________________
4
माता मरुदेवीना नन्द, देखी ताहरी मूरति मारूं मन लोभापुंजी के मारूं चित्त - चोरां जी |
करूणानागर करूणा - सागर, काया- कंचन - वान । धोरी - लंछन पाउले कांई, धनूष पांचसे मान
त्रिगडे बेसी धर्म कहता, सुणे पर्षदा बार । योजनगामिनी वाणी मीठी, वरसन्ती जलधार
उर्वशी रूडी अपछराने, रामा छे मनरंग । पाये नेउर रणझणे कांई, करती नाटारम्भ
तुंही ब्रह्मा, तुंही विधाता, तुंही जगतारणहार । तुज सरीखो नहि देव जगतमां, अरवडिया आधार
तुंही भ्राता, तुंही त्राता, तुंही जगतनो देव । सुर-नर- किन्नर - वासुदेवा, करतां तुज पद सेव
श्रीसिद्धाचल तीरथ केरो, राजा ऋषभ जिणंद । कीर्ति करे माणेकमुनि ताहरी, टालो भवभय फंद
Jain Education internalाचल गिरि नमो नमor लाल मिनिमो नमः"
... माता १
... माता २
... माता ३
.माता ४
... माता ५
... माता ६
83
www.jainelibrary.org