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________________ मन्दिरमार्गी आचार्य बने । जब वे सिद्धगिरिराज पर आये, तब दादा की स्तुति बोलते समय उन्होंने भगवान के समक्ष कुमत स्थानकवासी सम्प्रदाय में फंस जाने की बात का इकरार किया और सुमत स्थापनानिक्षेप मूर्ति तथा स्थावर तीर्थ का स्वीकार करने का आनन्द हर्षाश्रुओं के द्वारा व्यक्त किया। चेतन ! उनकी स्मृति में पंजाब जैन संघ एवं आत्मानंद जैन सभा भावनगर ने श्री सीमंधर स्वामी के मन्दिर के पूर्व दिशा के द्वार के बाहर दाहिनी ओर सुन्दर कलात्मक संगमरमर के गोख में पंच धातु की न्यायाम्भोनिधि पंजाब देशोद्धारक आचार्यदेवश्री विजयानंद सूरीश्वरजी महाराज की मूर्ति प्रतिष्ठित की है । आओ, हम गुरुवन्दन कर लें। गुरुदेव ! इस मूर्ति के दर्शन तो मैंने आज तक किये ही नहीं। चेतन ! दूसरी प्रदक्षिणा में प्रथम नये आदीश्वरजी का मंदिर आता है । बिझली गिरने से मूलनायकजी श्री आदीश्वर भगवान की प्रतिमाजी की नासिका खण्डित हो गई थी। दूसरी मूर्ति स्थापित करने के लिए श्री आदीश्वर प्रभु का नूतन बिम्ब लाया गया, परन्तु चमत्कारी प्राचीन दादा की मूर्ति का उत्थापन करते समय"म" कार की ध्वनि हुई । अधिष्ठायक देव ने आज्ञा नहीं दी, अत: यह नूतन मूर्ति श्री वस्तुपाल तेजपाल द्वारा निर्मित इस जिनालय में स्थापित की गई एवं दो बड़े काउस्सग्गिये तथा बड़ी चरण पादुका भी यहाँ सूरत निवासी शेठ श्री ताराचन्द संघवी द्वारा अपने स्वप्न के अनुसार प्रतिष्ठित की गई।"नमो जिणाणं" _इस जिनालय में पन्द्रहवाँ उद्धार करानेवाले समराशा के पिताश्री देशलशा के जयेष्ठ भ्राता आसधर तथा उनकी धर्मपत्नी रत्नी श्री की मूर्तियाँ स्थापित की गई हैं। "प्रणाम... धर्मलाभ... "सिद्धाचल गिरि नमो नमः * विमलाचल गिरि नमो नमः” 36 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004225
Book TitleChari Palak Padyatra Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajhans Group of Industries
PublisherRajhans Group of Industries
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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