SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 10 श्री चिन्तामणि पासजी, दादा चात सुणो एक मोरी रे, मारा मनना मनोरथ पूरजो, हुतो भक्ति न छोडुं तोरी रे. मारी खिजमतमां खामी नहि, ताहरे खोट न कांई खजाने रे, हवे देवानी शी ढील छे, कहेवुं ते कहीऐ थाने रे. तमे उरण सवि पृथ्वी करी, धन वरसी वरसीदाने रे, मारी वेला शुं एहवा, दीयो वांछित वालो वानो रे. हुं तो केड नहि छोडुं ताहरी रे, आप्या विण शिवसुख स्वामी रे, मूरख ते ओछे मानशे, चिन्तामणि करतल पामी रे. मत कहेशो तुज कर्मे नथी, कर्मे छे तो तुं पाम्यो रे, मुज सरिखा कीधा मोटका, कहो तेणे कांई तुज थाम्यो रे काल स्वभाव भवितव्यता, ऐ सघला तारा दासो रे, मुख्य हेतु तुं मोक्षनो, ऐ मुजने सबल विश्वासो रे अमे भक्ते मुक्तिने खेचशुं, जिम लोहने चमक पाषाणो रे, तु जे हसीने देखशो, कहेशो सेवक छे सपराणो रे भक्ति आराध्या फल दिए, चिन्तामणि पण पाषाणो रे, वली अधिकं कांई कहावशो, ऐ भद्रक भक्ति ते जाणो रे. बालक ते जिम तिम बोलतो, करे लाड तातने आगे रे, ते तेहशुं वांछित पूरवे बनी, आवे सघलुं रागे रे. माहरे बननारुं ते बन्युं ज छे, हुं तो लोकने वात शीखावुं रे, वाचक जस कहे साहिबा, ऐ रीते तुम गुण गावुं रे. " सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” 99 For Personal & Private Use Only Wah Educate international १० www.jainenbrary
SR No.004225
Book TitleChari Palak Padyatra Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajhans Group of Industries
PublisherRajhans Group of Industries
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy