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प्रथम उद्धार :
भगवान ऋषभदेव के पुत्र एवं संपूर्ण भरतखंड के चक्रवर्ती भरत महाराज ने प्रभु आदिनाथ के उपदेश से इस अवसर्पिणी काल का सर्वप्रथम उद्धार कराया । भरत चक्रवर्तीने आरिसा भवन में केवलज्ञान प्राप्त किया और बाद में वे मोक्ष गये ।
दूसरा उद्धार :
भरत चक्रवर्ती के आठवीं पाट पर दण्डवीर्यराजा हुए, जिनकी साधर्मिक भक्ति की प्रशंसा इन्द्र लोकमें हुई थी। परीक्षा हेतु इन्द्र खुद आया । लाखों साधर्मिक बनाये । " जब तक सभी का भोजन नहीं होगा मैं अन्न का दाणा नही लूंगा" देवमाया से साधर्मिक बढते ही गये । राजा के आठ दिन उपवास हो गये। मंत्रियों ने धूप दीप किया । इन्द्रने प्रगट होकर कहा, कमाल ! कमाल ! अदभूत है आपकी साधर्मिक भक्ति ! भावना में अंशमात्र की भी कमी नहीं आई ।
दंडवीर्यराजा ने शाश्वतगिरिराज का उद्धार करवाया । आरिसा भवन में केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष गये ।
तीसरा उद्धार :
श्री सीमंधर स्वामी के उपदेश को सुन एक सौ सागरोपम व्यतीत होने पर दूसरे देवलोक के ईशानेन्द्र ने उद्धार करवाया । चौथा उद्धार :
एक करोड सागरोपम काल व्यतीत होने पर चौथे देवलोक के इन्द्र माहेन्द्रने उद्धार करवाया ।
पांचवाँ उद्धार :
दस करोड सागरोपम काल व्यतीत होने के बाद पांच मे देवलोक के इन्द्र ब्रह्मेन्द्रने करवाया ।
• Jain Education Inte] सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः” 49
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