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________________ जय जय जय जय पास जिणंदा । अंतरिक्ष प्रभु त्रिभुवन तारण, भविक कमल उल्लास दिणंदा. 8 तेरे चरण शरण में कीनो, परम पुरुष परमारथदर्शी, तुं दिये भविककुं परमानंदा. तुम बिन कुण तोरे भवफंदा, तुं नायक तुं शिवसुख-दायक, तुं हितचिंतक तुं सुखकंद, तुं जनरंजन तुं भयभंजन तुं केवल कमला गोविंदा कोड देव मिलके कर न सके, एक अंगूष्ठ रूप प्रतिछंद, ऐसो अद्भुत रुप तिहारो, वरषत मानुं अमृतके बुंद. मेरे मन मधुकर के मोहन, तुम हो विमल सदल अरविंद, नयन चकोर विलास करत है, देखत तुम मुख पूनमचंद. 66 Jain Education International दूर जावे प्रभु तुम दरिशनसे, दुख दोहग दारिद्र अघदंद, वाचक जस कहे सहस फलत है, जे बोले तुम गुण के वृंद. "सिद्धाचल गिरि नमो नमः, विमलाचलु गिरि नमो नमः For Pers Private जय० १ जय० २ जय० ३ जय० ४ जय० ५ जय० ६ 97 www.jainelibrary.org
SR No.004225
Book TitleChari Palak Padyatra Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajhans Group of Industries
PublisherRajhans Group of Industries
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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