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अर्थात् "जिन व्यक्तियों की श्रुतज्ञान रुपी सागर में भक्ति हो, उनके ज्ञानावरण कर्म के समूह का भगवती सरस्वती क्षय करें ।" चेतन ! अब हम वापस लौट चलें और मूल सीढ़ियों पर पहुंचें ।
चेतन ! यहां दाहिनी ओर भिन्नभिन्न तीन देहरियों में श्री धर्मनाथ प्रभु, श्री कुन्थुनाथ और श्री नेमिनाथ की चरण पादुकाओं के दर्शन करें।
चेतन ! नेमिनाथ प्रभु इन्द्र की विनंति से शत्रुंजय तरफ पधारे थे, परंतु तलहटी तक ही पधारे थे । उपर नहीं
चढ़े, गिरनारजी के श्री नेमिनाथ दादा की यात्रा का लाभ प्राप्त हो जाये, क्योंकि गिरनार भी इस गिरिराज का एक भाग है। श्री धर्मनाथ प्रभु ईधर समवसरे थे, और भव्य जीवों को देशना दी थी । प्रभु का उपदेश सुनकर अनेक जीव इस शत्रुज्य पर मोक्ष में गये । श्री कुंथुनाथ भगवान भी ईधर पधारे व देशना दी थी । इसलिए यहाँ उनकी ये चरण पादुकाएँ प्रतिष्ठित की गई है । चरण पादुकाओं को "नमो जिणाणं" कहकर वन्दन करें ।
चेतन ! अब हम बायीं ओर की सीढ़ियों से बाबू के मंदिर की ओर दर्शन करने के लिए चलें । सीढ़ियाँ चढ़ने पर बाबू के मन्दिर का द्वार आ गया है ।
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चेतन ! यहां से हम चौक में आ जाये । यहाँ चौकीदार को कहेंगे, तो वह हमें रत्न मन्दिर के
दर्शन करायेगा ।
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“सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः" 14
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