मोरा गज थकी नीचे उतरो" तब बाहुबली अहंकार छोड़ कर केवल ज्ञानी लघु बन्धुओं को वंदन करने के लिए कदम उठाते हैं, उसी वक्त उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति होती है। चेतन ! इनके पास में दूसरी मूर्ति भरत महाराजा की है। अनित्य भावना से भावित होने पर उन्हें आदर्श (आरिसा) भवन में केवलज्ञान प्राप्त हुआ था। दोनों तरफ दो देव खड़े दिखाई देते है।"नमो सिद्धाणं। पक्ष किसन सुकल व्रत चारीजी, शेठ विजय ने विजया नारीजी....!! चेतन ! आगे जाने पर बायीं ओर एक गोखले में विजय सेठ एवं विजया सेठानी की खड़ी मूर्तियाँ हैं । शादी से पूर्व विजय सेठ ने कृष्णपक्ष में ब्रहाचर्य पालन करने का एवं विजयाने शुक्लपक्ष का नियम ग्रहण किया था। इन दोनों की परस्पर शादी हो Jale curcallof international “सिद्धाचल गिरि नमो नमः बिमलाचल गिरि नमो नमः” 40 ainelibrary.org Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाने के कारण वर-वधू ने आजीवन ब्रहाचर्य पालन करने का संकल्प कर लिया एवं यह भी निर्णय किया कि यदि इस संकल्प की बात माता-पिता को ज्ञात हो जाये, तो हम दीक्षा अंगीकार कर लेंगे । उन दोनों ने सुविशुद्ध ब्रहाचर्य व्रत का पालन किया। एक बार विमल केवली ने जिनदास श्रावक को कहा कि ८४००० साधुओं को आहार पानी का दान देकर किसी व्यक्ति को जितना लाभ होता है, उतना लाभ विजय सेठ-विजया सेठानी को भोजन कराने से प्राप्त होता है । वीस स्थानक की पूजा में कहा है कि- "नमो नमो बंभवय धारीणं।" ऐसे इस उत्तम दम्पति की साधर्मिक भक्ति का महत्त्व जानने के पश्चात् जिनदास श्रावक भृगुकच्छ में आये और उक्त बात का प्रचार होने पर उन दोनों ने दीक्षा ग्रहण की। विवाह से लगा कर अन्त तक ब्रहाचर्य-पालक सेठ-सेठानी की मूर्तियाँ यहाँ स्थापित की गई हैं। चेतन ! विजय सेठ-सेठानी को प्रणाम करके उनसे उत्तम ब्रह्मचर्य पालन करने का सामर्थ्य प्राप्त करना। ___ चेतन ! यहां से आगे जाने पर एक जिनालय में १४ प्रतिमाजी होने से उसे चौदह रत्नों का जिनालय कहा जाता है। अथवा दो भाईयों ने यहाँ चौदह रत्न रख्ने । अत: चौदह रत्न का मंदिर कहा जाता है । दर्शन कर"नमो जिणाणं"। इसका निर्माण संवत् १६८३ में हुआ था। कोई इसे नौ निधान का जिनालय भी कहते हैं। ___चेतन ! आगे इसके पास एक देहरी में श्री सुपार्श्वनाथ भगवान की छोटी श्याम प्रतिमा है जो अत्यन्त चमत्कारी है। कई बार रात्रि में यहां बाजे बजते हैं ऐसा यहाँ के पहरेगीर सन्तरी कहते हैं। "नमो जिणाणं" कहकर आगे चलें। चेतन ! बायीं ओर अंदर यह नई ढूंक है । दादा के पीछे तथा अन्य स्थानों पर कुछ प्रतिमाजी थे। उन सबको उत्थापन करके नवीन ढूंक में प्रतिष्ठित की हैं ।"नमो जिणाणं YJain Education सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः 41 www.jainelibrarynes Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेतन ! इस ढूंक में ऋषभदेव मूलनायकजी के दर्शन करके पुंडरिक स्वामी की प्राचीन मूर्ति के दर्शन करें । विद्याधर कुलीन संग्रामसिद्ध मुनि ने प्रभु ऋषभदेव और पुण्डरिक स्वामी के चरणों का ध्यान कर अनशन किया। उनके समाधि मरण के पश्चात् श्रेष्ठि राधेयक-पुत्र अम्बेयक ने इस प्रतिमा का संवत् १०६४ में निर्माण कराया । शत्रुजय पर यह प्रतिमा सर्वाधिक प्राचीन है । चेतन ! यहाँ पर "नमो सिद्धाणं" कह कर धन्यता का अनुभव करें। आवश्यक नियुक्ति के आधार पर "महावीर ना मुखडा थी फूलडां झरे ने गणधर गूंथे माल" का शिल्प बताया गया है। ___ चेतन !"नमो जिणाणं" कहकर आगे देहरियों में दर्शन कर ढूंक से बाहर चलें। ___चेतन ! क्रमश : नूतन एवं अन्य देहरियाँ में दर्शन करते-करते कुछ आगे जाकर हम गंधारिया चौमुखजी के दर्शन करने के लिए पहुंचते है । अकबर प्रतिबोधक जगत् गुरु हरसूरिजी महाराज साहेब संघ लेकर यहाँ आये थे । उस समय यहां ७२ संघ इकट्ठे हुए थे । गंधार का युवा श्रावक रामजी अपनी युवा पत्नी के साथ यहाँ आया हुआ था । गुरुदेव ने रामजी को स्मरण कराया कि "ब्रहाचर्य व्रत ग्रहण करने का यह अपूर्व अवसर है, क्योंकि आपने एक बार कहा था कि एक पुत्र का जन्म हो जाने के पश्चात् मैं यह भीषण व्रत धारण करूँगा।" गुरु-वचन को शिरोधार्य करके रामजी ने तुरंत वासना को तिलांजलि देदी । अपनी पत्नी (उम्र २२ वर्ष) के साथ ब्रहाचर्य का भीषण व्रत ग्रहण कर लिया। ७२ संघों ने अन्य व्रत पच्चखाण अंगीकार किये । इस हर्ष की स्थाई स्मृति में विक्रम संवत् १६२० में रामजी वर्धमान व उसके भाईयों ने आ. दानसूरिजी महाराज व आ.हीरसूरिजी म. के उपदेश से इस सुन्दर जिनालय का निर्माण करवाया । ऐसा इस मंदिर में स्थित लेख से ज्ञात होता है। “सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” 42 Jain Education Internatang Carelprary.org Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धन्य है रामजी ! धन्य है तेरी वासना - विजय को ! - इसमें मूलनायक श्री शान्तिनाथ भगवान हैं । चौमुख प्रतिमाजी हैं।"नमो जिणाणं"। गोख में २४ तीर्थंकरों की माताएँ उन्हें अपने पास लेकर खड़ी प्रतीत होती हैं। ॐ चेतन ! तीसरी प्रदक्षिणा के अन्त में श्री पुण्डरीक p. स्वामी के दर्शन कर लें । ये पुण्डरीक स्वामी (मूलनाम ऋषभसेन) दादा ऋषभदेवजी के पौत्र व प्रथम गणधर थे। श्री ऋषभदेव भगवान ने पुण्डरीक गणधर को कहा था कि तुम इसी सिद्धगिरिराज पर केवलज्ञान एवं निर्वाण प्राप्त करोगे । अत: वे अपने पाँच करोड़ शिष्यों के साथ इस गिरिराज पर आकर फाल्गुन सुद १५ को अनशन करके केवल ज्ञान प्राप्त कर चैत्र सुद १५ को मोक्ष में गये। तब से इस गिरिराज का नाम पुण्डरीक गिरि पड़ा है । विक्रम संवत् १५८७ में करमाशाह ने इस प्रतिमाजी की प्रतिष्ठा कराई थी। 0 चेतन ! देख्न तो सही । पुण्डरीक स्वामी भगवान ऋषभदेव के - सामने देख्न रहे हैं। भगवान अपने गणधर पर अमृत-दृष्टि डाल रहे हैं। ७। गुरु-शिष्य की जोड़ी अनुपम आनन्द की प्रेरणा दे रही है । चेतन ! हम यहाँ पर चौथा चैत्यवन्दन कर लें। 6. चेतन ! चल, अब जल्दी कर। तीन प्रदक्षिणाएं दे दी हैं । अब दादा के दर्शन - वन्दन करें। ID "बोलो आदीश्वर भगवान की जय" चेतन ! द्वार में प्रवेश करने पर जिस अद्भुत प्रतिमा के दर्शन के लिए हम तड़प रहे थे, उनके सुभग दर्शन हो रहे हैं। प्रशमरस से भरपूर दादाजी की मुख मुद्रा के दर्शन से लोगों के । D अंतर में से ध्वनित होते हुए भाव... "माता मरुदेवी ना नंद, देखी तारी मूरति मारु मन लोभापुंजी.....", शेजूंजा गढ ना वासी रे, मुजरो मानजो रे....." off सिद्धाचल गिरि नमो नमः ॐ विसलाचल गिरि नमो नमः 43 Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इत्यादि कवितामयी वाणी द्वारा व्यक्त होते हैं । ये सुनते ही ऐसा लगता है कि कवि का ही नहीं पर भक्त का भी अंतर द्रवित होकर इन गीतों को गुनगुना रहा है........। चेतन ! देश देशान्तरों से हजारों किलोमीटर दूर से आए हुए भावुक यात्री श्री आदिनाथ दादा की अनुपम, भव्य, तेज पूंज सम, अलौकिक व चमत्कारी मूर्ति के दर्शन करके अपनी आत्मा को धन्यातिधन्य मानते हैं, उनकी आत्मा प्रफुल्लित बनती है । वे जगत के सुख-दुःख भूल जाते हैं, भावना बलशाली बनती है और प्रभु के चरणों में सर्वस्व अर्पण करने की अभिलाषा जागृत होती है । स्वर्ग की किसी भूमि में बैठे हों, ऐसा हमें भास होता है.....। यहां से हटने का मन नहीं होता है, बार-बार देखने पर भी मन तृप्त नहीं होता है, ऐसा दादा की प्रतिमा का अनुपम आकर्षण है। __ आ. श्री विद्यामंडनसूरीजीने ५०० आचार्यों के साथ अंजन किया तब परमात्माने मनुष्य की तरह सातबार सांस ली थी .... अहो आश्चर्यम् ! चेतन ! उन अलौकिक प्रभावशाली प्रतिमा के दर्शन करते समय "किं कर्पूरमयं....", "आव्यो शरणे...." और "आदिमं...." आदि प्रभु "सिद्धाचल गिरि नमो नमः - विमलाचल गिरि नमो नमः” 44 . SEE Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तुतियाँ बोलकर भगवान के साक्षात्कार के आनन्द की अभिव्यक्ति करें । एवं दर्शनं देवदेवस्य... हे देवाधिदेव ! आपके दर्शन से जीव के पाप नाश हो जाते हैं, हे नाथ ! आपके दर्शन से जीव स्वर्ग के सुख प्राप्त करते हैं, और हे प्रभु ! आपके दर्शन से जीव मिटकर शिव बन जाता है......! "बोल बोल आदीश्वर व्हाला कांई थारी मरजी रे...." चेतन ! दादा के समक्ष हाथी पर मरुदेवी माता बैठी है । भगवान के दर्शन से वे केवलज्ञान प्राप्त करके हाथी पर बैठी - बैठी ही मोक्ष में चली गई । हम भी मरुदेवा माता की तरह दर्शन करना सीखें | धन्य माता ! धन्य पुत्र ! चेतन ! अब हम यात्रा का अन्तिम पाँचवाँ चैत्यवन्दन करें । पच्चक्खाण करके सबके साथ "आव्यो दादा ने दरबार " गीत से प्रभुभक्ति में तन्मय हो जायें । आव्यो दादा ने दरबार, करो भवोदधि पार । खरो तू छे आधार, मोहे तार तार तार ॥ १ ॥ आत्म गुणोनो भंडार, तारा महिमा नो नहि पार । देख्यो सुन्दर देदार, करो पार पार पार ॥२॥ तारी मूर्ति मनोहार हरे मन ना विकार । मारा हैया नो हार, वंदुं वार वार ॥३॥ आव्यो देरासर मोझार कर्यो जिनवर जुहार । आव्यो पालीताणा मोझार, कर्यो आदि जिन जुहार । प्रभु चरण आधार, खरो सार सार सार ॥ ४ ॥ आत्मकमल सुधार तारी लब्धि छे अपार । एनी खुबी नो नहीं पार, विनंती धार धार धार ॥५॥ सूरिगुणरत्नसार, आवे पालिताणा मोझार, करे विनंती अपार, मोहे तार तार तार ॥ ६ ॥ 66 'सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” 45 For Personal & Private Use Only Main Education International Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दादा के दरबार का संक्षिप्त परिचय (१) दादा आदीश्वर जी के काष्ठ के मन्दिर का जीर्णोद्धार करके विक्रम संवत् १२१७ में पाषाण के मन्दिर का निर्माण किया गया । (२) मन्दिर में जो मण्डप है, वह "मेघनाद मण्डप" कहलाता है । (३) इस प्रासाद को "नन्दीवर्द्धन प्रासाद" कहा जाता है । (४) इस मन्दिर में १२४५ कुम्भ, २१ सिंह एवं कुल ७२ खम्भे हैं तथा चार योगिनियाँ एवं दस दिक्पाल हैं । (५) मन्दिर के चारों ओर १९७२ देहरियाँ, ४ गवाक्ष, ३२ पुतलियाँ, ३२ तोरण, २९१३ पाषाण की प्रतिमाजी, १३१२ धातु की प्रतिमाजी, १५०० चरण-पादुकाएँ हैं और दादा के मन्दिर की ऊँचाई ५२ हाथ है। (६) करमाशा के द्वारा प्रतिष्ठा करानेके पश्चात् विक्रम संवत १६५० में जगद्गुरु श्री विजयसेन सूरीश्वरजी महाराज के उपदेश से खंभात-निवासी तेजपाल सोनी ने जीर्णोद्धार कराया था । (७) वर्तमान में जो "दादा" का परिकर है, उसको अहमदाबाद निवासी श्री शान्तिलाल सेठ ने बनवाया था और विक्रम संवत् १६७० में जगदगुरु आचार्य श्री विजयहीर सूरीश्वरजी महाराज के संतानीय आचार्य श्री विजय देवसूरीश्वरजी महाराज ने प्रतिष्ठा कराई थी। _____चेतन ! यहाँ अपनी यात्रा पूर्ण होती है । अब हमें धीरे-धीरे नीचे उतरना है । हम धीरे-धीरे सगाल पोल तक पहुँच गये । तलेटी पहुँच कर अपने स्थान में सुखपूर्वक आये। बोलो आदीश्वरभगवान की जय “जय गिरिराज" "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” 465 Jai B atonrereational W ainelibreria Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शत्रुजय भावयात्रा का नक्शा आदीश्वर देहरी सिद्धवड घेटी पाग आदपुर गांव भाडवा का पर्वत HAINA MMMMMAMAMAN हस्तगिरि तिर्थ विजयशेठ-विजयाशेठाणी रायणवृक्ष अष्टापदजी नई टुंक AAALAal दादा की टुंकरायण पगला बाल वाले १४५२ आदीश्वर "गणधर पादुका २४ तीर्थकर देहरी सिद्धशिला सहस्त्रकुट सीमंधासहस्त्रफणा सीमधर पार्श्वनाथ गंधारिया पुंडरिक स्वामि चंदन तालाब शांतिनाथ मंदिर सूरज कुंड अजित शांति देहरी कदंबगिरि तिर्थ की आदि तलाजा तीर्थ हाथीपोल: वीर विक्रमशी आ. धनेश्वर पुण्य पाप की बारी कवडयक्ष धेटी बारी वाघणपोल अदभूतजी प्रमाभाई ट्रंक बालाभाई ट्रंक हेमाभाईट्रेक पंचशिखरी मंदिर . 'उजमफई टुंक साकरवसी टुंक रामपोल सगालपोल मोतीशा टुंक अंगारशा पीर पावासी टुंक देवकी के ६ पुत्र हनुमान धारा पांच पांडव चौमुखजी जाली, मयाली, उवयाली टुंक काराम भीलडी देहरी केशवजी की टुंक राम, भरत, थावच्चा पुत्र, शुक्राचार्य, शेलकाचार्य ऋषभदेव SANनौ टुंक का रास्ता नमि विनमि सुकोशल - ऋषभदेव PLठा. दाविड, वारिखिलजी, अईमुत्ता, नारदजी द्राविड, वारिखिलजी, अईमुत्ता, नारदजी श्री पूज्य की ट्रंक ऋषभ, चंद्रानन, वारिषेण व वर्धमान छाला कुंड कलीकुंड पार्श्वनाथ ईच्छा कुंड हिंगलाज देवी अजितनाथ देहरी लीली पस्वर कुमार कुंड ऋषभदेव । जल मदिर धोली परब ऋषभदेव, नेमिनाथ और उनके गणधर वरदत्त बाबु का मंदिर समवसरण मंदिर भरत चक्रवर्ती TELLIA धर्मनाथजी, कुंथुनाथजी, नेमनाथजी धर्मनाथ मंदिर श्री शजय भावयात्रा का नक्शा आदिनाथ गिरिशिला तल्टा पुंडरिक स्वामी देहरी "MERCURY" Ph.: 079-5624029 सरस्वती शांतिनाथजी गौतम स्वामी “सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” 47 Jain Education national For PersonalPrivategonly www. tary.org Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MARATHI IK V54 । सिद्धगिरिराज के मुख्य 17 उदार Seventeen Main Renovapons of Siddh Giriraj "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः 48 For Personal & Private Use Only नमो नम” 48 Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम उद्धार : भगवान ऋषभदेव के पुत्र एवं संपूर्ण भरतखंड के चक्रवर्ती भरत महाराज ने प्रभु आदिनाथ के उपदेश से इस अवसर्पिणी काल का सर्वप्रथम उद्धार कराया । भरत चक्रवर्तीने आरिसा भवन में केवलज्ञान प्राप्त किया और बाद में वे मोक्ष गये । दूसरा उद्धार : भरत चक्रवर्ती के आठवीं पाट पर दण्डवीर्यराजा हुए, जिनकी साधर्मिक भक्ति की प्रशंसा इन्द्र लोकमें हुई थी। परीक्षा हेतु इन्द्र खुद आया । लाखों साधर्मिक बनाये । " जब तक सभी का भोजन नहीं होगा मैं अन्न का दाणा नही लूंगा" देवमाया से साधर्मिक बढते ही गये । राजा के आठ दिन उपवास हो गये। मंत्रियों ने धूप दीप किया । इन्द्रने प्रगट होकर कहा, कमाल ! कमाल ! अदभूत है आपकी साधर्मिक भक्ति ! भावना में अंशमात्र की भी कमी नहीं आई । दंडवीर्यराजा ने शाश्वतगिरिराज का उद्धार करवाया । आरिसा भवन में केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष गये । तीसरा उद्धार : श्री सीमंधर स्वामी के उपदेश को सुन एक सौ सागरोपम व्यतीत होने पर दूसरे देवलोक के ईशानेन्द्र ने उद्धार करवाया । चौथा उद्धार : एक करोड सागरोपम काल व्यतीत होने पर चौथे देवलोक के इन्द्र माहेन्द्रने उद्धार करवाया । पांचवाँ उद्धार : दस करोड सागरोपम काल व्यतीत होने के बाद पांच मे देवलोक के इन्द्र ब्रह्मेन्द्रने करवाया । • Jain Education Inte] सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः” 49 Shirieniorary.org Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छठ्ठा उद्धार उसके पश्चात् एक करोड लान सागरोपम व्यतीत होने पर भवनपति के असुर कुमार निकाय के इन्द्र चमरेन्द्र ने कराया। सातवाँउद्धार : इस अवसर्पिणी काल के चोथे आरे के ५० लाख करोड सागरोपम व्यतीत होने के बाद दूसरे तीर्थंकर भगवान अजितनाथ हुए । उनके सांसारिक बंधु सगर संपूर्ण भरतखंड के चक्रवर्ती थे । परमात्मा के उपदेश से सगरचक्रवर्तीने उद्धार करवाया। आठवाँ उद्धार: श्री अभिनन्दन भगवान के शासन में व्यन्तरेन्द्रने करवाया। नौवाँउद्धार: श्री चंद्रप्रभ स्वामी के शासन में मुनिवर श्री चंद्रशेखर के उपदेश से पुत्र राजा चंद्रयशा ने कराया। दसवाँउद्धार: श्री शान्तिनाथ भगवान के पुत्र चक्रायुधने कराया। ग्यारहवाँ उद्धार: ११ लाख वर्ष पूर्व भगवान मुनिसुव्रत स्वामी के शासन काल में रामायण के वीर अयोध्या के बलदेव श्री रामचंद्रजी तथा तीन खंड के मालिक वासुदेवश्री लक्ष्मणजी ने उद्धार करवाया । श्री रामचंद्रजी एवं भरतजी तीन करोड आत्माओं के साथ शत्रुजय तीर्थ पर मोक्ष में - गये। बारहवाँउद्धार: ८७ हजार वर्ष पूर्व २२वे तीर्थंकर श्री नेमिनाथ के शासनकालमें पांचपांडवोंने उद्धार करवाया । आसोज सूद १५ को "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” 500 For Personal & Private Use Only www.jainelibrara. Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीस करोड आत्माओं के साथ पांच पांडव सिद्ध गिरिराज पर मोक्ष में गये । इस प्रकार चौथे आरे में १२ मुख्य उद्धार हुए। बीच बीच में छोटे छोटे अनेक उद्धार हुए। तत्पश्चात पांचवे आरे में निम्नलिखित चार बडे उद्धार हुए । तेरहवाँ उद्धार : दस पूर्वधर श्री वज्रस्वामी के उपदेश से विक्रम सं. १०८ में जावडशाने करवाया । कांपिल्यपुर में भावड - भावला संपन्न थे । कर्मवश परिस्थिति बदली पर सत्वशील धर्मशील रहे । ज्ञानी गुरु द्वार पर पधारें । भविष्य में शत्रुंजय के तीर्थोद्धार में निमित्त बनेंगे । यह जान कर गुरु म.सा. ने कहा "लक्षणवंती घोडी बाजार में बिकने आएगी । ले लेना ।" घोडी खरीदी उसने अश्वरत्न को जन्म दिया । तपन राजाने तीन लाख द्रव्य देकर अश्वरत्न खरीदा । उस धन से बहुत घोडियां ली । २१ अश्वरत्न पैदा हुए। भावडशा ने राजा विक्रम को भेट दिये । राजाने खुश हो कर पालिताणा के पास १२ गांव सहित मधुमति भावडशा को भेंट में दी । मधुमति प्रवेश के वक्त जावड का जन्म हुआ । घेटी की सुशीला के साथ शादी हुई। राज सम्हालते म्लेच्छों का आक्रमण हुआ । बंदी बनाकर म्लेच्छ देश में ले गये । अपनी बुद्धि कौशल से वहां के राजा को खुश किया और चक्केश्वरी के आदेश से राजा जगन्मल्ला से तक्शशिला के धर्मचक्रतीर्थ से आदिनाथ परमात्मा लानेकी अनुमति प्राप्त की । मूर्ति गिरिराज पर चढाने लगे । दिन में बडी मुश्केली से चढाते, रात को मूर्ति पुनः नीचे आ जाती । २१ दिन ऐसा हुआ । जावडशा थक गये । संघ लेकर आये थे, मगर काम नहीं हो रहा था । आ. श्री वज्रस्वामी ने नये कवडयक्ष को काम सौंपा । तीर्थोद्धार हो चुका था । मूलनायक बिराजमान करने है । पूराना कवडयक्ष विघ्न कर रहा था । नये कवडने गुरुदेव से विनंती की कि Per 'सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः" 51 tion: 14 . Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "गुरुदेव ! मैं तैयार हूं मगर मुझे आप सभी का बल चाहिए क्यों कि मैं नया हूं, नंबर एक पूरा संघ काउसग्ग में रहे, नंबर दो रथ के पहिये के नीचे एक युगल सो जाय ।” संघपति जावडशाह और सुशीलादेवी रथ के नीचे सो गये । पूरा संघ कायोत्सर्ग में बैठ गया । सूरिमंत्र से अधिष्ठित कर नये कवड को भेजा । पूरी रात भयानक अट्टहासों के साथ युद्ध हुआ। पुराना कवड भाग खडा हुआ। मूर्ति ऊपर चढी और प्रतिष्ठा हुई। जावडशाह और सुशीला देवी ध्वजा चढाते हुए भाव विभोर होकर नाचने लगे । गुरुदेव ने कहा - “अरे सम्हालना, नीचे गिर जाओगे।” जावड शाह ने कहा- “गुरुदेव ! गिरुंगा तो नीचे तो नहीं जाऊंगा- ऊपर जाऊंगा।” हर्ष में हृदय बंध हुआ, दोनों के शरीर देवोंने क्षीर समुद्र को अर्पित कर दिये। चौदहवाँ उद्धारः विक्रम संवत १२१३ में श्री कुमारपालराजा के समय में श्रीमाली ज्ञाति के मंत्रीश्वर बाहड हुए । गुजरात के मंत्रीश्वर उदायन युद्धभूमि में अंतिम सांस ले रहे थे । पिता की अंतिम इच्छा थी युद्धभुमि में मुनि केदर्शन और शत्रुजय का उद्धार ! मंत्री बाहडने दोनों की स्वीकृति दी और मुनि को ढूंढने निकल पडे । मुनि नहीं मिले तो एक नट को पकडा, साधुवेष दिया, जैसे सिखाया वैसा पूरा अभिनय किया । उदायन मंत्री को समाधि मृत्यु मिली, वेश उतारने को कहा तो नट ने मना कर दिया। अब तो मैं सच्चा साधु ही बनूंगा । धन्य मुनिवेष ! मंत्रीश्वर बाहड ने शत्रुजय उद्धार करवाया।"मंदिर तैयार हो चूका है" समाचार देनेवाले को १६ सुवर्ण की जीभ दी । उतने में दूसरा घुडस्वार मारते दम आया।"मंत्रीश्वर ! मंदिर फट गया !" बाहड मंत्रीने उसे ३२ स्वर्णिम जीभ दी... "मैं जीवित हूं तो दूसरीबार धनव्यय कर उद्धार करवा दूंगा । बाद की क्या पता ?" शत्रुजय तीर्थ पहुंचे । सोमपुरा का मुंह उतरा हुआ था । असमंजस की स्थिति थी । बाहड मंत्रीने जानना “सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” 52_ For Personal & Private Use Only www.jainen Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चाहा - क्या प्रोब्लेम है ? सोमपुरा ने कहा : “ मंदिर ऊंचाई पर है। प्रदक्षिणा वाला मंदिर बनाये तो हवा भरती है और मंदिर फटता है और यदि प्रदक्षिणा बिना बनाये तो वंशवृद्धि नहीं होती, क्या करना ?" मंत्रीश्वर बाहड का निर्णय एकदम स्पष्ट था । वंशवृद्धि की चिंता छोडो, मंदिर की रक्षा होनी चाहिये । तीर्थोद्धार हुआ । वाह रे बाहड ! धन्य तेरी तीर्थ भक्ति ! युगों तक अमर रहेगा तेरा बलिदान । पंद्रहवाँ उद्धारः संवत १३७१ में पाटण के संघपति समराशाह ओसवाल ने करवाया । एक शेठ के चार बेटे थे । बूढापा आया, भोले बनकर संपत्ति के चार भाग कर दिया । सेवा बंद हो गई । गुप्तधन निकाल कर पलंग के पायों में डाल दिया । “अब नहीं दूंगा।” मरते दम नहीं बताया। लडकों ने पलंग सहित शेठ को स्मशानमें छोड दिया। _ उज्जैन में मां बेटे रहते थे । बालाशाह छोटे थे । माता ने बेटे को बाजार भेजा । एक बूढे माँजी स्मशान का पलंग लेकर बैठे थे। "बेटा ! पैसे की जरुरत है । मुफ्त में पैसा नहीं लूंगी । पलंग ले लो। "पैसा देकर पलंग ले आया । दाने दाने पे लिखा खाने वाले का नाम । माँ ने कहा - बेटा ! झोपडी छोटी है । इतना बडा पलंग कहां रखेंगे ? खोलकर गठरी बांध कर रख दें। "पलंग खोला तो बेशुमार किमती रत्नों का ढग हो गया । माता पुत्रने सोचा था यह धन नसीब से मिला है । खा गया सो खो गया, दे गया सो ले गया। अब उसे नसीब बढाने में लगायेंगे । सात क्षेत्र में व्यय करेंगे।" धन तो बहुत लोगों के पास है पर दिल बहुत कम लोगों के पास होता है ! दिल्ली में एक छोटी सी घटना हुई । मंत्रीश्वर समराशाह ओशवाल की पत्नी पूजा करने गई । भीड काफी थी । बूढे माँजी को धक्का लग गया । माँजी चिल्लाई "कौन सा पालिताणा का संघ निकाला कि इतना उछल रही हो?" मंत्री पत्नी को यह वाक्य चुभ गया । कोपघर (पहले यह व्यवस्था थी आज तो पूरा घर ही कोप भवन है !) "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाबल गिरि नमो नमः' 53 Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ में जाकर बैठ गई। रसोई बंद ! मंत्री आये, पूछा, जवाब मिला पहले पालिताणा का संघ जाहिर करो । जाहिर किया । पत्नी खुश हुई। गांव गांव समाचार पहुंचे। उज्जैन के माँ बेटे ने देखा- अच्छा मौका है। गांव गांव सात क्षेत्रमें धन लूटायेंगे। ___ संघ पालिताणा पहुंचा । दादा आदिनाथ की प्रथम पूजा नौरत्नों से बालाशाह ने की। दूसरे दिन १८, तीसरे दिन ३६, समराशा चकित था। मेरे संघ में ऐसा कौन सा भाग्यशाली है ? मुजे मिलना है। बालाशाह को देख कर ठगे से रह गये । एक छोटा बालक, और ऐसी अप्रतिम उदारता ! बालाशा ने विनंती की कि “बचा हुआ पूरा धन यही लगाना है । एक दूंक बनाने का आदेश दिलाईए ।” बालाशाहने ढूंक बनाई तो समराशा ओशवालने इस प्रसंग से प्रेरणा लेकर पूरे तीर्थ का उद्धार करवा दिया । वाह रे बालाशा ! वाह रे समराशा ! सोलहवाँ उद्धार : संवत १५८७ में चित्तौड के करमाशा ने उद्धार करवाया । करमाशा के पिता तोलाशा बडे ही व्यथित थे। मोगलों के आक्रमण से शजय तीर्थ के मंदिर जर्जरित हो चुके थे। श्री धर्मरत्नसूरिजी ने कहा "मेरा शिष्य और आपका पत्र उद्धार में निमित्त बनेगा।" करमाशा ने नियम लिया । जब तक श्री शत्रुजय का उद्धार नहीं करवाउं तबतक भूमिशयन, एकासणा, ब्रह्मचर्य का पालन करूंगा। दिल्ली के बादशाह की नाराजगी से शाहजादा बहादुरखान घर से भागा । चितौड कपडा खरीदने करमाशाह के दुकान पर चढा । करमाशा ने पहिचान लिया । और कहा “ पैसे की चिंता छोडीये, जितना चाहिए उतना ले ।” १ लाख रुपये उधार दिये । शाहजादा गदगद् हो गया । एहसान चुकाउंगा । दिल्ली की गादी पर शाहजादा बैठा । करमाशा ने तीर्थोद्धार की अनुमति ली । दो मुनियोंने मूर्तिनिर्माण हेतु छः महिने के उपवास किये । आचार्य "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः" 54 Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विद्यामण्डनसूरिजी की मुख्यता में ५०० आचार्यों ने दादा की अंजनशलाका प्रतिष्ठा सं. १५८७ चै.वद-६ (गुज चै. वद ६ ) के दिन की । प्रतिष्ठा में सवाक्रोड और जिर्णोद्धार में अपार द्रव्यका खर्चा किया । परमात्मा ने इंसान की तरह सात बार सांस ली। बिजली गिरी। परमात्मा की नासिका खंडित हुई । पर उत्थापन करने गये तो "म" ऐसी आवाज आई, फिर वही प्रतिमा रखी है। - ऐसे प्रगट प्रभावी आदिनाथ दादा को वंदन। सत्रहवाँ उद्धारः पांचवें आरे के अन्त में श्री दुप्पसिंहसूरीश्वरजी महाराज के उपदेश से राजा विमलवाहन करायेंगे और वह इस अवसर्पिणी का अन्तिम उद्धार होगा। Foll TETH Sol CEL Almoon"सिद्धाचल गिरि नमो नमः * तिमलाचल गिरि नमो नमः” 55 Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 100 ww श्री जय तलेटी श्री शांतिनाथ जिनाला श्री आदिनाथ भगवान रायण वृक्ष एवं पगलां + श्री पुंडरिकक्वामि जिनालय श्री सिद्धगिरिराज की यात्रा में करने के पाँच चैत्यवंदना "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः" 56 Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जय तलहटी पर करने का प्रथम चैत्यवंदन धन्य.१ श्री शत्रुजय सिद्धक्षेत्र, दीठे दुर्गति वारे; ____भाव धरीने जे चढे, तेने भव पार उतारे. अनंत सिद्धनो ऐह ठाम, सकल तीर्थनो राय; पूर्व नवाणुं ऋषभदेव, ज्यां ठविया प्रभु पाय सूरजकुंड सोहामणो कवडजक्ष अभिराम; नाभिराया कुलमंडणो, जिनवर करुं प्रणाम (सिद्धगिरि का स्तवन सिद्धाचलगिरि भेट्या रे, धन्य भाग्य हमारा; ओ गिरिवरनो महिमा मोटो, कहेतां न आवे पारा; रायणरुख समोसर्या स्वामी, पूरव नवाणुं वारा रे, मूलनायक श्री आदिजिनेश्वर, चौमुख प्रतिमा चारा; अष्टद्रव्यशुं पूजो भावे, समकित मूल आधारा रे, भाव भक्ति सुं प्रभु गुण गातां, अपना जन्म सुधारा; यात्रा करी भविजन शुभ भावे, नरक तिर्यंच गति वारा रे, दूर देशांतरथी हुं आव्यो, श्रवणे सुणी गुण तोरा; पतित उद्धारण बिरुद तमासँ, तीरथ जग सारा रे, संवत अढार त्यासी मास अषाढा, वदि आठम भोमवारा; प्रभुजी के चरण प्रताप के संघ में, खिमारतन प्रभु प्यारा रे. श्री शत्रुजय की स्तुति श्री सिद्धाचल मंडण, ऋषभ जिणंद दयाल, मरुदेवानंदन, वंदन करुं त्रण काल; ओ तीरथ जाणी, पूर्व नवाणुं वार, आदीश्वर आव्या, जाणी लाभ अपार; धन्य.२ धन्य. ३ धन्य.४ धन्य. ५ "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” 57 Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शांतिनाथ भगवान का द्वितीय चैत्यवंदन शांति जिनेश्वर सोलमा, अचिरासुत वंदो, विश्वसेन कुल नभोमणि, भविजन सुख कंदो मृगलंछन जिन आउखुं, लाख वरस प्रमाण, ___हत्थिणाउर नयरी घणी, प्रभुजी गुण मणि खाण चालीश धनुषनी देहडीओ, समचउरस संठाण, वदन पद्म ज्युं चंदलो, दीठे परम कल्याण (श्री शांतिनाथ प्रभु का स्तवन शांति जिनेसर साचो साहिब, शांतिकरण इण कलिमें हो जिनजी, तुं मेरा मन में, तुं मेरा दिल में, ध्यान धरूं पल पल में साहेबजी, - भवमां भमतां में दरिशन पायो, आशा पूरो ओक पल में हो जिनजी निरमल ज्योत वदन पर सोहे, निकस्यो ज्युं चंद बादल में हो जिनजी. मेरो मन तुम साथे लीनो, ___ मीन वसे ज्युं जल में हो जिनजी. जिनरंग कहे प्रभु शांति जिनेश्वर, दीठोजी देव सकल में हो जिनजी. तुं.१ तु.२ तु.३ तु.४ श्री शांतिनाथजी की स्तति शांति जिनेश्वर समरीओ, जेनी अचिरा माय, विश्वसेन कुळ उपन्या, मृग लंछन पाय; गजपुरी नयरीनो धणी, कंचन वरणी छे काय, धनुष चालीसनो देहडी, लाख वरसनुं आय. "सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमूलाचल गिरि तमो नमः 58www.jainelibrary.store Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र रायण पाटका का तीसरा चैत्यवंदन एह गिरि उपर आदिदेव, प्रभु प्रतिमा वंदो, रायण हेठे पादुका, पूजीने आणंदोर १ एह गिरिनो महिमा अनंत, कुण करे वखाण, चैत्री पूनमने दिने, तेह अधिको जाण २एह तीरथ सेवो सदा, आणी भक्ति उदार श्री शत्रुजय सुखदायको, दान विजय जयकार रायण-पादुका स्तवन नीलुडी रायण तरु तले, सुणसुंदरी, पीलुडा प्रभुना पायरे, गुणमंजरी उज्जवल ध्याने ध्याईए, सुण. अही ज मुक्ति उपाय रे. गुण. शीतल छायडे बेसीए, सुण. रातडो करी मन रंगे गुण. पूजीए सोवन फूलडे, सुण. जेम होय पावन अंग रे, गुण. खीर जरे जेह उपरे, सुण. नेह धरीने अह रे, गुण. त्रीजे भवे ते शिवलहे, सूण. थाये निर्मल देह रे, गुण. प्रीतधरी प्रदक्षिणा, सुण. दीओ एहने जे सार रे गुण. अभंग प्रीति होय तेहने, सुण. भवोभव तुम आधार रे गुण. ४ कुसुम पत्र फळ मंजरी, सुण. शाखा थड ने मूळ रे गुण. - देव तणा वासाय छे, सुण. तीरथ ने अनुकूल रे गुण. ५ तीरथध्यान धरो मुदा, सुण. सेवो अहनी छांय रे, गुण. । ज्ञान विमल गुण भाखीयो, सुण. शत्रुजय महात्म्य मांही रे, गुण. ६ रायण-पादुका स्तुति श्री शत्रुजय आदि जिन आव्या, पूर्व नवाणुं वारजी, अनंत लाभ इहां जिनवर जाणी, समोसर्या निर्धारजी; विमलगिरिवर महिमा मोटो, सिद्धाचल ईणे ठामजी, कांकरे कांकरे अनंता सिद्धा, अकसो ने आठ गिरि नामजी “सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः' 59 wain Education International For Personal & Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 श्री पुंडरिकस्वामी का चोथा चैत्यवंदन । आदीश्वर जिनरायनो, गणधर गुणवंत, प्रगट नाम पुंडरिक जास, महिमाले महंत पंच कोडी मुनिंद साथ, अणसण तिहां कीध, शुकल ध्यान ध्याता अमूल, केवल वर लीध चैत्री पूनमने दिने ओ, पाम्या पद महानंद, ते दिन थी पुंडरिक गिरि, नाम दान सुखकंद श्री पंडरीकस्वामी का स्तवन एक दिन पुंडरिक गणधरूं रे लाल, पुछे श्री आदि जिणंद सुखकारी रे; कहीजे ते भवजल उतरी रे लाल, पामीश परमानंद भव वारी रे. अक १ कहे जिन इण गिरि पामशो रे लाल, ज्ञान अने निरवाण जयकारी रे; तीरथ महिमा वाधशे रे लाल, अधिक-अधिक मंडाण निरधारी रे. ओक २ इम निसुणीने ईहां आवीया रे लाल, घाति करम कर्या दूर तम वारी रे; पांच क्रोड मुनि परिवर्या रे लाल, हुआ सिद्ध हजुर भव वारी रे. ओक ३ चैत्री पूनम दिन कीजिए रे लाल, पूजा विविधप्रकार दिलधारी रे; फल प्रदक्षिणा काउसग्गा रे लाल, लोगस्स थुइ नमुक्कार नरनारी रे, ओक ४ । दश वीश त्रीश चाली भला रे लाल, पचाश पुष्पनी माळ अतिसारी रे; नरभव लाहो लीजिए रे लाल, जेम होय ज्ञान विशाल मनोहारी र ओक ५ श्री पुंडरीकस्वामी की स्तुति पुंडरीक मंडण पाय प्रणमीजे, आदीश्वर जिनचंदाजी, नेम विना त्रेवीस तीर्थंकर, गिरि चढिया आणंदाजी; आगम माहे पुंडरीक महिमा भाख्यो ज्ञान दिणंदाजी, चैत्री पूनम दिने देवी चक्केसरी, सौभाग्य द्यो सुखकंदाजी "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः' 60 Janication pte naton personal Private Use Only www.jainermarg Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दादा के दरबार में श्री आदिनाथ प्रभु का पाँचवा चैत्यवंदन ...माता १ ...माता २ आदिदेव अलवसरू, विनीतानो राय, नाभिराया कुल मंडणो, मरूदेवा माय. पांचशें धनुषनी देहडी, प्रभुजी परम दयाल, चोराशी लख पूर्व-, जस आयु विशाल. वृषभलंछन जिन वृषधरू); उत्तम गुणमणि खाण; तस पदपद्म सेवन थकी, लही अविचल ठाण. ३ (श्री आदिनाथ भगवान का स्तवन माता मरुदेवीना नन्द, देखी ताहरी मूरति मारूं मन 3 लोभाणुजी के मारूं चित्त-चोराणुं जी । करूणानागर करूणा-सागर, काया-कंचन-वान । धोरी-लंछन पाउले कांई, धनूष पांचसे मान त्रिगडे बेसी धर्म कहता, सूणे पर्षदा बार । योजनगामिनी वाणी मीठी, वरसन्ती जलधार उर्वशी रूडी अपछराने, रामा छे मनरंग । _ पाये नेउर रणझणे कांई, करती नाटारम्भ ...माता ३ तुंही ब्रह्मा, तुंही विधाता, तुंही जगतारणहार । तुज सरीखो नहि देव जगतमां, अरवडिया आधार ...माता ४ तुंही भ्राता, तुंही त्राता, तुंही जगतनो देव । सुर-नर-किन्नर-वासुदेवा, करतां तुज पद सेव ...माता ५ श्रीसिद्धाचल तीरथ केरो, राजा ऋषभ जिणंद । कीर्ति करे माणेकमुनि ताहरी, टालो भवभय फंद ...माता ६ श्री आदिनाथ भगवान की स्तुति आदि जिनवर राया, जास सोवन्न काया, मरूदेवी माया, धोरी लंछन पाया; जगत स्थिति निपाया, शुद्ध चारित्र पाया, केवल सिरिराया, मोक्ष नगरे सिधाया । WARENCE Personal & ate wwwmainen rary.org "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः MA Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाववाही स्तुतियाँ 66 " सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः" For Personal & Private Use Only 62 Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जे दृष्टि प्रभु दरिशन करे, ते दृष्टिने पण धन्य छे, जे जीभ जिनवर ने स्तवे, ते जीभ ने पण धन्य छे, पीये मुदा वाणी सुधा, ते कर्ण युगने धन्य छे, तुज नाम मंत्र विशद धरे, ते हृदयने पण धन्य छे ॥१॥ हे देव ! तारा दिलमां, वात्सल्यना झरणा भर्या, हे नाथ ! तारा नयनमां, करूणा तणा अमृत भर्या, वीतराग तारी मीठी मीठी, वाणीमां जादू भर्या, तेथी ज तारा चरणमां, बालक बनी आवी चड्या ॥२॥ जेना गुणोना सिंधुना, बे बिंदु पण जाणुं नहि, पण एक श्रद्धा दिल महीं के, नाथ सम को छे नहि, जेना सहारे क्रोड तरिया, मुक्ति मुज निश्चय सही, एवा प्रभु अरिहंतने, पंचांग भावे हुं नमुं ॥३॥ मंदिर छो मुक्तितणा, मांगल्य क्रीडाना प्रभु, ने इन्द्र नरने देवता, सेवा करे तारी विभु, सर्वज्ञ छो स्वामिन् वली, शिरदार अतिशय सर्वना, ____घj जीव तुं, घj जीव तुं, भंडार ज्ञान कला तणा ॥४॥ में दान तो दीधुं नहि, ने शीयल पण पाल्युं नहि, तपथी दमी काया नहि, शुभ भाव पण भाव्यो नहि, ए चार भेदे धर्ममांथी कांई पण प्रभु नव कर्यु, मारूं भ्रमण भवसागरे निष्फल रायं निष्फल सायं ॥५॥ दया सिंधु ! दया सिंधु ! दया करजे दया करजे, 4 'मने आ जंजीरोमांथी, हवे जल्दी छूटो करजे, नथी आ ताप सहेवातो, भभूकी कर्मनी ज्वाला, वर्षावी प्रेमनी धारा, हृदयनी आग बुझवजे ॥६॥ | Jain Education Internati सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः” 63 Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१॥ ॥२॥ ॥३॥ ॥४॥ दर्शनं देवदेवस्य, दर्शन पापनाशनम् । दर्शनं स्वर्गसोपानं, दर्शनं मोक्षसाधनम् प्रभु दर्शन सुख सम्पदा, प्रभु दर्शन नवनिध। , __ प्रभु दर्शन थी पामिये, सकल पदारथ सिद्ध भावे भावना भाविये, भावे दीजे दान । भावे जिनवर पूजिये, भावे केवल ज्ञान जीवडा जिनवर पूजिये, पूजा ना फल होय । राजा नमे प्रज्ञा नमे, आण न लोपे कोय त्रिभुवन नायक तू धणी, महामोटो महाराज । मोटे पुण्ये पामियो, तुम दर्शन हुं आज वाडी चंपो मोरियो, सोवन पांखडीये । __ पास जिनेश्वर पूजिये, पांचे आंगलिये फूलडां केरा बागमां, बेठा श्री जिनराज जिम तारामां चंद्रमां, तिम शोभे महाराजा आज मनोरथ सवि फल्या, प्रगट्या पुण्य कल्लोल । पाप कर्म दूरे टल्यां, नाठां दुःख दंदोल ॥५॥ ॥६॥ ॥७॥ ॥८॥ “सिद्धाचल गिरि नमो नमः - विमलाचल गिरि नमो नमः' 64 Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चात्यवदना इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए, निसीहिआए, मत्थएण वंदामि इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! इरियावहियं पडिकूमामि ? इच्छं, इच्छामि पडिकूमिउं १. इरियावहियाए विराहणाए २. गमणागमणे ३. पाणकुमणे, बीअकुमणे हरियकुमणे, ओसा उत्तिंग पणगदग, मट्टीमकुडासंताणा संकमणे. ४. जे मे जीवा विराहिया, एगिदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचिंदिया. ६ अभिहया, वत्तिया, लेसिया, संघाईया, संघट्टिया, परियाविया, किलामिया, उद्दविया, ठाणाओ ठाणं संकामिया, जीवियाओ ववरोविया, तस्स मिच्छामि दुक्कुडं ७. तस्स उत्तरीकरणेणं, पायच्छित्त-करणेणं, विसोहीकरणेणं, विसल्लीकरणेणं, पावाणं कम्माणं निग्घायण-ढाए ठामि काउस्सग्गं अन्नत्थ उससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, छीएणं, जंभाइएणं, उड्डएणं, वायनिस्सगेणं, भमलीए, पित्तमुच्छाए. १. सुहुमेहिं अंगसंचालेहिं, सुहुमेहिं खेल संचालेहिं, सुहुमेहिं दिट्ठिसंचालेहिं. २. एवमाइएहिं आगारेहिं, अभग्गो अविराहिओ, हुज्ज मे काउस्सग्गो. ३. जाव अरिहंताणं भगवंताणं, नमुकारेणं, न पारेमि. ४. ताव कायं, ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं, अप्पाणं वोसिरामि. ५ (एक लोगस्स चंदेसु निम्नलयरा तक न आये, तो चार नवकार काउस्सग्ग, फिर 'नमो अरिहंताणं' बोलकर पारना) “सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” 65 Vain Education International For Personal & Private Use Only NOON www.lainelibrary.org Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KERASTRA लोगस्स उज्जोअगरे, धम्मतित्थयरे जिणे, अरिहंते कित्तइस्सं, चउवीसंपि केवली. १. उसभमजिअं च वंदे, संभवमभिणंदणं च सुमइं च, पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे. २. सुविहिं च पुप्फदंतं, सीअल सिज्जंस वासुपूज्जं च, विमल-मणंतं च जिणं, धम्म संतिं च वंदामि. ३. कुंथु अरं च मल्लिं, वंदे मुणि-सुव्वयं नमिजिणं च, वंदामि रिट्टनेमि, पासं तह वद्धमाणं च. ४. एवं मए अभिथुआ, विहुयरयमला पहीण जरमरणा, चउवीसंपि जिणवरा, तित्थयरा मे पसीयंतु. ५. कित्तिय-वंदिय-महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा, आरुग्ग बोहिलाभं, समाहि-वरमुत्तमं दिन्तु. ६. चंदेसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा, सागरवर गंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु.७. तीन खमासमणे देकर इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! चैत्यवन्दन करूं ? इच्छं सूचना : चैत्यवंदन करते समय, चैत्यवंदन बोलने से पहले सकलकुशलवल्ली बोलना चाहिये । सकलकुशलवल्ली-पुष्करावर्तमेघो, दुरिततिमिरभानु; कल्पवृक्षोपमानः भवजलनिधिपोतः सर्वसम्पत्तिहेतुः, स भवतु सततं वः श्रेयसे शान्तिनाथः ॥१॥ तुज मुरतिने निरखवा, मुज नयणां तलसे; तुज गुणगणने बोलवा, रसना मुज हरखे. काया अति आनंद मुज, तुम युग पद फरसे; तो सेवक तार्या विना, कहो किम हवे सरसे. ओम जाणीने साहिबाओ, नेक नजर मोही जोय; ज्ञानविमल प्रभु नजरथी, तेहशुं जे नवि होय. जंकिंचि नामतित्थं, सग्गे पायालि माणुसे लोए; जाइं जिणबिंबाइँ, ताइँ सव्वाइँ वंदामि. नमुत्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं. १. आइगराणं तित्थयराणं सयंसंबुद्धाणं. २. पुरिसुत्तमाणं पुरिस-सीहाणं पुरिस-वरपुंडरीआणं पुरिसवरगंधहत्थीणं. ३. लोगुत्तमाणं लोगनाहाणं, लोगहिआणं, लोगपईवाणं, लोगपज्जोअगराणं. ४. अभयदयाणं, चक्खुदयाणं, मग्गदयाणं, ३ "सिद्धाचल गिरि नमो नमः, विमलाचल गिरि नमो नमः। 66 FEducajinalia For Personal & Rivale Use Only Salayko Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरणदयाणं, बोहिदयाणं. ५. धम्मदयाणं, धम्मदेसयाणं, धम्मनायगाणं, धम्मसारहीणं, धम्मवर-चाउरंतचकुवट्टीणं. ६. अप्पडिहय-वरनाणदसणधराणं, विअट्टछउमाणं. ७. जिणाणं-जावयाणं, तिन्नाणं तारयाणं; बुद्धाणं बोहयाणं, मुत्ताणं मोअगाणं. ८. सव्वन्नूणं, सव्वदरिसीणं, सिवमयल-मरुअ-मणंत-मक्खय-मव्वाबाह मपुणरावित्ति सिद्धि गई-नामधेयं, ठाणं-संपत्ताणं, नमो जिणाणं जिअभयाणं. ९. जे अ अईआ सिद्धा, जे अ भविस्संति णागओ काले; संपई अ वट्टमाणा, सब्वे तिविहेण वंदामि. १०. जावंति चेइआईं उड्ढे अ, अहे अ तिरियलोए अ; सव्वाइं, ताई वंदे, इह संतो इत्थ संताई. (एक खमासमणा देकर) जावंत केवि साहू, भरहेरवय-महाविदेहे अ सव्वेसिं तेसिं पणओ, तिविहेण तिदंडविरयाणं. नमोऽर्हत् नमोर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः (स्तवन बोलना) स्तवन आज मारा प्रभुजी ! सामु जुओने, - 'सेवक' कहीने बोलावो रे; अटले हुं मनगमतुं पाम्यो, 2 रूठडां बाळ मनावो, मारा सांई रे, आज०१ पतितपावन शरणागतवत्सल, ओ जश जगमां चावो रे मनरे मनाव्या विण नहि मूक, अहीज माहरो दावो मारा०२ कब्जे आव्या हवे नहि मूकुं, जिहां लगे तुम सम थावो रे; जो तुम ध्यान विना शिव लहिले, तो ते दाव बतावो मारा०३ महागोप ने महानिर्यामक, एवा एवा बिरुद धरावो रे; तो शं आश्रितने उद्धरता, बहु बहु शुं रे कहावो मारा० ४ 'सिद्धाचल गिरि नमो नमः - विमलाचल गिरि नमो नमः 67 Private US Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ “ज्ञानविमल" गुरुनो निधिमहिमा, मंगल ओही बधावो रे; अचल अभेदपणे अवलंबी, अहोनिश ओही दिल ध्यावो मारा० ५ ("जय वीयराय” बोलना-आभवमखंडा तक दो हाथ जोड़कर मस्तक नीचे रखना) जयवीयराय ! जगगुरु होउ ममं तुह पभावओ भयवं ! भवनिव्वेओ मग्गाणुसारिआ ईट्ठफल-सिद्धि. , लोग विरुद्धच्चाओ, गुरुजणपूजा परत्थकरणं च; सुहगुरुजोगो, तव्वयणसेवणा आभवमखंडा. वारिज्जई जई विनियाणबंधणं वीयराय ! तुह समये; तहवि मम हुज्ज सेवा, भवे भवे तुम्ह चलणाणं. दुक्खखओ कम्मखओ, समाहिमरणं च बोहिलाभो अ; संपज्जउ मह एअं, तुह नाह पणामकरणेणं. सर्वमंगलमांगल्यं, सर्व-कल्याण-कारणं; प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम्, नमोऽर्हसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः शंखेश्वर पार्श्व प्रभु समरो, अरिहंत अनंतनुं ध्यान धरो । जिनागम अमृतपान करो, शासन देवी सवि विघ्न हरो ॥ ( एक खमासमण देना) ५ अरिहंतचेइआणं, करेमि काउस्सग्गं १. वंदणवत्तिआए, पूअणवत्तिआए, सक्कारवत्तिआए, सम्माणवत्तिआए, बोहिला-भवत्तिआए, निरुवसग्गवत्ति आए. २. सद्धाए, मेहाए, धिइए, धारणाए, अणुप्पेहाए, वड्ढमाणीए, ठामि काउस्सग्गं. ३. “सिद्धाचल नमो नमः" अन्नत्थ उससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, छीओणं, जंभाइएणं, उहुएणं, वायनिस्सगेणं, भमलीओ पित्तमुच्छाए, १ सुहुमेहिं अंगसंचालेहिं, सुहुमेहिं खेलसंचालेहिं, सुहुमेहिं दिट्ठिसंचालेहिं. २ एवमाइएहिं आगारेहिं, अभग्गो अविराहिओ, हुज्ज मे काउस्सग्गो. ३ जाव अरिहंताणं भगवंताणं, नमुक्कारेणं, न पारेमि. ४ ताव कायं, ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं. अप्पाणं वोसिरामि. 9. 嵌 For Personal & Private Use Only २ 68 ३ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरुवंदन विधि (पहेले खडे होकर दो खमासमण देना फिर खडे होकर) इच्छकार (सुहराई) सुहदेवसी सुखतप शरीर निराबाधसुख संजम यात्रा निर्वहो छो जी ? स्वामी !शाता छेजी ? भात पाणीनो लाभ देजो जी। (फिर पदवीधर हो तो खमासमण देकर) इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! अब्भुट्ठिओमि अभिंतर (राइअं) देवसिअं खामेउं, इच्छं खामेमि (राइअं) देवसिअं जंकिंचि अपत्तिअं. परपत्तिअं, भत्ते, पाणे, विणए, वेयावच्चे, आलावे, संलावे, उच्चासणे, समासणे, अंतरभासाए उवरिभासाए जंकिंचि मज्झ विणयपरिहीणं, सुहुमं वा, बायरं वा, तुब्भे जाणह, अहं न जाणामि तस्स मिच्छामि दुक्कडम् । (फिर एक खमासमणा देना) Jain Educationfसिदांचल गिरि नमो नमः विमलीचले गिरिनमा नम?' 697 Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री भक्तामर स्तोत्रम्॥ 66 “सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमलाल गिरि नमो नम:” www@ainelibrary.org riya Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (वसंततिलकावृत्तम्) भक्तामर - प्रणत- मौलि-मणि-प्रभाणामुद्योतकं दलित-पाप-तमो-वितानम् सम्यक् प्रणम्य जिनपाद-युगं युगादा वालम्बनं भवजले पततां जनानाम् यः संस्तुतः सकल-वाड्मय -तत्त्वबोधादुद्भूत- बुद्धि- पटुभिः सुरलोक - नाथैः स्तोत्र - जगत्-त्रितय-चित्तहरे - रुदारैः, स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम् बुद्धया विनाऽपि विबुधार्चित-पादपीठ !, स्तोतुं समुद्यत-मति- र्विगत- त्रपोऽहम् बालं विहाय जल-संस्थित-मिन्दु-बिम्ब मन्यः क इच्छति जनः सहसा ग्रहीतुम् वक्तुं गुणान् गुण-समुद्र ! शशाङ्क- कान्तान्, कस्ते क्षमः सुरगुरु- प्रतिमोऽपि बुद्धया कल्पान्त-काल-पवनोद्धत-नक्रचक्रं, को वा तरी - मल-मम्बु-निधिंभुजाभ्याम् सोऽहं तथापि तव भक्ति-वशान्मुनीश !, कर्तुं स्तवं विगत-शक्ति-रपि प्रवृत्तः प्रीत्याऽऽत्म-वीर्य-मविचार्य मृगो मृगेन्द्रं, नाभ्येति किं निजशिशोः परिपालनार्थम् अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिहास-धाम, त्वद्भक्तिरेव मुखरीकुरुते बलान्माम् यत्कोकिलः किल मधौ मधुरं विरौति, तच्चारु-चूत-कलिका-निकरैक-हेतुः त्वत्संस्तवेन भव-सन्तति - सन्निबद्धं, पापं क्षणात्क्षय-मुपैति शरीर- भाजाम् आक्रान्त-लोक-मलि-नील-मशेषमाशु, सूर्यांशु-भिन्नमिव शार्वर-मन्धकारम् Jan Educati 119 11 ॥२॥ ॥३॥ ॥४॥ ॥५॥ ॥६॥ 11011 Private Use C " सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” 71 www.jainelibrary Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥८॥ ॥९॥ ॥१०॥ मत्वेति नाथ ! तव संस्तवनं मयेद मारभ्यते तनुधियाऽपि तव प्रभावात् चेतो हरिष्यति सतां नलिनी-दलेषु, मुक्ताफल-द्युति-मुपैति ननूद-बिन्दुः आस्तां तव स्तवन-मस्त-समस्त-दोषं, त्वत् संकथाऽपि जगतां दुरितानि हन्ति दूरे सहस्र-किरणः कुरुते प्रभव, ___पद्माकरेषु जलजानि विकासभाञ्जि नात्यद्भुतं भुवन-भूषण ! भूत-नाथ !, भूतै-गुणे-भुवि भवन्त-मभिष्टुवन्तः तुल्या भवन्ति भवतो ननु तेन किं वा, भूत्याश्रितं य इह नात्मसमं करोति दृष्ट्वा भवन्त-मनिमेष-विलोकनीयं, नान्यत्र तोष-मुपयाति जनस्य चक्षुः पीत्वा पयः शशिकर-द्युति-दुग्धसिन्धोः, क्षारं जलं जलनिधेरशितुं क इच्छेत् यैः शान्त-राग-रुचिभिः परमाणुभिस्त्वं, निर्मापित-स्त्रिभुवनैक-ललामभूत ! तावन्त एव खलु तेऽप्यणवः पृथिव्यां, यत्ते समान-मपरं नहि रूपमस्ति वक्त्रं क्व ते सुर-नरोरग-नेत्रहारि निःशेष-निर्जित-जगत्-त्रितयो-पमानम् बिम्बं कलङ्क-मलिनं क्व निशाकरस्य, यद्वासरे भवति पाण्डु-पलाश-कल्पम् सम्पूर्ण-मण्डल-शशाङ्क-कला-कलाप शुभ्रा-गुणा-स्त्रिभुवनं तव लड्मयन्ति ये संश्रिता-स्त्रिजगदीश्वरनाथमेकं, कस्तान-निवारयति सञ्चरतो यथेष्टम् ॥११॥ ॥१२॥ ॥१३॥ ॥१४॥ Jain Education Internation Personale www.jainelionkprgs e "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” 72 Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चित्रं किमत्र यदि ते त्रिदशाङ्गनाभि र्नीतं मनागपि मनो न विकार-मार्गम् कल्पान्त-काल-मरुता चलिताचलेन, किं मन्दराद्रि-शिखरं चलितं कदाचित् ? ॥१५॥ निधूमवर्ति-रपवर्जित-तैलपूरः, ____ कृत्स्नं जगत्त्रयमिदं प्रकटीकरोषि गम्यो न जातु मरुतां चलिता-चलानां, दीपोऽपरस्त्वमसि नाथ ! जगत्प्रकाशः ॥१६॥ - नास्तं कदाचि-दुपयासि न राहुगम्यः, स्पष्टीकरोषि सहसा युगपज्-जगन्ति नाम्भोधरो-दर-निरुद्ध-महा-प्रभावः, सूर्यातिशायि-महिमाऽसि मुनीन्द्र! लोके ॥१७॥ नित्योदयं दलित-मोह-महान्धकारं, गम्यं न राहु-वदनस्य न वारिदानाम् विभ्राजते तव मुखाब्ज-मनल्प-कान्ति, विद्योतयज्-जगद-पूर्व-शशाङ्क-बिम्बम् ॥१८॥ किं शर्वरीषु शशिना-ऽह्नि विवस्वता वा, __ युष्मन्-मुखेन्दु-दलितेषु तमस्सु नाथ ! निष्पन्न-शालि-वन-शालिनि जीव-लोके, कार्य कियज्-जलधरै-र्जलभार-नमै ॥१९॥ ज्ञानं यथा त्वयि विभाति कृताऽवकाशं, नैवं तथा हरिहरादिषु नायकेषु तेजः स्फुरन्मणिषु याति यथा महत्त्वं, नैवं तु काच-शकले किरणाऽऽ कुलेऽपि ॥२०॥ मन्ये वरं हरिहरादय एव दृष्टा, दृष्टेषु येषु हृदयं त्वयि तोषमेति किं वीक्षितेन भवता भुवि येन नान्यः, कश्चिन्मनो हरति नाथ! भवान्तरेऽपि ॥२१॥ ducation सिद्धाचल गिरि नमो नमः - विमलाचल गिरि नमो नमः 73 Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीणां शतानि शतशो जनयन्ति पुत्रान्, नान्या सुतं त्वदुपमं जननी प्रसूता सर्वा दिशो दधति भानि सहस्ररश्मिं, _ प्राच्येव दिग्जनयति स्फुरदंशुजालम् ॥२२॥ त्वामामनन्ति मुनयः परमं पुमांस मादित्य-वर्ण-ममलं तमसः परस्तात् त्वामेव सम्यगुपलभ्य जयन्ति मृत्यु, नान्यः शिवः शिवपदस्य मुनीन्द्र! पन्थाः ॥२३॥ त्वामव्ययं विभु-मचिन्त्य-मसङ्ख्य-माद्यं, ब्रह्माणमीश्वर-मनन्त-मनङ्गकेतुम् योगीश्वरं विदितयोग-मनेक-मेकं, ज्ञान-स्वरूप-ममलं प्रवदन्ति सन्तः बुद्धस्त्वमेव विबुधार्चित-बुद्धि-बोधात्, त्वं शङ्करोऽसि भुवन-त्रय-शङ्करत्वात् धाताऽसि धीर! शिवमार्ग-विधे-विधानात्, व्यक्तं त्वमेव भगवन् ! पुरुषोत्तमोऽसि ॥२५॥ तुभ्यं नम-स्त्रिभुवनाऽऽर्तिहराय नाथ!, तुभ्यं नमः क्षिति-तलाऽमल-भूषणाय तुभ्यं नम-स्त्रिजगतः परमेश्वराय, तुभ्यं नमो जिन! भवोदधि-शोषणाय को विस्मयोऽत्र यदि नाम-गुणैरशेषैः, त्वं संश्रितो निरवकाशतया मुनीश! दोषै-रुपात्त-विविधाश्रय-जातगर्वैः, स्वप्नान्तरेऽपि न कदाचिद-पीक्षितोऽसि ॥२७॥ उच्चैरशोक-तरु-संश्रित-मुन्मयूख माभाति रूप-ममलं भवतो नितान्तम् स्पष्टोल्लसत्-किरण-मस्त-तमो-वितानं, बिम्बं रवेरिव पयोधर-पार्श्ववर्ति ॥२८॥ UMER O "सिद्धाचल गिरि नसो नगः - विमलाचल गिरि नमो नमः" 74 wwwjamindia Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिंहासने मणि- मयूख - शिखा-विचित्रे, विभ्राजते तव वपुः कनकावदातम् । बिम्बं वियदविलसदंशु-लता-वितानं, तुङ्गोदयाद्रि-शिरसीव सहस्ररश्मैः कुन्दावदात-चल-चामर - चारु - शोभं, विभ्राजते तव वपुः कलधौत-कान्तम् उद्यच्छशाङ्क- शुचि-निर्झर-वारि-धार मुच्चैस्तटं सुर-गिरेरिव शात- कौम्भम् छत्र-त्रयं तव विभाति शशाङ्क-कान्त मुच्चैः स्थितं स्थगित- भानुकर-प्रतापम् मुक्ताफल-प्रकर-जाल- विवृद्ध-शोभं, प्रख्यापयत्-त्रिजगतः परमेश्वरत्वम् उन्निद्र - हेम-नव-पङ्कज-पुञ्ज- कान्ति पर्युल्लसन्नख - मयूख-शिखाभिरामौ पादौ पदानि तव यत्र जिनेन्द्र ! धत्तः, पद्मानि तत्र विबुधाः परिकल्पयन्ति इत्थं यथा तव विभूतिरभूज्जिनेन्द्र !, धर्मोपदेशन-विधौ न तथा परस्य यादृक् प्रभा दिनकृतः प्रहतान्धकारा, श्च्योतन्मदाविल-विलोल- कपोल-मूल, मत्त-भ्रमद्-भ्रमरनाद-विवृद्ध-कोपम् ऐरावताभमिभमुद्धत-मापतन्तं, दृष्ट्वा भयं भवति नो भवदाश्रितानाम् तादृक् कुतो ग्रह-गणस्य विकाशिनोऽपि ॥३३॥ भिन्नेभ-कुम्भ-गलदुञ्ज्चल - शोणिताक्तमुक्ताफल-प्रकर-भूषित-भूमिभागः ॥२९॥ बद्धक्रमः क्रमगतं हरिणाधिपोऽपि, नाक्रामति क्रमयुगाचल-संश्रितं ते ॥३०॥ ॥३१॥ ॥३२॥ ॥३४॥ ॥३५॥ Jaitra dilaication Inten" सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः" 75 Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३६॥ ॥३७॥ ॥३८॥ कल्पान्त-काल-पवनोद्धत-वह्रिकल्पं, दावानलं ज्वलित-मुज्ज्वल-मुत्फुलिङ्गम् विश्वं जिघत्सुमिव सम्मुख-मापतन्तं, त्वन्नाम-कीर्तन-जलं शमयत्य-शेषम् रक्तेक्षणं समद-कोकिल-कण्ठनीलं, ___ क्रोधोद्धतं फणिन-मुत्फण-मापतन्तम् आक्रामति क्रमयुगेन निरस्त-शङ्क स्त्वन्नाम-नागदमनी हृदि यस्य पुंसः वल्गत्तुरङ्ग-गज-गर्जित-भीम-नादं, माजौ बलं बलवता-मपि भूपतीनाम् उद्यद्-दिवाकर-मयूख-शिखा-पविद्धं, त्वत्कीर्तनात्तम इवाशु भिदा-मुपैति कुन्ताग्र-भिन्न-गज-शोणित-वारिवाह वेगावतार-तरणाऽतुर-योधभीमे युद्धे जयं विजित-दुर्जय-जेय-पक्षा स्त्वत्पाद-पङ्कज-वनाश्रयिणो लभन्ते अम्भोनिधौ क्षुभित-भीषण-नक्रचक्र पाठीन-पीठभयदोल्बण-वाडवाग्नौ रङ्गत्तरङ्ग-शिखर-स्थित-यानपात्रा स्त्रासं विहाय भवतः स्मरणाद् व्रजन्ति उद्भूत-भीषण-जलोदर-भारभुग्नाः , शोच्यां दशा-मुपगता श्च्युत-जीविताशाः त्वत्पाद-पङ्कज-रजोऽमृत-दिग्धदेहा, मा भवन्ति मकर-ध्वज-तुल्यरूपाः आपाद-कण्ठ मुरु-शृङ्खल-वेष्टिताङ्गा, गाढं बृहन्-निगड-कोटि-निघृष्ट-जवाः त्वन्नाम-मन्त्र-मनिशं मनुजाः स्मरन्तः, सद्यः स्वयं विगतबन्ध-भया भवन्ति ॥३९॥ ॥४०॥ - ॥४१॥ ॥४२॥ lain Education International DARPiral cainelibrary.org सिद्भाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥४३॥ मत्त-द्विपेन्द्र-मृगराज-दवानलाहि, संग्राम-वारिधि-महोदर-बन्धनोत्थम् तस्याशु नाश-मुपयाति भयं भियेव, यस्तावकं स्तवमिमं मतिमानधीते स्तोत्रस्रजं तव जिनेन्द्र ! गुणैर्निबद्धां भक्त्या मया रुचिर-वर्ण-विचित्र-पुष्पाम् धत्ते जनो य इह कण्ठगता-मजस्रं तं मानतुङ्गमवशा समुपैति लक्ष्मीः ॥४४॥ प्रार्थना गीत आव्यो दादा ने दरबार, करो भवोदधिपार, खरो तुं छे आधार, मोहे तार तार तार आत्मगुण नो भंडार, तारा महिमा नो नहि पार, देख्यो सुंदर देदार, करो पार पार पार तारी मूर्ति मनोहार, हरे मन ना विकार, मारा हैया नो हार, वंदु वार वार वार आव्यो दहेरासर मोझार, को जिनवर जुहार, • प्रभु चरण आधार, खरो सार सार सार आत्म कमल सुधार, ताहरी लब्धिछे अपार, अनी खूबी नो नहि पार, विनति धार धार धार ५ । सूरि गुणरत्नसार, आवे अचलगढ मोझार, _करे विनंती अपार, मोहे तार तार तार सूरि रश्मिरत्नसार, गावे गुणला अपार, मुज आतम स्वीकार, अवगुण वार वार वार ७ Education InM सिद्धाचल गिरि नमो नमः " विमलाचल गिरि नमो नमः” 77 www jainelibrary.org Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीन स्तवन गीत 1ST TROTS शकणा 66 Jain Education Internatle "सिद्धाचल गिरे नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः" & 78 476 ww Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आदिनाथ भगवान के स्तवन सिद्धाचलना वासी, विमलाचल ना वासी, जिनजी प्यारा आदिनाथ ने वंदन हमारा ॥टेक॥ प्रभुजी नुं मुखुडं मलके, नयनो मांथी वरसे अमीरसधारा ॥ जिनजी प्यारा ॥१॥ प्रभुजी - मुखडुं छे मन को मिलाकर, दिल में भक्ति की ज्योत जगाकर भज ले प्रभु ने भावे, दुर्गति कदी न आवे ।। जिनजी प्यारा ॥२॥ भमीने लाख चौरासी हूं आव्यो, पुण्ये दर्शन तमारा हूं पायो, धन्य दिवस मारो भवना फेरा टालो । जिनजी प्यारा ॥३॥ अमे तो मोह माया ना विलासी, तुमे तो मुक्तिपुरी ना वासी, कर्म बंधन कापो मोक्ष सुख आपो । जिनजी प्यारा ॥४॥ अरजी उरमां धरजो हमारी, अमने आशा छ प्रभुजी तुम्हारी, कहे हर्ष हवे साचा स्वामी तुमे, पूजन करीए अमे ॥ जिनजी प्यारा ॥५॥ Ja Education FOpersonal&PainteUse Only" * विमलाचल ागार नमो नमः 79 Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम जिनेश्वर प्रणमीओ, जास सुगंधी रे काय; कल्पवृक्ष परे तास, ईंद्राणी नयन जे, भंग परे लपटाय. ३ रोग उरग तुज नवि नडे, अमृत जे आस्वाद; तेहथी प्रतिहत तेह, मान कोई नवि करे, जगमां तुमशु रे वाद. वगर धोई तुज निरमली, काया कंचनवान; नहीं प्रस्वेद लगार, तारे तुं तेहने जे धरे ताहरू ध्यान. राग गयो तुज मन थकी तेहमां चित्र न कोय; रूधिर आमिषथी, राग गयो तुज जन्मथी। दूधसहोदर होय. श्वासोश्वास कमल समो, तुज लोकोत्तर वात; देखे न आहार निहार, चरम चक्षु धणी अहवा तुज अवदात. चार अतिशय मूलथी, ओगणीस देवना कीधः। कर्म खप्याथी अग्यार, चोत्रीस अम अतिशया, 'समवायांगे' प्रसिद्ध. जिन उत्तम गुण गावतां, गुण आवे निज अंग; - "पद्मविजय" कहे अह, समय प्रभु पालजो, जिम थाउं अक्षय अभंग. ७ DOOOG 900 A POOOS CaODOG GC नमो नमामलाचलगार नमो नम OF Personal data re Only P8A Maintamailo oweja ellesa Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AUT श–जय तीर्थाधिपति श्री आदिनाथ भगवान For Personal & Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जगजीवन जगवाल हो, मरुदेवी नो नंदलाल रे, मुख दीठे सुख उपजे, दर्शन अतिही आनंद लाल रे । जग...०१ आंखडी अंबुज पांखडी, अष्टमी शशी सम भाल लाल रे, वदन ते शारद चंदलो, वाणी अतिही रसाल लाल रे । जग...०२ लक्षण अंगे विराजतां, अडहिय सहस उदार लाल रे, रेखा कर चरणादिके, अभ्यंतर नही पार लाल रे । जग...०३ इंद्र चंद्र रवि गिरितणा, गुण लही घडीयुं अंग लाल रे, भाग्य किहां थकी आवीयुं, अचरिज ऐह उत्तंग लाल रे । जग...०४ गुण सघला अंगी कर्या, दूर कर्या सवि दोष लाल रे, वाचक 'जशविजये' थुण्यो, देजो सुखनो पोष लाल रे। जग...०५ गरि नमो नम: विमलाचल शिरिन For Personal & Private Use Only 82 Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 माता मरुदेवीना नन्द, देखी ताहरी मूरति मारूं मन लोभापुंजी के मारूं चित्त - चोरां जी | करूणानागर करूणा - सागर, काया- कंचन - वान । धोरी - लंछन पाउले कांई, धनूष पांचसे मान त्रिगडे बेसी धर्म कहता, सुणे पर्षदा बार । योजनगामिनी वाणी मीठी, वरसन्ती जलधार उर्वशी रूडी अपछराने, रामा छे मनरंग । पाये नेउर रणझणे कांई, करती नाटारम्भ तुंही ब्रह्मा, तुंही विधाता, तुंही जगतारणहार । तुज सरीखो नहि देव जगतमां, अरवडिया आधार तुंही भ्राता, तुंही त्राता, तुंही जगतनो देव । सुर-नर- किन्नर - वासुदेवा, करतां तुज पद सेव श्रीसिद्धाचल तीरथ केरो, राजा ऋषभ जिणंद । कीर्ति करे माणेकमुनि ताहरी, टालो भवभय फंद Jain Education internalाचल गिरि नमो नमor लाल मिनिमो नमः" ... माता १ ... माता २ ... माता ३ .माता ४ ... माता ५ ... माता ६ 83 Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 दादा आदीश्वरजी दूर थी आव्यो दादा दरिशन द्यो । कोई आवे हाथी घोड़े, कोई आवे चढे पलाणे; कोई आवे पग पाले, दादा ने दरबार शेठ आवे हाथी घोड़े, राजा आवे चढ़े पलाणे; हूं आवुं पगपाले, दादा ने दरबार कोई मूके सोना रूपा, कोई मूके महोर; कोई मूके चपटी चोखा, दादा ने दरबार शेठ मूके सोना रूपा, राजा मूके महोर; हूं मूकुं चपटी चोखा, दादा ने दरबार कोई मांगे कंचन काया, कोई मांगे आंख; कोई मांगे चरणो नी सेवा, दादा ने दरबार पांगलो मांगे कंचन काया, आंधलो मांगे आंख; हूं मागूं चरणोनी सेवा, दादा ने दरबार हीर विजय गुरु हीरलो ने, वीर विजय गुणगाय; शत्रुंजय ना दरिशन करता, आनंद अपार “सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः" 糖 For Personal & Private Use Only 84 9 ६ ७ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ tu बालपणे आपण ससनेही, रमता नव नव वेशे । आज तमे पाम्या प्रभुताई, अमे तो संसारनिवेशे हो, प्रभुजी ओलंभडे मत खीजो जो तुम ध्यातां शिवसुख लहीये, तो तुमने केइ ध्यावे । पण भवस्थिति परिपाक थया विण, कोई न मुक्ति जावे हो प्रभुजी सिद्ध निवास लहे भवसिद्धि तेमां शो पाड तुमारो । जो उपगार तुमारो वहिये, अभव्यसिद्धने तारो हो प्रभुजी ज्ञानरतन पामी एकांते थई बेठा मेवासी। ते मांहेलो एक अंश जो आपो, ते वाते शाबाशी हो प्रभुजी अक्षय पद देतां भविजनने, संकीर्णता नवि थाय । शिव पद देवा जो समरथ छो, - तो जश लेतां शु जाय हो प्रभुजी। सेवागुण रंजो भविजनने, जो तुमे करो वडभागी । तो तुमे स्वामी केम कहेवाशो, निर्मम ने नीरागी हो, प्रभुजी नाभिनंदन जगवंदन प्यारो, जगगुरु जग जयकारी । रूप विबुधनो मोहन पभणे, वृषभलंछन बलिहारी हो प्रभुजी ARTIC000000000000000000 . Per Private Use Only "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल सिरि नमो नमः 85 Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ तुम दरिसण भले पायो, प्रथम जिन तुम. ॥टेक।। नाभिनरेसर नंदननिरुपम, माता मरुदेवा जायो आज अमीरस जलधर वुठ्यो, मानु गंगाजले नाह्यो । सुरतरु सुरमणि प्रमुख अनुपम, ते सवि आज में पायो युगला धर्म निवारण तारण, जग जस मंडप छायो । प्रभु तुज शासन वासन समकित, अंतर वैरी हठायो कुदेव कुगरु कुधर्म निवासे, मिथ्यामतमें फसायो । में प्रभु आजथी निश्चय कीनो, सवि मिथ्यात्व गमायो बेर बेर करूं विनति इतनी, तुम सेवा रस पायो । ज्ञान विमल प्रभु साहिब नजरे, समकित पूरण सवायो ३ ४. ५ बालुडो निस्नेही थई गयो रे, छोड्युं विनीतानुं राज, संयम रमणी आराधवा लेवा मुक्तिनुं राज, मेरे दिल बसी गयो वालमो माता ने मेल्या ऐकला रे, जाय दिन नवि रात, रत्न सिंहासन बेसवा, चाले अडवाणे पाय वहालानुं नाम नवि विसरे झरे आंसुडानी धार, आंखलडीये छाया वली, गया वर्ष हजार केवल रत्न आपी करी रे, पूरी मातानी आश, समवसरण लीला जोईने, साध्या आतम काज भक्तवत्सल भगवंतने रे नमे निर्मल काय, आदि जिणंद आराधतां, महिमा शिव सुख थाय w FORE-RELESED "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः" "86 jainelibrary.org Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऋषभदेव हितकारी जगत गुरु ऋषभदेव हितकारी, प्रथम तीर्थंकर प्रथमनरेसर, प्रथम यति व्रतधारी वरसीदान देई तुम जग में, इलति इति निवारी, तैसी काही करत नाहि करुणा, साहिब बेर हमारी मागत नहि हम हाथी घोडे, धन कन कंचन नारी, दीओ मोहे चरणकमलकी सेवा, याहि लागत मोहे प्यारी ३ भवलीला वासित सुर डारे, तुम पर सबही उवारी, मैं मेरो मन निश्चय कीनो, तुम आणा शिरधारी ऐसो साहिब नहि कोई जगमें, यासुं होय दिलधारी, दिलही दलाल प्रेम के बीचमें तिहां हठ खेंचे गमारी तुमहो साहिब में हुं. बंदा, या मत दीओ विसारी, श्रीनयविजय विबुधसेवक के, तुम हो परम उपकारी 1 . ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम माहरो, और न चाहुं रे कन्त, रीझयो साहेब संग न परिहरे, भांगे सादि-अनन्त प्रीतसगाई रे जगमां सहुं करे, प्रीतसगाई न कोय, प्रीतसगाई रे निरुपाधिक कही, सोपाधिक धन खोय २ कोई कंत कारण काष्ठभक्षण करे, मिलशुं कन्तने धाय, ए मेलो नवि कदीए संभवे, मेलो ठम न ठय कोई पतिरंजन अति घणुं तप करे, पतिरंजन तन ताप, ए पतिरंजन में नवि चित धर्यु, रंजन धातु मिलाप कोई कहे लीला रे अलख (२) तणी, लख पूरे मन आश, दोष-रहितने लीला नवि घटे, लीला दोष विलास चित्तप्रसन्ने रे पूजन फल कडं पूजा अखण्डित एह, कपटरहित थई आतम अर्पणा, आनन्दघन पद रेह Jain Education Internal me"सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः' 87 Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पार्श्वनाथ जिन-चैत्यवंदन जय चिंतामणि पार्श्वनाथ, जय त्रिभुवन स्वामी; अष्ट कर्म रिपु जीतीने, पंचमी गति पामी. प्रभु नामे आनंद कंद, सुख संपत्ति लही); प्रभु नामे भव भयतणां, पातक सब दहीओ. ॐ ह्रीं वर्ण जोडी करी, जपीओ पारस नाम; विष अमृत थई परिणमे,लहीओ अविचल ठाम. ३ स्तवन अब मोहे, ऐसी आय बनी... श्री शंखेश्वर पार्थ जिनेश्वर, मेरे तू एक धनी तुम बिन कोउ चित्त न सुहावे, आवे कोडी गुणी; मेरो मन तुझ ऊपर रसियो, अलि जिम कमल भणी तुम नामे सवि संकट चूरे, नागराज धरनी; नाम जपुं निशि वासर तेरो, ऐ मुझ शुभ करनी कोपानल उपजावत दुर्जन, मथन वचन अरनी; नाम जपुं जलधार तिहां तुझ, धारुं दुःख हरनी मिथ्यामति बहुजन है जग में, पद न धरत धरणी; उनको अब तुझ भक्ति प्रभावे, भय नही एक कणी सज्जन नयन सुधारस अंजन, दुर्जन रवि भरणी; । तुझ मूरती निरखे सो पावे, सुख जश लील धनी थोय पास जिणंदा वामानंदा, जब गरभे फली, सुपना देखे अर्थ विशेषे, कहे मघवामली; जिनवर जाया सुर हुलराया, हुआ रमणि प्रिये, नेमिराजी चित्त विराजी, विलोकित व्रत लीये. तरि नमो नम गिरि नमो नमः * विमलाचलगानमा For Personal & Private Use Only 88 Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Invasioश्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान NPAARATAYAT R ane सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” 89 Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पार्श्वनाथ भगवान स्तवन 1 तुं प्रभु मारो हुं प्रभु तारो, क्षण ओक मुजने नाहि विसारो; महेर करी मुज विनंती स्वीकारो, स्वामी सेवक जाणी नीहाळो. तुं प्रभु० १ लाख चोराशी भटकी प्रभुजी, आव्यो हुं तारे शरणे जिनजी; दुरगति कापो शिवसुख आपो, भक्त-सेवकने निज पद स्थापो. तुं प्रभु० २ अक्षय खजानो प्रभु तारो भर्यो छे, आपो कृपालुं में हाथ धर्यो छे; वामानंदन जगवंदन प्यारो, देव अनेरा मांहे तुं न्यारो. तुं प्रभु० ३ पल पल समरुं नाथ शंखेश्वर, समरथ तारण तुं हि जिनेश्वर; प्राण थकीतुं अधिको वहालो, Education International दया करी मुजने नेहे निहालो. तुं प्रभु० ४ भक्त वत्सल तारुं बिरुद जाणी, केड न छोडुं ओम लेजो जाणी; चरणोनी सेवा नित नित चाहुं, घडी घडी मनमांहे उमाहुं. तुं प्रभु० ५ “ज्ञानविमल" तुज भक्ति प्रभावे, भवोभवनां संताप शमावे; अमीय भरेली तारी मूरति निहाली, पाप अंतरना देजो पखाली. 'सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः" तुं प्रभु० ६ 90 Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2 फूलडा ने शामल जेवो रंग । राधा जेवा आज तारी आंगी नो कांई रूडो बन्यो छे रंग, प्यारा पासजी हो लाल, दीनदयाल मुने नयणे निहाल जोगी वाडे जागतो ने मातो धिंगडमल्ल । शामलो सोहामणो कांई, जीत्या आठे मल्ल । प्यारा. तूं छे मारो साहिबो ने हुं हुं तारो दास । 1 आश पूरो दासनी कांई सांभली अरदास । प्यारा. देव सघला दीठा तेमां, एक तूं अवल्ल । लाखेणुं छे लटकं ताहरं देखी रीझे दिल्ल प्यारा. कोई नमे पीरने ने, कोई नमे राम । उदयरत्न कहे प्रभुजी, मारे तुमसुं काम । प्यारा. “सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” 91 For Personal & Private Use Only 9 Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ OCOCCOOOK ४ERA R प्यारो-प्यारो रे, हो व्हाला मारा पास जिणंद मने प्यारो, तारो तारो रे, हो व्हाला मारा भवनां दुःखडा वारो ।। काशीदेश वाराणसी नगरी, अश्वसेन कुल सोहियेरे, पार्थ जिणंदा वामानंदा मारा व्हाला देखत जनमन मोहिये । प्यारो-प्यारो ||१|| छप्पनदिक्कुमरी मली आवे, प्रभुजी ने हुलरावे रे, थेई-थेई नाच करे मारा व्हाला, हरखे जिन गुण गावे । प्यारो-प्यारो ।।२।। कमठ हठ गाल्यो प्रभु पार्श्वे बलतो उगार्यो फणी नागरे, दियो सार नवकार नागकुं, धरणेन्द्र पद पायो । प्यारो-प्यारो ॥३॥ दीक्षा लई प्रभु केवल पायो, समवसरण में सुहायो रे, दिये मधुरी देशना प्रभुजी चौमुख धर्म सुणायो । प्यारो-प्यारो ॥४॥ कर्म खपावी शिवपुर जावे, अजरामर पद पावे रे, ज्ञान अमृतरस फरसे मारा व्हाला, ज्योति से ज्योति मिलावे । प्यारो-प्यारो ॥५॥ सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः 921 For Personal & Private Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ +HAB888888888 तारा नयनां रे प्याला प्रेमना भर्या छे अमीछांटना भर्या छे, दया रसना भर्या छ । जे कोई ताहरी नजरे चढी आवे, कारज तेहनां ते सफल कर्या छ ।। तारा०१ प्रगट थई पातालथी प्रभु ते, जादवना दुख दूर कर्या छे. तारा०२ पन्नगपति पावकथी उगार्यो, जनम मरण भय तेहना हर्या छे. तारा०३ पतित पावन शरणागत तुंही, दर्शन दीठे मारा चित्तडां ठा छे. तारा०४ श्री शंखेश्वर पार्थजिनेसर, तुज पद पंकज आजथी धर्या छे. तारा०५ जे कोई तुजने ध्याने ध्यावे, अमृत सुख तेणे रंगथी वर्या छे. तारा०६ कस KAR - "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः 93 Jain Education Internationis For Personal & Private Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समय समय सो वार संभालं, तुजशुं लगनी जोरे रे, मोहन मुजरो मानी लीजे, ज्युं जलधर प्रीति मोर रे समय०१ माहरे तन धन जीवन तुंही, ऐहमां झूठ न जानो रे, अंतरजामी जगजन नेता, तं किहां नथी छानो रे. समय०२ जेणे तुजने हियडे नवि धार्यो, तास जनम कुण लेखे रे, काचे राचे ते नर मूरख, रतनने दूर उवेखे रे. समय०३ सुरतरु छाया मूकी गहरी, बाऊन तले कुण बेसे रे, ताहरी ओलग लागे मीठी, किम छोडाय विशेषे रे. समय०४ वामानंदन पास प्रभुजी, अरजी चित्तमां धारो रे, रूप विबुधनो मोहन पभणे, निज सेवक करी जाणो रे. समय०५ "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः" 94 Japanemalod Hororeparadivalapesony Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6 अखियां हरखण लागी, हमारी अखियां हरखण लागी, दरिसण देखत पास जिणंदको, भाग्य दशा अब जागी. हमारी० १ अकल अरूपी और अविनाशी, जगजनने करे रागी. “सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” 95 हमारी० २ शरणागत प्रभु तुम पयपंकज, सेवना मुज मन जागी. लीलालहेर दे निज पदवी, तुम सम को नही त्यागी. वामानंदन चंदन नी परे, शीतल तुं सोभागी. ज्ञानविमलं प्रभु ध्यान धरंता, भव भय भांवठ भागी. हमारी० ३ हमारी० ४ हमारी० ५ हमारी० ६ Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोयल टहंक रही मधुवन में, पार्श्व शामलीया वसो मेरे दिल में, काशी देश वाणारसी नगरी, जन्म लियो प्रभु क्षत्रियकुलमें. कोयल०१ बालपणां मां प्रभु अद्भुत ज्ञानी, कमठको मान हो एक पलमें. कोयल०२ नाग निकाला काष्ठ चिराकर. नागकुं सुरपति कीयो एक छीन में. कोयल०३ संयम लई प्रभु विचरवा लाग्या, संयमे भींज गयो एक रंग में. कोयल०४ समेतशिखर प्रभु मोक्षे सिधाव्या, पार्धजी को महिमा तीन जगत में. कोयल०५ उदयरतन की यही अरज है, दिल अटको तोरा चरण कमल में. कोयल०६ सिद्धाचल गिरि नमो लामः * विivate Use Onार नमो नमः 96ww.jainelibrary.or Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जय जय जय जय पास जिणंदा । अंतरिक्ष प्रभु त्रिभुवन तारण, भविक कमल उल्लास दिणंदा. 8 तेरे चरण शरण में कीनो, परम पुरुष परमारथदर्शी, तुं दिये भविककुं परमानंदा. तुम बिन कुण तोरे भवफंदा, तुं नायक तुं शिवसुख-दायक, तुं हितचिंतक तुं सुखकंद, तुं जनरंजन तुं भयभंजन तुं केवल कमला गोविंदा कोड देव मिलके कर न सके, एक अंगूष्ठ रूप प्रतिछंद, ऐसो अद्भुत रुप तिहारो, वरषत मानुं अमृतके बुंद. मेरे मन मधुकर के मोहन, तुम हो विमल सदल अरविंद, नयन चकोर विलास करत है, देखत तुम मुख पूनमचंद. 66 दूर जावे प्रभु तुम दरिशनसे, दुख दोहग दारिद्र अघदंद, वाचक जस कहे सहस फलत है, जे बोले तुम गुण के वृंद. "सिद्धाचल गिरि नमो नमः, विमलाचलु गिरि नमो नमः For Pers Private जय० १ जय० २ जय० ३ जय० ४ जय० ५ जय० ६ 97 Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुखदाई रे सुखदाई रे, हो दादो पासजी सुखदाई । ऐसो साहिब नहि कोउ जगमें, सेवा कीजे दिल लाई. हो दादो० १ सब सुखदायक ऐहिज नायक, ऐहि सायक सुसहाई । किंकरकुं करे शंकर सरीसो, आपे अपनी ठकुराई. हो दादो० २ मंगल रंग वधे प्रभु ध्याने, पापवेली जाऐ करमाई । शीतलता प्रगटे घट अंतर, मीटे मोहकी गरमाई. हो दादो०३ कहाँ कहें सुरतरु चिंतामणिकुं, जो में प्रभु सेवा पाई । श्री जसविजय कहे दर्शन देख्यो, घरआंगन नव निधिआई. हो दादो० ४ Ainternational "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः' 98 dainelibraron Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 श्री चिन्तामणि पासजी, दादा चात सुणो एक मोरी रे, मारा मनना मनोरथ पूरजो, हुतो भक्ति न छोडुं तोरी रे. मारी खिजमतमां खामी नहि, ताहरे खोट न कांई खजाने रे, हवे देवानी शी ढील छे, कहेवुं ते कहीऐ थाने रे. तमे उरण सवि पृथ्वी करी, धन वरसी वरसीदाने रे, मारी वेला शुं एहवा, दीयो वांछित वालो वानो रे. हुं तो केड नहि छोडुं ताहरी रे, आप्या विण शिवसुख स्वामी रे, मूरख ते ओछे मानशे, चिन्तामणि करतल पामी रे. मत कहेशो तुज कर्मे नथी, कर्मे छे तो तुं पाम्यो रे, मुज सरिखा कीधा मोटका, कहो तेणे कांई तुज थाम्यो रे काल स्वभाव भवितव्यता, ऐ सघला तारा दासो रे, मुख्य हेतु तुं मोक्षनो, ऐ मुजने सबल विश्वासो रे अमे भक्ते मुक्तिने खेचशुं, जिम लोहने चमक पाषाणो रे, तु जे हसीने देखशो, कहेशो सेवक छे सपराणो रे भक्ति आराध्या फल दिए, चिन्तामणि पण पाषाणो रे, वली अधिकं कांई कहावशो, ऐ भद्रक भक्ति ते जाणो रे. बालक ते जिम तिम बोलतो, करे लाड तातने आगे रे, ते तेहशुं वांछित पूरवे बनी, आवे सघलुं रागे रे. माहरे बननारुं ते बन्युं ज छे, हुं तो लोकने वात शीखावुं रे, वाचक जस कहे साहिबा, ऐ रीते तुम गुण गावुं रे. " सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” 99 For Personal & Private Use Only Wah Educate international १० www.jainenbrary Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पार्श्व जिणंदा माता वामाजी के नंदा, तुम पर वारी जाउं घोल घोल रे... हारे दरवाजे तेरे खोल खोल रे, हम दर्शन को आये दौड दौड रे... पूजा करूंगा मैं तो धूप धरूंगा, फूल चढाउं बहु मोल मोल रे... तूं मेरा ठाकर मैं तेरा चाकर, एक वार मोशुं बोल बोल रे..... शंखेश्वर मंडन सुंदर मूरत, मुखडं ते झाकम झोल झोल रे... रूप विबुधनो मोहन पभणे, रंग लाग्यो चित्त चोल चोल रे...' 12 मेरे साहिब तुमही हो, प्रभु पास जिणंदा । खिजमतगार गरीब हूं, मैं तेरा बंदा । मेरे० १ में चकोर करुं चाकरी, जब तुमही चंदा । चक्रवाक में हुई रहूं, जब तुमही दिणंदा ॥ मेरे० २ मधुकर परे मैं रणझणुं, जब तुम अरविंदा । भक्ति करूं खगपति परे, जब तुम गोविंदा ॥ मेरे० ३ तुम जब गर्जित धन भये, तब में शिखिनंदा, तुम जब सायर मैं तदा, सुरसरिता अमंदा ॥ मेरे० ४ दूर करो दादा पासजी, भव-दुखका फंदा, वाचक जस कहे दासकुं, दियो परमानंदा ॥ मेरे० ५ ००० "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः" 100 Jain Education international Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 13 ३ पासजी तोरा पाय पलक में छोड्यां रे नवि जाय पलकमें, छोड्यां रे नवि जाय... साहिबा तुमरो लगन लगी ! लगी लगी अंखीयाने रही रे लोभाय, दुनियामां दूजो कोई आवे न दाय आछी आछी अंगीयाने रंग अनुप, अजब बन्युं छे साहिबा आजनुं रूप शिर काने कर हैये सोहे उदार, मुगुट - कुंडल - बाजुबंधने हार तुज पद पंकज मुज मन भंग, चित्तमा लाग्यो रे साहिबा चोलनो रंग देवाधिदेव तुं तो दीनदयाल, त्रिभुवननायक तुजने नमुं त्रणकाल लंबी लंबी बाहुडीने बडे बडे नैन, सुरतरु सरिसा साहिबा शिवसुख दैन जुनी जुनी मूरतीने ज्योत अपार, सूरत देखीने प्रभुजी मोह्यो संसार सत्तरसे अॅशी समेने चैंतर मास, पूरण मासे पहोंती पूरण आश 'उदयरतन' वाचक वदे मम, पार्श्वशंखेश्वर जोतां वाध्यो छे प्रेम Lar Jain Edition Fon Personal & Private Use Only *विमलाचल गिरि नमो नमः 101 Nawaisivibraryptd सिद्धाचल G Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * * * गुजराती भक्ति गीत Jain ducation International For Personal & Private Use D oran-ore REAS Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृपा करो कृपा करो... आदिनाथ० १ आदिनाथ०२ आदिनाथ०३ कृपा करो कृपा करो कृपा करो रे, आदिनाथ दादा मोपे, कृपा करो रे; तारी कृपाए मारा काज सरो रे... अचलगढ़ तीर्थना सांई सोहामणा, देवाधिदेव करो दिलमां पधरामणा; अंतर पधारी मारुं श्रेय करो रे... भवनी गलीनो हुँ तो भूडो भिखारी, रुडा हे नाथ ! तारी करूं आज यारी, शिवपुरना वासी मने याद करो रे.. तारे ने मारे नाथ अंतर झाझे, आवो अंतर तो मारा पापो विखेळं, पापो विखेरी दिल आवी मलो रे... तारो विरह मारा दिलडाने डंखतो, तेथी तमारुं दर्श दिलथी हुं झंखतो, मोघेरी झंखनाने पूर्ण करो रे... मंथन स्वरुप तारी यात्राना भावथी, टलसे वियोग तारो तारा सद्भावथी, मलवा एकांते मने आवी मलो रे... प्रेमे सकल संघ साथ तने वंदतो, गुणरत्नसूरि तारो भक्त आनंदतो, सकल संघ तणी पीड हरो रे... आदिनाथ०४ आदिनाथ०५ आदिनाथ०६ आदिनाथ०७ For Rersonal Private Use Only " सिर गिरि नमोना विमल गिरि नीम .03 Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रभु ए विनंति.... प्रभु ए विनंति हवे तो स्वीकारो, नथी गमतुं भवमां हवे तो उगारो, कदी क्रोधना तो वादल चढे छे; समजना सूरजने ते आवरे छे... समीर थई क्षमाना हवे तो पधारो... कदी मान हाथी आवी चढे छे; विनयना शिखरथी गबडावी दे छे... समर्पणनी सरगम बनीने पधारो... कदी तो कपटना कांटा उगे छे; निखालस विचारोना फूलो वींधे छे... माली बनीने हवे तो पधारो... लालसानो सागर तूफाने चढे छे; तप अने त्यागना वाहणो डूबे छे... सुकानी बनीने हवे तो पधारो.... आत्मकमलमां जो तूं पधारे; जीवननी नैया पहोंचे किनारे... करुणा करीने हवे तो पधारो... छेल्ली विनंति प्रभुजी तमोने; विसारीना देशो भक्तजनोने... श्वासोनी धडकन बनीने पधारो... For Personal & Private Use Only प्रभु० १ प्रभु० २ प्रभु० ३ प्रभु० ४ प्रभु० ५ प्रभु० ६ प्रभु० ७ Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तारे शरणे आव्यो छु... तारे शरणे आव्यो छु, स्वीकारी ले; पछी लई जा प्रभु तारा धाममां. तारे० १ तारा दर्शन विण चेन न आवे; घडी घडी नाथ तारो विरह सतावे; (२) हुं अही सबई ने तूं त्यां बिराजे छे, क्यांय आq ते होतुं हशे प्रेममां. तारे०२ तारा विण स्वामी मुजथी एकलुं रहेवाय ना; वियोगनी वसमी घडीओ मुजथी गणायना; (२) पकड्यो पालव छे पानु निभावी ले... तारे० ३। तारी मारी प्रीतडी छे जुगजुग पुराणी; तारी मारी प्रीतनी आ अमर कहानी; (२) । क्यारे मलq छे ए तूं जणावी दे... तारे० ४ अंतरनी वात मारे कोने जईने कहेवीः । हैयानी वेदना मारे केम करी सहेवी; (२) । अंतर्यामी छे प्रतीति करावी दे... तारे० ५ क्यारे मले नाथ, तूं, जोऊतारी वाटडी, रोईने राती थई छे, हवे मारी आँखडी; (२) सकलसंघनी विनंती तुं मानी ले... तारे० ६ 'सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः 105 For Pet Privatise www. org Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारा व्हाला प्रभू... मारा व्हाला प्रभु, क्यारे मलशो तमे, मारी आशा पूरी, क्यारे करशो तमे... करुणासागर, बिरुद छे तमाळं प्रभु-(२) करुणा करशो, ए आश धरु हुँ प्रभु-(२) रात-दिवस हुं, समरूं छु प्रभु तुझने, मारी आशा... मारी कबुलात छे के, पतित हतो हुँ - (२) पण पतितोने तारनारो, एक ज छे तुं - (२) पतित पावन बनी, क्यारे आवशो तमे, मारी आशा... तुझने निरखी शकुं, एवी दृष्टि तुं दे - (२) तुझने ओलखी शकुं, एवी शक्ति तुं दे - (२) तारी छाया नी मायामा रहेQ गमे, मारी आशा... प्रभु ! ते मने जे आप्युं छे... प्रभु ते मने जे आप्युं छे, एनो बदलो हुं शे वालुं बस तारी भक्ति करी करीने, मारा मनडाने वालं... प्रभु नरक निगोदथी ते तार्यो, मने अनंत दुःखोथी उगार्यो तारा उपकारो अनंता छे... तुज द्वारे पहोंच्यो तारी कृपा, तुज शासन पाम्यो तारी कृपा __ जिन धर्म तणी बलिहारी छे... प्रभु मोक्षनगरनो सथवारो, हुं मोहनगरमा वसनारो तुं भवोभवनो उपकारी छे... २ Jain Ecocalon International "सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः” 1060 Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारुं आयखं खूटे जे घडीए... मारु आयखं खूटे जे घडीए; त्यारे मारा हृदयमां पधारजो; छे अरजी तमोने दादा एटली; मारा मृत्युने स्वामी सुधारजो छे अरजी०१ जीवननो ना कोई भरोसो; दोडा दोडीना आ युगमां; अंतरियाले जईने पहुं जो, ओचिंता मृत्युना मुखमां; त्यारे मारा स्वजन बनी आवजो; थोडा शब्दो धर्मना सुणावजो ____छे अरजी०२ दर्दो वध्या छे आ दुनियामां, मारे रिबावी रिबावीने; एवी बिमारी जो मुझने सतावे, छेल्ली पलोमां रडावीने; त्यारे मारी मददमां पधारजो, पीडा सहेवानी शक्ति वधारजो छे अरजी०३ जीवq थोडं ने जंजाल झाझी, एवी स्थिति आ संसारनी; छूटवा दे ना मरती वेलाओ, चिंता मने जो परिवारनी; त्यारे वीवो तमे प्रगटावजो, मारा मोह तिमिरने हटावजो छे अरजी०४ For Personal & Private Use Only "रिमाल गिरि माविमलाचल गिरि नमो नमः" 107 Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7 दूरदूरथी तारा दरबारे आव्यो... दूरदूरथी तारा दरबारे आव्यो, आदिनाथ दादा तारा दरबारे आव्यो, दर्शन करवाने हुं तो अचलगढ़ आव्यो, दर्शन देजो दादा रे (२)... दादा रे दादा रे दादा रे.. तुं छे समर्थ दादा एवं में जाण्युं, हुं छं अज्ञानी कांई बधुना हुं जाणुं, आव्यो हुं तारे द्वारे, हैयामां धरी हाम, वलशे मुजने निरांत, हवे थावुं ना निराश, एवा एवा मनसुबा घडी हुं तो आव्यो, पूरजो पूरजो दादा रे (२)... दादा रे दादा रे दादा रे.. जन्मो जनमथी दादा मुजने तुं जाणे, कहे शुं जगने आज, तारी मारी आ छे बात, साचवजे मुजने नाथ, विनंती छे मारी आज, अंतरनी प्रार्थना तुं जाणे अजाणे, सुणजो सुणजो दादा रे (२)... दादा रे दादा रे दादा रे.. करने कसोटी हवे बंद मारा दादा, कर्मोना लेख हवे बदल मारा दादा, सहेवानी शक्ति खूटी, जीवननी आशा तूटी, लोक जाय लाज लूटी, हवे मारी धीरज खूटी, रडतो रझलतो हुं तो तारे द्वारे आव्यो, गुणरत्नसूरि दादा तारे द्वारे आव्या, तारजो तारजो दादा रे... आवजो आवजो दादारे... पूरजो पूरजो दादा रे... दादा रे दादा रे दादा रे.. दूरदूरथी.... Jain Education, Internationals दूरदूरथी ... दूरदूरथी... दूरदूरथी... गत सिद्धाचल गिरि नर्मो विमला मिरिमो नमः” 108 Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आंखडी मारी प्रभु हरखाय... आंखडी मारी प्रभु ! हरखाय छे, ज्यां तमारा मुखना दर्शन थाय छे... आंखडी मारी... पग अधीरा दोडता देरासरे (२) द्वारे पहोंचु त्यां अजंपो थाय छे.. ज्यां०१ देवनुं विमान जाणे उतर्यु (२) । एवं मंदिर आपनुं सोहाय छे... ज्यां०२ चांदनी जेवी प्रतिमा आपनी (२) तेज एनुं चोतरफ फेलाय छे... ज्यां०३ मुखडं जाणे पुनमनो चंद्रमा (२) दिलमां तो ठंडक अनेरी थाय छे.. ज्यां०४ बस तमारा रुप ने निरख्या करुं (२) । लागणी एवी हृदयमां थाय छे... ज्यां० ५ हे शंखेश्वर स्वामी... हे शंखेश्वर स्वामी, प्रभु जग अंतर्यामी, तमने वंदन करीए, शिव सुखना स्वामी. हे शंखेश्वर... मारो निश्चय एक ज स्वामी, बर्नु तमारो दास (२) तारा नामे चाले, मारा श्वासोश्वास... | हे शंखेश्वर० १ दुःख संकट ने कापो स्वामी वांछितने आपो (२) पाप अमारा हरजो, शिव सुखने देजो... - हे शंखेश्वर०२ निशदिन हुं मांगुं छु, स्वामी तुम चरणे रहेवा (२) ध्यान तमारुं ध्या, स्वीकारजो सेवा... हे शंखेश्वर०३ रात दिवस झंखु छु, स्वामी तमने मलवाने (२) आतम अनुभव मांगु, भव दुःख टलवाने... हे शंखेश्वर०४ करुणाना छो सागर स्वामी, कृपा तणा भंडार (२) त्रिभुवनना छो नायक, जगना तारणहार...- हे शंखेश्वर०५ Jin Education Internationel सिद्धाचल For Personal & Private Use Only र नमो नमः * विमलाचल गार नमो नमः 1091 www.jainelibrary.og Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तारे द्वारे आवीने... तारे द्वारे आवीने कोई, खाली हाथे जाय ना, करुणानिधान... कृपानिधान आ दुनियामां कोई नथी रे, तुझ सरीखो दातार, अपरंपार दया छे तारी, तारा हाथ हजार, तारी ज्योति पामीने कोई, अंधारे अटवायना... करुणानिधान... कृपानिधान शरणे आवेलानो साचो, तुं छे तारणहार, डगमगती जीवन नैयानो, तुं छे रक्षणहार, तारा पंथे जनारो कदीये, भवरणमां अटवाय ना... करुणानिधान... कृपानिधान खूटे नहि कदापि एवो, तारो प्रेम खजानो, मुक्तिनो मारग बतलावे, एवो पंथ मजानो, तारे शरणे जे कोई आवे, रंक पणे रही जायना... करुणानिधान... कृपानिधान Jan Eddtione r somals Private Use Only "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः" 110 Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 11 तमे मन मूकीने वरस्या.... तमे मन मूकीने वरस्या, अमे जनम जनम ना तरस्या, तमे मूशल धारे वरस्या, अमे जनम जनम ना तरस्या. हजार हाथे तमे दीधुं पण, झोली अमारी खाली; ज्ञान खजानो तमे लूटाव्यो, तोये अमे अज्ञानी; तमे अमृतरूपे वरस्या, अमे झेर ना घुंटडा फरस्या. स्नेहनी गंगा तमे वहावी, जीवन निर्मल करवा; प्रेमनी ज्योति तमे जगावी, आतम उज्जवल करवा; तमे सूरज थई ने चमक्या, अमे अंधारा मां भटक्या. शब्दे शब्दे शाता आपे, एवी तमारी वाणी; ए वाणीनी पावनताने, अमे कदी ना पिछानी; तमे महेरामण थई उमट्या, अमे कांठे आवी अटक्या. 12 कहुं डुं शंखेश्वर पार्श्वजीनी... कहुं हुं शंखेश्वर पार्श्वजीनी वारता ए तो शरणे आवेलाने तारता... एनी मूर्ति छे मोहनगारी, भवोभवना ते दुःख हरनारी जेना दर्शने, देवताओ आवतां... व्हालो पातालमांथी पधारता, दुःखियाकुलना दुःख निवारता रुडा शंखेश्वर गामे बिराजता... दूर देशोथी यात्रालु आवतां, एनी भक्तिनी धून मचावता एना दरवाजे नोबत वागता... एना मुखडा उपर जाऊंवारी, नाग बलताने लीधो उगारी मारा शमणामां पार्श्वप्रभु आवतां... ए तो शरणे आवेलाने तारतां. For Pelgonal & Priveerdse Only “सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः" 11 तमे. तमे. . ए तो ए तो ए तो ए तो Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 13 मने व्हालुं लागे आदीश्वर नाम.... मने व्हालुं लागे आदीश्वर नाम, तन-मन-धन प्रभुना चरणोमां (२) प्रभुजीना गुणोनो पार नहीं आवे, (२) ध्यान धरूं त्यां सन्मुख आवे, (२) दीनजनोना नाथ छो, सेवकना रखवाल छो (२) तमे मारा चित्तडाना चोर, प्रभुजी अमारा हृदियामा रहेजो (२) आप आवीने मारो हाथ पकडजो (२) तमारो आधार छे, एक ज तारणहार छे (२) तन० Education Internation मने व्हालुं... 14 मारा प्रभुनी आँखे जोई... मारा प्रभुनी आँखे जोई, करुणानी धार रे... लई जाशे सहुने सिद्धशिला मोझार रे... ज्यारे वरसी करुणा, मंदिर केरा स्थानमां; मंदिर बनी गयुं समवसरण धामरे.... ज्यारे वरसी करुणा, अणु परमाणु पर; मंदिर मूर्तिमा थयो, प्रभु केरो वास रे... ज्यारे वरसी करुणा, मानवी ना मन पर; मन थयुं स्थिर धीर, पाम्या केवलज्ञान रे.... ज्यारे वरसी करुणा, नारकीना जीव पर; जीवो सहु शाता पामी, जाशे मुक्ति धाम रे... मने ०.... भक्तोनी लेजो रे संभाल, तन० मने०... भवसागरथी व्हाला अमने उगारजो (२) डुबती बेली ने व्हाला पार उतारजो (२) तमे भक्तोना बेली छो, हैये हेतनी हेली छे (२) सेवकनी लेजो रे संभाल, तन० मने० मारा० १ मारा० २ मारा० ३ मारा० ४ १ Personal & F Use Only 66 “सिद्धाचल गिरि नमो नमः : विमलाचल गिरि नमो नमः” 112 Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 15 तने रात दिवस हुं याद करूं... तने रात दिवस हुं याद करूँ, शंखेश्वर पारस नाथ प्रभु, तारा दर्शननी हुं आश करुं, मारा दिलनी तने शुं वात करूं ! तने रात०१ अन्तर्यामी जगविश्रामी, सहु जीवनो प्रभु तुं हितकामी; । कलिकालनो छे तुं कल्पतरूं, वीतराग प्रभु छो विघ्नहरूं. तने रात०२ मोहे घेर्या लोचन मारा, कीधा नहि में दर्शन तारा; एथी दुःखभर्यु जीवन मलियुं, बहु पाप करम मुझने नडीयु. तने रात०३ ओ दीन बन्धु करुणा सागर, शरणागतना स्नेह सुधाकर; स्वामी भक्त बनी नमतो तुजने, दुःख मुक्त तुरत करजे मुझने. तने रात०४ 16 मारी आंखोमां आदिनाथ आवजो... मारी आंखोमां आदिनाथ आवजो रे, हुं तो पापणनां पुष्पे वधावू, मारा हैयाना हार बनी आवजो रे, हुं तो पांपणनां पुष्पे वधावं... तमे मरूदेवीना जाया, त्रण लोकमां आप छवाया; मारा मनना (२) मंदिरमां पधारजो रे. हुं तो... भवसागर छे बहु भारी, झोला खाती आ नावडी मारी; नैयाना (२) सुकानी बनी आवजो रे... | हुं तो... मने मोहराजाए हराव्यो, मने मारग तारो भुलाव्यो; जीवनना (२) सारथि बनी आवजो रे... हुं तो... मारा दिलमा रह्या छो आप, मारा मनमां चाले छे तारो जाप; मारा मनना (२) मयूर बनी आवजो रे... हुं तो... Jain Education Internation For Perdelerivate Use Only naw "सिटाजल गिरि नमो नाम निपलान्चल गिरिजमो ना112 Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MORE 2060606860606060 THREWEREMEMEHERMERRE E सममा बधी मिल्कत... बधी मिल्कत तने धरूं तो पण, तारी करुणानी तोले ना आवे, तें मने प्यार जे को भगवंत, माराथी एनुं मूल ना थाये; जिंदगीभर तने भजु तो पण, तारी ममताने तोले ना आवे, तें मने प्रेम जे दीधो भगवंत, माराथी एनुं मूल ना थाये अनादि कालथी भटकवामां, कोई स्थाने मिलन थयुं तारुं, या तो उपदेश में सुण्यो तारो, जेने बदली दी, जीवन मारूं; भोमीया तो घणा मल्या मुझने, कोई प्रभु तारी तोले ना आवे, तें मने राह जे बताव्यो छे, माराथी एनुं मूल ना थाये । मने साची सलाह तें दीधी, एथी आचरण में कर्यु एजें, साची करणी करी कोई भवमां, आ भवे फल मने मल्युं एy; मारा उपकारी छे घणा जगमां, कोई प्रभु तारी तोले ना आवे, तें मने धर्म जे पमाड्यो छे, माराथी एनु मूल ना थाये मल्या छे जे सुखो मने आजे, ए बधा धर्मना प्रभावे छे, तारा चरणे बधुं धरी देतां, मने आनंद अति आवे छे; तारुं आ ऋण क्यारे चुकवाशे, मने अंदाज एनो ना आवे, भवोभव सेवना करूं तारी, तोए संतोष मुजने ना थाये ShaMEREL E MEENERYWHEREIMERENA thore Hieraternational a rvates सदाचल गिरि नमो नमःवमलाबल गार नमी नमः Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 696969606 60 १९९ 18 प्रभुजी मांगु तारी.... प्रभु मांगु तारी पास, मारी पूरी करजो आश मांगी मांगी मांगीने मांगु ओटलं, मने आवतो भव एवो आपजो... जन्म महाविदेहमां होय, वली तीर्थंकर कुळ पारणामां नवकार संभलाय जो... वर्ष आठमुंज होय, प्रभु समोसर्या होय. उमंगे व्याख्यान जवाय जो... सुतां वैराग्य जथाय, वली कोई आवे नहीं अंतराय जो... अनुज्ञा ली जाय प्रभु हाथे दीक्षा थाय, हजारो साथे लेवाय अने चौद पूरव भणाय जो ... जिनकल्पीपणुं होय, उग्र अभिग्रह होय, मास-मास क्षमण कराय जो... होय क्षपकश्रेणीए चढाय, घाती कर्म खपाय केवल ज्ञान उत्पन्न थई जाय जो... मानव जन्म मली जाय, ओवी करणी कराय अने मुक्ति पुरीमां जवाय जो... 060 9 मने... २ मने... ३ मने... ४ मने... ५ मने... ६ मने...७ enthral सिद्धाचल पिरि नये नमविलाचा शिति नमो नमः मने...८ 15 wwwsanelauery.org Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 19 देखी श्री पार्श्वतणी... देखी श्री पार्श्वतणी, मूरति अलबेलडी उज्जवल भयो अवतार रे, मोक्षगामी भवथी उगारजो शिवगामी भवथी उगारजो... मस्तके मुगुट सोहे, काने कुंडलीया गले मोतीनो हार रे... पगले पगले तारां गुणो संभारतां अंतरना विसरे उचाट रे... आपणा दरिशने आत्मा जगाड्यो ज्ञानदीपक प्रगटाव रे ... आत्मा अनंता प्रभु आपे उगारीया तारो सेवकने भवपार रे... 20 मारो धन्य बन्यो आजे अवतार... हे मारो धन्य बन्यो आजे अवतार के मल्या मने परमात्मा, करूं मोंघो ने मीठो सत्कार... श्रद्धाना लीलुडा तोरण बंधावु, भक्तिना रंगोथी आंगण सजावुं. हो... सजे हैयुं सोनेरी शणगार... प्रीतिना मघमघता फूलडे बंधावं, सत्कारे झलहलता दीवडा प्रगटावुं हो... करे मननो मोरलीयो टहुंकार... उरना आसनिये हुं तमने पधरावु, जीवन आखुं तारा चरणे बीतावुं हो... हवे थाशे आतमनो उद्धार ... Jath Education Internatio सिद्धाचल गिरि ममा विमलचल गर 9 के मल्या मने. के मल्या मने. के मल्या मने... नमः 1.16ww.jainalisbrary org Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 21 मंदिर पधारो स्वामी... मंदिर पधारो स्वामी सलूणा, तमारा विना नाथ क्यांये गमे ना... अंतरनी आंखेथी आंसु बहे छे, अंतरनी वातो आ आंसु कहे छे, प्रभु मुख जोवाने दृष्टि चाहे छे, हवे नाथ झाझुं तलसावशो ना... स्मरण जन्म जूना स्मृति मांहे आवे, नयन शोधतां तमने... प्रभु आर्त भावे के मुख परथी दृष्टि हटावी हटे ना... तमे जइ वस्या स्वामी... स्वरुप महेलमां रझलतो रह्यो घुं संसार वनमां हवे नाथ अंतरथी अलगा थशो ना... प्रभु अमने तारो... उगारो बचावो ain Education national मूकी मस्तके हाथ... पार उतारो कृपावंतने झाझुं कहेवुं घटेना... अंतरनी ज्योति प्रगटावी जाओ अमी आतमना छलकावी जाओ क्षमावंतने झाझुं कहेवुं घटे ना... • हरखाती पलपल प्रभु तमने जोइ हवे दिन विरहना वीते रोड रोड वियोगनुं दुःख आवुं हशे ना... For Rersonal & Private Use Only सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः मंदिर... मंदिर... मंदिर... मंदिर... मंदिर... मंदिर... मंदिर... www.jabehbrary.ogl 117 Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाथ० नाथ० नाथ तारा विना... नाथ तारा विना - मारा नयनो भीना, _तारा दरिशन विना, मारु मन लागेना. तुजने निरख्या विना, नैन अश्रुभीना _तारा विण सुनां सुना, जीवननी व्यथा. मारो आतम करे छे, स्मरण ताहरूं, मुझने मझधारे तारो सहारो मल्यो (२) भवसागरमा एक ज किनारो मल्यो, तारा दरिशन विना, माझं मन लागेना. कर्म संयोगे भवमा हुँ भूलो पड्यो, पार उतरवानो कोई मारग मल्यो. कृपासागर तुं एक आधार मल्यो (२) तारी भक्तिथी भवनो आ फेरो टल्यो. तारा दरिशन विना, मारुं मन लागेना. नाथ० नाथ० मारा घटमां बिराजता... मारा घटमां बिराजता आदिनाथजी, जिनवरजी, हो महावीरजी तारा दर्शन करीने थयुं पावन आ मन... तारा मुखडाने जोई थयुं जीवन धन... मारा वीरप्रभुजी मारा० हुं तो वीर प्रभुजीनी भक्ति रे करूं, मारुं जीवन प्रभु तारा चरणे धरूं तारी मूर्ति जोईने दादा करूं ने नमन, माझं मोही लीधुं मन... मारा० हुं तो नाम रटण करूं घडी बे घडी, हवे सांभलजो दादा मारे भीड रे पडी तारी आंखों मां जोई छे प्रेमनी जडी, मारा तारण तरी... मारा० लागिरि नसो Persor दिमलाचल गिरि नमो नमः" 118 www.janevrary.org Jain Edrication International Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आ पारस मारा पोताना... आ पारस मारा पोताना, मारा पोताना नहीं बीजाना.... आ पारस० तमे वामादेवीना नंद भले, तमे अश्वसेन कुलचंद भले पण. तमे वढियार देश नरेश भले, तने पूजे आखो देश भले पण. भले राजा महाराजा चरणे नमे, ने चौंसठ इन्द्रो चरणे चूमे पण. तमे वाराणसीना राजा भले, तमे त्रण भुवन महाराजा भले पण. तारा एकसोने आठ नामो भले तारा गामे गाम धाम भले पण. तमे धरणेन्द्र देवना देव भले, तमे पद्मादेवीना प्यारा भले पण. तमे मणिभद्रवीरना प्यारा भले तमे सकलसंघना प्यारा भले. तमे आराधकोना प्यारा भले पण. 25 दीवडो धरो रे प्रभु दीवडो धरो... दीवडो धरो रे प्रभु दीवडो धरो, मारा तनना मनना तिमिर हरो... दीवडो धरो... १ मायानगरना रंगरागमां, काया आ रंगाणी रे, भवसागरमां भमतां भमतां, पीधा खारा पाणी रे, दुःखडा सर्वे दूर करो... दीवडो धरो... २ जाणी जोईने मारग वच्चे, में तो वेर्या कांटा रे, अखंड वहेती प्रेम नदीना, पाड्या हजारो फांटा रे, देखाडो प्रभु राह खरो... दीवडो धरो...३ स्वार्थतणी आ दुनियामांहे, आशा एक तमारी रे, जीवनना संग्राममां जो जो, जाँऊजा हुं हारी रे, हैये भक्तिभाव धरो, हैये मारा वास करो, अंतरायो सर्वे दूर करो... दीवडो धरो... ४ . 'सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमनाचाल गिरि नमो नमः" 111 For Sonal & Private Use Only waipuramentary.org Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 26 प्रभुजी... अजवालां देखाडो... प्रभुजी... अजवालां देखाडो, 66 जिनजी... अंतर द्वार उघाडो, अजवाला देखाडो अंतर द्वार उघाडो; काम, क्रोध मने भान भूलावे; माया, ममता नाच नचावे; मोक्ष मार्ग भूली भटकुं छं, रात सूझेना दहाडो... विपदतणां वादल घेराता; मने अशुभ भणकारा थातां; चारे कोर संभलाती मुझने, आज भयंकर राडो... नरक निगोदथी तें प्रभु तार्यो; अनन्त दुःखोथी मुजने उगार्यो; एक उपकार करो हजी मुज पर, 99 “सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल तिम्रो hy 120 जन्म मरण भय टालो ... प्रभुजी... प्रभुजी... प्रभुजी... प्रभुजी... Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जय जय श्री आदिनाथ... जय जय श्री आदिनाथ, पाप खपावे आदिनाथ प्रेम से बोलो आदिनाथ, अणु-अणुमां आदिनाथ भाव से बोलो आदिनाथ, परमाणुमां आदिनाथ तमारा हैये आदिनाथ, मारा होंठे आदिनाथ मारा हैये आदिनाथ, तमारा होठे आदिनाथ हैये हैये आदिनाथ, सहुना होठे आदिनाथ सहुना हैये आदिनाथ, होठे होठे आदिनाथ साधुजी बोले आदिनाथ, जोर से बोलो आदिनाथ साध्वीजी बोले आदिनाथ, धीरे से बोलो आदिनाथ कर्म खपावे आदिनाथ, मारा प्यारा आदिनाथ । सुखडां आपे आदिनाथ, तारा बोले आदिनाथ। दुःखडा कापे आदिनाथ, तमारा प्यारा आदिनाथ देवो बोले आदिनाथ, सहुना प्यारा आदिनाथ दानव बोले आदिनाथ, श्वासे श्वासे आदिनाथ मानव बोले आदिनाथ, रोमे रोमे आदिनाथ केम नथी बोलता आदिनाथ, शुं शुं आपे ? आदिनाथ पूर्व बोले आदिनाथ, दर्शन आपे आदिनाथ पश्चिम बोले आदिनाथ, ज्ञान आपे आदिनाथ उत्तर बोले आदिनाथ, चारित्र आपे आदिनाथ दक्षिण बोले आदिनाथ, दीक्षा आपे आदिनाथ धरती बोले आदिनाथ, संयम आपे आदिनाथ आकाश बोले आदिनाथ, ओघो आपे आदिनाथ सूरज बोले आदिनाथ, मोक्ष आपे आदिनाथ चंदा बोले आदिनाथ, बोलो रे बोलो आदिनाथ ग्रहो बोले आदिनाथ, जोर जोरसे बोलो आदिनाथ नक्षत्रो बोले आदिनाथ, ज्यां जुओ त्यां आदिनाथ "सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः” 121 For Personal & Private Use Only ___ Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्ति गीत "सिद्धाहाल गिरि नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः” 122/ Jain Education in cational Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 यह है पावन भूमि ... यह है पावन भूमि, यहाँ बार-बार आना, आदिनाथ के चरणों में, आकर के झूक जाना... तेरे मस्तके मुकुट है, तेरे कानों में कुंडल है; तूं तो करुणा सागर है, मुझ पर करुणा करना... यह है० २ तेरा तीरथ सुंदर है, हमें प्राणों से प्यारा है; मेरी विनति सुन लेना, बेडा पार लगा देना... तूं जीवनस्वामी है, तूं अंतर्यामी है; मेरी नैया डूब रही, नैया को तिरा लेना... तेरी साँवली सूरत है, मेरे मन को लुभाती है; प्रभु मेरी भक्ति को, स्वीकार तूं कर लेना... 2 मीठो खरबूजो.... इक संघ चलायो भारी, हुई बेलांगरी सुं तैयारी मारा प्रभुजी रंगरंगीला, थारा मुगट में लागा हीरा, यह है ० १ मारा गुरुजी रंग रंगीला, जिनशासन रा उजियारा, थे आदिनाथने पूजो रे संघवी मीठो खरबूजो... यह है ० ३ मारा संघवीजी रंगरंगीला, थोरी लाल पाघडी में हीरा, यह है० ४ ए तो मोक्ष री पाग बंधाई रे संघवी .... यह है० ५ मारा संघवणजी रंगरंगीला, थोरी लाल चुंदडी में फूलो, ए तो धर्म री ज्योत जगाई रे संघवी ... थोरो दिलडो है रसगुल्लो, जोणे केरी मरसरो लुंदो रे संघवी ... जो ठीणा धीरो लुंदो रे संघवी ... सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः” 123 For Personal & Private Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाम है तेरा तारणहारा... नाम०१ नाम है तेरा तारणहारा, कब तेरा दर्शन होगा, जिनकी प्रतिमा इतनी सुंदर, वो कितना सुंदर होगा... तुमने तारे लाखों प्राणी, ये संतों की वाणी है, - तेरी छबी पर मेरे भगवन, ये दुनिया दीवानी है, भाव से तेरी पूजा रचाऊंजीवन में मंगल होगा. सुरवर मुनिवर जिनके चरणे, निशदिन शीश झुकाते है, जो गाते है प्रभु की महिमा, वो सब कुछ पा जाते है, अपने कष्ट मिटाने को (२) तेरे चरणों में वंदन होगा. मन की मुरादे लेकर स्वामी, तेरी चरण में आये है, हम बालक शरणागत तेरे, तेरे ही गुण गाते है, भव से पार उतरने को (२) तेरे गीतों का सरगम होगा. नाम० नाम०३ पालीताणा का नाथ है.. पालीताणा का नाथ है हमारा तुम्हारा... तुम्हारा... हमारा आदिनाथ के दरिसन पाके जीवन है सुखकारा... कैसी सुंदर काया, भक्तों के मन भाये, कानों में कुंडल सोहे, मस्तके मुकुट सुहाये, मनकी इच्छा पूरी होवे, आये द्वार तिहारा... इस तीरथ के कंकड़, पत्थर हम बन जाये, इन पावों से चलकर, तीरथ तेरे आये, सच्चे मनसे ध्यान लगाये, होवे जगसे न्यारा... तीरथ के दरिसन को, भक्त हजारों आये, ___करके प्रभुका पूजन, अपने पाप खपाये, । युवक मंडल आज पुकारे, तारो तारणहारा... "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः' 124 ReadRiteistory Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेरे दादा आते हैं... जब कोई नहीं आता मेरे दादा आते हैं, मेरे दुःख मेरी नैय्या चलती है, पतवार नहीं चलती, किसी और की अब मुझको, दरकार नहीं होती.... मैं डरता नहीं जगसे, जब दादा साथ है... जो याद करे उनको, दुःख हल्का हो जाये, जो भक्ति करे उनकी, ये उनके हो जाये, ये बिन बोले कुछ भी पहचान जाते हैं... ये इतने बडे होकर, दीनों से प्यार करे, अपने भक्तों के दुःख को, प्रभु पल में दूर करे, सब भक्तों का कहना, प्रभु मान जाते हैं... मेरे मन के मंदिर में, दादा का वास रहे, के दिनों में वो, बड़े काम आते हैं... कोई पास रहे ना रहे, दादा मेरे पास रहे, मेरे व्याकुल मन को, ये जान जाते हैं..... 6 दादा तेरे चरणों की, थोडी धूल जो मिल जाय, सच कहता हूँ दिलसे, तकदीर संवर जाए... नजरों से गिराना नहीं, चाहे जो भी सजा देना, नजरों से जो गिर जाऊं मुश्किल है संभल पाना... ये मन बडा चंचल है, कैसे तेरा ध्यान करूं, दादा तेरे चरणों की..... जितना इसे समझाऊं उतना ही मचलता हैं... सुनते हैं दया तेरी, दिन रात बरसती हैं.... एक बूंद जो मिल जाये, तकदीर संवर जाए... मेरे इस जीवन की, बस एक तमन्ना है, तुम सामने हो मेरे और प्राण निकल जाए..... मेरे ०१ anneducation Intem "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” 125 मेरे ०२ मेरे ०३ मेरे ०४ दादा० दादा० दादा० दादा० दादा० . Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इतनी शक्ति हमें देना... इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमजोर हो ना... हम चले नेक रस्ते पे हमसे कभी भी, ___ भूलकर भी कोई भूल हो ना... दूर अज्ञान के हो अंधेरे, तूं हमे ज्ञान की रोशनी दे, हर बुराई से बचकर रहे हम, जितनी भी दे भली जिंदगी दे... वैर हो ना किसी का किसीसे, भावना मन में बदले की हो ना... हम न सोचे हमें क्या मिला है, हम ये सोचे किया क्या है अर्पण... फूल खुशीयों के बाटे सदा हम, सबका जीवन बन जाये मधुवन... अपनी करुणा का जल तुं बहा के, कर दे पावन हर एक मन का कोना... 8 अरररररर रा... अरररररर रा.... अरररररर रा! मनडो लाग्यो रे भक्ति में (२) सब मिल मंदिर चालो रे... जीवन बीत गयो बातों में (२) अवसर फिर नहीं आसी रे... करजो धर्म कर्म कमाई (२) जीवन में साथे चाले रे... उमरीया पल पल बीती जावे (२) प्रभुरो सुमिरण करजो रे... अरररररर रा.... अरररररर रा.... अरररररर रा.... « al "सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः' 126 Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 9 मेरे दोनो हाथो में, ऐसी लकीर है.. लिखा है... मेरे दोनो हाथो में, ऐसी लकीर है, दादा से मिलन होगा, मेरी तकदीर है, लिखा है ऐसा लेख दादा (२) लिखता है लिखने वाला, सोच समजकर, मिलना बिछुडना दादा, होता समय पर, इसमें न मीन या मेख दादा (२) किस्मत का लेख कोई, मीटा नहीं पायेगा, मिटती नहीं है रेखा, दादा (२) ना ये दिन रहे, ना वो दिन रहेंगे, दादा तुम देख लेना, वो दिन रहेंगे, दादा तुम देख लेना जल्दी मिलेंगे, इन हाथों को देख दादा (२) इन भक्तों को देख दादा (२) • अपनी नजर से देख दादा (२) लिखा है... लिखा है... लिखा है... आज आनंद भयो... आज आनंद भयो, प्रभु को दर्श हुओ, रोम रोम शीतल भयो, प्रभु चित्त आये हैं (३) मन हु तो धार्य तो है चलके आये मन मोहे, चरण कमल तेरो मन में ठहरायो हैं... रोम रोम शीतल भयो, प्रभु चित्त आये हैं अकल अरूपी तूहीं अकल मूर्ति तूहीं निरख निरख तेरो सुमति सुमिलायो है... रोम रोम शीतल भयो, प्रभु चित्त आये हैं सुमति स्वरुप तेरो, रंगभयो एक अनेरो, वारंग आत्मप्रदेशे सुजश रंगायो रे... रोम रोम शीतल भयो, प्रभु चित्त आये हैं Jaunsducenternational For Personal & Private Use Only "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” 127 Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । जनम जयात शासनम 11 शासन ध्वज वंदन गीत... जैनं जयति शासनं की, अलख जगानी जारी है हे जिन शासन ! तुं है मैया, तेरी ही फुलवारी है वंदे शासनम जैनम् शासनम... हिमालय सा उत्तुंग है वो, जिनशासन हमारा है, गंगा सा निर्मल और पावन, जिनशासन हमारा है, पतितों को भी पावन करता, शासन वो सहारा है, तारणहारा तारणहारा, जिनशासन हमारा है, देखो भैया नौजवानों, पापों की चिनगारी है. हे जिन शासन०२ रोहिणिया जैसा चोर लुटेरा, उसको तूने तारा था, अर्जुनमाली सा घोर पापी, उसको भी उगारा था, क्रोधी विषधर चंडकौशिक को, तूने ही सुधारा था, कामी रागी स्थूलीभद्र को, तूने ही स्वीकारा था, आओ झंडा जिनशासन का, फैलाने की बारी है... हे जिन शासन०३ - education internation"सिद्धाचल गिरि नमो नमः *विमलाचल गिरि नमो नमः” 128wwjalnelinavara Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मिटा देंगे हस्ति उसकी, जो हमसे टकरायेगा, अहिंसा की टक्कर में देखो, हिंसा नाम मिट जायेगा, गली-गली और गांव गांव में, बच्चा बच्चा गायेगा, वीर प्रभुका शासन पाकर, मुक्ति सुख को पायेगा, दुःखी दुनिया मुक्त बनेगी, शासन की बलिहारी है.... हे जिन शासन० ४ ना समझो तुम कायर हमको, शेरों के भी शेर है, न्योछावर कर देते तन-मन, वीरों के भी वीर है, देव गुरु अपमान कभी ना, सहते हम बलवीर है, प्राण फना हो जाये चाहे, मरने को भडवीर है, जिनशासन का झंडा उंचा, लहराओ तैयारी है... हे जिन शासन० ५ विश्व शांति फैलाने वाला, जैन धर्म हमारा है, शांति मार्ग दिखलाने वाला, जैन धर्म ही प्यारा है, विश्व धर्म कहलाये सो ही, जैन धर्म सितारा है, प्राणी मात्र का चंदा सूरज, जैन धर्म हमारा है, गर्व से कहो दोस्तों मिल हम, जिन शासन पूजारी है.... OP सुदी ग्यारस वैशाखमाहकी, ध्वजवंदन सब करलो तुम, मैत्री भाव को दिल में बसाकर, शत्रु भाव मिटाओ तुम, प्राणी मात्र को गले लगाकर, मुक्ति मार्ग बताओ तुम, सूरिगुणरत्न की रश्मि पालो, जनम जनम सुख पाओ तुम, हे जिनशासन ! तुझ को वंदन, तेरा ध्वज जयकारी है... हे जिन शासन० ६ हे जिन शासन० ७ ersonal & Private Use Only “सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” 129 . Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संघवीजी० संघवीजी० 12 संघवीजी संघने... पहेले डुंगरीये में तो आदिनाथ वांदो, ____ बीजे डुंगरीये नेमिनाथो संघवीजी संघ ने यात्रा करावो, यात्रा करावो संघनी हुंस पुरावो, खरी अदराते गाडी जोत्रो... ओरी दोरी संघ रे घोडला खेलावो, ___अदवसे मलीया संघ रा दातो.... कासी केरीरा संघ ने दांतण देरावो, लोटो गंगाजल नीरो... खाजा लाडुरा संघने जीमण जीमावो, सोनारा कलशे चरूं करावो... लुंग सुपारी संघ ने पुरसन देरावो, अर बीडा केरा पानो... लीली दोरीरा संघ रे तम्बु तणावो, ठंडी मटक्या रो पोणी पावो... सीरक पतराणा संघ ने पोढण देरावो, सोना रे बीज ने वाव देरावो... संघवीजी० संघवीजी० संघवीजी० संघवीजी० संघवीजी० 'सिद्धाचल मिरि भो नमः * विमलाघr use onlyमो नमः” MAnjanelibrarorg Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 13 प्रेमसूरि की शीतल छाया में... प्रेमसूरि की शीतल छाया में, होती है आज जयजयकार... (२) इस दुनियां के भाग्य विधाता, रग रग बहता सत्य का नाता, दुनिया के है वो तारणहार... भव्य जीवों के भ्राता त्राता, हम सब बच्चे तेरे माता, मिलता ही एक तेरा प्यार... माया में भटका कर्मों में अटका, प्रभुपूजा मोहभंवर में मैं हूं लटका, छाया है अब घोर अंधार... चंद गया पर सूरज जिंदा, तेरी कृपा भुवनभानुसूरि जयजयकार... से चमके अमंदा विसवास बढाया, मेवाड देशोद्धार कराया सूरि जितेन्द्र की वाणी उदार... आज बढी है अंधी जवानी, उनको पिलायी अमृतवाणी सूरि गुणरत्न की जयजयकार... गुण गाना ओ गुण मत वाले, प्याले पीले भर-भर गुरु गुण सूरिरश्मि की ये ललकार.... सिद्धाचल गिरि नमः ॥ विमलाचल गिरिनमो नमः 131 9 ६ ७ Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सर मरु० मरु० 14 गुणरत्न नाम मेरे... गुणरत्न नाम मेरे गुरुराज का मरुधरा गुरुवरा राजस्थान का... तप जप करके जीवन गुजारे, भक्तो के सब दुःख दर्दो को टारे, कर दिया नाम सारे हिन्दुस्तान का... गुणरत्न सूरीश्वर, ज्ञान के दाता, धर्म धुरंधर भाग्यविधाता, मुझे मिला प्यार ऐसे गुरुराज का... रश्मिरत्न सूरि धर्म ज्योति जगाई, घर घर युवा क्रांति फैलाई, __ गुरुओं में गुरुगुणी सरताज का... संघ महोत्सव आज करेंगे, जिनशासन का नाम करेंगे, पन्ना भी भर जाय इतिहास का... वेलांगरी नगरी से संघ चलाये, आदिनाथ दादा की महेर मिलाये, भक्तने गाया गीत गुरुराज का... मरु० मरु० TRail.jainelibrary.org Focation International For Personal & Private Use Only » सिद्धाचल गिर नमा नम: * विमलाचल गिरनमा नमः 132 Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 15 गुणरत्नसूरिजी को माना.... गुणरत्नसूरिजी को माना, गुरूवर चरणों का में दिवाना नाता है यह भक्त का पुराना, गुरूवर चरणों का में दिवाना... पिता हीराचंद माता मनुबाई, जितेन्द्रसूरि के छोटे है भाई, पादरली का भाग्य खिलाना... गुरूवर० हैं प्रेमसूरीश्वर गुरुओं में गुरुवर, भुवनभानु जितेन्द्र कृपा कर, भक्ति का यह जाम पिलाना... गुरूवर० ये पान मसाला है मौत मसाला, सिगरेट और बीडी है, कॅन्सर की सीढी, हमको टीवी जल्दी छुडाना हमको इसकी सोगंध दिलाना.... ये शराब की बोटल है रोगों की होटल, समझो तो पापों की कम होगी टोटल, पापों का यह पीछा छुडाना... ये संसार को छोडो, इन कर्मों को तोडो, मुक्ति मंजिल में ये मुखडे को मोडो, हमको ओघा जल्दी दिलाना... रश्मिका यह गीत बजाना, थोडी थोडी ताली बजाना, सोया मेरा आतम जगाना, उंगली डाले मुंह में जमाना... गुरूवर० गुरूवर० गुरूवर० गुरूवर० Jain Education temational" सिद्धाचल गिरि नमो नमonal मलाल गिरि/नमो नमः” 133 www.jainediyorg Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ G तेजपाल सोनी ने एक लाक रुपये खर्च कर श्री शत्रुंजय का शिखर करवाया था । • भरत चक्रवर्ति ने 1 कोश उंचा 3 कोश लंबा जिनमंदिर शत्रुंजय पर बनवाया था, जिसमें 84 मंडप थे । • • • 0 O • शत्रुंजय की महिमा वाग्भट्ट मंत्रीने दो करोड़ 17 लाख रुपये खर्च कर श्री शत्रुंजय तीर्थ का जीर्णोद्धार करवाया था (900 वर्ष पूर्व) सिद्धगिरिराज की पांच फूट ढंक-कदंबक-लौहित्य-तालध्वज- -कपर्दि 1 वस्तुपाल-तेजपाल ने 18 करोड 96 लाख द्रव्य व्यय कर जीर्णोद्धार करवाया। 22 तीर्थंकरो की प्रमाणवाली चरणपादुका शत्रुंजय तीर्थ में थी । शत्रुंजय तीर्थ पर एक उपवास करने से 30 उपवास का लाभ मिलता है । आयंबिल से 15 उपवास संघवी धरणा शाह संघ लेकर आये तब 52 संघ आये थे । संघपति चादा | शाह ने 24 तीर्थंकरो के पट करवाये । संघवी देशलने 14 संघ निकाले थे विक्रमराजा के वक्त 84 हजार संघपतियों ने शत्रुंजय के संघ निकाले थे । वस्तुपाल-तेजपाल ने सिद्धगिरिराज के 12 संघ निकाले व दो हजार दौ सो जिनमंदिर बनवाये थे । तीन करोड सोने चांदी के पुष्पों से आभु संघवीने गिरिराज को बधाया था । गुणराज संघवी के संघ में दो लाख व्यक्ति थे । वस्तुपाल के संघ में 7 लाख यात्रिक थे। 24 बिरुद थे सांचोर के सावंत श्रावक ने 9 लाख द्रव्य खर्च कर शत्रुंजय का संघ निकाला था । सुरा एवं रत्ना श्रावक ने श्री शत्रुंजय महातीर्थ के 18 संघ निकाले थे । 11 लाख खर्च कर जावडशाह ने शत्रुंजय का संघ निकाला था । वस्तुपालतेजपाल के संघ में 24 उंचे जिनमंदिर थे । अनुपमा देवी ने 32 लाख मूल्य के आभूषण परमात्मा को पहनायें थे । शत्रुंजयगिरि तलेटी में 32 वाडी बनाई थी । नमिविद्याधर की 64 पुत्रियाँ मोक्ष में गई । 17 करोड मुनियों के साथ अजितसेन मुनि मोक्ष में गये । Jain Education Internation " सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरिं नमो नमः” 134 Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • इस तीर्थ का ध्यान करने से - १००० पल्योपम • इस तीर्थं में अभिग्रह धारने से - लाख पल्योपम • इस तीर्थ की ओर चलने से एक सागरोपम जितने कर्म नष्ट होते है। - • इस तीर्थ पर नवकारशी करने से दो उपवास का लाभ - • पोरसी करने से - तीन उपवास का लाभ • एकासणा करने से - पांच उपवास का लाभ • आयंबिल करने से पंद्रह उपवास का लाभ • उपवास करने से - तीस उपवास का लाभ (शत्रुंजय कल्पवृत्ति) (शत्रुंजय कल्पवृत्ति) • इस तीर्थ पर धूप करने से १५ उपवास का लाभ और कपूर का धूप करने से - मासखमण का लाभ होता है। (शत्रुंजय कल्पवृत्ति) • शत्रुंजय तीर्थ के दर्शन-पूजन से - ३० उपवास का लाभ • तलहटी में एक प्रहर जागरण करने से छ महिने के उपवास का लाभ • शत्रुंजय तीर्थ को सातबार वंदन करने से तीसरे भव में मोक्ष • चैत्री पूर्णिमा के दिन १०, २०, ३०, ४० और ५० पुष्पों की मालाए चढाने से क्रम के अनुसार १, २, ३, ४, ५ उपवास का लाभ होता है । • सुबह में जागरण के साथ ही शत्रुंजय की स्तुति करने से सभी पापों का नाश होता है। . • अन्य तीर्थों की हजारों यात्राएँ करने से जितना पुण्य मिलता है उतना पुण्य इस तीर्थ की यात्रा करने से मिलता है। (उपदेश-प्रसाद) • भरत चक्रवर्ती के जीर्णोद्धार कराने के बाद १० लाख खेचरोंने एसा अभिग्रह किया, कि हम हर हंमेश यहां जिन पूजा करेंगे। (पुंडरीक चरित्र) • देवदत्त जब पुंडरीक गणधर के हाथों से संयम लेता है उस समय उनके साथ १०,००० जैन श्रावक भी संयम लेते हैं। • भरत चक्रीने शत्रुंजय की तलहटी में २२ योजन विस्तारवाले ५ करोड घर बनाकर नगर बनाया था उसमें २५ लाख जिनालय ५ लाख पौषधशाला और ५ करोड ब्राह्मण को श्रावक बनाये थे । (पुंडरीक-चरित्र) • पार्श्वनाथ भ. के भाई हस्तिसेनने संघ निकाला उस समय रायण वृक्ष से दूध निकला था । • ५०० वर्ष पहले देवमंगल गणिने चंदन तलावडी पास अट्ठम किया था उस समय कपर्दि यक्षने आदिनाथ की रत्नमय प्रतिमा बताई थी इससे तीसरे भव में मोक्ष प्राप्त हुआ। Jain Education Internat" सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः" 135 www.aineltural org Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विशेष प्रार्थी उषादेवी प्रकाशचन्द्र पोखरणा सुशीलादेवी शिवलालभाई पोखरणा राधादेवी महेन्द्रभाई पोखरणा सुशीलादेवी सुरेशभाई पोखरणा लीलादेवी पुखराजभाई पोखरणा उगमबेन शंकरलालजी पीस्ताबेन लक्ष्मीलालजी सुमन तेजमल पोखरणा मोना ललित पोखरणा सीमा संजय पोखरणा रीन्कु सुनील पोखरणा वंदना महेश पोखरणा मेघा रमेश पोखरणा सीमी दिपीलपजी शील्पा विकासजी अनीता दिलीपकुमार सुनीता राजेशजी सुनीता लोकेशजी चंदा दिनेशजी ललीता सुनिलजी आसना दिलीपजी ममता दिपक पोखरणा भुमी जिनेश पोखरणा स्वीटी मुकेश पोखरणा सुमन विक्रम पोखरणा रीचा पंकज पोखरणा नेहा अमीत पोखरणा स्वीटी पुखराज पोखरणा खुशी तेजमल पोखरणा विश्वा ललित पोखरणा प्रिशा सुनिल पोखरणा वेदी जीनेश पोखरणा Jain Educated Internatioval" सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः” 136 Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जय जिनेन्द्र Pop For Personal & Private www.brary.org Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हे उपकारी. ए उपकार तमारा कदिय न विसरे... AALWARA पूज्य पिताश्री गोकुलचन्दजी पोखरणा पूज्य मातुश्री सुंदरबाई पोखरणा प्रकाशचंद्र गोकुलचन्दजी पोखरणा उषादेवी प्रकाशचन्द्र पोखरणा शिवलाल गोकुलचन्दजी पोखरणा सुशीलादेवी शिवलालभाई पोखरणा महेन्द्रकुमार गोकुलचन्दजी पोखरणा / राधादेवी महेन्द्रभाई पोखरणा सुरेशकुमार गोकुलचन्दजी पोखरणा सुशीलादेवी सुरेशभाई पोखरणा पुखराज गोकुलचन्दजी पोखरणा लीलादेवी पुखराजभाई पोखरणा मोख़ुदा (राज.) निवासी श्री गोकुलचन्दजी हेमराजजी पोखरणा परिवार For Personal & Private Use Only Kom.डाना 'जनम ग्राफोक्स अहमदाबाद. फोन 25627469, 98258 51730