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________________ શ્રીરતનથિ મંદિરુ चेतन ! यह रत्न मन्दिर है । इसमें भिन्न-भिन्न रत्नों की प्रतिमाएँ हैं । हम समस्त प्रतिमाओं को वन्दन करें।"नमो जिणाणं"। चेतन ! अब हमें मंदिर के अंदर थोड़ा ऊपर चढ़ना है । यह बाबू का विशाल जिनालय लगभग "दादा की ट्रॅक' का अनुसरण है । कतिपय अशक्त नर - नारी दादा के दरबार तक ऊपर न चढ़ सके, उनकी सुविधा के लिए मुर्शिदाबाद के राय बहादुर बाबू धनपत सिंहजी ने अपनी मातुश्री मेहताब कुमारी की प्रेरणा से विक्रम संवत् १६५० में इस भव्य एवं विशाल जिनालय का निर्माण करवाया था। चेतन ! इस जिनालय में मूलनायक श्री ऋषभदेव, पुण्डरीक स्वामी, रायण पादुका आदि दादा की ढूंक की तरह सब सुव्यवस्थित हैं । कुल ८४ देहरियाँ हैं।"नमो जिणाणं", जिनालय में से समीपस्थ मार्ग से मूल सीढ़ियों पर आकर, चलो अब हम गिरिराज के ऊपर चढ़े। र चेतन ! नीचे से आ रहे सोपानों MAY का रास्ता यहां पर जुड़ता है । अब हम गिरिराज पर कुछ सीढ़ियां चढ़ें । दाहिनी ओर हमें विशाल "समवसरण मन्दिर के दर्शन होते हैं । समवसरण के भव्य आकार के इस जिनालय में सबसे ऊपर औरनीचे मूलनायकजी चौमखजी के दर्शन और भीतर देहरियों में बायीं ओर से गोलाकार दीवार में 108 पार्श्वनाथ की प्रतिमाओं के तथा चौबीश तीर्थंकरों के दर्शन होते हैं । दायीं ओर गोलाकार गेलेरी की दीवार में अनेक आचार्य श्री, मुनिश्री एवं श्रावक श्राविकाओं की जीवनियों को चित्र-पेईंटींग्स के माध्यम से प्रदर्शित की गई हैं। Jan Education internationa" सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः" 15..
SR No.004225
Book TitleChari Palak Padyatra Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajhans Group of Industries
PublisherRajhans Group of Industries
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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