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बालपणे आपण ससनेही, रमता नव नव वेशे । आज तमे पाम्या प्रभुताई, अमे तो संसारनिवेशे हो, प्रभुजी ओलंभडे मत खीजो जो तुम ध्यातां शिवसुख लहीये, तो तुमने केइ ध्यावे । पण भवस्थिति परिपाक थया विण, कोई न मुक्ति जावे हो प्रभुजी सिद्ध निवास लहे भवसिद्धि तेमां शो पाड तुमारो । जो उपगार तुमारो वहिये, अभव्यसिद्धने तारो हो प्रभुजी ज्ञानरतन पामी एकांते थई बेठा मेवासी। ते मांहेलो एक अंश जो आपो, ते वाते शाबाशी हो प्रभुजी अक्षय पद देतां भविजनने, संकीर्णता नवि थाय । शिव पद देवा जो समरथ छो, - तो जश लेतां शु जाय हो प्रभुजी। सेवागुण रंजो भविजनने, जो तुमे करो वडभागी । तो तुमे स्वामी केम कहेवाशो, निर्मम ने नीरागी हो, प्रभुजी नाभिनंदन जगवंदन प्यारो, जगगुरु जग जयकारी । रूप विबुधनो मोहन पभणे, वृषभलंछन बलिहारी हो प्रभुजी
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