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________________ चेतन ! वाघण पोल में प्रविष्ट होने के पश्चात् "दादा के दरबार तक का मार्ग विमलवसही अथवा "दादाजी की ट्रॅक अथवा "मरुदेवा शिखर" भी कहा जाता है। अब हम शीध्र ही आदीश्वर दादा के दर्शन करेंगे । दाहिनी ओर सेठ केशवजी नायक की वैंक में जाने का मार्ग है। चेतन ! बायीं ओर सोलहवें श्री शान्तिनाथ भगवान का जिनालय है। उसमें प्रतिमाजी अत्यन्त मनोहर है । इसका निर्माण सं. १८६० में दमन निवासी सेठ हीराचन्द रायकरण ने कराया था। यहाँ प्रत्येक यात्री को द्वितीय चैत्यवन्दन करना आवश्यक होता है । अत: हम भी यहां द्वितीय चैत्यवन्दन कर लें। चेतन ! अब श्री शांतिनाथ भग. के मंदिर के बाहर निकल कर बायीं ओर सीढ़ियों से नीचे उतरते हैं, तब एक देहरी में श्री आदीश्वर भगवान की अधिष्ठायिका एवं कर्माशा की कुलदेवी "चक्केश्वरी' के दर्शन होते हैं । जब कर्माशा ने इस तीर्थ का पन्द्रहवाँ उद्धार कराया था, तब विक्रम संवत् १५८४ में इसकी स्थापना की थी। देवी की मूर्ति चमत्कारी व रमणीय है । स्तवन में कहा है कि - "प्रभुजी आवी वाधण पोल के, डाबा चक्केसरी रे लोल । चक्केसरी जिनशासन रखवाल के, संघनी सहाय करे रे लोल।" चेतन ! चक्केसरी देवी ने इस तीर्थ के लिए अनेक प्रयत्न किये थे। चक्केसरी देवी ने जावडशा को स्वप्न देकर तक्षशिला की मूर्ति प्राप्त कराई थी, कर्माशा को भी तीर्थोद्धार में वह सहायक हुई थी। शासन की सेवा करने गला कोई देव अथवा देवी हो, चेतन ! तुम्हें उसे प्रणाम कहकर नमस्कार करना चाहिए और साधु उसे धर्मलाभ कहें। - चेतन ! उसके समीप की दूसरी देरी में वागेसरी एवं पद्मावती देवी हैं। 6 . SanEducation international" सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः 26 www.jainelibrary.org
SR No.004225
Book TitleChari Palak Padyatra Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajhans Group of Industries
PublisherRajhans Group of Industries
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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