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चेतन ! गौतम स्वामी का मंगल करके जब हम आगे बढ़ते हैं, तब द्वितीय देहरी में श्री आदीश्वर भगवान की चरण-पादुका के दर्शन होते हैं। "नमो जिणाणं"
चेतन ! समीप में ही तीसरी एक देहरी में श्री शान्तिनाथ चरण-पादुकाएँ हैं । श्री शान्तिनाथ भगवान ने 1,52,55,777 मुनिवरोंके साथ यहाँ वर्षावास किया था । वे समस्त मुनिवर इस गिरिराज पर मोक्ष सिधारे। निन्नाणवे प्रकार की पूजा में कहा है कि :
"लन बावन ने एक कोडी रे, आदीश्वर अलबेलो रे। पंचावन सहस ने जोडी रे, आदीश्वर अलबेलो रे। सात सौ सत्योतर साधु रे, आदीश्वर अलबेलो रे । प्रभु शान्ति चौमासुं कीधुं रे, आदीश्वर अलबेलो रे । तव वरिया शिवनारी रे, आदीश्वर अलबेलो रे। सिद्धाचल शिखरे दीवो रे, आदीश्वर अलबेलो रे।"
चेतन !"नमो जिणाण" कहकर चलें। चेतन ! वहां से तनिक आगे चलने पर मार्ग के दाहिनी ओर सरस्वती माताका मंदिर दृष्टिगोचर होता है । अब हम मूल सीढ़ियों को छोड़कर एक छोटी सी पगदंडी से सरस्वती देवी के मंदिर की ओर चलें।
चेतन ! यहां पर ध्यान रखना, क्योंकि देहरी छोटी है, सिर झुकाकर श्री सरस्वती देवी के दर्शन करना । श्रावक को प्रणाम व साधु-साध्वीजी को धर्मलाभ कहना चाहिए। __चेतन ! भगवती सरस्वती के समक्ष निम्न स्तुति बोलें - "सुअ-देवया भगवई, नाणावरणीयकम्मसंघायं । तेसिं ख्रवेउ सययं, जेसिं सुअ सायरे भत्ती॥"
“सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” 13
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