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________________ दादा के दरबार का संक्षिप्त परिचय (१) दादा आदीश्वर जी के काष्ठ के मन्दिर का जीर्णोद्धार करके विक्रम संवत् १२१७ में पाषाण के मन्दिर का निर्माण किया गया । (२) मन्दिर में जो मण्डप है, वह "मेघनाद मण्डप" कहलाता है । (३) इस प्रासाद को "नन्दीवर्द्धन प्रासाद" कहा जाता है । (४) इस मन्दिर में १२४५ कुम्भ, २१ सिंह एवं कुल ७२ खम्भे हैं तथा चार योगिनियाँ एवं दस दिक्पाल हैं । (५) मन्दिर के चारों ओर १९७२ देहरियाँ, ४ गवाक्ष, ३२ पुतलियाँ, ३२ तोरण, २९१३ पाषाण की प्रतिमाजी, १३१२ धातु की प्रतिमाजी, १५०० चरण-पादुकाएँ हैं और दादा के मन्दिर की ऊँचाई ५२ हाथ है। (६) करमाशा के द्वारा प्रतिष्ठा करानेके पश्चात् विक्रम संवत १६५० में जगद्गुरु श्री विजयसेन सूरीश्वरजी महाराज के उपदेश से खंभात-निवासी तेजपाल सोनी ने जीर्णोद्धार कराया था । (७) वर्तमान में जो "दादा" का परिकर है, उसको अहमदाबाद निवासी श्री शान्तिलाल सेठ ने बनवाया था और विक्रम संवत् १६७० में जगदगुरु आचार्य श्री विजयहीर सूरीश्वरजी महाराज के संतानीय आचार्य श्री विजय देवसूरीश्वरजी महाराज ने प्रतिष्ठा कराई थी। _____चेतन ! यहाँ अपनी यात्रा पूर्ण होती है । अब हमें धीरे-धीरे नीचे उतरना है । हम धीरे-धीरे सगाल पोल तक पहुँच गये । तलेटी पहुँच कर अपने स्थान में सुखपूर्वक आये। बोलो आदीश्वरभगवान की जय “जय गिरिराज" "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” 465 Jai B atonrereational W ainelibreria
SR No.004225
Book TitleChari Palak Padyatra Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajhans Group of Industries
PublisherRajhans Group of Industries
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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