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चेतन ! हम तनिक आगे बढ़े, जहाँ बायीं ओर विक्रम संवत् १८७० में अहमदाबाद निवासी सेठ श्री हेमाभाई वखतचन्द द्वारा निर्मित कुण्ड एवं प्याऊ हैं और उसके समीप ही नक्कासी युक्त देहरी में कमलपत्र में ऋषभ, चन्द्रानन, वारिषेण तथा वर्द्धमान- इन चार शाश्वत तीर्थंकरों की चरण पादुकाएँ है । नमो जिणाणं" कह कर उनके दर्शन करके हम अपना जीवन धन्य बनायें ।
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चेतन ! इस देहरी के पीछे " छालाकुण्ड है ।
चेतन ! थोडी सीढ़ियाँ चढ़ने पर दायी ओर" श्री पूज्य की हूँक" दृष्टिगोचर होती है ।
चेतन ! इस श्री पूज्य टँक का निर्माण तपागच्छीय श्रीपूज्य देवेन्द्रसूरिजी म.सा. की
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प्रेरणा से हुआ है । यहाँ चौदह देहरियाँ हैं ।
एक देहरी में श्री पार्श्वनाथ की अधिष्ठायिका पद्मावती की सात फणों से युक्त सत्रह इंच की मूर्ति है । उसके मस्तक पर पार्श्वनाथ भगवान की पाँच फणों से युक्त प्रतिमा है ।
चेतन ! पार्श्व प्रभु को " नमो जिणाणं" कहकर वन्दन करके साधर्मिक रुप में पद्मावती देवी को करबद्ध प्रणाम करना । द्वितीय देहरी में मणिभद्रजी की प्रतिमा है । चेतन ! श्रावक-श्राविकाओं को उन्हें प्रणाम करना चाहिये" और साधु-साध्वियों को "धर्मलाभ " बोलना चाहिये ।
चेतन ! यहाँ" एक कमरे में श्री गौतम स्वामी की मूर्ति है । लोग यहां पर एक लम्बा और मोटा साँप बहुत बार देखते हैं । शायद वह सांप यहाँ का अधिष्ठायक हो सकताहै. यहाँ आस-पास की देहरी में श्री पूज्य की चरण पादुकाएँ हैं । ईधर एक विशाल कुण्ड भी है, जिसके चारों ओर चार देहरियाँ हैं । इसमें क्रमश: गोडीजी पार्श्वनाथ, आदिाथ,
“सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” 20
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