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जय तलहटी पर करने का प्रथम चैत्यवंदन
धन्य.१
श्री शत्रुजय सिद्धक्षेत्र, दीठे दुर्गति वारे;
____भाव धरीने जे चढे, तेने भव पार उतारे. अनंत सिद्धनो ऐह ठाम, सकल तीर्थनो राय;
पूर्व नवाणुं ऋषभदेव, ज्यां ठविया प्रभु पाय सूरजकुंड सोहामणो कवडजक्ष अभिराम;
नाभिराया कुलमंडणो, जिनवर करुं प्रणाम
(सिद्धगिरि का स्तवन सिद्धाचलगिरि भेट्या रे, धन्य भाग्य हमारा; ओ गिरिवरनो महिमा मोटो, कहेतां न आवे पारा; रायणरुख समोसर्या स्वामी, पूरव नवाणुं वारा रे, मूलनायक श्री आदिजिनेश्वर, चौमुख प्रतिमा चारा; अष्टद्रव्यशुं पूजो भावे, समकित मूल आधारा रे, भाव भक्ति सुं प्रभु गुण गातां, अपना जन्म सुधारा; यात्रा करी भविजन शुभ भावे, नरक तिर्यंच गति वारा रे, दूर देशांतरथी हुं आव्यो, श्रवणे सुणी गुण तोरा; पतित उद्धारण बिरुद तमासँ, तीरथ जग सारा रे, संवत अढार त्यासी मास अषाढा, वदि आठम भोमवारा; प्रभुजी के चरण प्रताप के संघ में, खिमारतन प्रभु प्यारा रे.
श्री शत्रुजय की स्तुति श्री सिद्धाचल मंडण, ऋषभ जिणंद दयाल, मरुदेवानंदन, वंदन करुं त्रण काल;
ओ तीरथ जाणी, पूर्व नवाणुं वार, आदीश्वर आव्या, जाणी लाभ अपार;
धन्य.२
धन्य. ३
धन्य.४
धन्य. ५
"सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” 57
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