SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जे दृष्टि प्रभु दरिशन करे, ते दृष्टिने पण धन्य छे, जे जीभ जिनवर ने स्तवे, ते जीभ ने पण धन्य छे, पीये मुदा वाणी सुधा, ते कर्ण युगने धन्य छे, तुज नाम मंत्र विशद धरे, ते हृदयने पण धन्य छे ॥१॥ हे देव ! तारा दिलमां, वात्सल्यना झरणा भर्या, हे नाथ ! तारा नयनमां, करूणा तणा अमृत भर्या, वीतराग तारी मीठी मीठी, वाणीमां जादू भर्या, तेथी ज तारा चरणमां, बालक बनी आवी चड्या ॥२॥ जेना गुणोना सिंधुना, बे बिंदु पण जाणुं नहि, पण एक श्रद्धा दिल महीं के, नाथ सम को छे नहि, जेना सहारे क्रोड तरिया, मुक्ति मुज निश्चय सही, एवा प्रभु अरिहंतने, पंचांग भावे हुं नमुं ॥३॥ मंदिर छो मुक्तितणा, मांगल्य क्रीडाना प्रभु, ने इन्द्र नरने देवता, सेवा करे तारी विभु, सर्वज्ञ छो स्वामिन् वली, शिरदार अतिशय सर्वना, ____घj जीव तुं, घj जीव तुं, भंडार ज्ञान कला तणा ॥४॥ में दान तो दीधुं नहि, ने शीयल पण पाल्युं नहि, तपथी दमी काया नहि, शुभ भाव पण भाव्यो नहि, ए चार भेदे धर्ममांथी कांई पण प्रभु नव कर्यु, मारूं भ्रमण भवसागरे निष्फल रायं निष्फल सायं ॥५॥ दया सिंधु ! दया सिंधु ! दया करजे दया करजे, 4 'मने आ जंजीरोमांथी, हवे जल्दी छूटो करजे, नथी आ ताप सहेवातो, भभूकी कर्मनी ज्वाला, वर्षावी प्रेमनी धारा, हृदयनी आग बुझवजे ॥६॥ | Jain Education Internati सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः” 63 www.jainelibrary.org
SR No.004225
Book TitleChari Palak Padyatra Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajhans Group of Industries
PublisherRajhans Group of Industries
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy