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________________ श्री पार्श्वनाथ जिन-चैत्यवंदन जय चिंतामणि पार्श्वनाथ, जय त्रिभुवन स्वामी; अष्ट कर्म रिपु जीतीने, पंचमी गति पामी. प्रभु नामे आनंद कंद, सुख संपत्ति लही); प्रभु नामे भव भयतणां, पातक सब दहीओ. ॐ ह्रीं वर्ण जोडी करी, जपीओ पारस नाम; विष अमृत थई परिणमे,लहीओ अविचल ठाम. ३ स्तवन अब मोहे, ऐसी आय बनी... श्री शंखेश्वर पार्थ जिनेश्वर, मेरे तू एक धनी तुम बिन कोउ चित्त न सुहावे, आवे कोडी गुणी; मेरो मन तुझ ऊपर रसियो, अलि जिम कमल भणी तुम नामे सवि संकट चूरे, नागराज धरनी; नाम जपुं निशि वासर तेरो, ऐ मुझ शुभ करनी कोपानल उपजावत दुर्जन, मथन वचन अरनी; नाम जपुं जलधार तिहां तुझ, धारुं दुःख हरनी मिथ्यामति बहुजन है जग में, पद न धरत धरणी; उनको अब तुझ भक्ति प्रभावे, भय नही एक कणी सज्जन नयन सुधारस अंजन, दुर्जन रवि भरणी; । तुझ मूरती निरखे सो पावे, सुख जश लील धनी थोय पास जिणंदा वामानंदा, जब गरभे फली, सुपना देखे अर्थ विशेषे, कहे मघवामली; जिनवर जाया सुर हुलराया, हुआ रमणि प्रिये, नेमिराजी चित्त विराजी, विलोकित व्रत लीये. तरि नमो नम गिरि नमो नमः * विमलाचलगानमा For Personal & Private Use Only 88 www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.004225
Book TitleChari Palak Padyatra Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajhans Group of Industries
PublisherRajhans Group of Industries
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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