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चेतन ! तत्पश्चात् हम दादा के मंदिर के पीछे की देहरियाँ तथा रायण पादुकाओं के दर्शन करें । इसके बाद आगे चलने पर बायीं ओर १४५२ गणधरों की पादुकाएँ हैं । चौबीश तीर्थंकरों के ऋषभसेन आदि कुल १४५२ गणधर हुए । अत: इतनी पादुकाएँ हैं । एवं विशेषता यह है कि, जिस तीर्थंकर के जितने गणधर हों, उतने गणधर की चरण पादुकाओं के प्रति उन तीर्थंकर की भी चरण पादुकाओं साथ में प्रतिष्ठित है अर्थात् २४ तीर्थंकर की भी चरण पादुकाएँ हैं, अतः उन्हें " नमो जिणाणं " व गणधर पादुकाओं को " नमो सिद्धाणं" कहकर आगे बढ़ें ।
चेतन ! थोड़ा आगे बायीं ओर हम सीमंधर स्वामी के मंदिर के दर्शन कर लें । " नमो जिणाणं" । विहरमान केवली तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी ने इस शत्रुंजय गिरिराज की महिमा गाई है । इस जिनालय का तथा नवीन आदीश्वरजी के जिनालय का वस्तुपाल तेजपाल ने निर्माण कराया था । वास्तविक बात तो यह है कि इस जिनालय में स्थापित मूर्ति पर आदीश्वर भगवान का लेख है, और वि.सं. १६७७ मिगसर सुद ५ को जगद्गुरु आ. हीरसूरिजी म.सा. ने प्रतिष्ठा करवाई थी । हाँ ! पहले ईधर श्री सीमंधर स्वामी की प्रतिमा स्थापन का विचार था । उस कारण से लोग इस मूर्ति को श्री सीमंधर स्वामी भगवान कहते हैं, अतः हम भी इसी नाम से पहचान रहे हैं । इस जिनालय में सरस्वती की प्राचीन प्रतिमा भी है ।
चेतन ! यहाँ रंग मंडप में देवी की मूर्ति है । उसे अमा (अम्बिका) देवी कहते हैं । चेतन ! इस दुनिया में सज्जन को ही सहन करना पड़ता है । धतूरे को कोई छूता भी नहीं, परन्तु चन्दन के वृक्ष पर कुल्हाडी आदि के प्रहार सहन करने पडते हैं । अमका के ससुराल पक्ष
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“सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः” 34
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