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जगजीवन जगवाल हो, मरुदेवी नो नंदलाल रे, मुख दीठे सुख उपजे, दर्शन अतिही आनंद लाल रे ।
जग...०१
आंखडी अंबुज पांखडी, अष्टमी शशी सम भाल लाल रे, वदन ते शारद चंदलो, वाणी अतिही रसाल लाल रे ।
जग...०२
लक्षण अंगे विराजतां, अडहिय सहस उदार लाल रे, रेखा कर चरणादिके, अभ्यंतर नही पार लाल रे ।
जग...०३
इंद्र चंद्र रवि गिरितणा, गुण लही घडीयुं अंग लाल रे, भाग्य किहां थकी आवीयुं, अचरिज ऐह उत्तंग लाल रे ।
जग...०४
गुण सघला अंगी कर्या, दूर कर्या सवि दोष लाल रे, वाचक 'जशविजये' थुण्यो, देजो सुखनो पोष लाल रे।
जग...०५
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