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वीस करोड आत्माओं के साथ पांच पांडव सिद्ध गिरिराज पर मोक्ष में गये । इस प्रकार चौथे आरे में १२ मुख्य उद्धार हुए। बीच बीच में छोटे छोटे अनेक उद्धार हुए। तत्पश्चात पांचवे आरे में निम्नलिखित चार बडे उद्धार हुए ।
तेरहवाँ उद्धार :
दस पूर्वधर श्री वज्रस्वामी के उपदेश से विक्रम सं. १०८ में जावडशाने करवाया ।
कांपिल्यपुर में भावड - भावला संपन्न थे । कर्मवश परिस्थिति बदली पर सत्वशील धर्मशील रहे । ज्ञानी गुरु द्वार पर पधारें । भविष्य में शत्रुंजय के तीर्थोद्धार में निमित्त बनेंगे । यह जान कर गुरु म.सा. ने कहा "लक्षणवंती घोडी बाजार में बिकने आएगी । ले लेना ।" घोडी खरीदी उसने अश्वरत्न को जन्म दिया । तपन राजाने तीन लाख द्रव्य देकर अश्वरत्न खरीदा । उस धन से बहुत घोडियां ली । २१ अश्वरत्न पैदा हुए। भावडशा ने राजा विक्रम को भेट दिये । राजाने खुश हो कर पालिताणा के पास १२ गांव सहित मधुमति भावडशा को भेंट में दी । मधुमति प्रवेश के वक्त जावड का जन्म हुआ । घेटी की सुशीला के साथ शादी हुई। राज सम्हालते म्लेच्छों का आक्रमण हुआ । बंदी बनाकर म्लेच्छ देश में ले गये । अपनी बुद्धि कौशल से वहां के राजा को खुश किया और चक्केश्वरी के आदेश से राजा जगन्मल्ला से तक्शशिला के धर्मचक्रतीर्थ से आदिनाथ परमात्मा लानेकी अनुमति प्राप्त की । मूर्ति गिरिराज पर चढाने लगे । दिन में बडी मुश्केली से चढाते, रात को मूर्ति पुनः नीचे आ जाती । २१ दिन ऐसा हुआ । जावडशा थक गये । संघ लेकर आये थे, मगर काम नहीं हो रहा था ।
आ. श्री वज्रस्वामी ने नये कवडयक्ष को काम सौंपा । तीर्थोद्धार हो चुका था । मूलनायक बिराजमान करने है । पूराना कवडयक्ष विघ्न कर रहा था । नये कवडने गुरुदेव से विनंती की कि
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'सिद्धाचल गिरि नमो नमः विमलाचल गिरि नमो नमः" 51
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