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विद्यामण्डनसूरिजी की मुख्यता में ५०० आचार्यों ने दादा की अंजनशलाका प्रतिष्ठा सं. १५८७ चै.वद-६ (गुज चै. वद ६ ) के दिन की । प्रतिष्ठा में सवाक्रोड और जिर्णोद्धार में अपार द्रव्यका खर्चा किया । परमात्मा ने इंसान की तरह सात बार सांस ली। बिजली गिरी। परमात्मा की नासिका खंडित हुई । पर उत्थापन करने गये तो "म" ऐसी आवाज आई, फिर वही प्रतिमा रखी है। - ऐसे प्रगट प्रभावी आदिनाथ दादा को वंदन। सत्रहवाँ उद्धारः
पांचवें आरे के अन्त में श्री दुप्पसिंहसूरीश्वरजी महाराज के उपदेश से राजा विमलवाहन करायेंगे और वह इस अवसर्पिणी का अन्तिम उद्धार होगा।
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Almoon"सिद्धाचल गिरि नमो नमः * तिमलाचल गिरि नमो नमः” 55
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