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दादा आदीश्वरजी दूर थी आव्यो दादा दरिशन द्यो । कोई आवे हाथी घोड़े, कोई आवे चढे पलाणे; कोई आवे पग पाले, दादा ने दरबार
शेठ आवे हाथी घोड़े, राजा आवे चढ़े पलाणे; हूं आवुं पगपाले, दादा ने दरबार
कोई मूके सोना रूपा, कोई मूके महोर; कोई मूके चपटी चोखा, दादा ने दरबार
शेठ मूके सोना रूपा, राजा मूके महोर; हूं मूकुं चपटी चोखा, दादा ने दरबार
कोई मांगे कंचन काया, कोई मांगे आंख; कोई मांगे चरणो नी सेवा, दादा ने दरबार
पांगलो मांगे कंचन काया, आंधलो मांगे आंख; हूं मागूं चरणोनी सेवा, दादा ने दरबार
हीर विजय गुरु हीरलो ने, वीर विजय गुणगाय; शत्रुंजय ना दरिशन करता, आनंद अपार
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“सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः"
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