SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चेतन ! कुछ सीढ़ियाँ चढ़ने पर प्रथम विश्राम आता है । गिरिराज पर चढ़ते-चढ़ते थक जाये, तब थकान मिटाने के लिए ऐसे विश्रामस्थलों का निर्माण कराया गया है । चेतन ! वहाँ बैठकर कुछ समय तक सिद्धात्माओं का ध्यान करें, ताकि साँस बैठ जायेगी और थकान भी उतर जायेगी । चेतन ! देख यह दूसरा विश्राम-स्थल आया इसे " धोली पर " (श्वेत प्याऊ) कहते हैं । यहां गर्म पानी भी उपलब्ध होता है । चेतन ! प्रथम चढ़ाव पूरा होनेपर दाहिनी ओर चक्रवर्ती भरत महाराजा की अलौकिक अनासक्ति व आत्म समृद्धि की स्मृति कराती हुई देहरी आती है, जो अपने समक्ष एक भव्य भूतकाल को ताजा करती है । महाराजा भरत भगवान श्री ऋषभदेव के पुत्र और चक्रवर्ती थे । उन्होंने पूर्व में श्री शत्रुंजय कल्पवृत्ति ग्रंथ के अनुसार शत्रुंजय की महिमा श्रवण कर अभिग्रह किया था कि जब तक शत्रुंजय पर बिराजमान तीर्थंकरों को वंदन नहीं करूं, तब तक दिन में दो बार भोजन और एक विगई से ज्यादा नहीं खाऊंगा । इस अवसर्पिणी काल में उन्होंने इस महातीर्थ का प्रथम उद्धार कराया और वे यहाँ "छः" री पालक संघ लेकर सर्व प्रथम आये थे । तत्पश्चात् अनित्य भावना का चिंतन करते हुए उन्होंने घाति कर्मों का क्षय कर आरीसा भुवन में केवलज्ञान प्राप्त किया और मोक्ष में गये । चेतन ! भरत महाराजा के चरण पादुकाओं को नमन कर लें । ये चरण पादुकाएँ विक्रम संवत १६८५ में स्थापित की गई थी । चेतन ! अब चलने का सीधा मार्ग आ गया है । पालीताना का द्वितीय नाम है सिद्धाचल ! सीधाचल की अनुभूति हमें यहां होती है । यह शब्द हमें शिक्षा देता है कि माया-कपट की टेढ़ी चाल से हम अत्यन्त दुःखी हुए हैं । अब सीधे होकर चलें । “सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” For Personal & Private Use Only Jain Education International 16 www.jainelibrary.org
SR No.004225
Book TitleChari Palak Padyatra Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajhans Group of Industries
PublisherRajhans Group of Industries
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy