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________________ श्री पार्श्वनाथ भगवान स्तवन 1 तुं प्रभु मारो हुं प्रभु तारो, क्षण ओक मुजने नाहि विसारो; महेर करी मुज विनंती स्वीकारो, स्वामी सेवक जाणी नीहाळो. तुं प्रभु० १ लाख चोराशी भटकी प्रभुजी, आव्यो हुं तारे शरणे जिनजी; दुरगति कापो शिवसुख आपो, भक्त-सेवकने निज पद स्थापो. तुं प्रभु० २ अक्षय खजानो प्रभु तारो भर्यो छे, आपो कृपालुं में हाथ धर्यो छे; वामानंदन जगवंदन प्यारो, देव अनेरा मांहे तुं न्यारो. तुं प्रभु० ३ पल पल समरुं नाथ शंखेश्वर, समरथ तारण तुं हि जिनेश्वर; प्राण थकीतुं अधिको वहालो, Education International दया करी मुजने नेहे निहालो. तुं प्रभु० ४ भक्त वत्सल तारुं बिरुद जाणी, केड न छोडुं ओम लेजो जाणी; चरणोनी सेवा नित नित चाहुं, घडी घडी मनमांहे उमाहुं. तुं प्रभु० ५ “ज्ञानविमल" तुज भक्ति प्रभावे, भवोभवनां संताप शमावे; अमीय भरेली तारी मूरति निहाली, पाप अंतरना देजो पखाली. 'सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः" तुं प्रभु० ६ 90 www.jainelibrary.org
SR No.004225
Book TitleChari Palak Padyatra Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajhans Group of Industries
PublisherRajhans Group of Industries
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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