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________________ यहाँ तीसरा चैत्यवंदन करना है । उसके दाहिनी ओर की दीवार में मोर, साँप, सिंह व हाथी की मूर्तियाँ हैं। चेतन ! उस रायण पादुका की देहरी के पास बायीं ओर एक देहरी है । श्री धनपाल कवि द्वारा रचित "तिलक मंजरी" ग्रन्थ में कहाहै कि - "नमि विनमि कृपाणोत्संगदृश्यांग लक्ष्मी: इसके अनुसार इस देहरी में ऋषभदेव के दोनों ओर तलवार लेकर नमि विनमि खड़े प्रतीत होते हैं । "नमो सिद्धाणं...." तलवार में प्रभु का प्रतिबिम्ब दिखाई देता है। शिल्पी ने अपनी कला से यह दृश्य बताया है। चेतन ! इसके पास देहरी में मुनि श्री बाहुबली बताए हैं। उनकी दोनों तरफ स्थित ब्राह्मी और सुंदरी (बहिन साध्वी म.) प्रतिबोध दे रही हैं कि "वीरा मोरा गज थकी नीचे उतरो" तब बाहुबली अहंकार छोड़ कर केवल ज्ञानी लघु बन्धुओं को वंदन करने के लिए कदम उठाते हैं, उसी वक्त उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति होती है। चेतन ! इनके पास में दूसरी मूर्ति भरत महाराजा की है। अनित्य भावना से भावित होने पर उन्हें आदर्श (आरिसा) भवन में केवलज्ञान प्राप्त हुआ था। दोनों तरफ दो देव खड़े दिखाई देते है।"नमो सिद्धाणं। पक्ष किसन सुकल व्रत चारीजी, शेठ विजय ने विजया नारीजी....!! चेतन ! आगे जाने पर बायीं ओर एक गोखले में विजय सेठ एवं विजया सेठानी की खड़ी मूर्तियाँ हैं । शादी से पूर्व विजय सेठ ने कृष्णपक्ष में ब्रहाचर्य पालन करने का एवं विजयाने शुक्लपक्ष का नियम ग्रहण किया था। इन दोनों की परस्पर शादी हो Jale curcallof international “सिद्धाचल गिरि नमो नमः बिमलाचल गिरि नमो नमः” 40 ainelibrary.org
SR No.004225
Book TitleChari Palak Padyatra Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajhans Group of Industries
PublisherRajhans Group of Industries
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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