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स्तुतियाँ बोलकर भगवान के साक्षात्कार के आनन्द की अभिव्यक्ति करें । एवं दर्शनं देवदेवस्य... हे देवाधिदेव ! आपके दर्शन से जीव के पाप नाश हो जाते हैं, हे नाथ ! आपके दर्शन से जीव स्वर्ग के सुख प्राप्त करते हैं, और हे प्रभु ! आपके दर्शन से जीव मिटकर शिव बन जाता है......!
"बोल बोल आदीश्वर व्हाला कांई थारी मरजी रे...."
चेतन ! दादा के समक्ष हाथी पर मरुदेवी माता बैठी है । भगवान के दर्शन से वे केवलज्ञान प्राप्त करके हाथी पर बैठी - बैठी ही मोक्ष में चली गई ।
हम भी मरुदेवा माता की तरह दर्शन करना सीखें | धन्य माता ! धन्य पुत्र !
चेतन ! अब हम यात्रा का अन्तिम पाँचवाँ चैत्यवन्दन करें । पच्चक्खाण करके सबके साथ "आव्यो दादा ने दरबार " गीत से प्रभुभक्ति में तन्मय हो जायें ।
आव्यो दादा ने दरबार, करो भवोदधि पार ।
खरो तू छे आधार, मोहे तार तार तार ॥ १ ॥ आत्म गुणोनो भंडार, तारा महिमा नो नहि पार । देख्यो सुन्दर देदार, करो पार पार पार ॥२॥ तारी मूर्ति मनोहार हरे मन ना विकार । मारा हैया नो हार, वंदुं वार वार ॥३॥ आव्यो देरासर मोझार कर्यो जिनवर जुहार । आव्यो पालीताणा मोझार, कर्यो आदि जिन जुहार । प्रभु चरण आधार, खरो सार सार सार ॥ ४ ॥
आत्मकमल सुधार तारी लब्धि छे अपार । एनी खुबी नो नहीं पार, विनंती धार धार धार ॥५॥ सूरिगुणरत्नसार, आवे पालिताणा मोझार, करे विनंती अपार, मोहे तार तार तार ॥ ६ ॥
66 'सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” 45
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