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________________ VE चेतन ! इनमें से प्रथम दो मूर्तियाँ राम व भरत की है । दशरथ महाराजा के पुत्र रामचन्द्रजी तथा भरतजी ने इस शत्रुजय का श्री मुनिसुव्रत स्वामी के शासन में ग्यारहवां उद्धार कराया था। तत्पश्चात् राम एवं भरत संयम अंगीकार करके इस गिरिराज पर तीन करोड़ मुनियों के साथ अनशन करके मोक्ष गये हैं। चेतन ! तीसरी मूर्ति थावच्चा पुत्र की है । थावच्चा पुत्र एक हजार मुनियों के साथ इस गिरिराज पर अनशन करके मोक्ष गये हैं। . चेतन ! चौथी शुकाचार्य की मूर्ति है। एक हजार शिष्यों के साथ सिद्धगिरि पर आये और अनशन करके मोक्ष में गये। चेतन ! पाँचवी शैलकाचार्य की मूर्ति है। शैलकाचार्य सिद्धगिरि पर आकर ५०० शिष्यों के साथ अनशन करके मोक्ष गये। चेतन ! थोडासा आगे चलने पर बायीं ओर एक कुण्ड आता है। राणा बावडी तथा सात कमरों के समीप धर्मशाला का निर्माण करानेवाले सूरत के सेठ भूखणदास ने इस कुण्ड का निर्माण कराया था। मार्ग में आनेवाले कुण्डों में यह अंतिम कुण्ड है । यद्यपि रामपोल के पश्चात् सूरज कुण्ड आदि अन्य कुण्ड भी है। चेतन ! थोड़े सोपान चढ़ते हैं, तब बायीं ओर देहरी में आदीश्वर भगवान की चरण पादुकाएँ हैं । वहां "नमो जिणाणं" बोल कर ऊपर चढ़ें। चेतन ! सुकोशल मुनि के चरण पादुकाओं को "नमो सिद्धाणं" बोल कर हम आगे चलें। चेतन ! दूसरी छोटी देहरी में नमि की ६४ पुत्रियाँ जो गिरिराज पर मोक्ष उन्हें "नमो सिध्धाणं में गई हैं। चेतन ! वहाँ से कुछ सीढ़ियां चढ़ने पर हमें बाँयी ओर एक बरगद का वृक्ष दृष्टिगोचर होता है, यह छट्ठा विश्राम है, वृक्ष के नीचे गर्म पानी की प्याऊभी है, परन्तु शक्य हो, तो हमें सिद्धगिरिराज पर पानी का उपयोग नहीं करना है। "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाबल गिरि नमो नम: 220
SR No.004225
Book TitleChari Palak Padyatra Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajhans Group of Industries
PublisherRajhans Group of Industries
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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