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________________ व चेतन ! थोड़ा चलने पर बायीं ओर यह कुण्ड जो दृष्टिगोचर हो रहा है, उसका निर्माण सूरत निवासी सेठ इच्छाचंद ने विक्रम संवत् १८६१ में कराया था। अत: इसका नाम"इच्छा कुण्ड' रखा गया है। चेतन ! थोडा सा पर चढ़ने पर दाहिनी ओर एक देहरी में ऋषभदेव, नेमिनाथ एवं नेमिनाथजी के गणधर वरदत्त की चरण-पादुकाएँ दृष्टिगोचर होती हैं । उनके दर्शन करके "नमो जिणाणं" "नमो सिद्धाणं" बोलकर हम कृतार्थ बनें । वरदत्त गणधर का वैसे निर्वाण तो गिरनार पर हुआ था, फिर उनकी चरण-पादुकाएँ यहां क्यों ? उसका उत्तर यह है कि श्री वरदत्त गणधर ने शत्रुजय की महिमा का वर्णन किया था। इसी कारण से उनकी चरण पादुकाओं की यहां स्थापना की गई है। चेतन ! थोडासा ऊपर चढ़ने पर बायीं ओर लीली परब(हरी प्याऊ) आती है। यह तीसरा विश्राम - स्थल हैं। चेतन ! यहां प्याऊ के सामने दाहिनी ओर की एक देहरी में श्री आदीश्वर भगवान की चरण-पादुकाएँ हैं । "नमो जिणाणं" ____चेतन ! हम थोडा और ऊपर चढ़ें । दाहिनी ओर यह कुमार-कुण्ड आ गया। अठारह देशों के महाराजा कुमारपाल कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के उपदेश से "छ:" री पालक संघ लेकर यहाँ आये थे । उस समय सवा करोड मूल्य का रत्न अर्पण करके शेठ जगडूशाह ने अपनी मातुश्री को संघमाला पहनाई थी । ऐसे अद्भुत संघ की स्मृति में महाराजा कुमारपाल ने इस कुण्ड का निर्माण कराया था और गिरिराज पर 'कुमारपाल विहार' नाम की दूंक का भी निर्माण कराया था। "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” 178 in Education International For Personal & Private Use Only www.ateliersorg
SR No.004225
Book TitleChari Palak Padyatra Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajhans Group of Industries
PublisherRajhans Group of Industries
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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