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________________ गौतमस्वामी और धर्मसूरिजी की चरण-पादुकाएँ हैं। "जैन परंपरा का इतिहास" पुस्तक के अनुसार यह ढूंक जिनेन्द्र सूरि की प्रेरणा से बनी है, जिससे इस ढूंक को जिनेन्द्र ढूंक भी कहते हैं। चेतन ! श्रीपूज्य दूंक से बाहर आकर कुछ कदम ऊपर चढ़ने पर दाहिनी ओर के चबूतरे पर एक देहरी में काउस्सग ध्यान में चार खड़ी श्याम प्रतिमाएँ हैं । उन्हें "नमो सिद्धाणं कहें । उसमें पहली और दूसरी प्रतिमा क्रमश: द्राविड़ और वारिखिल्ल्जी की हैं । तीसरी प्रतिमा अईमुत्ता मुनि की है। ___चेतन ! चौथी मूर्ति नारदजी की है । नारदजी यानि कौतुक - वृत्ति वाले पुरुष तथा कलह कराने में दक्ष ऐसी उनकी छाप थी । आज भी ईधर की ऊधर और ऊधर की ईधर बातों में भिड़ानेवाले व्यक्ति को "नारद का नाम दिया जाता है । परन्तु नारदजी उत्तम नैष्ठिक अखण्ड ब्रहाचर्य के धारक थे। यह बहुत कम लोग जानते हैं, श्री कृष्णजी की द्वारिका का दाह एवं उसमें करोड़ों यादवों के भस्म हो जाने के भयानक दृश्य को देखकर वे विरक्त हो गये और दीक्षा ग्रहण करके एंकाणवे लाख मुनियों के साथ इस गिरिराज पर आकर उन्होंने अनशन किया और मोक्ष सिधारें। चेतन ! तनिक आगे बढ़ने पर, बायीं ओर एक कुण्ड है, जो "हीराकुण्ड' कहा जाता है । विमलवसही (दादा की ट्रॅक) में जिनालय का निर्माण कराने वाली हीराबाई ने इस कुण्ड का निर्माण करवाया था। चेतन ! कुछ सीढ़ियां चढ़ने पर दाहिनी ओर की एक देहरी में हमें काउसग्ग ध्यान में खड़ी पाँच श्याम मूर्तियाँ दृष्टिगोचर होती है। उन्हें "नमो सिद्धाणं कहें । Jain Educati "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः"21
SR No.004225
Book TitleChari Palak Padyatra Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajhans Group of Industries
PublisherRajhans Group of Industries
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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