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चेतन ! अनागत (भावी) चौबिशी के सभी तीर्थंकर यहां पधारकर देशना देंगे और मोक्ष सिधारेंगे।
चेतन ! द्रव्य - यात्राएँ तो तुमने अनेक की होगी, परंतु आज भाव यात्रा करनी है।
चेतन ! पुण्यशाली जैन एवं अजैन व्यक्ति श्री सिद्धगिरिराज . महातीर्थ पर जाकर आदीश्वर दादा को भाव पूर्वक वंदन करते हैं और अपने कर्मों का क्षय करते हैं । सिद्धगिरि की महिमा केवलज्ञानी ही जानते हैं । परंतु वे कह नहीं सकते, तीनों कालों में यह तीर्थाराज प्रायः शाश्वत हैं । इस तीर्थ की महिमा प्रदर्शित करनेवाली पंक्तियाँ तूने सुनी ही होंगी -"पापी अभव्य नजरे न देख्ने", "गिरिवर फरसण नवि कोए, ते रह्यो गर्भावास...", "पशु पंखी जे इण गिरि आवे, भव त्रीजे ते सिद्ध ज थावे ।" ऐसे अनुपम महातीर्थ की आज तुझे भाव पूर्वक यात्रा करनी है, जिससे भव यात्रा मिट जायें । इस भावयात्रा का अर्थ ही यह है कि "A complete Concentration; a Peaceful yoga and meditation of Shatrunjaya." ____चेतन ! शत्रुजय तीर्थ जगत के तीर्थों में महान प्रभावक और चमत्कारी है व आकाश में लाखों सितारों के बीच में जैसे चंद्र शोभता है, उसी तरह शत्रुजय अनेक तीर्थों में सुशोभित है । पुण्य पुंज का यह धाम है । जैसे रजनी के गाढ अंधकार में किसी मार्ग भूले प्रवासी को ध्रुव का तारा या झोपडी का दीपक भी सच्ची राह बताता है, उसी प्रकार संसार के आधि, व्याधि तथा उपाधि में ग्रस्त संतप्त मानव को पवित्र जीवन की राह शत्रुजय गिरि का उत्तुंग शिखर बता रहा है।
चेतन ! तनिक ध्यान रखना और चलते समय अन्य कुछ भी बात मत करना । सिद्धगिरिराज की महापवित्र धरती में मोक्ष सिधारे ऐसे है महा पुण्यशाली आत्माओं का चिन्तन करते करते चलो आगे बढें -
बीच-बीच में जहाँ तीर्थंकरों की चरण-पादुकाएँ एवं प्रतिमाजी । आयें, वहां "नमो जिणाणं" और जहां सिद्ध परमात्मा की चरणपादुकाएँ तथा प्रतिमाजी आयें, वहां"नमोसिद्धाणं" बोलना।
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U V नमो नमः * विमलाचल गार नम
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