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________________ 11 तमे मन मूकीने वरस्या.... तमे मन मूकीने वरस्या, अमे जनम जनम ना तरस्या, तमे मूशल धारे वरस्या, अमे जनम जनम ना तरस्या. हजार हाथे तमे दीधुं पण, झोली अमारी खाली; ज्ञान खजानो तमे लूटाव्यो, तोये अमे अज्ञानी; तमे अमृतरूपे वरस्या, अमे झेर ना घुंटडा फरस्या. स्नेहनी गंगा तमे वहावी, जीवन निर्मल करवा; प्रेमनी ज्योति तमे जगावी, आतम उज्जवल करवा; तमे सूरज थई ने चमक्या, अमे अंधारा मां भटक्या. शब्दे शब्दे शाता आपे, एवी तमारी वाणी; ए वाणीनी पावनताने, अमे कदी ना पिछानी; तमे महेरामण थई उमट्या, अमे कांठे आवी अटक्या. 12 कहुं डुं शंखेश्वर पार्श्वजीनी... कहुं हुं शंखेश्वर पार्श्वजीनी वारता ए तो शरणे आवेलाने तारता... एनी मूर्ति छे मोहनगारी, भवोभवना ते दुःख हरनारी जेना दर्शने, देवताओ आवतां... व्हालो पातालमांथी पधारता, दुःखियाकुलना दुःख निवारता रुडा शंखेश्वर गामे बिराजता... दूर देशोथी यात्रालु आवतां, एनी भक्तिनी धून मचावता एना दरवाजे नोबत वागता... एना मुखडा उपर जाऊंवारी, नाग बलताने लीधो उगारी मारा शमणामां पार्श्वप्रभु आवतां... ए तो शरणे आवेलाने तारतां. For Pelgonal & Priveerdse Only “सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः" Jain Education International 11 तमे. तमे. . ए तो ए तो ए तो ए तो www.jainelibrary.org
SR No.004225
Book TitleChari Palak Padyatra Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajhans Group of Industries
PublisherRajhans Group of Industries
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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