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________________ चेतन ! उसके समीप मोतीशा सेठ की ट्रॅक है, जिसे मोती वसहि भी कहते हैं। ट्रंक में प्रवेश करने हेतु बड़ा दरवाजा है । हमें पहले आदीश्वर दादा को वन्दन करना है, अतः दूर से ही इस हूँक को " नमो जिणाणं" कह कर आगे बढ़ जायें । चेतन ! यहाँ पहले कुन्तासर नामक भयानक खाई थी, जिसे सेठ मोतीशा के द्वारा भखाई गयी और उस पर भव्य ढूंक का निर्माण कराया गया । उसके बाहर कुंतासर कुंड है । उसकी दीवार के गोख में कुन्तासर देवी की मूर्ति स्थापित की हुई है । कुछ सीढ़ियाँ चढ़ने पर सामने एक मार्ग चलता है, जो घेटी की पाग की ओर जाता है । चेतन ! बायीं ओर की थोड़ी सीढ़ियाँ चढ़ने पर "सगाल पोल" आती है । अपनी लाठी, छड़ी, छाता, भूल से लाये हुए बूट-चप्पल, ट्रांजिस्टर आदि यहाँ सगाल पोल में रखने पड़ते हैं । केवल साधु साध्वी अपना डंडा "बाघिन पोल" तक ले जा सकते है । " चेतन ! सगाल पोल से आगे चलने पर चौक आता है, जिसे "दोलाखाडी" कहा जाता है। इसके बायीं ओर नोंधण कुण्ड और सगाल कुण्ड है और उसके समीप ही आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी का कार्यालय है । चेतन ! कुछ सीढ़ियाँ चढ़ने पर "वाघण पोल" (बाघिन पोल) दृष्टिगोचर होती है। दाहिनी ओर दीवार पर बाहर बाघिन का पुतला है । चेतन ! चौदहवीं सदी में इस पोल का नाम "व्याधी प्रतोली" प्रचलित था । ऐसा आ. जिनप्रभसूरिजी की विविध तीर्थकल्प से ज्ञात होता है । यहाँ पोल में साधु-साध्वी अपने डण्डे आदि छोड़कर आगे जाते हैं । 99 Jain Educall सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः Onf * 25 SALAA www.jabellbrary.org
SR No.004225
Book TitleChari Palak Padyatra Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajhans Group of Industries
PublisherRajhans Group of Industries
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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