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________________ उक्त व्यंग्य उसके अंग-अंग में चुभ गया और विक्रमशी को जोश आ गया। तलहटी में लोगों को कह कर गया कि "मैं जा रहा हूँ. गिरिराज पर । यदि ऊपर जाकर घंट बजाऊं, तो आप लोग समझना कि बाघिन मारी गयी है और यात्रा प्रारंभ हो गई है।" विक्रमशी सोटा (डंडा) लेकर ऊपर चढ़ा । बाघिन सोई हुई थी। सोये हुए पर आक्रमण करना कायर का कार्य कहलाता है । उसने बाघिन को ललकारा और उसके सिर पर ऐसा प्रहार किया की बाघिन चक्कर खाकर गिर पड़ी और अचेत हो गई। विक्रमशी जब घंटा बजाने के लिए आगे बढ़ा कि बाघिन चेतना में आ गई । उसने विक्रमशी पर पीछे से छलांग लगाई कि वह युवक घायल हो गया, फिर भी उसने सोटे से ऐसा खतरनाक प्रहार किया कि घायल बाघिन लड़खड़ाकर गिर गई और उसके प्राण पखेरु उड़ गये । लड़खड़ाते पाँवों से जैसे तैसे खड़े होकर युवक विक्रमशी ने अपनी समस्त शक्ति एकत्रित करके आगे बढ़कर मंदिर में घंटा बजा दिया। उसके बाद तुरंत उसके प्राण पंखेरु उड़ गये । पूर्व संकेतानुसार मार्ग निर्विघ्न जान कर लोग गिरिराज पर आये। वहां आकर देखा तो क्रमश: बाघिन तथा युवक के शव पड़े हुए थे । वीर विक्रमशी का शव मंदिर में देखकर संघ फुट फुट कर रोने लगा । उसके बाद उसकी स्मृति के निमित्त से पोलिया स्थापित किया गया । सचमुच, यात्रा प्रारंभ करनेवाले वीर विक्रमशी का बलिदान अमर रहेगा। चेतन ! सामने ही हाथी पोल आती है । पोल के दोनों ओर कलात्मक हाथी उत्कीर्ण हैं । इसलिए यह हाथी पोल कही जाती है । हाथीपोल में प्रविष्ट होते समय बायीं ओर शिलालेख लगा हुआ है। "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नम:30/FORM www.jainelik og
SR No.004225
Book TitleChari Palak Padyatra Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajhans Group of Industries
PublisherRajhans Group of Industries
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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