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________________ ARRRRTM चेतन ! चलो अपन दादा के मंदिर में अपनी बाई ओर से प्रदक्षिणा चालू करें । प्रथम प्रदक्षिणा में हमें प्रथम सहस्रकुट मंदिर में दर्शन करने हैं। गुरुदेव ! इतनी सारी भगवान की मूर्तियाँ बनाई गई हैं ? चेतन ! भूत, भविष्य और वर्तमान इन तीन कालों में तीन चौबीसी होती हैं । इस तरह 24X3 = 72 भगवान हुए। ये तीनों चौबीसी ५ भरत एवं ५ ऐखत में हुई हैं । अत: 72X10 = 720 भगवान हुए । वर्तमान चौबीसी के प्रत्येक भगवान के पाँच कल्याणक होते हैं । अतः 24X5 = 120 भगवान हुए। इस प्रकार 720+120 = 840 भगवान हुए । महाविदेह की ३२ विजय में उत्कृष्ट से ३२ भगवान होते हैं और इस प्रकार के महाविदेह पाँच हैं। अत: 35X5 = 160 भगवान हुए । इस प्रकार 840X160 1000 भगवान, उनमें सीमंधर आदि २० विहरमान तीर्थंकर और ४ शाश्वत तीर्थंकर जोड़ने से 1000+20 + 4=1024 भगवान यहाँ प्रतिष्ठित किये गये हैं । इस कारण से यह "सहस्रकूट" कहा जाता है । = इसकी संकलना आचार्य भगवन्त श्री हीरसूरीश्वरजी म.सा. की परम्परा के आचार्य श्री विजयसिंहसूरिजी महाराज ने की है । इस सहस्रकूट मंदिर का निर्माण आगरा निवासी गुमानसिंह आदि भाईयों ने अपने पिता 'वर्धमान के वचन से व उनके पुण्यार्थ करवाया । तथा इसकी प्रतिष्ठा उपाध्याय श्री विनयविजयजी महाराज ने वि. संवत् १७१८ जेठ शुक्ला ६ को सम्पन्न कराई है । गुरुदेव ! इस सहस्रफूट का रहस्य तो मुझे आज ही ज्ञात हुआ । "नमो जिणाणं" ..... 99 “सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः 33 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004225
Book TitleChari Palak Padyatra Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajhans Group of Industries
PublisherRajhans Group of Industries
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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