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उस स्मृति को ताजी करती है । यहाँ पर बहुत आरे व्यक्ति चैत्यवंदन वगैरह करते हैं । जिनके वस्त्रों से सुगंध आती थी ऐसे दादा प्रेमसूरिजी यहाँ अवश्य चैत्यवंदन करते थे ।
चेतन ! " नमो जिणाणं" कहकर यहाँ से क्रमश: देहरियों के दर्शन करते हुए हम आगे बढ़ते हैं, तब दाहिनी तरफ मेरु पर्वत के दर्शन होते हैं । यहाँ पहले प्राचीन मेरु था । अहमदाबाद के शेठ माणेकलाल मनसुखभाई (सेठ माकु भाई) ने शत्रुंजय गिरनार का संघ निकाला, तब संगमरमर का नया मेरु पर्वत बनवा कर चौमुखजी बिराजमान किये । उनके दर्शन करने के बाद हम अलग-अलग देहरियों के दर्शन करते हुए आगे चलते हैं, तब हमें एक मंदिर में २० विरहमान भगवान के दर्शन होते हैं । बीस विहरमान मंदिर के भीतर के गंभारे में २० व गंभारे के बाहर रंग मण्डप में २४ तीर्थंकर और उसके बाद हम अष्टापदजी मंदिर में दर्शन करें।
चेतन ! भरतचक्रवर्ती द्वारा निर्माण करवाया हुआ अष्टापदजी तीर्थ वर्तमान में लुप्त हो गया है । उसकी स्मृति में इस मंदिर में क्रमश: 4+8+10+2=24 भगवान के दर्शन करने हैं । वैसे तो अष्टापद तीर्थ पर २४ भगवान क्रमानुसार
प्रतिष्ठित हैं, परन्तु यहाँ पर आदिनाथजी की - ६, धर्मनाथजी की ६, शान्तिनाथजी की- ४, पद्मप्रभजी की - ३, अनंतनाथजी की -२, चंद्रप्रभुजी की -१, पार्श्वनाथजी की - १ और महावीर स्वामीजी की - १ प्रतिमा है । " नमो जिणाणं"
इस अष्टापदजी के - सिंहनिषघा नामक मंदिर में जिन बिंबों के अलावा वीणा को बजाता हुआ रावण, नृत्य करती हुई
"Jain Education International " सिद्धाचल गिरिं नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः" 38ww.jainelibrary.org
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