Book Title: Bhagvati Sutram Part 01
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir HOENO THETITET SERI णमोलद्धिनिहाणसिरिगोयमसामिस्स। निःशेषनिम्रन्थागमामरसरिहिमाचलभगवरङ्गीसुधर्मस्वामिमूत्रित ___ गूर्जरभाषानुवादयुतं ॥ श्रीमद्भगवतीसूत्रम् ॥ (प्रथमो भागः) (श्रीव्याख्याप्रज्ञप्तिः) (तस्यायं प्रथमो विभाग शतकत्रयात्मकः) वीरसंपत २४६३ । ..... पण्डित हीरालाल 0/ जामनगर वास्तव्य पाण्डत हारालालहसराज.विक्रम सं. १९९३ मूल्य रूप्यक त्रयम् ASS For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * ** * जामनगरस्यश्रीजैनभास्करोदय मुद्रणालये मेनेजर बालचंद्र हीरालाल इत्येतेन मुद्रितम् * **** For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आ प्राक्कथन. गतिना जमानामां ज्ञाननी अनिवार्य आवश्यकता के अने ए ज्ञानप्राप्ति सुलभ क्यारे बने के ज्यारे अध्यापकोनी जोगवाइ साथै अनेक ग्रंथोनुं प्रकाशन जुदा जुदा रूपमा वाचकवृंदने मळे त्यारे ते पोतानी ज्ञाननी वृषाने विं. चित् तृप्त करी शके छे, एटलुंज नहि परंतु ते ज्ञानना बळथी जगतमां अनेक अशक्य कार्यों करी आत्मकल्याणने साधवा साथै जगतनो आशीर्वाद प्राप्त करी शके थे. आवा हेतुथी खपरना श्रेयः माटे अमारा तरफथी सूत्रो, तथा चरितानुयोगो, सटीक तेमज भाषांतरवाळा लगभग अत्यार सुधीमां बसो ग्रंथो प्रसिद्ध यया के तेमज अन्य संस्थाओए पण ते कार्यपरत्वे वधारे लक्ष आपी अनेक ग्रंथो जुदा जुदा स्वरूपोमां मुद्रित करी जैनशासनना उद्धार माटे सारो प्रयास कर्यो छे अने करे थे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य महाराज आदिथी मेळवी शकाय एवा आपणा जैनशास्त्रमां मुख्य श्रीसुधर्मस्वामि आदि महापुरूषोप्रणीत आगम ग्रंथो छे जेने आपणे सूत्रो कहीए छीए. जेमां सिद्धांतोनुं स्पष्ट निरूपण कर्फ्यू छे अने जेना उपर विद्वान प्रातःस्मरणीय आचायोए टीकानी रचना रवी तेनुं स्पष्टीकरण करी आज आपणने माटे अखंड दीपक मूकी गया छे. ते दीपकना प्रकाशधी अनेक भव्यात्माओ स्वकल्याण करी शक्या छे अने करे छे. आवा आगमाना ग्रंथोनी आजथी साठ वर्ष पहेलां हस्तलिखित प्रतिओ क्वचित् कचित् भंडारमां मली शकती जेथी प्राचीनवाचकवृंद तेनो संपूर्ण लाभ लइ शकता पण वर्तमानमां बालकालथी मुद्रितथी देवातो वाचकवृंद ते लाभ लह शके नहि. आ मुश्केली रायबहादुर धनपतसिंहजी बाबुए अंग उपांग विगेरे मुद्रित करावी थोडे अंशे दूर करी. परंतु ते मुद्रणनी For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | लिपि बंगाळी मरोडनी अने छपाइ आजनी पद्धतिमर तेमज आद्यमुद्रण आदि कारणो नहिं होवाथी तेनो जैनजनता ज्ञाननी तृषा शांत करवा संपूर्ण लाभ लइ शक्की नहि, छतां तेओश्रीना प्रयास माटे तेमनो अत्रे आभार मानवो अस्थाने नहिं गणाय. त्यारपछी आ कार्य माटे जैनाचार्य श्रीमत् सागरानंदमूरीश्वरजीना सदुपदेशधी आगमोदयसमिति नामनी संस्था महेसाणानिवासि धन्यनाम शाह वेणिभाइ सुरचंदद्वारा स्थापित करावी तेमां मुद्रणना बहोळा खर्च माटे आश्रयदाताओनी आर्थिक सहायता मेळवी पोतानी जातमहेनतथी केटलीक प्रेसकोपी तैयार करावी प्रुफ संशोधन करी ते आगमो टीका सहित निर्णयसागर जेवा प्रेसमा मुद्रित करावी जैनशासननी उन्नति माटे न वर्णवी शकाय तेवो प्रयास करी पोतानी आगमोद्धारकनी पदवीने खरेखर दीपाची छे. त्यारबाद ते सूत्रोना भाषांतरो थवा लाग्या जेमां अमारा तरफथी आचारांगसूत्र, उत्तराध्ययन, दशवैकालिक वगेरे सूत्रोना अनुवादो प्रसिद्ध थया के तेमां आज आ श्रीमद्भगवतीमूत्रना अनुवादरूपे प्रथम भागनो वधारो थाय छे. आ भगवती जेवा महान् सूत्रनो अनुवाद छापी प्रसिद्ध करवानुं साहस अमारी शक्तिबहार हतुं. परंतु अत्रे संवत् १९९२ मां आगमोद्धारक पूज्यपाद सागरानंदसूरीश्वरजीनुं चातुर्मास अहीं (जामनगरमां) थयुं ते अरसामां तेओश्री तरफथी भगवतीसूत्र शासनधुरंबर अभयदेवसूरीश्वरजीनी टीका माथे पुनर्मुद्रण करवा माटे अमारा प्रेसने सौंप्यं. जेथी मने पत्राकारे भगवतीसूत्र भाषांतर साथै मुद्रित धाय तो ठीक एषो विचार रहेज उद्भन्यो, कारणके मूल सूत्रना पाठो तो तेओश्रीना हस्तथी संशोधन करेला काम लागसे एम धारी ते लेवानी तेओश्रीनी आज्ञा मागी. जो के सूत्रना भाषांतरो माटे तेमनी अनिच्छा छतां गये ते रस्ते ज्ञानमो For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रचार थाय तेनी रूकावट न करी अने आवी विशाळ दृष्टि राखी तेओए मूल स्त्रो लेवानो निषेध कयों नहि जेथी मूलपाठो तेना तेज दाखल कर्या . आ भगवतीमत्रना भाषान्तर माटे खास करी बावुनुं छापेल भगवती, श्रीयुत पंडित वेचरदासकृत अनुवाद, स्थानकवासी तरफथी प्रसिद्ध थयेल भगवती तथा आगमोदयसमिति अभयदेवमरीश्वरजीमहाराजनी टीकावा भगवतीसूत्र वगेरेनो आशर लइ तद्दन नवी प्रेसकोपी करी छपाब्यु . उपर्युक्त तमाम ग्रंथोनी सामग्री अत्रे बिराजता अंचलगच्छाधीश मुनिमहाराज श्रीगौतमसागरजी महाराज तरफथी मळेल के जेथी तेमनो तथा उपर्युक्त महाशयोनो आभार मानू . आ श्रीमद्भगवतीम्बना छ भाग थशे. तेमा प्रथम भागमा ३ शतक आप्या थे. आ सूत्रमा अमाराथी, प्रेसदोपथी अथवा लेखकथी जे काइ अशुद्ध विपरीत लखायूं होय ते वाचकगण क्षन्तव्य गणी अमोने आभारी करशे. आरीते प्रथम भाग माटे वे शब्द | लख्या छे अने बीजा भागनु प्रकाशन तुरत थाय एवी शासनदेवी प्रत्ये प्रार्थना करी विग्मई. संवत् १९९३ दि० सेवक फागण वद. थालचंद हीरालाल-जामनगर. For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छपाय छे! छपाय छे!! लेजरमा कागळ उपर० कल्पसूत्रसुबोधिकाटीका. (बारसोसहीत) किंमत मात्र रु. ३--. Schoot For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२॥ C% " अईम् ॥ श्रीमद्गणधरवरसुधर्मस्वामिप्रणीता। व्याख्याप्रज्ञप्तिः। (श्रीभगवतीसूत्रम्) १ शतके उद्देशः १ C3%* (मूल सूत्र अने तेना गुजराती भाषान्तर सहित) ॥ भाग-१. ॥ सर्वज्ञमीश्वरमनन्तमसङ्गमम्य, सार्वीयमस्मरमनीशमनीहमिद्धम् । सिद्धं शिव शिवकरं करणव्यपेतं, श्रीमजिन जितरिपुं प्रयतः प्रणौमि ॥१॥ अर्थः-सर्वज्ञ, ईश्वर, अनंत, असंग, अग्र्य, सर्वहितावह, अस्मर, अनीश, अनीह, तेजस्वी, सिद्ध, शिव, शिवकर, करण-इन्द्रियो अने शरीररहित, जितरिपुने श्रीमान् जिनने यत्नापूर्वक प्रणाम करुं छ ।॥ १॥ For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२॥ www.kobatirth.org नवा श्रीवर्द्धमानाय, श्रीमते व सुधर्म्मणे । सर्वानुयोगष्टद्धेभ्यो, वाण्यै सर्वविदस्तथा ॥ २ ॥ एतडीका - चूर्णी जीवाभिगमादिवृत्तिलेशांश्च । संयोज्य पञ्चमानं विवृणोमि विशेषतः किञ्चित् ॥ ३ ॥ अर्थः-- श्रीवर्धमानस्वामीने, श्रीसुधर्मगणधरने, सर्वानुयोगवृद्धोने अने सर्वज्ञनी वाणीने नमी, आ सूत्रनी टीका, चूर्णि अने जीवाभिगमादिवृत्तिना लेशो-अंशोने संयोजी कांइक विशेषथी पंचम अंग- श्रीभगवतीसूत्रने विवरुं हुं ॥ २ ॥ णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आयरियाणं णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहूणं [सू० १] ॥ अर्थ :- अर्हतने नमस्कार थाओ, सिद्धोने नमस्कार थाओ, आचार्योंने नमस्कार थाओ, उपाध्यायने नमस्कार थाओ अने सर्व साधुओने नमस्कार थाओ ॥ स० १ ॥ णमो वंभीर लिबीए (सू० २) | अर्थ:- त्राह्मी लिपिने नमस्कार थाओ || सू० २ ॥ नमो सुयस्स || सू० ३ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थः - श्रुतने नमस्कार हो. ॥ सू० ३ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था, वण्णओ, तस्स णं रायगिहस्स नगरस्स बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए गुणसिलए नामं चेइए होत्था, सेणिए राया, चेल्लणा देवी ॥ सू० ४ ॥ अर्थः-- ते काले ते समये राजगृह नामनुं नगर हतुं. वर्णक, ते राजगृह नगरनी बहार उत्तर अने पूर्व दिग्भागमां ईशान कोणमां For Private and Personal Use Only १ शतके उद्देशः १ ॥२॥ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥३॥ *** १ शतके उद्देशः१ ॥३॥ * गुणसिलक नामर्नु चैत्य हतुं, श्रेणिक राजा अने चेल्लणादेवी राणी हता. सू० ॥ ४ ॥ ते कालेणं ते ण समए ण समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसुत्तमे पुरिससीहे पुरिसवरपुंडरीए पुरिसवरगंघहत्थीए लोगुत्तमे लोगनाहे लोगप्पदीवे लोगपजोयगरे अभयदए चक्खुदए मग्गदए सरणदए (धम्मदए) धम्मदेसए (धम्मनायए) धम्मसारहीए धम्मवरचाउरंतचक्कवही अप्पडिहयवरनाणदंस णधरे वियहछउमे जिणे जाणए (तिपणे तारए) बुद्ध बोहए मुत्ते मोयए सम्वन्नू सम्बदरिसी सिवमयलमकयम-18 पणतमक्खयमब्वाबाहमपुणरावत्तय सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपाविउकामे जाव समोसरणं ॥ सू०५॥ ___ अर्थः-ते काले, ते समये श्रमण भगवन् महावीर आदिकर, तीर्थकर, स्वयं तत्चना जाता, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुरुषोमां उत्तम कमळ समान, पुरुषोमा उत्तमगंधहम्ती समान, लोकोत्तम, लोकनाथ लोकमां प्रदीप समान, लोकमां प्रयोत करनारा, अभय देनार, चक्षु देनार, मार्गने देनार, शरण देनार, धर्मने देनार, धर्मदेशक धर्मरूपरथना सारथी, धर्मने विषे उत्तम चतुरंग चक्रवर्ती समान, || अप्रतिहत ज्ञानना अने दशनना धारण करनार, छद्म, शठतारहित रागद्वेषना जीतनार, सकल तच्चना भणनार, बुद्ध तच्चोना | जाणनार, मुक्त, मोचक-मुकाबनार, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, एवा श्रमण भगवान् महावीर शिव, सर्वबाधा रहित, अचल, रोगरहित, अनंत | पदार्थ विषयक ज्ञानस्वरूप, अक्षय, व्यावावरहित, पुनरावृत्तिरहित, "सिद्धगति' एवा प्रशस्तनामवाळा स्थानने संप्रापवानी इच्छावाळा (विहरे छे) यावत् समवसरण सुधीचं वर्णन जाणवू ॥५॥ For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः मा S+ १ शतके उद्देशः१ ॥४॥ परिसा निग्गया, धम्मो कहिओ, परिसा पडिगया (भू०६)। अर्थः-सभा नीकळी, धर्म कयो, सभा पाछी गइ. ॥६॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेडे अंतेवासी इंदभूती नामं अणगारे गोयमA सगोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए बजरिसहनारायसंघयणे कणगपुलगणिघसपम्हगोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छदसरीरे संखित्तविउलतेयलेसे चोदसपुब्बी चउनाणोवगए सव्वक्खरसन्निवाई समणस्स भगवओ महावीरस्स अदरसामंते उडुंजाणू अहोसिरे झाणकोहोवगए संजमेणं सवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ (मू०७)। ___अर्थः-ते काले ते समये श्रमण भगवंत महावीरनी पासे उभडक रहेला, नीचे नमेल मुखबाळा अने ध्यानरूप कोष्ठमां प्रविष्ट तेमना मोटा शिष्य इन्द्रभूति नामना अनगार साधु संयमवडे अने तपनडे आत्माने भावता विरहे छेबहे छ. जेओ गौतमगोत्रवाळा वजरुषभनाराच संघयणी, सोनाना कटकानी रेखा समान अने पदकेसरो समान धवल वर्णवाळा, उग्रतपस्वी, दीसतपस्वी, तप्ततपस्वी, महातपस्वी, उदार, घोर, घोरगुणवाळा, घोरतपवाळा. घोर ब्रह्मचर्यमा रहेवाना स्वभाववाळा, शरीरना संस्कारोने त्यजनार शरीरमा रहेती होवाथी संक्षिप्त अने दूरगामि होवाथी विपुल एवी तेजोलेश्यावाळा, चौद पूर्वना ज्ञाता, चार ज्ञानने प्राप्त अने सर्वाक्षरसंनिपाती छे. ॥ ७॥ SONG+ For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः 11411 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एणं से भगवं गोयमे जायसड्ढे जायसंसए जायको हल्ले उप्पन्नसडे उपपन्नसंसण उप्पनको उहल्ले संजायसड्ढे संजायसंसए संजायको हल्ले समुप्पन्नसढे समुप्पन्नसंसए समुप्पनको उहले उद्वार उट्ठेह उट्ठाए उता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छड़ उचागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आग्राहिणपग्राहिणं करेइ २ ता बंदह नमसह २ ता चासने णाइदूरे सुस्स्समाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणणं पंजलिउडे पज्जुवासमाणे एवं वयासी-से नृणं भंते! चलमाणे चलिए १, उदीरियमाणे उदीरिए २, वेइज्ज़माणे बेहरा ३, पहिजमाणे पहीणे ४, छिजमाणे छिन्ने ५, भिज्रमाणे भिने ६, दड्ढे (उज्झ) माणे दड्ढे ७, मिजमाणे मए ८, निजारिजमाणे निखिने ९१, हंता गोपमा ! चलमाणे चलिए जाव णिज्ज रिजमाणे णिजिण्णे || (सू० ८) अर्थः-- त्यारपछी जातश्रद्ध- प्रवर्तेली श्रद्धावाळा, जातसंशय, जातकुतूहल, उत्पन्नश्रद्ध, उत्पन्नसंशय, उत्पचकुतूहल, संजातश्रद्ध, संजातसंशय, संजातकुतूहल, समुत्पन्न श्रद्ध समुत्पन्नसंशय अने समुत्पम कुतूहल ते भगवान् गौतम उत्थानवडे उभा थाय छे; उत्थानबडे उभा थहने जे तरफ श्रमण भगवंत महावीर हे त्यां आवे छे; आत्री श्रमण भगवंत महावीरने त्रणचार प्रदक्षिणा करे छे, प्रदक्षिणा करी वांदे छे, नये छे, नमी बहु निकट नहीं तेम बहु दूर नहीं एवी रीते भगवंतनी सामे विनयवडे ललाटे हाथ जोडीभगवंतना वचनने श्रवण करवानी इच्छावाळा भगवंतने नमता अने पर्युपासता आ प्रमाणे बोल्या :- (प्रश्न) हे भगवन ! जे चालतु होय ते 'चाल्यू' (ए प्रमाणे कहेवाय) ? तेमज जे उदीरातुं होय ते 'उदीरापु" वेदातुं होय ते 'वेदायूँ' पडतु होय ते 'पडयूँ' छेदातुं For Private and Personal Use Only १ शतके उपेशः १ ॥५॥ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra __www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भ्याख्या प्रशासि &#%*%$ १ शतके उद्देश: ||६|| #%* होय ते 'छेदा भेदातुं होय ते 'भेदायु' बळतुं होय ते 'बळ्यु' मरतुं होय ते 'म अने निर्जरातुं होय ते 'निर्जरायु' (ए प्रमाणे कहेवाय ? (उ०) हा गौतम ! चालतुं होय ते 'चाल्यं यावत् निर्जरातुं 'निर्जरायु, ए प्रमाणे कडेवाय. ॥८॥ एए णं भंते। नव पया किं एगट्ठा णाणाघोसा नाणावंजणा उदाह नाणट्ठा नाणाघोमा नाणावंजणा!, गोयमा! चलमाणे चलिए १ उदीरिजमाणे उदीरिए २ बेइज्जमाणे वेइए ३ पहिबमाणे पहीणे ४, ते एए णं चत्तारि पया एगट्ठा नाणाघोसा नाणावंजणा उप्पन्नपस्वस्स, छिन्नमाणे छिन्ने भिजमाणे भिन्ने दड्ढे-(डजा)माणे दड्ढे मिजमाणे मडे निजरिजमाणे निजिणे, एए णं पंच पया णाणट्ठा नाणाघोसा नाणावंजणा विगयपक्स्वस्स (सू०९)॥ (प्र०) हे भगवन ! आ नव पदो सु एक अर्थवाळां, नाना घोषवाळी अने नाना व्यंजनवाळां छे ! के नाना अर्थवाळा, नाना घोषवाळा अने नाना व्यंजनवाला छे ? (उ०) हे गौम ! चालतुं चाल्म, उदीरातुं उदीराय, वेदातुं वेदायूं, प्रक्षीण थतुं प्रक्षीण थयुं, आ चार पदो उत्पन्न पक्षनी अपेक्षाए एक अर्थवाना नाना घोषवानां अने नाना व्यंजनवाळां छे. तथा छेदातुं छेदायु, मेदातुं, भेदायू, दहातुं दहायं, मरतुं मयु, निर्जरातुं निर्जरायु, आ पांच पदो विगतपक्षनी अपेक्षाए नाना अर्थवाळां, नाना घोषवाळां अने नाना व्यंजनवाळां छे. ॥९॥ नेरइयाणं भंते ! केवइकालं ठिई पन्नत्ता!, गोयमा। जहनेणं दस वाससहस्साई उकोसेणं तेत्तीसं साग ***** * ** For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥७॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रोवमाई ठिई पत्ता १ | नेरइयाणं भंते! केवड्कालस्स आणमंति वा पाणमति वा ऊससंति वा णीससंति बा है, जहा ऊसासपए २ । नेरहया पणं भंते आहारट्ठी ?, जहा पनवणाए पदमए आहारुसर तहा भाणियव्वं ३। लिई उस्साहारे किं वाऽऽहारेति ३६ सब्बओ वादि ३७ । कतिभागं १ ३८ सव्वाणि ष ३९ कीस व भुजो परिणमंति ४० १ ॥ २ ॥ (सू० १०) अर्थः- (प्र०) हे भगवन् ! नैरयिकोनी स्थिति केटला काळनी कही छे अर्थात् तेओनुं आयुष्य केटलं होय छे ? (उ०) हे गौतम ! जघन्यथी दश हजार वर्षनी स्थिति कही छे, अने उत्कृष्टताथी तेत्रीस सागरोपमनी स्थिति कही छे. (प्र०) हे भगवन् ! नैरयिको केटला काळे श्वास ले छे ? अने केटले काळे श्वास मूके छे ? अर्थात् केटला काळे उच्छ्वास छे छे अने निःश्वास मूके छे? (उ०) हे गौतम! उच्छ्वास पदमां कथं छे तेम जाणवुं. (प्र०) हे भगवन् ! 'नैरयिको आहारार्थी छे ? (३०) हे गौतम! जेम पश्रवणाना आहारपदना पहेला उद्देशकभां कहां छे, तंम जाणी लें गाथा. -नैरयिकोनी स्थिति, उच्छ्वास तथा आहार विषयक कहेनुं, शुं तेओ आहार करे ? सर्व आत्मप्रदेशे वारंवार आहार करे ? अने आहारक द्रव्योने केवा रूपमां वारंवार परिणामावे ? ॥ १० ॥ रयाणं भंते! youाहारिया पोग्गला परिणया १ ?, आहारिया आहरिजमाणा पोग्गला परिणया २ ?, अणाहारिया आहारिजिस्समाणा पोग्गला परिणया ३१, अणाहारिया अणाहारिजिस्समाणा पोग्गला परिगया ? ४, गोयमा ! नेरइयाणं पुव्वाहारिया पोग्गला परिणया १, आहारिजमाणा पोग्गला परिणया परिण For Private and Personal Use Only १ शतके उद्देशः १ ॥७॥ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ዘረበ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंति य २, अणाहारिया आहारिजिस्समाणा पोग्गला नो परिणया परिणमिस्संति ३, अणाहारिया अणाहारिजिस्समाणा पोग्गला नो परिणता णो परिणमिस्संति ॥ ४ ॥ (सू० ११) (प्र०) हे भगवन् ! नैरयिकोए पूर्वे आहारेला पुद्गलो परिणामने पाम्यां (१) ? आहरेला तथा आहराता पुनलो परिणामने पाम्यां (२) १ जे पुद्गलो अनाहारित नहीं आहरेला छे ते तथा आहराशे ते परिणामने पाम्यां (३) १ के जे पुद्गलो नहीं आहरेला छे ते तथा नहीं आहराशे ते परिणामने पाम्यां (४) १ ( उ०) हे गौतम! नैरकोए पूर्वे आहरेला पुद्गलो परिणामने पाम्यां (१) आहरेला पुद्गलो परिणामने पाम्यां अने आहरातां पुद्गलो परिणामने पामे छे. (२) नहीं आहरेला पुद्गलो परिणामने पाम्यां नथी अने जे पुछलो आहरशे ते परिणामने पामशे. (३) तथा नहीं आहरेला पुद्गलो परिणामने पाम्यां नथी. अने जे पुद्गलो नहीं आहराशे ते परिणामने पामशे नहीं (४) ॥ ११ ॥ desert भंते ! पुत्र्वाहारिया पोग्गला चिया पुच्छा, जहा परिणया तहा चियावि, एवं चिया उबचिया | उदीरिया बेइया निजिन्ना, गाहा—परिणय चिया उवचिय उदीरिया वेश्या य निजिन्ना । एक्केमि पदंमि (मी) चडब्बा पोग्ला होति ॥ ३ ॥ (सू० १२) अर्थः- (प्र०) हे भगवन् ! नैरयिकोए पूर्व आहरेला पुद्गलो चयने पाम्यां ? (उ०) हे गौतम! जेवीरीते परिणामने पाम्यां ए प्रमाणे उपचयने पाम्यां उदीरणाने पाम्यां वेदनने पाम्यां तथा निर्जराने पाम्यां गाथार्थः- परिणतचित, उपचित, उदीरित वेदित, अने निजॉर्ज ए एक एक पदमां चार प्रकारना पुद्गलो थाय छे. (मू० १२) For Private and Personal Use Only १ शतके उद्देशः १ ||८|| Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥९॥ | नेरइयाणं भंते ! काविहा पोग्गला भिवति, गोयमा ! कम्मदव्यवग्गणमहिगिच दुविहा पोग्गला है मिजंति, तंजहा-अणू चेव बायरा चेव १। नेरइयाणं भंते ! कतिविहा पोग्गला चिजंति !, गोयमा! हारदबवग्गणमहिगिच्च दुविहा पोग्गला चिजंति, तंजहा-अणू चेव वायरा चेव २ । एवं उबचिजति ३ । नेर० क.12 १ शतके |पो. उदीरेंति ?, गोयमा । कम्मदव्यवग्गगमहिकिच दुविहे पोग्गले उदीरेंति, तंजहा-अणू व बायरा चेव, उद्देशः१ है सेसावि एवं व भाणियब्वा, एवं वेदेति ५ निजरेंति ६ उपसुि७ उवढेति ८ उध्वहिस्संति ९ संकार्मिसु ॥९॥ १. संकामेति ११ संकामिस्संति १२ निहत्तिंसु १३ निहत्तंति १४ निहत्तिसंति १५ निकाइंसु १६ निकायंति १७ निकाइस्संति १८, सब्वेसुवि कम्मदब्ववग्गणमहि किच, गाहा-भेइय चिया उवचिया उदीरिया वेइया य निजिमा । उव्वद्दणकामणनिहत्तणनिकायणे तिविह कालो ॥४॥(सू०१३) अर्थ-(प्र०) हे भगवन् ! नरयिकोवडे केटला प्रकारना पुरलो भेदाय ? (उ०) हे गौतम ! कर्मण्यवर्गणाने आश्रीने वे मा प्रकारना पुद्गलो भेदाय छे, ते आ प्रमाणे छे:-मूक्ष्म अने बादर ए प्रमाणे उपचयमा पण जाणवू. (प्र०) हे भगवन् ! नरयिको केटला प्रकारना पुद्गलोनी उदीरणा करे छे ? (उ०) हे गौतम ! कर्मद्रव्यवर्गणानी अपेक्षाए ते वे प्रकारना पुद्गलोनी उदीरणा करे छे. ते आ प्रमाणे छ:-क्ष्म अने बादर शेष पदो पण आ प्रपाणे कहेवा. वेदे छ, निर्जरे छे. अपवर्तन पाम्या, अपवर्तन पामे छ, अपवर्तन पामशे संक्रमाव्या, संक्रमावे , संक्रमावशे. निघत्त थया, थाय छे, निधत्त थशे. निकाचित थया, निकाचित थाय छे, निकाचित थशे. आ सर्वपदमा कर्मद्रव्यवर्गणानो अधिकार कहीने गावार्थ:-मेदाया, चय पाम्या, उपचय पाम्या, उदीराया, वेदाया For Private and Personal use only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobairthorg Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१०॥ १ शतके उदेशः १ ॥१०॥ अने निर्जराया अपवर्तन, संक्रमण, निधत्तन अने निकाचल पदोमांत्रण प्रकारनो काल कहेवो. (सू०१३) , नेरइयाणं भंते ! जे पोग्गले तेयाकम्मत्ताए गेण्हंति ते किं तीतकालसमए गेण्हंति ? पडप्पन्नकालसमए गेण्हंति ? अणा का समए गेण्हंति !, गोयमा! नो तीयकालसमए गेहंति, पडुप्पन्नकालसमए गेण्हंति, नो अणा समए गिण्हंति १। नेरइयाणं भंते ! जे पोग्गला तेयाकम्मत्ताए गहिए उदीरेंति ते किं तीयकालसमयगहिए पोग्गले उदीरेंति पडुप्पन्नकालसमा घेप्पमाणे पोग्गले उदीरेंति गहणसमयपुरक्खडे पोग्गले उदीरेंति?, गोयमा ! अतीयकालसमयगहिए पोग्गले उदीरेंति, नो पडप्पन्नकालसमए घेप्पमाणे पोग्गले उदीरेंति, नो ४ गणसमयपुकखडे पोग्गले उदीरेति २, एवं वेदेति ३ निजाति ४ ॥ (सू.१४) अर्थः-(प्र०) हे भगवन् ! नैरयिको जे पुद्गलोने तैजसः कार्मणपणे ग्रहण करे छे, तेने शु अतीत काळ समयमा ग्रहण करे छ । प्रत्युत्पन्न काळसमयमा ग्रहण करे छे ? के भविष्यकाळ समयमा ग्रहण करे छे ? (उ०) हे गौतम ! अतीत काळसमयमां प्रहण करता नथी. प्रत्युत्पन्न काळसमयमा ग्रहण करे छे. भविष्य काळसमयमा ग्रहण करता नथी. (प्र०) हे भगवन् ! नैरयिको तैजस कार्मणपणावडे ग्रहण करेला जे पुद्गलोनी उदीरणा करे ते अ॒ अतीतकाळसमयमा ग्रहण करायेला पुद्गलोनी उदीरणा करे छ ? वर्तमान काळसमयमा ग्रहण कराता पुगलोनी उदीरणा करे छे? अथवा जेओनो उदयकाळ आगळ आववानो छे एवा पुद्गलोनी | उदीरणा करे ? (1०) हे गौतम ! अतीत काळसमयमा ग्रहण करायेला पुद्गलोनी उदीरणा करे छे. वर्तमान काळ समयमा ग्रहण करातां पुद्गलोनी सदीरणा करता नथी, तथा जेओनो ग्रहण समय आगामी छे एवा पुद्गलोनी पण उदीरणा करता नथी. ए SERIERRRRRRRA% For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥ ११ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रमाणे वेदे छे, निर्जरे छे (सू० १४) नेरइयाणं भंते ! जीवाओ किं चलियं कम्मं बंधंति अचलियं कम्मं बंधंति ? गोयमा ! जो चलिये कम्मं बंधंति, अचलियं कम्मं बंधंति १ । नेरइयाणं भंते! जीवाओ किं चलिये कम्मं उदीरेति अचलियं कम्मं उदीरेंति?, गोयमा ! नो चलिये कम्मं उदीरेति, अचलियं कम्मं उदीरेति २ । एवं वेदेति ३ उयोंति ४ संकार्मेति ५ निहसेंति ६ निकार्येति ७, सन्वेसु अचलियं, नो चलियं । नेरइयाणं भंते ! जीवाओ किं चलियं कम्मं निज्जति ८, गाहा—बंधोदयवेदोपसंकमे तह निहत्तणनिकाये | अचलियं कम्मं तु भवे चलिये जीवाड निजार || ५ || (सू० १५ ) अर्थ : - ( प्र०) हे भगवन्! शुं नैरथिको जीवप्रदेशथी चलित कर्मने बांधे छे ? अथवा अचलित कर्मने बांधे के १ ( उ० ) हे गौतम! चलित कर्मने बांधता नथी, पण अचलित कर्मने बांधे ले ? (प्र०) हे भगवन् ! नैरयिको शुं जीवप्रदेशथी चलित कर्मने उदीरे छे ? अथवा अचलित कर्मने उदीरे छे. ? (उ०) हे गौतम ! चलित कर्मने उदीरता नथी पण अचलित कर्मने उदीरे छे, ए प्रमाणे वेदन करे छे, अपवर्तन करे छे, संक्रमण करे छे. निधच करे छे अने निकाचित करे छे ए सर्व पदोमां अचलितने योजं पण चलितने योजयुं नहीं. (प्र०) हे भगवन् ! शुं नैरयिको जीवप्रदेशथी चलित कर्मने निर्जरे के ? के अचलिप्त कर्मने निर्जरे छे ? (उ०) हे गौतम! चलितकर्मने निर्जरा करे छे, पण अचलित कर्मनी निर्जरा करता नथी. गाथार्थः- बन्ध, उदय, वेदन, अपवर्तन, संक्रमण, निवचन अने निकाचनने विषे अचलित कर्म होय अने निर्जराने विषे तो जीवधी चालेलं होय ( सू० १५ ) For Private and Personal Use Only ९ शतके उद्देशः १ ॥ ११ ॥ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ** व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१२॥ |१ शतके उद्देशः१ ॥ १२॥ *CRECkcॐॐ एवं ठिई आहारो य भाणियब्बो, ठिती जहा ठितिपदे तहा भाणियब्वा सव्वजीवाणं, आहारोऽपि अहा पन्नवणाए पढमे आहारुहेसर तहा भाणियब्यो, एत्तो आढत्तो-नेरइयाणं भंते! आहारट्ठी? जाव दुक्खताए भुज्जो शुजो परिणमंति?, गोयमा ! । असुरकुमाराणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता !, जहन्नेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं सातिरेगं सागरोवमं, असुरकुमारा णं भंते ! केवइयकालस्स आणमंति वा पाणमंति वा?, गोयमा ! जहन्नेणं सत्तण्हं थोवाणं उक्कोसेणं साइरेगस्स पक्रवस्स आणमंति वा पाणमंति वा । असु| रकुमारा णं भंते ! आहारडी, हंता आहारही, असुकुमाराणं भंते । केवइकालस्स आहारहे समुप्पजद', गोयमा ! असुरकुमाराणं दुविहे आहारे पन्नत्ते, तंजहा-आभोगनिव्वत्तिए य अणाभोगनिव्वत्तिए य, तत्थ |णं जे से अणाभोगनिव्वत्तिए से अणुसमयं अविरहिए आहारहे समुप्पज्जा, तत्थ णं जे से आभोगनिव्वत्तिए से जहन्नेणं चउत्थभत्तस्स उक्कोसेणं साइरेगस्स बाससहस्सस्स आहारढे समुप्पज्जा, असुरकुमारा णं भंते ! | किमाहारमाहारेंति, गोयमा दव्वओ अणंतपएसियाई दवाइं खित्तकालभाव पन्नवणागमेणं सेसं जहा नेरइयाण जाव ते ण तेसिं पोग्गला कीसत्ताए भुजो भुजो परिणमंति ?, गोयमा ! सोइंदियत्ताए सुरूवत्ताए सुवनत्ताए ४ इहत्ताए इच्छियत्ताए भिझियत्ताए उत्ताए णो अहत्ताए सुहत्ताए णो दुहत्ताए मुज्जो भुजो परिणमंति। असुरकुमारा णं पुग्वाहारिया पुग्गला परिणया असुरकुमाराभिलावण जहा नेरइयाणं जाव नो अचलियं कम्मं निजरंति । नागकुमाराणं भंते ! केवइयं कालं ठिती पत्नत्ता ?, गोयमा ! जहन्नेणं दस वाससह For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १ शतके व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१३॥ | उद्देशः १ ॥१३ ॥ - % स्साई उकोसेणं देसूणाई दो पलिओवमाई, नागकुमारा णं भंते ! केवहकालस्स आणमंति वा पा०१, गोयमा! जहन्नेणं सत्तण्हं थोवाणं उक्कोसेणं मुहुत्तपुहुत्तस्स आणमंति वा पा०, नागकुमारा णं आहारही, हंता आहा| रही, नागकुमाराणं भंते ! केवइकालस्स आहारट्टे समुप्पजइ ?, गोयमा! नागकुमाराणं दुविहे आहारे पन्नत्ते, तंजहा-आभोगनिव्वत्तिए य अणाभोगनिन्यत्तिए य, तत्थ णं जे से अणाभोगनिव्वत्तिए से अणुसमयमविरहिए आहारहे समुप्पज्जइ, तत्थ णं जे से आभोगनिवत्तिए से जहन्नेणं चउत्थभत्तस्स उक्कोसेणं दिवसपुहुत्तस्स आहारढे समुप्पज्जा, सेसं जहा असुरकुमाराणं जाव नो अचलियं कम्मं निजरंति। एवं सुवण्णकुमारावि, जाव थणियकुमाराणंति । पुढविकाइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता ?, गोयमा ! जहन्नणं अंतोमुहुत्तं उकोसेणं बावीस वाससहस्साई, पुढविकाइया केवइकालस्स आणमंति वा पा०, गो. वेमाय आणमंति वा पा०, पुढविकाइया आहारट्ठी , हंता आहारट्ठी, पुढविकाइयाणं केवइकालस्स आहारढे समुप्पज्जा ?, | गोयमा! अणुसमयं अविरहिए आहारड्ढे समुप्पवइ, पुढधिकाइया किमाहारेति!, गोयमा ! दवओ जहा |नेरइयाणं जाब निव्याघाएणं छदिसिं, वाघायं पडुच्च सिय तिदिसिं सिय चउदिसिं सिय पंचदिसिं, वन्नओ कालनीलपीतलोहियहालिहसुकिल्लाणि, गंधओ सुरभिगंध २ रसओ तित्त ५ फासओ कक्खड ८ सेसं तहेव, णाणत्तं कहभागं आहारेंति ? कहभागं फासाइंति !, गोयमा! असंखिजइभागं आहारेन्ति अणंतभागं फासाइंति जाव तेसिं पोग्गला कीसत्ताए भुजो भुज्जो परिणमंति?, गोयमा ! फासिंदियवे %* For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१४॥ SECRECASH मायत्ताए भुल्लो भुजो परिणमंति, सेसं जहा नेरइयाणं जाव नो अचलिय कम्मं निजरंति, एवं जाव वणस्स-L. १ शतके इकाइयाणं, नवरं ठिती वन्नेयव्या जाव (इया) जस्स, उस्सासो मायाए । बेइंदियाणं ठिई भाणियचा, ऊसासो | वेमायाए, बेइंदियाणं आहारे पुच्छा, गोयमा ! आभोगनियत्तिए य अणाभोगनिवत्तिए य तहेव, तत्थ णं| | उद्देशः १ जे से आभोगनिव्वत्तिए से णं असंखेजसमए अंतोमुहुत्तिए वेमायाइ आहारटे समुप्पजइ, सेसं तहेव जाव ॥१४॥ अणंतभागं आसायंति, बेइंदियाणं भंते ! जे पोग्गले आहारत्ताए गेहति ते किं सव्वे आहारेंति? जो सम्वे आहारंति ?, गोयमा ! बेइंदियाणं दुविहे आहारे पन्नत्ते, तंजहा-लोमाहारे पक्खेवाहारे य, जे पोग्गले लोमाहारत्ताए गिण्हंति ते सव्वे अपरिसेसिए आहारेंति, जे पोग्गले पक्खेवाहारत्ताए गिण्हंति तेसिणं पोग्गलाणं असंखिज्जाभार्ग आहारेंति, अणेगाई च णं भागसहस्साई अणासाइजमाणाई अफासाइजमाणाई विद्धंसमागच्छति, एएसिणं भंते ! पोग्गलाणं अणासाइजमाणाणं अफासाइजमाणाण य कयरे कयरे अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?, गोयमा! सव्वत्थोवा पुग्गला अणासाइजमाणा, अफासाइजमाणा अणंतगुणा, बेईदियाणं भंते! जे पोग्गला आहारत्ताए गिण्हति ते गंतेसिं पुग्गला कीसत्ताए भुजो भुजो परिणमंतिी, गोयमा ! जिभिदियफार्सिदियवेमायत्ताए भुजो भुजो परिणमंति, बेइंदियाणं भंते ! पुब्बाहारिया पुग्गला परिणया तहेव जाव चलियं कम्मं निज़रंति । तेइंदियचउरिदियाणं णाणतं ठिईए जाव णेगाईचणं भागसहस्साई अणाघाइजमाणाई अणासाइजमाणाई अफासाइबमाणाई विद्धंसमागच्छंति, एएसिणं भंते ! पोग्गलाणं For Private and Personal use only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या आहारो अणाभोगतिश्चाउरिदियाणं जाव चालदिपवेमायत्ता भूत सक अणाघाइजमाणाणं ३ पुच्छा, गोयमा! सबथोवा पोग्गला अणाघाइजमाणा अणासाइजमाणा अणंतगुणा अफासाइजमाणा अणंतगुणा, तेइंदियाणं घाणिदियजिभिदियफार्सिदियवेमायाए भुजो २ परिणमंति, चउ १तके रिदियाणं चक्विदियघाणिदियजिभिदियफासिंदियत्ताए भुज्जो भुजो परिणमंति। पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं उद्देशः१ ठिई भणिऊणं ऊसासो वेम.याए, आहारो अणाभोगनिव्वत्तिए अणुसमयं अविरहिओ, आभोगनिव्वत्तिओ जहन्ने] अंतोमुत्सस्स उकोसेणं छट्ठभत्तस्स, सेसं जहा चउरिदियाणं जाव चलियं कम्मं निजरेंति । एवं मणु ॥१५॥ स्साणवि, नवरं आभोगनिव्वत्तिए जहन्नेणं अंतोमुहत्तंउकोसेणं अट्ठमभत्तस्स, सोइंदियन्वेमायत्ताए भुमो भुजो परिणमति सेसं जहा चउरिदियाणं, तहेव जाव निजरेंति । वाणमंतराणं ठिईए नाणतं, परिणमंति अवसेसं जहा नागकुमाराणं, एवं जोइसियाणवि, नवरं उस्सासो जहन्नेणं मुहत्तपुहुत्तस्स उक्कोसेणवि मुहुत्तपुहत्तस्स, आहारो जहन्नेणं दिवसपुत्तस्स उकोसेणवि दिवसपुहत्तस्स, सेसं तहेव । वेमाणियाणं ठिई भाणियल्या ओहिया, ऊसासो जहन्नेणं मुहत्तपत्तस्स उकोसेणं तेत्तीसाए पक्वाणं, आहारो आभोगनिव्वत्तिओ जाहनेणं विवसपुहुतस्स उकोसण तेत्तीसाए वाससहस्त्राणं, सेसं चलियाइयं तहेव जाव निजरेंति (सू०१६) अर्थः-एवी रीने स्थिति अने आहार कहेवा [तेमां] स्थिति-जेवी रीते स्थितिपदमां कही छे, तेवी रीते कहेवी, सर्वजिबोनो आहार पण पनवणाना आहारपदना प्रथम उद्देशमा छे ते आ प्रमाणे कहबो. आ सूत्रथी शरु करीने-(प्र०) हे भगवन् ! असुरकुमारोनी केटला काळ मृधी स्थिति कही हे. (३०) हे गौतम ! तेओनी स्थिति जपन्ये दश हजार वर्षनी अने उत्कृष्टे सागरोपमा ** For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१६॥ RRC+ + +5%C4%AA-Cakc करतां वधारे काळनी कही छे. (प्र०) हे भगवन् ! असुरकुमारो केटले काळे श्वास ले अने निःश्वास मूके ? (उ०) हे गौतम ! तेओ || १ शतके जघन्ये सात स्तोकरूप काळबडे अने उत्कृष्टे एक पक्ष (पखवाडीया) करतां बधारे काळ (गया) पछी श्वास ले अने निःश्वास मूके. | (प्र०) हे भगवन् ! असुरकुमारो आहारना अमिलाषी छे ? (उ०) हे गौतम ! हा, तेओ आहारना इच्छक छे. (प्र०) हे भगवन् ! उद्देशः १ | असुरकुमारोने केटले काळे आहारनो अभिलाष उत्पन्न थाय छे ? (उ०) हे गौतम ! असुरकुमारोनो आहार वे प्रकारनो कह्यो के, | वे आ प्रमाणे-आभोगनिर्वर्तित अने अनाभोगनिवर्तित. तेमा जे अनाभोगनिर्वतित आहार छे तेनो अभिलाषं तो तेओने अवि| रहितपणे निरंतर थया करे छे. अने हे गौतम ! तेमां जे आभोगनिर्वतित-ज्ञानपूर्वक आहार के तेनो अमिलाप तेओने ओछामां ओछो चतुर्थभक्त-एक दिवस पछी अने वधारेमा वधारे हजार वर्ष करतो वधारे काळ (गया) पछी थाय छे. (प्र०) हे भगवन् ! अमुरकुमारो कया पदार्थनो आहार करे ? (उ०) हे गौतम ! तेओ द्रव्यथी अनंत प्रदेशवाळां द्रव्योनो आहार करे, इत्यादि बधुं क्षेत्र, काल अने भावसंबंधे प्रज्ञापनाना गमवढे पूर्ववत् जाणी लेवु. बाकी वधुं नैरयिकोनी पेठे जाणवू. यावत्-(प्र०) हे भगवन् ! ते अमरकुमारोए खाघेला पुद्गलो केवे रूपे वारंवार परिणाम पामे ? (उ०) हे गौतम ! श्रोत्रंद्रियपणे, मुरूपपणे, सुवर्णपणे, इष्टपणे, द इच्छितपणे, मनोहरपणे, ऊर्चपणे, अधःपणे नहीं, मुखपणे पण दुःखपणे नहीं, एवे रूपे ते पुद्गलो वारंवार परिणाम पामे. (प्र०) हे भगवन् ! असुरकुमारोए पूर्व आहरेला पुद्गलो परिणामने पाम्यां ? (उ०) हे गौतम ! असुरकुमारना अमिलाप (उच्चार) पूर्वक ए बधुं नैरयिकोनी पेठे कहे, यावत्-चालेला कर्मने निर्जरे छे. (प्र०) भगवन् ! नागहमारोनी स्थिति केटला काळमुधी कही छ ? (उ०) हे गौतम ! तेओनी स्थिति ओछामा ओछी दशहजार वर्षनी अने वधारेमां वधारे काइक ऊणा चे पल्योपमनी कही है. For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥ १७ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (प्र०) हे भगवन् ! नागकुमारी केटले काळे श्वास ले अने निःश्वास के ? ( उ०) हे गौतम ! तेओ जघन्ये सात स्तोके अने उत्कृष्टे मुहूर्तपृथकत्वे वे मुहूर्तथी नव मुहूर्तनी अंदरना कोई पण काळे श्वास ले अने निःश्वास मूके. (प्र०) हे भगवन् ! नागकुमारो आहारना अर्थी छे ? (उ०) हे गौतम! हा, तेओ आहारना अर्थों छे. (प्र०) हे भगवन् ! नागकुमारोने केटलो काळ गया पछी आहारनो अभिलाष उत्पन्न थाय छे १ (उ०) तेओने चे प्रकारनो आहार कह्यो छे, ते आ प्रमाणे : - आभोग निर्वर्तित अने अनाभोग निवर्तित. तेमां जे अनाभोग निर्वर्तित आहार के तेनो अभिलाष निरंतर थाय छे. तथा जे आभोग निर्वर्तित अहार छे. तनो अभिलाष जघन्ये एक दिवस पछी अने उत्कृष्टे दिवसपृथकत्व पछी थाय छे. बाकी वधुं अमरकुमारोनी पेठे जागनुं यावत् अवलित कर्म ने निर्जरता नथी, अने ए प्रमाणे सुवर्णकुमारोने पण कहेतुं तथा यावत् स्तनित कुमारोने माटे पण जाणवु, (प्र०) हे भगवन् । पृथिवीकायिक जीवोनी स्थिति केटला काळ सुधी कही छे ? (उ०) हे गौतम ! तओनी स्थिति जघन्ये अंतर्मुहूर्तनी अने उत्कृष्टे बावीस हजार वर्षनी कही छे. (प्र०) हे भगवन् ! पृथिवीकायिको केटला काळे श्वास ले छे ? (उ०) हे गौतम! तेओविमात्राए - विविधकाळे श्वास ले छे. (प्र०) हे भगवन् । पृथिवीकायिको आहारार्थी छे १ (उ०) हे गौतम! हा, तेओ आहारार्थी छे. (प्र०) हे भगवन् ! पृथिवीकायिकोने केले काळे आहारनो अभिलाष धाय छे ? (उ०) हे गौतम! तेओने निरंतर आहारनो अमिलाप थाय छे. (प्र०) हे भगवन् ! पृथिवीकायिको शेनो आहार करे छे. (उ०) हे गौतम! तेओ द्रव्यथी अनंत प्रदेशवाळां द्रव्यनो आहार करे छे. | इत्यादि वधुं नैरयिकोनी पेठे कहे अने यावत्-तेओ व्याघात न होय तो छए दिशामांथी आहार ले छे, जो व्याघात होय तो कदाचित् त्रण दिशामांथी, चार दिशामांधी अने पांच दिशामांथी आहार ले छे. वर्णधी काळां, नीलां, पीळां, लाल, हळदर जेवां For Private and Personal Use Only १ शतके उद्देशः १ 11 20 11 Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ध्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१८॥ १ शतके | उद्देशः१ अने शुक्ल न्योनो आहार करे छे. मंथी सारा अने नरसागंधवागनो रसथी तिक्तादि (पांच) बधा रसवानानो अने स्पर्शथी | कर्कशादि (आठ) बधा स्पर्शवाळानो आहार करे छे. बाकी पूर्ववत् जाणवू. मेद आ छे के:-(प्र०) हे भगवन् ! तेओ केटला भागनो आहार करे अने केटला भागनो स्पर्श करे-अस्वाद ले-चाखे ? (1०) हे गौतम ! तेओ असंख्येय भागनो आहार करे | अने अनंत भागने चाखे. यावत्-(प्र०) हे भगवन् ! तेओए खाघेला पुद्गलो के रूपे वारंवार परिणाम पामे ? (उ०) हे | गौतम ! स्पर्शेन्द्रिय विमात्रपणे विविध प्रकारे स्पर्शेन्द्रियपणे-परिणाम पामे बाकी बधुं नैरकियोनी पेठे जाणवू. यावत्-अचलि-| तकर्मने निर्जरता नथी. ए प्रमाणे यावत्-जलकायिक, अधिकायिक, वायुकायिक, तथा वनस्पतिकायिक सुधी जाणवू. विशेष ए के, जेनी जे स्थिति होप ते कहेवी. अने विविधपणे उच्छ्वास जाणवो. बेइंद्रियवाळा जीवोनी स्थिति कहीने. तेओनो उच्छ्वास विमात्राए कहेवो. (प्र०) बेइंद्रिवाळा जीवोनो आहारविषयक (पूर्ववत् ) प्रश्न करवो. अर्थात् हे भगवन् ! वेइंद्रियवाळा जीवोने केटले काळे आहारनो अमिलाप थाय छे ? (उ०) हे गौतम ! अनाभोगनिर्तित आहार तो पूर्वनी पेठे जाणवो, तेमां जे आभोगनिवर्तित | आहार छे तेनो अमिलाप विमात्राए असंख्येयसामयिक अंतर्मुहूर्त थाय छे. बाकी बधुं तेज प्रमाणे जाणवू यावद्-अनंतभागने चाखे छे. (प्र०) हे भगवन् ! जे पुलोने बेइंद्रियजीवो आहारपणे ग्रहण करे छे तो शुं तेओ ते बधा पुदलोने खाइ जाय छे, के बचाने नथी खाता ? (उ०) हे गौतम ! बेइंद्रिय जीवोनो आहार के प्रकारनो कसो छे, ते आ प्रमाणे:-रोमाहार-संवाद्वारा लेवातो आहार प्रक्षेपापहार-मुखमा प्रक्षेपाइने यतो आहार तेमां तेओ जे पुद्गलोने रोमाहारपणे हे छे ते बधा संपूर्णपणे खावामां आवे छे. अने जे पुद्गलो प्रक्षेपाहारपणे लेवाइ छ तेमांनो असंख्य भाग खावामां आवे छे अने वीजा अनेक भागो चखायाविना, तमेज स्पर्शाया SARAKA4%* For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः १ शतके उद्देशः १ ॥ १९॥ विनाज नाश पामे छे. (प्र०) हे भगवन् ! ए नहीं चखाएला अने नहीं स्पर्शाएला पुद्गलोमां कया कया पुद्गलो अल्प, बहु, * तुल्य, अने विशेषाधिक छ ? (उ०) हे गौतम ! नहीं चखाएला पुद्गलो सौथी थोडा छे अने नहीं स्पर्शाएला पुद्गलो अनंतगुणा छ. (प्र०) हे भगवान् । बेइंद्रिय जीवो जे पुद्गलोने आहारपणे ले छे, ते पुद्गलो तेओने वारंवार केवे रुपे परिणामे ! (उ०) हे| गौतम! ते पुद्गलो तेओने विविधतापूर्वक जिंद्रियपणे अने स्पर्शद्रियपणे वारंवार परिणामे छे, (५०) हे भगवन् । बेइंद्रियजीवोने पूर्व आहरेला पुद्गलो परिणम्या ? (उ०) हे गौतम! ए बधु पूर्व प्रमाणेज कहे, यावत्-चलितकर्मने निजरे छे. ऋण इंद्रियवाळा अने चार इंद्रियवाळा जीवोनी स्थितिमा मेद छे. बाकी वर्षा पूर्व प्रमाणे छे. यावत् अनेक हजार भागो सुंघाया विना, चखाया विना ४ अने स्पर्शाया विनाज नाश पामे छे. (प्र०) हे भगवन् ! ए नही सुंघाएला नहीं चखाएला अने नहीं स्पर्शाएला पुद्गलोमा कया कोनाथी घोडा, बहु, तुल्य के विशेषाधिक छे (ए प्रमाणे प्रश्न करवो) (उ०) हे गौतम! सौथी थोडा नहीं सुंघाएला पुद्गलो छे | तेथी अनंतगुणां नहीं चखाएला अने तेथी अनंतगुण नहीं स्पर्शाएला पुद्गलो . पण इंद्रियवाळा जीवोए साधेलो आहार घ्राणेंद्रिय सपणे, जिमइंद्रियपणे अने स्पर्शेद्रियपणे वारंवार परिणामे छे, अने चार इंद्रिय वाग जीवोए खाधेलो आहार आंख [इंद्रियपणे, नाक [इंद्रियपणे] जिम [इंद्रिय] पणे अने चामडी [इंद्रिय पणे वारंवार परिणामे छे. पंचेन्द्रिय तिर्यच योनिकोनी स्थिति कहीने तेओनो उच्छ्वास विमात्राए कडेवो. अनाभोगनिर्वर्तित आहार तेओने विरह विना प्रति समये होय छे अने आभोगनिर्वतित आहार जघन्ये अंतर्मुहूर्त, तथा उत्कृष्टे छभक्ते वे दिवसे-वे दिवस गया पछी होय छे. बाकी बधुं चार इंद्रियवाळा जीवोनी पेठे जाणवू यावद-चलित कर्मने निर्जरे छे. ए प्रमाणे मनुष्यो संबंधी पण जाणवू, विशेष ए के, तेओने आमोगनिवर्तित आहार जघन्ये अंतर्मुहर्ते अने उत्कृष्ट ब For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उपाख्या प्रज्ञप्ति 11 20 11 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अममत्रण दिवसे प्रण दिवस गया पछी-होय छे. मनुष्योए खाघेलो आहार [पूर्वोक चार इंद्रियपणे अने] कान [ इंद्रिय) पणे विमात्राएं वारंवार परिण मे छे. बाकी वधुं पूर्वनी पेठे जाणवुं अने यावद-निर्जरे छे, वाणव्यंतरोनी स्थितिमां भेद छे. बाकी बधुं नागकुमारोनी पेठे जाणवु, ए प्रमाणे ज्योतिषिक देवो संबंधे पण जाणं विशेष ए केः- ज्योतिषिक देवोने जघन्ये अने उत्कृष्टे मुहूर्त पृथक्त्व पछी उच्छ्रवास होय छे। अने आहार पण जघन्ये अने उत्कृष्टे दिवस पृथक्त्वं पछी होय छे. बाकी बधुं पूर्व प्रमाणे जाणवं वैमानिकोनी स्थिति औधिक कहेवी. तेओने उच्छ्वास जघन्ये मुहूर्त पृथक्त्व पछी, अने उत्कृष्टे तेत्रीश पखवाडीया ( साडा सोळ मास) पछी होय छे आभोग निर्वतित आहार तेओने जघन्ये दिवस पृथक्त्व पछी अने उत्कृष्टे तेत्रीच हजार वरस पछी होय छे. बाकी बधुं 'चलितादिक निर्जरावे छे' पूर्व प्रमाणे जाण ।। १६ ।। जीवाणं भंते । किं आयारंभा परारंभा तदुभयारंभा अणारम्भा ?, गोयमा ! अत्थेगइया जीवा आयारंभावि परारंभावि तदुभयारंभावि नो अणारंभा, अत्थेगइया जीवा नो आयारंभा तो परारंभा नो तदुभयारंभा अणारंभा । से केणणं भंते । एवं बुच्चइ-अत्थेगड्या जीवा आयारंभावि ? एवं पडिउच्चारेयवं, गोयमा ! जीवा दुविहा पण्णत्ता, तंजहा- संसारसमावन्नगा य असंसारसमावनगा य, तत्थ णं जे ते असंसारसमाबनगा ते णं सिद्धा, सिद्धा णं नो आयारंभा जाब अणारम्भा, तत्थ णं जे ते संसारसमावन्नगा ते दुविहा पत्ता, तंजहा - संजया प असंजया य, तत्थ णं जे ते संजया ते दुविहा पण्णत्ता, तंजहा- पमत्तसंजया य अप्पमत्तसंजया य, तत्थ णं जे ते अप्पमत्तसंजया ते णं नो आयारंभा नो परारंभा जाव अणारंभा, तत्थ णं जे For Private and Personal Use Only १ शतके उद्देशः १ ।। २० ।। Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १ शतके व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२१॥ | उद्देशः १ ते पमत्तसंजया ते सुहं जोग पहुच नो आयारंभा नो परारंभा जाव अणारभा, असुभ जोगं पहुच आपारंभावि जाव नो अणारंभा, तत्थ णं जे ते असंजया ते अविरतिं पडुच्च आयारंभावि जाव नो अणारंभा, से तेणटेणं गोयमा ! एवं बुच्चह-अत्गइया जीवा जाव अणारंभा ॥ नेरइयाणं भंते ! कि आयारंभा परारंभा तदुभयारंभा अणारंभा, गोयमा ! नेरइया आयारंभावि जाव नो अणारंभा, से केणट्टेणं भन्ते एवं बुधइ ? गोयमा ! अविरतिं पडुच, से तेणटेणं जाब नो अणारंभा, एवं जाव असुरकुमाराणवि, जाव पचिंदियतिरिक्रवजोणिया, मणुस्सा जहा जीवा, नवरं सिद्धविरहिया भाणियवा. वाणमंतरा जाव वेमाणिया जहा नेरइया। सलेस्सा | जहा ओहिया, कण्हलेसस्स काउलेसस्स जहा ओहिया जीवा, नवरं पमत्तअप्पमत्ता न भाणियचा, तेउलेसस्स पम्हलेसस्स सुफलेसस्स जहा ओहिया जीवा, नवरं सिद्धान भाणियव्या ।। (सू.१७) ा अर्थ:-(प्र०) हे भगवन् ! शुं जीवो आत्मारंभ छे, परारंभ छे ? तभयारंभ छे, के अनारंभ ? (उ०) हे गौतम ! केटलाक जीवो आत्मारंभ पण छे अने ऊभयारंभ पण हे, पण अनारंभ नथी, परारंभ नधी, उभयारंभ नथी, पण अनारंभ छ. (प्र.) हे भगवन् ! ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो ले के केटलाक जीवो आत्मारंभ पण छे, इत्यादि पूर्वोक्त फरीथी उच्चारतो ? (उ०) हे गौतम जीवो वे प्रकारना कह्या -संसारसमापनक अने असंसारसमापनक तेमा जे जीवो असंसारसमापत्रक छे तेश्रो सिद्धरुप-छे अने तेओ आत्मारंभ, परारंभ के उभयारंभ नथी, पण अनारंभ के. नेमा जे संसारसमापत्रक जीवो के ते बे प्रकारना कह्या छे, ते आ |प्रमाणे:-संयत अने असंयत. तेमा जे संयतो के ते वे प्रकारना कह्या छे. ते आ प्रमाणे:-प्रमत्तसंयत अने अप्रमत्तसंयत. तेमां कर-कम -CAXXX For Private and Personal use only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः १ शतके उदेशः१ ॥ २२ ॥ ॥२२॥ जे अप्रमत्तसंयतो के तेओ आत्मारंभ, परारंभ, के यार-उभयारंभ नबी, पण अनारंभ छे. तेमा जे प्रमचसयतो छ तेओ शुभ योगथी अपेक्षाए आत्मारंभ पण छे अने यावत्-अनारंभ नथी. तेमां जे असंयतो छ तेओ अविरतिने आश्रीने आत्मारंभ पण छ अने यावत्-अनारंभ नथी. तेमां जे असंयतो छ तेओ अविरतिने आश्रीने आत्मारंभ पग छे अने यावद-अनारंभ नथी. माटे हे | गौतम! ते हेतुथी एम कहेवाय छे के, केटलाक जीवो आत्मारंभ पण छे अने यावत्-अनारंभ पण छे. (प्र०) हे भगवन् ! नैरयिको शु आत्मारंभ, परारंभ, तभयारंभ के के अनारंभ छे ? (३०) हे गौतम ! नैरषिको आत्मारंभ पण छे अने यावत्-अनारंभ नथी. (प्र०) हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे शा हेतुयी कहो छो? (उ०) हे गौतम ! अविरतिनी अपेक्षाए-ते हेतुथी-अविरतिरूप हेतुथी-रयिको यावत्-'अनारंभ' नथी. ए प्रमाणे यावत्-असुरकुमारो पण जाणत्रा. पूर्वोक्त सामान्य जीवोनी पेठे पवेदियतियच योनिको अने मनुष्यो जाणवा. विशेष एके-अहीं तेमांना-ते जीवोमांना सिद्धो न कहेवा. नैरयिकोनी पेठे वानव्यतरो अने यावत्-वैमानिको जाणवा. लेश्यावाव्य जीवो सामान्य जीवोनी पेठे कहेवा. कृष्णलेश्यावाळा अने नीललेश्यावाला जीवो पण सामान्य जीवोनी पेठे जाणवा. विशेष ए के:-अहीं ते सामान्य जीवोमांना प्रमत्त अने अप्रमत्त जीवो न कहेवा तथा तेजोलेश्यापालेश्यावाला अने शुक्ललेश्यावाळा जीवो सामान्य जीवोनी पेठे जाणवा तेमां विशेष ए के-ते जीवोमांना सिद्धो अहीं न कहेवा. ॥१७॥ इहभविए भंते ! नाणे परभविए नाणे तदुभयभविए नाणे ?, गोयमा! इहभविएवि नाणे परभवितवि नाणे तदुभयमविएवि गाणे । दसणपि एवमेव । इहभविए भंते ! चरित्ते परभविए चरित्त तदुभयभविए चरित्ते ?, गोयमा ! इहभविए चरित्ते, नो परभविए चरित्तेनो तदुभयभविए चरित्ते । एवं तवे संजमे ॥ (सू०१८) For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२३॥ अर्थः-(प्र०) हे भगवन् ! ज्ञान ऐहभविक छ, पारभविक छे के तदुभयभविक छे ? (उ०) हे गौतम! ज्ञान ऐहमषिक पण छे, पारभविक पण छे अने तदुभवभयिक पण के. दर्शन पण एज प्रमाणे जाणवू. (प्र०) हे भगवन् ! चारित्र ऐहभाविक छेद तके पारभविक छे के तभयमविक छे ? (उ०) हे गौतम ! चारित्र ऐहमविक छे, पण पारमविक के तदभयभविक चारित्र नथी ए | उद्देशः१ प्रमाणे तप अने संयम पण जाणवा. ॥ १८ ॥ ॥२३॥ असंखुडे भते ! अणगारे किं सिज्झइ बुझइ मुच्चह परिनिवाइ सञ्चदुःक्वाणमंतं करेइ ?, गोयमा ! नो इणले सम? । से केणटेणं जाव नो अंतं करेइ ?, गोयमा ! असंवुडे अणगारे आउयवजाओ सत्त कम्मपगगडीओ सिढिलबंधणबद्धाओ धणियबंधणबद्धाओ पकरेइ रहस्सकालठियाओ दीहकालहिश्याओ पकरेइ5 मंदाणुभावाओ तिब्वाणुभावाओ पकरेड अप्पपएसग्गाओ बहुप्पएसग्गाओ पकरेइ, आउयं च ण कम्म सिय |बंध सिय नो बंधइ, अस्सायावेयणिज्नं च णं कम्म भुजो भुनो उवचिणाइ, अणाइयं च णं अणवदग्ग दीह|मद्धं चाउरंतसंसारकंतारं अणुपरियड, से एएणडेणं गोयमा ! असंवुडे अणगारे णो सिजाइ ५। संखुडे 45 भंत ! अणगारे सिज्झइ ५१, हंता सिझइ जाव अंतं करेइ, से केणद्वेणं ?, गोयमा ! संघुडे अणगारे आउयवज्जाओ सत्त कम्मपगडीओ धणियबंधणबद्धाओ सिढिलबंधणबद्धाओ पकरेइ दीहकालठिईयाओ हस्मकालहिहयाओ पकरेइ तिब्वाणुभावाओ मंदाणुभावाओ पकरेइ बहुप्पएमग्गाओ अप्पपएमग्गाओ पकरेइ, आउयं |चणं कम्मं न बंधह, अस्मायावेयणिज्न चणं कम्म नो भुजो भुजो उवचिणाइ, अणाइयं वर्णअणवदग्गं वीह For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२४. १ शतके उदेशः१ ॥ २४ ॥ हा मद्धं चाउरंतसंसारकतारं बीइवयह, से एएणडेणं गोयमा! एवं बुधह-संखुडे अणगारे सिज्मइ जाव अंतं करेइ ॥ (सू० १९) । अर्थ:-हे भगवन् ! शुं असंवृत अनगार सिद्ध थाय छे, बोध पामे छे, काय छे, निर्वाण पामे छे, सर्व दुःखोनो अंत करे | छे ? (उ०) हे गौतम ! आ अर्थ ठीक नथी. (प्र०) हे भगवन् ! ते कया कारणथी यावत्-अंतने नधी करतो? (उ०) असंवृत अनगार आयुष्यने छोडीने शिथील बंधने बांधेली साते कर्मप्रकृतिओने धन बंधने बांघेली करवानो आरंभ करे छे, इस्व-अल्पकाळ स्थितिवाळीने दीर्घकाळ स्थितिवाळी करवानो आरंभ करे छे, मंद अनुभागबाळीने तीव्रअनुभागवाळी करवानो आरंभ करे छे. अल्प-थोडा-प्रदेशवाळीने बहु प्रदेशवाळी करवानो आरंभ करे छे. अने आयुष्यकर्मने तो कदाचित् बांधे छे, तेम कदाचित बांधतो पण नथी. अशानावेदनीयकमने तो वारंवार एकदु करे छे, तथा अनादि, अनंत, दीर्घमार्गवाळा, चारगतिवाळा, संसारारण्यने विषे पर्यटन करे छे. गौतम ! ते कारणथी असंवृत अनगार सिद्ध थतो नथी, यावत्-सर्व दुःखोनो अंत-नाश करतो नथी. (प्र०) हे भगवन् ! संवृत अनगार सिद्ध थाय छे. यावत्- सर्व दुःखोना अंतने करे छे ? (उ०) हे गौतम ! हा, सिद्ध थाय छे, यावत्सर्व दुःखोनो अंतने करे छे. (प्र०) हे भगवन् ! ते कया अर्थथी-हेतुथी ? (उ०) हे गौतम ! संवृत अनगार आयुने छोडीने गाढ बंधने बांधेली सात कर्मप्रकृतिओने शिथिल बंधने बांधवानो आरंभ करे छे, दीर्घ-लांबाकाळनी स्थितिवाळीने इस्व-थोडा-काळनी स्थितिवाली करवानो आरंभ करे छे, तीव्र अनुभागवाळीने मंद अनुभागवाळी करवानो आरंभ करे छे, बहु प्रदेशाग्रवाळीने अल्प प्रदेशाग्रराळी करवानो आरंभ करे छे आयुष्यकर्मने बांधतो नथी. तथा अशातावेदनीय कमनो वारंवार उपचय पण करतो नथी. For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १ शतके उद्देशः१ ॥ २५ ॥ माटे अनादि, अनन्त, मोटा-लांचा मार्गबाळा, चातुरन्त, चार प्रकारनी गतिवाळा-संसाररूपी अरण्यर्नु उल्लंघन करे छे, हे गौतम ! व्याख्या- ते कारणथी 'संहत अनगार सिद्ध थाय छे' यावत्-सर्व दुःखोनो अंत करे छे, ए प्रमाणे कहेवाय छे. ॥१९॥ प्रज्ञप्तिः * जीवे णं भंते! असंजए अविरए अप्पडिहयपचक्खायपावकम्मे इओ चुए पेचा देवे सिया', गोयमा! ॥२५॥ अस्थेगइए देवे सिया अत्थेगइए नो देवे सिया।से केणठणं जाव इओ चुए पेचा अत्थेगइए देवे सिआ अत्थे गइए नो देवें सिया?, गोयमा! जे इमे जीवा गामागरनगरनिगमरायहाणिखेडकबडमडंवदोणमुहपट्टणासमसन्निवेसेसु अकामतबहाए अकामछुहाए अकामवंभचेरवासेणं अकामसीतातवदंसमसंगअण्हाणगसेयजल्ल|मलपंकपरिवाहेणं अप्पतरं वा मुज्जतरं वा काल अप्पाणं परिकिलेसंति, अप्पाणं परिकिलेसित्ता कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु वाणमंतरेसु देवलोगेसु देवत्ताए उववत्तारो भवति ॥ केरिसा णं भंते ! तेसि वाणमंतराणं देवाणं देवलोगा पण्णत्ता!, गोयमा ! से जहानामए-इहं मणुस्सलोगंमि असोगवणेइ वा सत्तवनवणेइ वा चंपयवणेइ वा च्यवणेइ वा तिलगवणेइ वा लाउयषणेइ वा निग्गोहवणेइ वा छत्तोबवणेइ वा असणवणेइ ४ वा सणवणेइ वा अयसियणेइ वा कुसुभवणेइ वा सिद्धत्थवणेइ वा बंधुजीवगवणेइ वा णिचं कुसुमिय माइयलवइयथवइयगुलइयगोच्छियजमलियजुवलियविणमियपणमियसुविभत्तपिडिमंजरिवडेंसगधरेसिरीए अ तीव अतीव उवसोभेमाणे उवसोभेमाणे चिट्ठइ, एवामेव तेसिं वाणमंतराणं देवाणं देवलोगा, जहनेणं दसवाससहस्सद्वितीएहिं उकोसेणं पलिओवमाहितीएहिं घईहिं बाणमंतरेहिं देवेहिं तद्देवीहि य आइण्णा वितिकिपणा KARNA ACCCCCCASIC For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥ २६ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | उवस्था संघडा फुडा अवगाढगाढ० सिरीए अतीव अतीव उवसोभेमाणा२चिट्टितं, एरिसगा णं गोयमा ! तेसिं वाणमंतराणं देवानं देवलोगा पण्णत्ता, से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं वुबइ-जीवे णं असंजए जाव देवे सिया।। सेवं भंते ! सेवं भंते । त्ति भगवं गोयमे समगं भगवं महावीरं वंदति नम॑सति गंदता नर्मसत्ता संजमेण तवसा अप्पा भावेमाणे विहरति ॥ ( सू० २० ) ॥ पढमे सये पढमो उसो समत्तो ।। अर्थः- (प्र०) हे भगवन् ! असंयत, अविरत तथा जेणे पापकर्म कर्म हण्यां अने वय नथी एवो जीव अहींथी व्यवीने | परलोकमां देव थाय छे ? (उ०) हे गौतम ! केटलाक (जीवो) देव थाय छे अने केटलाक देव थता नथी. (प्र०) हे भगवन् ? अहींथी च्यवीने यावत् - पूर्व प्रमाणेना स्वरूपवाळा केटलाक प्रेत्य-परलोकमां देव थाय छे अने केटलाक देव थता नथी. तेनुं शुं कारण १ (उ०) हे गौतम! जे जीवो गाम, आकर, नगर निगम, राजधानि, खेट, कर्बट, मडंब, द्रोणमुख, पत्तन, आश्रम तथा सन्निवेशमां अकाम तृष्णावडे, अकाम क्षुधावडे, अकाम ब्रह्मचर्यवासवडे, अकाम, ठंडी, आताप, डांस अने मच्छरथी थता दुःखना सहवावडे थोडा अकाम, अस्वान, परसेवो, जल्ल, मेल, तथा पंकथी थता परिदाहवडे थोडा काळ सुघी अथवा वधारे काळसुधी आत्माने क्लेशिद करे छे, तेओ आत्माने क्लेशित करीने मृत्युकाळे मरीने वाणव्यंतर देवलोकना कोइपण देवलोकमां देवपणाए उत्पन्न थाय छे. (प्र०) हे भगवन् ! ते वाणव्यंतर देवोना देवलोको केवा प्रकारना कला छे ? (उ०) हे गौतम ! जेम अहीं मनुष्यलोकमां सदा पुण्यवाळु, मयूरित, लवकितवाळु, पुष्पनागुच्छात्राएं, लताना समूहवालं, पांदडांओना गुच्छात्रालुं, समान श्रेणीवाळा वृक्षवाळे, युगल वृक्षोवा, पुष्प अने फलोना भारथी नमेल, पुष्प अने फलना भारथी नमवानी शरुआत वाळु, अत्यंत जुदी जुदी For Private and Personal Use Only १ सतके उद्देशः १ ॥ २६ ॥ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः १ शतके | उद्देशः १ ॥ २७॥ लबीओ अने मंजरीओरूप मकटोने धारण करवावार्छ एवं अशोकवन, वृक्षोनुं वन, चंपार्नु वन, आंबार्नु वन, वृक्षोनुं वन, तुंबडानावेलाओनुं वन, वडवृक्षोनुं वन, छत्रौध वन, अलसीना वृक्षोनुं वन, सरसव, वन, कसुंबाना वृक्षोनुं वन, सफेद सरसवतुं वन तथा बपोरीया वृक्षतुं वन, घणी घणी शोभावडे अतीव शोभतुं होय छे तेज प्रमाणे वाणव्यंतरदेवोना स्थानो जघन्यथी दशहजार वर्षेनी स्थितिवाळा अने उत्कृष्टथी पल्योपमनी स्थितिवाळा घणा वाणव्यतरदेवो अने देवीओवडे व्याप्त, विशेष व्याप्त, उपराउपर | | आच्छादित, स्पर्श कराएला. अत्यंत अवगाढ थयेला शोभावडे अतीव अतीव शोभतां रहे छे. हे गौतम! बाणाव्यंतरदेवोना रहे-1 ठाणो आवा प्रकारना प्ररूप्यां ते कारणथी हे गौतम ! आ प्रमाणे कहेवाय छे. "असंयत् जीव यावत्-देव थाय छे' हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे हे, हे भगवन ! ते ए प्रमाणे छे, एम कही भगवान् गौतम श्रमणभगवंत महावीरने वांदे छे, नमे छे, वांदीने तथा नमस्कार करीने, संयम तथा तपबडे आत्माने भावता विहरे छे. ॥२०॥ भगवन सुधर्मस्वामीए रचेला एवा श्रीमदभगवतीसूचना प्रथम शतकमा प्रथम उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण धयो. ८२-*-* *A For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥ ८ ॥ १ शतके उदेशः २ ॥ २८॥ ॥ उद्देशक २. रायगिहे नगरे समोसर, परिसा निग्गया जाव एवं वयासी-जीवे णं भंते ! संयंकडं दुक्खं वेदेइ ? गोयमा ! अत्यगइयं वेएइ, अस्थेगइयं नो वेएइ, से केणतुणं भैते! एवं वुच्चइ-अत्थेगइयं वेदेह, अत्थेगइयं नो वेएइ, गोयमा! उदिनं वेएइ, अणुदिन्नं नो बेएइ,सेतेणढणं एवं वुचइ-अत्थेगइयं वेएइ, अत्धेगतियं नो वेएइ, एवं चउब्बीसदंडएणं जाव वेमाणिए ॥ जीवा णं भंते ! सयंकडं दुक्खं वेएन्ति ?, गोयमा । अत्धेगइयं वेयन्ति, अत्थेगइयंणो वेयन्ति,से केणतुणं०१, गोयमा उदिन्नं वेयन्ति, नो अणुदिन बेयन्ति, से तेणवेणं, एवं जाव वेमा|णिया ।। जीवे णं भंते! सयंकडं आउयं वेएई ?, गोयमा! अत्थेगइयं वेएइ, अस्थगइयं नो वेएइ, जहा दुक्खेणं दो दंडगा तहा आउएणवि दो दंडगा एगत्तपुहुत्तिया, एगत्तेणं जाव वेमाणिया, पुहत्तेणवि सहेव ।। (सू०२१) । अर्थ:-राजगृह नगरमा समवसरण थयु, सभा नीकळी अने याबद्-आ प्रमाणे बोल्या के:-(प्र०) हे भगवन् ! जीव स्वयंकृत कर्मने वेदे छे ? (उ०) हे गौतम ! केटलुक वेदे छे अने केटलुक नयी वेदतो. (प्र०) हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे शा हेतुथी |कहो छो. केटलुक वेदे अने केटलुक नयी वेदतो. (उ०) हे गौतम ! उदीर्ण कर्मने बेदे के अने अनुदीर्ण कर्मने नथी वेदतो, माटे, एम कहेवाय छे के, 'केटलुक वेदे छे अने केटलुक नयी वेदतो. ए प्रमाणे चोवीसे दंडकमा यावत्-वैमानिक मुधि जाणवू. (प्र०) हे भगवन् ! जीवो स्वयंकृत कर्मने वेदे छ? (उ०) हे गौतम! केटलांकने वेदे के अने केटलांकने नथी वेदता (प्र०) हे भगवन ! ते आ प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो ? (उ०) हे गौतम ! उदीर्ण कर्मने वेदे छे अने अनुदीर्णने नथी वेदता, माटे पूर्व प्रमाणे कयु छ. For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्ति ॥२९॥ SAC% १ शतके | उद्देशः२ ॥ २९॥ ASKAR %* ए प्रमाणे यावद्-वैमानिको मुधी जाणवू. (प्र०) हे भगवन् ! जीव स्वयंकृत आयुष्यने वेदे छ ? (उ० ) हेगौतम ! केटलंक वैदे दा अने केटलुक नथी वेदतो. जे प्रमाणे दुःख संबंधे वे दंडक कह्या, तेम आयुष्य संबंधी एकवचन अने बहुवचनवाळा वे दंडक कहेवा. एकवचनवडे यावद्-वैमानिक मुधी कहे अने बहुवचनवडे पण तेज प्रमाणे कहे. ॥२१॥ | नेरड्या णं भंते! सम्वे समाहारा सब्बे समसरीरा सब्वे समुस्सासनीसासा, गोयमा! नो इणढे समढे । से केणद्वेणं भंते ! एवं बुधइ-नेरइया नो सञ्चे समाहारा नो सम्बे समसरीरा नो सम्बे समुस्सासनिस्सासा!, गोयमा! नेरइया दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-महासरीरा य अप्पसरीरा य, तत्थ णजे ते महासरीरा ते बहुतराए पोग्गले आहारेंति बहुतराए पोग्गले परिणामेंति बहुतराए पोग्गले उस्ससंति बहुतराए पोग्गले नीससंति अभिकरवण आहारेंति अभिक्रवणं परिणामेंति अभिक्खणं अससंति अभिवर्ण नी०, तत्थ णं जे ते अप्पसरीरा ते णं अप्पतराए पुग्गले आहारेंति अपतराए पुग्गले परिणामेंति अप्पतराए पोग्गले उस्ससंति अपतराए पोग्गले नीससंति आहच आहारेंति आहच परिणामेंति आहच्च उस्ससंति आहच नीससंति, से तेणढणं गोयमा! एवं खुशह-नेरइया नो सवे समाहारा जाब नो सब्बे समुस्मासनिस्सासा ।। नेरइया णं भंते! सब्वे समकम्मा?, गोयमा! णो इणद्वे समढे, से केणटेणं?, गोयमा! नेरइया दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-पुव्वो| ववनगा य पच्छोववन्नगा य, तत्थ णं जे ते पुन्वोववन्नगा ते णं अप्पकम्मतरागा, तत्थ णं जे ते पच्छोववनगा तेणं महाकम्मतरागा, से तेण?णं गोयमा!॥ नेरइया णं भंते ! सवे समवन्ना?, गोयमानो इणट्टे समढे, से *** * For Private and Personal use only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥ ३० ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir केणद्वेणं तहेव : गोयमा ! जे ते पुब्वोववन्नगा ले णं विसुद्धवन्नतरागा, तत्थ णं जे ते पच्छोववन्नगा ते णं अविसुद्धबनतरागा तहेव से तेणट्टेणं एवं० ॥ नेरइया णं भंते! सच्चे समलेसा ?, गोपमा । नो इणट्ठे समहे, से केणट्टेणं जाव नो समलेस्सा ?, गोयमा ! नेरइया दुविहा पण्णत्ता, तंजहा- पुःधोषवन्नगा य पच्छोववनगा य, तत्थ णं जे ते पुण्बोववन्नगा ते णं विसुद्धलेस्सतरागा, तत्थ णं जे ते पच्छोववन्नगां ते णं अविसुद्धले सतरागा, से लेणट्टेणं० ॥ नेरड्या णं भंते । सव्वे समबेयणा ?, गोयमा ! नो इणट्ठे समट्टे, से केणद्वेणं० ?, गोयमा ! नेरइया दुबिहा पन्नता, तंजहा - सन्निभूया य असन्निभूया य, तत्थ णं जे ते सन्निभूया ते णं महावेपणा, तस्थ णं जे ते असन्निभूया ते णं अप्पवेयणतरागा, से तेणट्टेणं गोयमा ! | नेरइया सब्वे समकिरिया ?, गोयमा ! नो इणडे समट्ठे से केणट्टेणं० १, गोयमा ! नेरइया तिविहा पण्णत्ता, तंजहा सम्मद्दिठ्ठी मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छदिट्टो, तत्थ णं जे ते सम्मदिट्ठी तेसि णं चत्तारि किरियाओ पण्णत्ताओ, तंजहा- आरंभिया १ परि० २ माया० ३ अप्पच० ४, तत्थ णं जे ते मिच्छादिट्ठी तेसि णं पंच किरियाओ कांति तं० आरंभिया जाय मिच्छादंसणवत्तिया, एवं सम्मामिच्छादिद्वीणंपि, से तेणद्वेणं गोयमा १० ॥ नेरइया णं भंते! सव्वे समाउया सव्वे समोववनगा ?, गोयमा ! नो इणट्टे समट्ठे से केणद्वेणं० ?, गोयमा ! नेरइया चउध्विहा पन्नत्ता, तंजहा अत्थेगइया समाउया समोववन्नगा १ अत्थेगइया समाज्या विसमोववन्नगा २ अत्येगइया विसमाउया समोववन्नगा ३ अत्थेगइया विसमाउया विसमोववन्नगा ४ से तेणट्टेणं गोयमा !० ॥ असुरकुमारा णं भंते! सब्वे समाहारा सव्वे समस For Private and Personal Use Only १ शतके उद्देशः २ ॥ ३० ॥ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १ शतके उद्देशः २ ॥३१॥ रीरा, जहा नेरइया तहा भाणियब्वा, नवरं कम्मवन्नलेस्साओ परिवण्णेयन्याओ, पुष्योववनगा महाकम्मतरागा व्याख्या द्र अविसुद्धवन्नतरागा अविसुद्धलेसतरागा, पच्छोववन्नगा पसत्था, सेसं तहेव, एवं जाव धणियकुमाराणं । पुढप्रज्ञप्तिः इकायाणि आहारकम्मवन्नलेस्सा जहा नेरइयाणं, पुढविक्काइया णं भंते ! सच्चे समवेयणा ?, हंता समवेयणा, ॥३१॥ 18 से केणढणं भंते ! समवेयणा, गोयमा ! पुढविकाइया सम्वे असन्नी असन्निभूया अणिदाए थेयणं वेदेति, से से तेणठेणं०॥ पुढविकाइया णं भंते ! सच्चे समकिरिया ?, हंता समकिरिया, से केणठे?, गोपमा! पुढवि काइया सव्वे माई मिच्छादिद्व, ता णं णिपयाओ पंच किरियाओ कजंति, तंजहा-आरंभिया जाच मिच्छादसजणवत्तिया, से तेणढणं०। समाउया समोववन्नगा जहा नेरइया तहा भाणियब्वा, जहा पुढविकाइया सहा जाव | चउरिदिया। पंचिंदियतिरिक्वजोणिया जहा नेरइया, नाणत्तं किरियासु, पंचिंदियतिरिक्वजोणिया णं भंते ! | सब्वे समकिरिया ?, गोणो ति०,से केणडेण०, गो पंचिंदियतिरिक्खजोणिया तिथिहा पन्नत्ता, तंजहा-सम्मदिही मिणविट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी, तत्थ णं जे ते सम्महि ते दुविहा पन्नत्ता, संजहा-अस्संजया य संजयासंजया य, तत्थ णं जे ते संजयासंजया तेसिणं तिन्नि किरियाओ कज्जति, तंजहा-आरंभिया परिग्गहिया मायावत्तिया, असंजयाणं चत्तारि, मिच्छादिट्ठीणं पंच, सम्मामिच्छादिट्ठीणं पंच, मणुस्सा जहा नेरइया, नाणतं जे महासरीराते बहुतराए पोग्गले आहारति आहच आहारेति, जे अप्पसरीरा ते अप्पतराए आहारेंति अभिक्खणं आहारेंति, सेसं जहा नेरल्याणं जाव वेयणा । मणुस्सा णं भंते! सम्बे समकिरिया?, गोयमाणो तिणट्टे समढे, For Private and Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ध्याख्या प्रज्ञप्तिः १ शतके उद्देशः २ Rilu३२॥ से केणढणं०१, गोयमा। मणुस्सा तिविहा पन्नत्ता, तंजहा-सम्मट्ठिी मिछाविट्ठी सम्मामिच्छाविट्ठी, तथ णं जे ते सम्मदिही ते तिविहा पण्णता, तंजहा-संजया अस्संजया संजयासंजया य, तत्थ गंजे ते संजया ते दुविहा पण्णता, तंजहा-सरागसंजया य वीयरागसंजया य, तत्थ णं जे ते वीयरागसंजया ते णं अकिरिया, तत्थ णं जे ते सरागसंजया ते दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-पमत्तसंजया य अप्पमत्तसंजया य, तत्थ णं जे ते अप्पमत्तसंजया तेसि गं एगा मायावत्तिया किरिया कज्जइ, तत्थ गंजे ते पमत्तसंजया तेसि णं दो किरियाओ कजंति, तं०-आरंभिया य मायावत्तिया य, तत्य गं जे ते संजयासंजया तेसि णं आइल्लाओ तिन्नि किIरियाओ कज्जति, तंजहा-आरंभिया १ परिग्गहिया २ मायावत्तिया ३, अस्संजया णं चत्तारि किरियाओ कजंति तं०-आर०१ परि०२ मायावत्ति० ३ अप्पश्च० ४, मिच्छादिड्डीणं पंच०, तं-आरंभि. १ परि०२ माया.३ अप्पश्च०४ मिच्छादसण.५, सम्मामिच्छदिट्ठीणं पंच ५/वाणमंतरजोतिसवेमाणिया जहा असुरकुमारा, नवरं वेयणाए नाणत-मायिमिच्छाविट्ठीउपवनगा य अप्पवेदणतरा, अमायिसम्मरिट्ठीउपवनगा य महावेयणतरागा भाणियव्या, जोतिसवेमाणिया ।। सलेस्सा णं भंते ! नेरइया सब्वे समाहारगा?, ओहियाणं सलेस्साणं सुकलेस्साणं, एएसिणं तिण्हं एको गमो, कण्हलेस्साणं नीललेस्साणंपि एक्को गमो, नवरं वेदणाए मायामिच्छाविट्ठीउववनगा य अमायिसम्मदिवीउवव० भाणियब्वा। मणुस्सा किरियासु सरागवीपरागपमत्तापमत्ता ण | भाणियब्वा । काउलेसाएवि एसेव गमो, नवरं नेरइए जहा ओहिए दंडए तहाभाणियग्वा, तेउलेस्सा पम्हलेस्सा For Private and Personal use only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥ ३३ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जस्स अत्थि जहा ओहिओ दडओ तहा भाणियन्वा, नवरं मणुस्सा सरागा वीयरागा य न भाणियत्वा, गाहादुक्खाउए उदिने आहारे कम्मवन्नलेस्सा य । समवयणसमकिरिया समाउन चैव योद्धव्वा ॥ १६ ॥ ( सू० २२ ) अर्थ : - (प्र०) हे भगवन् ! बघा नैरयिको सरखा आहारवाळा, सरखा शरीरवाळा तथा सरखा उच्छवास अने निःश्वासवाळा छे?! (उ०) हे गौतम! ए अर्थ समर्थ-संगत नथी अर्थात् ए प्रमाणे नथी. (प्र०) हे भगवन्! ते ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो के 'वा नैरयिको सरखा आहारवाळा, सरखा शरीरवाळा अने सरखा उच्छवास अने निःश्वासवाळा नथी ? (उ०) हे गौतम! नैरयिको बे प्रकारना कहा छे. ते आ प्रमाणे:-मोटा शरीरवाळा अने नाना शरीरवाळा, तेमां जे नैरयिको मोटा शरीरखाळा छे तेओ घणा पुढलोनो आहार करे छे, घणा पुद्गलोने परिणमावे छे. घणो उच्छवास अने निःश्वास ले छे; वारंवार आहार करे छे, वारंवार परिणमावे छे अने वारंवार उच्छवास तथा निःश्वास ले छे. तथा तेनां जे नाना शरीरवाळा छे तेओ थोडा पुद्गलोने परिणभावे छे, थोडो उच्छवास अने निःश्वास ले छे, कदाचित् आहार करे छे, कदाचित् परिणमावे छे, अने कदाच उच्छवास अने निःश्वास ले छे; माटे हे गौतम! | ते हेतुथी एम कहेवाथ छे के 'बधा नैरयिको सरखा आहारवाळा, सरखा शरीरवाळा अने यावत्-सरखा उच्छवास तथा निःश्वासवाळा नथी (प्र०) हे भगवन् ! वधा नैरयिको सरखा कर्मवाळा हे ? (उ०) हे गौतम! ए अर्थ समर्थ नथी. (प्र०) हे भगवन् ! ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो? (उ०) हे गौतम! नैरयिको वे प्रकारना कला हे? ते आ प्रमाणे :- पहेला उत्पन्न थयेला अने पछी उत्पन्न थयेलां, तेमां जे नैरयिको पहेलां उत्पन्न थयेलां छे तेओ अल्प कर्मचाळा छे अने जे पछी उत्पन्न थयेला छे तेओ महाकर्मवाळा है. माटे हे गौतम ! ते हेतुथी एम कहेवाय छे के " नैरयिको बधा सरखा कर्मवाळा नथी " (प्र०) हे भगवन् ! बघा नैरयिको समान कर्म For Private and Personal Use Only १ शतके उद्देशः २ ॥ ३३ ॥ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyarmandie हल्क र वाला ? (उ०) हे गौतम! ए अर्थ समर्थ नथी. (५०) हे भगवन् ! ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो। (उ०) हे गौतम! पूर्व प्रमाणे व्याख्या| जाणवं. अर्थात् नैरयिको वे प्रकारना छे ते आ प्रमाणे:-पूर्वोपपन्नक अने पश्चादुपपन्नक, तेमा जे पूर्वोपपत्रक छे तेओ विशुद्ध वर्ण १ शतके प्रज्ञप्तिः वाळा छे अने जे पछीथी उत्पन्न थयेला तेओ अविशुद्ध वर्णवाला छे, माटे हे गौतम! पूर्व प्रमाणे कमु छे. (प्र०) हे भगवन् ! बधा 15 उमेशः२ ॥३४॥ ॥३४॥ 18नरयिको समान लेश्यावाला छे ? (उ०) हे गौतम! ते अर्थ समर्थ नथी. (प्र०) हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो? के,131 है।वधा नरयिको समान लेश्यावाळा नथी ? (उ०) हे गौतम! नैरयिको पूर्ववत् वे प्रकारना कह्या छे तेमां जे नैरपिको प्रथम उत्पन्न थयेला ते विशुद्धलेश्यावाळा छे अने पछी उत्पन्न यया छे ते अविशुद्ध लेश्यावाला छे. माटे हे गौतम! ते हेतुथी पूर्ववत् जाणवू. (०) हे भगवन् ! बधा नैरपिको सरखी वेदनावळा छ ? (उ०) हे गौतम! ए अर्थ समर्थ नथी. (५०) हे भगवन् ! ए प्रमाणे शा3 | हेतुथी कहो छो? (उ०) हे गौतम ! नरयिको वे प्रकारना कहा छे. ते आ प्रमाणे-संनिभूत अने असंनिभूत छे तेमा जे संझीभूत छे ते मोटी वेदनावाला छे अने जे असंझीभूत छे ते ओछी वेदनावाळा छे, माटे हे गौतम ! ते हेतुथी पूर्ववत् कयुछे. (प्र०) हे भगवन् ! बधा नैरयिको समान क्रियावाला छे(उ०) हे गौतम! ए अर्थ समर्थ नथी. (प्र०) हे भगवन् ! ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो! (उ०) हे गौतम! नैरयिको त्रण प्रकारना कया छे ते आ प्रमाणे:-सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि अने सम्यग्मिध्यादृष्टि, तेमां जेओ | सम्यग्दृष्टि छे तेओने चार क्रिया होय छे ते आ प्रमाणेः-आरंभकी, पारिग्रहिकी, माया प्रत्यया अने अप्रत्ययाख्यान क्रिया तेमां | जेओ मिध्यादृष्टि छे, तेओने पांच क्रियाओ होय छे ते आ प्रमाणे:-आरंभिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया, अप्रत्याख्यान क्रिया, अने मिथ्यारष्टि प्रत्यया तथा तेमां जेओ सम्पमिथ्याष्टि छे तेओने पण पूर्व प्रमाणे पांच क्रियाओ होय छे, माटे हे गौतम ! .ACE ॐAX* For Private and Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रप्तिः * * से हेतुथी ए प्रमाणे कम छे. (प्र०) हे भगवन् ! बधा नरयिको सरखी उमरवाना अने समोपपत्र साये उत्पमक थएला के ? (उ०) हे गौतम! ए अर्थ समर्थ ननी. (प्र०) हे भगवन् ! ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो? (उ०) हे गौतम ! नरयिको चार प्रकारना C१ शतके कया छे, ते आ प्रमाणे:-केटलाक सरखी उमरवाळा अने केटलाक साये उत्पन्न थयेला, तथा केटलाक विषम उमरवाळा अने उद्देशः २ साये उत्पन्न थयेला तथा विषम प्रमाणे आगळ पाछळ उत्पन थयेला तथा केटलाक विषम उमरवाळा अने साथे उत्पन्न पयेला. माटे हे गौतम ! ते हेतुथी पूर्व प्रमाणे कावे. (प्र०) हे भगवन् ! बघा अमरकुमारो सरखा आहारवाळा अने सरखा शरीरवाला छे? | इत्यादि पूर्वनी पेठे सपना प्रश्नो करवा. (उ०) हे गौतम ! असुरकुमारो संबंधे बधुं नैरपिकोनी पेठे कहे. विशेष ए के, असुरकुमा रोना कर्म, वर्ण अने लेश्याओ नरयिकोथी विपरीत कहेचा. अर्थात् जे असुरकुमारो पूर्वोपपनको तेओ महाकर्मतर छे अने अविशुद्ध | वर्ण तथा लेश्यावाला छे. अने जे अनुरकुमारो पश्चादुपपत्रक छे तेओ प्रशस्त छे. चाकी वधू एज प्रमाणे जाणवू. ए प्रमाणे यावत् स्तनितकुमारो सुधी जाणवं. पृषविकायिकोना आहार, कर्म, वर्ण अने लेश्या ए बधुं नरयिकोनी पेठे जाणबु. (प्र०) हे भगवन् ! पधा पृथिवीकायको सरखी वेदनावाला के ? (उ०) हे गौतम ! हा, बंधा पृथिवीकायिको सरखी वेदनामा छे. (३०) हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो! के, 'बधा पृथिवीकायिको समवेदनावाला के (उ०) हे गौतम ! बधा पृथिवीकायिको असं झीओ हे अने असंञीभूत वेदनाने अनिर्धारणपणे वेदे छे, माटे हे गौतम ! ते हेतुथी पूर्व प्रमाणे कंधु छे. (प्र०) हे भगवन् ! बधा का पृथिवीकायिको समान क्रियावाला के ? (उ०) हे गौतम! हा बघा पृथिवीकायिको समान क्रियावाला छे. (प्र०) हे भगवन् । से आ प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो? (उ०) हे गौतम ! बधा प्रथिवीकायिको मायी अने मिथ्यादृष्टि से. माटे तेओने पांच क्रियाओ * For Private and Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ध्याख्याप्रज्ञप्ति ॥३६॥ द्विय र (उ०) हे गौतम, सम्पष्टि छ तेत्रो मे ब- नियमपूर्वक होय छे. ते पांच क्रियाओमा डे-आरंभिकी यावद्-मिथ्यादर्शन प्रत्यया. माटे हे गौतम! ते हेतुथी पूर्व प्रमाणे 5. कबु छ जेम समायु अने समोपपना नैरपिको कहा तेम पृथिवीकायको पण कहेवा जेम पृथिवीकायिको कहा तेम दे इंद्रियो, ते १ शतके PI इंद्रियो अने यावत्-चउरिद्रियो पण कहेषा. तथा पंचेंद्रिय तियंचयोनिको पण नरयिकोनी पेठे जाणवा. मात्र क्रियाओमा भेद छे. उद्देशः २ (प्र०) हे भगवन् ! बधा पंचेद्रिय तिर्यच योनिको समान क्रियावाला छे ? (उ०) हे गौतम! ए अर्थ समर्थ नथी. (प्र०) हे ॥३६॥ भगवन् ! ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो? (उ०) हे गौतम ! पंचेन्द्रिय तिर्यच योनिको त्रण प्रकारना कहा छ, ते आ प्रमाणे सम्यग्दृष्टि, मिथ्यारष्टि अने सम्यग्मिध्यादृष्टि तेमा जेओ सम्यष्टि छ तेत्रो प्रकारना कह्या छे, ते आ प्रमाणे: असंयत अने संयतासंयत तेमां जे संयतासंयत के तेओने त्रण क्रियाओ होय छे. ते आप्रमाणे:-आरंभिकी, पारिग्रहिकी अने मायाप्रत्यया. तथा जे असंयतो छ तेने चार अने मिथ्यादृष्टि तथा सम्यग्दृष्टि के तेओने पांच क्रियाओ होय छे. जेम नरयिको कह्या तेम मनुष्यो कहेवा. तेमां भेद आ के जे मनुष्यो मोटा शरीरवाला छे ते घणा पुद्गलोनो आहार करे छे अने कदाचिन् आहार करे छे. | तथा जे मनुष्यो नाना शरीरवाला छे ते थोडा पुद्गलोनो आहार करे छे अने वारंवारआहार करे छेबाकी बधुं यावद्-वेदना सुधी | नैरयिकोनी पेठे जाणवू. (प्र०) हे भगवन् ! बघा मनुष्यो समान क्रिया वाठा है? (उ०) हे गौतम ! ए अर्थ समर्थ नथी (प्र.) हे भगवन् ! ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो? (उ०) हे गौतम! मनुष्यो त्रण प्रकारना कह्या छे. ते आ प्रमाणे-सम्यग्दृष्टि, | मिथ्याडष्टि अने सम्यगमिथ्यादृष्टि. तेमां जेओ सम्यग्दृष्टि . तेओ त्रण प्रकारना कया छे. ते आ प्रमाणे:-संयत, संयतासंयत अने असंयतः तेमा जे संयत छे ते वे प्रकारना कमा छे-सरागसंयेतः अने वीतरागसंयत. तेमां जे वीतरागसंयत तेओ क्रिया आरंभिकी, पारिश्राम 35% For Private and Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः 11 2011 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विनाना छे. जे सरागसंयत छे तेओ मे प्रकारना कया के, ते आ प्रमाणेः प्रमत्तसंयत अने अप्रमतसंयत तेमां जे अप्रमत्तसंयत के तेओने एक मायाप्रत्यया क्रिया होय छे। अने जेओ प्रमत्तसंयत छे तेओने बे क्रियाओ होय छे:- आरंभिकी अने मायाप्रत्यया. तेमां जे संयतासंयत छे तेओने प्रथमनी त्रण क्रियाओ कही छे, ते आ प्रमाणेः- आरंभिकी, पारिग्राहिकी अने मायाप्रत्यया. तथा असंयतोने चार क्रियाओ होय छे. आरंभिकी, पारिग्राहिकी, मायाप्रत्यया अने अप्रत्यख्यानप्रत्यया. मिथ्यादृष्टिओने तथा सम्यग्मिध्यादृष्टिओने पांच क्रियाओ होय छे ते आ प्रमाणेः- आरंभिकी, परिग्रहिकी, मायाप्रत्यया, अप्रत्याख्यानप्रत्यया अने मिथ्यादर्शनप्रत्यया. वानव्यंतर, ज्योतिषिक अने वैमानिक, ए बधा असुरकुमारोनी पेठे कहेवा. वेदनामां भेद छे, जे आ प्रमाणे छे ज्योतिष्क अने वैमानिकोमा जे मायी मिध्यादृष्टि उत्पन्न थरला होय ते ओछी वेदनावाळा होय छे अने जे अमायी सम्यग्दृष्टि उत्पन्न थएला होय ते मोटी वेदनावाला होय छे एम कहे. [प्र०] हे भगवान् ! लेश्यावाळा बघा नैरयिको समान आहारवाळा छे ? [अ०] हे गौतम! औधिक - सामान्य, सलेश्य अने शुक्ललेश्यावाळा ए त्रणेनो एक गम कहेवो. कृष्णलेश्यावाळा अने नीलले श्यावाळाओनो पण समान गम कहेवो. पण तेमां वेदनामां भेद आ प्रमाणे छे-मायी अने मिध्यादृष्टी उपपत्रक अने अमायी तथा सम्यग्दृष्टि उपपन्नक कहेवा. तथा कृष्ण अने नीललेश्यामां मनुष्यो सरागसंयत, वीतरागसंयत, प्रमत्तसंयत के अप्रमत्तसंयत न कहेवा. वळी कापोतवेश्यावाळामां पण एज गम समजवो. विशेष ए के कापोतले श्यावाळा नैरयिको औधिकदंडनी पेठे कहेवा. जेओने तेजोलेश्या अने पद्मलेश्या होय, तेओ औधिकदंडनी पेठे कहेवा विशेष ए के, मनुष्योना सराग अने वीतराग एवा वे भेद कहेवा. गाथा -कर्म-अने आयुष्य जो उदीर्ण होय तो वेदे छे. आहार, कर्म, वर्ण, लेश्या, वेदना, क्रिया, अने आयुष्य, ए बधानी For Private and Personal Use Only ९ शतके उद्देशः २ ॥ ३७ ॥ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir % व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥३८॥ % * समता संबंधे पूर्वे कंधुं छे एम जाणवू ॥२२॥ भरतके करणं भंते! लेस्साओ पन्नत्ताओ', गोयमा छल्लेस्साओ पन्नता, तंजहा-लेसाणं बीयओ उसओ " उद्देशः २ भाणियब्धो जाय इडी।। (सू० २३ ।। [प्र०] हे भगवन् ! छेश्याओ केटली कही छे ? [उ०] हे गौतम ! लेश्याओ छ कही छ. ते आ प्रमाणे:-अहीं प्रज्ञापनास्त्रमा ॥३॥ | कहेल चार उद्देशकवाळा लेश्यापदनो बीजो उद्देशक कहेवो. ते यावत्-इड्ढी-ऋद्धिनी वक्तव्यता सुधी कहेवो ॥ २३ ॥ जीवस्स णं भंते ! तीतद्वाए आदिकृस्स कहविहे संसारसंचिट्ठणकाले पण्णत्ते?, गोयमा ! घउन्धिहे संसारसंविट्ठणकाले पण्णसे, तंजहा-णेरइयसंसारसंचिट्ठणकाले तिरिक्व. मणुस्स. देवसंसारसंचिट्ठणकाले य पण्णत्ते । नेरइयसंसारसंचिट्ठणकाले णं मंते ! कतिविहे पपणते?, गोयमा! तिविहे पण्णत्ते, तंजहा-सुनकाले असुभकाले मिस्सकाले ॥ तिरिक्खजोणियसंमार पुच्छा, गोयमा! दुबिहे पण्णत्ते, तंजहा-असुभकाले य मि-10 स्सकाळे य, मणुस्साण य देवाण य जहा नेरइयाणं ॥ एयरस णं भंते ! नेरइयसंसारमंचिट्ठणकालस्स सुन्नकालस्स असुन्नकालस मीसकालस्स य कंपरे कयरहितो अप्पा वा बहुए वा तुल्ले वा विसेसाहिए वा!, गोयमा सव्यथोवे असुन्नकाले, मिस्सकाले अणतगुणे, सुत्रकाले अर्णतगुणे ॥ तिरिक्खजो. भंते !०, सवथोवे असुन्नकाले मिस्सकाले अणंतगुणे, मणुस्सदेवाण य जहा नेरझ्या ॥ एयस्स णं भंते! नेरयसंसारसचिट्ठणकालस्स जाव देवसंसारसंचिढणजावविसेसाहिए वा?, गोयमा! सवयोवे मणुस्ससंसारसंचिट्ठणकाले, नेरदयसंसार ** * For Private and Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥३९॥ १ शतके उद्देशः २ ॥३९॥ . . ट्र संभिट्ठणकाले णसंखेजगुणे, देवसंसारसंचिट्ठणकाले असंखेजगुणे, तिरिक्खजोगिए अणंतगुणे ॥ [सू. २४]. | [प्र०] हे भगवन् ! अतीत काळमां आदिष्ट-नरकादि विशेषणविशिष्ट-थएल जीवोने संसारसंस्थाननो काळ केटला प्रकारनो, करो के ? [उ०] हे गौतम! संसारसंस्थाननो काळ चार प्रकारनो कयो छे. ते आ प्रमाणे-नैरयिक संसारसंस्थानकाळ, तियेचसंसारसंस्थानकाल, मनुष्यसंसारसंस्थानकाळ अने देवसंसारसंस्थानकाळ. [प्र.] हे भगवन् ! नैरयिकसंसारसंस्थानकाळ केटला प्रकारनो | कह्यो छे? [उ०] हे गौतम!त्रण जातनो कह्यो छे. ते आ प्रमाणे:-शून्यकाळ, अशून्यकाळ, अने मिश्रकाळ. [प्र.] हे भगवन् ! | तिर्यचयोनिकसंसारसंस्थानकाळ केटला प्रकारनो कयो छ ? [उ०] हे गौतम ! ते वे प्रकारनो कबो छे. ते आ प्रमाणे:-अशून्यकाळ अने मिश्रकाळ. मनुष्योना अने देवोना संसारसंस्थानकाळना प्रकारो नैरयिकोनी पेठे जाणवा. [प्र०] हे भगवन् ! ए नैरयिक संबंधी संसारसंस्थानकाळना त्रण-शून्यकाळ, अशून्यकाळ, अने मिश्रकाळरूप-प्रकारोमा कयो कोनाथी ओछो, वधारे, तुल्य के विशेषाधिक ले ? [उ.] हे गौतम! सौथी थोडो अशून्यकाळ , ते करतां मिश्रकाळ अनंतगुण के अने ते करतां पण शून्यकाळ अनंतगुण छ. तथा तियंचयोनिकसंसारसंस्थानकाळना वे प्रकारमा सौथी थोडो अशून्यकाळ छे अने ते करतां मिश्रकाळ अनैतगुण छे. मनुष्योना अने देवोना संसारसंस्थानकाळनी न्यूनाधिकता नैरयिकोना संसारसंस्थानकाळनी न्यूनाधिकता पेठे जाणवी. [प्र.] हे भगवन् ! | नरयिकना, तिर्यचयोनिकना, मनुष्यना अने देवना ए संसारसंस्थानकांळमां कयो कोनाथी ओछो, बंधारे, तुल्य के विशेषाधिक है। ॐ[उ.] हे गौतम ! मनुष्यसंसारसंस्थानकाळ सौथी थोडो छे, ते करतां नैरयिकसंसारसंस्थानकाळ असंख्येयगुण , ते करतां देवसंसारसंस्थानकाळ असंख्येयगुण डे अने ते करतां तिर्यचयोनिकसंसारसंस्थानकाळ अनंतगुण छ ॥ २४ ॥ - SHRIES -% For Private and Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः 1180 11 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवे णं भंते! अंतकिरियं करेजा ?, गोयमा ! अत्थेगतिया करेजा, अत्थेगतिया नो करेजा, अंतकिरिथापयं नेयव्वं [सू० २५] [प्र० ] हे भगवन् ! जीव अंतक्रिया करे अर्थात् जीव मोक्षप्राप्ति करे ? [ ७०] हे गौतम! कोइ करे छे अने कोई करता नथी. आ प्रश्नना सविस्तर उत्तर माटे प्रज्ञापनासूत्रनुं 'अंतक्रिया' नामनुं बीसमुं पद जाणवुं ।। २५ ।। अह भंते ! असंजयभवियदत्र्वदेवाणं १ अविराहियसंजमाणं २ विराहियसंजमाणं ३ अबिराहियसंजमासंअमाणं ४ विराहियसंजमासंजमाणं ५ असनीणं ६ तावसाणं ७ कंदप्पियाणं ७ चरगपरिव्वायगाणं १ किव्विसियाणं १० तेरिच्छियाणं ११ आजीबियाणं १२ अभिओगियाणं १३ सलिंगीणं दंसणवावनगाणं १४ एएसि णं देवलोगेसु उववज्जमाणाणं कस्स कहिं उबवाए पण्णत्ते ?, गोपमा ! अस्संजयभवियदन्यदेवाणं जहनेणं भवणवासीसु उक्कोसेणं उवरिमगेविल्लएस १, अविराहियसंजमाणं जहनेणं सोहम्मे कप्पे उशोसेणं सव्वद्धसिद्धे विमाणे २, बिराहियसंजमाणं जहस्रेणं भवणवासीस उक्कोसेणं सोहम्मे कप्पे ३, अविराहियसंजमासंजमाणं जहस्रेणं सोहम्मे कप्पे उक्कोसेणं अचुए कप्पे ४, विराहियसंजमासंजमाणं जहणं भवणवासी उक्कोसेणं जोतिसिपसु ५, असन्नीणं जहणं भवणवासीसु उक्कोसेणं वाणमंतरेस ६, अवसेसा सव्वे जह० भवणवा० उक्कोसगं वोच्छामि तावसाणं जोतिसिएस, कंदप्पियाणं सोहम्मे, चरगपरिव्वायगाणं बंभलोए कप्पे, किविसियाणं लंतगे कप्पे, तेरिच्छियाणं सहस्सारे कप्पे, आजीवियाणं अच्चुए कप्पे, आभिओगियाणं अच्चुए कप्पे, For Private and Personal Use Only १. शतके उद्देशः २ ॥ ४० ॥ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः १ शतके उद्दशः २ ॥४१॥ ॥४१॥ ॐ4-4%*****% २-. .. सलिंगदसणवावन्नगाणं उवरिमगेबेजएस १४ ॥ [सू० २६] ०] हे भगवन् ! संयमरहित अने देवपणु पामत्राने योग्य एवा जीवो अखंडित संयमवाळा, खंडित संयमवाळा, अखंडित |संयमासंयमवाळा, खंडित संयमासंयमवाळा, असंज्ञिजो, तापसो, कांदर्पिको, चरकपरिव्राजको, अथवा चरको अने परिव्राजको, किल्बिषिको तिर्यचयोनिको, आजिविको, आभियोगिको, अने श्रद्धाभ्रष्टवेषधारको, ए बधा जो देवलोकमां उत्पन्न थाय तो कोनो 6 क्यां उत्पाद-कह्यो छ? [उ०] हे गौतम ? संयमरहित अने देवपणुं पामवाने योग्य एवा जीवोनो जघन्ये भवनवासिमां अने | उत्कृष्ट उपरना अवेयकमां उत्पाद कह्यो छे. अखंडित संयमवाळाओनो जघन्ये सौधर्मकल्पमा अने उत्कृष्टे सर्वार्थपिद्ध विमानमां Al उत्पाद कयो छे. खंडित संयमवाळाओनो जघन्ये भवनवासिमां अने उत्कृष्टे सौधर्मकल्पमा, अखंडित संयमवाळाओनो जघन्ये सौधर्मकल्पमा अने उत्कृष्ट अच्युतकल्पमां, खंडित संयमासंयमवाळाओनो जघन्ये भवनवासिमां अने उत्कृष्टे ज्योतिषिकमां, असंझिओने जघन्ये भवनवासिमां अने उत्कृष्ट वानव्यंतरमा उत्पाद थाय छे. अने बाकी चीजा बधानो जघन्ये भवनवासिमां उत्पाद | थाय छे अने उत्कृष्टे ज्यां उत्पाद थाय छे तेने हवे कहीश:-तापसोनो ज्योतिषिकोमा कांदापकोनो सौधर्मकल्पमां, परिव्राजकोनो | ब्रह्मलोकमा किल्बिषिकोनो लांतककल्पभां, तिर्यचोनो सहस्रारकल्पमा, आजिविकोनो तथा आभियोगिकोनो अच्युतकल्पमा अने | दर्शनभ्रष्ट वेषधारकोनो उत्पाद उपरना अवेयकमां धाय छे. ॥ २६ ॥ कतिविहे भंते ! असन्नियाउए पण्णत्ते, गोयमा! चउविहे असन्निआउए पण्णत्ते, तंजहा-नेरइय६ असन्निआउए तिरिक्व० मणुस्स० देव० । असन्नी णं भंते ! जीवे किं नेरइयाउयं पकरेइ तिरि० मणु० देवाउयं - % - % - % - For Private and Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥४२॥ १ शतके उद्देशः २ ॥४२॥ पकरेइ ?, हंता गोयमा ! नेरइयाउयपि पकरेइ तिरि० मगु० देवाउयपि पकरेइ, नेरहयाउयं पकरेमाणे जहन्ने] दसवाससहस्साई उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेजइभागं पकरेति, तिरिक्खजोणियाउयं पकरेमाणे जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उकोसेणं पलिओवमस्स असंखेजइभागं पकरेइ, मणुस्साउएवि एवं चेव, देवाउयं जहा नेरइया । एयस्स णं भंते ! नेरइयअसन्निआउयस्स तिरि० मणु० देवअसन्निआउयस्स कयरे कयरे जाव विसेसा|हिए वा!, गोयमा! सब्बयोवे देवअसन्निआउए, मणुस्स. असंखेजगुणे, तिरिय० असंखेनगुणे, नेरइए. असंखेनगुणे । सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति॥ [सू० २७] ॥ बितिओ उडेसओ संमत्तो॥ [प्र०] हे भगवन् ? असंझिनु आयुष्य केटला प्रकार- होय छे ? अर्थात असंज्ञी जीव केटला प्रकारचं आयुष्य बांधे छ ? [उ.] हे गौतम ? असंजिनु आयुष्य चार प्रकारचं होय छे, ते आ प्रमाणे:-नैरयिक असंझिआयुष्य, तियेचअसंज्ञिआयुष्य, मनुष्य असंज्ञिआयुष्य अने देव असंझिआयुष्य. [प्र०] हे भगवन् ? शुं असंज्ञी जीव नैरयिकर्नु आयुष्य करे, के तिर्यचर्नु, मनुष्य के देवर्नु आयुष्य करे ? [३०] हे गौतम ! हा, नैरयिकर्नु आयुष्य पण करे अने तिर्यचतुं, मनुष्यतुं के देवतुं आयुष्य पण करे, नैरयिकनुं आयुष्य करतो असंज्ञि जीव जघन्ये दस हजार वरसर्नु अने उत्कृष्टे पल्योपमना असंख्येयभाग जेटलुं आयुष्य करे तिर्यचयोनिकर्नु | आयुष्य करतो जघन्ये अंतर्मुहूर्ततुं अने उत्कृष्ट पल्योपमना असंख्येयभाग जेटलं आयुष्य करे, मनुष्यनुं आयुष्य करतो पण एज प्रमाणे करे अने देवर्नु आयुष्य नैरयिकना आयुष्यनी पेठे करे. [प्र०] हे भगवन् ! ए नैरयिक असंज्ञिआयुष्य, तिर्यचयोनिक असंज्ञिआयुष्य, मनुष्य असंझिआयुष्य, अने देव असंलिआयुष्य ए बधामा कयु कोनाथी अल्प, बहु, तुल्य अने विशषाधिक छे ? [उ०] For Private and Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हे गौतम ! देव असंझिआयुष्य सौथी थोई छे, ते करतां मनुष्य असंज्ञिआयुष्य असंख्येयगुण छे ते करता तिर्यचयोनिक असंजि-15 आयुष्य असंख्येयगुण के अने ते करतां नैरयिक असंज्ञिआयुष्य असंख्येयगुण छे. हे भगवन ! ते एप्र प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए १ प्रमाणे . एम कही यावत् विडरे हे. ॥ २७ ॥ भगवत् सूधर्मस्वामिए रघेला एवा श्रीमद्भगवतीसूत्रना प्रथम शतकमां बीजा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥४३॥ शतके उदेशः३ ॥४३॥ उद्दशक ३ जीवाणं भंते ! कंखामोहणिज्ने कम्मे कडे ?, हंता कडे ।। से भंते ! कि देसणं देसे कडे १ १ देसेण मब्वे कडे! | ४२ सम्वेणं देसे कडे? ३ सम्वेणं सब्वे कडे १४, गोयमा! नो देसेणं देसे कडे १ नो देसेगं सब्वे कडे २ नो सम्वेणं देसे कडे ३ सम्वेणं सब्वे कडे ४॥ नेरइया भंते! कंखामोहणिजे कम्मे कडे ?. हंता कडे, जाव सब्वेणं सब्वे कडे ४ । एवं जाव वेमाणियाणं दंडओ भाणियचो (सू०६८) 1 [प्र०) हे भगवन् ! शुं जीवो संबंधि कांक्षामोहनीय कर्म कृत-क्रियानिष्पाप छ ? [उ०] हे गौतम! हा, ते क्रिया निष्पाय छे. [प्र०] हे भगवन् ! ते शुं देशथी देशकृत छे, देशथी सर्वकृत छे, सर्वथी देशकृत छ, के सर्वथी सर्वकृत छ ? [उ०] हे गौतम ! ते देशथी देशकृत नथी, देशथी सर्वकृत नथी, सर्वथी देशकृत नथी पण सर्वथी सर्वकृत छ, [प्र०] हे भगवन् ! नैरविको संबंधि कांक्षा-2 मोहनीय कर्मकृत छे ? [३०] हे गौतम ! हा, ते कृत छ. सर्वची सर्वकृत छे. अने ए प्रमाणे वैमानिको सुधी दंदक कहेवो. ॥२८॥ A-A...PAT-SIS For Private and Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ध्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥४४॥ रक् जीवा णं भंते ! कंखामोहणि कम्मं करिसु?, हंता करिसु। भैत! किं देसेणं देसं करिसु?, एएणं अभिलावेणं दंडओ भाणियन्बो जाव वेमाणियाणं, एवं करेंति, एत्थवि दंडओ जाव वेमाणियागं, एवं करेस्संति, १ शतके एस्थवि दंडओ जाव बेमाणियाण ॥ एवं चिए चिणिसु चिणति चिणिस्संति, उबचिए उवचिणि उवचिणिस्संति, उद्देशः ३ उदीरेंसु उदीरेंति उदीरिस्संति, वैदिसु वेदंति वेदिस्संति, निजरेंसु निजरेंति निजरिस्संति, गाहा-कडचिया 8 ॥४ ॥ है उवचिया उदीरिया वेदिया य निजिन्ना । आदितिए चउभेदा तियभेदा पच्छिमा तिन्नि ॥१७॥ (सू०२९) | [प्र०] हे भगवन् ! जीवोए कांक्षामोहनीय कर्म कर्यु ? [३०] हे गौतम! हा, क. [प्र०] हे भगवन् ! ते शुं देशथी देशे कयु || [उ.] हे गौतम ! सर्वथी सर्व कप छे. ए प्रमाणे यावत्-वैमानिको सुधी दंडक कहेवो. एज प्रमाणे करे छे अने करशे, ए बनेनो | अभिलाप पण यावत्-वैमानिको सुधी कहेवो. तया एज प्रमाणे चय, चय कर्यो, चय करे छे तथा चय करशे; उपचय, उपचय कों, उपचय करे ले, उपचय करशे. उदीयं, उदीरे छे, उदीरशे, वेधू, वेदे छे, वेदशे, निर्जयु निर्जरे छे, अने निजरशे; ए बधा अभि| लापो कहेवा. गाथा-कृत, चित अने उपचितमा एक एकना चार मेद कहेवाना छे अर्थात् सामान्यक्रिया, पछी भूतकाळनी तथा भविष्यकाळनी क्रिया; अने पाछळना त्रण पदमां-उदीरित, वेदित, अने निजिर्णमा एक एक पदमा मात्र त्रण काळनीज किया कहेवानी छे. ॥२९॥ ___ 'जीवा णं भंते! कंखामोहणिजे कम्मं वेदेति ?, हंता वेदेति । कहनं भंते! जीवा कंखामोहणिजं कम्म वेदेति ?, गोयमा! तेहिं तेहि कारणेहि संकिया कंखिया वितिगिछिया भेयसमावन्ना कलुससमावन्ना, एवं ECCCCCCCCC For Private and Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥ ४५ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वलु जीवा कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेति ॥ (सू० ३०) [प्र०] हे भगवन् ! जीवो कांक्षामोहनीय कर्मने वेदे छे ? [अ०] हे गौतम! हा वेदे छे. [प्र०] हे भगवन् ! जीवो कांक्षामोहनीय कर्मने केवी रीते वेदे छे ? [अ०] हे गौतम ! ते ते कारणो वडे शंकावाळा कांक्षावाळा, विचिकित्साचाळा, भेदसमापन अने कलुषसमापन, थइने ए प्रमाणे जीवो कांक्षामोहनीय कर्मने वेदे छे. ॥ ३० ॥ से नूणं भंते! तमेव सचं णीसंकं जं जिणेहिं पवेइयं ?, हंता गोयमा ! तमेव सचं णीसंकं जं जिणेहिं पवेदितं (सू० ३१) [प्र० ] हे भगवन् ! तेज सत्य अने निःशंक छे के जे जिनोए जणान्युं छे ? [उ०] हे गौतम! हा तेज सत्य अने निःशंक छे के जे जिनोए जणान्युं छे. ॥ ३१ ॥ से नूणं भंते! एवं मणं धारेमाणे एवं पकरेमाणे एवं चिट्टेमाणे एवं संवरेमाणे आणाए आराहर भवति ?, हंता गोयमा ! एवं मणं धारेमाणे जाव भवह || ( सू० ३२ ) [प्र०] हे भगवन् ! एज प्रमाणे मनमां धारतो, प्रकरतो, रहेतो, अने संवरतो प्राणी आज्ञानो आराधक थाय छे ? [अ०] है गौतम ! हा ए प्रमाणे मनमां धारतो यावत्-प्राणी आज्ञानो आराधक थाय छे. ॥ ३२ ॥ से मूणं भंते! अत्थितं अत्थित्ते परिणमइ, नत्थित्तं नत्थित्ते परिणमइ ?, हंता गोयमा ! जाव परिणमइ ॥ | जपणं भंते! अत्थितं अत्थित्ते परिणमइ, नस्थित्तं नत्थित्ते परिणमइ, तं किं पयोगसा वीससा ?, गोयमा ! १ For Private and Personal Use Only --+ १ शतके उद्देशः ३ ॥४५॥ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit व्याख्या-1 प्रज्ञप्ति शतके उद्देशः ३ ॥४६॥ ॥४६॥ PRAKASHANA पयोगसावि तं बीससावितं ॥ जहा ते भंते ! अत्थितं अस्थित्ते परिणमा सहा ते नस्वितंत्थित्ते परिणमह! जहा ते नत्थित्तं नस्थित्त परिणमइ तहा ते अत्थितं अत्थित्ते परिणमइ, हंता गोयमा ! जहा मे अस्थित्तं अस्थित्ते परिणमइ तहा मे नस्थित नत्थित्ते परिणमइ, जहा मे नत्थितं नत्थित्ते परिणमइ तहा मे अस्थित्तं अत्थित्ते परिणमइ ॥ से णूणं भंते ! अस्वित्तं अत्थित्ते गमणिलं ? जहा परिणमइ दो आलवगा तहा ते इह गमणिजेणवि दो आलावगा भाणियव्वा जाब जहा मे अत्थित्तं अत्थित्ते गमणिज्ज। [सू. ३३] प्र०] हे भगवन् ! अस्तित्व अस्तित्वमा परिणमे छे, नास्तित्व नास्तित्वमा परिणमे छ? [उ०] हे गौतम! हा, ते प्रमाणेयावत्-परिणमे छे. [म०] हे भगवन् ! जे ते अस्तित्व अस्तिवमा परिणमे छे अने नास्तित्व नास्तिवमा परिणमे छे. ते शु प्रयोगथी-जीवना न्यापारथी-परिणमे छे के स्वभावथी परिणमे छे ? [उ.] हे गौतम ! ते प्रयोगथी अने स्वभावथी (बन्नेप्रकारे) परि| णमे छे. [प्र०] हे भगवन् ! जेम तारुं अस्तित्व अस्तित्वमा परिणमे छे. तेम तारुं नास्तित नास्तित्वमा परिणमे छे? अने जेम तारुं नास्तित्व नास्तित्वमा परिणमे छे तेम तारुं अस्तित्व अस्तित्वमा परिणमे छे. (उ०] हे गौतम! हा, जेम मारुं अस्तित्व अस्तित्वमा परिणमे छे तेम तारुं नास्तित्व नास्तित्वमा परिणमे छे. अने जेम माझं नास्तित्व नास्तित्वमा परिणमे छे तेम माझं अस्तित्व अस्तित्वमा परिणमे छे. [अ०] हे भगवन् ! अस्तित्व अस्तित्वमां गमनीय छे? [उ.] हे गौतम! हा, जेम 'परिणमे छे' ए पदना वे आला. पक कह्या तेम अहीं 'गमनीय पद साथे पण वे आलापक कहेवा. यावत्-जेम माझं अस्तित्व अस्तित्वमा गपनीय छे. ॥ ३३ ॥ जहा ते भंते! एत्थ गमणि सहा तेइ गणिज्लं?, जहा ते इहंगमणिलं तहाते एत्थं गमणिलं, हंता! 6444444*-*-* For Private and Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गोयमा!, जहा मे एत्थं गमणिजं जाव तहा मे पत्थं (इहं) गमणिज, ॥ (सू०३४) व्याख्या- [प्र०] हे भगवन् ! जेम तारुं अहीं गमनीय छे तेम तारु इह गमनीय छे? जेम तार्क इह गमनीय छे तेम तारु अहीं गमनीयमा शतके प्रज्ञप्तिः छ। [उ०] हे गौतम ! हा. जेम मारु अहीं गमनीय छे यावत्-तेम मार्क अहीं गमनीय के. ॥ ३४ ॥ उद्देशः ३ ४ा जीवाणं भंते! कंग्खामोहणिलं कम्म पंधति?, हंता बंधति । कहं णं भंते! जीवा कंग्वामोहणिज कम्म151 ॥४७॥ बंधति ?, गोयमा! पमादपञ्चया जोयनिमित्तं च ॥ से णं भंते ! पमाए किंपबहे १, गोयमा! जोगप्पवहे । से गं भंते ! जोए किंपवहे ?, गोयमा ! बीरियप्पवहे । से णं भंते ! वीरिए किंपवहे ?, गोयमा ! सरीरप्पवहे । से णं साभंते ! सरीरे किंपबहे ?, गोयमा! जीवप्पवहे । एवं सति अस्थि उहाणेति वा कम्मेति वा बलेइ वा वीरिएइ वा पुरिसकारपरकमेइ वा ॥ (सू० ३५) I [म.] हे भगवन् ! जीवो कांधामोहनीय कर्म बांधे छ ? [उ०] हे गौतम ! हा बांधे थे. [प्र०] हे भगवन् ! जिवो कांक्षामोहनीय कर्म केवी रीते बांधे छ ? [उ०] हे गौतम! प्रमादरूप हेतुथी अने योगरूप निमितथी जीवो कांक्षामोहनीय कर्म बांधे छे. [प्र०] हे भगवन् ! ते प्रमाद शाथी प्रवहे छे-पेदा थाय छे ? [उ०] हे गौतम! ते प्रमादयोगथी-मानसिक, वाचिक अने कायिक व्यापारथी | पेदा थाय छे. [प्र०] हे भगवन् ! ते योग शाथी पेदा थाय छे? [उ०] हे गौतम ! ते योग बीथी पेदा थाय छे. [प्र.] हे भगवन् ! ते वीर्य शाथी पेदा थाय छे ? [उ०] हे गौतम! ते वीर्य शरीरथी पेदा थाय छे. [प्र०] हे भगवन् ! ते शरीर शाथी पेदा थाय ? [उ.] हे गौतम ! ते शरीर जीवथी पेदा थाय छे, अने ज्यारे तेम छे तो उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, अने पुरुषाकार पराक्रम छे ॥३५॥ AAAAACAN For Private and Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir kritTHA-% से गूर्ण भंते ! अप्पणा चेव उदीरेइ, अप्पणा चेक गरहा, अप्पणा चेव संवरह , हता! गोयमा! अप्पणा व्याख्याचेव तं चेव उच्चारेयचं ३ ॥ जं तं भंते। अपणा व उदीरेइ अप्पणा व गरहेइ अपणा व संवरेइ तं किंE Hशतके प्रचप्तिः उदिन्नं उदीरेइ १ अणुदिन उवीरेइ २ अणुदिनं उदीरणाभषियं कम्मं उदीरेइ ३ उदयाणंतरपच्छाकडं कम्म | उद्देशः ३ ॥४८॥ उदीरेइ ४१, गोयमा! नो उदिण्णं उदीरेइ १ नो अणुदिन्नं उदीरेइ २ अणुविन्नं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेइ ३, ॥४८॥ णो उदयाणंतरपच्छाकडं कम्मं उदीरेइ ४ ॥ जंतं भंते । अणुदिन्नं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेइ तं किं उहाणेणं कम्मेणं बलेणं बीरिएणं पुरिसकारपरकमेणं अणुदिन्नं उदीरणाभषियं क. उदी.? उदाहु तं अणुहाणेणं अक म्मेणं अब लेणं अवीरिएणं अपुरिसकारपरकमेणं अगुदिन्नं उदीरणाभवियं कम्मं उदी.?, गोयमा ! तं उट्ठातणवि कम्मे० बले० वीरिए• पुरिसकारपरकमेणवि अणुदिन्नं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेइ. णोतं अणुद्वाणेणं अकम्मेणं अबलेणं अवीरिएणं अपुरिसकार० अणुदिन्नं उदी० भ० क. उदी०, एवं सति अस्थि उहाणेइ वाई कम्मेह वा बलेइ वा पीरिएड वा पुरिसकारपरकमेइ वा ॥ से नूणं भंते ! अप्पणा चेव उवसामेह अप्पणा चेव सगरहइ अप्पणा चेव संवरह, हंता गोयमा ! एत्थवि तहेव भाणियब्वं, नवरं अणुविनं उवसामेइ, सेसा पडि| सेहेपब्बा तिन्नि । जंतं भंते ! अणुदिनं उपसामेइ तं किं उठाणेणं जाव पुरिसक्कारपरकमेति था, से नूर्ण भंते। अप्पणा चेव वंदइ अप्पणा चेव गरहइ ?, एत्थवि सचेव परिवाडी, नवरं उद्दिन्नं वेएइ, नो अणुदिन्नं वेण्इ, एवं8| जाव पुरिसकारपरिकमेइ वा। से नूर्ण भंते ! अप्पणा व निजरेति अपणा चेव गरहइ, एत्थवि सच्चेव परि . * EX For Private and Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org वाडी, नवरं उदयार्णतरपच्छाकडं कम्मं निजरेइ, एवं जाव परिकमेइ वा ॥ [सू०३६] व्याख्या- 6 [प्र०] हे भगवन् ! शु जीव पोतानी मेळेज तेने उदीरे ठे? पोतानी मेळेज तेने गहें छे? अने पोतानी मेळेज तेने संवरे छे||१ शतके प्रज्ञप्तिः [उ०] हे गौतम ! हा, पोतानी मेळेज पूर्व प्रमाणे करे छे [म०] हे भगवन् ! जे ते पोतानी मेळेज उदीरे छे, गहें छे अने संवरे छे | उद्देशः३ ॥४९॥ ते उदीर्णने उदीरे छे? अनुदीर्णने उदीरे छे ? अनुदीर्ण तथा उदीरणाने योग्यने उदीरे छे ? के उदयानंतर पश्चात्कृत कर्म उदीरे X ॥४९॥ दछे? [उ०] हे गौतम ! उदीर्णने उदीरतो नथी तथा उदयानंतर पश्चात्कृत कर्मने उदीरतो नथी पण अनुदीर्ण अने उदीरणाने योग्य कर्मने उदीरे छे. [प्र०] हे भगवन् ! जे ते अनुदीर्ण तथा उदीरणाने योग्य कर्मने उदीरे छे ते शुं उत्थानथी, कर्मथी बलथी, वीर्यथी। ४ा अने पुरुषाकार पराक्रमी उदीरें के ? के अनुत्थानथी, अकर्मथी, अबलथी, अवीयथी अने अपुरुषाकार पराक्रमथी उदीरे छे ? [उ०] | हे गौतम ! ते अनुदीर्ग अने उदीरणाने योग्य कर्मने उत्थानथी, कर्मथी, बलथी, अवीर्यथी अने अपुरुषाकार पराक्रमथी उदीरतो नथी अने ज्यारे तेम छे त्यारे उत्थान छे, कर्म, बल, वीर्य अने पुरुषाकारपराक्रम पण छे. [40] हे भगवन् ! ते पोतानी मेळेज उपशमावे, गहें अने संकरे ? [उ.] हे गौतम ! हा, अहीं पण तेमज कहे. विशष एके, अनुदीर्णने उपशमावे, बाकी त्रणे विकल्पो| नो निषेध करवो. [प्र०] हे भगवन् ! जे ते अनुदीर्णने उपशमावे ते शु उत्थानथी, यावत्-पुरुषाकारपराक्रमथी? के अनुत्थानथी, यावत्-अपुरुषाकारपराक्रमथी ? [उ०] हे गौतम ! पूर्व प्रमाणेज जाणवू. [म०] हे भगवन् ! ते पोतानी मेळेज वेदे अने गर्हे ? हे गौतम ! अहीं पण वधी पूर्वोक्त परिपाटी जाणवी. विशेष एके, उदीर्णने वेदे छे पण अनुदीर्णने वेदतो नथी, तथा ए प्रमाणे यावत्पुरुषाकार पराक्रमथी वेदे ॥३६॥ RAAAAAI For Private and Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥ ५० ॥ 106 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेरइया णं भंते! खामोहणिज्जं कम्मं वेति १, जहा ओहिया जीवा तहा नेरइया, जाव धणियकुमारा ॥ पुढविकाइया णं भंते ! कंवामोहणिलं कम्मं बेइंति?, हंता बेइंति, कहण्णं भते ! पुढविका० कखामोहणिज कम्मं वेदेति ?, गोयमा ! तेसि णं जीवाणं णो एवं तकाइ वा सपणाइ वा पण्णाइ वा मळेइ वा वइति वा अम्हे णं कखामोहणिज्जं कम्मं वेएमो, वेति पुणं ते । से पूणं भंते ! तमेव सच्चं नीसकं जं जिणेहिं पवेइयं १, सेसं तं चेव, जाव पुरिसकारपरिकमेइ वा एवं जाव चउरिंदियाणं, पंचिदियतिरिक्खजोणिया जाव बेमाणिया जहा ओहिया जीवा [सू० ३७] [प्र० ] हे भगवन् ! नैरयिको कांक्षामोहनीय कर्मने वेदे छे ? [अ०] हे गौतम! जेम औधिक सामान्य-जीवो का तेम नैरविको पण जाणवा अने ए प्रमाणे यावत् स्तनितकुमारो सुधी जाण. [प्र० ] हे भगवन् ! पृथिवीकायिको कांक्षामोहनीय कर्मने वेदे छे ? [उ०] हे गोतम ! हा वेदे छे. [प्र० ] हे भगवन् ! ते पृथ्विीकाधिकजीवो कांक्षामोहनीय कर्मने केवी रीते वेदे छे ? [उ० ] है। गौतम ! 'अमे कांक्षामोहनीय कर्म वेदीए छीए' ए प्रमाणे ते जीवोने- पृथ्विीकायिकोने तर्क, संज्ञा, मज्ञा, मन के वचन नथी, पण तेओ तेने वेदे छे. [प्र० ] हे भगवन्! ते निःशंक अने सत्य छे के जे जिनोए प्रवेयुं छे ? [अ०] हे गौतम! बाकीनुं पूर्व प्रमाणेज जाणयुं. हा, जिनोए जे जणान्युं छे- ते निःशंक अने सत्य छे यावत् पुरुषकार, पराक्रम वडे निर्जरे छे. ए प्रमाणे यावत्-चार इंद्रियबाळा जीवो सुधी जाणवुं. जेम सामान्य जीवो का तेम पंचेंद्रियतिर्थचयोनिको अने यावत्-वैमानिक कहेवा. ॥ ३७ ॥ अस्थि णं भंते! समणावि निग्गंधा कंखामोहणिजं कम्मं वेति ?, हंता अस्थि कहनं भंते! समणा निरगं For Private and Personal Use Only ९ शतके उद्देशः ३ ॥ ५० ॥ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १ शतके उद्देशः ३ ॥५१॥ | था कंखामोहणिलं कम्मं वेएइ , गोयमा तेहिं तेहिं नाणंतरहिं दसणंतरेहिं चरिसंतरोह लिंगंतरोहिं पवयणंव्याख्या-दातरेहि पावयणंतरेहिं कप्पतरेहि मग्गंतरेहिं मतंतरेहिं भंगतरहिं जयंतरहिं नियमतरेहिं पमाणतरेहि संकिया प्रज्ञप्तिः कखिया वितिगिरिछया भेयसमावन्ना कलुससमावन्ना, एवं ग्बल समणा निग्गंथा कंखामोहणिज कम्म बेइंति, से नूर्ण भंते! तमेव सच्चं नीसकंजं जिणेहिं पवेइयं , हंता गोयमा तमेव सचं नीसंक, जाब पुरिसकारपरकमेइ सावा, सेवं भंते सेवं भंते !॥ [सू० ३८] पढमसए ततिओ ॥ १-३॥ [प्र.] हे भगवन् ! श्रमण निग्रंथो पण कांक्षामोहनीय कर्मने वेदे छे ! [उ०] हे गौतम! हा वेदे छे. [५०] हे भगवन् ! श्रमण निग्रंथो कांक्षामोहनीय कर्मने केवीरीते वेदे छे ? [उ०] हे गौतम ! ते ते ज्ञानांतर, दर्शनांतर, चारित्रांतर, लिगंतर, प्रवचनांतर, प्रावचनिकांतर, कल्पांतर, मार्गांतर, मतांतर, भंगांतर, नयांतर, नियमांतर अने प्रमाणांतरवडे शंकाबाळा, कांक्षावाला, विचिकित्साचाळा, भेदसमापन अने कलुषसमापन्न थइने, ए प्रमाणे ते श्रमण निग्रंथो पण कांक्षामोहनीय कर्मने बेदे . [10] हे | भगवन् ! तेज सत्य अने निःशंक छे, जे जिनोए जणाव्यु छ ? [३०] हे गौतम ! हा, तेज सत्य अने निःशंक छ जे जिनोए | कहेलं , यावत्-पुरुषाकारपराक्रमथी निर्जरे छे. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे. एम कही यावन्| विचरे के. ॥३८॥ भगवत् सुधर्मस्वामीए रवेला एवा श्रीमद् भगवनीसूत्रना प्रथम शतकमां त्रीजा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. RESSISTARSA % For Private and Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥ ५२ ॥ 66 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उद्देशक ४. कति णं भंते! कम्मप्पगडीओ पण्णत्ताओ ?, गोयमा ! अट्ठ कम्मप्पगडीओ पण्णत्ताओ, कम्म पगडीए पढमो उद्देसो नेयवो जाव मणुभागो सम्मत्तो । गाहा कइ पयडी कह बंधइ कइहि य ठाणेहि बंधई पयडी । कइ वेदेइ य पयडी अणुभागो कइविहो कस्स ? || १८ || (सू० ३९) [प्र० ] हे भगवन् ! कर्मकृतिओ केटली कही छे ! [अ०] हे गौतम कर्मप्रकृतिओ आठ कही छे, अहीं 'प्रज्ञापना' ना कर्मप्रकृति नामना श्रेवीशमा पदनो प्रथम उद्देशक जाणवो यावत् - अनुभाग समाप्तगाथार्थ:- केटली कर्मप्रकृति ! केवी रीते बांधे छे! केवलां स्थानोवडे प्रकृतिओने बांधे छे! केटली प्रकृतिओ वेदे छे ! अने कोनो केटला प्रकारनो रस छे ! ॥ ३९ ॥ जीवे णं भंते! मोहणिजेणं कडेणं कम्मेणं उदिनेणं उवहाएजा १, हंता उबट्टाएजा से भंते । किं विरिय त्ताए उबद्वापज्जा अवीरियत्ताए उबट्ठाएजा ?, गोयमा ! बीरियत्ताए उबट्ठाएजा, नो अवीरियत्ताए उवद्वापूजा, जड़ वीरियत्ताए उबढाएज्या किं बालवीरियत्ताए उबढाएजा पंडियबीरियन्त्ताए उबडाएजा बालपंडियबीरियत्ताए उबट्टाएला ?, गोयमा ! बालवीरियत्ताए उबट्टाएजा को पंडियबीरियत्ताए उबट्ठाएज्जा, णो बालपंडियबीरियत्ताप उबट्टाएजा । जीवे णं भंते! मोहणिजेणं कडेणं कम्मेणं उदिनेणं अवकमेजा ?, हंता अवकमेजा । से भंते! जाव बालपंडियबीरियत्ताए अवकमेजा ३१, गोयमा ! बालवीरियत्ताए अवक मेज्जा, नो पंडियवीरित्ताए अव For Private and Personal Use Only १ शतके उद्देशः ४ ॥ ५२ ॥ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥ ५३ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कमेज्जा, सिय बालपंडियवीरियताए अवकमेजा । जहा उदिनेणं दो आलावगा तहा उवसंतेणबि वो आलावगा भाणियव्या, नवरं उबट्ठाएजा पंडियवीरित्ताए अवकमेज्जा बालपंडियवीरित्ताए । से भंते । किं आयाए अवकमइ अणायाए अवकमइ ?, गोपमा ! आयाए अवकमर, णो अणायाए अवकमर, मोहणिजं कम्मं वेरमाणे से कहमेयं भंते! एवं १, गोयमा ! पुदि से एवं एवं रोगह, इयाणि से एवं एवं णो रोयइ एवं खलु, एवं ( सू० ४० ) [प्र०] हे भगवन्! कृतमोहनीय कर्म ज्यारे उदयमां आवेलं होय त्यारे जीव उपस्थान करे- परलोकमां प्रकृति प्रयाण करे [[अ०] हे गौतम! हा त्यारे उपस्थान करे. [प्र० ] हे भगवन् ! ते उपस्थान शुं वीर्यताथी थाय ! के अवीर्यताथी थाय ! [उ०] हे गौतम! ते उपस्थान वीर्यताथी थाय, पण अवीर्यताथी न थाय. [प्र० ] हे भगवन्! जो ते उपस्थान वीर्यताथी थाय तो शुं बालवीर्यताथी थाय, पंडितचीर्यताथी थाय के बालपंडितवीर्यतायी थाय ? [30] हे गौतम! ते उपस्थान बालवीर्यताथी थाय, पण पंडितवीर्यताथी के वालपंडितवीर्यताथी न थाय. [प्र० ] हे भगवन् ! कृतमोहनीयकर्म ज्यारे उदयमां आवेलं होय त्यारे जीव अपक्रमण करे उत्तम गुणस्थानकथी हीनतर गुणस्थानके जाय ? [उ०] हे गौतम! हा अपक्रमण करे. [प्र०] हे भगवन् ! ते अपक्रमण यावत् बालवीर्यताथी पंडितवीर्यताथी के बालपंडितवीर्यताथी थाय ? [अ०] हे गौतम! बालवीर्यताथी थाय, अने कदाचित् बालपंडितवीर्यताथी पण थाय, पण पंडितवीर्यताथी न धाय. जेम 'उदयमां आवेल' पद साधे वे आलापक कथा तेम 'उपशांत' साधे पण वे आलापक कहेना विशेष ए के त्यां पंडितवीर्यताथी उपस्थान थाय अने बालपंडितवीर्यताथी अपक्रमण थाय. [ प्र० ] हे भगवन् ! ते For Private and Personal Use Only १ शतके उद्देश: ४ ॥ ५३ ॥ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १ शतके व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥५४॥ उद्देशः४ %ARKARI ॥५४॥ अपक्रमण शु आत्मावडे थाय, के अनात्मावडे थाय? [उ०] हे गौतम! ते अपक्रमण आत्मा वडे थाय पण अनात्मा बड़े न थाय. [[प्र०] हे भगवन् ! मोहनीय कर्मने वेदतो ते ए ए प्रमाणे केम होय ! [उ०] हे गौतम! पहेला तेने ए ए प्रमाणे रुचे छ. अने| | हमणा तेने ए ए प्रमाणे रुचतुं नथी, माटे ते ए ए प्रमाणे छे. ॥ ४०॥ से नूर्ण भंते! नेरइयस्स वा तिरिक्खजोणियस्स वा मणूसस्स वा देवस्स वा जे कडे पावे कम्मे नत्थि | है। तस्स अवेइयत्ता मोक्खो?, हंता गोयमा ! नेरइयस्स वा तिरिक्व०मणु देवस्स वा जे कढे पावे कम्मे नत्थि तस्स अवेइत्ता मोक्खो । से केणट्ठणे भंते ! एवं बुच्चति नेरइयस्स वा जाव मोक्यो, एवं खलु मए गोयमा दुविहे कम्मे पण्णत्ते, तंजहा-पएसकम्मे य अणुभागकम्मे य, तत्थ णं जंतं पएसकम्मं तं नियमा वेण्इ, तत्थ णं जंतं अणुभागकम्मं तं अत्थेगइयं वेएइ, अत्थेगइयं नो वेएइ । णायमेयं अरहया, सुयमेयं अरहया, विनायमेयं अरहया, इम्म कम्मं अयं जीवे अज्झोवगमियाए वेयणाए वेदिस्सइ, इमं कम्मं अयं जीवे उवक्कमियाए वेदणाए | वेदिस्सइ, अहाकम्मं अहानिकरणं, जहा जहा तं भगवया दिटुं तहा तहा तं विप्परिणमिस्सतीति, से | तेणटेणं गोयमा ! नेरइयस्स वा ४ जाव मोक्खो ॥ (सू०४१) [प्र०] हे भगवन् ! जे पाप कर्म करेलुं छे तेने वेद्या विना नैरयिकनो, तियंचयोनिकनो, मनुष्यनो के देवनो मोक्ष नथी? उ०] हे गौतम ! हा, करेल पापकर्मने अनुभव्या विना नैरयिकनो, तिर्यंचयोनिकनो, मनुष्यनो के देवनो मोक्ष नथी. [प्र०] हे तू भगवन् ! तमे ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो के, (नैरयिकनो यावत् मोक्ष नथी) [उ०] हे गौतम! ए प्रमाणे निश्चित छ के, में For Private and Personal use only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * * व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥५५॥ * | कर्मना चे प्रकार कह्या छे. ते आ प्रमाणे'-प्रदेशकर्मने अनुभागकर्म. तेमा जे प्रदेशकर्म छे ते चोकस वेदवू पडे छे अने जे अनुभा| गकम ते छे ते केटलंक वेदाय के अने केटलंक वेदातुं नथी. ए अर्हतद्वारा ज्ञात, स्मृत अने विज्ञात छे के, आ जीव आ कमने ११ शतके आभ्युपगमिक वेदना बडे वेदशे. आ जीव आ कर्मने औपक्रमिक वेदना बडे वेदशे. यथाकर्म-बांधेल कर्मने अनुसारे, निकरणोने उद्देशः४ | अनुसारे जेम जेम भगवंते ते जोयुं छे तेम तेम ते विपरिणाम पामशे. माटे हे गौतम! ते हेतुथी एम कई छे के, यावत्-करेल | ४ ॥५५॥ सा कमाने अनुभल्या विना नैरयिकनो, तिर्यचयोनिकनो, मनुष्यनो के देवनो मोक्ष नथी. ॥४१॥ Pा एस णं भंते! पोग्गले तीतमणंतं सासयं ममयं भुवीति बत्तवं सिया?, हंता गोयमा ! एस णं पोग्गले अतीतमणतं सासयं समय भुवीति बतव्वं सिया। एस णं भंते! पोग्गले पडप्पन्नं सासयं समयं भवतीति |वत्तवं सिया?, हंता गोयमा! तं चेव उच्चारेयवं, एस णं भंते ! पोग्गले अणागयमणतं सासयं समय भविस्मतीति बत्तव्य सिया?, हन्ता गोयमा! तं चेव उच्चारेयन्वं । एवं खंधेणवि तिन्नि आलावगा, एवं जीवेणवि तिन्नि आलावगा भाणियव्वा ।। (सू०४२)॥ छतमत्थे णं भंते! मगृसे अतीतमणतं सासयं समयं भुवीति न केवलेणं संजमेणं केवलेणं संवरे० केवलेणं बंभचेरवासेणं केवलाहिं पवयणमाईहिं सिझिसु बुझिसु जाव सम्वदुक्खाणमंतं करिसु?, गोयमा! नो इणहे समढे, से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइत चेव जाव अंतं करेंसु ? गोयमा ! जे केइ अंतकरा या अंतिमसरीरिया वा सव्वदुम्वाणमंतं करेंसु वा करेंति वा करिस्मति वा सव्वे ते उप्पन्ननाणदसणधरा अरहा जिणे केवली भवित्ता तओ पच्छा सिझंति बुझंति मुञ्चति परिनिब्वायंति सब्व * 4%AAAAEX * For Private and Personal use only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ** १ शतके उद्देशः४ *** ४ दुक्खाणमतं करेंसु वा करेंति वा करिस्संति वा, से तेणटेणं गोयमा! जाव सम्वदुक्खाणमंतं करेंसु०, पडुप्पव्याख्या तन्नेवि एवं चेव, नवरं सिज्झतित्ति भाणियब्वं, अणागवि एवं चेव, नवरं सिस्सिंतित्ति भाणियन्वं, जहा छडम प्रज्ञप्तिः त्थो तहा आहोहिओऽवि, तहा परमाहोहिओवि, तिन्नि तिन्नि आलावगा भाणियब्बा । केवली गंभंते! मणूसे तीतमणंतं सासयं समयं जाव अंतं करेंसु?, हंता सिन्झिसु जाव अंतं करेंसु, एते तिन्नि आलावगा भाणियव्वा छउमत्थस्स जहा नवरं सिझिसु सिज्झति सिज्झिस्मति । से गूणं भंते ! तीतमणतं सासयं समयं पडप्पन वा सासयं समय अणागयमणतं वा सासयं समयं जे केइ अंतकरा वा अंतिमसरीरिया वा सव्वदुक्खाणमंतं करेंसु चा करेंति वा करिस्सति वा सव्वे ते उप्पन्ननाणदसणधरा अरहा जिणे केकली भक्त्तिा तओ पच्छा सिझंति जाब अंत करेस्संति वा ?, हंता गोयमा तीतमणतं सासयं समयं जाव अंतं करेस्संति वा। सेनूर्ण भंते! उप्पनाणदंसणधरे अरहा जिणे केवली अलमत्थुत्ति वत्तब्वं सिया?, हंता गोयमा! उप्पन्ननाणदसणधरे अरहा जिणे केवली अलमत्थुत्ति वत्सव्वं सिया । संवे भंते ! सेवं भंते ! ति ॥ चउत्थो उद्देसो समत्तो॥१-४॥ (सू० ४३) ॥ [प्र०] हे भगवन् ! 'ए पुद्गल वीतेला अनंत अने शाश्वात काळे हतुं' एम कही शकाय! [उ०] हे गौतम! हा, ए पुद्गल वीतेला अनंत अने शाश्वत काळे इतुं एम कही शकाय. [प्र०] हे भगवन् ! ए पुद्गल वर्तमान शाश्वतकाळे छे, एम कहेवाय ! [उ०] हे गौतम ! हा, एम कहेवाय. (पूर्वोक्त प्रश्न प्रमाणेज कहेवू) [प्र०] हे भगवन् ! ए पुदुल अनंत अने शाश्वत भविष्यकाळे थशे-4 दि रहेशे-एम कही शकाय? [उ०] हे गौतम ! हा, एम कहेवाय. ए प्रमाणे स्कंध साथे पण त्रण आलापक कहेवा. तथा जीव साथे ४ +Acc *%A For Private and Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ।। ५७ ।। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उद्देशः ४ ॥ ५७ ॥ पण त्रण आलापक कहेवा. ||४२॥ [ प्र० ] हे भगवन् ! बीतेला अनंत शाश्वत काळमां छग्रस्थ मनुष्य केवल संयमथी, केवल संवरथी ब्रह्मचर्यावासथी अने केवल प्रवचनमाताथी सिद्ध भयो, बुद्ध थयो, अने यावत्- सर्व दुःखनो नाश करनार थयो ! [30] हे गोतम ! १९ शतके ए अर्थ समर्थ नथी [ प्र० ] हे भगवन्! ते ए प्रमाणे शा हेतु कहो छो के, पूर्वोक्तवस्थ मनुष्य यावत् - अंतकर थयो नथी !' [ उ० ] हे गौतम! जे कोइ अंत करे वा अंतिम शरीरवाळाए सर्व दुःखोना नाशने कर्यो, तेओ करे छे के करशे ते बघा उत्पन्नज्ञानदर्शनधर, अरिहंत, जिन अने केवली थइने त्यारपछी सिद्ध, बुद्ध, अने मुक्त थाय छे, परिनिर्वाण पाम्या छे तथा तेओए सर्वदुःखोनो नाश कर्यो छे [तेओ] करे छे अने करशे. माटे हे गौतम! ते हेतुथी एम कधुं छे के यावत्-सर्व दुःखोनो अंत कर्यो, वर्तमानकाळमां पण ए प्रमाणेज जाणं. विशेष ए के, सिद्ध थाय छे, एम कहेतुं तथा भविष्यकाळमां तेवीज रीते जाण. विशेष ए के - 'सिद्ध थशे' एम कहेवं. जेम छद्यस्थ को तेम अधोवधिक पण जाणवो, अने तेना त्रण त्रण आलापक कहेवा. [प्र० ] हे भगवन् ! वीतेला | अनंत सःश्वत काळमां केवली मनुष्ये यावत् सर्वदुःखोनो नाश कर्यो ! [उ०] हे गौतम! हा, ते सिद्ध थया, तेणे सर्व दुःखोनो नाश कर्यो. अहीं पण छद्मस्थानी पेठे त्रण आलापक कहेवा. विशेष ए के, सिद्ध थया, सिद्ध थाय छे, अने सिद्ध थशे; एम कहे. [[प्र०] हे भगवन् ! वीतेला अनंत शाश्वतकाळने विषे, वर्तमान शाश्वत समयमा अने अनंत शाश्वत भविष्यकाळमां जे कोह अंतक रोए, अंतिम शरीरवाळाओए सर्व दुःखोनो नाश कर्यो, करे छे, अने करशेः ते बधा उत्पन्नज्ञानदर्शनधर, अरिहंत, जिन अने केवली यह त्यारपछी सिद्ध थाय छे, यावत् सर्व दुःखोनो नाश करशे ? [अ०] हे गौतम! हा, वीतेला अनंत शाश्वत काळने विषे यावत् - सर्व दुःखोनो नाश करशे. [१०] हे भगवन्! ते उत्पन्नज्ञानदर्शनधर, अरिहंत जिन अने केवली अलमस्तु - पूर्ण कहेवाय ! [उ०] हे For Private and Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः Wicke% १ गौतम ! हा, ते उत्पत्रज्ञामदर्शनघर, अरिहंत, जिन अने केवली पूर्ण कहेवाय अर्थात् पूर्णज्ञानी कहेवाय. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे के एम कही यावत्-विहरे छे. ॥ ४३ ॥ १ शतके भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद्भगवतीमत्रना प्रथम शतकमा चोथा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. | उद्देशः ५ 11५८॥ उद्देशकः ५ कतिणंभंते पुढवीओ पन्नत्ताओ?, गोयमा! सत्त पुढवीओ पन्नत्ताओ, संजहा-रयणप्पभा जाव तमतमा ॥ इमीसे गं भंते ! रयणप्रभाग पुढवीए कति निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता?, गोयमा! तीसं निरयावाससयसह-18 स्सा पन्नत्ता, गाहा-तीसाय पन्नवीसा पन्नरस दसेव या सयसहस्सा। तिन्नेगं पंचूर्ण पंचेव अणुत्तरा निरया॥१॥ केवइया णं भंते! असुरकुमारावाससयसहस्सा पन्नत्ता?, एवं-चउसट्ठी असुराणं चउरासीई प होइ नागाणं। पावत्तरि सुवन्नाण वाउकुमाराण छन्नउई ॥१०॥ दीवदिसाउदहीणं विज्जुकुमारिदणियमग्गीगं । छहंपि जुयलयाणं छावत्तरिमो सयसहस्सा ॥११॥ केवइया णं भंते! पुढविष्काइयावाससयसहस्सा पण्णता?, गोयमा! असंखेजा पुढविक्काइयावाससयसहस्सा पण्णत्ता, गोयमा! जाव असंखिजा जोतिसियविमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता । सोहम्मे णं भंते ! कप्पे केवइया विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता', गोयमा! बत्तीसं विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता, एवं-बत्तीसट्टाबीसा बारस अट्टचउरो सयसहस्सा । पन्ना चत्तालीसा उच्च सहस्सा सह For Private and Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रक्षतिः ॥ ५९ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सारे ||१२|| आणयपाणयकप्पे चत्तारि संयाऽऽरणच्छुए तिन्नि । सन्त विमाणसयाई उसुबि एएस कप्पे ॥ १३ ॥ एकारसुत्तरं हेट्टिमे सनुत्तरं सयं च मज्झिमए । सयमेगं उवरिमए पंचेच अणुत्तरविमाणा ॥ १४ ॥ (सू० ४४) [प्र० ] हे मगवन् केटली पृथिवीओ कही छे ! [उ०] हे गौतम! सात पृथिवीओ कही छे, ते आ प्रमाणे:-रत्नप्रभा यावत्तमतमाप्रभा. [प्र० ] हे भगवन् ! आ रत्नप्रभा पृथिवीमां केटला लाख निरयाबासो - नारकीनां रहेठाणो कहेला छे ! [उ०] हे गौतम! त्यां श्रीसलाख निरयावासो कथा छे. तेने लगती गाथा कहे छे:- १ मां त्रीशलाख २ मां पचीशलाख ३ मां पंदरलाख ४ मां दसलाख ५ मां त्रण लाख ६मां नवाणुं हजार, नवसोने पंचाणुं, अने ७मां पांचज अनुत्तर निरयावास छे. [प्र०] हे भगवन्! असुरकुमारोना केटला लाख आवासो का छे ? [अ०] हे गौतम! ते आवासो आ प्रमाणे कथा - असुरकुमारोना चोसठलाख, नागकुमारना चोरासीलाख, सुवर्णकुमारना ७२ लाख तथा दीपकुमार, दिककुमार, उदधिकुमार, विद्युतकुमारेंद्र, स्तनितकुमार, अने अग्निकुमार, ए छ ए युगलकोना छोतेरलाख आवासो कह्या छे. [प्र०] हे भगवन् ! पृथिवीकायिकोना केटला लाख आवासो कथा छे ! [उ०] हे गौतम! पृथिवीकायिकोना असंख्येय लाख आवासो का छे. अने ए प्रमाणे यावत् ज्योतिषिकोना असंख्येय लाख विमानावासो जाणवा. [प्र० ] हे भगवन् ! सौधर्मकल्पमां केटला विमानावासो कह्या छे ! [उ०] हे गौतम ! त्यां बत्रीशलाख विमानावासो कह्या छे-गाथार्थ:- अनुक्रमे ३२ लाख, २८ लाख, १२ लाख ८ लाख, ४ लाख ५० हजार, ४० हजार विमानवामो जाणवा. अने छ हजार विमानवासो सहस्रार देवलोकमां है, अनंत अने प्राणातकल्पमां चारसो, आरण अने अच्युतमां श्रणसो अर्थात ए वार कल्पोमां मळी सातसो विमानावासो छे एकसोने अगीयार विमानावासो नीचला अधस्तन मां, एकसोने सात वचला-मध्यमां For Private and Personal Use Only २ शतके उद्देशः ५ ॥ ५९ ॥ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥६ ॥ KARAK+%% १ शतके उद्देशः ५ ॥६ ॥ तथा एकसो उपरना-उपरिमक-मां छे. अने अनुत्तर विमानो तो पांचज छे. ॥४४॥ पुढवि द्विति ओगाहण सरीर संघयणमेव संठाणे । लेस्सा दिट्ठी णाणे जोगुवओगे य दस ठाणा ।। १५ ॥ इमीसे भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगसि निरयावासंसि नेरइयाणं केवइया ठितिठाणा पण्णत्ता, गोयमा! असंखेजा ठितिठाणा पण्णत्ता, तंजहा-जहन्निया ठिती समयाहिया जहनिया ठिई दुसमयाहिया जाच असंखजसमयाहिया जहनिया ठिई तप्पाउग्गुक्कोसिया ठिती ।। इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावाससि जहन्नियाए ठितीए वट्ट3 माणा नेरइया कि कोहोवउत्ता माणोवउत्ता मायोवउत्ता लोभोवउत्ता?, गोयमा! सब्वेवि ताव होजा कोहो वउत्ता १, अहवा कोहोवउत्ता य माणोवउत्ते य २, अहवा कोहोवउत्ता य माणोवउत्ता य ३, अहया कोहोवउत्ता य मायोवउत्ते य ४, अहवा कोहोवउत्ता यमायोवउत्ता य ५, अहवा कोहोवउत्ता य लोभोवउत्ते य ६, अहवा कोहोवउत्ता य लोभोवउत्ता य ७॥ अहवा कोहोवउत्ता य माणोवउत्ते य मायोवउत्ते य १, कोहोवउत्ता य माणोवउत्ते य मायोवउत्ता य २, कोहोवउत्ता य माणोवउत्ता य मायोवउत्ते य ३, कोहोवउत्ता य माणोवउत्ता य मायाउवउत्ता य ४, एवं कोहमाणलोभेणवि चउ ४, एवं कोहमायालोमेणवि चउ ४, एवं १२, पच्छा माणेण मायाए लोभेण य कोहो भइयव्यो, ते कोहं अमुंचता ८, एवं सत्तावीसं भंगा णेयवा ॥ इमीसे गं: भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावाससि समयाहियाए जहन्नवि-15 64*4%EX+8+ AR For Private and Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १ शतके CAHRAI- उद्देशः ५ ॥११॥ तीए बहमाणा नेरइया किंकोहोवउत्ता माणोवउत्ता मायोवउत्ता लोभोवउत्ता, गोयमा कोहोवउत्ते य माणोव्याख्या- वउत्ते य मायोवउत्ते य लोभोवउत्ते य, कोहोवउत्ता य माणोवउत्ता यमायोवउत्ता य लोभोवउत्ता य, प्रशसिः अहवा कोहोवउत्ते य माणोवउत्ते य, अहवा कोहोवउत्ते य माणोवउत्ता य, एवं असीति भंगा नेयव्वा, एवं जाव संखिजसमयाहिया ठिई असंखेजसमयाहियाए ठिईए तप्पाउग्गुकोसियाए ठिईए सत्तावीसं भंगा भाणि| यब्बा ॥ (सू०४५) । संग्रहगाथार्थः-पृथिवी विगेरे जीवावासोमां स्थिति, अवगाहना शरीर, संहनन, संस्थान, लेश्या, दृष्टि, ज्ञान, योग अने उपयोग, ए दश स्थान संबंधे विचारघानुं छे. [प्र.] हे भगवत् ! ए रत्नप्रभा पृथिवीना बीशलाख निरयावासोमांना एक एक निरयावासमा रहेनारा नैरयिकोना केटलां स्थितिस्थानो कयां छे अर्थात् एक एक निरयावासमा रहेनारा नैरयिकोनी केटली केटली उमर कही छे ? [उ०] हे गौतम ! तेओनां असंख्य स्थितिस्थानो कयां छे ते आ प्रमाणे:-ओछामा ओछी उपर दशहजार वर्षनी छे ते 8| एक समयाधिक वे समयाधिक ए प्रमाणे यावत्-जघन्य स्थिति असंख्येय समयाधिक तथा तेने उचित उत्कृष्ट स्थिति पण ए प्रमाणे दछे. [प्र०] हे भगवन् ! ए रत्नप्रभा पृथिवीनी त्रीश लाख निरयावासोमांना एक एक निरयावासामा ओडामा ओछी उमरमां वस नारा नैरयिको शुं क्रोधोपयुक्त छ ? मानोपयुक्त छे ? मायोपयुक्त छे ? के लोभोपयुक्त छे? [उ०] हे गोतम ! ते बधाय पण क्रोधोपयुक्त होय छे. अथवा घणा कोधोपयुक्त अने एकाद मानोपयुक्त, अथवा घणा क्रोधोपयुक्त अने मानोपयुक्त, अथवा घणा क्रोधोपयुक्त अने मानोपयुक्त, अथवा घणा क्रोधोषयुक्त अने एकाद मायोपयुक्त, अथवा घणा क्रोधोपयुक्त अने मायोपयुक्त, अथवा घणा क्रोधोपयुक्त -% For Private and Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १ शतके उद्देशः५ %+ + अने एकाद लोमोपयुक्त, अथवा घणा क्रोधोपयुक्त अने लोभोपयुक्त, अथवा घणा क्रोधोपयुक्त अने एकाद मानोपयुक्त तथा मायोव्याख्या-1 पयुक्त, यभवा घणा क्रोधोपयुक्त तथा एकाद मानोपयुक्त अने घणा मायोपयुक्त, अथवा घणा क्रोधोपयुक्त, मानोपयुक्त अने एकाद प्रज्ञप्तिः मायोपयुक्त, अथवा घणा क्रोधोपयुक्त, मानोपयुक्त तथा मायोपयुक्त, ए प्रमाणे क्रोध, मान अने लोभ साथे बीजा पण चार भांगा ॥६२॥ करवा. तथा एज प्रमाणे क्रोध, माया अने लोम साथे पण चार भांगा करवा. पछी मान, माया अने लोभनी साये क्रोधवडे भांगा करवा. तथा ते बघा काधने मूक्या शिवायना ए प्रमाणे सत्तावीश भांगा जाणवा. [३०] हे भगवन्! ए रत्नप्रभा पृथिवीना त्रीस लाख निरयावासोमांना एक एक निरयावासोमां एक समयाधिक जघन्य उमरमां वर्तता नैरयिको शुं क्रोधोपयुक्त ? मानोपयुक्त छ ? मायोपयुक्त के ? के लोभोपयुक्त छ ? [उ०] हे गौतम ! तेओमा एकाद क्रोधोपयुक्त, मानोपयुक्त, मायोपयुक्त, अने लोभोपयुक्त होय छे. अथवा घणा क्रोधोपयुक्त, मानोपयुक्त मायोपयुक्त, अने लोभोपयुक्त होय छे. अथवा कोई एक क्रोधोपयुक्त अने मानोपयुक्त, अथवा कोइ एक क्रोधोपयुक्त अने घणा मानोपयुक्त, होय छे, इत्यादि ए प्रमाणे एसी भांगा जाणवा. अने ए प्रमाणे यावत्| संख्येय समयाधिक स्थितिवाला नैरयिको माटे पण जाणवू. असंख्येय समयाधिक स्थितिने उचित उत्कृष्ट स्थितिमा सचावीस मांगा कडेवा. [प्र०] हे भगवन् ! आ रत्नप्रभा पृथिवीमा त्रीशलाख निरयावासोमांना एक एक निरयावासमा बसता नैरयिकोना अवगाहनास्थानो केटलां कह्या छ ? [उ०] हे गौतम ! तेओना अवगाहनास्थानो असंख्येय कयां छे. ते आ प्रमाणे:-ओछामा ओछी अंगुलना असंख्येय भाग जेटली अवगाहना ते एक प्रदेशाधिक, वे प्रदेशाधिक, ए प्रमाणे यावत्-असंख्येयप्रदेशाधिक जाणवी. दितथा जघन्य अवगाहना अने सेने उचित उत्कृष्ट अवगाहना पण जाणवी. [प्र०] हे भगवन् ! आ रत्नप्रभा पथिवीमा त्रीश लाख + +% % For Private and Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या गत ॥३३॥ गंगा कहेवा. [Ho] भावना नेता तथा तदुचित उत्कृष्ट अवगाहनाए अनगाहनाए वर्तता नैरयिको माटे पण । अ. | निरयावासोमांना एक एक निरयावासोमांना एक एक नैरयावासमा जघन्य अवगाहनाए वर्तता नैरयिको शुं क्रोधोपयुक्त छे ? [उ.] हे गौतम । अहीं मांगा जाणवा. अने ए प्रमाणे यावत-संख्येय प्रदेशाधिक जघन्य अवगाहनाए वर्तता नैरपिको माटे पणार शतक जाणवू, असंख्येय प्रदेशाधिक जघन्य अवगाहनाए वर्तता तथा तदुचित उत्कृष्ट अवगाहनाए वर्तता नरैयिकोना अर्थात् ए वन्नेना पण सत्तावीश भांगा कहेवा. [प्र०] हे भगवन् ! आ रत्नप्रभा पृथिवीमा त्रीश लाख निरयावासोमांना एक एक निरयावासामां वसता अने क्रियशरीरवाना नैरयिको शुं क्रोधोपयुक्त है? [उ०] हे गौतम ! अहीं सत्तावीश भांगा कहेवा. अने ए गमवडे बाकीना के शरीर अर्थात् बा मळीने त्रण शरीर संबंधे पूर्वोक्त प्रमाणे जाणवू. [प्र०] हे भगवन् ! आ रत्नप्रभा पृथिवीमा यावत्वसता नरयिकोना शरीरोन कयु संघयण-संहनन कयुं छे ! [उ०] हे गौतम ! तेओर्नु शरीर संघयण विनानु छ अर्थात् छ संघयणमाथी तेओने एके संघयण नथी. वळी तेओना शरीरमा हाडका, नसो अने स्वायु नथी. तथा जे पुद्गलो अनीष्ट, अकांत अप्रिय, | अशुभ, अमनोज्ञ अने अमनोम छे ते पुद्गलो एओना [नरयिकोना शरीरसंघातपणे परिणमे हे. [प्र०] हे भगवन् ! आ रत्नप्रभा पृथिवीमा यावत्-बसता अने छ संघयणमाथी एकपण संधयण बिनाना नैरयिको शुं क्रोधोपयुक्त छे ! [उ०] हे गौतम ! अहीं सचावीश भांगा जाणवा. [प्र०] हे भगवन् ! आ रत्नप्रभा पृथिवीमां यावत्-वसता नैरयिकोना शरीरो कया संस्थानवाला कयां के ? [उ०] हे गौतम! ते नैरयिकोना शरीरो वे प्रकारना कह्यां छे. ते आ प्रमाणे:-भवधारणीय-ज्यांसुधी जीवे त्यांसुधी रहेनारांअने उत्तरक्रिय. तेमां जे शरीरो भवधारणीय छे ते ढुंकसंस्थानवालां कयां छे, अने जे शरीरो उत्तरवैक्रियरूप छे ते पण ९कसंस्थानवाळां कयां छे. [५०] हे भगवन् ! आ रत्नप्रना पृथिवीमां यावत्-हुँडसंस्थाने वर्तता नैरयिको शुं क्रोधोपयुक्त छ ? [उ.11 AAI For Private and Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥६४ ॥ १ शतके उद्देशः५ हे गौतम ! अहीं सत्तावीश भांगा कहेवा. [प्र०] हे भगवन् ! आ रत्नप्रभा पृथिवीमा वसता नैरपिकोने केटली लेश्या कही छ ? उ.] हे गौतम! तेओने एक कापोतलेण्या कही छे. [प्र०] हे भगवन् ! आ रत्नप्रभा पृथिवीमा बसता कापोतलेश्यावाळा नैरयिको शुं क्रोधोपयुक्त छ ? [उ०] हे गौतम अहीं सत्तावीश भांगा कहेवा. ॥४५॥ | इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगसि निरयावासंसि नेरइयाणं केवइया ओगाहणाठाणा पन्नत्ता, गोयमा! असंखेजा ओगाहणाठाणा पन्नत्ता, तंजहा-जहनिया ओगाहणा, | पदेसाहिया जहानिया ओगाहणा, दुप्पएसाहिया जहनिया ओगाहणा, जाव असंखिज्जपएसाहिया जहनिया ओगाहणा, तप्पाउरगुकोसिया ओगाहणा ॥ इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढषीय तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगसि निरयावासंसि जहनियाए ओगाहणाए बमाणा नेरइया कि कोहोवउत्ता!, असीइभंगा |भाणियवा जाव संखिजपएसाहिया जहनिया ओगाहणा, असंखेजपएसाहियाए जहन्नियाए ओगाहणाए बहमाणाणं तप्पाउग्गुकोसियाए ओगाहणाए वट्टमाणाणं नेरइयाणं दोसुवि सत्तावीसं भंगा । इमीसे णं भंते ! रयण. जाव एगमेगंसि निरयावासंसि नेरइयाणं कइ सरीरया पण्णत्ता, गोयमा ! तिन्नि सरीरया पण्णत्ता, तंजहा-वेउब्धिए तेयए कम्मए । इमीसे गं भंते ! जाव वेउब्वियसरीरे बद्दमाणा नेरइया कि कोहोवउत्ता? सत्तावीसं भंगा भाणियव्वा, एएणं गमएणं तिन्नि सरीरा भाणियब्बा ॥ इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढविए ६ जाव नेरइयाणं सरीरया किंसंघयणी पन्नत्ता?, गोयमा छण्हं संघयणाणं अस्संघयणी, नेवट्टी नेव छिरा नेवण्हा For Private and Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥६५॥ | रूणि, जे पोग्गला अणिहा अकंता अपिया असुहा अमणुना अमणामा, एतेसिं सरसंघाय ताप परिणमंति॥ इमीसे णं मते ! जाव छहं संघयणाणं अमंघयणे वद्यमाणाणं नेरइया किं कोहोवउत्ता. सत्तावीमं भंगा ॥ २१ शतके इमीसे णं भंते ! रयणप्पभा जाब सरीरिया संठिया पन्नता, गोयमा! दुविहा पन्नता, तंजहा-भवधार उदेशः५ णिज्जा य उत्तरविउन्बिया य, तत्थ पंजे ते भवधारणिजाते हुंडसंठिया पण्णसा, तस्थ णजे ते उत्तरवेउखिया तेवि इंडसंठिया पण्णता। इमीसे पंजाब इंडसंठाणे वद्यमाणा नेरहयाकिं कोहोवउत्सा?, मसावीसंभंगा॥ इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीर नेरहमाणं कति लेस्साओ पन्नत्ताओ?, गोग्मा ! एमा काउलेस्ता पण्णत्ता । इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाग जाव कालेस्सा ए वहमाणा सत्तावीसं भंगा॥ (सू०४६) इमीसे णं जाव किं सम्मट्टिी मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्टी!, तिन्निवि । इमीसे णं जाव सम्मईसणे | बद्दमाणा नेरइया सत्तावीस भंगा, एवं मिच्छादमणेवि, सम्मामिच्छादसणे असीती भंगा ॥ इमीसे णं भंते ! जाव किं नाणी अन्नाणी, गोयमा! णाणीवि अन्नाणीवि, तिन्नि नाणाई नियमा, तिन्नि अन्नाणाई भयणाए । इमीसे णं भंते ! जाव आभिणिबोहियनाणे वद्यमाणा सत्तावीसं भंगा, एवं तिन्नि नाणाई तिनि अन्नाणाई भाणियब्बाइ ।। इमीसे गं जाव किं मणजोगी वइजोगी कायजोगी?, तिन्निवि । इमीसे णं जाब मणजोए वद्यमाणा कोहोवउत्ता, सत्तावीसं भंगा । एवं वइजोए, एवं कायजोए । इमीले णं जाव नेरइया किं सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता, गोयमा! सागारोवउत्तावि अणागारोष उत्तावि। इमीसे णं जाव सागारोवओगे For Private and Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥६६॥ १ शतके उद्देशः ५ ॥६६॥ बहमाणा किं कोहोवउत्ता, सत्तावीसं भंगा। एवं अणागारोवउत्तावि सत्तावीसं भंगा॥ एवं सत्तवि पुढविओ नेयवाओ, णाणत्तं लेसासु, गाहा-काऊ य वो तइयाइ मीसिया नीलिया चउत्थीए । पंचमियाए मीसा| कण्हा तत्तो परमकण्हा ॥ १६ ।। (सू०४७) I [प्र०] हे भगवन् ! आ रत्नप्रभा पृथ्वीमा वसता नैरयिको शुं सम्यग्दृष्टि छ ? मिथ्यादृष्टि छ ? के सम्यग्मिध्यादृष्टि छ ? [३०] हे गौतम ! तेओ त्रणे प्रकारना छे ? [प्र०] हे भगवन् ! आ रत्नप्रभा पृथिवीमा बसता अने सम्यग्दर्शनमां वर्तता रयिको शु क्रोधोपयुक्त छे ! [३०] हे गौतम - अहीं सत्तावीश भांगा कहेवा. अने ए प्रमाणे मिथ्यादर्शन तथा सम्यग् मिथ्यादर्शनमा ४ा ऐसी भांगा कहेवा. [प्र.] हे भगवन् ! आ रत्नप्रभा पथिवीमां वसता जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छ ? [उ.] हे गौतम ! तेओ ज्ञानी पण छे अने अज्ञानी पण के. जेओ ज्ञानी छे तेओने त्रण ज्ञान नियमपूर्वक होय छे अने जेओ अज्ञानी छे तेओने त्रण अज्ञान भजनापूर्वक होय छे. [प्र.] हे भगवन् ! आ रत्नप्रभा पृथिवीमा रहेता अने आभिनियोधिक ज्ञानमा वर्तता नैरयिको शुं क्रोधोप युक्त छे ? [उ०] हे गौतम ! अहीं सत्तावीश भांगा जाणवा. अने ए प्रमाणे त्रण ज्ञान तथा त्रण अज्ञान कहेवां-जाणवां [प्र०] हे। 4 भगवन् ! आ रत्नप्रभा पृथिवीमा रहेनारा नैरयिको शुं मनोयोगी छे ! वचनयोगी छ ? के काययोगी छ ? [उ०] हे गौतम ! नओ। प्रत्येक त्रण प्रकारना छ [म०] हे भगवन्! आ रत्नप्रभा पृथिवीमा रहेनारा अने यावत्-मनोयोगमा वर्तता जीवो शुं क्रोधोपयुक्त छे ? [उ०] हे गौतम ! अहीं २७ मांगा जाणवा. अने ए प्रमाणे वचनयोगमा तथा काययोगमा कहे. [प्र०] हे भगवन् ! आ रत्नप्रभा पृथिवीमा रहेनारा नैरयिको शुं साकारोपयुक्त के अनाकारोपयुक्त छे ! [३०] हे गौतम ! तेओ साकारोपयुक्त पण छे अने अना *445444%94%E For Private and Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org A-% व्याख्याप्रज्ञप्तिः 2कारोपयुक्त पण छे. [40] हे भगवन् ! आ रत्नप्रभामा रहेनारा अने साकारोपयोगमा वर्तता नैरयिको शुं क्रोधोपयुक्त छे ? [-]] | हे गौतम : अहीं सत्तावीश भांगा कहेवा. अने ए प्रमाणे अनाकारोपयोगमां पण जाणवं. तथा ए प्रमाणे साते पृथिवीमां पण शतके जाणवी. मात्र विशेषता लेश्याओमा हे, ते आ प्रमाणे वे, गाथा-पहेली अने बीजी पृथिवीमां कापोतलेश्या छ, त्रीजीमा मिश्र उद्देशः ५ लेश्या-कापोत अने नील लेश्या छ, चोथामां नीललेल्या छे, पांचमीमां मिश्र-नील अने कृष्ण लेश्या छे. छठीमां कृष्ण लेश्या के ६।६७॥ अने सातमीमां परमकृष्ण लेझ्या छे. ॥ १७ ॥ चउसट्ठीप णं भंते ! असुरकुमारावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि असुरकुमारावासंसि असुरकृमाराणं केवइया ठिइठाणा पण्णत्ता?, गोयमा! असंखेज़ा ठितिठाणा पण्णत्ता, जहन्निया ठिई जहा नेरइया तहा, नवरं 5 | पडिलोभा भंगा भाणियब्वा-सव्वेवि ताव होज लोभोवउत्ता, अहवा लोभोवउत्ता य मायोवउत्ते य, अहवा लोभोवउत्ताय मायोवउत्ता य, गएणं गमे नेयव्वं जाब थणियकुमाराणं, नवरं णाणत्तं जाणियवं॥(सू०४८) [प्र.] हे भगवन् ! चोसठलाख असुरकुमारावासोमांना एक एक असुरकुमारावासमां बसता असुरकुमारोना स्थितिस्थानो केटलां कया! [उ०] हे गौतम! तोना स्थितिस्थानो असंख्येय कह्या हे.ते आ प्रमाणे:-ओछाम। ओछी स्थिति, ते एक समयाधिक, बे समयाधिक, इत्यादि नरयिकोनी पेठे जागवान के, विशेष ए के, भांगा प्रतिलोभ-उलटा कहेबाना के. अर्थात् असुरकुमारोना भांगामा लोभ प्रथम कहेबानो छे. ते आ प्रमाणे-ते वधाय पण असुरकुमारो लोभोपयुक्त होय, अथवा घणा लोभोपयुक्त अने एकाद मायोपयुक्त पण होय, इत्यादि ए गमबडे जाणवू. अने ए प्रमाणे यावत्-स्तनितकुमारो सुधी जाणवं. विशेष ए के, तेओनं | A4- For Private and Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञासिः ॥ ६८॥ | उद्देशः ५ ॥६ ॥ * * करनRAI- नानात्व भिन्नत्व जाणवू. ॥ १८ ॥ ___ असंखेजेसु णं भंते ! पुढविकाइयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि पुढवीकाइयावासंसि पुढविकाइयाणं केवतिया ठितिठाणा पएणत्ता!, गोयमा ! असंखेना ठितिठाणा पण्णत्ता, तंजहा-जहनिया ठिई जाव तप्पाउरगुकोसिया ठिई । असंखेजेसु णं भंते ! पुढाविकाइयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि पुढाविकाइयावासंसि जहनिया ठितीए बद्दमाणा पुढविकाइया कि कोहोवउत्ता माणोवउत्ता मायोवउत्ता लोभोवउत्ता?, गोयमा ! कोहोरउ|त्तावि माणोवउत्तावि मायोवउत्ताधि लोभोवउत्तावि, एवं पुदविक्काइयाणं सम्वेसुवि ठाणेसु अभंगय, नवरं | तेउलेस्साए असीति भंगा, एवं आउक्काइयावि, तेउकाइयवाउकाइयाणं सब्वेसुवि ठाणेसु अभंगयं ॥ वणस्सइकाइया जहा पुदविकाइया ॥ (सू०४९) [प्र०] हे भगवन् ! पृथिवीकायिकना असंख्येय लाख आवासोमांना एक एक आवासमा बसता पृथिवीकायिकोना स्थितिस्थानो केटलां कह्यां छ? [उ.] हे गौतम ! तेओना स्थितिस्थानो असंख्येय कयां से. ते आ प्रमाणे:-तेओनी ओछामा ओछी स्थिति, ते एक समयाधिक, बे समयाधिक, इत्यादि यावत् तेने उचित उत्कृष्ट स्थिति जाणवी. [प्र.] हे भगवन् ! पृथिवीकायिकना | असंख्येय लाख आवासोमांना एक एक आवासमां वसता अने जघन्य स्थितिवाला पृथिवीकायिको शुं क्रोधोपयुक्त छ ? मानोपजीपयुक्त छ ! मायोपयुक्त छ ? के लोभोपयुक्त छे ? [उ०] हे गौतम ! तेओ क्रोधोयुक्त पण छे, मानोपयुक्त पण छ, मायोपयुक्त पण के अने लोभोपयुक्त पण छ. ए प्रमाणे पृथिवीकायिकोने वधाय पण स्थानोमा अभंगक छे. विशेष एके-तेजोलेश्यामां अंशी अशी प्रि०] हे भगवन् ! पति * तेओना स्थितिस्थान स्थिति जाणवी. प्र. RESS For Private and Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ।। ६९ ।। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भांगा कहेवा. ए प्रमाणे - अप्काय जलकाय पण जाणवो तथा तेजस्काय अने वायुकायने पण सर्वस्थानोमा अभंग छे. वळी वनस्पतिकायिको पण पृथिवीकायिकनी पेठे जाणवा. ॥ ४९ ॥ बेइंदियतेइंदियचउंरिंदियाणं जेहि ठाणेहिं नेरतियाणं असीइभंगा तेहि ठाणेहिं असीहं चेत्र, नवरं अभा हिया मम्मत्ते आभिणिबोहिनागे सुयनाणे य, एपहिं असीइभंगा, जेहिं ठाणेहिं नेरतियाणं सतावीस भंगा तेसु ठाणेसु सच्वे अभंगयं । पंचिदियतिरिक्खजोगिया जहा नेरइया तहा भाणियव्वा, नवरं जेहिं सत्तावीसं भंगा तेहिं अभंगयं कायन्वं, जत्थ असीति तत्थ असीतिं चैव ॥ मणुस्साणवि जेहिं ठाणेहिं नेरइयाणं असीतिभंगा तेहि ठाणेहिं मणुस्साणवि, असीतिभंगा भाणियन्वा, जेसु ठाणेसु सत्तावीसा तेषु अभंगयं, नवरं मणुस्साणं अन्भहियं जहन्निया ठिई आहारए य असीति भंगा ॥ वाणमंतरजोइसवेमाणिया जहा भवणवासी, नवरं णाणत्तं जाणियन्त्रं जं जस्स, जाव अणुत्तरा, सेवं भंते! सेवं भंते ! ति ॥ ( सू० ५० ) पंचमो उद्देसो | सम्मत्तो ॥ ५ ॥ जे स्थानवडे नैरयिकोने ऐसी भांगा छे ते स्थानोवडे बेइंद्रिय, त्रींद्रिय अने चडरिंद्रिय जीवोने पण एंसी भांगा छे, विशेष एके, नीचे लखला त्रण स्थानमां पण ते जीवोने एंशी भांगा थाय छे, ते त्रण स्थानोः सम्यकत्व, अभिनियोधिकज्ञान अने श्रुतज्ञान अर्थात्। आ त्रण स्थानोमा पण बेद्रियादि जीवोने ऐसी भांगा लाभे छे अने एटलं नैरयिको करतां बधारे छे. तथा जे स्थानोवडे नैरयिकोने सत्तावीस भांगा छे ते बधाय पण स्थानोमां अहीं अभंगक छे. जेम नैरयिको कथा तेम पंचेंद्रियतिर्यंचयोनिको पण For Private and Personal Use Only १ शतके उद्देशः ६ ॥ ६९ ॥ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥७ ॥ जाणवा. विशेष ए के-जे स्थानोबडे नरयिकोमा सचावीश भांगा कह्या छे, ते स्थानोवडे अहीं अभंगक कहे. अने ज्यां नरयिकोमां अशी भांगा कह्या छे त्यां अहीं पण एंसी भांगाज कहेवा. नैरयिकोमा जे स्थानोबडे एंसी भांगा कह्या छे ते स्थानोवडे | उद्देशः६ है मनुष्योमा पण एंसी भांगा कहेवा. अने ए नैरयिकोमा जे स्थानोवडे सत्ताबी भांगा कया छे ते स्थानोवडे मनुष्योमा अभंगक, कहे. विशेष ए के, मनुष्योने जघन्य स्थितिमा अने आहारक शरीरमां एंशी भांगा . अने ए नैरयिको करतां मनुष्योमा अधिक के.जेम भवनवासी देवो कहा तेम वानव्यतर, ज्योतिषिक अने वैमानिको जाणवा. विशेष ए के, जेर्नु जुदापणु छे ते जाणवू, अने ए प्रमाणे अनुत्तर सुधी जाणवू. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, ते ए प्रमाणे हे, एम कही यावत् विहरे छे. ॥ ५० ॥ भगवत् सुधर्मखामीप्रणीत श्रीमद्भगवतीमत्रना प्रथम शतकमां पांचमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. उद्देशक ६ जावइयाओ यणं भंते ! उवासंतराओ उदयंते सूरिए चक्खुप्फास हब्बमागच्छति अत्थमंतेविय णं सूरिण तावतियाओ चेव उवासंतराओ चक्कुप्फासं हव्वमागच्छति ?, हंता! गोयमा! जावइयाओ णं उवासंतराओ उदयंते सरिए चक्खुप्फास हब्वमागच्छति अत्थमंतेवि सूरिण जाव हवमागच्छति । जावइयंणं भंते ! खित्तं उदयंते सूरिए आतावेणं सवओ समंता ओभासेइ उज्जोएइ तवेइ पभासेइ, अस्थमंतेविय णं सूरिण तावइयं चेव खित्तं आयावेणं सचओ समंता ओभासेइ उजोएइ तवेइ पभासेइ ?, हंता गोयमा ! जावतियण्णं खेत्तं | For Private and Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥ ७१ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाव पभासेइ ॥ तं भंते! किं पुढं ओभासेड़ अपुढं ओभासेइ ?, जाव छद्दिसिं ओभासेति, एवं उज्जोबेइ तवे पभासेइ जाव नियमा छद्दिसिं ॥ से नूणं भंते! सव्वंति सव्वावंति फुसमाणकालसमयंसि जावतियं खेत्तं फुसइ तावतियं फुसमाणे पुढेत्ति बत्तव्वं सिया ?, हंता ! गोयमा ! सव्वंति जाब वक्तव्वं सिया ॥ तं भंते! किं पुई फुसइ अपुढं फसइ ? जाव नियमा छहिसिं ॥ ( सू० ५१ ) [H] हे भगवन्! अवकाशांतरथी- आकाशना व्यवधानथी (जेटले दूरथी ) उगतो सूर्य शीघ्र नजरे जोवाय छे तेटलाज दूरथी आश्रमतो सूर्य पण शीघ्र नजरे जोवाय के ? [उ०] हे गौतम! हा जेटले दूरथी जगतो सूर्य नजरे जोवाय छे तेटलाज दूरथी आथमतो सूर्य पण शीघ्र नजरे जोवाय . [प्र० ] हे भगवन् ! उगतो सूर्य पोताना तापद्वारा जेटला क्षेत्रने सर्व प्रकारे चारे बाजुथी बधी दिशाओमां अने बधा खुणामां प्रकाशित करे छे, उद्योतित करे छे, तपावे छे, अने खूब उष्ण करे छे, तेटलाज क्षेत्रने बधी दिशाओमां अने वधा खूणामांआथमतो सूर्य पण पोताना ताप द्वारा प्रकाशित करे छे ? उद्योतित करे छे ? तपावे के ? अने उष्ण करे छे! [उ०] हे गौतम! हा, उगतो सूर्य जेटला क्षेत्रने प्रकाशे छे तेटलाज क्षेत्रने आयमतो सूर्यपण यावत् उष्ण करे छे. [प्र० ] हे भगवन् ! सूर्य जे क्षेत्रने प्रकाशे छे? ते क्षेत्रथी सूर्यथी स्पर्शायेलुं छे ? के, अस्पर्शालुं छे ? [अ०] हे गौतम! ते क्षेत्र सूर्यथी स्पर्शायेलुं छे अने यावत् ते क्षेत्रने छए दिशामां प्रकाशित करे छे, उद्योतित करे छे, तपावे छे तथा अत्यंत तपावे छे छए दिशामां खूब तपावे छे ] [ प्र० ] हे भगवन् ! स्पर्श करवाना काळसमये सर्वाप-सूर्यना साथै संबंधवाळा जेटला क्षेत्रने सर्व दिशाओम सूर्य स्पर्शे छे, तेटलं ते स्पर्शातुं क्षेत्र 'स्पर्शायेलं' एम कद्देवाय ? [अ०] हे गौतम! हा सर्व यावत्-एम कहेवाय. [ प्र० ] हे भग For Private and Personal Use Only १ शतक उद्देश: ६ ॥ ७१ ॥ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या १ शतके उरेशः६ ॥७२॥ 4 ॥७२॥ वन् ! स्पर्शायेल क्षेत्रने स्पर्श छे ? के स्पर्शाया विनाना क्षेत्रने पर्सेज छ ? [उ०] हे गौतम ! स्पर्शाएल क्षेत्रने स्पर्श छे, यायत् | चोकस ए छए दिशामा स्पर्श छे. ॥५१॥ लोयंते भंते ! अलोयंत फुसइ, अलोयतेवि लोयतं फुसह, हंता गोयमा! लोगते अलोयतं फुसह, अलोयंतेवि लोयंत फुसइ ३॥ तं भंते ! किं पुढे फुमइ अपुढे फुसइ ? जाव नियमा छरिसिं फुसइ । दीर्वते भंते! सागरंतं फुसइ सागरतेवि दीवंतं फुसइ ?, हंता जाव नियमा छद्दिसि फुमइ, एवं एएणं अभिलावेणं उदयंते पोयतं फुसइ, छिईते दृसंतं छायंते आयवंत जाब नियमा दिसि फुसइ ॥ (सू० ५२)॥ [प्र०] हे भगवन् ! लोकनो अंत अलोकना अंतने स्पर्श, अलोकनो पण अंत लोकना छेडाने स्पर्श ? [२०] हा, गौतम ! लोकनो छेडो अलोकना छेडाने स्पशे अने अलोकनो पण अंत लोकना छेडाने स्पर्श. [म.] हे भगवन् ! जे स्पर्शाय छे ते || | स्पृष्ट छ ? के अस्पष्ट छ ? [उ०] हे गौतम ! नियमपूर्वक छए दिशामा स्पर्शाय छे [प्र०] हे भगवन् ! बेटनो छेडो समुद्रना छेडाने | स्पशे ? समुद्रनो छेडो पण वेटना छेडाने स्पर्श ? [२०] हा, यावत्-नियम छ ए दिशामां स्पर्श. [अ०] ए प्रमाणे अभिलापवडे - पाणीनो छेडो बहाणना छेदाने स्पशे, छिदनो छेडो वस्त्रना छेडाने स्पर्श ? अने छायानो छेडो तडकाना छेडाने स्पर्शे ? [उ०] हे गौतम ! यावत्-नियमे छए दिशामा स्पर्श. ।। ५२॥ अत्थि णं भंते ! जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया कजइ, हंता अत्थि, सा भंते! किं पुट्ठा कजा अपुट्ठा ४ कजइ ?, जाव निवाघाएणं छदिसि वाघायं पडुच्च सिय तिदिसिं सिय चउदिसिं सिय पंचदिसिं । सा भंते ! For Private and Personal use only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ।।७३ ॥ किं कडा कबइ अकडा कजह ?, गोयमा! कडा कजइ, नो अकडा कज्जइ । सा भंते ! किं अत्तकडा कज्जइ पर |१ शतके कडा कजइ तदुभयकडा कजह?, गोयमा! अत्तकडा कजइ, णो परकडा कजए, णो तदुभयकडा कजइ । सा उद्देशः६ भंते ! किं आणुपुम्बि कडा कज्जइ अणाणुपुब्धि कडा कजइ , गोयमा ! आणुपुब्धि कडा कजइ, नो अणाणुपुब्धि | कडा कज्जइ, जा य कडा जा य कजइ जा य कजिस्सइ सव्या सा आणुपुचि कडा, नो अणाणुपुधि कडत्ति ॥७३॥ वत्तव्वं सिया । अस्थि णं भंते ! नेरइयाणं पाणाइवायकिरिया कज्जइ, हंता अस्थि । सा भंते ! किं पुट्ठा कमाइ अपुट्ठा कज्जइ जाव नियमा छरिसिं कजइ, सा भंते ! किं कडा कजह अकडा कजा, तं चेव जाव नो अणाणुपुन्धि कडत्ति वत्तव्वं सिया, जहा नेरइया तहा पगिदियवना भाणियव्या, जाव वेमाणिया, एगिदिया जहा जीचा तहा भाणियब्वा, जहा पाणाइवाए तहा मुसावाए तहा अदिनादाणे मेहणे परिग्गहे कोहे जाब मिच्छा| सणसल्ले, एवं एए अट्ठारस, चउवीस दंडगा भाणियब्वा, सेवं भंते ! सेवं भंते !त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं जाब विहरति ॥ (सू०५३)॥ | [प्र०] हे भगवन् ! जीवो द्वारा प्राणातिपात क्रिया कराय छे ? [उ०] हा, कराय छे. [प्र०] हे भगवन् ! जे क्रिया कराय: छे ते अ॒स्पृष्ट छ ? के अस्पष्ट छ ? [उ०] हे गौतम ! यावत्-नियघातबडे ए दिशाने, व्याधातने आश्रीने कदाच त्रण दिशाने, कदाच चार दिशाने अने कदाच पांच दिशाने स्पर्श के. [प्र०] हे भगवन् ! जे क्रिया कराय छे! ते शुं कृत छे ? के अकृत ? [30] हे गौतम ! ते क्रियाकृत छे. पण अत नथी. [प्र०] हे भगवन् ! जे क्रिया कराय छे ते \ आत्मकत छ ? परकृत छे ! For Private and Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie १ शतके व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥७४॥ उदेशः६ के उभयकृत के ? [उ०] हे गौतम ! ते क्रिया आत्मकृत छे. पण परकृत के तदुभयकृत नथी. [प्र०] हे भगवन् ! जे क्रिया कराय | हे ? ते अनुक्रमपूर्वक कृत के ? के अनुक्रम शिवायकृत के ? [उ०] हे गौतम! ते अनुक्रमपूर्वक कृत हे. पण अनुक्रम शिवाय कृत नथी, बळी जे कृत क्रिया कराय के ? अने कराशे ते बधी अनुक्रमपूर्वक त हे. पण अनुक्रम सिवाय कृत नथी एम कडेवाय. [प्र०] हे भगवन् ! नैरयिकोद्वारा प्राणातिपात क्रिया कराय हे? [उ०] हे गौतम ! हा, कराय छे. [प्र०) हे भगवन् ! जे क्रिया 3॥७४ ।। कराय छे ते शुं स्पृष्ट छ ? के अस्पृष्ट छ ? [उ.] हे गौतम ! यावत्-नियमे छए दिशामा कराय छे [प्र०] हे भगवन् ! जे क्रिया | कराय छे? ते कृत छे ? के अकृत के ? [उ.] हे गौतम ते पूर्व प्रमाणे जाणवू. यावत्-ते अनुक्रम शिवाय कृत छ एम न करे वाय. नैरयिकोनी पेठे एकेंद्रिय सिवायना यावत्-वैमानिकमधीना बधा जीवो कहेवाप. अने जीवोनी पेठे एकेंद्रियो कहेवा. प्राणातिपातनी क्रिया पेठे मृषावाद, अदत्तादान, मथुन, परिग्रह, क्रोध अने यावत्-मिथ्यादर्शनशल्य सुधी जाणवं. अने ए प्रमाणे ए अढार पापस्थान विषे चोवीश दंडक कडेवा. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, ते ए प्रमाणे छे, एम कही भगवंत महावीरने नमीने यावत् विहरे छे. ।। ५३ ।। तेणं कालेणं तेणं समएणं सम्णस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी रोहे नामं अणगारे पगइभइए पगइमउए पगइविणीए पगइउवसंते पगइपयणुकोहमाणमायालोभे मिउमदवसंपन्ने अल्लीणे भए विणीए समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उडूंजाणू अहोसिरे झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरह, तए णं से रोहे नामं अणगारे जायसड्डे जाव पज्जुवासमाणे एवं वदासी-पुचि भंते ! लोए पच्छा-|| For Private and Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥७५॥ ॐॐॐ अलोए ? पुन्धि अलोए पच्छा लोए ?, रोहा! लोए य अलोए य पुन्धिपेते पच्छापेते दोवि एए सासया भावा, अणाणुपुच्ची एसा रोहा !। पुब्धि भंते ! जीवा पच्छा अजीवा पुटिव अजीचा पच्छा जीवा ?, जहेब लोए य १ शतके अलोए य तहेब जीवा य अजीवा य, एवं भवसिद्धीया य अभवसिद्धीया य, सिद्धी असिद्धी, सिद्धा असिद्धा, | उद्देशः ६ पुचि भेत ! अंडए पछा छुडी पुन्धि कुत्र कुडी पच्छा अंडए, रोहा ! से गं अंडए कओ?, भयवं ! कुक्कु ।७५ ।। डीओ, साणं कुक्कुडी कओ?, भंते ! अंडयाओ, एवामेव रोहा ! से य अंडए सा य कुक्कुडी, पुषिपेते पच्छा-18 पेते, दुवेते सासया भाषा, अणाणुपुब्बी एमा रोहा!। पुन्धि भंते ! लोयंते पच्छा अलोयंते पुव्वं अलोयंते पच्छा लोयते !, रोहा ! लोयंते य अलोयंते य जाव अणाणुपुच्ची एसा रोहा। पुन्धि भंते ! लोयंते पच्छा सत्तमे | उवासंतरे पुच्छा, रोहा : लोयंते य सत्तमे उवासंतरे पुविपि दोवि एते जाव अणाणुपुम्वी एमा रोहा। एवं लोयंते य सत्तमे य तणुवाए, एवं घणवाए घणोदहि सत्तमा पुढवी, एवं लोयंते एकेकेणं संजोएयब्वे इमेहि ठाणेहि, तंजहा-ओवासवायघणउदहि पुढवी दीवा य सागरा वासा। नेरइयाई अस्थिय समया कम्माई लेस्सा ओ। १॥ दिट्ठी सण णाणा सन्न सरीरा य जोग उवओगे। दवपपसा पज्जव अद्धा किं पुस्वि लोयते ॥२॥ | पुम्वि भंते ! लोयंते पच्छा सन्चद्धा ? जहा लोयंतेणं संजोइया सच्चे ठाणा एते एवं अलोयंतेणवि संजोएयवा | सव्ये । पुधि भंते ! सत्तमे उवासंतरे पच्छा सत्तमे तणुबाए ?, एवं सत्तम उवासंतरं सम्वेहि सम संजोएयवं जाव सम्बद्घाए । पुवि भंते ! सत्तमे तणुवाए पच्छा सत्तमे घणवाए, एयपि तहेव नेयम्वं जाव सम्बद्धा, एवं For Private and Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लाशतके PRAKA उरेशः ६ ना।।७६ ॥ उवरिल्लं एकेक संजोयतेणं जो जो हिद्विल्लो तं तं छईतेणं नेयध्वं जाव अतीयअणागयद्धा पच्छा सव्वद्धा जाव व्याख्या अणाणुपुथ्वी एसा रोहा ! सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति । जाव विहरह॥ (म०५४) भंतेत्ति भगवं गोपमे समर्ण प्रज्ञप्ति जाव एवं क्यासी-कतिविहा गं भंते ! लोयहिती पण्णत्ता, गोयमा! अहविहा लोयट्टिती पण्णत्ता, तंजहाआगासपइट्टिए बाए १ वायपइट्टिए उदही २ उदहीपइडिया पुढवी३ पुढविपइडिया तसा थावरा पाणा ४ अजीवा जीवपइहिया ५जीवा कम्मपइडिया ६ अजीवा जीवसंगहिया ७ जीवा कम्मसंगहिया ८1से केणद्वेणं भंते ! एवं बुचह?-अढविहा जाव जीवा कम्मसंगहिया ?, गोयमा ! से जहानामए केइ पुरिसे वस्थिमाडोवेइ, वत्थिमाडोवित्ता उपि सितं बंधइ २ मज्झेणं गठिं बंधइ २ उवरिलं गठिं मुयइ २ उवरिल्लं देसं वामेइ २ उवरिल्लं देसं वामेत्ता उवरिल्लं देसं आउयायस्स पूरेइ २ उप्पि सिंत बंधइ २ मज्झिल्लं गांठे मुयइ । से नूर्ण गोयमा ! से आउयाए तस्स वाउयायस्स उपि उवरितले चिट्ठा, हंता चिट्ठह, से तेणद्वेणं जाव जीवा कम्म. संगहिया, से जहा वा केइ परिसे वत्थिमाडोवेइ २ कडीए बंधइ २ अस्थाहमतारमपोरसियंसि उदगंसि ओगा हेजा, से नूर्ण गोयमा ! से पुरिसे तस्म आउयायस्स उवरिमतले चिट्ठइ ?, हंता चिट्ठा, एवं वा अट्ठविहा MIलोयदुिई पण्णता जाव जीवा कम्मसंगहिया॥ (सू०५५)॥ ते काले, ते समये श्रमण भगवंत महावीरना शिप्य रोह नामना अनगार हता, जेओ स्वभावे भद्र, कोमल, विनयी, शांत, ४ाओछा क्रोध, मान, माया अने लोभवाळा, अत्यंत निरभिमानी, गुरुने आशरे रहेनारा, कोइने संताप न करे तेवा अने गुरुभक्त .+9 - For Private and Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir NI हता. ते रोह नामना अनगार पोते उभटक रहेला, नीचे नमेल मुखवाला, ध्यानरूप कोठामा पेठेला तथा संयम अने तापबडे व्याख्या १ शतके | आत्माने भावता श्रमण भगवंत महावीरनी आजुबाजु विहरे के. पछी ते रोह नामना अनगार जातश्रद्ध यह यावत्- पधुपासनाx प्रज्ञप्तिः करता आ प्रमाणे बोल्या:- [प्र०] हे भगवन् ! पहेलो लोक छे अने पछी अलोक छे? के पहेलो अलोक के ? अने पछी लोक छे? उदेशः६ ॥७ ॥ [[उ०] हे रोह ! लोक अने अलोक, ए पहेलो पण के अने पछी पण छे. ए बने पण शाश्वता भाव . हे रोह ! ए बेमा 'अमुक ॥ ७७ ॥ पहेलो अने अमक पछी' एवो क्रम नथी. [प्र०] हे भगवन् ! जीवो पहेला छे? अने अजीबो पछी के ? के पहेला अजीबो छे अने छी जीवो के ! [उ०] हे रोह ! जेम लोक अने अलोक विषे कयूं तेम जीवो अने अजीबो संबंधे पण जाणवू. ए प्रमाणे भवसिद्धिको, अने अभवसिद्धिको, सिद्धि अने असिद्धि संसार तथा सिद्ध अने संसारिओ पण जाणवा. [प्र०] हे भगवन् ! पहेला इंदु छे अने पछी कुकडी छे ? के पहेला कुकडी अने पछी इंदु छ ? 'हे रोड ! ते इं९ क्याथी थयु ? 'हे भगवन् ! ते इंडं कुकडीथी ययु' हे रोह! ते कुकडी क्याथी थह? हे भगवन् ! से कुकडी इंडाथी थइ.' [उ०] एज प्रमाणे हे रोह ! ते इंडं अने कुकडी ए पहेलो पण छे अने पछी पण ठे-ए शाश्वत भाव के, पण हे रोह ! ते बेमा कोइ जातनो क्रम नथी. [प्र०] हे भगवन् ! पहेलां लोकांत छ ? अने पछी अलोकांत के ? के पहेला अलोकांत छे ? अने पछी लोकांत छे ? [उ०] हे रोह ! लोकांत अने अलोकांत पए बनेमां यावत्-हे रोह कोइ जातनो क्रम नथी. [प्र०] हे भगवन् ! पहेला लोकांत छे अने पछी सातमु अवकाशातर छे! | इत्यादि पूछवू. [उ०] हे रोह ! लोकांत अने सातमु अवकाशांतर, ए बने पहेला पण छ. ए प्रमाणे यावत्-हे रोह ! ए बेमां कोई जातनो क्रम नथी. ए प्रमाणे लोकांत, सातमो तनुवात, ए प्रमाणे घनवात, घनोदधि अने सातमी पृथिवी. ए प्रमाणे एकएकनी For Private and Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥ ७८ ॥ ने उद्देशः ६ का॥७८ ।। माथे लोकांत आ नीचे लखेला स्थानो साथे जोडवो. अवकाशांतर, वात, घनोदधी, पृथिवी, द्वीप, सागर, वर्ष-क्षेत्र, नेरयिकादिक |जीव, अस्तिकाय, समय, कर्म, लेश्या, दृष्टि, दर्शन, ज्ञान, संज्ञा, शरीर, योग, उपयोग, द्रव्यप्रदेशो, अने पर्ययो तथा शुं काळ |पहेला छे अने लोकांत (पछी छे) [प्र०] हे भगवन् ! पहेला लोकांत छे अने पछी सर्वाद्वा छे? [उ०] हे रोह ! जेम लोकांत साथै |ए या स्थानो जोडयां, तेम आ संबंधे पण जाणवू, अने र प्रमाणे ए वां स्थानो अलोकांत साथे पण जोडवा. [प्र०) हे भगवन् ! पहेलो सातमु अवकाशांतर के अने पछी सातमो तनुवात छे ? [उ०] हे रोह ! ए प्रमाणे सातमु अवकाशांतर बधा साथे जोड. अने ए प्रमाणे यावत्-सर्वाद्धा सुधी जाणवू. [प्र०] हे भगवन् ! पहेलो सातमो तनुवात छे अने पछी सातमो धनबात है! [३०] हे रोह! ए पण ते प्रमाणे जाणवू. यावत्-सर्वाद्धा. ए प्रमाणे उपरना एक एकने संयोजतां अने जे हेठलो होय | तेने छोडतां पूर्व प्रमाणे जाणवं, यावत-अतीत अने अनागतकाळ अने पछी सर्वाद्धा, यावत्- हे रोह! एमां कोई जातनो क्रम नथी. हे भगवत् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे के एम कही यावत्-विहरे छे. [प्र०) हे भगवन् एम कहीने भगवंत गौतमे श्रमण भगवंत महावीर मे यावत्-आ प्रमाणे कर्बु-हे भगवन् ! लोकनी स्थिति केटला प्रकारनी कही छ ? | [[३०] हे गौतम! लोकनी स्थिति आठ प्रकारनी कही है. ते आ प्रमाणे:-वायु आकाशना आधारे रहेलो हे. उदधि वाधुना | आधारे रहेलो डे. जमीन उदधिना आधारे रहेला छे. त्रस जीवो अने स्थावर जीवो पृथिवीना आधारे रहेला छे. अजीवो जीवना| आधारे रहेला छे. जीवो कर्मना आधारे रहेला छे. अजीबोने जीवोए संघरेला छे अने जीवोने कर्मोए संघरेला छे. [प्र०) हे भगवन् ! एम कहेवानुं शुं कारण छे ? 'लोकनी स्थिति आठ प्रकारनी कही छै अने यावत्-जीवोने कोए संघरेला छे ? [उ०] हे प्रमाणे जाणवू, यावना याचा सर्वाद्धा. ए प्रमाणे जपला सातमो तनुवात छे भने पडामाशातर व For Private and Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥७९ ॥ १ शतके | उद्देशः ६ ॥ ७९ ॥ गौतम ! जेम कोइ एक पुरुष होय, ओ ते चामडानी मसकने पवनवडे फुलावे. पछी ते मसकनु मुख बंध करे, मसकने वचले भागे गांठ बांधी, पछी ते मसकनुं मुख उघाडे अने तेनी अंदरनो पवन काढी नाखे. मसकना उपरना भागमां पाणी भरे, पछी पाछु ते मसकर्नु मुख बांधी दे, पछी तेनी बचली गांठ छोडी दे. तो हे गौतम! ते भरेलुं पाणी ते पवननी उपर उपरना भागमा रहे ! हा, रहे, ते कारणथी यावत्-जीवोने कर्मोए संघरेला छे' ए पूर्व प्रमाणे कडं छे. अथवा हे गौतम ! जेम कोइ एक पुरुष होय, अने ते चामडानी मसकने पवनवडे फुलावी पोतानी कडे बांधे, पछी ते पुरुष ताग विनाना, तरी न शकाय तेवा, अने माथोडा करतां वधारे उंडा पाणीमा प्रवेश करे, तो हे गौतम! ते पुरुष ते पाणीनी उपर उपरना भागमा रहे ? हा, रहे' ए रीते लोकनी स्थिति आठ प्रकारनी कही छ, यावत्-जीवोने कर्मोए संघरेला छे. ५४-५५ अस्थि णं भंते ! जीवा य पोग्गला य अन्नमन्नबद्धा अन्नमन्नपुट्ठा अन्नमन्नमोगाढा अन्नमन्नसिणेहपडिबद्धा अन्नमनघडताए चिट्ठति?, हंता! अत्थि, से केणटेणं भंते! जाब चिटुंति?, गोयमा! से जहानामए-हरदे सिया पुण्णे पुण्णप्पमाणे बोलहमाणे बोसहमाणे समभरघडताए चिट्ठइ, अहे णं कह पुरिसे तंसि हरदसि एग महं नावं सयासवं सयछिडे ओगाहेजा, से नूर्ण गोयमा! सा णावा तेहिं आसवदारेहिं आपूरमाणी २ पुषणा पुण्णप्पमाणा वोलहमाणा बोसहमाणा समभरघडताए चिट्ठइ ?, हंता चिट्ठइ, से तेणद्वेणं गोयमा अस्थि ण जीवा य जाव चिट्ठति ॥ (सू०५६)॥ -- [प्र०] हे भगवन् ! जीवो अने पुद्गलो परस्पर संबद्ध छे. परस्पर वधारे संबद्ध छे. परस्पर एकबीजा मळी गयेला छे, परस्पर RE For Private and Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥८ ॥ RECE शतक उदेशः ६ ॥८ ॥ स्नेह चिकाशथी प्रतिबद्ध छे अने परस्पर घट्ट थइने रहेछ ? उ०] हे गौतम! हा. [म.] हे भगवन् ! तेम कहेवार्नु शुं कारण के, यावत्-'तेओ ते प्रमाणे रहे छे! [उ०] हे गौतम ! जेय कोई एक पाणीनो झरो छे अने पाणीथी भरेलो, पाणीथी छलोछल भरेलो, पाणीथी छलकातो, पाणीथी वधतो छ तथा ते भरेला घडानी पेठे रहें छे. हवे ते झरामा कोइ पुरुष एक मोटी, सो नाना काणावाळी, सो मोटा काणावाळी नाव नाखे, तो हे गौतम ! ते नाव ते काणाओथी भराती, वधारे भराती, छलकाती, पाणीथी वधती थाय ? अने ते भरेला घडानी पेठे रहे ? 'हा रहे' माटे हे गौतम! ते हेतुथी यावत्-जीबो पूर्व प्रमाणे रहे छे ।। ५६ ॥ अस्थि र्ण भंते ! सया समियं सहुमे सिणेहकाये पवडइ ?, हंता अस्थि । से भंते ! कि उड्ड पवडई अहे पवडइ तिरिए पवडइ !, गोयमा ! उचि पवडइ अहेवि पवडइ तिरिएवि पवउइ, जहा से बादरे आउयाए अन्नमन्नसमाउत्ते चिरंपि दीहकालं चिट्ठइ तहा णं सेवि?, नो इणढे समढे, से णं खिप्पामेव विद्धंसमागच्छइ । सेवं |भंते ! सेवं भंतेति!॥छट्टो उद्देसो सम्मत्तो ॥ १-६॥ (सू०५७)॥ . ४ा [म०] हे भगवन् ! हमेशा सूक्ष्म स्नेहकाय, अप्काय (एक जातनुं पाणी) मापपूर्वक पडे छे ? [३०] हे गौतम ! हा, पडे छे. म०] हे भगवन् ! सुं ते उंचे पडे छे, नीचे पड़े छे, के तीरछे पडे छ ? [उ०] हे गौतम ! ते उंचे पण पडे छे. नीचे पण पडे छे अने तीरछे पण पडे छे. [सं०] हे भगवन् ! ते सूक्ष्म अकाय आ स्थूल अप्काय (पाणी) नी पेठे परस्पर समायुक्त थइने लांबा काळ सुधी रहे ? [उ०] हे गौतम ! ए अर्थ समर्थ नथी-तेम न रहे. पण ते सूक्ष्म अपकाय शीघ्रज नाश पामे छे. हे भगवन् । ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ते ए प्रमाणे छे, एम कही यावत् विहरे छे. ॥ ५७ ।। भगवंत संधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमूत्रना प्रथमशतकमां छहा उद्देशानो मलार्थ संपूर्ण थयो. - -- % For Private and Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १ शतके व्याख्या-1 प्रज्ञप्तिः ॥८१॥ उद्देशः ७ 11८१ ।। उद्देशक ७. नेर इए ण भंते ! नेरएइस उववजमाणे किंदसेणं देसं उपवनइ देसेणं सव्वं उववजइ सम्बेणं देसं उववजह सम्वेणं मन्वं उववजह?, गोयमा! नो देसेणं देमं उचवज्जइ, नो देसेणं सञ्चं उववजइ, नो सम्वेणं देसं उवचजइ, सब्वेणं सव्वं उवयजइ, जहा नेरइए एवं जाव वेमाणिए १॥ (सू०५८)॥ [प्र०] हे भगवन् ! नैरयिकोमा उपजतो नैरयिक शुं एक भागवडे एक भागने, एक भागवडे सर्व भागने, सर्व भाग बड़े एक भागने, के सर्व भागवडे सर्व भागने आश्रीने उत्पन्न थाय ? [उ.] हे गौतम ! ते एक भागवडे एक भागने, एक भागवडे सर्व भागने, अने सर्व भागवडे एक भागने आश्रीने उत्पन्न न थाय. परंतु सर्व भागवडे सर्व भागने आश्रीने उत्पन्न थाय, जेम नरयिक विषे कहुं तेम वैमानिक सुधी जाणधू. ।। ५८ ॥ नेरइए णं भंते ! नेरइएसु उववजमाणे किं देसेणं देसं आहारेइ १ देसेणं सवं आहारेइ २ सव्वेणं देस आहारेइ ३ सब्वेणं सवं आहारेइ ? ४, गोयमा! नो देसेणं देस आहारेइ, नो देसणं सव्वं आहारेइ, सध्येण वा देसं आहारेड, सब्वेण वा सव्वं आहारेइ, एवं जाब वाणिए २। नेरइए णं भंते ! नेरहपहिंतो उव्वष्टमाणे किं देसेणं देस उववदृइ ? जहा उववजमाणे तहेव उववद्यमाणेऽवि दंडगो भाणियव्यो ३ । नेरइए णं भंते ! नेरइएहिंतो उपवट्टमाणे किं देसेणं देसं आहारेइ तहेव जाव सम्वेण वा देसं आहारेइ ?, सम्वेण वा सव्वं आ० १, For Private and Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥ ८२ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | एवं जाव वैमाणिए ४ । नेरइ० भंते! नेर० उबवन्ने किं देसेणं देस उववन्न, एसोऽवि तहेव जाव सव्वेणं स उबबन्ने ?, जहा उववज्रमाणे उबवहमागे य चत्तारि दंडगा तहा उवयन्नेणं उम्बद्वेणवि चत्तारि दंडगा भाणियध्वा, सव्वेणं सव्वं उववन्ने, सव्वेण वा देसं आहारेड़ सम्वेण वा सव्वं आहारेइ, एएणं अभिलावेणं उबवन्नेवि उब्वट्टणेवि नेयव्वं ८ । नेरइए णं भंते ! नेरइएस उववजमाणे किं अद्वेगं अर्द्ध उववजह ? १ अद्वेणं सव्र्व्व उवयजइ ? २ सव्वेणं अद्धं उववजह ? ३ सव्वेणं सम्व उवबजइ० १ ४, जहा पढमिल्लेणं अट्ठ दंडगा तहा अद्वेणवि अट्ट दंडगा भाणियचा, नवरं जहिं देसेणं देसं उबवज्जइ तहिं अद्वेणं अद्धं उववज्जइ इति भाणियव्यं. एयं णाणत्तं एते सव्वेऽवि सोलस दंडगा भाणियव्वा ।। [सू० ५९ ] [२०] हैं भगवन् ! नैरयिकोमां उपजेलो नैरयिक शुं एक भागवडे एक भागने, एक भागवडे सर्व भागने, सर्व भागवडे एक | भागने, के सर्व भागवडे सर्व भागने आश्री आहार करे ? [30] हे गौतम! ते एक भागवडे एक भागने, एक भागवडे सर्व भागने आश्रीने आहार न करें. पण सर्व भागवडे एक भागने, सर्व भागवडे सर्व भागने आश्रीने आहार करे अने ए प्रमाणे त्रैमानिक सुधी जाण. [प्र० ] हे भगवन् ! नैरयिकोथी उद्वर्ततो नैरयिक शुं एक भागवडे एक भागने आश्रीने उद्वर्ते ? इत्यादि पूछं. [[उ० ] हे गौतम! जेम उत्पद्यमान विषे कधुं तेम उद्वर्तमान विष पण दंडक कहेवो. [प्र० ] हे भगवन् ! नैरयिकोथी उद्वर्तमान | नैरयिक शुं एक भागवडे एक भागने आश्रीने आहार करे ? इत्यादि पूछ. [30] हे गौतम! पूर्व प्रमाणे जाग. यावत्-सर्वभागवडे एक देशने, अने सर्व भागवडे सर्वने आश्रीने आहार करे तथा ए प्रमाणे वैमानिको सुधी जाणं. [प्र०] हे भगवन् ! For Private and Personal Use Only भु १ सबके | उद्देशः ७ ॥ ८२ ॥ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥८३॥ १ शतके. | उद्देशः ७ ॥८३ ।। नरयिकोमा उत्पन्न नैरयिक शुं एक भागकडे एक भागने आश्रीने उत्पन्न छ ? इत्यादि पूछ. [उ०] हे गौतम! ए दंडक पण | तेज प्रमाणे जाणवो. यावत्-सर्व भाग बढे सर्व भागने आश्री उत्पन्न के. जेम उत्पद्यमान अने उद्धर्तमान विषे चार दंडक कया | नेम उपपन्न अने उद्धृत संबंधे पण चार दंडक कहेवा. सर्व भागवडे सर्व भागने आश्रीने उपपत्र सर्व भागवडे एक भागने आश्रीने आहार' अने सर्व भागवडे सर्व भागने आश्रीने आहार' ए अभिलापवडे उपपन्न अने उद्धृत विषे पण जाणवू. [म.] हे भगवन् ! | नरयिकोमा उपजतो नैरयिक शुं अर्धभागवडे अर्थ भागने, अर्ध भागवडे सर्व भागने, के सर्व भागवडे अर्थ भागने, के सर्वभागवडे सर्व भागने आश्रीने उत्पन्न थाय ! [उ०] हे गौतम ! जेम प्रथमनी साथे आठ दंडक कहा. तेम अर्धनी साथे पण आठ दंडक कहेवा. विशेष एके, ज्यां 'एक भागवडे एक भागने आश्रीने उत्पन्न थाय' एवो पाठ आवे त्या 'अर्ध भागवडे अर्ध भागने आश्रीने उत्पन्न धाय' आ पाठ कहेवो, मात्र एटलोज मेद छे. अने ए बधा मळीने सोळ दंडक थया छे ।। ५९ ।। जीवे गंभंते ! कि विग्गहगतिसमावन्नए अविग्गहगतिसमावन्नए ?, गोयमा! सिय विग्गहगइसमावन्नए सिय अविग्गहगतिसमावन्नगे, एवं जाव वेमाणिए । जीया णं भंते ! कि विग्गहगइसमावन्नया अ वग्गहगइसमावन्नगा?, गोयमा ! विग्गहगइसमावन्नगावि अविग्गहगइसमावन्नगावि । नेरइया णं भंते ! कि विग्गहगतिसमावन्नया अविग्गहगतिसमावन्नगा?, गोयमा ! सब्वेवि ताव होजा अविग्गहगतिसमावन्नगा १। अहवा अविग्गहगतिसमावन्नगा य विग्गहमतिसमावन्ने य २ अहवा अविग्गहगतिसमावन्नगा य विग्गहगइसमावनगा य ३॥ एवं जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। [सू०६०] For Private and Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥८४॥ १ तो उद्देशः ७ ॥८४ ॥ ॐॐ53451-42% [प्र०) हे भगवन् । शुं जीव विग्रहमतिने प्राप्त है ? के अविग्रहगतिने प्राप्त छे ? [२०] हे गौतम ! ते कदाच विग्रहगतिने प्राप्त छे. अने कदाच अविग्रहगतिने प्राप्त छे ए प्रमाणे यावन्-वैमानिको सुधी जाणवू. [प्र०] हे भगवन् ! शुं जीवो विग्रहगतिने है प्राप्त छे के अविग्रहगतिने प्राप्त छ ? [उ०] हे गौतम ! जीवो विहायोगतिने प्राप्त छे अने अविग्रहविहायोगतिने पण प्राप्त . [प्र०] हे भगवन् ! शुं नरयिको विग्रहगतिने प्राप्त छे के अविग्रहगतिने प्राप्त है ? [उ०] हे गौतम! ते बधाय अविग्रहगतिने प्राप्त छे. अथवा घणा अविग्रहगतिने प्राप्त छे अने एकाद विग्रहगतिने प्राप्त के. अथवा घणा अविग्रहगति ने प्राप्त छे. अने घणा विग्रहगतिने प्राप्त छे. ए प्रमाणे सर्वत्र प्रण भांगा जाणवा. मात्र जीव अने एकेंद्रियमा त्रण भांगा न कदेवा. ॥ ६०॥ देवे णं भंते ! महिढिए महज्जुईए महब्बले महायसे महासुक्खे महाणुभावे अविउतिय चयमाणे किचिवि कालं हिरिवत्तियं दुगुंछावत्तिय परिसहवत्तियं आहारं नो आहारेइ, अहे णं आहारेइ, आहारिनमाणे | | आहारिए परिणामिजमाणे परिणामिए पहीणे य आउए भवइ जत्थ उववजह तमाउयं पडिसंवेएइ. तंजहातिरिकखजोणियाउयं वा मणुस्साउयं वा ?, हंता गोयमा! देवे णं महिड्ढीए जाव मणुस्साउयं वा ॥ (सू०६१)॥ [प्र०] हे भगवन् ! मोटी ऋद्धिवाळो, मोटी द्युतिवाळो, मोटी कीर्तिवाळो, मोटा वळवाळो, मोटा सामर्थ्यवाळो अने मरण समये च्यवतो महेश नामनो देव शरमने लीधे, घृणाने लीधे, परिषहने लीधे, केटलाक काळ सुधी आहार करतो नथी. पछी आहार करे छे अने लेवातो आहार परिणत पण थाय छे, अने छेवट ते देवनुं आयुष्य सर्वथा नष्ट थाय छे, तेथी ते देव ज्यां उत्पन्न थाय थाय छे त्यांनु आयुष्य अनुभवे छे. तो हे भगवन् ! ते क्युं आयुष्य जाणवू.-तिर्यचयोनिकनुं आयुष्य जाणवू. के मनुष्यनुं आयुष्य For Private and Personal use only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥ ५॥ १ शतके उद्देशः ७ ।। ८५ ॥ जाणवू. [३०] हे गौतम ! से महर्षिक देवर्नु यावत्-मर्या पछी मनुष्यनुं पण आयुष्य जाणवू. ॥ ६१॥ जीवे भंते ! गम्भं वकमाणे किं सइंदिए वकमइ अणिदिए वक्कमइ ?, गोयमा! सिय सइंदिए वकमइ, सिय अणिदिए वचमइ, से केणद्वेणं ?, गोयमा! दम्विदियाई पडुश्च अणिदिए वक्कमइ, भाविंदियाई पडुच्च सई-। दिए वकमइ, से तेणढणं । जीवे णं भंते ! गम्भं वकममाणे किं ससरीरी वकमइ असरीरी वकमइ?, गोयमा! |सिय समरीरी प० सिय असरीरी वक्कमह, से केणद्वेणं, गोयमा! ओरालियवेन्वियआहारपाइं पडुच असरीरी २०, तेयाकम्मा० प० सम वक, से तेणष्टेणं! | जीवे गंभंते! गम्भं वकममाणे तपढमयाए किमाहारमाहारेइ ?, गोयमा ! माउओयं पिउसुक्कं तं तदुभयसंसिह कलुस किविसं तप्पढमयाए आहारमाहारेइ । जीवे णं भंते ! गम्भगए समाणे किमाहारमाहारेइ ?, गोयमा ! जं से माया नाणाविहाओ रसविगईओ आहारमाहारेइ तदेकदेसेणं ओयमाहारेइ । जीवस्स णं भंते ! गम्भगयस्स समाणस्स अस्थि उच्चारेइ वा पासवणेइ वा खेलेह वा सिंघाणेइ वा तेइ वा पित्तेइ वा!, णो इणढे समडे, से केणद्वेणं?, गोयमा ! जीचे गं गन्भगए समाणे जमाहारेइ तं चिणाइ तं सोइंदियत्ताए जाव फासिंदियत्ताए अटिअद्विमिंजकेसमंसुरोमनहत्ताए, से तेणद्वेणं० । जीवे णं भंते ! गम्भगए समाणे पभू मुहेणं कावलियं आहारं आहारित्तए ?, गोयमा! णो इणद्वे समढे, से केण?णं, गोयमा! जीवे गं गभगए समाणे सव्वओ आहारेइ सम्बओ परिणामेइ सचओ उस्ससह सम्बओ निस्ससइ अभिक्खणं आहारेइ अभिक्खणं परिणामेइ अभिक्खणं उससइ अभिक्खणं निस्ससह माह तदेवदेसेणं ओयमाहारा पितह वा, णो इणहे समहा अटिअद्विमिंज For Private and Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir शतक व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥८६॥ ***** |आहच आहारेइ आहथ परिणामेइ आहथ उस्मसह आहच नीससइ । माउजीवरसहरणी पुत्तजीवरसहरणी, 31 |माउजीवपडियद्धा पुत्तजीवं फुडा तम्हा परिणामेइ, अवरावि य णं पुत्तजीवपडिबद्धा माउजीवफुडा तम्हा चिणाइ तम्हा उवचिणाइ, से तेणटेणं जाव नोपभू मुहेणं कावलियं आहारं आहारित्तएकरणंभंते! माइ. | उदेशः ७ अंगा पण्णता?, गोयमा! तओ माइयंगा पण्णत्ता, तंजहा-मंसे सोणिए मत्धुलुंगे। करणं भंते ! पिइयंगा- ॥८६॥ पण्णत्ता?, तओ पिइयंगा पण्णत्ता, तंजहा-अहि अद्विमिंजा केसमंसुरोमनहे । अम्मापिइए णं भंते! सरीरए केवइयं कालं संचिट्ठइ ?, गोयमा ! जावइयं से कालं भवधारणिज्जे सरीरए अञ्चावन्ने भवह एवतियं कालं संचि| Bइ, अहे णं समए ममा बोकसिजमाणे २ चरमकालममयसि वोच्छिन्ने भवइ ।। (मू०६२)॥ | [प्र.] हे भगवन् ! गर्भमा उत्पन्न यतो जीव शुं इंदियवाळो के इंद्रिय विनानो उत्पन्न थाय ? [उ०] हे गौतम ! इंद्रियवाळो | अने इंदियविनानो पण उत्पन्न थाय. [प्र०] हे भगवन् ! तेनुं शुं कारण ? [१०] हे गौतम! द्रव्येन्द्रियनी अपेक्षाए इंद्रिय विनानो अने भाव इंद्रियनी अपेक्षाए इंद्रियवाळो उत्पन्न थाय. माटे हे गौतम ते कारणथी पूर्व प्रमाणे कयु के [प्र०] हे भगवन् ! गर्भमा उपजतो | जीव शुं शरीरवाळो के शरीरविनानो उत्पन्न थाय. [उ०] हे गौतम ! शरीरवाळो अने शरीरविनानो पण उत्पन्न थाय. [५०] हे हे भगवन् ! तेनु शु कारण ? [30] हे गोतम ! औदारिक वैक्रिय अने आहारक स्थूल-शरीरोनी अपेक्षाए शरीरविनानो अने मूक्ष्म, । तैजस तथा कार्मण शरीरनी अपेक्षाए शरीरवाळो उत्पन्न थाय. हे गौतम ! ए कारणथी पूर्व प्रमाणे कमुळे. [प्र०] हे भगवन् ! जीव गर्भमां उत्पन्न थतां वेतज शुं खाय के ? [उ०] हे गौतम ! परस्पर एक बीजामां मळेलु मातार्नु आर्तव अने पितानुं वीर्य, ** *** * * For Private and Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥ ८७ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जे कलुष अने किल्विष छे. तेने ते जीव गर्भमां उत्पन्न सतावेज खाय थे [प्र० ] हे भगवन्! गर्भमां गयो छतो जीव शुं खाय छे ? [उ०] हे कौतम ! गर्भमा रहेलो जीव माताएं खाघेला अनेक प्रकारना रसविकारोना एक भाग साथै माताना आर्तवने खाय छे. [प्र०] हे भगवन् ! गर्भमां गएल जीवने विष्टा, सूत्र, श्लेष्म, नासिकानोमेल, वमन अने पितृ होय ? [36] हे गौतम! ए अर्थ समर्थ नथी. [म] हे भगवन् ! तेनुं शुं कारण ? [उ०] हे गौतम! गर्भमां गया पछी जे आहारने खाय है, चय करे हे ते आहारने कानपणे चामडीपणे, हाडकापणे, मज्जपणे, वाळपणे, दाढीपणे, संत्रापणे अने नखपणे परिणमधि हे माटे हे गौतम! ते कारणथी गर्भमा गएका जीवने विष्टादिक नथी होउ. [प्र० ] हे भगवन् ! गर्भमां गएलो जीव मुखद्वारा कोळियारूप आहारने लेवाशक्त ! [उ०] हे गौतम! ए अर्थ समर्थ नथी. [प्र० ] हे भगवन् ! तेनुं शुं कारण ? [उ०]. हे गौतम! गर्भमां गएलो जीव सर्व आत्मावडे आहार करे छे, परिणामावे, उच्छ्वास ले छे, निःश्वास ले छे, कदाचित् आहार करे हे, कदाचित् परिणमाळे, उच्छ्वास ले छे, अने कदाचित निःश्वास पण ले के तथा पुत्रना जीवने रम पहोचाडयामां कारणभूत अने मातानो रस लेवामां कारणभूत जे माजीवरस - हरणी नामनी नाडी छे ते माताना जीब साथै संबंद्ध छे अने पुत्रा जीवने अडकेली हे तेनाथी पुत्रनो जीव आहार ले छेखने आहारने परणमावे छे तथा बीजी पूण एक नाडी हे, जे पुत्रता जीव साधे संबद्ध के अने माताना जीवने अडकेली छे, तेनाथी पुत्रनो जीव आहार ले के अने आहारनो चय अने उपचय करे छे. हे गौतम! ते कारणथी गर्भमां गएलो जीव मुखद्वारा कोळियारुप आहार लेवाने शक्त नथी. [ प्र० ] हे भगवन् ! माताना अंगो केलां कलां छे ? [उ०] हे गौतम! माताना अंगो त्रण कह्यां छे. ते आ प्रमाणे:-मांस, लोही, अने मायानुं भेजूं [प्र०] हे भगवन् पितानां अंगो केरलां कला छे ? For Private and Personal Use Only .९ शतके उद्देशः ७ 1129 11 Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 11 प्रज्ञप्तिः उद्देशः ७ ॥८८॥ प्राख्या [उ०] हे गौतम ! पितानां अंगोत्रण कहां हे. ते आ प्रमाणे:-हाडका, मज्जन अने केश. दाढी, गेम तथा नख, [] भगवन् ! माता तथा पिताना गो संतानना शरीरमा केटला काळ सुधी रहे ? [३०] हे गौतम ! संतान- भवधारणीय शरीर मन्मथी जीवतां सुधी रहेनारुं शरीर-जेटला काळमधी टके, तेटला काळमुधी ने अंगो रहे. अने ज्यारे ते भवधारणीय शरीर iftenCIAL MAH ARASHTR | समये समये हीक यतुं जाय छे. अने छेवस्ने समय ज्यारे नष्ट थाय छे त्यारे पहेला मातपितानां अंगो पण| | नाश पामे हे. ॥६॥ जीवे णं भंते ! गभगए समाणे नेर इणसु उववजेजा?, गोयमा! अत्थेगइए उवजज्ञा, अत्थेगइए नो Pउववजेजा, से केणट्टेणं ?, गोयमा ! से णं सन्नी पंचिंदिर सव्वाहिं पजत्तीहिं पजत्तए वीरियलद्वीप वेडब्बिय लद्धीए पसणीयंणं आगयं सोचा निसम्म पएसे निच्छुभइ नि०२ वेउन्चियसमुग्घाएणं समोहणइ, समो०२ चाउरंगिणिं सेन्नं विऊवइ, चाउरंगिणीसेन्नं विउब्वेत्ता चाउरंगिणीए सेणाए पराणीएणं मद्धिं मंगाम संगामेह से णं जीवे अर्थकामए रज्जकामा भोगकामा कामकामए अत्थकंखिए रजकंखिए भोगकंखिए कामकंखिए। अत्यपिवासिए रजपिवासिए भोगपिवासिए कामपिवामिए तच्चित्ते तम्मणे तल्लसे तदज्झसिए तत्तिब्यज्झवसाणे तदट्ठोवउत्त तदप्पियकरणे तम्भावणाभाविए, पयंसिणं अंतरंसि कालं करेज नेरासु उबवजड, से तेणटेणं गोयमा जाब अत्थेगइए उववजेजा, अत्थेगइए नो उबवजेजा । जीवे णं भंते ! गम्भगए समाणे देवलोगेसु उचवजेजा, मोयमा ! अत्यैगइए उववज्जेजा, अत्धेगइए नो उववजेजा, से केणद्वेणं?, गोयमा ! से काम For Private and Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या-1 प्रज्ञप्तिः ॥९०॥ [प्र.] हे भगवन् ! गर्भमां गया पछी जीव नैरयिकोमा उत्पन्न थाय छे ? [३०] हे गौतम ! कोइ थाय अथवा कोई न 51 १ शतके पण थाय. [प्र०] हे भगवन् ! तेनु शु कारण ? [उ०] हे गौतम ! संज्ञी पंचेंद्रिय, अने सर्व पर्याप्तिथी पूर्ण थएलो जीव वीर्यलब्धि || उद्देशः ७ बडे, वेक्रियलन्धि वडे शत्रुनुं लश्कर आवेलुं सांभळी, अवधारी, आत्मप्रदेशोने गर्भथी बहारना भागे फेंके थे, फकी वैकियसमुद्घातबडे समवहणी, चतुरंगी सेनाने विकु छे, एवी सेनाने विकुर्वी ते सेनावडे शत्रुना लश्कर साये युद्ध करे छे. अने ते पैसानो, राज्यनो, | ॥९ ॥ भोगनो अने कामनो लालचु, पैसामां, राज्यमां, भोगमा अने काममा लंपट. पैसानो तरस्यो, राज्यनो, भोगनो अने कामनो तरस्यो जीव तेमां चित्तवाळो, तेमां मनवाळो, तेमा आत्मपरिणामवाळो, तेमा अध्यवसित थएलो, तेमा अध्यवसानवाळो, तेमां सावधानता वाळो, तेने माटे क्रियाओनो भोग आपनार, असे तेनाजसंस्कारवाळो ए समये जो मरण पामे तो नैरयिकमां उत्पन्न थाय. माटे हे गौतम ! ते हेतुथी यावत्-कोइ जीव नरके जाय अने कोइ जीव नरके न जाय. [१०] हे भगवन् ! गर्भमां गएलो जीव देवलोकमा || जाय ? [उ.] हे गौतम ! कोई जाय अने कोइ न जाय. [4] हे भगवन् ! तेर्नु शु कारण ? [उ०] हे गौतम! ते संज्ञी पंचेद्रिय अने सर्व पर्याप्तिथी पूर्ण थएलो जीव तथारूप श्रमण के माहण (ब्राह्मणनी) पासे एक पण धार्मिक वचन सांभळी, अवधारां, तुरतज संवेगथी धर्ममां श्रद्धालु बनी, धर्ममा तीब अनुरागथी गाएलो ते जीव धर्मनो, पुण्यनो, स्वगनो अने मोक्षनो लालचु. धर्ममा पुण्यमां, स्वर्गमा अने मोक्षमा सक्त, धर्मनो पुन्यनो स्वर्गनो अने मोक्षनो तरस्यो. तेमां चित्तवाळो, मनवाळो, आत्मपरि| णामवाळो अने अध्यबसित भएलो, तेम तीव्र प्रयत्नवाळी, ते मां सावधानतावाळो. तेमां क्रियाओनो भोग आपनारो अने तेनाज संस्कारवालो ए समये मरण पामे तो देवलोके जाय. माटे हे गौतम ! ते हेतुथी पूर्व प्रमाणे क{ . [प्र०] हे भगवन् ! गर्भमा BI For Private and Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥८९॥ सन्नी पंचिदिए सव्वाहि पबत्तीहिं पजत्ता तहारूयस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एगमवि आयरिय १ शतके धम्मियं सुवयणं सोचा निसम्म तओ भवइ संवेगजायसङ्के तिव्वधम्माणुरागरत्ते, से णं जीवे धम्मकाम उदेशः ७ पुण्णकामए सग्गकामए मोक्वकामए धम्मकंखिए पुण्णकंखिए सग्ग मोक्खक० धम्मपिवासिए पुण्ण सग्गा मोक्खपिवासिए तच्चित्ते तम्मणे तल्लसे तदज्झवसिए तत्तिबज्झवसाणे तदट्टोवउत्ते तदप्पियकरणे तन्भावणाभाविए, एयंसिणं अंतरंसि कालं करे० देवलो. उव०, से तेणढणं गोयमा । जीवे णं भंते ! गम्भगए समाणे उत्ताणए वा पासिल्लए वा अंबखुजए वा अच्छेज्ज वा चिटेज वा निसीएज वा तुयद्देज वा माऊए सुयमाणीप सुबह जागरमाणीए जागरइ सुहियाए सुहिए भवइ दुहियाए दुहिए भवइ ?, हंता गोयमा ! जीवे णं गम्भगएका |समाणे जाच दुहियाए दुहिए भवइ, अहे णं पसवणकालसमंयसि सीसेण वा पाराहि वा आगच्छइ सममागच्छह तिरियमागच्छद विणिहायमागच्छह ॥ वण्णवज्झाणि य से कम्माई बधाई पुट्ठाई निहत्ताई कडाई पट्टवियाई अभिनिविट्ठाई अभिसमन्नागयाइं उदिनाई नो उवसंताई भवंति तओ भवइ दुरूवे दुव्यन्ने दुग्गंधे दूरसे दुप्फासे अणिटे अकंते अप्पिए असुभे अमणुन्ने अमणामे हीणस्सरे दीणसरे अणिदुस्मरे अकंतस्सरे अप्पियस्सरे असुभस्सरे अमणुन्नस्सरे अमणामस्सरे अणारुजवयणे पञ्चायाए यावि भवइ, वनवज्झाणि य से कम्माइ नो बद्धवाइं पसत्थं नेयव्वं जाव आदेजवयणं पञ्चायाए यावि भवइ, सेवं भंते ! सेवं भंते । (सू०६३) त्ति सत्तम्म उद्दसो समत्तो ।। १-७॥ For Private and Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥९१॥ CASTHASER- RA | गएलो जीव चनो होय, पडखामेर होय, केरीनी जेम कुब्ज होय, उमेलो होय ? बेठेलो होय, के मूतेलो होर ? तथा ज्यारे माता य, क मृतला हार तथा ज्यार माता१शतके सुती होय, त्यारे सतो होय ! ज्यारे माता जागती होय त्यारे जाम्तो होय ? माता सुखी होय त्यारे सुखी होय? अने ज्यारे उद्देशः ८ माता दुःखी होय त्यारे दुःखी होय ? [उ०] हे गौतम ! गर्भमां गएलो जीच यावत्-ज्यारे माता दुःखी होय त्यारे दुःखी. हवे जो ते गर्भ प्रसव समये माथाद्वारा, के पगद्वारा बहार आवे, तो सरखी रीते आवे अने जो आडो थइने बहार आवे तो मरण पामे. ॥९१॥ (जो कदाच जीवतो आवे तो) अने ते जीवना को अशुभ रीते बद्ध होय, स्पृष्ट होय, निधत्त होय, कृत होय, प्रस्थापित होय, अमिनिविष्ट होय, अभिसमन्वागत होय, उदीर्ण होय, अने उपशांत न होय, तो ते जीव कर रूपो, दुर्वणालो, दुगंधवाळो, खराब रसवालो, खराव स्पर्शवाळो, अनिष्ट, अकांत अप्रिय, अशुभ, अमनोज्ञ, सांभों पण सारो न लागे तेवो, हीन स्वरवाळो, दीन, अनिष्ट, अकांत, अप्रिय अशुभ, अमनोज्ञ, स्वरवाळो अप्रियस्वरवाळो, अने अनोदय वचन थाये. अने जो ने जीवना कर्म अशुभ रीते बद्ध न होय तो वधू प्रशस्त जाणवू. यावत्-ते जीव आदेय वचन थाय छे अर्थात् जेनुं वचन बधा माने तेवो थाय छे. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे. एम कही यावत् विचरे छे. ।। ६३ ॥ सुधर्मास्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमूत्रना प्रथम शतकमां सातमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. उद्देशकः ८ रायगिहे समोसरणं जाव एवं बयासी-एगंतवाले णं भंते ! मणूसे किं नेरइयाउयं पकरेंइ तिरिक्ख० मणुक For Private and Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥१२॥ देवा० पक०, नेरहयाउयं किचा नेरइएसु उव. तिरियाउयं कि तिरिएसु उवव० मणुस्साउयं मणुस्से० उब.| |१ शतके | देवाउ० कि. देवलोएसु. उववजह?, गोयमा! एगंतवाले णं मणुस्से नेरइयाउयंपि पकरेइ तिरि० मणु. उद्देशः८ देवाउपि पकरेइ, नेरइयाउयंपि किचा नेरइएसु उव०, तिरि० मणु देवाउयं किच्चा तिरि० मणु, देवलोएसु उववजह ।। (सू०६४)॥ का॥९२ ।। राजगृह नगरपां समवसरण थयु, अने यावत्-आ प्रमाणे बोल्या- [प्र०] हे भगवन् ! एकांत बालक मनुष्य शुं नैरयिकर्नु, तिर्गच, मनुष्यनु के देवर्नु आयुष्य बांधे ? अने नैरयिक आयुष्य बांधी नैरयिकमां जाय, तिर्यचनुं आयुष्य बांधी तिर्यंचमां जाय, मनुष्यनु आयुष्य बांधी मनुष्यमा, के देवनुं आयुष्य बांधी देवलोकमां जाय ? [३०] हे गौतम! एकांत बालक मनुष्यनुं नैरयिकर्नु पण आयुष्य बांधे. तथा नरयिकर्नु आयुष्य बांधी नैरयिकोमा, तिर्यचनुं आयुष्य बांधी तिर्यचमां, मनुष्यनुं आयुष्य बांधी मनुष्यमां, अने देवन्द्रं आयुष्य बांधी देवलोकमा उत्पन्न याय. ॥ ६४ ॥ Pा एगंतपंडिए णं भंते ! मणुस्से किं नेर पकरेइ जाव देवाउयं किया देवलोएसु उवव.?, गोयमा! एगंत पंडिए णं मणुस्से आउयं सिय पकरेइ सिय नो पकरेइ, जइ पकरेइ नो नेरइया. पकरेइ नो तिरि० नो मणु०, देवाउयं पकरेइ, नो नेरइयाउयं किच्चा नेर० उव०, णो तिरि० णो मणुस्स०, देवाउयं किच्चा देवेसु उव०, से केण-| देणं जाव देवा० किचा देवेसु उचवजह?, गोयमा ! एगंतपंडियस्स णं मणुसस्स केवलमेव दो गईओ पन्नायति, तंजहा-अंतकिरिया चेव कप्पोववत्तिया चेव, से तेणटेणं गोयमा ! जाव देवाउयं किच्चा देवेसु उवव For Private and Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रज्ञप्तिः १ शतके उद्देशः ८ ॥९३॥ बइ । बालपंडिए णं भंते ! मणुस्से किं नेरइयाउयं पकरेइ जाव देवाउयं किच्चा देवेसु उववज्जइ, गोयमा ! व्याख्या नो नेरइयाउयं पकरेइ जाव देवाउयं किचा देवेसु उववजह, से केणटेणं जाव देवाउयं किच्चा देवेसु उववजइ ?, गोयमा! बालपंडिए णं मणुसे तहारुवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एगमवि आयरियं धम्मियं ॥९३॥ सुवयणं सोचा निसम्म देस उवरमइ, देसं नो उवरमइ, देसं पञ्चक्खाइ, देसं णो पञ्चक्खाइ, से तेणटेणं देसो. वरमदेसपञ्चक्रवाणेणं नो नेरइयाउयं पकरेइ जाव देवाउयं किच्चा देवेसु उवववइ, से तेणटेणं जाव देवेसु उववजह । (सू० ६५) [प्र०] हे भगवन् ! एकांत पंडित मनुष्य शुं नरयिकनुं आयुष्य बांधे, के यावत्-देवतुं आयुष्य बांधे, अने देवचं आयुष्य ४करी देवलोकमां उत्पन्न थाय ? [उ.] हे गौतम ! एकांत पंडित मनुष्यनु कदाच आयुष्य बांधे अने कदाच न पण बांधे. जो ते आयुष्य बांधे तो नैरयिकर्नु, तिर्यचनु अने मनुष्यनुं आयुष्य बांधे. तथा ते नैरयिकर्नु, तिर्यचनुं अने मनुष्यनु आयुष्य बांध्या विना नैरयिकमां, तिथंचमां अने मनुष्यमा न जाय. पण ते देवनुं आयुष्य करी देवमां उत्पन्न थाय. [म०] हे भगवन् ! तेनुं शुं कारण ? | यावत्-देवतुं आयुष्य बांधी देवमां उत्पन्न थाय ? [उ०] हे गौतम ! सर्व एकांत पंडित मनुष्यनी मात्र चे गतिओ कही छे. ते आ प्रमाणे:-अंतक्रिया अने कल्पोपपत्तिका. माटे ते हेतुथी हे गौतम ! यावत्-देवतुं आयुष्य बांधी देवमां उत्पन्न थाय. [म.] हे भग-1 वन् ! बालपंडित मनुष्य शुं नैरयिकनुं आयुष्य बांधे के यावत्--देवर्नु अयुष्य बांधी देवमा उत्पन्न थाय ? [उ०] हे गौतम ! ते नरयिकनुं आयुष्य न करे अने यावत्-देवतुं आयुष्य बांधी देवमां उत्पन्न थाय [प्र.] हे भगवन् ! तेनु शुं कारण ? यावत्-देवतुं ४ For Private and Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥ ९४ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आयुष्य बांधी देवोमां उत्पन्न थाय ? [ उ० ] हे गौतम! बालपंडित मनुष्य तथाप्रकारना श्रमण के ब्राह्मणनी पासेवी एक पण धार्मिक अने आर्यवचन साभळी, अवधारी, केवलीक प्रवृत्तिथी अटके छे अने केटलीक प्रवृत्तिथी नथी अटकतो. कैटलाकनुं पचक्खाण करे छे अने केटलाकनुं पञ्चकखाण नथी करतो. माटे हे गौतम! ते हेतुथी केटलीक प्रवृतथी अटकवाने लीधे अने केटलाकनुं पञ्चक्खाण करवाथी - ते नैरयिकनुं आयुष्य बांधतो नथी अने यावत्-देवनुं आयुष्य बांधी देवोमां उत्पन्न थाय छे अने ते कारणथी पूर्व प्रमाणे कहुं छे. ॥ ६५ ॥ पुरिसे णं भंते! कच्छसि वा १ दहंसि वा २ उदगंसि वा ३ दवियंसि वा ४ बलयंसि वा ५ नूमंसि वा ५ गहणंसि वा ७ गहणविदुग्गंसि वा ८ पव्वयंसि वा ९ एव्वयविदुग्गंसि वा १० वर्णसि वा ११ वणविदुग्गंसि वा १२ मियवित्तीए मियसंकप्पे मियपणिहाणे मियवहाए गंता एए मिएत्तिकाउं अन्नयरस्स मियस्स वहाए कूडपासं उद्दाइ, ततो णं भंते ! से पुरिसे कतिकिरिए पण्णत्ते ?, गोयमा ! जावं च णं से पुरिसे कच्छंसि वा १० (१२) जाव कूडपासं उद्दाइ तावं च णं से पुरिसे सिय तिकि० सिय चउ० सिय पंच से केणट्टेणं सिय ति० सिय च० सिय पं० ?, गोयमा ! जे भविए उद्दवणयाए णो बंधणयाए जो मारण्याए तावं च णं से पुरिसे काइयाए अहिगरणियाए पाउसियाए तिहि किरियाहिं पुढे, जे भविए उद्दवणयाएवि बंधणयाएवि णो मारणयांए तावं च णं से पुरिसे काइयाए अहिगरणियाए पाउसियाए पारियावणियाए चउहिं किरिया हिं पुढे, जे. भविए उद्दवणयाएव बंधणयाएवि मारण्याएव तावं च णं से पुरिसे काइयाए अहिगरणियाए पाउसियाए For Private and Personal Use Only ९ शतके उद्देशः ८ ॥ ९४ ॥ Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥९५॥ १ शतरं | उजेशः ८ ॥९५ जाव पंचहिं० पुढे, से तेणद्वेणं जाव पंचकिरिए, (सू० ६६) पुरिसे णं भंते ! कच्छंसि वा जाव वणविदुग्गंसि वा | तणाई ऊसविय २ अगणिकायं निस्सिरह तावं च णं से भंते ! से पुरिसे कतिकिरिए १, गोयमा! सिय तिकिरिए सिय चउकि• सिय पंच०, से केणटेणं?, गोयमा ! जे भविए उस्सवणयाए तिहिं, उस्सवणयाएवि निस्सिरणयाएवि नो दहणयाए चउहिं, जे भविए उस्सवणयाएवि निस्सिरणयाएवि दहणयाएवि तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पुढे, से तेण. गोयमा! । (सू०६७) ॥ पुरिसे णं भंते! कच्छंमि वा |जाव वणविदुरगंसि वा मियवित्तीए मियसंकप्पे मियपणिहाणे मियवहाए गंता एए मियेत्तिकाउं अन्नयरस्स | मियस्स वहाए उसु निसिरइ, ततो णं भंते ! से पुरिसे कइकिरिए ?, गोयमा ! सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए | सिय पंचकिरिए, से केणटेणं ?, गोयमा ! जे भविए निस्सिरणयाए नो विर्द्धसणयायए नो मारणयाए तिहि, जे भविए निस्सिरणयाएवि विद्धंसणयाएवि नो मारणयाए चउहिं, जे भविए निस्सिरणयाएवि विद्धसणया| एवि मारणयाएवि तावं च णं से पुरिसे जाव पंचहि किरियाहिं पुढे, से तेणटेणं गोयमा ! सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए सिय पंचकिरिए (सू० ६८)। पुरिसे णं भंते ! कच्छंसि वा जाव अन्नयरस्स मियस्स वहाए आयय| कन्नाययं उसु आयामेत्ता चिडिजा, अन्नयरे पुरिसे मग्गओ आगम्म सयपाणिणा असिणा सीसं छिदेजा, से य उसु ताए चेव पुवायामणयाए तं विधेजा, सेणं भंते ! पुरिसे किं मियवरेणं पुढे पुरिसवेरेणं पुढे ?, गोयमा! जे मियं मारेइ से मियवरेणं पुढे, जे पुरिसं मारेइ से पुरिसवेरेणं पुढे, से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ जाव से पुरि For Private and Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥९६॥ १ शतके उद्देशः ८ । १५ ॥ सवेरेणं पुढे ?, नूर्ण गोयमा ! कत्रमाणे कडे संधिज्जमाणे संघिए निब्वत्तिजमाणे निव्वत्तिए निसिरिजमाणे निसिरिएत्ति वत्तन्वं सिया?, हंता भगवं! कन्जमाणे कडे जाव निसिरिएत्ति वत्तव्वं मिया, से तेण?ण गोयमा | जे मियं मारेह से मियवेरेणं पुढे, जे पुरिस मारेइ से पुरिसवेरेण पुढे । अंतो छण्हं मासाणं मरइ काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पटे, बाहिं छह मासाणं मर इकाइयाए जाव पारियावणियाए चउहि किरियाहि पष्टे (सू०६९) । पुरिसे णं भंते ! पुरिसं सत्तीते समभिधंसेजा सयपाणिणा वा से असिणा मीसं छिंदेजा तओ णं भंते ! से | पुरिसे कतिकिरिए ?, गोयमा ! जावं च णं से पुरिसे तं पुरिसं सत्तीए अभिसंधेइ सयपाणिणा वा से असिणा | सीसं छिंदइ तावं च णं से पुरिसे काइयाए अहिंगरणि. जाव पाणाइवायकिरियाए पंचहि किरियाहिं पुढे, | आसन्नवहएण य अणवखवत्तिएणं पुरिसरेणं पुढे ॥ (सू०७०) ०] हे भगवन् ! हरणोयी आजीवीका चलावनार, हरणोनो शिकारी अने हरणोने मारवा माटे तलालीन एवो कोइ पुरुष हरणने मारवा माटे नदीना पाणीथी घेरायला झाडीवाळा स्थानमा झरा तरफ, पाणीना वहेळामां, घास वगेरेना ढगलामां, गोलाकार नदीना वांकाचुका भागमां, अंधारावाळी जग्याए, जंगलमां, पर्वतना एक भागमा रहेला वनमां, पर्वतना डुंगराग प्रदेशमां, वनमां, तथा अनेक वृक्षोवाला वनमा जइ 'ए मृगो छ' एम कही एक मृगना वध माटे खाडा अने जाळ रचे. तो हे भगवन् ! ते पुरुष केटली क्रियावाळो कहेबाय ? [उ.] हे गौतम ! ते पुरुष कच्छमां यावत्-जळ रचे तो कदाच त्रग क्रियावाळो, कदाच चार क्रियावाळो अने कदाच पांच क्रियावाळो कहेवाय. [प्र०] हे भगवन् ! तेनु शु कारण ? ते पुरुष कदाच त्रण कियावालो, चार For Private and Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥९७॥ १शतव उमेशः ८ ॥९७॥ | क्रियावाळो अने पांच कियावाळो कहेवाय. [उ.] ज्यांसुधी ते पुरुष ते जाळने धारण करे, अने मृगोने बांधतो नथी, त्या मारतो नथी, त्यांमुधी ते पुरुष कायिकी, अधिकरणिकी अने प्रादेपिकी ए त्रण क्रियाओथी स्पर्शायलो. वळी ज्यांमुधी ते पुरुष ते जाळने धरी राखे MID अने मृगोने बांधे छ पण मृगोने मारतो नथी त्यांसुधी ते पुरुष कायिकी, अधिकरणिकी, प्राषिकी अने पारितापनिकी ए चार क्रियाथी स्पर्शाएलो छ, वळी ज्यासुधी ते पुरुष ते जाळने धरी राखे मृगोने बांधे अने मृगोने मारे त्यांसुधी ते पुरुष कायिकी, अधिकरणिकी, | प्राद्वेषिकी, पारितापनिकी अने प्राणातिपातक्रिया ए पांच क्रियावाळो कहेवाय छे. माटे हे गौतम ! ते हेतुथी पांच क्रियावाळो कहेवाय २. ॥६६॥ [प्र०] हे भगवन् ! अनेक वृक्षोवाय वनमा कोइ पुरुष तरणाने भेगां करी तेमा आग मूके. तो ते पुरुष केटली क्रियावालो कहेवाय ? [उ.] हे गौतम! ते पुरुष कदाच त्रण, चार अने पांच क्रियावाळो कहेवाय. [म.] हे भगवन् ! तेनु शु कारण ? [उ.] हे गौतम ! ज्यांसुधी ते पुरुष तरणांने भेगां करे त्यांसुधी त्रण क्रियावालो, अने आग मूके परंतु गाळे नहिं त्यांसुधी चार क्रियावाळो, अने आग की चाळे त्यारे ते कायिकी विगेरे पांच क्रियावाळो कहेवाय माटे हे गौतम ! ते कारणथी पूर्व प्रमाणे का छे ॥ ६७ ॥ [प्र०] हे भगवन् ! हरणोथी आजीविका चलावनार, हरणोनो शिकारी अने हरणोना शिकारमा तलालीन एवो कोइ पुरुष हरणने | मारवा माटे कच्छमांवृक्षोवाळा वनमा जइ 'ए मग छे' एम कही कोइ एक हरणने मारवासारं पाणने फेंके छे, तो ते पुरुष केटली क्रियावाळो कहेवाय ? [उ०] हे गौतम ! ते पुरुप कदाच अण, चार, अने पांच क्रियावालो पण कहेवाय. [प्र०] हे भगवन् ! तेनुं | कारण ? [10] हे गौतम ! ते पुरुष बाणने फेंके परंतु मृगने बिधे नहि, मारे नहि, त्यांसुधी अण क्रियावालो, अने ते पुरुष वाणने हा फेंके अने मृगने विधे छे पण मारनो नथी त्यांसुधी चार क्रियावालो, वळी वाणने फेंके, विधे अने मृगने मारे त्यांमुधी पांच रुॐॐॐ For Private and Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥९८॥ रा . उद्देशः ८ न त पर कार ने पुरुष गगना बन्धी सूट ते पुरुष मृगना वैरथा मष्टाची तरवारवडे । | क्रियावालो कहेवाय. माटे हे गौतम ! ते कारणथी कदाच त्रण क्रियावालो, चार क्रियावाळो, अने कदाच पांच क्रियावालो पण | कहेवाय. ॥ ६८ ॥ [प्र०] हे भगवन ! पूर्व प्रकारवाळो कोइ एक पुरुष कन्छमां-यावत् कोइ एक मृगना वध माटे कानसुधी लांबा करेला बाणने प्रयत्नपूर्वक खेचीने उभो रहे. अने बीजो पाछळथी आवीने उभेला पुरुपर्नु माथु पोताना हाथथी तरवारवडे कापी नाखे. पछी ते बाग पूर्वना खेचागथी उछळोने ते मृगते विधे. तो हे भगवन् ! शुं ते पुरुष मृगना वैरथी स्पृष्ट छे के पुरुषना | वैरथी स्पृष्ट हो ? [२०] हे गौतम ! जे पुरुष मृगने मारे छे, ते पुरुष मृगना वैरथी स्पृष्ट छे. अने जे पुरुष पुरुषने मारे छे ते | पुरुष पुरुषना वैरथी स्पृष्ट के. [40] हे भगवन् ! तेनु शु कारण के, 'यावत्-ते पुरुष पुरुपना वैरथी स्पृष्ट ?' [उ.] हे गौतम ! ते निश्चित के के, करातुं होय ते करायूं कहेवाय. संघातुं होय ते संधायु कईवाय. वळातुं होय ते वळायुं कहेवाय अने फेंकातुं होय ते फेंकायूं कहेवाय ? "हे भगान् ! करातुं होप ते करायूं कहेवाय. अने यावत् फेंकातुं होय ते फेंकायुं कहेयाय" माटे हे गौतम! ते हेतुथी जे मृगने मारे से मृगना वैरथी स्पष्ट कोवाय. अने जो मारनार छ मासनी अंदर मरे तो मरनार पुरुष कायिकी यावत्पांच क्रियाओथी स्पृष्ट कहेवाय अने जो मरनार छ मास पछी मरे तो मारनार जण कायिकी यावत्-पारितापनिकी क्रियाथी-चार क्रियाथी सृष्ट कहेवाय. ।। ६९॥ [प्र०] हे भगवन् ! कोई एक पुरुष बीजा पुरुषने बरछीवडे मारे, अथवा पोताना हाथथी तरवारवडे ते पुरुषर्नु माथु कापी नाखे, तो ते पुरुष केटली क्रियावाको कहेवाय ! [उ०] हे गौतम ! ज्यांमधी ते पुरुष पुरुषने परछीवडे मारे अथवा पोताना हाथे तरवारवडे ते पुरुपर्नु माथु कापी नाखे त्यांमुधी ते पुरुष कायिकी, अधिकरणिकी यावत्-प्राणातिपात क्रियावडे-पांच क्रियावडे स्पृष्ट छे. अने ते रुष आसनवधक तथा बीजाना प्राणनी दरकार नहीं राखनार पुरुषवैरथी स्पर्शाय छे. ॥७॥ *** For Private and Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandi व्याख्या ११शत Y . प्रज्ञप्तिः उनः८ ॥९ ॥ दो भंते ! पुरिसा सरिसया सरित्तया सरिव्वया सरिसभंडमत्तोवगरणा अनमनेणं सद्धिं संगाम संगा| मेन्ति, तत्व णं एगे पुरिसे पराइणइ एगे पुरिसे पराइजंइ, से कहमेयं भंते ! एवं ?, गोयमा! सवीरिए पराइ|णइ, अवीरिए पराइ जइ, से केद्वेणं जाव पराइज्जइ, गोयमा ! जस्म णं बीरियवज्झाई कम्माई णो बद्धाई णो पुट्ठाई जाव नो अभिसमन्नागयाई नो उदिन्नाई उवसंताई भवंति से णं पराइणइ, जस्स णं वीरियवज्झाई कम्माई बद्धाई जाव उदिनाईनो उवसंताई भवति से णं पुरिसे पराइजइ, से तेणढे गोयमा! एवं बुचइ सीरिए पराइणइ, अवीरिए पराइजह ।। (मु०७१)॥ | [म.] हे भगवन् ! सरखा, सरखी चामडीवाला, उमरवाळा, द्रव्यवाळा तथा समान उपकरण वाला कोई एक बे' पूरुप होय र अने ते पुरुषो परम्पर लडाइ करे तेमा एक पुरुष जीते अने एक पुरुष हारे, हे भगवन ! ते केवी रीते बने ? [उ०] हे गौतम ! जे पुरुष वीर्यवाळो होय ते जीते छे अने वीर्यरहित होय ते हारे छे. [सं०] हे भगवन् ! तेनुं शुं कारण ? के-एक हारे छ ? [उ.] हे गौतम ! जे पुरुष वीर्यरहित कर्मों नथी बांध्या, नथी स्पश्य, यावत्-नथी प्राप्त कर्यां अने तेना ते कर्मों उदीर्ण नथी, पण उपशांत छे ते पुरुष जीते के. अने जे पुरुषे वीर्यरहित कर्मो बांध्या छ, स्प- छे अने यावत्-तेना ते को उदयमां आवेला छे पण उपशांत नथी ते पुरुष पराजय पामे छे. माटे हे गौतम ! ते कारणथी एम कबुं छे के, वीर्यवानो पुरुष जीते के अने वीर्थरहित पुरुष हारे छे॥७१ ॥ जीवा णं भंते ! किं सीरिया अवीरिया?, गोयमा! सबीरियावि अवीरियावि, से केणटेण. १, गोयमा! For Private and Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१०॥ ५. Kा जीवा दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-संसारसमावनगा य असंसारसमावनगा य, तत्थ णं जे ते असंसारसमावनगा ते ण सिद्धा, सिद्धाणं अवीरिया, तत्थ ण जे ते संसारसमावन्नगा ते विहा पन्नत्ता, तंजहा-सेलेसिपहिव-II नगा य असेलेसिपडिवनगा य, तत्थ ण जे ते सेलेसिपडिवनगा ते णं लद्विीरिगणं सर्वारिया, करणवीरिगणं अवीरिया, तत्थ णं जे ते असेलेसिपडिवनगा ते णं लडिवीरिएणं सीरिया करणवीरिएणं सीरियावि अवी- ॥१०॥ रियावि, से तेणटेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ-जीवा दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-सीरियाधि अवीरियावि । नेरइया णं भंते ! किं सबीरिया अवीरिया ?, गोयमा! नेरइया लxिवीरिएण सीरिया करणवीरिएणं सवीरियावि अवीरियावि, से केणडेणं० १, गोयमा! जेसि ण नेरइयाणं अस्थि उहाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कारपरक्कमे ते |णं नेरइया लद्विवीरिएणवि सीरिया करणवीरिएणवि सीरिया, जेसि ण नेरइयाण नत्यि उहाणे जाव परकमे ते ण नेरइया लद्धिवीरिएणं सीरिया करणवीरिएणं अवीरिया, से तेणटेण । जहा नेरइया एवं जाय पंचिं. दियतिरिक्खजोणिया, मणुस्सा जहा ओहिया जीवा, नवरं सिद्धवजा भाणियब्वा, वाणमंतरजोइसवेमाणिया जहानेरइया, सेवं भंते ! सेवं भंते !त्ति ॥ (सू० ७२) ॥ पढमसए अट्ठमो उद्देसो सम्मत्तो॥ [प्र०] हे भगवन् ! शुं जीवो वीवाला छ ? के वीर्यविनाना छे ? [उ.] हे गौतम ! जीवो वीर्यवान्ता पण छे अने वीर्थरहित । पण छ [प्र.] हे भगवन् ! तेनु शुं कारण ? [उ.] हे गौतम ! जीवो वे प्रकारना कह्या छ-संसारसमापनक अने असंसारसमापनक | तेमा जे जीवो संसारसमापनकहे ते सिद्धो छे, अने तेश्रो वीर्यरहित छे तथा नेमा जे जीवो संसारसमापनक छै ते ये प्रकारना 2.SEX For Private and Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१०॥ |१ शतके उद्देशः ९ RE:शुली | कथा .-शैलप्रतिपन्न अने अशैलप्रतिपन्न. तेमा जे शैलप्रतिपन्न छे ते लब्धीवीर्यवडे सीर्य छे अने करणवीर्यवडे अबीर्य छे. तथा| जेमां जे अशैलेशीप्रतिपन्न छे ते लब्धिवीर्यवडे सवीर्य होय छे. पण करणवीर्यवडे तो सवीर्य तथा अवीर्य पण होय हे. माटे हे गौतम ! ते हेतुथी एम क छ के, जीवो बे जातना छे-वीर्य गळा अने वीर्यविनाना पण छे' [प्र०] हे भगवन् ! शुं नैरयिको वीर्य-1 मावाला छे के वीर्यविनाना ![उ० हे.गौतम! ते नैरयिको लब्धि र्यवडे सबीर्य छे अने करणवीर्यवडे सवीर्य अने अवीर्य पण छे. [३०] हे भगवन् ! तेनु शुं कारण ? [उ०] हे गौतम ! जे नारकीभो उत्थान, कर्म बल, वीर्य अने पुरुषाकार पराक्रम के, ते नरयिको लब्धीवीर्यबडे अने करणवीर्यबडे अबीर्य छे. माटे हे गौतम ! हे हेतुथी पूर्व प्रमाणे जाणवू. ए प्रमाणे यावत्-पंचेंद्रियतिर्यच योनिको सुधीना जीवो विषे नैरयिकोनी पेठे जाणवू अने सामान्य जीवोनी पेठे मनुष्यो विषे जाणवू. विशेष ए के, सिद्धाने वर्जी देवा, सामान्य जीवोमा आवता सिद्धोनी पेठे मनुष्यो न जाणवा. तथा वानव्यतरो ज्योतिषिको अने वैमानिको नैरपिकोनी पेठे जाणवा. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, ते ए प्रमाणे छे, एम कही यावत् विहरे छे ॥ ७२ ॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमत्रना प्रथम शतकमां आठमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. उद्देशकः ९. कहनं भंते ! जीवा गरुयत्तं हवमागच्छन्ति ?, गोयमा! पाणाइवाएणं मुसावाएणं अदिन्ना मेहुण परि०. कोह०माणमाया०लोभ पे० दोस० कलह अन्भक्खाण पेसुन्नतिअरति० परपरिवाय मायामोस०मिच्छादस For Private and Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १ शतके उद्देशः९ ॥१०॥ .. सल्लेणं, एवं स्खलु गोयमा ! जीवा गरुयत्तं हव्वमागच्छति । कहनं भंते ! जीवा लहुयत्तं हव्यमागच्छंति ?, व्याख्या गोयमा! पाणाइयायवेरमणेणं जाव मिच्छादसणसल्लवेरमणेणं, एवं खलु गोयमा! जीवा लइयत्तं हब्धमाग-1 प्रज्ञप्तिः च्छन्ति, एवं संसारं आउलीकरेंति एवं परित्तीकरेंति दीहीकरेंति हस्सीकरेंति, एवं अणुपरियति एवं वीइवयंति, ॥१०२॥ पसत्था चत्तारि अप्पसत्था चत्तारि ॥ (सू०७३ ) ।। [प्र०] हे भगवन् ! जीवो गुरुपणुं शीघ्र केवी रीते पामे छे ? [उ०] हे गौतम ! प्राणाति मातबडे. मृषावादवडे, अदत्तादानवडे, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रेम, द्वेष, कलह, आळदेवी, चाडी खावी, अरतिरतिबडे परनिंदा करवाथी, कपटपूर्वक असत्य बोलवाथी, अने मिथ्यादर्शनशल्यवडे हे गौतम ! ए रीते जीवो शीघ्र भारपणु पामे छे. [प्र०) हे भगवन् ! जीवो लघुपणुं | केवी रीते पामे छ [उ०] हे भगवन् ! प्राणातिपातनो अटकाव करवाथी अने यावत्-विषेकथी हे गौतम ! ए रीते जीवो शीघ्र हळवापणुं पामे छे. ए रीते प्राणातिपातादिना करवाथी-जीवो संसारने वधारे छे, लांबो करे छे, अने संसारमा भम्या करे छे, तथा Pए रीते-प्राणातिपातादिथी निवृत्त थइने जीयो संसार ने घटाडे छ, टुंको करे छे, अने संसारने ओळंगी जाय डे-चार हळवापणु, | संसारने घटाडवो, संसारने टुको करबो अने संसारने ओळंगवो-प्रशस्त छे अने चार-भारेपणु, संसारने बधारयो, संसारने लायो करवो, अने संसारमा भमधूं--अप्रशस्त छे. ॥ ७३ ॥ सत्तमे णं भंते! ओवासंतरे किं गुरुए लहुए गुरुयलहुए अगुरुयलहुए? गोयमा! नो गुरुए नो लहुए नो गुरुयलहुए अगुरुयलहुए । सत्तमे भंते! तणुवाए किं गुरुए लहुए गुरुयलहुए अगुरुयलहुए, गोयमा! नो KAINIK For Private and Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥१०३॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुए, नो लहुए, गुरुयलहुए, नो अगुरुयलहुए। एवं सत्तमे घणवाए सत्तमे घणोदही सत्तमा पुढवी, उवासंतराई सव्वाई जहा सत्तमे ओबासंतरे, (सेसा) जहा तणुबाए, एवं ओवासवायघणउदहि पुढवी दीवा य सागरा वासा । नेरइयाणं भंते! किं गुरुया जाव अगुरुलहुया ?, गोयमा ! नो गुरुया नो लहुया गुरुयलहुयावि अगुरुलहुयावि से केणद्वेणं० १, गोयमा ! वेउब्वियतेयाई पडच नो गुरुया नो लहुया, गुरुयलहुया, नो अगुरुयलहुया, जीवं च कम्मणं च पडूच नो गुरुया नो लहुया नो गुरुयलहुया अगुरुयलहुया, से तेणद्वेणं जाव बेमाणिया, नवरं णाणत्तं जाणियव्वं सरीरेहिं । धम्मत्थिकाए जाव जीवत्थिकाए चंउत्थपरणं । पोग्गलत्थिकाए णं भंते । किं गुरुए। लहुए गुरुयलहुए अगुरुयलहुए ?, गोयमा ! णो गुरुए नो लहुए गुरुयलहुएवि अगुरुयलहुएवि से केणट्टणं० १, गोयमा ! गुरुयलहुपदत्र्वाई पडुच नो गुरुए नो लहुए गुरुयलहुए नो अगुरुयलहुए, अगुरुयलहुयदवाई पडुच नो गुरुए नो लहुए नो गुरुयलहुए अगुरुपलहुए, समया कम्माणि य चउत्थपदेणं । कण्हलेसा णं भंते! किं गुरुया जाव अगुरुयलहुया ?, गोयमा ! नो गुरुया नो लहुया गुरुयलहुयाबि अगुरुयलहुयावि, से केणट्टेणं० ?, गोयमा ! दव्वलेसं पडुच ततियपदेणं, भावलेस पहुच चउत्थपदेणं, एवं जाव सुकलेसा, दिडीदंसणनाणअन्नाणसण्णा चउत्थपदेणं णेयव्वाओ, हेडिल्ला चत्तारि सरीरा नायव्या ततियपदेणं, कम्म य चउत्थयपपणं, मणजोगो वइजोगो चउत्थएणं पदेणं, कायजोगो ततिएणं पदेणं, सागारोवओगो अणागारोवओगो चउत्थपदेणं, सच्चपदेसा सव्वदच्वा सव्वपज्जवा जहा पोग्गलत्थिकाओ, तीतद्धा अणागयद्धा सब्बद्धा चउत्थपूर्ण For Private and Personal Use Only १ शतके उद्देशः ९ ॥ १०३ ॥ Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१४॥ पदेगं । (सू०७४)॥ १ शतके [H०] हे भगवन् ! शुं सादमो अवकाशांतर भारे हे, हळवो छे, भारे हळयो , के अगुरु लघु-भारे हळवा सिायनो छ ? उद्देशः [[उ०] हे गौतम ! ते भारे नथी, हब्बो नथी, भारे हच्चो नथी पण अगुरुलधु-भारे हळवा सिवायनो के. [प्र०] हे भगवन् ! सातमो तनुवात भारे छे, हळवो छे, भारे हळयो छे के अगुरुलघु छ ? [उ०] हे गौतम ! ते भारे नथी, हळवो नथी, भारे हळवो ॥१०४॥ | छे पण अधुरुलघु नथी. ए प्रमाणे सातमो धनवात, धनोदधि, सातमी पृथ्विी अने वा अवकाशांतरो जाणवां. सातमा अवकाशांतर विषे तनुवात विषे जेम की डे-ए प्रमाणे घनोदधि पृथिवी, दीप, समुद्रो, अने क्षेत्रो विषे पण जागवू. [प्र०] हे भगवन् ! शु नैरयिको भारे हे, यावत्- अगुरु रघु के ? [उ०] हे गौतम ! तेओ भारे नयी, हळवा नथी, भारे हळवा छे अने भारे हलया सित्रा| यना पण छे. (प्र०] हे भगवन् ! नेनु शु पारण ? [उ०] हे गौतम नैरपिको वैक्रिय अने तैजस शरीरनी अपेक्षाए भारे नथी, हळवा नथी, अने भारे हळवा सिवायना नथी. परंतु भारेहळवा के. अने जीव तथा कर्मनी अपेक्षाए भारे नथी, हळवा नथी. भारे | हटवा नथी, पण भारे हळवा सिवायना छे. हे गौतम ! ते कारणथी पूर्व प्रमाणे कमु . अने ए प्रमाणे यात्- वैमानिको सुधीर जाणवू. विशेष एके, शरीरोनो भेद जायचो. तथा धर्मास्तिकाय अने यावत्- जीवास्तिकाय चोथा पदवडे जाणवा. अर्थात्- बधा अगुरुलघु जाणवा. [H०] हे भगवन् ! शु पुद्गलास्तिकायगुरु थे, लघु छ, गुरुलघु छे, के आरुलघु के ? [उ.] हे गौतम : पुद्गलास्तिकाय गुरु नथी, लघु नथी पण गुरुलघु , अने अगुरुलघु पण छे. [प्र०] हे भगवन् ! तेतुं शु कारण ! [उ०] हे गौतम ! गुरुलघु द्रव्यनी अपेक्षाए गुरु नथी, लघु नथी, अगुरुलबु नथी पण गूरुलबु छे अने अगुरुलघु दव्योनी अपेक्षाए गुरु नथी, For Private and Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥ १०५ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लघु नथी, गुरुलघु नथी, पण अगुरुलघु के समयो अने कर्मा चोथा पदवडे जाणां अर्थात् तेओ अगुरुलघु . [ प्र० ] हे भग वनू ! शुं कृष्णलेश्या गुरु है, के यावत्-अगुरुलघु छे ? [अ०] हे गौतम! ते गुरु नथी. लघु नयी, पण गुरुलघु के अने अगुरुलघु पण छे. [प्र०] हे भगवन् ! तेनुं शुं कारण ! [3] हे गौतम! द्रव्यलेश्यानी अपेक्षाए त्रीजा पदवडे जाणं अर्थात् व्यश्यानी अपेक्षा कृष्णलेश्या गुरुलघु छे अने भावश्यानी अपेक्षार चोथा पदवडे जाणवुं भावलेश्यानी अपेक्षाए कृष्णलेश्या अरुलघु के ए प्रमाणे यावत् शुक्ललेश्या सुधी जाणवु तथा दृष्टि, दर्शन. ज्ञान, अज्ञान. अने संज्ञाने चोथा पदवडे अगुरुलघु जाणत्रां. हेळना चार शरीर श्रीजा पदवडे गुरुलघु जाणत्रा कार्मण शरीरने चोथा पदवडे गुरुलघु जाणत्रं मन योग वचनयोग, शब्द, साकार उपयोग अने निराकार उपयोग. ए वथा चोथा पदवडे अगुरुलघु जाणवा. तथा काययोग- शरीर, त्रीजा पदवडे गुरुलवु जाणवो. सर्व द्रम्यो, सर्व प्रदेशो अने सर्व पर्यवो पुद्गलास्तिकायनी पेठे जाणवा. अतीतकाळ, अनागतकाळ, अने सर्वकाळ चोथा पदवडे अगुरुलघु जाणवा. ॥ ७४ ॥ से नृणं भंते! लाघवियं अप्पिच्छा अनुच्छा अगेही अपडिबद्धया समणाणं णिग्गंथाणं सत्यं ?, हंता गोयमा ! लाघबियं जात्र पसत्थं ॥ से नूणं भंते! अकोहस्तं अमाणतं अमायतं अलोभत्तं समणाणं निरंगथाणं पसत्यं ?, हंता गोयमा : अकोहत्तं अमाणसं जाव पसत्थं ॥ से नूगं भंते! कंवापदोसे खीणे समणे निग्गंथे अंतकरं भवति अंतिमसारीरिए वा बहुमोहेवि य णं पुत्रि बिहरिता अह पच्छा संकुडे कालं करेति | तओ पच्छा सिज्झति ३ जाव अंत करेड़ ?, हंता गोयमा ! कंवापदो से वीणे जाव अंतं करेति ॥ ( सू० ७५ ) ॥ For Private and Personal Use Only १ शतके उद्देशः ९ ॥१०५ Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१०६॥ [प्र०] हे भगवन् ! लाघव, कमइच्छा, अमूळ अनास्तिक, अने अप्रतिबद्धता; ए बधुं श्रमण निथोने माटे प्रशस्त है | [उ०] हे गौतम ! हा, लाघव, अने यावत्-अप्रतिबद्धता ए बधु निग्रंथो माटे प्रशस्त छ [प्र०] हे भगवन् ! अक्रोधपणु, अमानपर्ण, IRI १ शतके अकपटपणु, अने अलोभपणु, ए बधुं श्रमण निग्रंथोना माटे प्रशस्त छ ? [उ.] हे गौतम : हा, अक्रोधपणुं, अमानपणुं, ए बधुं उद्देशः ९ प्रशस्त छ. [प्र.] हे भगवन् ! कांक्षाप्रदोषक्षीण थया पछी श्रमण निग्रंथ अंतकर अने अंतिम शरीरबालो थाय ? अथवा पूर्वनी | ॥१०६ अवस्थामा बहु मोहबानो थइ विहार करे अने पछी संवरयुक्त थइने काल करे तो पछी सिद्ध थाय ? यावत्-सर्व दुःखना नाशने करे ? [उ०] हे गौतम ! हा, कांक्षाप्रदोषक्षीण थया पछी यावत्-सर्व दुःखना नाशने करे. ॥ ७५॥ अण्णउत्थियाणं भंते! एवमाइक्वंति एवं भासेंति एवं पण्णवेंति एवं परूवेति-वं खलुएगे जीवे पगेणं | समपणं दो आउयाई पक.रेति, तंजहा-इहभवियाउयं च परभविपाउयं च, जे समयं इहभवियाउयं| पकरेति तं समयं परभधियाउयं पकरेति, जं समयं परभवियाउयं पकरेति तं समयं इहभवियाउयं पकरेनि, इहभवियाउयस्म पकरणयाए परमवियाउयं पकरेइ, परभवियाउयस्स पकरणयाए इहभवियाउयं पकरेति, एवं खलु एगे जीवे एगेणं ममाणं दो आउयाई पकरेति, सं०-इहभवियाउयं च परभवियाउयं च, से कहमेवं भंते ! एवं?, (ब) खलु गोयमा ! जपणं ते अण्णउत्थिया एवमातिक्खंति जाव परभवियाउयं च, जे ते एबमाम | मि ते एबमाइंस, अहं पुण गोयमा! एवमाइक्वामि जाव परूवेमि-एवं खलु गगे जीवे एगणं समाणं गगं| आउयं पकरेति, तं०-इहभवियाउयं वा परभदियाउयं वा, ज समयं इहभवियाउयं पकरेति णोतं समय For Private and Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१०७॥ १ शतके उद्देशः९ ॥१०॥ परभवियाउयं पकरेति, समयं परभवियाउयं पकरेइ णोतं समयं इहवियाउयं पकरेइ, इहभवियाउयस्स पकरणताए णो परभवियाउयं पकरेति, परभवियाउयस्स पकरणताए पो इहभवियाउयं पकरेति, एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एग आउय पकरेति, तं०-इहभवियाउयं वा परभवियाउयं वा, सेवं भंते ! सेवं भंते!त्ति भगवं गोयमे जाव विहरति ॥ (म० ७६)॥ [प्र.] हे भगवन् ! अन्य मतावलंबीओ आ प्रमाणे कहे छे, आ प्रमाणे भाषे छे, आ प्रमाणे जणावे छे अने आ प्रमाणे प्ररूपे के, एकजीव एक समये चे आयुष्य करे छे. ते आ प्रमाणे-१ आ भवनु आयुष्य अने परभवर्नु आयुष्य. जे समये आ भवनुं आयुष्य करेछे ते समये परभवन आयुष्य करे छे अने जे समये परभवतुं आयुष्य करे ले ते समय आ भवतुं आयुष्य करे छे आ भवन आयुष्य करवाथी परभवनुं आयुष्य करे छे अने परभवनुं आयुष्य करवाथी आ भवन आयुष्य करे छे. ए प्रमाणे एक जीव एक समये ये आयुष्य करे . आ भवनुं आयुष्य अने परभवनुं आयुष्य. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे केवी रीते छे? [उ०] हे गौतम! अन्यतीर्थिकर जे ए प्रमाणे कहे छे यावत्-परभवतुं आयुष्य. तेओए जे प्रमाणे कयुं छे ते खोटुं कई छे. वळी हे गौतम ? हुँ ए प्रमाणे कहुं छ के, एक जीव एक समये एक आयुष्य करे छे. अने ते आ भवतुं आयुष्य करे छे. अथवा परभवनुं आयुष्य को ले. जे समये आ भवनुं आयुष्य करे छे ते समये परभत्रनुं आयुष्य नयी करतो अने जे समये परभवतुं आयुष्य करे छ, ते समये | आ भवनुं आयुष्य करतो नथी. तथा आ भवनुं आयुष्य करवायी परभवतुं आयुष्य करतो नयी अने परभवन आयुष्य करवाथी आ भवतुं आयुष्य करतो नथी. अने ए प्रमाणे एक जीव एक समये एक आयुष्य करे -आ भवतुं अथवा परभवनुं आयुष्य. For Private and Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie | हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे हे. एम कहीने भगवंत गौतम रिहरे के ॥ ७६ ।। व्याख्या १ शतके तेणं कालेणं तेणं समएणं पासावधिले कालासवेसियपुत्ते णामं अणगारे जेणेव थेरा भगवंतो सेणेव उवाप्रचप्तिः उद्देशः ५ गच्छति २त्ता थेरे भगवंते एवं वयासी-थेरा सामाइयं ण जाणंति थेरा सामाइयस्स अट्ठ ण याणंति थेरा ॥१०८॥ | पञ्चक्खाणं ण याणंति थेरा पञ्चक्रवाणस्स अहं ण याणंति धेरा संजमं ण याणंति थेरा संजमस्स अटुंण या- 11१०८॥ गंति थेरा संवरं ण याणंति घेरा संवरस्स अटुंण याणंति थेरा विवेगण याणंति थेरा विवेगस्स अहं ण याणं& ति थेरा विउस्सग्गं ण याणंति थेरा विउस्सग्गस्म अटुंण याणंति ६ ताणं ते घेरा भगवंतो कालासर्वसि यपुत्तं अणगारं एवं बयासी-जाणामोणं अजो सामाइयं जाणामो णं अजो! सामाइयस्स अटुं जाव जाणामो| घाणं अजो! विउस्सगस्स अटुं । तए णं से कालासवेसियपुत्ते अणगारे धेरे भगवंते एवं बयासी-जति णं अ जो! तुम्भे जाणह सामाइयं जाणह सामाइयस्स अटुं जाव जाणह विउस्सग्गस्स अटुं किं भे अजो! सामाइए? किं भे अजो सामाइयस्स अट्टे ? जाव किं भे विउस्सगस्स अहे?, ताणते थेरा भगवंतो कालासवेसियपुत्तं अणगारं एवं वयासी-आया णे अजो! सामाइए आया णे अजो! सामाइयस्स अट्टे जाव विउस्सग्गस्स अट्टे । तए णं से कालाससियपुत्ते अणगारे थेरे भगवंते एवं वयासी-जति भे अजो! आया सामाइए आया सामाइयस्स अट्ट एवं जाव आया विउस्सगस्स अट्टे अवहट्ट कोहमाणमायालोभे किमढे अजो: गरहह ?, कालास. संजमट्ठयाए, से भंते ! किंगरहा संजमे अगरहा संजमे ?, कालास! गरहा संजमे नो अगरहा संजमे, गरहावि For Private and Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १शतके उद्देशः २ यणं सम्वं दोसं पविणेति, सब्वं वालियं परिणाए, एवं खुणे आया संजमे उवहिए भवति, एवं खुणे आया व्याख्या संजमे उवचिए भवति, एवं खुणे आया मंजमे उपट्टिए भवति, एत्थ से कालामवेसियपुत्ते अणगारे संबुद्धे प्रज्ञप्तिः थेरे भगवते वंदति णमसति २ एवं बयासी-एएसि णं भंते ! पया पुन्धि अण्णाणयाए असवणयाए अयोहि॥१०९॥ याए अणभिगमेणं अदिवाणं अस्सुयाणं असुयाण अविण्णायाण अब्बोगडाणं अव्वोच्छिन्नाणं अणिज्जूताणं अणुवधारियाणं एयमटुं जो मद्दहिए णो पत्तिइएणो रोइए, इयाणि भंते ! एतेसिं पयाणं जाणणया सत्रणयाए बोही' अभिगमेणं दिवाण सुयाणं सुयाणं विणायाणं वोगडाणं वोकिछन्नाणं णिज्जूदाण उवधारियाणं एयमटुं सद्दहामि पत्तियामि रोएमि, एवमेयं से जहेयं तुम्भे वदह, तए ण ते थेरा भगवंतो कालामवेसियपुत्तं अणगारं ४ एवं वयासी-सहहाहि अजो ! पत्तियाहि अजो! रोहि अज्जो ! से जहेयं अम्हे वदामो । तए णं से कालामवे सियपुत्ते अणगारे धेरे भगवंतो वंदह नमसह २ गवं वदासी-इच्छामि गं भंते ! तुम्भं अंतिए चाउजामाओ ध. म्माओ पंचमहन्याइयं सपडिकमणं धम्म उवसंपनित्ता ण बिहरित्ता, अहासुहं देवाणुपिया! मा पडिबंध । तए णं से कालासवेसियपुत्ते अणगारे धेरे भगवंते बंदइ नमंसह वंदित्ता नमंसित्ता चाउज्जामाओ धम्माओ |पंचमहब्वइयं सपडिकमणं धम्म उबसंपजित्ता णं विहरइ । तए ण से कालामवेसियपुत्ते अणगारे बहणि |वासाणि सामपणपरियागं पाउणइ जस्सऽहाए कीरइ नग्गभावे मुंडभावे अण्हाणयं अदंतधुवणयं अच्छत्तयं अणोराहणयं भूमिसेजा फलहसेजा कट्ठ लेजा केसलोओ बंभचेरबासो परघरपवेसो लद्धावलद्वी उच्चावया गा. For Private and Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १ शतके उद्देशः का॥११॥ मकंटगा घावीसं परिसहोवसग्गा अहियासिज्जंति तम आराहेइ २ चरिमेहिं उस्सासनीसासेहिं सिद्धे बुद्धं व्याख्या मुके परिनिब्बुडे सव्वदुक्खप्पहीणे ॥ (सू०७७)। प्रज्ञप्तिः का ते काले ते समये पाश्चनाधना वंशमां थएला कालास्यवेषिपुत्र नामना अनगारे जे तरफ स्थविर भगवंतो हता. ने तरफ जह ॥११०॥ | ते स्थविर भगवंतोने आ प्रमाणे का केः-हे स्थविरो! तमे सामायिक जाणता नथी, सामायिकनो अर्थ जाणता नधी तमे पञ्चक । जाणता नथी. पञ्चक्खाणनो अर्थ जाणता नथी. संयमने जाणता नथी, संयमना अर्थने नथी जाणता. संवर जाणता नथी, संवरना अर्थने नथी जाणता. तमे विवेक जाणता नथी. विवेकना अर्थने जाणता नथी. व्युत्सर्गने जाणता नथी. अने व्युत्सर्गना अर्थन नथी जाणता. त्यारे ते स्थविर भगवंतोए कालास्यवेषिपुत्र नामना अनगारने आ प्रमाणे कडं के, हे आर्य ! सामायिकने जाणीए छीए सामायिकना अर्थने जाणीए छीए. हे आर्य व्युत्सर्गने जाणीए छीए अने रयुत्सर्गना अर्थने जाणीए छीए. [म.] त्यारे ते कालास्यवेषिपुत्र नामना अनगारे ते स्थविर भगवंतोने आ प्रमागे कमु के, हे आर्यो ! जो तमे सामायिकने सामायिकना अर्थने यावत्-व्युत्सर्गना अर्थने जाणो छो, तो हे आर्यो ! सामायिक ए शु? सामायिकनो अर्थ ए शु? अने यावत्-हे आर्यो ! व्युत्सर्गनो अर्थ ए शुं? [उ०] त्यारे ते स्थविर भगवंतोए ते कालास्यवेषिपुत्र नामना अनगारने आ प्रमाणे कधु के-दे आर्य ! अमारो आत्मा ए सामायिक के अने एज सामायिकनो अर्थ छे. तथा यावत्-एज व्युत्सर्गनो अर्थ पण छे. [प्र०] त्यारपछी ते कालास्यवेपिपुत्र | नामना अनगारे ते स्थविर भगवंतोने आ प्रमाणे कयु के, हे आर्यो ! जो आत्मा ए सामायिक छे, आत्मा ए सामायिकनो अर्थ लके अने ए प्रमाणे यावत्-आत्मा ए व्युत्सगनो अर्थ थे, तो तमे क्रोध, मान माया अने लोभनो त्याग करी शा माटे ते क्रोध C For Private and Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | विगेरे निदो छो? [उ०] हे कालास्यवेषिपुत्र ! संयमने माटे अमे क्रोधादिकने निंदीए छीए. [प्र०] हे भगवंत शुं गर्दा ए संयम व्याख्या १ शतके | छे के अगर्दा ए संयम छ ? [उ०] हे कालास्यवेषिपुत्र ! गर्दा ए संयम है. पण अगर्दा ए संयम नथी. गर्दा बधा दोषोनो नाम प्रज्ञप्तिः करे डे-आत्मा सर्व मिथ्यात्वने जाणीने गर्दा द्वारा बधा दोषोनो नाश करे छे अने ए प्रमाणे अमारो आत्मा संयममा स्थापित छ, उद्देशः ९ ॥१११॥ नए प्रमाणे अमारो आत्मा संयममा पुष्ट छे, ए प्रमाणे अमारो आत्मा संयममा उपस्थित थे. हवे अहीं ते कालास्यवेषिपुत्र अनगा ॥१११॥ संबुद्ध यया अने तेमणे ते स्थविर भगवंतोने वांद्या, नमस्कार कर्यो. पछी ते कालास्यवेषिपुत्र अनगारे आ प्रमाणे को के, हे भग- वंतो! पूर्वे-पहेला-ए पदोने नहीं जाणवाथी, श्रुतरहितपणुं होबाथी, अबोधिपणुं होबाथी, अनभिगम होवाथी नहीं जोएला होयाथी, | चिंतवेला न होवाथी, नहीं सांभळबाथी, विशेष नहीं जाणवायी, कहेला नहीं होवाथी, अनिर्णीत होवाथी, उद्धरेला न होबाथी, अने ए पदो अनवद्दारित होवाथी ए अर्थमां में श्रद्धा करी न हती, प्रीति करी न हती, रुची करी न हती, अने हे भगवंतो! मणा ए पदो जाण्या होवाथी श्रुतसहितपणुं होवाथी, बोधिपण होवाथी, अभिगम होवाथी, जोपला होवाधी, चिंतबेला होवाथी, सांभळ्या होवाथी, विशेष जाण्या होवाथी, कहेला होवाथी, निर्णीत होवाथी, उद्धरेलां होवाथी, अने ए पदो अवधारीत होवाथी ए ६ अर्थमा हुं श्रद्धा करूं छु, प्रीति करु छ, रुचि करुं छ. तमे जेम ए कहो छो ते ए ए प्रमाणे छे. त्यारे ते स्थविर भगवंतोए कालास्य वेषिपुत्र अनगारने आ प्रमाणे कयुं के, हे आर्य ! जेम अमे ए कहीए छीए तेम तुं श्रद्धा राख, प्रीति राख अने रुचि राख. त्यारपछी ते कालास्सवेषिपुत्र अनगारे ते स्थविर भगवंतोने वांद्या, नमस्कार को अने ककुंके हे भगवंतो तमारी पासे चार महाव्रतवाळो धर्म ( त्यजी) प्रतिक्रमणसंयुक्त पांच महाव्रतवाको धर्म प्राप्त करी विहरवा इच्छु छ, हे देवानुप्रिय ! जेम सुख थाय तेम कर,I XXNOK For Private and Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir IMIL व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥११॥ | विलंब न कर. पछी ते कालास्यवेपिपुत्र अनगारे ते स्थविरोने चांदी, नमस्कार करी अने चतुर्थ महात्रतयुक्त धर्म त्यजीने प्रतिक्रमण-12 युक्त एवा पंचमहाव्रतवाळा धर्मने अंगीकार कर्यो. अने तेम करी ते अनगार विहरे छे. त्यारपछी ते कालस्यवेषीपुत्र नामना अनगार |घणा वर्षो सुधी साधुपणु पाल्यु. अने जे प्रयोजनसारं नग्नपणुं, मुंडितपणुं, स्नान न करवू, दातण न करवू, छत्र न रावबु, जोडा । पहेरवा, भोंय संथारो करवो, पाटीया उपर सु, लाकडापर सुq, केशनो लोच करवो, ब्रह्मचर्यपूर्वक रहे, ( भिक्षा माटे) बीजा घरे जवू ? क्याय मळे अथवा न मळे अथवा ओछु मळे, अनुकूल अथवा प्रतिकूल इंद्रियोने कंटकरुप एवा बावीस परीपहो | सहन करवा. ए बधुं कर्यु ते प्रयोजनने ते कालास्यवेषिपुत्र अनगारे आराध्यु अने ते अनगार छेल्ला उच्छ्वास निःश्वासबड़े सिद्ध । थया, बुद्ध धया, मुक्त थया, परिनिवृत धया अने सर्व दुःखथी मुक्त थया ( अत्रे बहुवचन मानार्थ लख्या छ.)॥ ७७॥ भंतेत्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति २ एवं वदासी-से नूर्ण भते! सेट्टियस्स य है तणुयस्स य किवणस्स य खत्तियस्स य समं चेव अपञ्चक्रवाणकिरिया कजइ ?, हेता गोयमा ! सेवियस्स य जाव अपञ्चक्रवाणकिरिया कजइ, से केण?णं भंते ?, गोयमा! अविरतिं पडुच्च से तेण. गोयमा! एवं वुच्छह सेट्टियस्स य तणु० जाव कजइ ।। (सू० ७८)॥ [प्र०] हे भगवन् ! एम कही भगवंत गौतमे श्रमा भगवंत महावीरने बांदी, प्रणाम करी आ प्रमाणे काबू के:-हे भगवन् ! एक शेठ, एक दरिद्र, एक लोभीओ, अने एक क्षत्रिय राजा ए बधा एक साथे, अप्रत्याख्यान किया करे ? [उ०] हे गौतम! हा, शेठ अने यावत्-ए बधा एकी साथे अप्रत्याख्यान क्रिया करे. [प्र०हे भगवन् ! तेनुं शुं कारण ? [उ.] हे गौतम ! अविरतिने For Private and Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १ शतके उमेशः ९ ॥११॥ व्याख्य आश्रीने एम को छे ते एक शेठ, एक दरिद्र अने ए बघा यावत्-एक साथे अप्रत्याख्यान क्रिया करे . ।। ७८ ।। । आहाकम्म भुजमाणे समणे निग्गंथे किं बंधइ किं पकरेह किं चिणाइ किं उचचिणाइ ?, गोयमा! आहाप्रज्ञप्तिः कम्मं णं भुजमाणे आउयबजाओ सत्त कम्मप्पगडीओ सिढिलबंधणबद्धाओ धणियबंधणबद्धाओ पकरेइ जाब ॥११॥ अणुपरियहइ, से केणटेणं जाब अणुपरियहह?, गोयमा! आहाकम्मं णं भुंजमाणे आयाए धम्म अइक्कमइ, आयाए धम्मं अइकममाणे पुढविकायं णावकंवा जाव तसकायं णावखइ, जेसिपि य णं जीवाणं सरीरा आहारमाहारेइ तेवि जीवे नावकखइ, से तेण?णं गोयमा एवं वुच्चइ-आहाकम्म णं भुजमाणे आउयवजाओ सत्त कम्मपगडीओ जाव अणुपरियहइ ।। फासुएसणिज्जणं भंते ! भुंजमाणे किंबंधइ जाव उवचिणाइ ?, गोयमा! एसणिज्न णं भुंजमाणे आउयवजाओ सत्त कम्मपयडीओ धणियधंधणबद्धाओ सिढिलबंधणबद्धाओ पकR. हा संधुडे णं, नवरं आउयं च णं कम्मं सिय बंधह सिय नो बंधइ, सेसं तहेब जाव वीईवयइ, से केणणं जाव वीईवयइ ?, गोयमा! फासुएसणिज्नं भुंजमाणे समणे निग्गंथे आयाए धम्मं नो अइक्कमइ, आयाए न्म अंणइकममाणे पुढविकाइयं अवर्कवति जाव तसकायं अवकंवइ, जेसिपि य णं जीवाणं सरीराई आहादारे तेऽवि जीवे अवकखति, से तेणडेणं जाव बीईवयइ ॥ (सू०७९)॥ म.] हे भगवन् ! आधाकर्म दोषवाळा अन्नने खातो श्रमण निग्रंथ शुं बांधे छ ? शुं करे छे ? शानो चय करे छे अने शानो उपचय करे छे ? [उ०] हे गौतम आधाकर्म दोषवाला अनने खातो श्रमण निग्रंथ आयुष्य सिवायनी अने पांचे बंधने बंधाएली *SHAR For Private and Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आधाकर्म दोषवाकारतो नयी अने यावत् हेतुथी एम को व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥११४॥ १ शतके शः९ | सात कर्मप्रकृतिओने मजबूत बंधने बांधली करे छे, अने यावत् संसारमा वारंवार भमे थे. [प्र०] हे भगवन् ! तेनुं हुं कारण ? के यावत्-ने संसारमा वारंवार भमे के ? [उ०] हे गौतम ! आधाकर्म दोषयाला अन्नने खातो श्रमण निग्रंथ पोताना धर्मने ओळंगी जाय छे. अने पोताना धर्मने ओळंगतो ते श्रमण पृथिवीकायना जीवनी दरकार करतो नथी अने यावत्-त्रसकायना जीवनी दरकार | करतो नथी. तथा जे जीवोना शरीरने ते खाय छे ते जीवोनी पण दरकार करतो नथी. माटे हे गौतम ! ते हेतुथी एम कहुं छे के आधाकर्म दोषवादा अन्नने खातो श्रमण आयुष्य सिवायनी सात प्रकृतिओने मजबूत बांधे छे. अने संसारमा वारंवार भमे छे. [प्र०] हे भगवन् ! प्रासुक अने निर्दोष आहारने खातो श्रमण निग्रंथ शुं बांधे छे ? अने यावत्-शेनो उपचय करे छ ? [उ.] हे | गौतम ! प्रामुक अने निर्दोष आहारने खातो श्रमण निथ आयुष्य सिवायनी अने मजबूत बंधाएली सात कर्म प्रकृतिओने पोची | करे छे. तथा एने संवृत अनगारनी पेठे जाणवो. विशेष ए के, आयुष्य कर्मने कदाचित् बांधे है, अने कदाचित् नथी बांधतो. अने बाकी नधुं तेज प्रमाणे जाणवु यावत् संसारने ओळंगी जाय छे. [प्र०] हे भगवन् ! तेनुं शु कारण ? के, ए यावत्-संसारने BIओळंगी जाय छे ? [उ.] हे गौतम ! प्रामुक अने निर्दोष आहारने खातो श्रमण निग्रंथ पोताना धर्मने ओळंगतो नथी, अने पोताना धर्मने नहीं ओळंगतो ते श्रमण निग्रंथ पृथिवीकायिक जीवोनी दरकार करे ले, यावत्-त्रसकायना जीवोनी दरकार करे छे, अने जे द जीवोनां शरीरोनो ते आहार करे , ते जीवोनी पण ते दरकार करे . माटे ते हेतुथी यावन्-ते साधु संसारने ओळगी | जाय के. ॥७९॥ से नूर्ण भंते ! अधिरे पलोहा, नो थिरे पलोदृति, अथिरे भजइ, नो थिरे भजइ, सासए बालए यालियत्तं । For Private and Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्राप्तिः ॥११॥ १ शतके उद्देशः१. ११५॥ असासयं? सासए पंडिए पंडियत्तं असासयं ?, हंता गोयमा! अधिरे पलोइ जाव पंडियत्तं असासयं । सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति जाव विहरति ॥ (सू०८०) ॥ नवमो उद्देसो सम्मत्तो॥१-९॥ - [प्र०] हे भगवन् ! अस्थिर पदार्थ बदलाय के ? स्थिर पदार्थ नथी बदलातो? अस्थिर पदार्थ भांगे १ स्थिर पदार्थ नयी A भांगतो बालक शाश्वत के ? बालरूपणुं अश्वत छ ? पंडित शाश्वत छ ? अने पंडितपणुं अशाश्वत छे. [उ०] हे गौतम ! अस्थिर पदार्थ बदलाय छे अने पंडितपणु अशाश्वत छे. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे , हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, एम कही यावत् | विहरे छे. ॥८ ॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद्भगवतीसूत्रना प्रथम शतकमा नवमा उद्देशानी मूलार्थ संपूर्ण थयो. उद्देशक १०. अन्नउत्थिया णं भंते ! एवमाइक्खंति जाव एवं परूवेति-एवं खलु चलमाणे अचलिए जाव निजरिजमाणे अणिबिण्णे, दो परमाणुपोग्गला एगयओ न साहणंति, कम्हा दो परमाणुपोग्गला एगततो न साहणंति?,४ दोण्हं परमाणुपोग्गलाणं नथि सिणेहकाए, तम्हा दो परमाणुपोग्गला एगयओन साहणंति, तिनि परमाणुपोग्गला एगयओ साहणंति, कम्हा तिन्नि परमाणुपोग्गला एगयओ साहणति ?, तिण्हं परमाणुपोग्गलाणं ४ अत्थि सिणेहकाए, तम्हा तिण्णि परमाणुपोग्गला एगयओ सा०, ते भिजमाणा दुहावि तिहावि कजंति, For Private and Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥ ११६ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दुहा कमाणा एगयओ दिवड्ढे परमाणुपोग्गले भवति, एगयओवि विड्ढे पर० पो० भवति, तिहा कज्जमाणा तिष्णि परमाणुपोग्गला भवंति एवं जाव चत्तारि पंच परमाणुपो० एगयओ साहणित्ता दुक्खत्ताए कति, | दुक्खेऽवि यणं से सासए सया समियं उवचिजह य अवचिज्जइ य । पुवि भासा भासा, भासिनमाणी भासा अभासा, भासासमयवीतितं च णं भासिया भासा, जा सा पुवि भासा भासा, भासिज्माणी भासा अभासा, भासासमयवीतितं च णं भासिया भासा, सा किं भासओ भासा अभासओ भासा ?, अभासओ णं सा भासा, नो खलु सा भासओ भासा । पुत्रि किरिया दुक्खा, कज्ज़माणी किरिया अदुक्खा, किरियासमयवीतितं च पणं कडा किरिया दुक्खा, जा सा पुव्विं किरिया दुक्खा कलमाणी किरिया अक्खा किरियासमयवीत चणं कडा किरिया दुक्खा सा किं करणओ दुक्खा अकरणओ दुक्खा ?, अकरणओ णं सा दुक्खा, णो खलु सा अकरणओ दुक्खा, सेवं वत्तव्वं सिया-अकिचं दुक्खं अफुसं दुक्खं अकलमाणकडे दुक्खं अकडु अकहु पाणभूयजीवसत्ता वेदणं वेदंतीति वक्तव्वं सिया ॥ से कहमेयं भंते ! एवं १, गोयमा ! जण्णं ते अण्णउत्थिया एवमातिक्खति जाव वेदणं वेदतीति वक्तव्वं सिया, जे ते एवमाहंसु मिच्छा ते एवमाहंस, अहं पुण गोयमा ! एवमातिक्खामि एवं खलु चलमाणे चलिए जाब निज्ारिजमाणे निज्जिपणे, दो परमाणुपोग्ला एगयओ साहणंति, कम्हा दो परमाणुपोग्गला एगयओ साहण्णंति ?, दोन्हं परमाणुपोग्गलाणं अत्थि सिणेहकाए, तम्हा दो परमाणुपोग्गला एगयओ सा०, ते भिज्जमाणा दुहा कज्जति, दुहा कज्ज़माणे एगयओ पर० For Private and Personal Use Only ९ शतके उद्देशः १> ।।११६।। Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥११७।। उद्देश:१ पोग्गले, एगयओ प० पोग्गले भवंति, तिणि परमा० एगओ साह०, कम्हा तिन्नि परमाणुपोग्गले पग। 14१शत सा० ?, तिण्हं परमाणुपोग्गलाणं अत्थि सिणेहकाए, तम्हा तिणि परमाणुपोग्गला एगयओ साहणंति, ते । भिजमाणा दुहावि तिहावि कज्जति, दुहा कन्जमाणा एगो परमाणुपोग्गले एगयओ दुपदेसिए स्वंधे भवति, तिहा कजमाणा तिणि परमाणुपोग्गला भवंति, एवं जाव चत्तारिपंचपरमाणुपो० एगओ साहणित्ता २ खंध ॥११७. त्ता कजति, खंधेवि य णं से असासए, सया समियं उवचिजह य अवचिजइय। पुचि भासा अभासा भासिजमाणी भासा २ भासासमयवीतिकतं च णं भासिया भासा अभासा, जा सा पुबि भासा अभासा भामिजमाणी भासा २ भासासमयबीतिकंतं च णं भासिया भासा अभासा, सा किं भासओ भासा अभासओ भासा?, भासओ णं भासा, नो स्वास्लु सा अभासओ भासा । पुवि किरिया अदुक्खा जहा भासा तहा | भाणियव्वा किरियावि जाव करणओ णं सा दुक्खा, नो खलु सा अकरणओ दुवा, सेवं वत्तव्वं सिया-किच्चं | फुस दुक्ख कज्जमाणकडं कटु २ पाणभूयजीवसत्ता वेदणं वेदेंतीतिवत्तव्वं सिया ॥ (सू०८१)॥ | हे भगवन् ! अन्यतीर्थिको आ प्रमाणे कहे के यावत्-आ प्रमाणे प्ररूपे छे के "चालतुं होय ते चान्यं न कहेवाय अने निलगतुं ते निर्जरायु न कहेवाय." वे परमाणु पुद्गलो एक एकन चोंटता नथी. वे परमाणु पुद्गलो एक एकने शा माटे चोंटता नवी? वे परमाणु पुद्गलोमा चीकाश नथी माटे ते वे परमाणु पुद्गलो एक एकने चोंटता नथी.” त्रण परमाणु पुद्गलो एक एकने परस्पर चोटी-जाय छे. त्रण परमाणु पुद्गलों एक एकने परस्पर चोंटे हे तेनुं शुं कारण.१ त्रण परमाणु पुदूगलोमां चीकाश होय S AHARX For Private and Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रज्ञप्तिः आवे हे. अने जो ते त्रण परमाणु पगला विष पण जाणवू. “पांच पांच परमाण के उद्देशः१. ११८॥ तथा अप के. माटे ते त्रण परमाणु पुद्गलो एक एकने परस्पर चोंटी जाप ने, बळी जो तेना बे भाग पण थइ शके छे अने त्रण भाग पण व्याख्या दि यह शके छे, जो ते त्रण परमाणु पुद्गलना वे भाग करवामां आवे ते एक तरफ दोढ परमाणु आवे छे अने बीजी तरफ पण दोढ | परमाणु आवे छे. अने जो ते त्रण परमाणु पुद्गलना त्रण भाग करवामां आवे तो प्रणे परमाणु पुद्गलो एक एक एम जुदाजुदा ॥११॥ थइ जाय . ए प्रमाणे यावन-चार परमाणु पुद्गलो विषेपण जाणवू. "पांच पांच परमाणु पुद्गलो एकएकने परस्पर चोंटी जायछे अने दुःखपणे कर्मपणे-थाय छे ते दुःख कर्म शाश्वत छे अने हमेशा सारी रीते उपचय पामे छे तथा अपचय पामे छे." "बोलवाना समयनी पूर्वे जे भाषाना पुद्गलो छ जे भाषा छे बोलवाना समयनी जे भाषा छे ते अभाषा के अने बोलवाना समय पछीनी-जे (भाषा) बोलाएली छे ते भाषा छे. "जे ते पूर्वनी भाषा भाषा छे, बोलती भाषा अभाषा के अने बोलबाना समय पछीनी जे (भाषा) बोलाएली छे ते भाषा छे, तो शुं ते बोलता पुरुषोनी भाषा के ? [उ०] अणबोलता पुरुषोनी भाषा छे. पण ते बोलता पुरुषनी तो भाषा नथीज" जे ते पूर्वनी क्रिया के ते दुःखहेतु छे. कराती क्रिया दुःख हेतु नथी. अने करवाना समय पछीनी जे क्रिया छे ते | दुःख हेतु ळे तो शुं ते करणथी दुःख हेतु छे के अकरणथी दुःख हेतु छ ? [उ०] ते अकरणथी दुःख हेतु छे पण करणथी दुःख | हेतु नथीज. ते ए प्रमाणे वक्तव्य के. "अकृत्य दुःख छ, अस्पृश्य दुःख डे-अने अक्रियमाणकृत दुःख के नेने नहीं करीने, नहीं करीने प्राणो, भूतो, जीवो अने सत्वो वेदनाने वेदे छे ते ए प्रमाणे." [म.] हे भगवन ! पते केवी रीने ए प्रमाणे होय? [उ०] हे गौतम ! जे ते अन्यतीथिको कहे छ के, वेदनाने वेदे, एम कहेवाय. तेओर जे ए प्रमाणे का छे. ते खोटुं कां छे. वळी हे गौतम ! हुं एम कहुं छं के, चालतुं होय ते चाल्धु कहेवाय अने यावत्-निर्जरातुं होय ते निर्जरायु कहेवाय. "बे परमाणु For Private and Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥११९॥ ॥११९॥ पुद्गलो एक एक परस्पर चोटी जाय छे. अने ते बे परमाणु पुद्गलो परस्पर चोंटी जाय छे तेनुं शुं कारण ? बे परमाणु पुद्गलोमां चीकाश छे, माटे बे परमाणु एक एकने परस्पर चोंटी जाय छे. अने ते वे परमाणु पुद्गलोना वे भाग थइ शके छे. जो ते बे परमाणु पुद्गलोना चे भाग करवामां आवे तो एक तरफ एक परमाणु पुद्गल अने बीजी तरफ एक परमाणु पुद्गल छे." त्रण परमाणु पुद्गलो एक एक परस्पर चोंटी जाय छे. अने ते त्रण परमाणु पुद्गलो परस्पर चोंटी जाय छे तेनु शु कारण ? व्रण परमाणु पुद्गलोमां चीकाश छ माटे त्रण परमाणु पुद्गलो एक एक परस्पर चोंटी जाय छे, अने ते त्रण परमाणु पुद्गलना बे तथा त्रण भाग थई शके छे. जो तेना बे भाग करवामां आवे तो एक तरफ एक परमाणु पुद्गल आवे छे अने एक तरफ वे प्रदेशवाळो एक स्कंध | आवे छे. जो तेना त्रण भाग करवामां आवे तो एक एक एम त्रणे परमाणुओ जुदा जुदा थइ जाय छे. आ प्रमागे चार परमाणुओ | संबंधे पण जाणवू." पांच परमाणु पुद्गलो एक एक परस्पर चोंटी जाय छे. अन ते परस्पर चोंटो गया पछी एक स्कंधरुपे बनी |जाय छे तथा ते स्कंध अशाश्वत छे अने हमेशा सारी रीते उपचय पामे छे, अपचय पामे छे. "पूर्वनी भाषा अभाषा हे, बोलाती भाषा भाषा छे. अने बोल्या पछीनी भाषा अभाषा डे" जे पूर्वनी भाषा अभाषा डे, बोलाती भाषा अभाषा छे अने बोल्या पछीनी अभाषा ने. तो शुं ते बोलता पुरुषनी भाषा छे के अबोलता पुरुषनी भाषा के ? [उ०] ते बोलता पुरुषनी भाषा हे. पण अबोलता पुरुपनी तो भाषा नथीज.” पूर्वनी क्रिया दुःख हेतु नथी, तेने पण भाषानी पेठेज जाणवी. करणथी ते दुःख हेतु छे, पण अकरण थी ते दुःख हेतु नथीज. ए प्रमाणे कडेवाय.” कृत्य दुःख छ, सृश्य दुःख हे, क्रियमाणकृत दुःख छे, तेने करी करीने प्राणो, भूतो, जीवो अने सत्वो वेदनाने वेदे के. एम कहेवाय. ॥ ८१ ।। For Private and Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AAI व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥१२०॥ पावहिणं मजीव गेणं न अण्णउत्थियावं खल " १ शतके उद्देशः१० ॥१२०॥ IC अण्णउत्थिया णं भंते ! एवमाइक्वंति जाब-एवं खलु एगे जीवे एगेणं समपणं दो किरियाओ पकरेंति, तंजहा-इरियावहियं च संपराइयं च, [ज समयं इरियावहियं पकरेइ तं समयं संपराइयं पकरेइ, जे समयं संपराइयं पकरेइ समयं इरियावहियं पकरेइ, इरियावहियाए पकरणताए संपराइयं पकरेइ, संपराइयपकरणयाप इरियावहियं पकरेइ, एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ पकरेति, तंजहा-इरियावहियं च | संपराइयं च । से कहमेयं भंते एवं ?, गोयमा ! जणं ते अण्णउत्थिया एबमाइक्वंति तं चेव जाव जे ते एव-| |माहंसुमिच्छा ते एवमासु, अहं पुण गोयमा! एबमाइक्खामि ४-एवं खलु एगे जीवे गगसमएण एक किरिये पकरेइ परउत्थियवत्तव्वं यब्वं. ससमयवत्तब्वयाए नेयव्वं जाव इरियावहियं संपराइयं वा ।। (सू. ८२) प्र०] हे भगयन् ! अन्यतीथिको आ प्रमाणे कई छे के, यावत्- एक जीव एक समये बे क्रियाओ करे . ते.आ प्रमाणे:| अर्यापथिकी अने सांपरायिकी. जे समये अर्यापथिकी किया करे छे ते समये सायरायिकी क्रिया करे छे अने जे समये सांपरायिकी क्रिया करे लेते समये अर्यापथिकी क्रिया करे छे अर्यापथिकी क्रिया करवाथी सांपरायिकी क्रिया करे के अने सांपरायिकी क्रिया करवाथी अर्यापथिकी क्रिया करे छेप प्रमाणे एक जीव एक समये वे क्रिया करे छे एक अर्यापथिकी अने बीजी सांपरायिकी. हे भगवन् ! ए ते ए प्रमाणे केवी रीते होय ! [उ०] हे गौतम! जे ते अन्यतीथिको ए प्रमाणे कहे छे. यावत्-जे तेओए एम का हे ते खोटुं कई है. वळी हे गौतम ! हुं आ प्रमाणे कई छ के, एक जीव एक समये एक क्रिया कर छे. अहीं परतीर्थिकनुं तथा | स्वसमयनुं वक्तव्य को यावत्-र्यापथिकी अथवा सांपरायिकी क्रिया करे छे ॥ ८२ ॥ For Private and Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥१२॥ निरयगई णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उबवाएणं पबत्ता ?, गोयमा ! जहनेणं एक समयं, उकोसेपा, बारस मुहुत्ता, एवं वकंतीपयं भाणियब्वं निरवसेस, सेवं भंते। सेवं भंते ! त्ति जाव विहरह (सू०८३) ॥१-१०॥ पढ सयं समत्तं । [.] हे गौतम ! जघन्ये एक समय मुधी अने उत्कृष्टे पार मुहूर्त सुधी नारकी उत्पात विनानी कही. अहीं ए प्रमाणे व्युत्क्रांतिपद आखं कहे. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे के. एम कही यावत् विहरे छे. ।। ८३ ।। ___ भगवंत सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद्भगवतीस्त्रना प्रथम शतकमा दशमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. शतक उमेश:१० ॥१२॥ PONOROCCIONS श्रीमद्भगवतीसूत्रे प्रथमं शतकं समाप्तम् IGONIO DUCHCONGSvie For Private and Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या द्वितीयशतकम् - प्रज्ञप्तिः २ शतके उदेशः | ॥१२॥ ॥१२२॥ उद्देशक १ वीजा शतकमा दश उद्देशकोमा नीचे प्रमाणे अधिकार आवशे. गाहा-ऊसासखदएविय १ समुग्धाय २ पुदविं३ दिय ४ अन्नउत्थिभासा ५। देवा य ६ घमरचंचा ७ समय ८ खित्त ९ स्थिकाय १० बीयसए ॥१॥ | मूलार्थः-१ उद्देशामा चासोच्छ्वास अने स्कंदकनामना अनगार विषे, २-समुद्घात विषे विवेचन, ३-पृथिवी विषे विचार, ४-इंद्रियो विषे विचार, ५-अन्यतीथिकोनों अधिकार, ६-भाषा संबंधे विवेचन, ७-देवनो अधिकार, ८-चमरचंचा नामनी वात थे, ९-समयक्षेत्रनुं स्वरूप, १०-अस्तिकाय संबंधे विवेचन छे. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नाम नगरे होत्या, चण्णओ, सामी समोसदे, परिसा.निग्गया, धम्मो कहिओ, पडिगया परिसा । तेणं कालेणं २ जेट्टे अंतेवासी जांच पज्जुवासमाणे एवं वयासी-जे इमें भंते! बेइंदिया तेइंदिया चरिंदिया पंचेदिया जीवा एएसिणं आणाम वा पाणाम वा उस्सासं वा नीसास वा जाणामो For Private and Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २ शतक म्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१२॥ उमेशः१ | ॥१३॥ पासामो, जे इमे युद्धविकाइया. वणस्सइकाइया एगिदिया जीवा एएसिणं आणामं वा पाणामं वा उस्सासंवा निस्सासं वाण याणामो ण पासामो, एएसि णं भंते ! जीवा आणमंति वा पाणमंति वा उस्ससंति वा नीससंति वा ?, हंता गोयमा! एएवियणं जीवा आणमंति वा पाणमंति वा उस्ससंति वा नीससंति वा॥ (सू०८४ ते काले अने ते समये राजगृह नामर्नु नगर हाँ, वर्णक स्वामी (श्रीमहावीरप्रभु) समवमृतःपधार्या. तेओनी देशना सांभळवा सभा मळी. तेओए धर्म करो ते सांभळी सभा विसर्जीत थइ. [प्र.] ते काले ते समये भगवंतना मोग शिष्य पर्युपासना कर आ प्रमाणे .या:-हे भगवन् ! जे बे इंद्रियवाळा, त्रण इंद्रियवाळा चार इंद्रियवाला अने पांच इंद्रियबाला जीवो के. एओना अंदरना | अने बहारना उछ्वासने अने निःश्वासने जाणीए छीए, देखीए छीए पण जे एक इंद्रियवाला पृथिवीना जीवो छ, यावत्-वनस्पतिना जीबो छे. तेओना अंदरना अने वहारना उच्छ्वासने तथा निःश्वासने जाणता नथी, देखता नथी, तो शुं हे भगवन् ! ते एक इंद्रि| यवाला जीवो अंदरना अने बहारना उच्छ्वासने ले छे ? तथा अंदरना अने बहारना निःश्वासने मूके के ? [उ.] हे गौतम हा, ए. एक इंद्रियवाळा जीवो पण बहारना अने अंदरना उच्छ्वासने ले छे तथा निःश्वासने मूके छे ।। ८४ ॥ 8 किण्णं भंते! जीवा आण. पा० उ० नी० १, गोयमा! दवओ णं अणंतपएसियाई दवाई खेत्तओ णं ल असंखपएसोगाढाई कालओ अन्नयरद्वितीयाइं भावओ वण्णमंताई गंधमंताई रसमंताई फासमंताई आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा, जाई भावओ वन्नमंताई आण. पाण. उस नीस. ताई किं एगवण्णाई आणमंति पाणमंति ऊस नीस०१, आहारगमो नेयब्बो जाव तिचउपंचदिसि । किण्णं भंते ! For Private and Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २ शतके व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१२४॥ मेरइया आ० पा० उ० नीचेव जाव नियमा छरिसिं आ० पा० उ०मी०, जीवा एगिदिया वाथाया य निवाघाया य भाणियब्बा, सेसा नियमा छदिसि ।। बाउयाए णं भंते ! बाउयाए चेव आणमंति वा पाण पाउनेशः१ मंति वा उससंति वा नीससंति वा, हंता गोयमा! वाउयाए णं जाव नीससति वा ॥ (सू० ८५) प्र०] हे भगवन् ! ते जीवो केवा प्रकारनां द्रव्योंने बहारना अने अंदरना श्वासमां ले के ? तथा निःश्वासमां मृके छ ? [३०] ॥१४॥ | हे गौतम ! ठपथी अनंत प्रदेशवाळा द्रव्योने, क्षेत्रथी असंख्य प्रदेशमा रहेलां द्रव्योने काळथी कोइपण जातनी स्थितिवालां द्रव्योने तथा भावथी वर्णवाळी, गंधवाळा, रसवागं, अने स्पर्शवानां द्रव्योने बहारना अने अंदरना वासमां ले छे. तथा नेवांज द्रव्योने यहारना अने अंदरना निःश्वासमा मूके हे. [३०] हे भगवन् ! ते जीवो भावथी वर्णवाळा जे द्रव्योने बहारना अने अंदरना श्वासमा | ले छे तथा मूके छे ते द्रव्यो शुं एक वर्णवाळां छे ? [उ०] हे गौतम ! अही आहारगम जाणवो अने ते यावत्-पांच दिशा तरफथी |श्वास अने निःश्वासना अणुओ मेळवे . [म.] हे भगवन् ! नरयिको केवा प्रकारनां द्रव्योने बहारना अने अंदरना श्वासमा ले छे ? अने निःश्वासमा के छ ? [उ०] हे गौतम ते संबंधे पूर्व प्रमाणेज जाणवू अने नियमे छए दिशामांथी बहारना अने अंदरना श्वास अने निःश्वासना अणुओने मेळवे छे. जीवो अने एकेंद्रियो संबंधे एम कहे, के, तेओने जो काइ व्यापात न होय तो तेश्रो बधी दिशाओमांथी श्वास अने निःश्वासना अणुओ मेळवे छे. अने जो तेओने कांइ अडचण होय तो ते छए दिशामांथी वास अने | निःश्वासना अणुओ मेळवी शकता नथी, पण कोइवार ऋण दिशामाथी कोइवार चार दिशामांथी अने कोइवार पांच दिशामांथी श्वास द अने निश्वासना अणुओ मेळवे छे अने बाकी बधा जीवो चोकस छए दिशामांथी श्वास तथा निःश्वासनां अणुओ मेळवे छे. [प्र०] 男女分%%%%%众说你》%% For Private and Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 32-% के उदेशः१ ॥१२॥ भंत बायाति से भंते किवावमा , गोयमा %* * असरीरी निकालयवउवियाई वि व्याख्या हे भगवन् ! वायकाय वाणुकायोनेज अंदरना अने बहारना श्वासमा ले छे ? तथा तेओनेन अंदरना अने बहारना निःश्वासमां मूके के ? [उ.] हे गौतम ! हा वायुकाय वायुकायोनेज यावत्-अंदरना अने बहारना निःश्वासमां मूके छे ।। ८५ ।। प्रज्ञप्तिः वाउयाए णं भंते! वाउयाए चेव अणेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता तत्थेव भुजो भुजो पच्चायाति?, ॥१२५॥ महंता गोयमा ! जाव पञ्चायाति। से भंते किं! पुढे उद्दाति अपुढे उहाति ?, गोयमा! पुढे उद्दाइ, नो अपुढे उद्दाइ। से भंते ! किं ससरीरी निक्खमइ असरीरी निक्खमइ ?, गोयमा ! सिय ससरीरी निक्वमइ, सिय असरीरी निक्वमइ । सेकेणढणं भंते! एवं बुच्चइ-सिय ससरीरी निकखमइ, सिय असरीरी निक्खमइ?, गोयमा! बाउयायस्स णं चत्तारि सरीरया पन्नत्ता, तंजहा-ओरालिए बेउन्विा तेयए कम्मए, ओरालियवेउब्वियाई विप्पजहाय तेयकम्मएहिं निवमति, से तेणटेणं गोयमा! एवं बुचड-सिय ससरीरी०, सिय असरीरी |निक्वमह॥ (म०८६)॥ [प्र०] हे भगवन् ! वायुकाय वायुकायमांज अनेकवार मरीने पालो त्यांज उत्पन थाय ? [उ०] हे गौतम : ते पाछो त्यांज | आवे. [प्र०] हे भगवन् ! ते वायुकाय स्वजातिना अथवा परजातिना जीवो साथे अथडावाथी मरण पामे ? के कोई साथे अथडाया सिवाय मरण पामे ? [उ०] हे गौतम ! अथडाबाथी मरण पामे. पण कोइ साधे अथडाया सिवाय ते मरे नहि. [प्र०] हे भगवन् ! | ते शरीरवाळो थइने जाय छे के शरीरविनानो थइने जाय के ? [उ०] हे गौतम ? वायुकायने चार शरीर को के. ने आ प्रमाणे: औदारिक, वैक्रिय, तेजस, अने कार्मण. तेमा औदारिक अने वैक्रिय शरीरने छोडीने जाय छै माटे शरीरविनानो थइने जाय के अने *** For Private and Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥१२६॥ २ शतके उद्देशः१ १२६॥ www.kobatirth.org का तैजस तथा कार्मण शरीरने साथे लइने जाय के मारे शरीरवाळो थइने जाय छे. हे गौतम ते कारणथी पूर्व प्रमाणे कांके. ॥८६॥ मडाई णं भंते! नियंठे नो निरुद्धभवे नो निरुद्धभवपवंचे णो पहीणसंसारे णो पहीणसंमारवेयणिज्जे णो| वोच्छिण्णसंसारे णो वोच्छिपणसंसारवेयणिजे नो निहिरटेनो निहियट्टकरणिज्जे पुणरवि इत्थतं हव्वमाग|च्छति', हंता गोयमा! मडाई ण नियंठे जाव पुणरवि इत्थत्तं हवमागच्छह ।। (सू०८७)॥ D [प्र०] हे भगतेन् ! जेणे संसारने निरोध्यो नथी, प्रपंचो निरोध्या नथी, जेनो संसार क्षीण थयो नथी, जेर्नु संसारवेदनीय कर्मक्षीण थयु नथी, जेनो संसार व्युछिन्न नथी, जेनुं संसारवेदनीयकर्म न्युच्छिन्न नथी, जे सिद्धप्रयोजन नथी तेवो मृतादी अनगार शुं फरीने पण तुरत मनुष्यपणाआदिक भवने पामे ? [उ०] हे गौतम ! पूर्व प्रमाणे स्वरूपवाळो साधु फरीने पण तुरत | मनुष्यादिक भवने पामे. ॥ ८७ ॥ सेण भंते ! किं वत्तव्वं सिया?, गोयमा! पाणेति वत्तब्वं मिया, भूतेति वत्तन्वं सिया, जीवेत्ति वत्तवं सत्तेति वत्तव्वं० विवृत्ति वत्तव्वं० वेदेति बत्तव्वं सिया, पाणे भूए जीवे सत्त विन्न वेएति वत्तव्वं सिया, से केणठेणं भंते पाणेत्ति वत्तव्वं सिया, जाव वेदेति वत्तब्वं सिया?, गोयमा ! जम्हा आ० पा० उ० नी. तम्हा पाणेत्ति वत्तब्वं सिया, जम्हा भूते भवति भविस्सति य तम्हा भूएत्ति वत्तव्वं सिया, जम्हा जीवे जीवह जीवत्तं आउयं च कम्मं उवजीवइ तम्हा जीवेत्ति वत्तवं मिया, जम्हा सत्ते सुहासुहेहि कम्मेहिं तम्हा सत्तेत्ति वत्तवं सिया, जम्हा तितकडुयकसायअंबिलमहुरे रसे जाणइ तम्हा विन्नृत्ति वत्तवं मिया, वेदेड य सुहदुकावं तम्हा वेदेति For Private and Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राप्तिः का htsA 13 वत्तवं सिया, से तेणठणं जाव पाणेत्ति वत्तव्वं सिया जाव वेदेति चत्तब्वं सिया॥ (सू. ८८)। व्याख्या २ शतके | [प्र.] हे भगवन् ! ते निधना जीवने क्या शब्दथी बोलावाय ! [उ०] हे गौतम! ते कदाच 'प्राण' कहेवाय, कदाच भूत | कहेवाय, कदाच 'जीव' कहेवाय कदाच सच कहेवाय, कदाच 'विज्ञ' कहेवाय, अने कदाच 'वेद' कहेवाय, तथा कदाच 'प्राण' उदेशः१ ॥१२॥ | 'भूत' 'जीव 'सच' 'विज्ञ' अने वेद पण कहेवाय. [प्र.] हे भगवन् ! ने 'प्राण' कहेवाय अने यावत्-'विज्ञ' अने 'वेद' कहेवाय, A॥१२७॥ तेनु शु कारण ? [उ०] हे गौतम ! ते नियनो जीव बहार अने अंदर श्वास तथा निःश्वास ले के मारे ते प्राण कहेवाय. तथा ते थवाना स्वभाववाळो छ, थाय छे, अने थशे माटे भूत कहेवाय, तथा जीवे छे अने जीवपणाने तथा आयुष्यकर्मने अनुभवे छे माटे 'जीव' कहेवाय. तथा शुभ अने अशुभ कर्मोनडे संबंद्ध छ माटे 'मत्व' कहेवाय छे. तथा कड़वा, कपाएला, खाग अने मीठा रसोने जाणे छे माटे 'विज्ञ' कडेवाय छे. अने सुख तथा दुःखने भोगवे छे माटे 'वेद' कहेवाय जे माटे ते हेतुथी ते निग्रंथनो जीव 'प्राण' अने 'वेद कद्देवाय छे. ॥ ८८ ॥ मडाईणं भंते ! नियंठे निरुद्धभवे निरुद्धभवपवंचे जाव निहियट्टकरणिज्जे णो पुणरवि इत्थतं हब्वमागच्छति, जाता गोयमा ! मडाई णं नियंठे जाव नो पुणरवि इत्थतं हब्वमागच्छति । से णं भंते ! किंति वत्तध्वं सिया?,४ गोयमा! सिद्धेत्ति व०, सिद्धे बुद्धे वत्तव्वं सिया, बुद्धत्ति सिया, मुत्तत्ति वत्तब्वं. पारगएत्तिका, परंपरगपत्ति मुत्ते परिनिवुडे अंतकडे सव्वदुक्खपहीणेत्ति वत्तवं सिया, सेवं भंते ! सेवं भंत ! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं बंदइ नमसइ २ संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति ।। ( ० ८९) । SMENT For Private and Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Achapa Shri Kailassarsuri Gyanmandir Mal SAR व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१२८॥ iti www.kobatirth.org .. [प्र०] हे भगवन् ! जेणे संसारने रोक्यो रे, जेणे संसारना प्रपंचने रोक्यो छे, यावत्-जैनु कार्य, समाप्त थएल कार्यनी पेठे २ शतके पूर्ण के तेवो मृतादी निग्रंथ शुं फरीने पण शीघ्र मनुष्यादिक भवोने न पामे ? [उ.] हे गौतम ! हा, पूर्व प्रमाणोनो मृतादी निग्रंथ फरीने पण तुरत मनुष्यादिक भवोने न पामे. [म.] हे भगवन् ! ते नियनो जीव कया शब्दथी बोलावाय! [उ०] हे गौतम! ते उमेशः१ 'सिद्ध' कहेवाय. 'बुद्ध' कहेवाय. मूक्त कहेवाय. परंपरागत एक पगथीएथी बीजे अने बीजे पगथीएथी श्रीजे एवी रीते संसारना| |१२८॥ पारने पामेलो'-कहेव य. अने ते 'सिद्ध' 'बुद्ध' 'मुक्त' 'परिनिवृत' 'अंतकृत' तथा 'सर्वदुःख प्रत्पीण' कहेवाय. हे भगवन् ! ते पर प्रमाणे हे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे. एम कही भगवान् गौतम श्रमण भगवंत महावीरने वांदे छे, नमे छे अने संयम तथा आत्माने भाक्ता विहरे छे. ॥ ८९ ॥ *** * For Private and Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥ १२९ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आर्यस्कंदक तेणं काले तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे रायगिहाओ नगराओ गुणसिलाओ बेड़याओ पडिनिक्खम, पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ, तेणं कालेणं तेणं समर्पणं कयंगलानामं नगरी होत्या, वण्णओ, तीसे णं कयंगलाए नगरीए बहिया उत्तरपुर छिमे दिसीभाए छत्तपलासर नाम चेहए होत्या, वण्णओ, तर णं समणे भगवं महावीरे उप्पण्णनाणदंसणधरे जाव समोसरणं, परिसा निगच्छति, तीसे णं कयंगलाए नगरीए अदूरसामंते सावस्थी नाम नयरी होत्या, वण्णओ, तत्थ णं सावस्थीए नयरीए गहभालिस्स अंतेवासी खंदर नामं कचायणस्सगोते परिब्वायगे परिवसर, रिउब्वेदजजुब्वेद सामवेद अहब्वणवेदइतिहासपंच| माणं निग्धंदुछद्वाणं चउण्डं वेदाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं सारए वारए धारए पारए सडंगवी सहित विसारण संखाणे सिक्खाकप्पे वागरणे छंदे निरुते जोतिसामयणे अन्नेसु य बहूसु बंभण्णएसु परिष्वायएस य नयेसु सुपरिनिट्ठिए याचि होत्था । तत्थ णं सावत्थीए नयरीए पिंगलए नामं नियंठे वेसालियसावए परित्रसइ ॥ १ ॥ ते काळे, ते समये श्रमण भगवंत महावीर राजगृह नगरनी पासे आवेला गुणशिल चेत्यथी नीकल्या. तेओए महारना देशमां For Private and Personal Use Only २ शतके उद्देशः १ ॥ १२९॥ Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या २ शतके उमेश ॥१३०॥ विहार को. ते काळे ते सम्ये कृतंगला नामनी नगरी हती. वर्णक. ते कृतंगला नगरीनी बहारना प्रदेशमा उत्तर अने पूर्व दिशाना | भागमा 'छत्रपलाशक नामर्नु चैत्य हतुं. वर्णक. ते समये उत्पन्न थयेल ज्ञान दर्शनना धारक श्रमणभगवंतश्री महावीरप्रभु त्यां पधार्या. समवसरण थयु. सभा निकली. ते कृतंगला नगरीनी पासे श्रावस्ती नामनी नगरी हती. वर्णक. ते श्रावस्ती नगरीमा कात्यायनगोत्रनो, गर्दभाल नामना परिव्राजकनो शिष्य स्कंदक नामनो परिवाजक रहेतो हतो. ते ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अने अथर्वणवेद ए चार वेदनो पांचमा इतिहासनो तथा छठा निघंटु नामना कोशनो मांगोपग अने रहस्य, सहित प्रवर्तक, याद करनार, तथा तमां थती भूतोनो अटकारनार हतो. वेदादि शास्त्रोनो धारक हतो. वेद विगेरेनो पारगामी अने छ अंगनो ज्ञाता हतो तथा शष्टितंत्रां विशारद हतो. वळी गणितशास्त्रमा शिक्षा, आचार, व्याकरण, छंद व्युत्पत्ति, ज्योतिप, शास्त्रमा अने बीजा घणा ब्राह्मण अने परिव्राजक संबंधी नीति तथा दर्शनशास्त्रमा पण घणो चतुर हतो. तेज श्रावस्ती नगरीमा वैशालीकनो श्रावक पिंगल नामनो निग्रंथ रहेतो हतो. ॥१॥ तएणं से पिंगलए णामं णियंठे बेसालियसावए अण्णया कयाई जेणेव खंदए कच्चायणस्सगोत्ते तेणेवउवागच्छद २ खंदगं कचायणस्सगोत्तं इणमरखेवं पुच्छे-मागहा ! किंसते लोए अणते लोए १ सअंते जीवे अणते जीवे २ सअंता सिद्धी अणता सिद्धी ३ सअंते सिद्धे अणते सिद्धे ४ केण वा मरणेण मरमाणे जीवे वड्दति वा हायति या ५?, एतावं ताव आयवखाहि बुच्चमाणे एवं, तरणं से वंदए कच्चा० गोत्ते पिंगलएणं णियेठणं वेसालीसावएणं इणमक्खेवं पुच्छिए समाणे संकिए कंखिए वितिगिन्छिए भेदसमावन्ने कलुसमावन्ने णो संचापड पिंगल For Private and Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥१३॥ यस्स नियंठस्स सालियसावयस्स किंचिवि पमोक्खमक्खाइउं, तुसिणीए संचिट्ठा, तए णं से पिंगले नियंठे २ शतके वेसालीसावए स्वंदयं कच्चायणस्सगोतं दोपि तपि इणमक्खेवं पुच्छे-मागहा ! किं सते लोए जाय केण वा | उद्देश मरणेणं मरमाणे जीवे वड्ढइ वा हायति वा एतावं ताव आइक्वाहि बुचमाणे एवं, ततेणं से खंदए कबा गोत्ते पिंगलएणं नियंठेणं वेसालीसावएणं वोपि तचंपि इणमक्खेवं पुच्छिए समाणे संखिए कम्बिए वितिगिच्छिए ॥१३॥ भेदसमावणे कलुसमावण्णे नो संचाएइ पिंगलयम नियंठस्म वेसालिसावयस्स किंचिवि पमोक्स्वमक्खाउं तुसिणीए संचिट्ठइ । तए णं सावत्थीए नयरीए सिंघाडग जावमहापहेसु महया जणसमद्दे इ वा जणवूहे इ वा. परिसा निगच्छइ । ।। २॥ ते वखते वैशालिकना वचनने सांभळवामा रसिक पिंगल नामना साधुए कोई एक दिवसे, जे ठेकाणे कात्यायनगोत्रनो स्कंदकर तापस रहेतो हतो, ते तरफ जइने तेने आक्षेपपूर्वक आ प्रमाणे पूछा के, हे मागध ! शुं लोक अंतवाळो छ के अंत विनानो के ? जीव अंतवालो छ के अंत विनानो छ ? सिद्धि अंतवाळी छे के अंत विनानी छ ? सिद्धो अंतवाला छे के अंत विनाना छे ? तथा क्या मरणवडे मरतो जीव वधे अथवा घटे अर्थात् जीव केवी रीते मरे! तो तेनो संसार बधे अने घटे ? तुं आटला प्रश्नोनो तो उत्तर कहे. ज्यारे वैशालिक श्रावक पिंगलक निग्रंथ ते स्कंदक तापसने पूर्व प्रमाणे पूछथु त्यारे ते स्कंदक तापस, 'ए प्रश्नोनो शुं आ उत्तर हशे के बीजो' एम शंकावाळो थयो, 'आ प्रश्नोनो जवाब मने केवी रीते आवडे' एम कांक्षावाळो थयो, 'हुँ जवाब आपीश तेथी पूछनारने प्रतीति थशे के केम ? ए प्रमाणे अविश्वास थयो, तथा एनी बुद्धि बुंठी थइ गइ अने ते क्लेशयुक्त थयो. पण ते SHAYARI For Private and Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit २ शतके व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥१३२॥ शः CASSA-* ॥१३२॥ तापस वैशालिक श्रावक पिंगलक साधुने काइपण उत्तर आपी शक्यो नहि. अने चुपचुप चेठो. ते वखते वैशालिक श्रावक पिंगलक साधुए कात्यायन गोत्रना स्कंदक परिव्राजकने चे वणवार पण पूर्व प्रमाणे आक्षेपपूर्वक पूरथु हे मागध ! शुं लोक अंतवाळो छ ? यावत्-जीव केवी रीने मरे तो तेनो संसार वधे अने घटे ? तुं मारा पप्रश्नोनो उत्तर आप! ज्यारे फरीने पण ते वैशालिक पिंगल | निथे ते स्कंदक तापसने पूर्व प्रमाणे कथु त्यारे पण ते स्कंदक तापम शंकावाळो थयो, कांक्षागळो थयो, अविश्वासु थयो, बुद्धिभंगने पाम्यो अने क्लेशने प्राप्त थयो. परंतु कांइ जवाब आपी शक्यो नहं अने छानोमानो बेठो. ते वखते श्रावस्ती नगरीमा त्रण खूणावाळा मार्गमां, मनुष्योनी गडदीवाळा मार्गमां, चालती वखते व्यहरुपे गोठवाएल मनुष्योबाळा सभा मार्गमानीकळे ॥२॥ तए णं तस्स खंदयस्स कच्चायणस्सगोत्तस्स बहुजणस्स अंतिए गयमहूँ सोचा निसम्म इमेयारूवेअन्भत्थिए चिंतिए पथिए मणोगए संकप्पे समुप्पवित्था-एवं खलु समणे भगवं महावीरे कयंगलाए नयरीए बहिया छत्तपलासप चेइए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे बिहरइ, तं गच्छामि णं समणं भगवं महावीरं वदामि नमंसामि, सेयं खलु मे समणं भगवं महावीरं वंदित्ता णमंसित्ता सकारेत्ता सम्माणित्ता कल्लाणं मंगलं | देवयं चेइयं पज्जुवासित्ता इमाइं च णं एयारूवाई अट्ठाई हेऊई पसिणाई कारणाई पुच्छित्तएत्तिकहु एवं संपेहेह जेणेव परिवायावसहे तेणेव उवागच्छद २त्ता तिदंडं च कुंडियं च कंचणियं च करोडिय च भिसियं च केसरियं च छन्नालयं च अंकुसयं पवित्तयं च गणेत्तियं च छत्तयं च वाहणाओ य पाउयाओ य धाउरत्ताओ य गेण्हइ गेण्हइत्ता परिव्यायावसहीओ पडि निरखमइ पडिनिक्खमइत्ता तिदंडकुंडियकंचणियकरोडियभिसिय % % For Private and Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir केसरियछन्त्रालयअंकुसयपवित्तयगणेत्तियहत्थगए छत्तोवाहणसंजुत्ते धाउरत्तवत्थपरिहिए सावत्थीए मगरीए व्याख्या- मझमझेणं निगरछह निगच्छइत्ता जेणेव कयंगला नगरी जेणेव छत्तपलासए चेहए जेणेव समणे भगवं२ शतके प्रज्ञप्तिः महावीरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए। ॥३॥ उद्देशः१ ॥१३३॥ ा त्या अनेक मनुष्योना मुखथी श्रीमहावीरप्रभु आव्यानी वात सांभळी कात्यायनगोत्री स्कंदक तापसना मनमा पोताना विपे ॥१३॥ ताम्मरणरूप अने अमिलाषरूप आ प्रकारनो विचार थयो के, श्रमण भगवंत महावीर कृतंगला मगरीनी बहार छत्रपलासक नामना मा चैत्यमा संयम अने तपवडे आत्माने भावता विहरे छे. माटे हुं तेनी पासे जाउं, श्रमण भगवंत महावीरने पाएं, नमस्कार करूं,। 15 अने श्रमण भगवंत महावीरने बांदीने नमीने, तेओनो सत्कार करीने तथा तेओने सन्मान आपीने अने कल्याणरूप, मंगलरूप, ना देवरूप, अन चैत्यरूप श्रीमहावीरनी पर्युपासना करीने आ ए प्रकारना अर्थाने, हेतुओने प्रश्नोने कारणोने, व्याकरणोने पूछु तो मारुं कल्याण छ. ए नकी छे. ए पूर्व प्रमाणे स्कंदक तापसे विचारीने, ज्यां परिव्राजकोनो मठ छे त्यां जइने त्यांथी त्रिदंड, कुंडी, रुद्राक्षनी माळा, करोटिका माटीनुं वासण, बेसवार्नु आसन, वासण लूछवानो कपडानो टुकडो, त्रिगडी, अंकुशक, बीरी, गणेत्रिका, छत्र, पगरखां, पावडी, भगवा रंगेला वस्रोने लइने नीकळे के. नीकळी त्रिदंड, कुंडी, रुद्राक्षनी माळा, करोटिका, वेसणु, केसरिका, | त्रिगडी, अंकुशक, वींटी, घरेणु, ए बधी वस्तुओने, हाथमा राखी, छत्र ओढी, पगरखां पहेरी, तथा भगवा वस्त्रोने शरीर उपर पहेरी से स्कंदक तापस श्रावस्ती नगैरीना मध्यभागमाथी नीकळे हे, नीकळी जे तरफ कृतंगला नगरी छे, जे तरफ छत्रपलाशक द्र चैत्य छ, अने जे तरफ श्रमण भगवंत महावीर छे ते तरफ जवानो ते वापसे संकल्प कयों. ॥३॥ ROSCROSSASSASAALS For Private and Personal use only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गोयमाइ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं वयासी-दच्छिसि गं गोयमा ! पुव्वसंगतिय, कहं व्याख्याभंते !!, खंदयं नाम, से काहं वा किटं वा केबधिरेण वा?, एवं स्वलु गोयमा! तेणं कालेणं २ सावत्थीनाम M२ शतके प्रज्ञप्रिनगरी होत्या, वनओ, तत्थ णं सावत्थीए नगरीए गद्दभालिस्स अंते वासी खंदए णामं कच्चायणस्सगोत्ते उद्देशः१ ॥१३॥ परिवायए परिवसइ, तं चेक जाव जेणेव ममं अंतिए तेणेव पहारेत्य गमणाए, से तं अदूरागते बहुसंपत्ते ॥१३॥ अद्धाणपडिवण्णे अंतरापहे वहइ । अब्जेवणं दच्छिसि गोयमा, भंतेत्ति भगवं गोयमै समणं भगवं महावीर वंदा नमसइ २ एवं वदासी-पहू णं भंते ! खंदए कचायणस्सगोत्ते देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पब्वइत्तए, हंता पभू, जावं च णं समणे भगवं महावीरे भग वओ गोयमस्स एयम परिकहेइ ताचणं से खदए कच्चायणस्सगोते तं देस हव्वमागते, ॥४॥ हे गौतम! ए प्रमाणे आमंत्री श्रमण भगवंत महावीरे भगवान् गौतमने आ प्रमाणे कयुं के:-हे गौतम ! तुं तारा पूर्वना | संबंधी ने जोइश. हे भगवन् ! हु कोने जोइश ? हे गौतम! तुं स्कंदक नामना वापसने जोइश. हे भगवन् ! हुं तेने क्यारे, केवी रीते अने केटला समये जोश? हे गौतम ! ते काळे ते समये श्रावस्ती नामनी नगरी हती. वर्णक, त्यां श्रावस्ती नगरीमा गर्दभाल नामना तापसना, कात्यायनगोत्रीय शिष्य स्कंदक नामे परिव्राजक रहेता हता. ए संबंधीनी बधी हकीकत आगळ कह्या प्रमाणे जाणवी. यावत्-ते स्कंदक परिव्राजके जे तरफ हुं हुं ते तरफ मारी पासे आववाने संकल्प कर्यो छे. अने ते स्कंदक परिव्राजक लगभग पासे पहोंचा आव्या छे, पणो मागे ओळंगी गया , मागे उपर., वचगाना मागे छे. अने हे गौतम! ते कंधक For Private and Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २शतके उद्देशः१ ॥१३५॥ परिव्राजकने तु आजज जोइक, 'पछी हे भगवन् ! एम कही भगवन् गौतमे श्रमण भगवंत महावीरने बांदी, नमी, आ प्रमाणे प्रशतिः क के:-हे भगवन् ! ते कात्यायनगोत्रीय स्कंदक परिव्राजक आप देवानुनियनी पासे मुंड थइने, अगार तजीने अणगारपणु लेवाने ॥१३॥ शक्त छ ?.हे गौतम! हा, ते स्कंदक परिव्राजक मारी पासे अनगार यवा शक्त छे. ज्यारे श्रमण भगवंत महावीर, भगवान् गौतमने पूर्व प्रमाणेनी बात कहता हता तेवामांज ते कात्यायनमोत्रीयस्कंडक परिव्राजक ते ठेकाणे श्रीमहावीर पासे तुरत आव्या. ॥४॥ तए णं भगवं गोयमे खंदर्य कच्चायणस्सगोत्ते अदूरआगयं जाणित्ता विप्पामेव अब्भुळंति खिप्पामेव पचुवगच्छह २ जेणेव खंदए कच्चायणस्सगोत्ते तेणेव उवागग्छइ २त्ता खंदयं कच्चायणस्सगोत्तं एवं बयासी-हे खंदया सागर्य खंदया! सुसागयं खंदया! अणुरागयं खंदया ! सागयमणुरागयं खंदया! से नूणं तुम खंदया! सावत्थीए नपरीए पिंगलएण नियंठेणं वेसालियसावएणं इणमक्खवं पुच्छिए-मागहा! किं सअंते लोगे अणंते लोगे? एवं तं चेव जेणेव इहं तेणेब हब्वमागए, से नूर्ण खंदया! अष्टे समढे ?, हंता अत्थि, तए णं से खंदए | कच्चा भगवं गोयम एवं वयासी-से केणटेणं गोयमा ! तहारूवे नाणी वा तवस्सी वा जेणं तव एस अहे मम दताव रहस्सकडे हन्यमक्रवाए जओ णं तुम जाणसि, तए णं से भगवं गोयमे खंदयं कच्चायणस्सगोत्तं एवं वयासी-एवं खलु खंदया! मम धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे उप्पण्णणाणदसणधरे अरहा जिणे केवली तीयपच्चुप्पन्नमणागयवियाणए सम्वन्नू सव्वदरिसी जेणं मम एस अड्डे तव ताव रहस्सकडे हब्वमक्खाए, जओ णं अहं जाणामि खंदया, तए णं से खंदए कच्चायणस्सगोत्ते भगवं गोयम एवं वयासी-- ॥५॥ For Private and Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्याख्यापतिः ॥१३॥ २ शतके उमेशः %ESAKASKARKRKA% पछी भगवन् गौतम कात्यायनगोत्रीय स्कंदक परिबाजकने पासे आवेला जाणीने, तुरतज आसनबी उमा थइने ते परिवा|जकनी सामे गया. अने ज्यां कात्यायनगोत्रीय स्कंदक परिव्राजक हता त्या आल्या. तथा त्या भावीने श्री गौतमे कात्यायनगोत्रीय स्कंदक परिव्राजकने आ प्रमाणे कधु के:-हे स्कंदक ! तपने खागत छे, हे स्कंदक तमने सुस्वागत छे, हे स्कंदक! तमने अन्वागत छे, हे स्कंदक! तमने स्वागत अन्वागत है, अर्थात् हे स्कंदक! पधारो, भले पधार्या, पडी गौतमे ते स्कंदकने आ प्रमाणे कई | केर- हे स्कंदक! श्रावस्ती नगरीमा वैशालिक श्रावक पिंगलक नामना नियंथे तमने आ प्रमाणे आक्षेपपूर्वक पूज्यु हतुं के, हे मागध ! लोक अंतवालो के के अत विनानो छ ? इत्यादि बधु पूर्वनी पेठे कहे. पावत्-तेना प्रश्नोयी सुसाइ तमो अहीं शीघ्र | आल्या.' हे स्कंदक। कहो, ए वात साची के केम ए वात साची थे, पछी कात्यायनगोत्रीय ते स्कंदक परिबाजके भगवान् गौतमने आ प्रमाणे कायु के:-हे गौतम ! ए ते एवा, तेवा प्रकारना ज्ञानी अने तपस्वी पुरुष कोण छ, के जेओए मारी गुप्तवात | तमने शीम कही दीधी ! जेथी तमे मारी गुप्त वातने जाणो छो. त्यारपछी भगवान् गौतमे कात्यायनगोत्रीय स्कंदक परिव्राजकने आ प्रमाणे कg:-हे स्कंदक ! मारा धर्मगुरु, धर्मोपदेशक श्रमण भगवंत महावीर उत्पन्न अने ज्ञान दर्शनना धारक छे अहंत , जिन, केवळी छे, भूत, वर्तमान अने भविष्यकाळना जाणनारा . तथा सर्वत्र अने सर्वदर्शी छे, जेणे मने समारी गुप्त बात शीघ्र कही दीधी छे अने हे स्कंदक ! जेथी ९ तेने जाणुं हुं. पछी कात्यायनगोत्रीय स्कंदक परिव्राजके भगवान गौतमने आ प्रमाणे का के-॥५॥ For Private and Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit २ शतके उद्देशः१ ॥१३॥ व्याख्या । गच्छामो णं गोयमा! तब धम्मायरिय धम्मोवदेसयं समणं भगवं महावीरं वंदामो णमंसामो जाव प्रज्ञप्तिः तापज्जुवासामो, अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंध, तए णं से भगवं गोयमे खंदएणं कचायणस्सगोत्तणं सद्धिं जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेष पहारेत्थ गमणयाए । तेणं कालेणं २ समणे भगवं महावीरे विपडभोती. ॥१३७ यावि होत्था, तए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स वियदृभोगियस्स सरीरं ओरालं सिंगारं कल्लाणं सिवं धणं मंगलं सस्सिरीपं अणलंकियविभूसिय लक्खणवंजणगुणोपवेयं सिरीए अतीच २ उवसोभेमाणं चिट्ठ। तएणं से खंदए कच्चायणस्सगोत्ते समणस्स भगवओ महावीरस्स वियद्दभोगिस्स सरीरं ओरालं जाव अतीव २ उचसोभेमाणं पासइ सत्ता हतुद्दचित्तमाणं दिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ २ ता समणं भगधं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणप्पयाहिणं करेइ जाष पज्जुवासइ ।।॥ ६॥ | हे गौतम ! तारा धर्माचार्य, धर्मोपदेशक, श्रमण भगवंत महावीर पासे जइए अने तेओने वंदन करीए. नमन करीए यावत् ततेनी पर्युपासना करीए. हे देवानुप्रिय ! जेम तमने ठीक लागे तेम करो. विलंब न करो. पछी भगवान् गौतमे ते कात्यायनगोत्रीय कंदक परिव्राजक साये ज्यां श्रमण भगवंत महावीर विराज्या छे त्यां जवानो संकल्प कर्यो. ते काले ते समये श्रमण भगवंत महावीर व्यावृत्तभोजी (हंमेशा जमनार) हता. ते व्यावृत्तभोजी श्रमण भगवंत महावीरनुं शरीर उदार, शणगारेला जेवू, कल्याणरूप, शिवरूप, धन्य भंगलरूप, अलंकारो विना शोभतुं हतुं. सारां लक्षणो व्यंजनो अने गुणोथी युक्त ए शरीर शोभायुक्त अत्यंत शोभतुं हतुं. For Private and Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २ शतके व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥१३८॥ RAC% | उदेशः १ ॥१३८॥ पछी ने कात्यायनगोत्रीय स्कंदक परिव्राजक, व्यावृत्तभोजी श्रमण भगवंत महावीरनुं पूर्व प्रकारचें उदार यावत्-शोभाण्डे अत्यंत शोभायमान शरीर जोइ हर्ष पाम्यो, संतोष पाभ्यो, आनंदयुक्त चित्तवालो थयो, आनंद पाम्यो, प्रीतियुक्त मनवाळो थयो, परम सौ. नस्यने पाम्यो तथा हर्षे करीने प्रफुल्ल हृदयवाळो थइ ज्यां श्रमण भगवंत महावीर वीराज्या छे ते तरफ जइ, श्रमण भगवंत | महावीरने त्रणवार प्रदक्षीणा करी तेओनी पर्युपासना करे छे. ॥६॥ खंदयाति! समणे भगवं महावीरे खंदयं कच्चाय एवं वयासी-से नूणं तुमं वंदया! सावत्थीए नयरीए पिंगलएणं णियंटेणं बेसालियसाचएणं इणमक्वेवं पुच्छिए-मागहा ! किं सते लोए अणते लोए? एवं तं जेणेव मम अंतिए तेणेव हव्वमागए, से नूर्ण खंदया! अयम? समवे, हंता अस्थि, जेऽविय ते स्वंदया! अयमेयारूवे अन्भत्थिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पजिस्था-किं सअंते लोए अर्णते लोए तस्सविय णं अयम?-एवं खलु मए खंदया! चउबिहे लोए पन्नत्ते, तंजहा-दवओ खेत्तओ कालओ भावओ। दवओ णं एगे लोए सते १, खेत्तओ णं लोए असंखजाओ जोयणकोडाकोडीओ आयामविक्वंभेणं असंखजाओ जोयणकोडाकोडीओ परिक्ववेणं प०, अत्थि पुण सअंते २, कालओ गं लोए ण कयाविन आसीन कयाविन भवति न कयाविन भविस्सति भविंसु य भवति य भविस्सह य धुवे णितिए सासते अक्खए अव्वए अवहिए णिच्चे, णत्थि पुण से अंते ३, भावओणं लोए अणंता वण्णपज्जवा गंध० रस. फासपजवा अणंता संठाणपजवा अणंता गरुयलहुयपजवा अणता अगरुयलहुयपजबा, नत्थि पुण से अंते ४, सेत्तं खंदगा! दवओ लोए कर कद्ध For Private and Personal use only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१३९ सअंते खेसओ लोए सअंते कालतो लोए अणते भावओ लोए अणते । ॥७॥ पछी 'हे स्कंदक' ! एम कही श्रमण भगवंत महावीरे कात्यायनगोत्रीय स्कंदक परिव्रामकने आ प्रमाणे कार्यु के:-हे स्कंदक! M२ शतके श्रावस्ती नगरीमा रहेता वैशालिक श्रावक पिंगलक नामना निग्रंथे तने आ प्रमाणे आक्षेपपूर्वक पूण्यु हतुं के हे मागध ! शुं लोक उद्देशः१ अंतवाळो डे के अंत विनानो छ ? ए बधुं आगळ कह्या प्रमाणे जाणी लेवु यावत-तेना प्रश्नोथी मंझाइने तुं मारी पासे शीघ्र आन्यो १३९॥ ९.' हे स्कंदक! केम ए साची वात छे ? हा, ते साची वात छे. वळी हे स्कंदक! तारा मनमा जे आ प्रकारनो संकल्प थयो हतो | के, 'शुं लोक अंतवाळो ? के अंत विनानो छ ?' नेनो पण आ अर्थ छ:-में लोकने चार प्रकारनो जणान्यो . ते आ प्रमाणे:द्रव्यथी-पलोक, क्षेत्रथी-क्षेत्रलोक, काळथी-काळलोक अने भावथी-भावलोक. तेमा जे द्रव्यलोक छे ते एक के अने अंतवालो के जे क्षेत्रलोक छे ते असंख्य कोडाकोडी योजन सुधी लंबाइ पहोळाइबाळो छे, तथा तेनी परिधि असंख्य योजन कोडाकोडीनो कह्यो| | छे अने वळी तेनो अंत छे. तथा जे काळलोक छे ते कोइ दिवस न हतो एम नथी अने कोइ दिवस नथी एम पण नथी. ते हमेश 8 हतो, हमेश होय छे अने हमेशा रहेशे, ते ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षत, अव्यय, अवस्थित अने नित्य छे. वळी तेनो अंत नथी. तथा जे भावलोक छे ते अनंत वर्णपर्यवरूप छे, अनंत गंध, रस अने स्पर्शपर्यवरूप छे, अनंत संस्थान (आकार) पर्यवरूप छे अनंत गुरुलघु पर्यवरूप छे तथा अनंत अगुरुलघु पर्यवरूप छे, वी ते अंत नथी. तो हे स्कंदक ! ते प्रमाणे दन्यलोक अंतवालो के, क्षेत्रलोक अंतवाळो छे, काळलोक अंतवाळो छे. अने भावलोक अंत विनानो छे. लोक अंतवाळो छे अने अंतविनानो पण छे. ॥७॥ जेविय ते खंदया! जाव सअंते जीवे अणते जीवे, तस्सविय गं एयमद्वे-एवं खलु जाव दब्बओ एगे कककककक For Private and Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit ले असंखेनप एसिए असा जीवे अर्णता णाणतओ जीवे सो व्याख्या प्रज्ञप्तिः शतके रेशः १ १४०॥ ॥१४०॥ जीचे सते, खेत्तओ णं जीवे असंखेजप एसिए असंखेजपदेसोगाढे, अत्थि पुण से अंते, कालओ णं जीवेन यावि न आसि जाव निचे नत्थि पुण से अंते, भावओ णं जीवे अणंता णाणपजचा अर्णता सणप० भर्णता| परित्तप. अणंता अगुरुलहुपप०, नत्थि पुण से अंते, सेतं दवओ जीवे सअंते खत्तओ जीवे सअंते कालओ जीवे अणते भावओ जीवे अणते । जेवि य ते खंदया पुच्छा [इमेयारूवे चिंतिए जाव संअता सिद्धी अर्णता सिद्धी, तस्सवि य णं अयमद्वे-स्वंदया! मए एवं स्खलु चउबिहा सिद्धी पण्ण, तं०-दव्यओ४. दवओणं एगा सिद्धी खेत्तओ ण सिद्धी पणयालीसं जोयणसयसहस्साइं आयामविखंभेणं एगा जोयणकोडी बायालीसंच जोयणसयसहस्साई तीसं च जोयणसहस्साई दोन्नि य अउणापनजोयणसए किंचिविसेसाहिए परिक्वेवेणं, अत्थि पुण से अंते, कालओण सिद्धीन कयाविन आसि०, भावओ य जहा लोयस्स तहा भाणियब्वा, तत्थ दब्बओ सिद्धी सअंता ख० सिद्धी सअंता का सिद्धी अणंता भावओ सिद्धी अणंता । जेवि य ते खंदया! जाब किं अणंते सिद्ध तं चेव जाव दधओ ण एगे सिद्धे सते, स्व०सिद्ध असंखेजपएसिए असंखेजपदेसोगादे, अत्थि पुण से अंते, कालोणं सिद्धे सादीए अपज्जवसिए, नथि पुण से अंते, भा० सिद्धे अणंता णाणपजवा अणंता सणपजवा जाव अणं ता अगुरुलहुयप०, नत्यि पुण से अंते, सेत्तं दचओ सिद्धे सते खेत्तओ सिद्ध सअंते का सिद्धे अणते भा. सिद्धे अणते।॥८॥ वळी हे स्कंदक ! तने जे आ विकल्प थयो हतो के, शुं जीव अंतवाळो छे. के अंत विनानो छ ? तेनो पण आ खुलासो छे. For Private and Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २ शतके प्रज्ञप्तिः ॥१४१ उद्देशः ॥१४॥ ** यावत्-द्रव्यथी जीव एक छे अने अंतवालो छ, क्षेत्रथी जीव असंख्य प्रदेशवाळो छे अने असंख्य प्रदेशमा अवगाढ छे, तथा तेनो दि अंत पण छे. काळधी जीव कोइ दिवस न हतो, एम नथी, यावत्-नित्य छे अने तेनो अंत नथी, भावथी जीव अनंत ज्ञान पर्याय रूप छ, अनंतदर्शन पर्यायरूप छे, अनंत अगुरुलघु पर्यायरूप के अने तेनो छेडो नथी. तो हे स्कंदक! ए प्रमाणे द्रव्यजीव अंतवाळो करे, क्षेत्रजीव अंतवाळो छे, काळजीव अंत विनानो छे, तथा भावजीव अंत विनानो छे. वळी हे स्कंदक! तने जे आ विकल्प थयो हतो के. सिद्धि अंतवाली छे के अंत विनानी छे । तेनो पण आ उत्तर छे-हे स्कंदक! में सिद्धि चार प्रकारनी कही छे, ते आ प्रमाणे-द्रव्यथी सिद्धि एक ले अने अंतवाली छे, क्षेत्रथी सिद्धिनी लंबाई पहोळाइ पीस्तालीश लाख योजननी छे. अने तेनी परिधी एक कोड, तालीश लाख, त्रीसहजार, बसेने ओगणपचास योजन करता काइक विशेषाधिक छे. तथा तेनो अंत छेडो पण वे. काळथी सिद्धि कोई दिवस न हती एम नथी, कोई दिवस नथी एम नथी. अने कोई दिवस ते नहीं दृशे ए, पण नथी. तथा भावथी सिद्धि भावलोकनी पेठे कहेवी. तेमां द्रव्यसिद्धि अने क्षेत्रसिद्धि अंतवाळी छे, तथा का सिद्धि अने भावसिद्धि अंत विनानी -सिद्धि अंतवाळी पण हे अने अंत विनानी पण छे. वळी हे स्कंदक ! तने जे आ संकल्प थयो हतो के, सिद्धो अंतवाळा के के अंत विनाना छे ? तेनो पण आ निवेडो हे:-अहीं बधुं आगळनी पेठे कहे. यावत्-द्रव्यथी सिद्ध एक छे अनें अंतवाला छे, क्षेत्रथी सिद्ध असंख्य प्रदेशवाग छे अने असंख्य प्रदेशमा अवगाढ छे. तथा तेनो अंत पण छे. काब्धी सिद्ध आदिवाला छे अने अंत विनाना छे नेनो अंत नथी भावधी सिद्ध अनंत ज्ञानपर्यायरूप छे, अनंत दर्शनपर्यायरूप छे, यावत्-अनंत अगुरुलघु पर्यवरूप छ अने तेनो अंत नथी अर्थात् द्रव्यथी अने क्षेत्रथी सिद्ध अंतवाला छे तथा काळथी अने भावधी सिद्ध अनंत अंत विनाना छे. सिद्धो * For Private and Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥१४२ 12 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अंतबाळा पण छे अने अंत विनाना पण छे. ॥ ८ ॥ जेवि य ते संदया ! इमेयारूवे अन्भत्थिए चिंतिए जाब समुप्पज्जित्था -केण वा मरणेणं मरमाणे जीवे | बड्ढति वा हायति वा ?, तस्सवि य णं अयमट्टे एवं खलु संदया !-मम दुविहे मरणे पण्णत्ते, तंजहाबालमरणे व पंडियमरणे य, से किं तं बालमरणे १, २ दुवालसविहे पं० तं०-वलयमरणे वसवमरणे अंतोसल्लमरणे तब्भवमरणे गिरिपडणे तरुपडणे जलप्पवेसे जलणप्प० विसभक्खणे सत्थोबाडणे वेहाणसे गिद्धपट्ठे, इच्चेतणं खंदया ! दुवालसविहेणं बालमरणेणं मरमाणे जीवे अणंतेहिं नेरइयभवग्गणेहिं अप्पाणं संजोएइ, तिरियमशुदेव० अणाइयं च णं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतसंसारकंतारं अणुपरियद्दर, सेत्तं मरमाणे वड्ढइ २, संत्तं बालमरणे । से किं तं पंडियमरणे १, २ दुविहे प०, तं०- (ग्रं० १०००) पाओवगमणे य भत्तपचक्खाणे य । से किं तं पाओवगमणे १, २ दुविहे प०, तं०-नीहारिमे य अनीहारिमे य, नियमा अप्पडिकमे, सेत्तं पाओग मे। सं किं तं भत्तपचखाणे १, २ दुविहे पं० नं० - नीहारिमे य अनीहारिमे य, नियमा सपडिक्कमे, सेत्तं भत्तपचखाणे । इच्चेतेणं खंदया। दुबिहेणं पंडियमरणेणं मरमाणे जीवे अणतेहिं नेरइयभवग्गहणेहिं० अप्पाणं विसंकोएइ जाव बीईययति, सेत्तं मरमाणे हायह, सेत्तं पंडियमरणे, इच्चेएणं खंदया। दुबिहेणं मरणेणं मरमाणे जीवे बड्ढइ वा हायति वा ॥ ( मू० ९० ) ॥ ९ ॥ बळी हे स्कंदक ! तने जे आ संकल्प थयो हतो के, जीव केबी रीते मरे तो तेनो संसार बधे अने घटे ? तेनो उत्तर आ रीते For Private and Personal Use Only २ शतके उद्देशः १ ||| १४२ ॥ Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥१४३॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छे:- हे स्कंदक! में मरणना वे प्रकार जंणान्या छे ते आ प्रमाणे:- एक बालमरण अने बीजुं पंडितमरण. [प्र० ] बालमरण ए शुं ? [[अ०] बालमरणना बार मेद कला छे ते आ प्रमाणे:-बलन्मरण (तरफडता तरफडता मरखं) वशार्तमरण (शस्त्रादिकना लागवाथी अथवा भ्रष्ट श्रवाथी) तद्भवमरण ( मरी गया बाद पुनःतेज गतिमां आवj) पहाडथी पडीने मरखं, झाडथी पडीने मखु, पाणी बीने मर, अभिमां पेसीने मरं, शेर खाइने मरर्खु, झाड विगेरे साथे गळफांसां खाइने मरयुं, अने गीध आदि जंगली जानवरो ठोले तेथी मरखं, हे स्कंदक ! ए बार प्रकारना बालमरणवडे मरतो जीव पोते अनंतवार नारकीना भगोने पामे छे. तिर्यंच, मनुष्य, अरे देवगतिरूप, अनादि, अनंत तथा चार गतिवाळा संसाररूप वनमां ते जीव रखडे छे अर्थात् ए प्रमाणे बार जातना मरणवडे मरतो ते जीव पोताना संसारने वधारे छ. ए बालमरणनी हकीकत छे. [प्र० ] पंडितमरण ए शुं १ [३०] पंडितमरण वे प्रकारनुं क छे. ते आ प्रमाणे:- पादपोपगमन (स्थिर रहने मरं) अने भक्तप्रत्याख्यान ( खानपानना त्यागपूर्वक मर्खु ) [ प्र० ] पादोपगमन ए शुं ? [अ०] पादोपगम ने प्रकारनुं कबुं : छ. ते . आ प्रमाणे:- निर्धारिम (जे मरनारनुं शय बहार काढी संस्कारवामां आवे ते मरनारनुं भरण निर्धारिम मरण) अने अनिर्धारिम (पूर्वोक्त निर्धारिम मरणथी उलटुं मरण ते अनिर्धारिम मरण) ए बने जातनुं पादोपगमन मरण प्रतिकर्म विनानुंज छे. ए प्रमाणे पादोपगमन मरणनी हकीकत छे [प्र० ] भक्तप्रत्याख्यान ए शुं ? [ उ० ] भक्तप्रत्याख्यान मरण वे प्रकारनुं कथुं छे. ते आ प्रमाणे:-निर्धारिम अने अनिर्धारिम, ए बने जातनुं भक्तप्रत्याख्यान मरण प्रतिकर्मवाळुंज छे. ए प्रमाणे भक्तप्रत्यागयान मरणनी हकीकत छे. हे स्कंदक ! ए बने जातना पंडितमरणवडे मरतो जीव पोते नैरयिकना अनंत भवनें पामतो नथी, यावत् संसाररूप वनने वटी जाय छे. ए प्रमाणे मरता जीवनो संसार घटे छे. ए प्रमाणे पंडित मरणनी हकीकत छे. For Private and Personal Use Only २ शतके उद्देशः १ ॥१४३॥ Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्ति ॥१४४॥ २ शतके उद्देशः १ ॥१४४॥ FACEREMORE हे स्कंदक! ए-पूर्वोक्त वे पकारना-मरणवडे मरता जीवनो संसार वधे छे अने घटे छे. ॥ ९ ॥ | एत्थ णं से खंदए कच्चायणस्सगोत्ते संबुद्धे ममणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ २ एवं वदासी-इच्छामि णं भंते ! तुम्भं अंतिए केवलिपन्नत्तं धम्म निसामेत्ता, अहाहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं । तए णं समणे भगवं महावीरे खंदयस्स कच्चायणस्सगोत्तस्स तीसे य महतिमहालियाए परिसाए धम्म परिकहेइ, धम्मकहा. भाणियब्वा । तए णं से खंदए कच्चायणस्सगोत्ते समणस्म भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोचा निसम्म हद्वतुढे जाव हियए उठाए उठेइ २ समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ २ एवं वदासी-| सदहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, रोएमिणं भंते ! निग्गंध पावयणं, अन्भुट्ठमि णं भंते ! निग्गंथं पा०, एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते! अवितहमेयं भंते ! असंदिद्धमेयं भंते! इच्छियमेयं भंते! पडिच्छियमेयं भंते! इच्छियपडिच्छियमेयं भंते! से जहेयं तुन्भे वदहत्तिकदु समणं भगवं महावीरं वंदति नमसति २ उत्तरपुरच्छिमं दिसीभायं अवक्कमइ २ तिदंडं च कुंडियं च जाव धाउरत्ताओ य गते डेइ २ जेणेव समणं भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ २ समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ करेइत्ता जाव नमंसित्ता एवं वदासी-॥१०॥ तं कात्यायनगोत्रीय स्कंदकपरिव्राजक बोध पाम्यो अने तेणे श्रमण भजवंत महावीरने वांदी, नमी आ प्रमाणे कयुं के है। भगवन् ! तमारा मुखथी केवळीए कहेल धर्मने सांभळवाने इच्छं छं. हे देवानुप्रिय! जेम ठीक लागे तेम कर, विलंब न कर. त्यार For Private and Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः पछी श्रमण भगवंत महावीरे कात्यायनगोत्रीय स्कंदक परिव्राजकने भने त्यां मळेली मोटी समाने धर्म करो. अहीं धर्मकथा कहेवी. पछी ते कात्यायनगोत्रीय स्कंदक परिव्राजक श्रमण भगवंत महावीरना मुखथी धर्मने मांभळी, अवधारी, हर्ष पाम्पो, संतुष्ट थयो, २ शतके यावत्-विकसित हृदयवाळो थयो अने पछी तेणे उभा थइ, श्रमण भगवंत महावीरने त्रिःप्रदक्षीणा दइ आ प्रमाणे कयु के-हे भग- उद्देशः१ वन् ! निर्ग्रथना प्रवचनमा श्रद्धा राखं छु. हे भगवन् ! नियना प्रवचनमां प्रीति राखं छ. हे भगवन् ! निग्रंथर्नु प्रवचन रुपे छ, हा ॥१४॥ भगवन् ! निग्रंथना प्रवचननो हुं स्वीकार करुं छु. हे भगवन् ! ए ए प्रमाणे के. हे भगवन् ! ए रीते छे. हे भगवन् ! सत्य छे. हे भगवन ! संदेह विनानुं छे. हे भगवन् ! ते इष्ट छे. हे भगवन् ! ते इष्ट प्रतीष्ट छे, जे तमे कहो छो. एम करीने ते स्कंदक तापस |श्रमण भगवंत महावीरने वांदे छे, नमे छे, पछी उत्तर पूर्वनी दिशाना भागमा जइने ते स्कंदक परिव्राजके त्रिदंडने, कुंडिकाने, यावत् भगवा वस्रोने एकांत मुक्यां अने पछी ज्यां श्रमण भगवंत महावीर विराज्या के त्या आवी, श्रमण भगवंत महावीरने त्रण प्रदक्षिणा करी ते म्कंदक परिवाजक आ प्रमाणे बोल्या-॥१०॥ ___आलित्ते गं भंते ! लोए पलित्ते णं भं० लो• आ० प० भ० लो जराए मरणेण य, से जहानामए-केह गाहावती आगारंसि झियायमाणंसि जे से तत्य भंडे भवइ अप्पसारे मोल्लगरुए तं गहाय आयाए एगंतमंतं अवकमइत्ति, एस मे नित्थारिए समाणे पच्छा पुरा हियाए सुहाए खमाए निस्सेसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ, एषामेव देवाणुप्पिया! मज्झवि आया एगे भंडे इढे कंते पिए मणुने मणामे थेजे वेसासिए संमए बहुमए अणुमए भंडकरंडगसमाणे, मा णं सीयं मा णं उण्हं मा णं खुहा माणं पिवासा मा णं चोरा मा णं वाला %*%*%*%******** For Private and Personal use only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir %A4% ६ मा णं वंसा मा ण मसगा मा णं वाइयपित्तियसंभियसं निवाइयविविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा फुसंतु-18 व्याख्या त्तिक पस मे नित्थारिए समाणे परलोयस्स हियाए सुहाए खमाए नीसेसाए अणुगामियत्ताए भविस्सइ, सं २ शतके प्रज्ञप्तिः इच्छामि णं देवाणुप्पिया! सयमेव मुंडावियं सयमेव सेहा वियं सयमेव सिक्वावियं सयमेव आयारगोयरं उमेशः१ ॥१४६॥ || विणयषेणइयचरणकरणजायामायावत्तियं धम्ममाइक्खियं। ॥११॥ ॥१४॥ दी हे भगवन् ! घडपण अने मोतना दुःखी आ संसार सळगेलो छ, वधारे सळगेलो छे अने ते एक काळेज सळगेलो त्या वधारे सळगेलो छे जेम कोई एक गृहस्थ होइ अने तेनुं घर सळगतुं होय, तथा ते सळगता घरमां तेनो बहु मूल्यवाळी अने ओछा बजन पाळी सामान होय, ते सामानने ते गृहस्थ चळवा देतो नथी. पण ते सामानने लइने एकांते जाय छ कारणके ते गृहस्य एम विचारे तो के, जो थोडो सामान बचे तो मने ते आगळ पाछळ हिवरूप, सुखरूप, कुशळरूप, अने छेवटे कल्याणरूप थशे. ए प्रमाणेज है देवानुप्रिय ! मारो पण आत्मा एक जातना सामानरूप के अने ते इष्ट, कांत, प्रिय, सुंदर, मनगमतो, स्थिरतावालो, विश्वासपात्र, संमत, अनुमत, बहुमत, अने घरेणाना कंडिया जेवो छ, माटे तेने टाढ, तडको, मुख, तृषा, चोर, वाघ के सर्प, डांस, मच्छर, वात, पित श्लेष्म, वगेरे अने समिपात वगेरे वगेरे अनेक प्रकारना रोगो अने जीवलेण दरदो तथा परिषह अने उपसर्गो नुकशान न करे अने जो हुँ तेने पूर्वोक्त विनोथी बचावी ल तो ते मारो आत्मा मने परलोकमां हितरूप, सुखरूप, कुशळरूप, अने परंपराए | कल्याणरूप थशे. माटे हे देवानुप्रिय! हुँ इछु छु के आपनी पासे हुँ दीक्षित थाउं. मुंडित थाउं, प्रतिलेख आदि क्रियाओने शीखं. स्त्र अने तेना अर्थाने जाणुं, तथा हु इर्छ के तमे आचारने विनयने, विनयना फळने, चारित्रने, पिंडविशुद्धयादिक कारणने, कारख ARE For Private and Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥ १४७॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संयम यात्राने अने संयमना निर्वाहक आहारना निरूपणने अर्थात् एवा प्रकारना धर्मने कहोः ॥ ११ ॥ तए णं समणे भगवं महावीरे स्वंदयं कचायणस्सगोत्तं सयमेव पवाबेह जाव धम्ममातिक्खर, एवं देवाणुप्पिया ! गंतव्वं एवं चिट्ठियवं एवं निसीतियब्वं एवं तुयद्वियन्वं एवं भुंजियव्वं एवं भासियव्वं एवं उट्ठाए २ पाणेहिं भूपहिं जीवेहिं सत्तेर्हि संजमेणं संजमियव्वं, अस्सि च णं अठ्ठे णो किंचिवि पमाइयव्यं । तए णं से खंदए कच्चायणस्सगोते समणस्स भगवओ महावीरस्स इमं एयारूवं धम्मियं उवएसं सम्मं संपडिवज्जति, तमाणाए तह गच्छह तह चिह्न तह निसीयति तह तुपहह तह मुंजइ तह भासह तह उट्ठाए २ पाणेहिं भूएहिं जीवेहिं सत्तेर्हि संजमेणं संजमियन्यमिति, अरिंस चणं अड्डे णो पमायइ । तए पां से खंदए कश्चाय० अणगारे जाते ईरियासमिए भासासमिए एसणासमिए आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिए उच्चारपासवणखेलसिंघाणजल्लपारिट्ठावणियासमिए मणसमिए बयसमिए कायसमिए मणगुत्ते वइगुत्ते कायगुत्ते गुत्ते गुतिदिए गुत्तबंभयारी चाई लज्जू घण्णे खंतिखमे जिइंदिए सोहिए अणियाणे अप्पुस्सुए अबहिल्लेसे सुसामण्णरए दंते इणमेव णिग्गंथं पावयणं पुरओ कार्ड विहरइ ॥ ( सू० ९१) ॥ १२ ॥ पछी श्रमण भगवंत महावीर पोतेज ते कात्यायनगोत्रीय स्कंदक परिव्राजकने प्रत्रजित कर्यो अने यावत्-पोतेज धर्म को के:हे देवानुप्रिय ! आ प्रमाणे जनुं, आ प्रमाणे रहे, आ प्रमाणे रहेलं, आ प्रमाणे बेसकुं, आ प्रमाणे सुबुं आ प्रमाणे खानुं, आ प्रमाणे बोलवु अमे आ प्रमाणे उठीने प्राण, भूत, जीव तथा सन्चो विषे संयमपूर्वक चर्त्तनुं, तथा आ बाबतमां जरापण For Private and Personal Use Only २ शतके उद्देशः १ ॥ १४७॥ Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥१४८ | २ अतके उहेशः १ X॥१४८॥ आळस न राखवी. पछी ते कात्यायनगोत्रीय स्कंदक मुनिए ते श्रमण भगवंत महावीरनो ए पूर्व प्रमाणेनो धार्मिक उपदेश सारी नारीते स्वीकार्यो. अन जे प्रमाणे महावीर आज्ञा दे छे ते प्रमाणे ते स्कंदक मुनि चाले छे, रहे में, बेसे छे, सुवे, खाय छे, बोले. छे, तथा उठीने प्राण, भूत, जीव अने सच्चो तरफ दयापूर्वक वर्ते छे तथा ए बावतमा जरा पण आळस राखता नथी, हवे ते कात्यायनगीत्रीय स्कंदक अनगार थया, तथा इर्यासमिति चालवामां सावधानतावाला, बोलवामां मावधानतावाळा, खानपान लाववामां अने लेवामा सावधानतावाला, पोताना सामानने तथा पात्रोने लेवामां अने मूकवामां काळजीवाळा, कळशे जवामा अने वडीनीति, लघुनीति करवामां मुख तथा कंठनो मेल काढवामां, नाखवामां, कोइपण जातनो मेल नाखवामा तथा नासिकानो मेल नाखवामा सावधान, शरीरनी क्रियामां सावधान, मन, वचन अने कायाने वश राखनार, सर्वने वश राखनार, इंद्रियने वश राखनार, गुप्त अमचारी, त्यागी, सरळ, धन्यथी क्षमाथी सहन करनार, जीतेंद्रिय, व्रत विगेरेना शोधक, कोइपण जातनी आकांक्षा विनाना, उतावळ विनाना, संयम सिवाय बीजे स्थळे चित्तने नहीं राखनार, सुंदर साधुपणामां लीन, अने दांत एवा स्कंदक अनगार आज निग्रंथ प्रवचनने आगळ करी विहरे छे. ॥ १२॥ | तए ण समणे भगवं महाधीरे कयंगलाओ नयरीओ छत्तपलासयाओ चेड्याओ पडिनिक्खमइ २ बहियाजणबयविहारं विहरति । तए णं से खंदए अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं घेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिजह, जेणेव समणे भयवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ २ समणं भगवं | महावीरं वंदह नमसइ २.एवं वयासी-इच्छामि णं भंते ! तुम्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे मासिंयं भिक्खुपडिम For Private and Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २ शतके उदेशः ॥१९॥ व्याख्या 18 उवसंपन्जित्ताणं विहरित्तए, अहासुहं देवाणुप्पियामा पडिबंध । तए णं से खदए अणगारे समणेणं भग-18 प्रनप्तिः वया महावीरेणं अम्भणुण्णाए समाणे हे जाव नमंसित्ता मासियं भिक्खुपडिमं उपसंपजित्ताणं विहरइ, तर ॥१४९॥ णं से खंदए अणगारे मासियभिक्खुपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातचं अहासम्मं कारण फासेति पालेति सोमेति तीरेति पूरेति किद्देति अणुपालेह आणाए आराहेइ, संमं कारण फासित्ता जाव आराहेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छहरसमणं भगवं जाव नमंसित्ता एवं वयासी-इच्छामिण भंते! तुन्मेहि अब्भणुण्णाए समागे दोमासियं भिक्खुपडिम उवसंपजित्ताणं विहरितए, अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंध, तं चेव, एवं तेमासियं चाउम्मासिपं पंच००सत्तमा, पहम सत्तराइंदियं दोचं सत्तराईदियं तचं सत्तरातिदिवं अहोरातिदियं एगरा, तए णं से खदए अणगारे एगराइदियं भिक्खुपडिम अहामुत्तं जाव आराहेत्ता जेणेव समणे तेणेच उवागरणति २ समणं भगवं म० जाब नमंसित्ता एवं वदासी-इछामिण भंते ! तुम्भेहिं अन्भणुण्णाए | समाणे गुणरयणसंवरं तवोकम्मं उपसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, अहासुहं देवाणुप्पिया!मा पडिबंध ॥ १३ ॥ %.-1.4 हवे पछी श्रीश्रमणमगवंत महासीर कृतंगला नगरीथी छत्रपलाशक नामना चैत्यथी बहार नीकळी जनपद विहारे थे. विहरे P. त्यारवाद ते स्कंदक अनगार श्रमण भगवंत महावीरना तथारूप स्थविरो पासे सामायिक विगेरे अगीयार अंगोने श्रीखे छे अने| शीखीने, ज्यां श्रमण भगवंत महावीर विराज्या छे त्यां जइने, श्रमण भगवंत महावीरने चांदी, नमी, आ-प्रमाणे बोल्या के-हे. - For Private and Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir | २ शतके उमेशः १ ॥१५॥ भगवन् ! जो तमे अमति आपो तो मासिक मिथुप्रतिमा धारण करी विचरका इj छु, हे देवानुप्रिय ! जेम सुख थाय तेम व्याख्या करो, विलंब न करो, पछी श्रमण भगवंत महावीरनी अनुमति लइ ने स्कंदक अनगार हर्षवाला यह यारत-श्री महावीरने नमी मासिक मिथुप्रतिमाने धारण करी विहरे . त्यारवाद ते स्कंदक अनमार मासिक मिथुप्रतीमाने सत्रने अनुसारे, आचारने अनुसारे, ॥१५०॥ मार्गने अनुमारे सत्यतापूर्वक अने सारी री कायावडे स्पर्शे , पाळे छ, शोभावे , समाप्त करे , अने तेने आज्ञापूर्वक आराधे HD तथा तेने कायवडे स्पर्शीने यावत्-आराधीने, ज्यां श्रमण भगवंत महावीर विराज्या छे त्यां आवीने, यावत्-नमीने श्री स्कंदक साधुने धारण करवानी पर प्रतिमा विष विवेचन श्रीहरिभद्रसूरिकृत पंचाशक नामना प्रथमा अवारमा पंचावकर्मा पहेलेयी १० गाथा | सुधी जोह ले तोपण कसमज नीचे प्रमाणे: ली प्रतिमा-समप-पकमास. विधि-अब भने पाणीनी एक दत्ती लेवी. २जी प्रतिमा-समय वे मास. विधि:- अने पाणीनी में दति लेबी. ३ प्रतिमा-समय-प्रणमास. ४ प्रतिमा-समवचार मास. ५ प्रतिमा-समय पांच मास. ६ प्रतिमा-समय मास. ७ प्रतिमा-समयमात मास विधि:-अय, चार, पांच, छ, भने ७ एम अनुक्रमे अझ भने पाणीनी इत्ति लेवी. ८ प्रतिमा-समय-सात रात्रिदिवस. विधिः-पाणी पीचा क्यर एकांतर उपवास करवा. पारणे आयंबील. गामनी बहार रहे, चत्ता के परखे सूई भने उमडक बेसीने जे आवे ते सहर्षुः १ प्रतिमासमय-सात रात्रिदिवस. विधिः-(८ प्रतिमा मुजब) विशेष उभरक रहेतु बने बांका शाकदानी पेठे सुबु वगेरे, १० प्रतिमा-समवसातरात्रिदिवस. विधिः [९. प्रतिमानी विधि प्रमाणे] विशेष एटलुके गोदोहासन भने वीरासन, संकोचाइने बेसबु. ११-पतिमा समय एक महोरात्र विधि-पाणी विनानो सह. गामनी बहार हाथने संबावीने रहे. १२ प्रतिमा समय-एकरात्रि. विधिः भाम करी नदी कांठे अथवा मेखरपर रहे, | बांखो न पटपटावी. २५ASNASISASTES For Private and Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनगार आ प्रमाणे बोल्पा:-हे भगवम् ! जो तमे अनुमति आपो तो हुं द्विमासिक मिथुप्रतिमाने धारण करीने विहरवा इछु छु. हे व्याख्या २ शतके देवानुप्रिय ! जेम सुख उपजे तेम करो, विलंब न करो. ए प्रमाणे विमासिक, चतुर्मासिक, पंचमासिक, छ मासिक, प्रथम सात प्रज्ञप्तिः रात्रिदिवसनी, बीजी सातरात्रिदिवसनी, श्रीजी सातरात्रिदिवसनी, चोथी अहोरात्रिनी अने पांचमी रात्रीदिवसनी ए प्रमाणे वार उद्देशः१ भिक्षुप्रतिमाने आराधे . तथा छेल्ली एक रात्रिदिवसनी भिक्षुपतिमाने नोनुसारे आराधी, ज्यां श्रीश्रमणभगवंत महावीर पिरा ॥१५॥ ज्या हे त्यां आबी, श्रमण भगवंत महावीरने नमी ते स्कंदक अनगार आ प्रमाणे बोल्या:- हे भगवन् ! जो तमे अनुज्ञा आपो तो हुँ गुणरत्न संवत्सर नामना तपने धारण करीने विहरवा इच्छु छु.हे देवानुप्रिय! जेम ठीक पड़े तेम करो, विलंब न करो. ॥ १३ ॥ तर णं से खंदए अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अम्भणुषणाए समाणे जाव नमंसित्ता गुणरयदसंबच्छरं तवोकम्मं उपसंपजित्ताणं विहरति, तं०-पढमं मास चउत्थंचउत्थेण अमिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं दिया ठाणुक्कुडए मुराभिमुहे आयाचणभूमीए आयामाणे रति बीरासणेणं अबाउडेण य । एवं दो मासं छटुंछटेणं, एवं तश्च मासं अट्ठमंअहमेणं, चउत्थं मासं दसमंदसमेणं, पंचमं मासं बारसमंवारसमेणं, छई मासं चोइसमंचोइसमेणं, सत्तमं मासं मोलसमं २ अट्ठमं मासं अट्ठारसमं २ मवमं मासं चीसतिमंदसमं मासं पावीसं २ एकारसमं मासं चउच्चीसतिमं २ बारसमं मासं छब्बीसतिम र तेरसमं मासं अट्ठावीसतिमं २ चोद्द ममं मासं तीसइमं २ पन्नरसमं मासं पत्तीसतिम २ सोलसम मास चोत्तीमहम २ अनिविखतेणं तबोकम्मेणं सा दिया ठाणुक्कुडुए सूराभिमुहे आपावणभूमीए आयावेमाणे रति वीरासणेणं अवाउडेणं, ताणं से खंदा RELATES For Private and Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २ शतके व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥१५॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अणगारे गुणरयणसंवरछरं तवोकम्मं अहासुतं अहाकप्पं जाव आराहेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ २ समणं भगवं महावीरं वंदह नमसइ२वहूहिं चउत्थछट्ठहमदसमदुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहि विचित्तेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरति।॥१४॥ उद्देशः १ पछी ते स्कंदक अनगार श्रमण भगवंत महावीरनी अनुमति लइ, यावत्-तेमने नमी गुणरत्न संवत्सर नामना तपकर्मने धारण ॥१५॥ करीने विहरे छे. (ते तपनो विधि) आ प्रमाणे:-पहेला मासमां निरंतर उपवास करवा, अने दिवसे सूर्यनी सामी नजर मांडी ज्यां तडको आवतो होय तेबी जग्यामा उभडक बेसी रहे. तथा रात्रिए काइपण वस्रो ओढया के पहेर्या विना वीरासने बेसी रहे. ए प्रमाणे बीजे महिने निरंतर अट्ठम-३ उपवास करवा. चोथे मासे चार चार उपवास, पांचमे मासे पांच पांच उपवास, छहे मासे छ Kछ उपवास, सातमे मासे सात सात उपवास. आठमे मासे आठ आठ उपवास, नवमे मासे नव नव उपवास, दशमे मासे दश दश उपवास, अगीयारमे मासे अगीयार अगीयार उपवास, बारमे मासे बार बार उपवास, तेरमे मासे तेर तेर उपवास, चौदमे मासे चौद चौद, पंदरमे मासे पंदर पंदर. अने सोळमे मासे सोळ सोळ उपवास करवा. अने.सूर्यनी सामी नजर मांडी तडकावाळी जग्याए उडक बेसी तडको लेवो तथा रात्रीए कांइपण पहेर्या के ओढया शिवाय वीरासने देसी रहे, पछी ते स्कंदक अनगार गुणरत्नसंव|त्सर नामना तपकर्मने सूत्रानुसारे, आचारानुसारे, आराधीने ज्यां श्रमण भगवंत महावीर विराज्या के त्यां आवी श्रमणभगवंत महावीरने बांदी, नमी अनेक उपवास छठ्ठ, अहम, दशम, तथा द्वादशरूप तपकर्मवडे अने मास खमण तथा अर्धमासखमणरूप विचित्र तपकर्मवडे आत्माने भावता विहरे छे. ॥१४॥ २ + For Private and Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१५३॥ २ शतके उद्देशः १ १ ॥१५३॥ तएणं से खदए अणगारे तेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पगहिएणं कल्लाणेणं सिवेणं धनेणं मंगल्लेणं सस्सिरीएणं उदग्गेणं उदत्तणं उत्तमेणं उदारेणं महाणुभागेणं तवोकम्मेणं सुके लुक्खे निम्मंसे अविचम्मावपढ़े किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाते यावि होत्था, जीवजीवेण गच्छइ जीवंजीवेणचिट्ठइ भासं भासि त्तावि गिलाइ भासं भासमाणे गिलाति भासं भासिस्सामीति गिलायति, से जहानामए-कट्ठसगडिया इ वा | पत्तसगडिया इ वा पत्ततिलभंडगसगडिया इ वा एरंड कट्ठसगडिया इ वा इंगालसगडिया इ वा उण्हेदिण्णा सुक्का समाणी ससई गच्छइ ससई चिट्ठइ एवामेव खंदएवि अणगारे ससई गच्छइ ससई चिढइ उवचिते तवेणं अवचिए मंससोणिएणं यासणेविय भासरासि पदिच्छन्ने तवेण तेएणं तवतेयसिरीए अतीव २ उचसोभेमाणे २ चिट्ठइ ।। (म०९२) ॥ ॥ १५ ॥ हवे ते स्कंदक अनगार पूर्वोक्त प्रकारना उदार. विपुल, प्रदत्त, प्रगृहीत. कल्याणरूप, शिवरूप, धन्यरूप, मंगलरूप, शोभायुक्त, उत्तम, उज्ज्वल, सुंदर, उदार, अने मोटा प्रभावबाळा तपकर्मथी शुष्क थया, रूक्ष थया. मांसरहित थया, मात्र हाडकां अने चामडीथीज ढंकायला रह्या. चाले त्यारे हाडकां खडखडे एवा धया, हवे ते मात्र पोताना आत्मबन्धीज गति अने स्थिति करे के, तथा एवा दुर्बल थइ गया छे के, बोली रह्या पछी अने बोलता बोलता तथा बोलबान काम पडे त्यारे पण ग्लानी पामे हे. जेम कोई एक लाकडाथी भरेली सगडी होय, पांदडाथी भरेली सगडी होय, पांदडा तल अने बीजा कोइ सुका सामानथी भरेली सगडी होय, एरडाना लाकडाथी भरेली सगडी होय, तथा अंगाराथी भरेली सगडी होय; ज्यारे ते बधी सगडीओने तडके सुकव्या पछी भासरासि पनि अणगारे समालसगडिया For Private and Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१४॥ ६ ढसळवामां आवे त्यारे ते सगडीओ अवाज करती करती गति करे छे अने अराज करती करती उभी रहे के एज प्रमाणे स्कंदक ४/ अनगार पण ज्यारे चाले छे तथा उभा रहे छे त्यारे खड खड शब्द थाय छे अने ते अनगार तपथी पुष्ट छ, मांस तथा लोहीथी २ शतके क्षीण छे अने राखना ढगलामां भरेला अग्निनी पेठे तपवडे, तेजवडे तथा तप अने तेजनी शोभावडे बहु बहु शोभता रहे छे.॥ १५ ॥ उमेशः१ तेणं कालेणं २ रायगिहे नगरे जाव समोसरणं जाव परिसा पडिगया, तए णं तस्स खंदयस्स अण. ॥१५॥ अण्णया कयाइ पुन्धरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूबे अन्भस्थिए चिंतिए जाव समुप्पवित्था-एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं ओरालेणं जाव किसे धमणिसंतए जाते जीवंजीवेणं गच्छामि जीवंजीवेणं चिट्ठामि जाव गिलामि जाव एवामेव अहंपि ससई गच्छामि मसई चिट्ठामि, तं अत्थिता मे उहाणे कम्मे यले बीरिए पुरिसक्कारपरक्कमे तं जाव ता मे अस्थि उहाणे कम्मे चले वीरिए पुरिसकारपरको जाव य मे धम्मायरिए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ ताव ता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पलकमलकोमलुम्मिलियंमि अहापांडुरे पभाए रत्तासोयप्पकासकिंसुयसुयमुंहगुंजद्धरागसरिसे कमलागरमंडयोहए उद्वियंमि सूरे सहस्मरस्सिमि दिणयरे तेयसा जलंते समणं भगवं महावीरं वंदित्ता जाव पज्जुवासित्ता समणेणं भगवया महावीरेणं अम्भणुण्णाए समाणे सयमेव पंचमहव्वयाणि आरोवेत्ता समणा य समणीओ य खामेत्ता तहारूवेहि थेरेहिं कडाईहिं सदि विपुलं पब्वयं सणिय २ दुरूहित्ता मेघघणसन्निगासं देवसन्निवातं पुढवीसिलावयं पडिलेहित्ता दम्भसंथारयं संथरित्ता दम्भसंथारोवगयस्स संलेहणाजोसणाज SARA For Private and Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१५५॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सियस्स भत्तपाणपडियाइविवयस्स पाओवगयस्स कालं अणवर्कस्वमाणस्स बिहरितएत्तिक एवं संपेहेइ २ तकले पाउपभाषाए रयणीए जाब जलते जेणेव समणे भग० जाव पज्जुवासति, खंदयाइ ! समणे भगवं महावीरे दयं अणगारं एवं वयासी-से नूणं तब स्वंदया ! पुरुवरत्तावरप्सकालस० जाव जागरमाणस्स इमेयारूवे अम्भन्थिए जाव समुप्यज्जित्था - एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं तवेणं ओरालेणं विपुलेणं तं वेब जाव कालं अणवकखमाणस्स विहरित्तपत्तिकहु एवं संपेहेति २ क पाउप्पभायाए जाब जलते जेणेव मम अंतिए तेणेव हन्यमागए, से नूणं खंदया ! अड्डे समठ्ठे !, हंता अस्थि, अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं । ॥ ( सू० ९३ ) ।। १६ । ते काले ते समये राजगृह नगरमां समवसरण थयुं. अने ( धर्म श्रवण करीने) सभा पाछी चाली गड़. हवे कोइ एक दिवसे रात्रीने पाछले पहोरे जागता जागता धर्म विषे विचार करता ते स्कंदक अनगारना मनमां आ प्रमाणे संकल्प थयो के:- हुं पूर्व प्रकारना उदार तपकर्मवडे यावत् - दुर्बल थह गयो . अने मारी षधी नाडीओ बहार तरी आवी छे. तथा हुं मात्र आत्मबळथीज गति अने स्थिति करुं हुं यावत्-बोलता बोलतां पण ग्लान यह जाउं छं. ए सगडीओ प्रमाणे हुं पण चालुं हुं अने बेसुं हुं त्यारे खड खड शब्द थाय छे, आवी स्थितिमां पण मने उत्थान छे, कर्म छे, बळ छे, वीर्य ले, अने पुरुषाकार पराक्रम पण छे अने ज्यांमुधी मारा धर्माचार्य, धर्मोपदेशक, अने शुभार्थी श्रमण भगवंतमहावीर जिन चिहरे छे, त्यांसुधी अर्थात् श्रीमहावीरनी समक्ष मारुं कल्याण छे माटे आवती काले प्रकाशवाळी रात्रि थया पछी मळसकूं थया पछी, कोमळ कमळ खील्या पछी, तथा एक जातना For Private and Personal Use Only २ शतके उद्देशः १ | ।। १५५ ॥ Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उपाख्याप्रज्ञप्तिः ॥१५६॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरिणनी आंखो उघडया पछी, निर्मळ प्रभात थया पछी अने राता अशोकनी जेवा प्रकाशवाळो, केसुडां, पोपटनी चांच, अने चणोठीना अरधा भाग जेवो लाल, कमळना समूहवाळा चनखंडोने विकसावनाशे, हजार किरणोवाळो तथा तेजथी तेजस्वी एवो सूर्य उग्या पछी श्रीश्रमण भगवंत महावीर पासे जइ, तेमने वांदी, नमी तथा तेओनी पर्युपासना करी, श्रमण भगवंत महावीरनी अनुमति लड़, पांच महाव्रतोने आरोपी, साधु तथा साध्वीओने खमावी, तेवा प्रकारना योग्य स्थविरो साथै विपुल पर्वत उपर धीमे धीमे चडी, मेघना समूहनी जेवा वर्णवाळा अने देवोनें उत्तरवाना ठेकाणारूप पृथिवीशिलापट्ट्कनुं प्रतिलेखन करी, तेना उपर डाभनो संथारो पाथरी, आत्माने संलेखना तथा झोषणथी युक्त करी, खानपाननो त्याग करी. वृक्षनी पेठे स्थिर रही मारे काळनी अवकांक्षा। न करतां विहरखुं जोइए. ए प्रमाणे विचार करी, प्रातःकाळ थया पछी यावत्-सूर्य उग्या पछी ज्यां श्रमण भगवंत महावीर विराज्या छे, त्यां जइ पर्युपासना करे छे. पछी 'हे स्कंदक' ! एम कही श्रमण भगवंतमहावीरे स्कंदक अनगारने आ प्रमाणे कछु के:- हे स्कं दक! रात्रीना पाछला पहोरे जागता जागता धर्म विषे चिंतन करतां तने आ प्रमाणे संकल्प थयो हतो के, हुं ए पूर्व प्रकारना उदार अने विपुल तपवडे बहु दुबळो थयो छु माटे यावत् भारे काळनी अवकांक्षा न करतां विहर ए उचित छे। अने ए प्रमाणे तें विचार करी सवार थतांज यावत् सूर्य उग्या पछी तुं शीघ्र मारा तरफ आव्यो छे. तो हे स्कंदक! तुं कहे के ए साची बात छे ? हा ए साची बात छे. देवानुप्रिय ! जेम सुख थाय तेम करो, पण विलंब न करो. ॥ १६ ॥ तए णं से खंदर अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अन्भणुण्णाए समाणे हट्ठतुट्ठ जाव हयहियए उट्ठाए उट्ठेइ २ समणं भगवं महा• तिक्खुत्तो आग्राहिणं पयाहिणं करेइ २ जाव नमसित्ता सयमेव पंच For Private and Personal Use Only २ शतके उद्देशः १ ॥१५६॥ Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २ शतके उद्देशः१ १५७॥ 8 महब्बयाई आरुहेइ २त्ता समणे य समणीओ य स्वामेह २ सातहारूवेहि घेरेहि कडाईहिं सद्धिं विपुलं पब्वयं व्याख्याप्रज्ञप्ति सणियं २ दुरूहेड मेहगणसन्निवार्य पुढबीशिलावयं पडिलहेड २ उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ २ दन्भसंधारयं संथरह २त्ता पुरत्थाभिमुहे. संपलियंकरिमन्ने करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मस्थए अंजलि कडु एवं ॥१५७॥ वदासी-नमोऽस्थु णं अरहंताणं भगवंताणं जाव संपत्ताणं, नमोऽत्थु ण समणस्स भगवओ म. जाव संपाविउकामस्स, बंदामि णं भगवंतं तत्थ गयं इहगते, पासउ मे भय तत्वगए इहगयंतिक? बंदइ नमसति २ | एवं वदासी-पुन्विपि मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सब्वे पाणाइवाए पञ्चक्रवाए जावजीवाए जाव मिच्छादमणसल्ले पच्चक्खाए जावजीवाए, इयाणिपि य गं समणस्स भ० म० अंतिए सव्वं पाणाइवार्य | पञ्चक्वामि जायजीवाए जाव मिरछादसणसल्लं पञ्चक्वामि, एवं सब्ध असणं पाणं खा० सा. चउन्विहंपि आहारं पञ्चक्खामि जावज्जीवाए, जपि य इमं सरीरं इ8 कंतं पियं जाव फुसंतुस्तिक एयंपिणं चरिमेहिं उस्सासनीसासेहिं वोसिरामित्तिकड्ड संलेहणाजूसणाजूसिए भत्तपाणपडियाइक्खिए पाओवगए कालं अणवकखमाणे विहरति । ॥१७॥ _ पछी ने स्कंदक अनगार श्रमणभगवंत महावीरनी अनुमति लइने हर्षवाळा, संतुष्ट थइ, यावत्-विकसित हृदयवाळा थइने उभा थया. उभा यह श्रमणभगवंतमहावीरने त्रणवार प्रदक्षीणा करी नमस्कार करी पोतानी मेळेज पांच महावतोने ग्रहण करे छे, ग्रहक करी ६ साधु अने साध्वीओने खमावे , खमावी देवा प्रकारना योग्य सविरो साथे विपुल पर्वत उपर धीमे धीमे चडी, मेघना समूहनी जेवा For Private and Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्ति ॥१५८॥ २ शतक उमेशः१ १५८॥ | प्रकाशवाला अने देवना रहेगणरूप पृथिवीशिलापट्टकने पडिलेहे-चारे बाजु तपासे , तेम करी बडीनीति अने लघुनीति करवा ना स्थान ने तपासे . पछी ते शीलपटक उपर डाभनो संथारो पाथरी, पूर्व दिशा तरफ मुख राखी पर्यकासने बेसी, दशे नख सहित बने हाथने मेगा करी, माथा साथे अडकावी, बन्ने हाथने जोडी आ प्रमाणे बोल्या:-अरिहंत भगवंतने यावत्-अचळ स्वरूपने प्राप्त पएलाओने नमस्कार थाओ. तथा अचळ स्थानने पामवानी इच्छावाला श्रमणभगवंत महावीरने नमस्कार थाओ. त्यां रहेला श्रमणभगवंतमहावीरने अहीं रहेलो हुं वांदु छु, त्यां रहेला श्रमणभगवंतमहावीर अहीं रहेला मने जूओ, एम करी भगवंतने वादी, नमी, आ प्रमाणे बोल्या के:-में पहेला श्रमणभगवंतमहावीरनी पासे कोइपण जीवनो विनाश न करचो, कोइपण प्रकारे कोइने दुःख न देव॒ एषो नियम ज्यांसुधी जींदगी टके त्यांसुधी लीधो हतो अने यावत्-'वस्तुनु ज्ञान, जेवी वस्तु होय तेज करवू, पण तेथी जुर्दु के उलटुं न समजवू' एवो पण नियम ज्यांसुधी जी त्यांसुधी पाळवानो निर्णय को हतो अने हमणा पण श्रमणभगवंतमहावीर | पासे ज्यांमधी जीq त्यांसुधी 'कोइने कोइपण प्रकारे दुःख न देवू' अने यावत् 'वस्तुनुं ज्ञान, सेना स्वभाव उपरथी करवू' पण तेथी जूदं न करघु एवा नियमो लडं डु तथा सर्व प्रकारनी खावानी वस्तुनो, सर्व प्रकारना पाणीनो, सर्व प्रकारना मेवा, मिष्टाननो, अने। सर्व प्रकारना मसाला तथा मुखवासोनो एम चारे जातना आहारनो ज्यांसुधी जीq त्यांसुधी त्याग करुं छु. वळी जे आ दुःखने न | देवा लायक यावत्-इष्ट, कांत अने प्रिय मारुं शरीर छ, तेने पण हुं मारा रेल्ला श्वासोच्छ्वासे त्याग करी दइश, एम करी | नेने संलेखना अने झूषणा करी, खान, पाननो त्याग कयों, तथा ते झाडनी पेठे स्थिर रही कालनी अवकांक्षा न करतां विहरे के, रहे थे. ॥१७॥ ARAT For Private and Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तए णं से खदए अण. समणस्स भ. मतहास्वाणं थेराणं अंतिए सामाइयमादियाई एक्कारस अंगाई व्याख्याप्रश्नतिः अहि जिता बहुपडिपुण्णाई दुवालसवासाई सामनपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता २ शतके सहि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता आलोइयपडिकते समाहिपत्ते आणुपुष्वीए कालगए (सू०९४) तए उद्देशः१ ॥१५९॥ ४ाणं ते थेरा भगवंतो वंदयं अण. कालगयं जाणित्ता परिनिबाणवत्तियं काउस्सग्गं करेंति २ पत्तचीवराणि गिण्हंति विपुलाओ पञ्चयाओ सणियं २ पञ्चोरुहंति २ जेणेब समणे भगवं म० तेणेव उवा० समणं भयवं म. वदति नमसंति २ एवं पदासी--एवं खल्लु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी खंदए नाम अणगारे पगइभहए पग-2 तिविणीए पगतिउवसंते पगतिपयणुकोहमाणमायालोमे मिउमदवसंपन्ने अल्लीणे भद्दए विणीए, से णं देवाणुपिएहिं अब्भणुण्णाए समाणे सयमेव पंच महब्बणणि आरोवित्ता समणे य समणीओ य स्वामेत्ता अम्हे हिं सद्धि विपुलं पब्वयं तं चेव निरवसेसं जाब भाणुपुब्धीए कालगए इमे य से आयारभंडए । भंतेत्ति भगवं गो| यमे समणं भगवं म. वंदति नमंसति २ एवं बयासी-एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी म्बदए नाम अण. | कालमासे कालं किवा कहिं गए? कहिं उबवण्णे, गोयमाइ समणे भगवं महा. भगवं गोयम एवं बयासीएवं खलु गोयमा! मम अंतेवासी खंदए नाम अणगारे पगतिभ० जाप से णं मए अम्भणुण्णा समाणे मयमेव पंच महब्बयाई आरुहेत्ता तं चेव सवं अविसेसिय नेयम्वं जाव आलोतियपडिकते समाहिपत्त कालमासे | कालं किया अधुए कप्पे देवताए उववणे, तत्थ णं अत्गइयाण देवाणं यावीसं सागरोवमाई ठिती प०, तस्स TRASEX For Private and Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या पणं भववाहति बुझिहिति माडसी । २-१ ॥ विरो पासे सामारि प्रज्ञप्तिः ॥१६०॥ २ शतके उमेशः१ ॥१६॥ णं खंदयस्सवि देवस्स बावीसं सागरोवमाई ठिती पण्णसा । से णं भंते ! खंदए देवे ताओ देवलोगाओ आउ खएणं भवक्रबएणं ठितीख० अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिति ? कहिं उबवजिहिति?, गोयमा ! महा| विदेहे वासे सिज्झिहिति बुज्झिहिति मुश्चिहिति परिनिवाहिति सव्वदुक्खाणमंतं करेहिति (सू०९५)॥ | खंदओ सम्मत्तो ।। बितीयसयस्स पढमो उद्देसो ॥ २-१॥ द्र हवे ते स्कंदक अनगार श्रमणभगवंतमहावीरना तेवा प्रकारना स्थविरो पासे सामायिक वगेरे अग्यार अंगोने भणीने पूरेपूरा चार वर्षो सुधी साधुपणु पाळी, एक महिनानी संलेखनावडे आत्माने संयोजी, साठ टंक खाधा विनाना बीतावी, आलोचन अने प्रतिक्रमण करी, समाधि प्राप्त करी, क्रमपूर्वक काळधर्मने पाम्या. पछी ते स्कंदक अनगारने मरण पामेला जाणी, तेना परिनिर्वाण निमित्ते कायोत्सर्ग-एक प्रकारचें ध्यान धरे छे. अने तेना वस्त्रो अने पात्रो ले छे. पछी ते विपुल पर्वत उपरथी धीमे धीमे उतरी, ज्यां श्रीश्रमणभगवंतमहावीर विराज्या छे त्यां आवी श्रमणभगवंतमहावीरने वांदी, नमी दे स्थविरोए आ प्रमाणे कडं के:-आप देवानुप्रिय शिष्य स्कंदक नामना अनगार, जे स्वभावे भद्र, विनयी, शांत, ओछा क्रोध, मान, माया अने लोभवाळा, अत्यंत निर| भिमानी, गुरुनी साथे रहेनारा, कोइने संतापे नहीं एवा, अने गुरुभक्त हता. तथा जे आप देवानुप्रियनी अनुमतिथी पोतानी मेळेज | पांच महाव्रतोने आरोपी, साधु, साध्वीओने खमावी, अमारी साधे विपुल पर्वत उपर आव्या हता. यावत्-ते क्रमपूर्वक काळधर्मने पाम्या छे. अने आ तेना उपकरणो छ, हवे 'भगवन् !' एम कही भगवान् गौतमे श्रमणभगवतमहावीरने बांदी, नमी आ प्रमाणे कघु के-आप देवानुप्रियना शिष्य For Private and Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उद्देशः२ ॥१६॥ स्कंदक नामना अनगार कालमासे काळ करी क्या गया छ अने क्या उत्पन थया छे? त्यारे हे गौतम वगेरे' एम कही आमंत्री व्याख्या श्रमण भगवंत महावीरे भगवान् गौतमने आ प्रमाणे कधु के-हे गौतम! ते स्वभावे भद्र मारा शिष्य स्कंदक नामे अनगार मारी प्रज्ञप्तिः एम कही आमंत्री अनुमतिथी पोतानी मेळेज पांच महाव्रतोने आरोपी, आलोचन अने प्रतिक्रमण करी, समाधि पामी कालपासे काळ करी अच्युतक॥१६॥ ल्पमां देवपणे उत्पन्न थया छे. ते कल्पमा केटलाक देवोर्नु पण बाबीश सागरोपमनुं आयुष्य छे. अने ते स्कंदकदेवनुं पण नावीस तसागरोपमनुं आयुष्य छे. (गौतमे क) हे भगवन् ! ते स्कंदक देव, ते आयुष्यनो क्षष थया पछी, ते भवनो क्षय यया पछी अने ते | स्थितिनो क्षय यया पछी ते देवलोकथी च्यवीने तुरतज क्या जशे ? अने क्या उत्पन्न यशे? हे मौतम ! ते स्कंदक देव पोतानुं आयुष्य पूरुं कर्या पछी महाविदेहक्षेत्रमा सिद्ध थशे, बुद्ध थशे, मुक्त थशे, परिनिर्वाण पामशे अने सर्व दुःखोनो विनाश करशे. ॥ ९५ ।। | स्कंदक कथा समाप्त थइ. भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद्भगवतीसूत्रना बीना शतकनो प्रथम उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. उद्देशक २. कति णं भंते ! समुग्घाया पण्णता, गोयमा! सत्त समुग्धाया पण्णत्ता, तंजहा-वेदणासमुग्घाए एवं समुग्घायपदं छाउमत्थियसमुग्घायवज भाणियध्वं, वेमाणियाणं कसायसमुग्घाया अप्पाबहुयं । अणगारस्स हणं भंते ! भावियप्पणो केवलिसमुग्याय जाव सासयमणागयद्धं चिट्ठति, समुग्धायपदं नेयब्वं (सू०९६)। For Private and Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रवाति ॥१६२ वितीयसए वितीयोइसो भाणियव्यो । २-२॥॥ हा [प्र०] हे भगवन् ! केटला समुद्घातो कह्या छ ? [उ.] हे गौतम ! समुद्घातो सात कह्या हे ते आ प्रमाणे-वेदना समुद् २ शतके घात विगेरे (कषायस०, मारणांतिकस० वैक्रियस• तैजसस० आहारकस. अने केवलिस०) छेल्लुं समुद्घातपद जाणवू, परंतु तेमा उदेशः२ आवती छाबस्थिक समुद्घातनी हकीकत न कहेवी अने ए प्रमाणे वैमानिको सुधी जाणवू तथा कषायसमुद्घातो अने अल्पबहुत्व |3| ॥१६२।। कहे, [प्र०] हे भगवन् ! भावितात्मा अनगारने केवलिसमुद्घात आखा भविष्यकाळमुधी शाश्वती रीते रहे ? [उ०] हे गौतम ! | अहीं पण समुद्घातपद-जाणवं. ॥ ९६ ॥ "भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमत्रना बीजा शतकमां बीजा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. उद्देशक ३. कति णं भंते! पुढवीओ पनत्ताओ?, जीवाभिगमे नेरइयाणं जो वितिओ उद्देसो सो नेयब्यो, पुढविं द्र ओगाहित्ता निरया संठाणमेच पाहल्लं। [विक्वंभपरिक्खेवो वण्णो गंधो य फासो य ॥१॥] जाव किं सब्वपाणा उबवण्णपुब्बा ?, हंता गोयमा ! असतिं अदुवा अणतखुत्तो (सू०९७) पुढवी उद्देसो ॥२-३॥ [प्र.] हे भगवन् ! पृथिवीओ केटली कही छे? [उ०] हे गोतम ! जीवामिगमसूत्रमा कहेलो, नैरयिकोनो बीजो उद्देशक | जाणवो. ते उद्देशकमां पृथिवीओ संबंधी हकीकत हे, तथा नारको संबंधी, नरक पृथिवीनी जाडाइ संबंधी, तेओना संस्थान संबंधी, For Private and Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१६३।। अने बीजी पण हकीकत के. [40] हे भगवन् ! शुं सर्व जीवो उपपन्नपूर्व छे ! अर्थात् शुंबधा जीवो रत्नप्रभा पृथिवीनां त्रीशलाख नरकोमा आवी गएला छे ? [उ.] हे गौतम ! हा, अनेकवार अथषा अनंतबार बधा जीवो रत्नप्रभा पृथिवीना त्रीशलाख नरकोमा २ शतके आवी गया छे. पृथिवी उद्देशो कहेवो. ॥१७॥ उद्देशः२ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद्भगवतीमत्रना बीजा शतकमा श्रीजाउद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. ||१६३॥ उद्देशक कति ण भंते ! इंदिया पन्नत्ता!, गोयमा! पंचिंदिया पन्नत्ता, तंजहा-पदमिल्लो इंदियउद्देसो नेयम्वो, संठाणं बाहुल्ल पोहत्तं जाव अलोगो (सू०९८)। बीयसए इंदियउद्देसो चउत्थो ॥२-४ ॥ [प्र०] हे भगवन् ! केटली इंद्रियो कही छ ? [उ.] हे गौतम ! पांच इंद्रियो कही छे. ते आ प्रमाणे स्पर्श वगेरे. अहीं प्रज्ञापनामत्रमा कहेलो इंद्रिय संबंधी उद्देशक कहेवो. तथा तेमां कह्या प्रमाणे इंद्रियनो घाट, जाडाइ, अने पहोळाइ पण कहेवी तथा अलोक सुधीना विवेचनवाळो आखो इंद्रिय उद्देशक कहेवो. ॥ ९८॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद्भगवतीमत्रना बीजा शतकमां चोथा उद्देशानो मृलार्थ संपूर्ण थयो. उद्देशक ५. अण्णउत्थियाण भंते! एवमाइक्खंति भासंति पन्नति परवेंति, तंजहा-एवं खलु नियंठे कालगए समाणे | For Private and Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१६॥ 8 देवरभूषणं अप्पाणेणं से णं तत्थ णो अन्ने देवे नो अन्नेसिं देवाणं देवीओ अहिजुंजिय २ परियारेइ १, णो अप्पचियाओ देवीओ अभिमुंजिय २ परियारेइ २, अप्पणामेव अप्पाणं विउव्यिय २ परियारेइ ३, एगेवि य गं A२ शतके जीवे एगेण समएणं दो वेदे वेदेह, तंजहा-इत्थिवेदं पुरिसवेदं च, एवं परउत्थियवत्तव्यया नेयब्वा जाव इस्थि उदेशः२ वेदं प० । से कहमेयं भंते ! एवं?, गोयमा! जपणं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जाव इत्यिवेदं च पुरिसवेदं | ४ ॥१६४॥ च, जे ते एवमासु मिच्छं ते एवमाहंसु, अहं पुण गोयमा! एवमातिक्खामि भा०प० परू-एवं खलु नियंठे कालगए समाणे अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवन्ति महिड्ढीएसु जाव महाणुभागेसु दूरगतीसु चिरद्वितीएसु, से णं तस्य देवे भवति महिड्डीए जाव दस दिसाओ उज्जोवेमाणे पभासेमाणे जाव पडिरूवे। से णं तत्थ अन्ने देवे अन्नेसिं देवाणं देवीओ अभिमुंजिय २ परियारेइ १, अप्पणच्चियाओ देवीओ अभिजुंजिय २ परियारेइ २, नो अप्पणामेव अप्पाणं विउब्विय २ परियारेइ ३, एगेऽविय णं जीवे एगेणं समएणं एगं वेदं बेदेइ, तंजहा-इथिवेदं वा पुरिसवेदं वा, जे समयं इस्थिवेदं वेदेइ णो तं समयं पुरुसवेयं वेएइ, जं समयं पुरिसवेयं वेएइ नो तं समयं इत्थिवेयं वेदेह, इथिवेयस्स उदएणं नो पुरिसवेदं वेएइ, पुरिसवेयस्स उदएणं नो इत्थिवेयं वेएइ, एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एगं वेदं वेदेह, तंजहा-इत्थीवेयं वा पुरिसवेयं वा, इत्थी इत्यिवेएणं उदिनेणं पुरिसं पत्थेइ, पुरिसो पुरिसएणं उदिन्नणं इत्यि पत्थेइ, दोवि ते अन्नमन्नं पत्थेति, तंजहाइत्थी वा पुरिसं पुरिसे वा इत्थि ॥ (सू०९९) । से णं तत्थ सेणं तत्थ देवे भास देवताए उवा अग्नेसि देवाण देवमहिङ्गदीप जाव दस विसाममडिङ्गदीस जाब महायुः वेषणं उदिनेणं पुरिस पत्यार एगेणं समएणं एग वेदवष्णं नो परिसवेवं वेए। For Private and Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः २ शतके उद्देशः५ ॥१५॥ [म०] हे भगवन् ! अन्यतीथिको आ प्रमाणे कहे थे, भाषे.के, जणावे छे. अने प्ररूपे के. "कोइपण साधु काळ कर्या पछी दादेव थाय अने ते देव त्यां वीजा देवो साथे अथवा बीजा देवोनी देवीओ साथे विषयसेवन करतो नथी. नेमज पोतानी देवीओने | | वश करीने तेओनी साये पण परिचारणा करतो नथी, पण ते देव, पोतेज पोतानां नवां वे रुप धारण करे छे. तेमा एक रूप देवनुं अने बीजु रुप देवीनुं होय के ए प्रमाणे बे रूप बनावीने ते देव देवी साधे विषयसेवन करे . ए प्रमाणे एक जीव एकज काळे वे | वेदने अनुभवे छ:- १ पुरुषवेद अने स्त्रीवेद. आ प्रमाणे अन्यमतावलंब ओनी वक्तव्यता कहेवी अने ते स्त्रीवेद अने पुरुषवेद." हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे केम थाय ? [उ०] हे गौतम! जे ते अन्यतीथिको ए प्रमाणे को छे, स्त्रीवेद अने पुरुषवेद. ते अन्यमताव. लंबीओए जे प्रमाणे कांछे ते असत्य कयु के. वळी हे गौतम! हुँ तो आ प्रमाणे कहुं हुं, भाषु छु, जणावू , अने प्ररूपुंछु के कोइपण निग्रंथ मर्या पछी कोइ एक देवलोकमां उत्पन थाय छे, जे देवलोको मोटी ऋद्धिवाळा मोटा प्रभावधाळा, दूर जवानी शक्तिवाला अने| | लांचा आयुष्यवाळा होय छे. पवा देवलोकमा जइने ते साधु मोटी ऋद्धिवाको अने दशे दिशाने प्रकाशित करतो, शोभायमान करतो, ते स्वरूपवान देव थाय के अने त्यां ते देव बीजा देवो साथे तथा बीजा देवनी देवीओ साधे तेओने बश करीने परिचारणा करे छ तेमज पोतानी देवीओने वश करीने परिचारणा करे छे. पण पोते पोताना वे रुप बनावीने परिचारणा करतो नथी. एक जीव एक वेदने अनुभवे के:-कीवेद, के पुरुषवेद. जे समये स्त्रीवेदने वेदे छे, ते समये पुरुषवेदने नथी वेदतो. जे समये पुरुषवेदने वेदे के ते समये स्त्रीवेदने नथी वेदतो. स्त्रीवेदना उदयथी पुरुषवेदने नी वेदतो. पुरुषवेदना उदयथी स्त्रीवेदने नथी वेदतो. माटे एक जीव एक समये एक वेदने वेदे हे. ते आ प्रमाणे:-र्ख बेद, के पुरुषवेद. ज्यारे स्त्रीवेदनो उदय थाय त्यारे स्त्री पुरुषने प्रार्थे छे अने For Private and Personal use only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir व्याख्या CA २ शतके उद्देशः५ प्रज्ञप्तिः ॥१६६॥ ॥१६६॥ SAKASH %ARRRA%AA% ज्यारे पुरुषवेदनो उदय थाय त्यारे पुरुष स्त्रीने प्राय छ अर्थात् ते बने परस्पर एक बीजाने प्रार्थे छे. ते आ प्रमाणे:-स्त्रीपुरुषने प्राथै छे अने पुरुष स्त्रीने प्रार्थ के. ॥१९॥ उदगगन्भे णं भंते ! उदगगन्भेत्ति कालतो केवचिरं होइ?, गोयमा! जहन्नेणं एवं समय, उक्कोसेणं छम्मासा ॥ तिरिक्खजोणियगम्भे णं भंते ! तिरिक्वजोणियगम्भत्ति कालओ केवचिरं होति?, गोयमा ! जहनेणं अंतोमुहुतं, उकोसेणं अट्ट संबच्छराई॥ मणुस्सीगन्भे णं भंते ! मणुस्सीगन्भेत्ति कालओ केवच्चिर होइ, गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पारस संबच्छराई ॥ (मु०१०) । [प्र०] हे भगवन् ! उदक गर्भ ए केटला समय सुंधी 'उदक गर्भ रूपे रहे ? [उ०] हे गौतम! ते ओछामा ओर्छ एक समय सुधी अने वधारेमा बधारे छ महिना सुधी 'उदक गर्भ रूपे रहे. [प्र०] हे भगवन् ! तिर्यग्योनिकगर्भ ए केटला समय सुधी 'तीर्यग्योनिक गर्भरूपे रहे ? [उ०] हे गौतम! ते ओछामा ओर्छ अंतर्मुहूर्त सुधी अने वधारेमा वधारे आठ वरस सुधी तिर्यग्योनिक गर्भरूपे रहे. [प्र.] हे भगवन् ! मनुषीगर्भ ए केटला समय सुधी मनुषीगर्भरूपे रहे ! [उ०] हे गौतम ! ते ओछामां ओछु अंतर्मु|हर्त सुधी अने वधारेमां वधारे चार वरस सुधी 'मनुषीगर्म रूपे रहे. ।। १००। ___कायभवत्थे ण भंते! कायभवत्थेत्ति कालओ केवचिरं होइ', गोयमा! जहनेणं अंतोमुहत्तं उकोसेणं चउब्वीसं संबच्छराई ॥ (सू०१०१)। [H०] हे भगवन् ! कायभवस्य ए केटला समय सुधी 'कायभवस्थ' रूपे रहे। [उ०] हे गौतम ! ते ओछामा ओछं अंतमुहर्त % For Private and Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुधी अने वधारेमा बधारे चोवीश वरस सुधी 'कायभवस्थ रूपे रहे. ॥१०१।। व्याख्या- मणुस्सपंचेंदियतिरिक्वजोणियधीए णं भंते! जोणियभए केवतियं काल संचिट्टइ, गोयमा! जहन्नणंदा२शतके प्रज्ञप्तिः अंतोमुहत्त उकोसेणं वारस मुहुत्ता ॥ (सू० १०२)॥ उद्देशः५ ॥१६७॥ . [म.] हे भगवन् ! मनुषी अने पंचेंद्रिय तियंचणी संबंधी योनिगत बीज ते केटला काळ सुधी 'योनिभूत' रूपे रहे. [उ०] हे | ॥१६॥ गौतम ! ते कमतीमा कमती अंतरमुहुर्त सुधी अने वधारेमा वधारे पारमुहर्त 'योनिभूत' रूपे रहे है. ॥ १०२ ॥ एगजीवे णं भंते ! जोणिए बीयम्भूए केवतियाणं पुत्तसाए हव्यमागच्छा, गोयमा ! जहनेणं इकस्स वा दोण्हं था तिण्हं वा उकोसेणं सयपुष्टुप्तस्स जीवाणं पुत्तत्ताए हव्यमागरणति (सू० १०३)। । [म.] हे भगवन् ! एक जीव एक भवमा केटला जणनो पुत्र थाय ? [उ.] हे गौतम! एक जीव ओछामा ओछा एक जणनो के त्रण जणनी अने वधारेमा बधारे बसेंधी नवसें जणनो पुत्र थाय. ॥ १०३॥ BI पगजीवस्स ण भंते ! एगभवग्गहणेणं केवइया जीवा पुत्तत्ताए हब्बमागच्छंति ?, गोयमा! जहन्नेणं इको दावा दो वा तिन्नि वा, उकोसेणं सयमहस्सपुहत्तं जीवाणं पुत्तत्ताप हब्वमागच्छंति, से केणतुणं भंते ! एवं बुधइ जावहब्वमागच्छइ ?, गोयमा ! इत्थीए य पुरिसस्स य कम्मकडाग जोणीए मेहुणवत्तिए नाम संजोग समु.। प्पलह, ते दुहओ सिणेहं संचिणंति २ तत्थ णं जहन्नेणं गको वा दो वा तिषिण वा उकोसेणं सयसहस्सपुहत्तं दाजीवाणं पुत्तत्ताए हब्वमागच्छति, से तेणदेण जाव हव्यमागच्छद (सू०१०४)। ARREARRC % For Private and Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥१६८॥ २ शतके उद्देशः५ ॥१६८॥ www.kobatirth.org [म.] हे भगवन् ! एक जीवने एक भवमा केटला पुत्रो थाय ? [उ०] हे गौतम ! ओछामा ओछा एक, वे के त्रण अने वधारमा वधारे बेथी नवलाख जेटला पुत्र थाय. [प्र०] हे भगवन् ! तेम यवानुं शुं कारण ? [उ०) हे गौतम ! स्त्री अने पुरुषने कर्मकृत योनिमां मधुनीक नामनो संयोग उत्पन्न थाय छे. त्यारपछी ते बन्ने वीर्य अने लोहीनो संबंध करे छे अने पछी तेमा ओछामा ओछा एक, बे के त्रण अने वधुमां वधु नव लाख सुधी जीवो पुत्र तरीके उत्पन्न थाय हे. हे गौतम ! ते माटे पूर्व प्रमाणे कयुं छे. ॥ १०४॥ मेहुणेणं भंते ! सेवमाणस्स केरिसिए असंजमे कजह?, गोयमा ! से जहानामए केइ पुरिसे रूयनालियं वा बूरनालियं वा तत्तणं कणएणं समभिधंसेज्जा एरिसएणं गोयमा मेहुणं सेवमाणस्स असंजमे कब्जद, सेवं भंते ! सेवं भंते ! जाव विहरति ॥ (मू. १०५) ।। [प्र०] हे भगवन् ! मैथुनने सेवता मनुष्यने केवा प्रकारनो असंयम होय ? [उ.] हे गौतम ! जेम कोई एक पुरुष होय अने | ते तपावेला सोनाना सरीयावडे रूइनी नळीने के बलोखांनी नळीने बाळी नाखे. हे गौतम! तेबा प्रकारना मैथुनने सेवता मनुष्यने असंयम होय. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे एम कही विहरे के. ॥ १०५॥ | तए णं समणे भगवं महावीरे रायगिहाओ नगराओ गुणसिलाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ २ बहिया जणवयविहारं विहरति । तेणं कालेणं २ तुंगिया नामं नगरी होत्था, वपणओ, तीसे णं तुंगियाए नगरीए बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए पुष्फवतिए नामं चेतिए होत्था, बण्णओ, तत्थ णं तुंगियाए नयरीए यहवे समणोः | For Private and Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या IP प्रज्ञप्तिः ॥१६९॥ २ शतके उद्देशः५ ॥१६९॥ वामया परिवसति अड्ढा दित्ता विच्छिण्णविपुलभवणसयणासणजाणमाहणाइण्णा बहुधणबहुजायरूवरयया आओगपओगसंपउत्ता विच्छवियविपुलभत्तपाणा बहुदासीदासगोमहिसगवेलयप्पभूया बहुजणस्स अपरि| भूया अभिगयजीवाजीवा उचलद्धपुण्णपावा आसबसंवरनिरकिरियाहिकरणबंधमोक्खकुसला असहेजदेवा सुरनागसुचण्णजक्खरखसकिनरपुिरिसगरुलगंधव्यमहोरगावीएहिं देवगणेहिं निग्गंथाओ पावयणाओ अ| णतिकमणिज्जा, णिग्गंथे पावयणे निस्संकिया निकंखिया निवितिगिच्छा लट्ठा गहियट्ठा पुच्छिगट्ठा अभिगयट्ठा विणिच्छियट्ठा अद्विमिंजपेम्माणुरागरत्ता, अयमाउसो। निग्गंथे पावयणे अटे अयं परमट्टे सेसे अणढे, ऊसियफलिहा अवंगुयदुवारा चियत्तंतेउरघरपवेसा बहहिं सीलब्बयगुणरमणपञ्चकखाणपोसहोववासेहि, चाउद्दसमुदिपुण्णमासिणीसु पडिपुग्नं पोसहं सम्म अणुपालेमाणे समणे निग्गंथे फासुएसणिजेणं असणपाणखाइमसाइमेणं वत्थपडिग्गहकंबलपायपुंछणेणं पीढफलगसेजासंथारएणं ओसहभेमजेण य पडिलाभेमाणा | आहापडिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावमाणा विहरंति ॥ (सू० १०६)॥ त्यारपछी श्रमण भगवंत महावीर राजगृह नगरथी, गुणशिलक नामना चैत्यथी नीकळी बहार जनपद विहारे विहरे छे. ते काळे ते समये तुंगिका नामनी नगरी हती. वर्णक. ते तुंगिका नगरीमा उत्तर अने पूर्वना दिग्भागमा पुष्पवती नामर्नु चन्य हतुं. वर्णक. त्यां। | तुंगिका नगरीमा घणा श्रावको रहेता हता. ते श्रावको अढळक धनवाला अने देदीप्यमान हता. सेओनां रहेवानां आवासो मोटा अने उंचा हतां तथा तेओनी पासे पथारीओ, आसनो, गाडा वगेरे वहाणो अने बळद वगेरे वाहनो पुष्कळ हता, लेओनी पासे धन, For Private and Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥ १७० ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सोनुं अने रूपुं पण घणुं हतुं तेओ व्यापार वाणीज्य करी धननें बधारवामां तेमज बीजी अनेक कळाओमां तेओ कुशळ हता. बली तेओने त्यां भोजन सामग्री घणी थती हती कारण तेओने घरे अनेक माणसो भोजन करता हता. वली विविध प्रकारनां खानपानादि हतां तेओने त्यां अनेक नोकरो अने चाकरडीओ, गायो, पाडाओ, अने पेंटाओनो समूह हतो. बीजा घणा माणसोनी अपे क्षाए तेओ चढीयाता हता तेओ जीव अने अजीवना स्वरूपने सारी रीते समजता हता, वली पुन्य अने पापनो ख्याल हतो तेओ आस्रव, संवर, निर्जरा, क्रिया, अधिकरण, बंध अने मोक्ष, एटलां वानामां क्यूं ग्राह्य अग्राह्य है ए सारी पेठे जाणता हताः तेओ कोइपण कार्यमां परावलंबी न हता, तेओ निर्बंधना प्रवचनमां एवा तो चुस्त हता के समर्थ देवो, असुरो, नागो, ज्योतिष्को, यक्षो, राक्षसो, किंनरो किंपुरूषो, सुवर्णकुमारो, गंधवों अने महारोग विगेरे बीजा देवो पण तेओने निर्ग्रथना प्रवचनथी कोइ रीते चलायमान करी शकता नहीं, तेओ निर्ग्रथना प्रवचनमां शंका अने विचिकित्सा विनाना हता, तेओए शास्त्रना अने मेळव्या हता, शास्त्रना अर्थने चोकतापूर्वक ग्रह्या हता, शास्त्रना अर्थमा संदेहवाळां ठेकाणा पूछी निर्णीत कर्यां हतां, शास्त्रना अर्थाने अभिगम्या हता अने शास्त्रोना अर्थनुं रहस्य तेओए निर्णयपूर्वक जायुं हतुं तथा तेओने साधुओना प्रवचन उपर हाडोहाड प्रेम व्यापी गयो हतो, तेने लइने तेओ एम कहेता हता के "हे चिरंजीव ! आ निर्बंधतुं प्रवचन एज अर्थ अने परमार्थरूप छे अने बाकी बीजुं सर्व अनर्थरूप छे, वळी तेओनी उदारताने लीघे तेओना दरवाजानी पछवाडे रहेतो उलारीयो हंमेशां उंचोज रहेतो हतो अर्थात् तेओना दरवाजा हंमेशाना माटे खुल्ला हता, वळी ते श्रावको जेने घरे के जेना अंतःपुरमा जता तेओने प्रीति उपजावता, तथा शीलव्रत, गुणत्रत, विरमण, प्रत्याख्यान, पौषध अने उपवासोबडे चौदश, अट्टम, अमास, तथा पूनमने दिवसे परिपूर्ण पौषधने सारी रीते For Private and Personal Use Only २ शतके उद्देशः ५ 1129011 Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥१७॥ ******* आचरता तया श्रमण निग्रंथोने निर्दोष अने ग्राह खान, पान, खादिम, स्वादिम, वख, पात्र, कामळ, रजोहरण, पाटीयु, शय्या 15 | संथारो अने ओसडवेसट, ए बधुं आपी यथाप्रतिगृहीत तपकर्मवडे आत्माने भावता विहरे छे. ॥१०६ ।। २ शतके तेणं कालेणं २ पासावचिना थेरा भगवंतो जातिसंपन्ना कुलसंपन्ना बलसंपन्ना रूवसंपन्ना विणयसंपन्ना उद्देशः५ ४ाणाणसंपन्ना सणसंपन्ना चरित्तसंपन्ना लज्जासंपन्ना लाघवसंपन्ना ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी जियकोहा | ॥१७॥ |जियमाणा जियमाया जिसलोभा जियनिदा जितिंदिया जियपरीसहा जीवियासमरणभयविप्पमुक्का जाव कुत्तियावणभूता बहुस्सुया बहुपरिवारा पंचहिं अणगारसएहिं सद्धिं संपरिवुडा अहाणुपुब्धि परमाणा गामाणुगामं दृइलमाणा सुहंसुहेणं विहरमाणा जेणेव तुंगिया नगरी जेणेव पुप्फवतीए चेइए तेणेव उवागच्छति २ अहापडिरूवं उग्गहं उगिणिहत्ताणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाण विहरंति ॥ (सू० १०७) ॥ ते काले ते समये पार्श्वनाथ प्रभुनी परंपरावाला स्थविर भगवंतो के जेओ उत्तम जातिवाला, उत्तम कुळवाला, बळबाग, उत्तम रूपवाला, विनयवाळा, ज्ञानवाला, दर्शनयाळा, चारित्रवाळा, लज्जा-संजमवाळा, लाघव-ओछी उपधिवाळा, मनना बळवाळा, | तेजवाळा, बोलवामां निपुण, तेमज क्रोध, मान, माया, अने लोभ, मिद इंद्रिय अने परिषहोने जीतनारा तथा जीवानी इच्छा | अने मरणनो भय ए बन्नेथी रहित यावत्-त्रण जगतनी वस्तुओ मळे तेवी दुकान जेवा प्रभाववाळा बहु श्रुल, घणा परिवारवाला | एवा हता, तेओ पांचसे साधुओनी साथे परिवारवाळा अनुक्रमे चालता गामेगाम विहार करता सुखे समाधे संजम पालता जे जगोपर तुंगिया नगरी छे, जे जगोपर पुष्पवती नामर्नु चैत्य छे त्यां पधार्या अने आवी साधुने लायक एवी जग्यानी मागणी करीने || AKASA%AXSA%A4%% * For Private and Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः |२ शतके उदेशः५ ॥१७२।। ॥१७२॥ | संजम अने तपथी आत्माने वास्तीत करता धका विचरे छे. ॥१०७ ॥ तए णं तुंगियाए नगरीए सिंघाडगतिगचउक्कचच्चरमहापहपहेसु जाब एगदिसाभिमुहा णिवायंति, तएण ते समणोवासया इमीसे कहाए लद्दा समाणा हतुट्ठा जाव सदाति २ एवं वदासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! पासावञ्चेजा थेरा भगवंतो जातिसंपन्ना जाव अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हिताणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणा विहरंति, तं महाफलं खलु देवाणुप्पिया! तहारूवाणं थेराणं भगवंताणं णामगोयस्सवि सवणयाए किमंग पुण अभिगमणवंदणनमंसणपडिपुच्छणपज्जुवासणयाए ? जाव गहणयाए ?, तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया! थेरे भगवंते बंदामो नमसामो जाव पज्जुवासामो, एयं णं इह भबे वा परभवे वा जाव अणुगामियताए भविस्सतीतिकहु अनमन्नस्स अंतिए एयमढे पडिसुणेति २ जेणेव सयाई २ गिहाई तेणेव उवागच्छति २ पहाया कयबलिकम्मा कयकोउयमंगलपायच्छित्सा सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवराई परिहिया अप्पमह|ग्याभरणालंकियसरीरा सएहिं २ गेहेहितो पडिनिक्खमंति २ त्ता एगयओ मिलायंति २ पायविहारचारेणं तुंगियाए नगरीए मजझमज्झेणं णिग्गच्छति २ जेणेव पुप्फवतीए चेइए तेणेव उवागच्छंति २ धेरे भगवंते पंचविहेणं अभिगच्छंति, तंजहा-सचित्ताणं दव्वाणं विउसरणयाए १ अचित्ताणं दवाणं अविउसरणयाए २ एगसाडिएण उत्तरासंगकरणेणं ३ चक्खुप्फासे अंजलिप्पगहेणं ४ मणसो एगत्तीकरणेणं ५ जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवा६ गच्छंति २ तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ २ जाव तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासंति ॥(सू० १०८)॥ For Private and Personal Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥ १७३॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एवी बात तुंगका नगरीना सिंघोडाना आकारवाळा रस्तामां त्रण, चार, अने पांच शेरी मळे तेवा रस्तामां राजमार्ग तथा सामान्य शेरीओोमां विस्तार पामी. तेथी ते नगरीमा रहेला श्रमणोपासक ते वातने सांभळीने हर्षोत थया अने संतुष्ट थया, तथा तेओए एक बीजा श्रमणोपासकने बोलावी आ प्रमाणे वातचीत करी के:- हे देवानुप्रिय ! पार्श्वनाथना शिष्य- स्थविर भगवतो यथाप्रतिरूप अवग्रहने धारण करी संयम अने तपवडे आस्माने भावता विचरे छे. तो हे देवानुप्रिय ! तथारूप स्थविर भगवंतोनुं नाम के गोत्र पण मोडं फन्ड छे, तो पछी तेओनी सामे जवाथी, तेओने वांदवाथी, नमवाथी, कुशल वर्तमान पूछवाथी अने तेओनी सेवा करवायी तो कल्याण थाय तेमां आश्चर्य शुं ? माटे हे देवानुप्रिय ! आपणे बघा ते स्थविर भगवंत पासे जड़ए अने तेओने बांदीए, नमीए अने तेओनी पर्युपासना करीन. ए कार्य आपणने आ भत्र अने परभत्रमा हितरूप छे तथा परंपराए कल्याणरूप अशे ए प्रमाणे वार्तालाप करी तथा परस्पर स्वीकार करी अने पछी तेओ पोताना गृह तरफ जाय है. घरे जड़ स्नान करी, गोत्रदेवीनुं पूजन करी, कौतुक अने मंगलरूप प्रायश्चित करी बहार जवाने योग्य अने मंगलरूप शुद्ध वखोने उत्तमतापूर्वक पहेरी ओ पोतपोताने घरेथी बहार नीकले छे अने ते बधा एक ठेकाणे मळे छे, पछी पगे चालीने शरना मध्यभागनी बच्चेथी नीकळे ले, जे तरफ पुष्पवती चैत्य द्वे त्यां आवी स्थविर भगवंताने पांच प्रकारना अभिगम छे ते आ प्रमाणे:- सचितद्रव्योने कोरे मूर्के, अने अचिचद्रव्यवे साथे रखे थे, एक शाट्रिक उत्तरासंग करे ले, तेमने जुए के तरतज हाथ जोडे छे, अने मनने एकाग्र करे . ए प्रमाणे पांच अभिगमो साचवी ते श्रमणोपासको ते स्थविर भगर्जतोनी पाले जइ, ऋण प्रदक्षिणा दे छे अनं त्रण जातनी सेवावडे तेनी पर्युपासना करे छे. ॥ १०८ ॥ For Private and Personal Use Only २ शतके उद्देशः ५ ॥१७३॥ Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २ शतके उमेशः५ ॥१७॥ तए णं ते थेरा भगवंतो तेसिं समणोवासयाणं तीसे य महतिमहालियाए चाउज्जामं धम्म परिकहेंति जहा व्याख्या केसिसामिस्स जाव समणोवासियत्ताए आणाए आराहगे भवति जाव धम्मो कहिओ । तए णं ते समणोवाप्रज्ञप्तिः वासया थेराणं भगवंताणं अंतिए धम्मं सोचा निसम्म हहतुट्ट जाव हयहियया तिक्खुत्तो आयाहिणप्पया॥१७४ाहिणं करेंति २ जाव तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासंति २ एवं वदासी-संजमे णं भंते! किंफले, तवेणं भंते ! किंफले?, तए णं ते थेरा भगवंतो ते समणोवासए एवं बदासी-संजमे णं अजो! अणण्हयफले, तवे बोदाणफले, तए णं ते समणोवासया धेरे भगवंते एवं वदासी-जति णं भंते ! संजमे अणण्हयफले तवे बोदाणफले किंपत्तियं णं भंते ! देवा देवलोएस उववज्जति ?, तत्थ णं कालियपुत्ते नाम थेरे ते समणोवासए एवं | वदासी-पुरुवतवेणं अजो ! देवा देवलोएसु उववजंति, तत्थ णं मेहिले नाम थेरे ते समणोवासए एवं वदासीपुश्वसंजमेणं अजो! देवा देवलोएसु उववनंति, तत्थणं आणंदरक्खिए णाम थेरे ते समणोवासए एवं वदासीकम्मियाए अजो! देवा देवलोएसु उववनंति, तत्थ णं कासवे णाम थेरे ते समणोवासए एवं वदासी-संगियाए अजो! देवा देवलोएसु उववजंति, पुब्बतवेणं पुश्वसंजमेणं कम्मियाए संगियाए अनो! देवा देवलोएस उवव ति, सच्चे णं एस अहे, नो चेव णं आयभाववत्तव्ययाए, तए णं ते समणोवासया थेरेहिं भगवंतेहिं इमाई | एयारूवाई वागरणाई वागरिया समाणा हहतुट्ठा थेरे भगवते वंदंति नमसंति २ पसिणाई पुच्छति २ अट्ठाई उवादियंति २ उठाए उद्रेति २ थेरे भगवंते तिक्खुत्तो बंदति णमंसंति २ थेराणं भगव० अंतियाओ पुप्फवति For Private and Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir ॥१७५॥ व्याख्या-याओ चेइयाओ पहिनिक्खमंति २ जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया ॥ तए णं ते थेरा अन्नया| प्रज्ञप्तिः कयाई तुंगियोओ नयरीओ पुप्फवतिचेइयाओ पडिनिगच्छन्ति २ पहिया जणवयाविहार विहरन्ति (मृ०१०९) ॥१७५॥ ___पछी ते स्थविर भगवंतोए । श्रमणोपासकोने तथा ते मोटामां मोटी सभाने चार महाव्रतवाळा धर्मनो - उपदेश कयों अने केशिस्वामीनी पेठे ते श्रमणोपासके पोतानी श्रमणोपासकतावडे ते स्थविर भगवंतोनी आज्ञानुं आराधन कर्यु अने ए प्रमाणे धर्म कयो. ते श्रमणोपासको ते स्थविर भगवंतो पासेथी धर्मने सांभळी, अवधारी, हर्षवाळा, संतुष्ट, अने विकसित हृदयवाळा थया अने तेओए ते स्थविरोने प्रणवार प्रदक्षिणा करी बण जातनी सेवावडे ते स्थविरोनी पर्युपासना करी आप्रमाणे कधु के:- [म.] हे भगवन् ! संयममुं फळ शुं छे ? हे भगवन् ! तपY फळ शु छ ? [उ०] त्यारपछी ते स्थविर भगवंतोए ते श्रमणो पासकने आ प्रमाणे कयु के:-हे आर्यो ! संयमर्नु फळ आस्रवरहितपणुं छे अने तपर्नु फळ व्यवदान छे. आ उत्तरथी संयमने आराधबाथी देव थवाय छे, एं वात बंध वेसती नथी माटे फरीथी पूछे छे के:- [प्र०] हे भगवन् ! देव देवलोकमां उत्पन्न धाय के तेनुं शुं कारण ? [उ०] आ प्रश्ननो उत्तर देवा ते स्थविरोमांना कालिकपुत्र नामना सविरे ते श्रमणोपासकने आ प्रमाणे कj के:हे आर्यो ! पूर्वना तपवडे देवो देवलोकमां उत्पन्न थाय छे. पछी ते स्थविरोमांना मेधिल नामना स्थविरे ते श्रमणोपासकोने आ प्रमाणे कई के:-हे आर्यों पूर्वना.संयमबडे देवो देवलोकयां उत्पन्न थाय छे. पछी तेमांना आनंदरक्षित नामना स्थविरे ते श्रमणो पासकोने आ प्रमाणे कहां के:-हे आर्यो ! कामपणाने लीधे देवो देवलोकमा उत्पन्न थाय छे अने पछी तेमांना काश्यप स्थविरें | श्रमणोपासकने आ प्रमाणे कयु के-हे आर्यो ! संगिपणाने लीधे देवो देवलीकमा उत्पन्न थाय छे. अर्थात् हे आर्यों ! पूर्वना तंप For Private and Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandi व्याख्या- प्रज्ञप्तिः ॥१७६॥ उदेशः५ ॥१७६॥ NSLVOCALVA वडे, पूर्वना संयमवडे, कर्मिपणाने लीधे, अने संगिपणाने लीधे देवो देवलोकमां उत्पन्न थाय छे. ए वात साची छे माटे कही छे. पण अमे अमारा अभिमानथी कहेता नथी. पछी ज्यारे ते स्थविर भगवंतोए ते श्रमणोपासकोने ए पूर्व प्रकारना जबाबो आप्या त्यारे तेओए हर्षवाळा अने संतुष्ट थइ ते स्थविर भगवंतोने वांदी, नमी, बीजा पण प्रश्नो पूछया अने तेओना अर्थाने अवधार्या. पछी | उठीने ते स्थविरोने ऋण प्रदक्षिणा दइने, वांदी, नमी ते स्थविरो पासेथी अने पुष्पवती नामना चैत्यथी नीकळी तेओ ज्यांथी आव्या हता त्यां पाछा गया अने ते स्थविरोए पण अन्य कोई दिवसे तुंगिका नगरीथी, पुष्पवती नामना चैत्यथी बहार नीकळी जनपद विहारे बिहार को. ॥ १०९॥ तणं कालेणं २ रायगिह नाम नगरे जाव परिसा पडिगया, तेणं कालेणं २ समणस्स भगवओ महावीरस्स जेद्वे अंतेवासी इंदभूतीनाम अणगारे जाच सखित्तविउलतेयलेस्से छटुंछडेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे जाव विहरति । तए णं से भगवं गोयमे छडक्खमणपारणगंसि पदमाए पोरिसीए समायं करेइ, बीयाए पोरिसीए झाणं झियायइ, तइयाए पोरिसीए अतुरियमचवलमसंभंते मुहपोत्तिय | पडिलेहेह २ भाषणाई वत्थाई पडिलेहेइ २ भायणाई पमजइ २ भायणाई उग्गाहेर २ जेणेव समणे भगवं | महावीरे तेणेव उवागच्छह २ समर्ण भगवं महावीरं वंदह नमसइ २ एवं पदासी-इच्छामि णे भंते ! तुन्मेहिं अन्भणुमाए छट्ठक्खमणपारणगंसि रायगिह नगरे उच्चनीयमज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स मिक्वायरियाए अहित्तए, अहासुहं देवाणुप्पिया!मा पडिषधं, तए णं भगवं गोयमे समणेणं भगवया महावीरेणं अन्भणुनाए SENSESS For Private and Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * ध्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१७॥ * समाणे समणस भगवओ महावीरस्स अंतियाओ गुणसिलाओ चेहयाओ पडिनिस्वमह २ अतुरियमचवलमसंभंते जुगतरपलोयणाए विट्ठीए पुरओ रियं सोहेमाणे २ जेणेव रायगिह नगरे तेणेव उवागच्छइ २ रायगिहे२ शतके | नगरे उच्चनीयमज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स मिक्खारियं अडा। Pउद्देशः५ ते काले ले समये राजगृह नामर्नु नगर हतुं, सभा पाछी फरी. ते काळे ते समये श्रमणभगवतमहावीरना मोटा शिष्य इंद्रि- ||१७७॥ भूति नामना अनगार हता, जेओ संक्षिप्त अने विपुल तेजोलेश्यावाला हता अने जेओ निरंतर छ छट्टना तपकर्म पूर्वक संयमने अने तपवडे आत्माने भावता विहरे छे. पछी ते भगवान् गौतम छट्ठना पारणाने दिवसे पहेली पौरुषीए सध्याय करे छे, बीजी पौरुपीए ध्यान ध्यावे छे अने त्रीजी पौरुषीए शारीरिक तथा मानसिक चपळता रहित थइ असंभ्रात ज्ञानवाला ते गौतम भगवंत मुहपत्तीने पडिले हे छ, पछी भोजन करवाना वासणोने अने वस्रोने पडिलेहे , वासणोने साफ करे छे अने वासणोने लइने श्रमणभगवंत महावीरनी पासे आवी, नमी, बांदी ते गौतम अनगारे आ प्रमाणे कई केः-हे भगवन् ! आजे छट्ठना पारणाने दिवसे आफ्नी | आज्ञा होय तो हुँ राजगृह नगरमा उच्च, नीच अने मध्यम वर्गना (जघन्य मध्यम अने उत्कृष्ट) कुलोमा भिक्षा लेवानी विधिपूर्वक मिक्षा मेळक्या सारूं जवाने इन्छु छु. हे देवानुप्रिय ! जेम मुख थाय तेम कर, प्रतिबंध न कर. पणभगवंतमहावीरनी आज्ञा मळ्या पछी भगवान् गौतम श्रमणभगवंत महावीरनी पासेयी, गुणशीलक नामना चैत्यथी नीकळे छ. नीकली शारीरिक अने मानसिक | उतावळने छोडी दह असंभ्रात ज्ञानवाला ते भगवान् गौतम युगांतर ( सादात्रण हाथ ) दृष्टिथी इर्यासमितिने पाळता पाळता राजगृह नगरमा आवी त्यां रहेल उच्च, नीच अने मध्यम कुटुंबोमा भिक्षा लेवानी विधिपूर्वक भिक्षा माटे फरे छे. **** For Private and Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः ।।१७८॥ २ शतके उद्देशः५ ॥२७८॥ ४ तए णं से भगवंगोयमे रायगिहे न जाव अडमाणे बहुजणसई निसामेइ-एवं खलु देवाणुप्पिया! तुङ्गियाए नगरीए बहिया पुष्फवतीए चेइए पासा बच्चिज्जाथेरा भगवंतो समणोवासपहिं इमाई एयारूवाई वागरणाई पुच्छिया या संजमे थे भंते! किंफले ? तवे ण भेत! किंफले?, तए णते थेरा भगवंतोते समणोवासए एवं वदासी-संजमे गं अजो। अणण्हयफलेतवे बोदाणफले तं चेव जाव पुवतवेणं पुवसंजमेणं कम्मियाए संगियाए अजो देवा देवलोएमु उववजंति, सच्चे गं एसमढे, णो चेव णं आयभाववत्तब्वयाए । से कहमेयं मण्णे एवं ,तएणं समणे गोयमे इमीसे कहाए लद्धडे समाणे जायसढे जाव समुप्पन्नकोउहल्ले अहापज्जत समुदाणं गेण्हइ रायगिहाओ नगराओ पडिनिक्षमह २ अतुरियं जाव सोहेमाणे जेणेव गुणसिलए चेइए जेणेव ममणे भगवं महाबीरे तेणेव उवा० सम० भ० महावीरस्स अदूरसामंते गमणागमणाए पडिकमइ एसणमणेसणं आलोएह २ भत्तपाणं पडिदंसेइ २ समणं भ. महावीरं जाव एवं क्यासी-एवं खलु भंते ! भहं तुम्भेहिं अन्भणुण्णाए समाणे रायगिह नगरे उच्चनीयमजिसमाणि कुलाणि घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे यहुजणसई निसामेति(मि), एवं खलु | देवा तुंगियाए नगरीए बहिया पुष्फवईए चेइए पासावचिजा थेरा भगवंतो समणोवासएहिं इमाई एयारवाई वागरणाइं पुच्छिया-संजमे णं भंते! किंफले ? तवे किंफले? तं चेव जाव सच्चे णं एसमवे, णो चेव णं आयभाववत्तव्बयाए। त्यां राजगृह नगरमां मिक्षाने माटे फरता भगवान गौतमे घणा माणसोना मोढे आ प्रमाणे सांभल्यु के-हे देवानुप्रिय! For Private and Personal use only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥ १७९॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुंगिका नगरीथी बहार, पुष्पवती नामना चैत्यमां पार्श्वनाथना शिष्यो स्थविर भगवंतो पधार्या हता अने त्यांना श्रावकोए तेओने आ प्रकारना प्रभो पूछया हता के:- हे भगवन् ! संयमनुं फळ शुं छे ? तपनुं शुं फळ छे ? त्यारे ते स्थविर भगवंती ते श्रमणोपा सकोने आ प्रमाणे जवाब आप्यो के:-हे आर्यो ! आस्रवरहितपणु ए संयमनुं फळ छे अने कर्मनो नाश करवो ए तपनुं फळ छे अने पूर्वना तपवडे, पूर्वना संयमधडे, कर्मिपणाथी अने संगिपणाने लीघे देवो देवलोकमां उत्पन्न थाय छे, ए बात साची छे माटे कही छे पण अमारा अभिमानथी कही नथी, ए ते ए प्रमाणे केम मनाय ? ए प्रकारat ara लोकोना मोढेथी सांभळी श्रमण भगवंत गौतम ! ते वातनी जिज्ञासामा श्रद्धावाळा थया अने ते वाहने माटे तेओने आश्चर्य लाग्ं. हवे भगवन् गौतम जोइए तेटली भिक्षा मेळवीने, राजगृह नगरथी बहार नीकळी, धीरे धीरे हर्यासमितिने पाळता गुणशिलक नामना चैत्य तरफ श्रमण भगवंतमहावीरनी पासे आव्या, आत्रीने तेओनी पासे रही जवा आववा संबंधी अतिचारोतुं चितवन करी तथा भिक्षा लेता दोषोनुं आलोचन क. पछी लावेलो आहार अने पाणी श्रमण भगवंतमहावीरनी दृष्टिए पाडी अने पछी तेओ आ प्रमाणे बोल्या के:-हे भगवन् ! ज्यारे हुं आपनी आशाथी राजगृह नगरमा उत्कृष्ट जघन्य अने मध्यम कुटुंबोमां मिक्षा लेवानी विधियुक्त भिक्षा लेवाने फरतो हतो त्यारे में घणा माणसोने मोथी आ प्रमाणे सांभळ्युं छे: हे देवानुप्रिय ! तुंगिका नगरीथी बहार पुष्पवती नामना चैत्यमां पार्श्वनाथना शिष्यो स्थविर भगवंतो पधार्या हता के:-हे भगवन् ! संयमनुं फळ शुं छे ? अने तपनुं फळ शुं छे ? ए बात सत्य छे माटे कही छे, परंतु अमारी मोटाइने माटे कही नथी. तं पभू णं भंते! ते धेरा भगवंतो तेसिं समणोवासयाणं इमाई एयारूबाई वागरणाई बागरि For Private and Personal Use Only २ शतके उद्देशः ५ ॥ १७९ ॥ Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २ शतके उमेश:५ R॥१८॥ www.kobatirth.org सए उदाहु अप्पभू, समिया भंते ! ते थेरा भगवतो तेसिं समणोवासयाणं इमाई एयारवाई वागरणाई ध्याख्या वागरित्तए उदाहु असमिया ? आउजिया णं भंते! ते थेरा भगवंतो! तेसिं समणोवासयाणं इमाई एयारवाई प्रज्ञप्तिः Pवागरणाई वागरित्तए ? उदाहु अणाउजिया? पलिउजिया णं भंते ! ते थेरा भगवंतो तेसिं समणोवासयाणं ॥१८॥ इमाई एयारूवाई वागरणाइं पागरित्तए उदाहु अपलिउजिया? पुव्वतवेणं अजो! देवा देवलोएसु उववज्जति | पुथ्वसंजमेणं कम्मियाए संगियाए अजो! देवा देवलोएसु उववजंति, सच्चे णं एसमढे, णो चेव णं आयभावव तब्बयाए, पभू णं गोयमा! ते थेरा भगवंतो तेसिं समणोषासयाणं इमाई एयारवाई वागरणाइं वागरेत्तए, ४ाणो चेव णं अप्पभू , तह चेव नेयवं अवसेसियं जाव पभू समियं आउजिया पलिउब्जिया जाव सचे णं एस महे, णो चेव णे आयभाववत्सम्यगाए, अहंपिणं गोयमा! एवमाइक्खामि भासेमि पपणवेमि परूवेमि पुब्बतवेणं देवा देवलोएसु उववज्जति पुब्बसंजमेण देवा देवलोएसु उववजंति कम्मियाए देवा देवलोएसु उववखंति संगियाए देवा देवलोएसु उधवजंति, पुवतवेणं पुवसंजमेणं कम्मियाए संगियाए अजो! देवा देवलोएसु उववर्जति, सचे णं एसमडे, णो चेव णं आयभाववत्तब्वयाए ॥ (सू० ११०)॥ तो हे भगवन् ! शुं ते स्थविर भगवतो ते श्रमणोपासकोने एवा प्रकारनो जवाब देवा समर्थ छ ? के असमर्थ छे ? हे भगवन् ! ते स्थविर भगवंतो ते श्रमणोपासकोने एवा प्रकारनो जवाब देवाने अभ्यासवाला छे, के अनभ्यासी छे ? हे भगवन् ! ते स्थविर भगबतो ते श्रमणोपासकने एका प्रकारको जवाब देवाने उपयोगवाळा के ? के उपयोग विनाना छे ? हे भगवन् ! ते स्वविर भगवंतो ते RAMA* For Private and Personal Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१८॥ ॥१८॥ श्रमणोपासकने गया प्रकारनो जवाब देवाने विशेषज्ञानी छ ? के काधारण ? हे गौतम! ते स्थविर भगवतो ते श्रमणोपामकने नेवा प्रकारनो जबाब देवाने समर्थ डे, पण असमर्थ नथी. ने स्थविर भगवंतो तेया प्रकारनो जवाब देवाने अभ्यासबाळा के उपयोगवाला है। के अने विशेषज्ञानी के ते बात साची हे माटे कही परंतु आत्मानी बडाउने माटे कही नथी. वळी हे गौतम ! हुं पण एम कहुं छु, का उद्देशः५ | भाई छु, जणावं हूं, अने प्ररूपुंछ के, पूर्वना तपवडे. पूर्वना संयमवडे, कमिपणाथी अने संगीपणाने लीवे देवो देवलोकमां उत्पन्न थाय छ अर्थात् हे आर्यों ! पूर्वना तरवडे, पूर्वना संयमवडे, कर्मिपणाथी अने संगीपणाने लीधे देवो देवलोकमां उत्पन्न थाय छे अने, |ए वात साची छे माटे कही छे परंतु अमारी बडाइ करवा कही नथी' ए प्रमाणे स्थविर भगवंतोनु कथन साचें ॥ ११ ॥ तहारूवं भंते ! समणं वा माहणं वा पज्जुबासमाणस्स किंफला पज्जुसणा?, गोयमा! मवणकला, से ण भंते! सवणे किंफले ?, णाणफले, से णं भंते ! नाणं किंफले?, विणाणफले, सेणं ते! विन्नाणे किंफले?. पच्चक्रवाणफले, से गं भंते ! पञ्चकम्वाणे किंफले ?. संजमफले. से भंते ! मंजमे किंफले ?, अणण्हयफले, एवं | अणण्हवे तवफले, तवे वोदाणफले, बोदाणे अकिरियाफले, से णं भंते ! अकिरिया किंफला ?. सिद्विपनवसाणफला पण्णत्ता गोयमा!, गाहा-सवणे गाणे य विष्णाणे, पञ्चावाणे य मंजने। अगरहा नवे चेत्र, बोदाणे अकिरिया सिद्धी ।। २१ ।। (सू० १११)॥२-४॥ [प्र०] हे भगवन् ! तेवा प्रकारना श्रमण के ब्राह्मणनी पर्युपासना करनारा मनुष्योने तेनी सेवानुं फळ शुं मळे ? [उ०] डे गौतम ! सद् शासो श्रवण करवानुं फट मळे हे. [प्र.) हे भगवन ! श्रवणर्नु शुं फळ ? [उ०] ज्ञान जाणवानुं मळे छे. [प्र०] हे For Private and Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥१८२॥ www.kobatirth.org भगवन! ते जाणवानुं फळ शुं छे ? [अ०] हे गौतम! विवेचनपूर्वक जाणी शकाय छे. [प्र० ] हे भगवन् ! ते विवेचनयुक्त जाण्यानुं फळ शुं छे ? [उ०] हे गौतम! तेनुं फळ प्रत्याख्यान छे. [प्र० ] हे भगवन्! ते प्रत्याख्यानतुं फळ भुं छे ? [अ०] हे गौतम! तेनुं फळ संयम छे [प्र० ] हे भगवन् ! संयमनु फळ शुं छे ? [ उ० ] हे गौतम! तेनुं फळ आखवरहितपणुं छे अर्थात् आत्माने शुद्ध संयम प्राप्त था पछी पुण्य के पापनो स्पर्श पण थतो नयी पण आत्मा पोताना मूळ स्वरूपमा रमण करे छे. [प्र० ] हे भगवन् ! ते आसवरहितपणानुं फळ शुं छे ? [उ० ] हे गौतम! तेनुं फळ तप के [प्र० ] हे भगवन् ! तपनुं फळ शुं छे ? [उ० ] हे गौतम ! कर्मरूपी मेलने साफ करे छे [प्र० ] हे भगवन् ! कर्मरूपी मेल साफ थयाथी शुं थाय ? [30] हे गौतम! ते साफ थया पछी निष्क्रियपणुं प्राप्त था. [ प्र० ] हे भगवन् ! ते निष्क्रियपणाथी शुं लाभ थाय ? [अ०] तेनुं फळ सिद्धि प्राप्त थाय. ॥ १११ ॥ ४ श्रवणं ज्ञानं च विज्ञानं, प्रत्याख्यानं च संयमः अनाश्रवः तपश्चैव व्यवदानम् अक्रियासिद्धिः श्रवण (थी) 1 ज्ञान | विज्ञान 1 प्रत्याख्यान संयम For Private and Personal Use Only अनास्रव / तप कर्मनाश 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निष्कर्मपणु 1 सिद्धि-मुक्ति २ शतके उद्देशः ५ ॥१८२॥ Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥१८३॥ अण्णउत्थिया णं भंते! एवमातिक्वंति भासंति पण्णवेंति परूवेंति एवं खलु रायगिहस्स नगरस्स बहिया व्याख्या - 4 वे भारस्स पव्वयस्स अहे एत्थ णं महं एगे हरए अधे पत्नत्ते अणेगाई जोयणाई आयामविक्खंभेणं नाणादुमप्रज्ञप्तिः | डमंडितउसे सस्सिरीए जाव पडिरूवे, तत्थ णं बहवे ओराला बलाहया संसेयंति सम्मुच्छिति वासंति तव्वनिरिते य णं सया समिओ उसिणे २ आउकाए अभिनिस्सवइ । से कहमेयं भंते । एवं १, गोयमा ! जपणं ते अण्णउत्थिया एवमातिकस्वंति जाव जे ते एवं परूवेंति मिच्छं ते एवमातिक्ांति जाव सव्यं नेयव्वं, जाव अहं पुण गोयमा ! एवमातिक्खामि भा० पं० प० एवं खलु रायगिहस्स नगरस्स बहिया बेभारपव्ययस्स अदूरसामंते, एत्थ णं महातवोवतीरप्पभवे नामं पासवणे पन्नते पंचधणुसयाणि आयामविक्खंभेणं नाणादुम-| संमंडिउसे सस्सिरीए पासादीए दरिसणिजे अभिरूवे पडिरूवे, तत्थ णं बहवे उसिणजोणिया जीवा य पोग्गला य उद्गत्ताए वकमंति विउक्कमति चयंति उववज्जंति, तव्वतिरित्तेवि य णं सया समियं उसिणे २ आउयाए अभिनिस्सबइ, एस णं गोयमा ! महातबोवतीरप्पभवे पासवणे, एस णं गोयमा ! महातबोबतीरम्प भवस्स पासवणस्स अट्ठे पन्नत्ते, सेवं भंते २ त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदति नम॑सति ॥ ( सू० ११२ ) ॥ २५ ॥ हे भगवन् ! अन्यतीर्थिको आ प्रमाणे कहे छे, भाषे हे जगावे छे अने प्ररूपे छे के:- 'राजगृह नगरथी बहार वैभारपर्वतनी नीचे एक मोटो पाणीनो झरो आवेलो छे, ते झरानी लंबाई अने पहोळाइ अनेक योजन जेटली है. तथा ते झरानो आगळनो भाग For Private and Personal Use Only २ शतके उद्देशः ५ |||१८३॥ Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie २ शतके * शः५ ॥१८४॥ अनेक जातना वृक्षखंडोथी सुशोभित छे, शोभावाको छे, अने जोनाराओनी आंखोने गमे तेवो में. ते झरामां अनेक उदार मेघो या संस्वेदे में, संमूळे हे अने बरसे हे वळी ते उपरांत झरामांथी हमेशा उनू उर्नु अपकाय पाणी झर्षा करे हे. हे भगवन् ! ते ए प्रज्ञप्ति दए प्रमाणे केवी रीते हे ? [उ०] हे गौतम ! ते अन्यतीथिको जे कांइ कहे छे अने यावत् कयुं छे ते खोकयुं छे, वळी हे गौतम ! ॥१८४॥ हु तो आ प्रमाणे कई छु, भाषु छु, जणायूँ छु, अने प्ररूपुंछ के. राजगृह नगरनी बहार वैभारपर्वतनी पासे 'महातपोपतीरप्रभव' नामर्नु झरणुं छे. तेनी लंबाइ अने पहोगाइ पांचसो धनुष्य जेटली, तेनो आगळनो भाग अनेक जातना वृक्षखंडोथी सुशोभित डे, सुंदर बे, प्रसन्नता पमाडे तेवो छे. दर्शनीक है, रमणीय से, अने जोनारने संतोष उपजावे तेवो है. ने झरणमां अनेक उष्णयोनिबाळा जीवो अने पृद्गलो पाणीरूपे उत्पन्न थाय छे, नाश पामेले क्यवे के अने उपचय पामे के ते उपरांत ते झरणमांथी हमेशा उष्णोष्ण पाणी झर्या करे .हे गौतम ! ए महातपोपतीरप्रभव नामना झरणानो अर्थ छे. हे भगवन् ! ले ए प्रमाणे छे, हे भगद्रवन् ! ते ए प्रमाणे छे एम यही भगवंत गौतम श्रमण भगवंत महावीरने बांदे छे, अने नमे .. ११२ ॥ भगवत् सुधर्मस्वामीग्रणीत श्रीमद् भगवतीमत्रना बीजा शतकमा पांचमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण ययो. For Private and Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasagarsuri Gyanmandi + २ शतके व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१८॥ उद्देशकः ६. से पूर्ण भंते ! मण्णामीति ओहारिणी भासा, एवं भासापदं भाणियन्वं (सू० ११३) ॥२-६ ॥ [म०] हे भगवन् ! 'भाषा अवधारिणी छे. एम ९ मार्नु ? [उ०] हे गौतम! ते माटे संपूर्ण * भाषापद जाणवू. ॥११३॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमूत्रना बीजा शतकमां छहा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. +5 उद्देश:६-७ ॥१८५॥ +%A 4 -% उद्देशकः ७. कतिविहा ण भंते ! देवा पण्णत्ता?, गोयमा! चउव्यिहा देवा पण्णता, तंजहा-भवणवइवाणमंतरजो|तिसवेमाणिया । कहिं णं भंते! भवणवासीण देवाणं ठाणा पण्णत्ता, गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए | जहा ठाणपदे देवाणं वत्तव्वया सा भाणियव्वा, नवरं भवणा पण्णत्ता, उववाएणं लोयस्स असंखेजहभागे, एवं सब्वं भाणियध्वं जाव सिद्धगंडिया समत्ता-कप्पाण पइटाणं बाहुलुश्चत्तमेव संठाणं । जीवाभिगमे जाव वेमाणिउद्देसो भाणियम्बो सन्चो (सू० ११४) ॥२-७॥ * अगीवारमो भाषापदनो अधिकार पं. भगवानदास प्रकाशित प्रज्ञापनासूत्रना बोजा खंड पाना ०५५ थी जोह लेवो. % For Private and Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥१८६॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [प्र०] हे भगवन् ! देवो केटला प्रकारना कथा छे ? [उ०] हे गौतम! देवो चार प्रकारना कया छे ते आ प्रमाणे:- भवनपति, बानभ्यंतर, ज्योतिषिक अने वैमानिक [प्र० ] हे भगवन् ! भवनवासी देवोनां स्थानो कये ठेकाणे आवेलां छे ? [अ०] हे गौतम ! ते रत्नप्रभा पृथिवीनी नीचे छे इत्यादि पधुं स्थानपदमां कडेल देवोनी वक्तव्यतानी पेठे कडेवुं. विशेष ए के, अने तेओनां | उपपात लोकना असंख्य भागमां थाय छे ए बधुं कहेनुं यावत् - सिद्धगंडिका पूरी कहेवी. वळी कल्पोनुं प्रतिष्ठान, जाडाइ, उंचाइ, अने आकार, ए वधुं जीवाभिगमसूत्रमां कहेल हे. यावत्-वैमानिक उद्देशकनी पेठे कहे. ।। ११४ ।। भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना बीजा शतकमां सातमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. उद्देशः ८. कहिं णं भंते! चमरस्त असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो सभा सुहम्मा पन्नत्ता ?, गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेण तिरियमसंजेजे दीवसमुद्दे बीईवत्ता अरुणवरस्स दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ अरुणोदयं समुदं बायालीस जोयणसहस्साई ओगाहित्ता एत्थ णं चमरस्म अरिंदस्स असुरकुमाररण्णो तिगिच्छियकूडे नामं उत्पायपब्वर पण्णत्ते, सत्तरसएकवीसे जोयणसए उडूढं उच्चतेणं चत्तारि जोयणसए कोसं च उच्वेहेणं गोत्थूभस्स आवासपव्वयस्स पमाणेणं णेयव्वं, नवरं उवरिलं पमाणं मज्झे भाणियवं [मूले दसबावीसे जोयणसए विक्खंभेणं मज्झे चत्तारि चडवीसे जोयणसते विक्खंभेणं उवरिं सत्ततेवीसे जोयणसते For Private and Personal Use Only २ शतके उद्देशः ८ ॥१८६॥ Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥ १८७॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विक्खंभेणं, मूले तिष्णि जोयणसहस्साई दोणि य बत्तीसुत्तरे जोयणसते किंचिविसेसूणे परिक्वेवेणं मज्झे एगं जोयणसहस्से तिष्णि य इगयाले जोयणसते किंविविसेसृणे परिक्वेषेणं उचरिं दोण्णिय जोयणसहस्साई दोण्णि य छलसीते जोयणसते किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं ] जाव मूले बित्थडे मज्झे संखिते उपि बिसाले मज्झे वरवरविग्गहिए महामउंदसंठाणसंठिए सव्वरयणामए अच्छे जान पडिरूबे, से णं एगाए पउमवरवेशयाए एगेणं बणसंडेण य सव्वओ समता संपरिक्खिते, पउमवरवेइयाए वणसंडस्स य वण्णओ, तस्स णं तिगिच्छिकूडस्स उप्पायपव्वयस्स उप्पि बहुसमरमणिजे भूमिभागे पण्णत्ते, वण्णओ, तस्स णं बहुसमरमणिजस्स भूमिभागस्स बहुमज्शदेस भागे एत्थ णं महं एगे पासायवर्डिसए पत्ते अड्ढाइजाई जोपण सपाई उड् उच्चत्तणं पणवीस जोगणसयाई विक्वेभेणं, पासायवण्णओ, उल्लोय भूमिबन्नओ, [प्र.] हे भगवन ! अरकुमारोना इंद्र अने तेओना राजा चमरनी सुधर्मा नामनी सभा क्यां कडेली छे ? ते सभा कये ठेकाणे आवी छे ? [उ०] हे गौतम! जंबुद्वीप नामना द्वीपमा रहेल मंदर=मेरु पर्वतनी दक्षिण बाजुमां तीरछा असंख्य द्वीप अने समुद्रो ओळंग्या पछी अरुणवर नामनो द्वीप आवे छे, ते द्वीपनी वेदिकाना वायला क्रेडाथी आगळ बधीए त्यारे अरुणोदय समुद्रमां बहेंतालीस लाख योजन उंडा उतर्या पछी ते ठेकाणे असुरना इंद्र अने राजा चमरनो निच्छिककूट नामनो उत्पात पर्वत आवे छे, तेनी उंचाइ सत्तरसएकचीसे = १७२१ योजन छे, तेबो उद्वेध चत्तारिती सेजायणसर कोसं ४३० योजन अने एक कोश छे. आ पर्वतनुं माप गोस्तुभ नामना आवास पर्वतना मापनी पेठे जाण. विशेष ए के:-गोस्तुभना उपरना भागनुं जे माप छे ते माप For Private and Personal Use Only १२ शतके उद्देशः ८ ॥ १८७॥ Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥१८८॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अहीं वचला भाग माटे समज अर्थात् ते पर्वतनो विष्कंभ मूळमां १०२२ योजन छे. बच्चे ४२४ योजन छे अने उपलो विष्कंभ ७२६ योजन छे. तेनो परिक्षेप मूळमां ३२३२ योजन तथा कांइक विशेषोन छे अने उपलो परिक्षेप २२८६ योजन तथा कांइक विशेषोन छे ते मूळमां विस्तृत छे, बच्चे सांकडो के अने उपर विशाल छे. तेनो वचलो भाग उत्तम बज्र जेवो छे, मोटा मुकुन्दना घाट जेवो छे अने ते पहाड आखो रत्नमय छे, सुंदर छे, तथा प्रतिरूप हे ते पर्वत उत्तम कमळनी एक वेदिकाथी अने एक वनखंडथी सर्व प्रकारे चारे बाजुथी वींटाएल छे. आ स्थळे ते वेदिका अने वनखंडनुं वर्णन जाणवुं. ते तिगिच्छककूट नामना उत्पातपवेतनो उपरनो भाग तद्दन सरखो, खाडाखडीया विनानो अने मनोहर छे. तेनुं पण वर्णन अहीं जाणं. ते तद्दन सरखा अने रमणीय उपला भागनी बच्चे एक मोटो प्रासादावतंसक महेल छे. ते महेलनी उंचाइ २५० योजन छे, तेनो निष्कंभ १२५ योजन छे, अहीं ते महेलनुं वर्णन कर. ते महेलना उपरना भागनुं वर्णन कर. अट्ठ जोयणाई मणिपेढिया, चमरस्स सीहासणं सपरिवारं भाणियव्वं, तस्स णं तिगिच्छिकूडस्स दाहिणेणं छोडिस पणपन्नं च कोडीओ पणतीसं च सयसहस्साई पण्णासं च सहस्साई अरुणोदे समुदं तिरियं बीइवइत्ता अहे रयणप्पभाप पुढवीए चत्तालीस जोयणसहस्साई ओगाहित्ता एत्थ णं चमरस्स असुर्रिदस्स असुरकुमाररण्णो चमरचंचा नाम रायहाणी पं० एवं जोयणसयसहस्सं आयामविक्वं भेणं जंबुद्दीवप्पमाणं, पागारोदि बढ्ढं जोयणसयं उडूढं उच्चत्तणं मूले पन्नासं जोयणाई विक्खंभेणं उवरिं अद्धतेरसजोयणा कविसीसगा अद्धजोयणआयामं कोसं विक्खभणं देणं अद्धजोयणं उडूढं उच्चत्तेणं एगेगाए बाहाए पंच २ दारसया अड्डाइज्जाई जोयणसयाई २५० For Private and Personal Use Only २ शतके उरेशः ८ ॥१८८॥ Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शतक व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१८९॥ उद्देशः ८ ॥१८९॥ उच्चत्तणं १२५ अद्धं विक्खंभेणं उचरियलणं सोलसजोयणसहस्साई आयामविक्वंभेणं पनास जोयणसहस्साई पंच य सत्ताणउयजोयणसए किंचिविसेसूणे परिक्खवेणं सव्वप्पमाणं वेमाणियप्पमाणस्स अद्धं नेयब्व, सभा सुहम्मा, उत्तरपुरच्छिमे णं जिणघरं, ततो उववायसभा हरओ अभिसेय. अलंकारो जहा विजयस्स संकप्पो अभिसेयविभूसणा य ववसाओ। अचणिय सिद्धायण गमोवि य णं चमर परिवार इत्तं (सू० ११५) ॥ बीयसए अट्ठमो॥२-८॥ ___ आठ योजननी मणिपीठिका छे चमरनुं सिंहासन परिवारसहित कहे. हवे ते तिगिच्छककूट पर्वतनी दक्षिणे अरुणोदय समु-16 द्रमा छसेंपंचावन क्रोड, पांत्रीस लाख, अने पचावनहजार योजन तीरछु गया पछी नीचे रत्नप्रभा प्रथिवीनो ४० हजार योजन जेटलो भाग अवगाया पछी-ए ठेकाणे-अमरेंद अने असुरना राजा चमरचंचा नामनी राजधानी छे ते राजधानीनो आयाम अने | निष्कंभ एक लाख योजन छे ते राजधानी जंबूद्रीप जेवडी छे. तेनो किल्लो १५० योजन उंचो के, ते किल्लाना मूळनो निष्कंभर पचास योजन हे, तेना उपरना भागनो निष्कंभ साडातेर योजन के, तेनां कांगरानी लंबाइ अधो योजन के अने पहोला एक कोश के तथा ते कांगरानी उंचाइ अडधा योजनथी कांइक ऊणी छे. वळी एक बाहुमां पांचसो पांचसो दरवाजा छे अने नेनी ४ उचाइ २५० योजन छे उंचाइ करतां अडधो विकंभ छे, घरनी पछीतना वंच जेवा भागने आयाम अने विष्कम सोळहजार योजन के. अने तेनो परिक्षेप ५०५९७ योजन करतां कांइक विशेषोन ले. सर्व प्रमागवडे मानिकना प्रमाण करतां अहीं बधुं अधुं प्रमाण जाण. सुधर्मासभा, उत्तर अने पूर्वमा जिनगृह, त्यारबाद उपगत सभा, हृद, अभिषेक अने अलंकार ए सबलु विजयनी पेठे For Private and Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥ १९० ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कहेतुं, उपपात, संकल्प, अभिषेक, विभूषणा, व्यवसाय, अर्चनिका, अने सिद्धायतन संबंधी गम तथा चमरनो परिवार अने तेनुं ऋद्धिसंपन्न पणुं ॥ ११५ ॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना बीजा शतकमां आठमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. उद्देशकः ९. किमिदं भंते! समयखेत्तेत्ति पचति १, गोयमा ! अड्ढाइजा दीवा दो य समुद्दा एस णं एवइए समयग्वतेति पञ्चति, तस्थ णं जंबुद्दीवे २ सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वन्भंतरे एवं जीवाभिगमत्रत्तव्वया (जोइसविणं) नेयव्वा जाव अभितरं पुक्खरद्धं जोइसविणं (इमा गाहा) || सू० ११६) वितीयस्स नवमो उद्देसो ॥। २-९ ।। [प्र०] हे भगवन ! आ समयक्षेत्र ए शुं कहेवाय ? [ उ० ] हे गौतम ! अढी द्वीप अने वे समुद्र, एटलं ए समयक्षेत्र कद्देवाय, तेमां जे आ जंबूद्वीप नामनो द्वीप छे ते बघा द्वीप अने समुद्रोनी बचोवच छे. ए प्रमाणे सर्व जीवाभिगमसूत्रमां कं छे ते प्रमाणे कहे. यावत्-अभ्यंतर पुष्करार्ध. पण तेमां ज्योतिषिकनी हकीकत न कहेवी. ॥ ११६ ॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमूत्रना बीजा शतकमां नवमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. For Private and Personal Use Only २ शतके उद्देशः ९. ॥ १९०॥ Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रज्ञप्तिः उद्देशकः १०० व्याख्या कति णं भंते ! अस्थिकाया पन्नता, गोयमा! पंच अस्थिकाया पणत्ता, संजहा-धम्मस्थिकाए अधम्म- २ शतके ॥१९१॥ द स्थिकाए आगासस्थिकाए जीवत्यिकार पोग्गलस्थिकाए । धम्मत्यिकारण भंतें ! कतिर्वन्ने कतिगंधे कतिरसे || उद्देशः१० कतिफासे ?, गोयमा ! अवणे अगंधे अरसे अफासे असवे अजीवे सासए अवहिए लोगदम्बे, से समासओ ॥१९॥ पंचविहे पन्नते, तंजहा-दब्बओ खेत्तओ कालओ भावओ गुणओ, दठबओ णं धम्मत्यिकाएं एगे दब्वे, खेतओ णं लोगप्पमाणमेत्ते, कालओन कयाविन आसि न कयाइ नत्थि जाव निच्चे, भावी अवणे अगंधे अरसे अफासे, गुणओ गमणगुणे । अहम्मत्थिकाएवि एवं चेव, नवरं गुणओ ठाणगुणे, आगासस्थिकाएवि एवं चेव, नवरं खेत्तओ आगामस्थिकाए लोयालोयप्पमाणमेत्ते अणंते चेव जाव गुणओ अवगाहणागुणे । जीवस्थिकाए णं भंते! कतिवन्ने कतिगंध कतिरसे कइफासे?, गोयमा! अवण्णे जाव अस्वी जीवे सासए अवट्टिए लोगदब्वे, से समासओ पंचविहे पण्णत्ते, तंजहा-दब्वओ जाव गुणओ, दवओ ण जीवस्थिकाए अणताई जीवदब्वाई, | खेत्तओ लोगप्पमाणमेत्ते, कालओन कयाइ न आसि जाव निचे, भावओ पुण अवण्णे अगंधे अरसे अफासे, गुणओ उवओगगुणे । पोग्गलत्यिकाए णं भंते! कतिवष्णे कतिगंधे० रसे. फासे?, गोयमा! पंचवण्णे पंचरसे | दुगंधे अहफासे रूबी अजीये.सासए अवहिए लोगवब्वे, से समासओ पंचबिहे पण्णत्ते, संजहा-दवओ खसओ CASEXCAX4 For Private and Personal Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१९२॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालओ भावओ गुणओ, दव्वओ णं पोग्गलत्थिकाए अनंताई दवाई, खेत्तओ लोयप्यमाणमेत्ते, कालओ न कयाइ न आसि जाव निचे, भावओ वण्णमंते गंध० रस० फासमंते, गुणओ गहणगुणे । ( सू० ११७ ) [प्र.] हे भगवन् ! अस्तिकायो केटला कथा छे ? [अ०] हे गौतम 1 अस्तिकाय पांच कया छे. ते आ प्रमाणेः- धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय अने पुद्गलास्तिकाय [प्र० ] हे भगवन् ! धर्मास्तिकायमा केटला रंग छे ? केटला गंध छे, अने केटला रस छे अने केटला स्पर्श छे ? [अ०] हे गौतम! धर्मास्तिकायमा रंग, गंध, रसके स्पर्श नथी अर्थात् धर्मास्तिकाय अरूपी छे, अजीव छे अने शाश्वत, अवस्थित लोकद्रव्य छे. संक्षेपधी पांच प्रकार छे ते आ प्रमाणे:-द्रव्यथी क्षेत्रथी कालथी भावधी गुणथी द्रव्यथी धर्मास्तिकाय एक छे. क्षेत्रथी ते लोक प्रमाण जेवडो लोक छे. काळथी ते कदापि न हतो एम नथी, कदापि नथी एम नथी अने यावत् ते नित्य छे. भावथी रंग विनानो, गंध विनानो, रस विनानो अने स्पर्श बिनानो छे. गुणधी ते गतिगुणवाळो छे. ए प्रमाणे अधर्मास्तिकाय संबंधी पण समजनुं विशेष ए के, ते गुणथी स्थितिगुणवाळो छे. आकाशास्तिकाय संबंधे पण एज प्रकारे जाणवुं. विशेष ए के:- ते आकाशास्तिकाय क्षेत्रथी लोकालोक प्रमाण= लोकालोक जेवडो छे, अनंत के अने यावत गुणथी ते अवगाहना गुणवाळो छे. [प्र० ] हे भगवन् ! जीवास्तिकायमां केवला रंग छे, केटला गंध छे, केटला रस छे अने केटला स्पर्श छे ? [अ०] हे गौतम! ते रंग बिनानो छे अने यावत्-अरूपी छे, ते जीव छे, शाश्वत छे, अने अवस्थित लोकद्रव्य छे. तेना पांच प्रकार कह्या छे:-द्रव्यथी जीवास्तिकाय अने यावत्-गुणथी जीवास्तिकाय. जीवास्तिकाय अनंत जीवद्रव्यरूप छे, क्षेत्रथी मात्र लोकप्रमाण= जेवडो छे, काळथी ते कदापि न हतो एम नथी अने ते नित्य छे, वळी भावथी ते जीवास्तिकाय रंग विनानो, गंध For Private and Personal Use Only २ शतके उद्देशः १० ॥१९२॥ Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विनानो, रस विनानो, अने स्पर्श विनानो छ तथा गुणवी ते उपयोगगुणवाको के. [H०] हे भगवन् ! पुद्गलास्तिकायमा केटला व्याख्या- रंग छे, केटला गंध छे, केटला रस छे अने केटला स्पर्श छेउ०] हे गौतम ! पुद्गलास्तिकायमां पांच रंग, पांच रस, वे गंध २ शतके अज्ञप्तिः 18 अने आठ स्पर्श छे. ते रूपवाळो छे, अजीव छे, शाश्वत छे अने अवस्थित लोकद्रव्य . टुंकामां कहीए तो तेना पांच प्रकार छे:- उद्देशः१० ॥१९३॥ नद्रव्यथी, क्षेत्रथी, कालथी, भावधी अने गुणथी पुद्गलास्तिकाय. द्रव्यथी पुद्गलास्तिकाय अनंत द्रब्यरूप ले, क्षेत्रथी ते मात्र लोकIX॥१९३॥ जेबडो छे, काळथी ते कदापि न हतो एम नथी अने यावत्-नित्य छ, भावथी ते रंगवाळो, गंधवाळो, रसबाको अने स्पर्शवाळो के तथा गुणधी ते ग्रहणगुणवाळो वे ॥११७ ॥ एगे भंते ! धम्मत्थिकायपदेसे धम्मत्थिकाएत्ति वत्तवं सिया?, गोयमा! णोहणद्वै समढे, एवं दोनिवि ति-| निवि चत्तारि पंच छ सत्त अट्ट नव दस संखजा, असंखेन्जा भंते ! धम्मस्थिकायप्पासा धम्मस्थिकाएत्ति वत्तव्वं सिया?, गोयमा! णो इण सम, एगपदेसूणेऽविय णं भंते ! धम्मस्थिकाए २ त्ति वत्तब्वं सिया?, णो तिणढे समठे, से केणढणं भंते! एवं बुचइ-एगे धम्मत्थिकायपदेसे नो धम्मत्थिकाएत्ति वत्तब्वं सिया जाव एगपदेसूणेवि य णं धम्मत्थिकाए नो धम्मत्थिकाएत्ति वत्तव्वं सिया?, से नूणं गोयमा ! खंडे चके सगले चके ?, भगवं! नोखंडे चके, सकले चके, एवं छत्ते चम्मे दंडे दूसे आउ पहे मोयए, से तेणटेणं गोयमा! एवं वुचइएगे धम्मत्थिकायपदेसे नो धम्मत्थिकाएत्ति वत्तव्वं सिया, जाव एगपदेमणेविय णं धम्मत्थिकाए नो धम्मस्थि|काएत्ति वत्तब्वं सिया, से किंवातिए णं भंते ! धम्मस्थिकाएत्ति वत्तवं सिया?, गोयमा ! असंखज्जा धम्म 464564 For Private and Personal use only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा२ शतके व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१९४॥ (सू. १९८) गवत्यिकायपोग्गलात्यायमा ! धम्मत्थिकाण यिनो एक प्रदेश CAD |थिकायपएसा ते सव्वे कसिणा पडिपुण्णा निरवसेसा एगगहणगहिया एस णं गोयमा धम्मत्थिकापत्ति | वत्तव्वं सिया, एवं अहम्मत्यिकाएवि, आगासत्थिकावि, जीवत्यिकायपोग्गलत्थिकायावि एवं चेब, नवरं तिण्हपि पदेसा अणता भाणियब्वा, सेसं तं चेव ॥ (सू. ११८)॥ उद्देशः१० [प्र.) हे भगवन् ! धर्मास्तिकायनो एक प्रदेश ते 'धर्मास्तिकाय' एम कहेवाय ? [उ०] हे गौतम ! ते अर्थ समर्थ नथी. एज ॥१९४॥ रीते बे, त्रण, चार, पांच, छ, सात, आठ, नव, दश प्रदेश. संख्येय अने असंख्येय प्रदेशो पण धर्मास्तिकाय' एम न कहेवाय. [प्र०] हे भगवन ! धर्मास्तिकायना प्रदेशो ए 'धर्मास्तिकाय' ए प्रमाणे कहेवाय ? [उ.] हे गौतम ! ए अर्थ समर्थ नथी न कहेवाय. XI [प्र.] हे भगवन् ! तेम कहेवानुं शुं कारण के, 'धर्मास्तिकाय'नो एक प्रदेश अने यावत्-ज्यांसुधी एक प्रदेश उणो होय त्यांसुधी धर्मास्तिकाय न कहेवाय. [उ.] हे गौतम ! चक्रनो भाग ते चक्र कहेवाय के आचं चक्र ते चक्र कहेबाय ? हे भगवन् ! चक्रनो एक भाग ते चक्र न कहेवाय, पण आखं चक्र ते चक्र कहेवाय. ए प्रमाणे छत्र, चर्म, दंड, वख, शस्त्र, अने मोदक संबंधे पण जाणवू अर्थात् ते वधु आखं होय तोज छत्र वगेरे कहेवाय, पण तेनो एक भाग ते छत्र घमेरे न कहेवाय, हे गौतम ! ते कारणथी | एम कथु छे के, धर्मास्ति कायनो एक प्रदेश अने यावत्-ज्यांसुधी एक प्रदेश उणो होय त्यांसुधी धर्मास्तिकाय न कहेवाय. [H०] | हे भगवन् ! त्यारे वळी कहो के, 'धर्मास्तिकाय' ए प्रमाणे शुं कहेवाय ? [उ.] हे गौतम ! धर्मास्तिकायमा असंख्य प्रदेश छे. ज्यारे ते बघा, कृत्स्न-पूरेपूरा, प्रतीपूर्ण, एक पण वाकी न रहे एवा अने एक शब्दथीज कही शकाय तेवा होय त्यारे ते धर्मास्तिकाय एम कहेवाय. ए प्रमाणे अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय अने पुद्गलास्तिकाय विषे ए प्रमाणेज जाणवं. RSS For Private and Personal Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१९५|| २ शतके उद्देशः१० विशेष ए के, त्रण द्रव्यना-आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय अने पुद्गलास्तिकायना-अनंत प्रदेशो जाणवा. बाकी वधुं तेज प्रमाणे समजवू. ॥ ११८ ।। जीवे णे भंते ! सउठाणे सकम्मे सबले सीरिए सपुरिसकारपरकमे आयभावेणं जीवभावं उवदंसेतीति वत्तव्वं सिया?, हंता गोयमा! जीवे णं सउहाणे जाव उवदसेतीति बत्तव्वं सिया। से केणढणं जाव वत्तव्वं सिया?, गोयमा! जीवे णं अणंताणं आभिणिबोहियनाणपजवाणं एवं सुयनाणपजवाणं ओहिनाणपजवाणं मणपज्जवनाणप० केवलनाणप० मइअन्नाणप० सुयअन्नाणप० विभंगणाणपजवाणं चक्खुदसणप० अचक्खुदंसणप० ओहिदसणप० उवओगं गच्छइ, उवओगलवणे णं जीवे, से तेणड्डेणं एवं बुच्चइ-गोयमा ! जीवे णं सिउहाणे जाव वत्तव्वं सिया ॥ (सू० ११९) प्र०] हे भगवन् ! 'उत्थानवालो, कर्मवाळो, बळवाळो, वीर्यवाळो, अने पुरुषाकार पराक्रमवाळो जीव आत्मभावबडे जीवभा| वने देखा.' एम कहेवाय ? [३०] हे गौतम ! हा, तेवा प्रकारनो जीव यावत्-'ते जीवभावने देखाडे' एम कहेवाय. हे गौतम ! | जीव अभिनिचोधिक ज्ञानना अनंत पर्यवोना, ए प्रमाणे श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, केवलज्ञान, मतिअज्ञान, विभंगअज्ञान, चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन, केवळदर्शन, दरेकना अनंत पर्यवोना उपयोगने प्राप्त करे. छे-जीव ए उपयोगरूप थे. हे गौतम ! ते | कारणथी एम कथु छ के, 'उत्थानवाळो जीव यावत्-जीवभावने देखाडे एम कहेवाय. ।। ११९ ॥ कतिविहे गं भंते ! आगासे पण्णत्ते?, गोयमा! दुविहे आगासे प०, तंजहा-लोयागासे य अलोयागासे 2655 For Private and Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥१९६॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir य | लोयागासे णं भंते! किं जीवा जीवदेसा जीवपदेसा अजीवा अजीवदेसा अजीवपएसा ?, गोयमा ! जीवावि जीवदेसावि जीवपदेसावि अजीवावि अजीवदेसावि अजीवपदेमावि, जे जीवा ते नियमा एगिंदिया बेंइंदिया तेइंदिया चउरिंदिया पंचेंदिया अणिंदिया, जे जीवदेसा ते नियमा एगिंदियदेसा जाव अनिंदियदेसा, जे जीवपदेसा ते नियमा एर्गिदियपदेसा जाब अणिदियपदेसा, जे अजीवा ते दुविहा पक्षता, तंजहा- रूबी य अरूवी य, जे रूवी ते चउब्विहा पण्णत्ता, संजहा- बंधा खंघदेसा बंधपदेसा परमाणुपोग्गला, जे अरूवी ते पंचविहा पण्णत्ता, तंजहा - धम्मत्थिकाए नो धम्मत्थिकायस्स देसे धम्मत्धिकायस्स पदेसा अधम्मत्किाए नो अम्मत्किारस देसे अधम्मत्थिकायस्स पदेसा अद्धासमए ।। (सू० १२० ) ।। [प्र०] हे भगवन् ! आकाशना केटला प्रकार का छे ! [उ०] हे गौतम! आकाशना वे प्रकार कथा छे. ते आ प्रमाणे:लोकाकाश अने अलोकाकाश. [प्र०] हे भगवन् ! लोकाकाश ए जीवो छे. जीवना देशो छे, जीवना प्रदेशो छे, अजीवो छे, अजीवना देशो के के अजीवना प्रदेशो के ? [३०] हे गौतम! ते जीवो पण छे, जीवना देशो पण छे, जीवना प्रदेशो पण छे, अजीवो पण छे, अजीवना देशो पण छे, अने अजीवना प्रदेशी पण छे, जे जीवो छे ते चोकस एकेंद्रियो, वे इंद्रियो, त्रेइंद्रियो, चतुरिंद्रियो पंचेंद्रियो अने अनिंद्रियों के. जे जीवना देशो छे ते चोक्कस एकेंद्रियना देशो के अने यावत्-अनेंद्रियना देशो छे जे जीवना प्रदेशो छे ते चोकस एकेंद्रियना प्रदेशो छे. अने यावत्-अनेंद्रियना प्रदेशो छे. जे अजीवो छे ते वे प्रकारना कया छे. ते आ प्रमाणे:रूपी अने अरूपी जे रूपी छे देना चार प्रकार कथा छे. ते आ प्रमाणे:- स्कंध, स्कंधदेश स्कंधप्रदेश अने परमाणुपुद्गल, जे अरूपी For Private and Personal Use Only २ शतके उद्देशः १० ॥१९६॥ Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |ळे तेना पांच प्रकार कया छे. ते आ प्रमाणे:-धर्मास्तिकाय, नो धर्मास्तिकायनो देश, धर्मास्तिकायना प्रदेशो, अधर्मास्तिकाय, व्याख्याINIनो अधर्मास्तिकायनो देश अने अधर्मास्तिकायना प्रदेशो तथा अद्धासमय. ॥ १२०॥ २ शतके प्रज्ञप्तिः ा अलोगागासे णं भंते ! किं जीवा? पुच्छा तह चेव, गोयमा! नो जीवा जाव नो अजीपप्पपसा, एगे अजी उद्देशः१. ॥१९७॥ ववव्वदेसे अगुरुयलहुए अणंतेहिं अगुरुयलहुयगुणेहिं संजुत्ते सवागासे अर्णतभागूणे ॥ (सू० १२१)। [प्र०] हे भगवन् ! शुं अलोकाकाश ए जीवो छे ? इत्यादि पूर्ववत् पूछg, [उ०] हे गौतम! ते (अलोकाकाश) जीवो नथी यावत्-अजीवना प्रदेशो पण नथी. ते एक अजीव द्रव्यदेश छे, अगुरुलघु छे. तथा अगुरूलघुरूप अनंतगुणोथी संयुक्त छे अने अनंत भागथी ऊणुं सर्व आकाशरूप . [प्र०] हे भगवन् ! लोकाकाशमा केटला वर्ण छे? इत्यादि पूछq. (उ०] हे गौतम ! लोकाकाशमा वर्ण नथी, रस नथी, गंध नथी, यावत्-स्पर्श नथी. ते एक अजीव द्रव्यदेश छे, अगुरूलघु छे, अगुरूलघुरूप अनंत | गुणोथी संयुक्त छे अने सर्व आकाशना अनंत भागरूप छे. ॥ १२१॥ ६ धम्मत्यिकाए णं भंते! किं (के ) महालए पण्णते?, गोयमा! लोए लोयमेत्ते लोयप्पमाणे लोयफुडे लोयं चेव फुसित्ता णं चिट्ठइ, एवं अहम्मत्थिकाए लोयागासे जीवस्थिकाए पोग्गलत्थिकाए पंचवि एक्काभिलावा ॥ (मू. १२२)॥ [0] हे भगवन् ! धर्मास्तिकाय केटलो मोटो कह्यो छे ! [उ०] हे गौतम! ते लोकरूप छे, लोकमात्र के, लोक प्रमाण छे, अने लोकने स्पर्शलो तथा लोकनेज अडकीने रहेलो छे. ए प्रमाणे अधर्मास्तिकाय, लोकाकाश, जीवास्तिकाय, अने पुद्गलास्तिकाय || *%%%ASANSAR For Private and Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २ शतके उद्देशः१० ॥१९८॥ संबंधे पण समजवू, ए पांचे संबंधे एक सरखोज अमिलाप छे. ॥१२२॥ व्याख्या अहेलोए णं भंते ! धम्मत्थिकायस्स केवइयं फुसति ?, गोयमा! सातिरेग अद्धं फुसति । तिरियलोए णं| प्रज्ञप्तिः भंते ! पुच्छा, गोयमा! असंखेजहभागं फुसइ । उड्ढलोए णं भंते ! पुच्छा, गोयमा! देसूर्ण अद्धं फुसइ । ॥१९८॥ (सू० १२३)। [प्र.] हे भगवन् ! धर्मास्तिकायना केटला भागने अधोलोक स्पर्श अडके छ ? [उ०] हे गौतम ! अधोलोक धर्मास्तिकादयना अडधाथी वधारे भागने अडके छे. [प०] हे भगवन् ! धर्मास्तिकायना केटला भागने तिर्यग्लोक स्पर्श छ ? [उ०] हे गौतम! | असंख्येय भागने स्पछे छे. [प्र.] हे भगवन् ! धर्मास्तिकायना केटला भागने उद्धर्वलोक स्पर्श के ? (उ०] हे गौतम ! धर्मास्तिकाजायना देशोन-कांइक ओछा-अर्थ भागने उर्ध्वलोक अडके छे. ।। १२३ ॥ इमा णं भंते ! रयणप्पभापुढवी धम्मत्थिकायस्स किं संखेजहभागं फुसति ? असंखजइभागं फुसइ ? संखिजे भागे फुसति ? असंखेजे भागे फुसति ? सव्वं फुसति ?, गोयमा! णो संखेनइभागं फुसह, असंखेन|हभागं फुसइ, णो संखेजे, णो असंखेजे०, नो सव्यं फुसति । इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए युद्धवीए उवासंतरे घणोदही धम्मस्थिकायस्स, पुच्छा, किं संखेवइभागं फुसति? जहा रयणप्पभा तहा घणोदहिघणवायतणुवाया । इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए उवासंतरे धम्मत्थिकायस्स किं संखेजतिभागं फुसति असंखेजभागं फुसह जाव सव्वं फुसइ, गोयमा! संखेजहभागं फुसइ, णो असंखेजइभागं फुसइ, नो संखेने०, नो 中中中中中中中 For Private and Personal Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir X व्याख्याप्रज्ञप्तिः २ शतके उद्देशः१. ॥१९९।। असंखेजे०, नो सव्वं फुसह, उवासंतराई सब्वाईजहा रयणप्पभाए पुढवीए वत्तब्धया भणिया, एवं जाव अहेसत्तमाए, जंबुद्दीवाइया दीवा लवणसमुदाइया समुद्दा, एवं सोहम्मे कप्पे जाव ईसिपम्भारापुढवीए, एते सब्वेवि असंखेजतिभागं फुसति, सेसा पडिसेहेयव्वा । एवं अधम्मस्थिकाए, एवं लोयागासेवि, गाहा-पुढवो| वहीषणतणुकप्पा गेवेजणुत्तरा सिद्धी । संखेवतिभागं अंतरेसु सेसा असंखेजा ॥ २२ ॥ (सू. १२४ ] । वितियं सयं संमत्तं ॥२-१० ॥ २॥ [प्र०] हे भगवन् ! आ शुं रत्नप्रभा पृथिवी धर्मास्तिकायना संख्येय भागने अडके छे, असंख्येय नागोनें अडके के के तेने | आखाने अडके छ ? [उ०] हे गौतम! ते संख्येय भागने अडकती नथी, पण असंख्येय भागोने अडके छे. तथा ते संख्येय भागोने, असंख्येय भागोने अने आखाने पण अडकती नथी. [प्र०] हे भगवन् ! आ रत्नप्रभा पृथिवीनो धनोदधि, धर्मास्तिकायना केटला भागने स्पर्श छे, शुं संख्येय भागने स्पर्श छे ? इत्यादि पूछq. [उ०] हे गौतम ! जेम रत्नप्रभा संबंधे को तेम धनोदधि संबंधे पण जाणवू अने तेज प्रमाणे धनवात तथा तनुवात संबंधे पण समजवु. [प्र०] हे भगवन! आ रत्नप्रभा पृथिवीनुं अवकाशां| तर शुं धर्मास्तिकायना संख्येय भागने अडके के यावत् तेने अखाने अडके. [उ०] हे गौतम! ते संख्येय भागने अडके पण असंख्येय भागने न अडके, तथा संख्येय भागोने न अडके, असंग्च्येय भागोने न अडके अने तेने आखाने पण न अडके. एज रीते : वर्धा अवकाशांतरो जाणवां. रत्नप्रभा संबंधे कहेल वक्तव्यतानी पेठे यावत्-सातमी पृथिवी सुधी समजवू. तथा जंबूद्वीपादिक द्वीपो अने लवणसमुद्रादिक समुद्रो, सौधर्मकल्प, यावन्-इषाप्रागभारा पृथिवी ते बधा असंख्येय भागने स्पर्श. बाकीना भागनी स्पर्शनानो For Private and Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२०॥ निषेध करवो. ए प्रमाणे अधर्मास्तिकाय अने लोकाकाशने अडकवा विषे पण जाणवू. गाथार्थः-पृथिवी, उदधि, धनवात, तनुयात, कल्प, अवेयक, अनुत्तरो अने सिद्धि. ए बधानां अंतरो धर्मास्तिकायना संख्येय भागने अडके छे अने बाकी बधा धर्मास्तिकायना २ शतके Nउद्देशः१० असंख्य भागने अडके छे. ॥ १२४ ॥ भगवत् सृधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीस्त्रना बीजा शतकसां दशमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. ॥ इति श्रीभगवतीसूत्रे द्वितीय शतं समाप्तम् ॥ For Private and Personal Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ** भ्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१०॥ ३ शतके उद्देशः१: ॥२०१॥ * ** SCORTAMASSIONS ॥ अथ तृतयिं शतकम् ॥ उदेशक १. श्रीजां शतकेमा दश उद्देशाओ छ, जैमां नीचे प्रमाणे अधिकार आवशे. केरिसविउठवणा' चमर' किरिय' जाणिथि नगर पाला य । अहिवई इंदियपरिसा ततियम्मि सए दसुदेसा ॥ २३ ।। (केरिसविउब्वण'ति) चमर नामना इंद्रमा विकर्षण शक्ति केवी छे ? इत्यादि प्रश्नना निर्वचन माटे प्रथम उदेशक हे (चमर'त्ति) चमरनो उत्पात जणाचवा बीजो उद्देशक छ (किरिय'त्ति) कायिकी वगेरे क्रियाओना जणावया त्रीजो उदेशक हे (जाण'त्ति) देवे विकुर्वेल यानने साधु जाणे ? इत्यादि अर्थना निर्णय माटे चोथो उद्देशक छे (इत्यि'त्ति) साधु वहारना पुद्ग-16 लोने लइने स्त्री वगेरेनां वैक्रिय रूपो करी शके इत्यादि अर्थना निर्णय सारुं पांचमो उद्देशक के. (नगर'त्ति) नगर संबंधी छट्टो उद्देशक छे (पालय'त्ति) लोकपालोना स्वरूपने कहेनारो सातमो उद्देशक छे (अंहिवईत्ति) असुर वगेरेना इंद्रो केटला छे ? ए वातने जाणवा माटे आठमो उद्देशक के (इंदिय'त्ति) इंद्रियोना विषय संबंधी नवमो उद्देशक छे (परिस'त्ति) चमरनी सभा संबंधी हकीकत जणावत्रा दशमो उद्देशक के. * * For Private and Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रज्ञप्तिः ॥२०२॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं मोया नाम नगरी होत्था, वण्णओ, तीसे णं मोयाए नगरीए बहिया उत्तरपुर|च्छिमे दिसीभागे णं नंदणे नामं चेतिए होत्या, चण्णओ, तेणं कालेणं २ सामी समोसड्ढे, परिसा निग्गच्छइ, ३ शतके पडिगया परिसा, तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स दोचे अंतेवासी अग्गिभूतीनामं उदेशः१ अणगारे गोयमगोत्तेणं सत्तुस्सेहे जाव पज्जुवासमाणे एवं वदासी-चमरे णं भंते ! असुरिंदे असुरराया के- २०२॥ महिड्ढीए ? केमहज्जुत्तीए ? केमहाबले ? केमहायसे? केमहासोक्खे ? केमहाणुभागे? केवइयं च णं पभू विउवित्तए?, गोयमा! चमरे णं असुरिंदे असुरराया महिड्ढीए जाव महाणुभागे, सेणं तत्थ चोत्तीसाए भवणाबाससयसहस्साणं चउसडीए सामाणियसाहस्सीर्ण तायत्तीसाए तायत्तीसगाण जाव विहरइ, एवंमहिढीए जाव महाणुभागे, एवतियं च णंपभू बिउब्बित्तए से जहानामए-जुवती जुबाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेज्जा, चक्कस्स वा नाभी अरगाउत्ता सिया, एवामेव गोयमा! चमरे असुरिंदे असुरराया बेउब्वियसमुग्धाएणं समोहणइ १ संखेजाई जोयणाई दंड निसिरह, तंजहा-रयणाणं जाब रिहाणं, अहापायरे पोग्गले परिसाडेइ २ अहासुहुमे पोग्गले परियाएति २ दोचपि बेउब्वियसमुग्घाएणं समोहणति २, पभू णं गोयमा! चमरे असुरिंदे असुरराया केवल-14 कप्पं जंबुद्दीव २ पहहिं असुरकुमारेहिं देवेहिं देवीहि य आइपण वितिकिण्णं उबत्थडे संबडं फुडं अवगाढाअवगाढं करेत्तए, अदुत्तरं च णं गोयमा ! पभू चमरे असुरिंदे असुरराया तिरियमसंखजे दीवसमुद्दे बहहिं असुरकुमारहिं देवेहिं देवीहि य आइण्णे वितिकिपणे उवस्थडे संथडे फुडे अवगाढावगाढे करेत्तए, एसणं For Private and Personal Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३ शतके उद्देशः१ ॥२०॥ गोयमा। चमरस्सं असुरिंदस्म अररणो अयमेयारवें विसए विसयमेरो वाए, जोधेवणं संपत्तीए विकुम्चिसु व्याख्या- वा विकुम्वति वा विकुब्बिस्सति वा ॥ (सू० १२५)॥ प्रज्ञप्तिः ते काळे ते समये मोका नामनी नगरी हती, वर्णक. ते मोका नगरीनी महार उत्तर-पूर्वना दिग्भागमा नंदन नामर्नु चैत्य ॥२०३२॥ हितुं वर्णक. काळे ते समये श्रीमहावीरस्वामी पधार्या सभा नीकळे के अने धर्म श्रवण करी सभा पाछी चाली गइ. [प्र०] ते | काळे ते समये श्रमण भगवंत महावीरना बीजा शिष्य अग्निभूति नामना अनगार पर्युपासना करता आ प्रमाणे बोल्याः-हे भगवन् ! असुरेंद्र, असुरराज चमर केवी मोटी ऋद्धिवाळो छे, केवी मोटी कांतिवाळो छे, केवा मोटा चळवालो , केवी मोटी कीर्तिवाळो छ, केवा मोटा मुखवाळो छ, केवा मोठा प्रभावबाळो छ अने ते केटलं वीकुर्वण करी शके छ ? [उ.] हे गौतम ! असुरेंद्र असुरराज चमर मोटी ऋद्धिवाळो छे, यावत्-मोटा प्रभाववालो छे:-ते त्यां चोत्रीसलाखो भवनवासो उपर चोसठहजार सामानिक देवो उपर अने तेत्रीश त्रायस्त्रिंशक देवो उपर, सत्ताधीशपणुं भोगवतो यावत्-विहरे छे, अर्थात् ते चभर एवी मोटी ऋद्धिवाळो छे अने ४ श्री अग्निभूति ज्ञातवंशीय श्रमणभगवंत महावीरना बीजा गणाधर हता. तेमनो जम्न कृतिका नक्षत्रमा मगध देशना गोचर गाममा थयो हतो तथा तेमना पिता गौतमगोत्रीय वसुभूति तथा पृथिवीदेवी नामनी माता हता. तेओ वेद संबंधी और विद्या पारंगत हता तेमनो शिष्य परिवार ५०० नो हतो. एक समये तेभो आर्य श्री सोमील विप्रना दीक्षा प्रसंगे अपापापुरीमा पधार्या हता त्यांची देवो वगेरेने प्रभु महाबीरनी स्तुति करता सांभळी नहीं आध्या. तेमना संशयोनो नाश यवाची त्यां महावीरन बीजा शिष्य थयो. ते बखते तेमनी उमर ५६ वर्ष स्मारपछीना १२ वर्ष अग्रस्थपणामां बने सोळ वर्ष केवळीपणे विद्यमान हता भा रीते तेमनुं आयुष्य ४४ वर्षनु हतुं भने तेमनु निर्वाण प्रभुनी विद्यमानपणाम थयु हतु. ( समयागमय अंग ) SARASWERS For Private and Personal Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ व्याख्या प्रज्ञप्तिः !॥२०४॥ ३ शतके उदेशः१ ॥२०४॥ स यावत्-एवा मोटा प्रभाववालो छे. तथा तेमी विकुर्वण करवानी शक्ति पण आटली छे:-हे गौतम विकुर्वण करवा माटे असुरेंद्र, असुरराज चमर वैक्रिय समुद्घातबड़े समयहत थाय छ, संख्येय योजनसुधी लांचा दंडने निसर्जे छे-बनावे छे अने ते द्वारा रत्ननो यावत्-रिष्ट रत्नोना स्थूल पुद्गलोने खंखेरी नाखे छे, तथा सूक्ष्म पुद्गलोनुं ग्रहण करे छे. बीजीवार पण वैक्रियसमुद्घातवडे समवहत थाय छे. वळी हे गौतम ! जेम कोइ युवान पुरुष पोताना हाथवडे जुवान स्त्रीना हाथने पकडे अर्थात् परस्पर काकडा वाळेला होबाथी ते बन्ने व्यक्तिओ संलग्न जणाय छ, अथवा जेम पैडानी धरीमा आराओ सुसंबद्ध होय, एवीजीते अमुरेंद्र, असुरराज चमर घणा असुरकुमार देवो अने षणी असुरकुमार देवीओबडे आखा जंबूद्वीप नामना द्वीपने आकीर्ण करी शके छे, तेमज व्यतिकीर्ण, उपस्तीर्ण, संस्तीर्ण, स्पृष्ट अने अवगाढावगाढ करे छ अर्थात् ते चमर बीजां रूपो एटलां बधां विकुर्वी शके छ, के जेने लइने पूर्व प्रमाणे आखो जंबूद्वीप पण भराइ जाय छे. वळी हे गौतम ! असुरेंद्र, असुरराज, चमर घणा असुरकुमार देवो अने घणी | असुरकुमार देवीओवडे आ तिरछालोकमां पण असंख्य डीप अने समुद्र सुधीनुं फळ आकीर्ण करे छ, तथा व्यतिकीर्ण, उपस्तीर्ण संस्तीर्ण, स्पृष्ट अने अवगाढावगाढ करी शके छे. हे गौतम! पूर्व कह्या प्रमाणे एटलां रूपो करवानी असुरेंद्र, असुरराज चमरनी मात्र शक्ति छे पण कोई वखते ते चमरे पूर्व प्रमाणे रूपो काँ नथी, करतो नथी अने करशे पण नहिं. ॥१२५ ॥ जति णं भंते! चमरे असुरिंदे असुरराया एमहिड्डीए जाव एवइयं च णं पभू विकुबित्तए, चमरस्सणं भंते ! असुरिंदास असुररनो सामाणिया देवा केमहिड्ढीया जाव केवतियं च णं पभू विकुवित्तए ?, गोयमा चमरस्स असुरिंदस्स असुररन्नो सामाणिया देवा महिड्ढिया जाव महाणुभागा, ते णं तत्थ साणं २ भवणाणं 45 % %*ॐ For Private and Personal Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२०॥ शतके उद्देशः१ २०५॥ मिसंखन दीवसमुदायमा ! चमरस मासु वा विकुब्वति वा विकर्वण करी साणं २ सामाणियाण साणं २ अग्गमाहिसीणं जाब दिव्वाई भोगभोगाई भुजमाणा विहरंति, एवंमहिड्दीया जाब एवइयं चणं पभू विकृवित्तए, से जहानामए जुबति जुवाणे हत्थे हत्थे गेण्हेजा, चक्कस्स वा नाभी अरयाउत्ता सिया, एवामेव गोयमा चमरस्स असुरिंदरस असुररमो एगमेगे सामाणिए देवे वेउब्वियसमुग्घाएणं समोहणइ २ जाब दोचंपि वेउन्वियसमुग्धाएणं समोहणति २ पभू गं गोयमा ! चमरस्स अमुरिंदस्म असुररन्नो एगमेगे सामाणिए देवे केवलकप्पं जंबुद्दीब २ बहहिं असुरकुमारेहिं देवेहिं देवीहि य आइन्न वितिकिन्न उवत्थडं संथडं फुडं अवगाढावगाह करेत्तए, अदुत्तरं च गं गोयमा ! पभू चमरस्स असुरिंदस्स असुररन्नो एगमेगे सामाणियदेवे तिरियमसंखजे दीवसमुद्दे बहहिं असुरकुमारेहिं देवेहिं देवीहि य आइण्णे वितिकिपणे उवत्थडे संथडे फुडे अवगाढावगाढे करेत्तए, एस णंगोयमा! चमरस्स असुरिंदस्स असुररनो एगमेगस्स सामाणियदेवस्स अयमेयारूवे विसए विसयमेत्त बुइए, णो चेव णं संपत्तीए विकुच्विसु वा विकुब्वति वा विकब्विस्सति वा । | [प्र०] हे भगवन् ! जो अमुरेंद्र असुरराज चमर एवी मोटी ऋद्धिवाळो छे अने यावत्-ते घणु विकृर्वण करी शके छे, तो हे | | भगवन् ! असुरेंद्र, असुरराज चमरना सामानीक देवो केवी मोटी ऋद्धिवाला छे, अने तेओनी विकुर्वण शक्ति केटली छे ? [उ.] हे गौतम! असुरेंद्र असुरराज चमरना लोकपाल देवो एची मोटी ऋद्धिवाला छे अने यावत्-महा प्रभावबाळा छे तेओ त्यां पोते पोतानां भवनो उपर, पोतपोताना सामानिको उपर अने पोपोतानी पट्टराणीओ उपर सत्ताधीशप भोगवता, यावत्-दिव्य & भोगोने भोगवता विहरे के. अने एओ एवी मोटी ऋद्धिवाला है. अने तेओनी विकर्षण शक्ति आटली छे के:-हे गौतम ! विकुर्वण , For Private and Personal Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः करवा माटे तेओ-असुरेंद्र, असुरराज चमरना एक एक सामानिक देवो-चैक्रियसमुद्घाताडे समवहत थाय हे. अने यावत्-चीजीवार पण वैक्रियसमुद्घातबडे समवन्त थाय हे. तथा हे मौतम! जेम कोइ जुवान पुरुष पोताने हाथे जुवान स्त्रीना हाधने पकडे, अर्थात् | शतके परस्पर काकडा बाटेला होकाथी जैम ते बन्ने व्यक्तिओ संलग्न जणाय हे अथवा जेम पैडानी धरीमा आराओ संलग्न-मुसंबद्ध उदेशः१ होय एवीज रीते अमृरेंद्र, अमरराज चमरना सामानिक देवो आरा जंबूद्वीपने घणा- अमुरकुमार देबो तथा घणी असुरकुमार देवीओ IN२०६॥ वडे आकीर्ण, व्यतिकीर्ण, उपस्तीर्ण, संस्तीर्ण, स्पृष्ट अने अबगाढावगाढ करी शके हे. वळी हे गौतम ! असुरेंद्र असुरराज चमरनो एक एक सामानिकदेव अतिरछा लोकमां असंख्येय द्वीप समुह सुधीनुं स्थळ घमा असुरकुमार देवो अने घणी असुरकुमार देवीओ बडे आकीर्ण, व्यतिकीर्ण, उपस्तीर्ण, संस्तीर्ण, स्पृष्ट अने अवगाढावगाढ करी शके छे. हे गौतम ! असुरेंद्र, असुरराज चमरना प्रत्येक सामानिकमा पूर्व प्रमाणे विकुर्वण करवानी शक्ति ले-विषय छ, विषयमात्र छे, पण तेओ संप्राप्तिवडे कोइगर विकुयु नथी, विकु-12 बता नथी, अने विकुशे नहिं. जति णं भंते! चमरस्स असुरिंदस्स असुररनो सामाणिया देवा एवंमहिदिया जाव एव तियं चणं पभू विकुवित्तए चमरस्सणं भंते! असुरिंदस्स असुररनो तायत्तीसिया देवा केमहिड्रिया० ?, ताय त्तीसिया देवा जहा सामाणिया तहा नेयम्बा, लोयपाला तहेव, नवरं संवजा दीवसमुद्दा भाणियब्वा, यहहिं असुरकुमारेहिं २ आइने जाव विउम्बिस्संति वा । जति णं भंते ! चमरस्स असुरिंदस्स असुररन्नो लोगपाला देवा एवंमहिदिया जाव पवतियंचणं पभू विउन्वित्तए । चमरस्स णं भंते! असुरिंदस्स असुररन्नो अग्गमहिसीओ देवीओ कमहिना ARMY For Private and Personal Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२०७॥ शतके उद्देशः ॥२०७॥ TRACKASARAA5 ड्डियाओ जाव केवतियं वर्ण पभू विकुवित्तए?, गोयमा! चमरस्स णं असुरिंवस्स असुररनो अग्गमहिसीओ महिहियाओ जाव महाणुमागाओ, साओ णं तत्य माण २ सामाणियसाहस्सीणं साणं २ महत्तरियाणं साणं २ परिसाणं जाप एमहिढियाओ अन्नं जहा लोगपालाणं अपरिसस । सेवं भंते ! २ त्ति (सूत्रं १२६) [4] हे भगवन् ! असुरेंद्र, असुरराज चमरना सामानिक देवो एची मोटी ऋद्धिवाला के अने यावत-एटलं विकर्षग करवा समर्थ छे तो हे भगवन् ! असुरेंद्र, असुरराज चमरना त्रायविंशक देवो केवी मोटी ऋद्धिवाळा ? [उ०] हे गौतम! जेम सामानिको कह्या तेम त्रायविंशको पण कहेवा. तथा लोकपालो संबंधे पण एम कहे. विशेष ए के, तेओ पोताना धनावेल रूपोथी अनेक असुरकुमारो अने असुरकुमारीओथी-संख्येय द्वीप समुद्रोने भरी शके छे. [म.] हे भगवन् ! जो असुरेंद्र असुरराज चमरना लोकपाल देवो एवी मोटी ऋद्धियाळा हे अने यावत्ले ओ एटलं विकुर्वण करी शके थे, तो असुरेंद्र असुरराज चमरनी पट्टराणी देवीओ केवी। मोटी ऋद्धिवाळी छे अने तेओ केटल विकुर्वण करे के ? [उ.] हे गौतम ! असुरेंड असुरराज चमरनी पट्टराणी देवीओ मोटी ऋद्धिवाळी छे, अने यावत्-मोटा प्रभावबालीओके. तेओ त्यां पोतपोताना भवनो उपर, पोतपोताना हजार मामानिक देयो उपर, पोतपोतानी मित्ररूप महत्तरिका देवीओ उपर अने पोतपोतानी समितिर्नु स्वामीपणुं भोगवती रहे रे. यावत्-ने पट्टराणीओ एवी मोटी ऋद्धिवाळीओ छे. ते संबंधेनी धीजी वधी हकीकत लोकपालोनी पेठे कईवी. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते| |ए प्रमाणे छे. ॥१२॥ भगवं दोचे गोयमे समर्ण भगवं महावीरं बंदइ नमसइ २ जेणेव तच्चे गोयमे वायुभूतिअणगारे तेणेव For Private and Personal Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * * | ३ शतके उरेशः१ ॥२०८॥ * * Pउवागछति २तचं गोयमं वायुभूति अणगारं एवं वदासी-एवं खलु गोयमा। चमरे असुरिंदे असुरराया ख्या एवंमहिइडीएतं चैव एवं सब्बं अपुट्ठवागरण नेयब्वं अपरिसेसियं जाव अग्गमहिसीणं वत्तब्वया समत्ता । तए प्रज्ञप्तिः णं से तचे गोयमे वायुभूती अणगारे दोबस्स गोयमस्स अग्गिभूइस्स अणगारस्स एबमाइक्खमाणस्स भा० ॥२०॥ पं० परू. एयमढें नो सहहह नो पत्तियह नो रोयह, एयमट्ठ असदहमाणे अपत्तियमाणे अरोएमाणे उठाए उठेइ २ जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छद जाच पज्जुवासमाणे एवं बयासी-एवं खलु भंते ! दोचे गोयमे अग्गिभूतिअणगारे मम एवमातिक्खइ भासइ पन्नवेइ परूवेइ-एवं खलु गोयमा! चमरे असुरिंदे असुरराया महिड्डीए जाव महाणुभावे सेणं तत्थ चोत्तीसाए भवणावाससयसहस्साणं एवं तं चेव सव्वं अपरिसेसं भाणियव्यं जाव अग्गमहिसीण वत्तब्वया संमत्ता, से कहमेयं भंते ! एवं० १, गोयमादि समणे भगवं महाबीरे सचं गोयमं चाउति अणगारं एवं वदासी-जणं गोयमा! दोचे गो० अग्गिभूइअणगारे तव एवमातिक्खा ५-एवं खल्लु गोयमा ! चमरे ३ महिड्दीए एवं तं चेव सब्वं जाव अग्गमहिसीणं वत्तव्यया संमत्ता, सच्चे णं एसम, अहंपिणं गोयमा! एवमातिक्वामि भा०प० परू०, एवं खलु गोयमा!-चमरे ३ जाव महिइबीए सो घेव पितिओ गमो भाणियब्बो जाव अग्गमहिसीओ, सच्चे णं एसमढे, सेवं भंते ! २, तचे गोयमे ! वायुभूती अणगारे समणं भगवं महावीरं वंदहनमंसह २ जेणेव दोच्चे गोयमे अग्गिभूती अणगारे तेणेव उवागच्छइ २ दोचं गो. अग्गिभूति अणगारं वंदह नमसति २ एयमई सम्मं विणएणं भुलो २ खामेति (सूत्रं १२७) * * *** For Private and Personal Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥ २०९ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एम कही द्वितीय गौतम अग्निभूति अणगारे श्रमण भगवंत महावीरने वांदी, नमी, जे तरफ तृतीय गौतम वायुभूति अनगार हता ते तरफ जवानुं कर्तुं अने त्यां जड़ने ते अग्निभूति अनगारे वायुभूति अनगारने आ प्रमाणे कनुं केः- हे गौतम! ए प्रमाणे निश्चित छे के, असुरेंद्र असुरराज चमर, एवी मोटी ऋद्धिवाको छे, इत्यादि बधुं चमरथी मांडीने तेनी पट्टराणीओ सुधीनुं अष्टष्ट व्याकरणरूप वृत्तांत अहीं कहे. त्यारपछी अग्निभूति अनगारे पूर्व प्रमाणे कहेली, भाषेली, जणावेली अने प्ररूपेली ए वातमां ते तृतीय गौतम वायुभूति अनगारने श्रद्धा बेसती नथी, विश्वास आवतो नथी अने ए वात तेओने रुचती नथी. हवे ए बातमां अश्रद्धा करता, अविश्वास आणता अने ए बात तरफ अणगमात्राळा ते तृतीय गौतम वायुभूति अनगार पोताना आसनथी उठी श्रमण। भगवंत महावीर तरफ गया अने त्यां जह तेओनी पर्युपासना करता आ रीने बोल्या:- हे भगवन् ! द्वितीय गौतम अग्निभूति अन| गारे मने सामान्य प्रकारे कशुं, विशेष प्रकारे कर्बु, जणाव्यं अने प्ररूप्यं के "असुरेंद्र, असुरराज चमर एवी मोटी ऋद्धिवाको छे अने यावत्-एवा मोटा प्रभावत्राको क्रे के, ते त्यां चोत्रीशलाख भवनात्रासो उपर स्वामिपणुं भोगवे छे, इत्यादि बधुं पट्टराणीओ सुधीनुं वृत्तांत अहीं पूरेपुरु कहे" ते ए तेज प्रमाणे केवी रीते है ? [उ०] हे 'गौतम' वगेरे आमंत्री श्रमण भगवंत महावीरे ते त्रीजा गौतम वायुभूति अनगारे तने जे सामान्य प्रकारे कछु, विशेष प्रकारे कछु, जगायं अने प्ररूप्यं के, - हे गौतम! अरे, असुरराज चमर मोटी ऋद्धिवाळो छे, इत्यादि बधुं तेनी पट्टराणीओ सुधीनुं वृत्तांत अहीं कहे" ए बात साची छे अने हुं पण एमज कहुं छु, भाएं छु, जणानुं छू, अने प्ररूपं छु के असुरेंद्र, असुरराज चमर मोटो ऋद्धिवालो के इत्यादि तेज रीते यावत्-पट्टराणीओ सुधीनी हकीकतवाळो बीजो गम कहेवो. अने ए बात साची छे. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे एम For Private and Personal Use Only ३ शतके उद्देशः १ ॥२०९॥ Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रज्ञप्तिः ॥२१॥ ३ शतके उदेशः१ ॥२१॥ कही तृतीय गौतम वायुभूति अनगार श्रमण भगवंत महावीरने चांदी, नमी अने जे तरफ बीजा गौतम अग्निभूति अनगार छे त्यां आवी, तेओने वांदी, नमी, 'तेओनी बात न मानी' ते माटे तेओनी पासे वारंवार विनयपूर्वक सारी रीते क्षमा मागे छे. ॥१२७॥ ला तए णं से तच्चे गोयमे वाउभूती अणगारे दोघेणं गोयमेणं अग्गिभूतीणामेणं अणगारेण सद्धिं जेणेव समणे | भगवंमहावीरे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी-जति णं भंते!चमरे असुरिंदे असुरराया एवंमहिड्डीए जाव एवति यं च पभू विकुवित्तए बली णं भंते ! बहरोयणिदे वइरोयणरायाकेमहिड्डीए जाव केवतियं च णं पभू वि | कुवित्तए?, गोयमा! बली णं वइरोयणिंदे वइरोयणराया महिड्ढिए जाव महाणुभागे, से णं तत्थ तीसाए भ|वणावाससयसहस्साणं सट्टीए सामाणियसाहस्सीण सेस जहा चमरस्स तहा लियस्सवि णेयब्वं, णवरं सातिरंग केवलकप्पं जंबुद्दीवंति भाणियब्वं, सेसं तं चेव णिरवसेसं गेयव्वं, णवरं णाणत्तं जाणियब्वं भवणेहिं सामा|णिएहिं, सेवं भंते रत्ति तच्चे गोयमे वायुभूती जाब विहरति । [प्र०] त्यारपछी ते त्रीजा गौतम वायुभूति अनगार, बीजा गौतम अग्निभूति नामना अनगारनी साथे ज्यां श्रमण भगवंत वायुभूति-काश्यपगोत्र श्रमणभगवंतमहावीरना श्रीजा गणवर इता. तेमनो जन्म स्वाति नक्षत्रमा, मगव देशना गोबर नामना विप्र श्रीवसुभूतिना पत्नी पृथिवीदेवीनी कुखे अयो हतो तेओ प्रथम तथा बीजा गणधरना सहोदर हता. तेओ वेद संबंधी चौदे वियाना निधान हता, पण मुं |आ देहज आश्मा ! एका एका संशयवाळा हता तेओनो शिष्य समुदाय ५०. नो हतो भगवंत महाबीर पासे पोताना संशयोनो नाश थतां त्यांज प्रबजित धया. ते वसते तेमनुं वय बेतालीश वर्ष १० वर्ष उमस्थावस्था भने १८ वर्ष केवळीपणे ए रीते ७० वर्षनु आयुष्य भोगवी प्रभुना विद्य* मानपणामां राजगृहमा निवार्ण थयु हतुं. ( समवायांग सूत्र भं०.) For Private and Personal Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥२१॥ 84-% महावीर छे त्यां आल्या; अने त्यां तेओनी पर्युपासना करता आ प्रमाणे बोल्या के:-हे भगवन् ! जो असुरराज चमर एत्री मोटी ऋद्धिबाळो छे अने यावत्-एटलं विकुर्वण करी शके छे, तो हे भगवन् ! वैरोचनेद्र बलि, केवी मोटी ऋद्धिधाळो के, यावत्-ते केटलं ३ शतके विकुर्वण करवा समर्थ छ ? [उ.] हे गौतम ! वैरोचनेंट, वैरोचनराज बली मोटी ऋद्धिवाळो छे. यावन्-महानुभाग छे, वळी ते त्यांउद्दशः१ त्रीसलाख भवनोनो, तथा साठहजार सामानिकोनो अधिपति हे. जेम चमर संबंधे हकीकत कही तेम बलि विषे पण जाणवं. विशेष ॥२१॥ ए के, ते पोतानी विकुर्वण शक्तिथी आखा जंबूद्वीप करतां वधारे भागमा पोताना रूपो भरी शके छ, बाकी बधुं तेज प्रमाणे को. विशेष ए के, भवनो अने सामानिको विषे जूदाइ जाणवी. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे हे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छ. एम कही यावत्-त्रीजा गौतम वायुभूति अनगार विहरे छे. भंते त्ति भगवं दोचं गोयमे अग्गिभूती अणगारे समणे भगवं महावीरं वंदई २ एवं वदासी-जाणं भंते ! बली बइरोयणिदे वइरोयणराया एमहिइडीए जाव एवइयं च णं पभू विकुवित्तए धरणे णं भंते ! नागकुमारिदे नागकुमारराया केमहिड्ढिए जाव केवतियं च णं पभू विकुवित्तए?, गोयमा! धरणेणं नागकु-| मारिदे नागकुमारराया एमहिड्डीए जाव से णं तत्थ चोयालीसाए भवणावाससयसहस्साणं छहं सामाणिय साहस्सीणं तायत्तीसाए तायत्तीसगाणं चउण्हं लोगपालाणं छहं अग्गमाहिसीणं सपरिवाराणं तिण्हं परिसाण सत्तण्हं अणियाणं सत्ताहं अणियाहिवई चउत्तीसाए आयर यखदेवसाहस्सीणं अनेसि च जाव विहरइ, एवतियं च णं पभू विउब्वित्ता, से जहानामए---सुवतिं जुवाणे जाव पभू केवलकप्पं जंबुद्दी २ % %* For Private and Personal Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रज्ञप्ति ॥२१२॥ ३ शतके जोशः१ ॥२१॥ जाब तिरिय संखेज्जे दीवसमुहे बहहिं मागकुमारीहिं जाव विउविस्संति वा, मामाणिया तायत्तीसा लोगपालगा अग्गमहिसीओय तहेव, जहा चमरस्स एवं धरणेणं नागकुमारराया महिड्ढिए जाव एवंतियं जहा चमरे तहा धरणेऽवि, नवरं संखजे दीवसमुद्दे भाणियब्वे, एवं जाव थणियकुमारा वाण मंतरा जोइसियावि, नवरं दाहिणिल्ले सब्वे अग्गिभूती पुच्छति, उत्तरिल्ले सव्वे वाउभूती पुच्छइ, हा पछी ते त्रीजा गौतम अग्निभूति अनगार श्रमणभगवंतमहावीरने वांदे छे, नमे छे, नमीने तेओ आ प्रमाणे बोल्या के:-हे भग वन् ! जो वैरोचन इंद्र, वैरोचनराजबलि एवी मोटी ऋद्धिवाव्ये छे अने यावत् ते केटलं विकृर्वण करी शके छ ? [उ.] हे गौतम ! ते नागकुमारोनो इंद्र, नागकुमारोनो राजा धरण मोटी ऋद्धिबाळो छे, अने यावत्-त्या ४४ लाख भवनवासो छे, छ हजार सामा. |निक देवो उपर, तेत्रीश त्रायविंशक देवो उपर, चार लोकपालो उपर, परीवारवाळी छ पट्टराणीओ उपर स्वामीपणुं भोगवतो विहरे २. तथा तेनी विकुर्वण शक्ति आटली छे-जेम कोइ जुवान पुरूष जुवान स्वीना हाथने पकडे, अने परस्पर काकडा वाळेल होबाथी | जेम ते संलग्न जणाय 2 सेम घणा नागकुमार अने धणी नागकुमारीओवडे-आखा जंबूद्वीपनो अने तिरछे संख्येय द्वीपसमृद्रोने भरी शके छः पण यावत्-ते तेवु कोइ दिवस करशे नहि. तेना सामानिको, त्रायविंशक देवो, लोकपालो, अन अग्र महिपीओ विषे | | चमरनी माफक कहे. विशेष ए केः-तेओनी विकुर्वणशक्ति माटे संख्येय द्वीप समुद्रो कहेवा. अने ए प्रमाणे यावत्-स्तनितकुमारो, | वानभ्यंतरो, तथा ज्योतिषिको पण जाणवा. विशेष ए के-दक्षिण दिशाना बधा इन्द्रो विषे अग्निभूति पूछे छे अने उत्तर दिशाना | बधा इंद्रो विषे वायुभूति पूछे छे. + For Private and Personal Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२१३॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भंतेत्ति भगवं दोचे गोयमे अग्निभूती अणगारे समणं भगवं म० बंदति नम॑सति २ एवं वयासी-जति णं भंते! जोइसिंदे जोतिसराया एवं महिड्दिए जाब एवतियं च णं पभू विकुव्वित्तए सके णं भंते! देविंदे देवराया केमहिड्दिए जाव केवतियं च णं पभू बिउवित्तए ?, गोगमा ! सक्के णं देविंदे देवराया महिढीए जाब महाणुभागे, सेणं तत्थ बत्तीसार विमाणावाससयसहस्साणं चउरासीए सामाणियसाहस्सीणं जाब चउन्हं बउरासीणं आयरक्ख(देव) साहस्सीणं अन्नेसिं व जाव विहरह, एवंमहिइटीए जाब एवतियं च णं पन विकुव्वित्तए, एवं जहेब चमरस्स तहेव भाणियव्वं, नवरं दो केवलकप्पे जंबुद्दीवे २ अबसेसं तं चेव, एस णं गोयमा ! सक्कस्स देविदस्स देवरण्णो इमेयारूवे विसर विसयमेत्ते णं बुग, नो चेत्र णं संपत्तीए विउबिसु वा बिउव्वति वा विउवि स्सति वा ।। (सु० १२८ ) ।। [प्र० ] हे भगवन् ! एम कही भगवान् गौतम बीजा अग्निभूति अनगार श्रमण भगवंतमहावीरने वांदे हे अने नमे छे नमीने तेओ आ प्रमाणे बोल्या केः-हे भगवन् ! जो ज्योतिषिकेंद्र, ज्योतिषिक राजा एवी मोटी ऋद्धिवाको छे अने एटलं विकुर्वण करी शके छे तो देवेंद्र देवराजशक्र केवी मोटी ऋद्धिबाळो छे अने यावत्-केटलं विकुर्वण करी शके छे ? [उ०] हे गौतम! देवेंद्र, देवराजशक्र मोटी ऋद्धिवाळो छे अने यावत् मोटा प्रभाववाळो छे. ते त्यां बत्रीशलाख विमानावासी उपर, चोरासीहजार सामानिक देवो उपर, यात्र - ३, ३६००० आत्मरक्षक देवो उपर, अने बीजाओ उपर सत्ताधीशपशुं भोगवतो यावत्-विहरे छे. अर्थात् शक्र इंद्र एवी मोटी ऋद्धिवाको छे तेनी विकुर्वण शक्ति संबंधे चमरनी पेठे कद्दे. विशेष ए के, ते एटलां बधां रूपो विकुर्वी शके छे, For Private and Personal Use Only ३ शतके उद्देशः १ ॥२९३॥ Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्यान प्रज्ञप्तिः ३ शतके उमेशः१ २१४॥ ॥२१४॥ | के जे रूपोथी आखा बे जंबूद्वीपो भराइ शके छे. बाकी बधुं तेज प्रमाणे जाणवू. वळी हे गौतम ! देवेंद्र देवराजशक्रनो मात्र ए | विषय छे, विषयमात्र छे अर्थात् पूर्व जणावेली विकुर्वणा शक्ति ते मात्र शक्तिरूप छे, पण संप्राप्तिवडे तेम तेम विकुन्यु नथी, विकुर्वतो नथी अने विकुर्वशे पण नहिं. ॥ १२८ ।। __ जइ णं भंते ! सके देविंदे देवराया एमहिढिए जाव एचतियं च ण पभू विकुवित्तए । एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी तीसए णाम अणगारे पगतिभद्दए जाव विणीए छटुंछट्टेणं अणिक्खित्तणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे बहुपडिपुण्णाई अढ संबच्छराइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता मासियाग संलेहणार अत्ताणं झुसेत्ता सहि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता आलोतियपडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे. सयंसि विमाणंसि उववायसभाए देवसयणिज्जसि देवदूसंतरिण अंगुलस्म असंखेजहभागमेत्ताए ओगाहणाए सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो सामाणियदेवत्ताए उववण्णे, तए ण तीसए देवे अहुणोववन्नमेत्ते समाणे पंचविहाए पज्जत्तीए पजत्तिभावं गच्छइ, तंजहा-आहारपजत्तीए सरीर० इंदिय० आणुपाणुपज्जत्तीए भासामणपज्जत्तीए, तए णं तं तीसयं देवं पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गयं समाणं सामाणियपरिसोववन्नया देवा करयलपरि| ग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं बद्धाविति २ एवं वदासी-अहोणं देवाणुप्पिए। दिव्वा देवड्ढी दिव्वा देवजुत्ती दिब्वे देवाणुभावे लद्धे पसे अभिसमन्नागते, जारिसिया णं देवाणुप्पिएहिं दिव्या देविड्ढी दिव्वा देवजुत्ती दिब्वे देवाणुभावे लद्धे पत्ते अभिसमन्नागते तारिसिया णं सक्केणं देविदेणं देवरना For Private and Personal Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३ शतके उद्देशः१ ॥२१॥ दिव्वा देविड्ढी जाव अभिसमझागया,जारिसिया णं (सकेणं देविदेणं देवरणाविन्वा देविड्ढीजाव अभिस-1 व्याख्या हामण्णागया तारिसिया ण) देवाणुप्पिएहिं दिव्बा देविड्दी जाय अभिसमनागया। सेणं भंते! तीसए देवे केमप्रज्ञप्तिः हिदिए जाव केवतियं च णं पभू विउवित्तए १, गोयमा! महिदिए आप महाणुभागे, से ण तस्थ सयस्स ॥२१॥ विमाणस्स चउहं सामाणियसाहस्सीणं चउहं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं तिहं परिसाणं सत्तहं अणिहैयाणं सत्तण्हं अणियाहिवईण सोलसह आयरक्वदेवसाहस्सीणं अण्णेसिंच बहणं वेमाणियाणं देवाण य देवीण य जाव विहरति, एवंमहिइढिग जाव एवइयं च णं पभू विउवित्तए. से जहाणामए जुवतिं जुषाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेजा जहेब मकस्स सहेव जाव एस णं गोयमा! तीसयस्म देवस्स अयमेयारूवे विमए विसदायमेत्ते बुइए, नो चेष णं संपत्तीए विउविसु बा । Pा हे भगवन् ! जो देवेंद्र, देवराजशक एवी मोटो ऋद्धिबाळो छे अने एटल विकृर्वण करवा शक्त छे तो स्वभावे भद्र अने विनीत. तथा हमेशां छ? छहनी तपस्या करतो आत्माने भावतो, पूरेपूरी आठ वर्ष सुधी साधुपणु पाळीने मासिक संलेखनावडे आत्माने | संयोजीने तथा साठ टंक सुधीनुं अनशन पाळीने, आलोचन तथा प्रतिक्रमण करीने, समाधी पामीने, कारमासे काळ करीने आप देवानुनियनो शिष्य तिष्यक नामनो अनगार, सौधर्मकल्पमा पोताना विमानमां, उपपात सभाना देवशयनीयमां देववस्त्रयी ढंकापल अने आगळना असंख्य भागमात्र जेटली अवगाहनमां देवेंद्र. देवराजना सामानिकपणे उत्पन्न थयो के. पछी दुरतमांज उत्पन्न थयेलो ते तिष्यकदेव पांच प्रकारनी पर्याप्तिवडे पर्याप्तपणाने पामे छे अर्थात् ते आहारपर्याप्तिवडे, शरीरपर्याप्तिबडे, इंद्रिपर्याप्तिवडे, For Private and Personal Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥२१६ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आनप्राणपर्याप्तिवडे अने भाषामनः पर्याप्तिवडे पोताना शरीरने संपूर्णपणे रचे छे, ज्यारे ते तिष्यकदेव पूर्वोक्त पांच पर्याप्तिवडे पोताना शरीरनी बनावट पूरेपूरी करी ले छे त्यारे सामानिक समितिना देवो तेनी पासे आवी, हाथ जोडवापूर्वक दशे नखने भेगा करी माथे अडाडी, माथे अंजली करीने जय अने विजयथी वधावे छे अने पछी आ प्रमाणे कहे छे के अहो ! आप देवानुप्रिये दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवकांति अने दिव्य देवप्रभाव लब्ध कर्यो छे, प्राप्त कर्यो छे, अने सामे आग्यो छे बळी जेवी दिव्य देवऋद्धि दिव्य देवकांति दिव्य देवप्रभाव आप देवातुप्रिये लब्ध कर्यो छे, प्राप्त कर्यो छे अने सामे आण्यो छे तेवी दिव्य देवऋद्धि, दिव्यदेवकांति देवेंद्र, देवराज शक्रे पण यावत् सामी आणी छे; अने जेवी दिव्य देवऋद्धि देवेंद्र, देवराज शके लब्ध करी छे, प्राप्त करी छे, सामी आणी छे तेवी दिव्य देवऋद्धि आप देवानुप्रिये सामी आणी छे तो हे भगवन् ! ते तीप्यकदेव केवी मोटी ऋद्धिवाळो छे अने केटलं विकुर्वण करी शके छे ? [उ०] हे गौतम ! ते तिप्यकदेव मोटी समृद्धिवाळो छे मोटा प्रभाववाळो छे. ते त्यां पोताना विमान उपर, चार हजार सामानिक देवो उपर, परिवारयुक्त चार पट्टराणीओ उपर त्रण सभाओ सात सेना उपर, सात सेनाधिपति उपर, सोळहजार आत्मरक्षक देवो उपर अने जाणा वैमानिक देवो तथा देवी उपर सत्ताधीशपथुं भोगवतो विहरे छे ते आबी महान् समृद्धिवाळो छे अने आटलं विकुर्वण करी शके छे जेम कोइ युवान पुरुष जुवान स्त्रीने हाथे काकडा वाळी पकडे जेथी तेओ संलग्न लागे तेम ते बीजां रूपो करी शके छे. ते शक्रनी जेटली विकुर्वणाशक्तिवाळो छे वळी हे गौतम! तिष्यक देवनी जे विकुर्वणा शक्ति छे ते तेनो विषय छे, विषयमात्र छे पण तेणे संप्राप्तिवडे विकुर्युं नथी, विकुर्वतो नथी अने विकुर्वशे पण नहि. For Private and Personal Use Only ३ शतके उद्देशः १ ॥२१६॥ Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः शतक उद्देशः ॥२१७॥ +CARKAR* जति णं भंते। तीसए देवे माहिडिए जाव एवायं च णं पभू विउवित्तए सकस्स गं भंते ! देबिदस्स | देवरलो अवसेसा सामाणिया देवा केमहिदिया तहेव सब्वं जाव एसणं गोयमा सकस्स देविंदस्स देवरन्नो एगमेगस्स सामाणियस्स देवस्स इमेयारूवे विसयमेत्ते बुइए, नोचेवणं संपत्तीए विउब्बिसु विउम्पिति वा विउ- |व्विस्संति वा, तायसीसा यलोगपालअग्गमहिसीण जहेब चम- रस्स, नवरं दो केवलकप्पे जवुद्दीवे २, अण्णं चेव, सेवं भंते २त्ति दोचे गोयमे जाव विहरति (म० १२९)। [प्र.] हे भगवन् ! जो तिष्यकदेव एवी महान् ऋद्धिसंपन्न छ अमे आटलं अधुं विकुर्वण करी शक के तो देवेंद्र, देवराज शक्रना बाकीना-वीजा बधा सामानिक देवो केवी मोटी ऋद्धिवाला छे ? [उ.] हे गौतम ! तेज प्रमाणे नधुं जाणवू, यावत्-हे गौतम ! देवेंद्र देवराज शक्रना प्रत्येक सामानिक देवोनो एविषय छ, विषयमात्र के, पण संप्राप्तिथी कोइए विकुब्धू नथी, विकुर्वतो नथी अने विकुर्वशे पण नहीं. शक्रना त्रायविंशक देवो विषे, लोकपालो विपे, अने पट्टराणीओ विषे चमरनी पेठे कडे. विशेष ए के तेओनी विकुर्वणशक्ति आखा वे जंबूद्वीप जेटली कहेवी अने बाकी बधुं तेज प्रमाणे कहे. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, एम कही चीजा गौतम विहार करे हे. ॥ १२९ ॥ भंतेत्ति भगवं तच्चे गोयमे वाउभूती अणगारे समण भगवं जाव एवं बदासी-जति णं भंते ! सके देधिदे। देवराया एमहिइढिए जाव एवइयं चणं पभू विउवित्तए ईसाणे णं भंते ! देविदे देवराया केमहिदिए.१ एवं तहेव, नवरं साहिए दो केवलकप्पे जंबुद्दीवे २, अवसेसं तहेव (सू०१३०)॥ For Private and Personal Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "PR१८॥ [प्र.] हे भगवन ! एम कही त्रीजा गौतम वायुभूति अनगार श्रमण भगवंत महावीरने नमीने यावन-आ प्रमाणे बोल्या के-11 व्याख्या हे भगवन् ! जो देवेंद्र, देवराज शक्र यावत्-एवी मोटी ऋद्धिवालो के अने यावत् एटलं विकुर्वण करी शके छे; तो हे भगवन् ! प्रज्ञप्तिः दि देवेंद्र देवराज इशान केबी मोटी ऋद्धियाको छे ? [उ.] हे गौतम ! ते संबंधे वधं तेमज जाणवू, विशेष ए के, तेनी विकर्षणा ॥२१८॥ शक्ति आखा बे जंबूद्वीप करतां पण वधारे जागवी अने बाकी वर्षा पूर्व प्रमाणेज जाणवू. ॥ १३० ।। जति णं भंते ! ईसाणे देविंदे देवराया एमहिढिए जाव एवतियं च णं पभू विउवित्तए॥ एवं खलु देवाणुप्पियाण अंतेवासी कुरुदत्तपत्ते नाम पगतिभइए जाच विणीए अट्ठमंअट्ठमेणं अणिविखत्तेणं पारणए आयंबिलपरिग्गहिएणं तवोकम्मेणं उड्ढं बाहाओ पगिज्झिय २ सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे बहुपडिपुन्ने छम्मासे सामपणपरियागं पाउणित्ता अद्धमासियाए संलेहणाए अत्ताणं झोसित्ता तीसं भत्ताई अणसणाए छेदित्ता आलोइयपडिकते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा ईमाणे कप्पे सयंसि विमाणंसि जा चेव तीसए वत्तब्वया ता सब्वेव अपरिसेसा कुरुदत्तपुत्तेऽवि, नवरं सातिरेगे दो केवलकप्पे जंबुद्दीवे २, अवसेसं तं चेच, एवं सामाणियतायत्तीसलोगपालअग्गमहिसीण जाव एस णं गोयमा ! ईसाणस्स देविंदस्स देवरनो० एवं एगमेगाए अग्गमहिसीए देवीए अयमेयारूवे विसए विसयमेत्ते बुइए, नो चेव णं संपत्तीए विउविसु वा ३ ॥ (मु० १३१) । [सं०] हे भगवन् ! जो देवेंद्र देवराज इशान, एवी मोटी ऋद्धिवाळो होय अने एटलुं विकुर्वण करी शकतो होय तो स्वभावे भद्र, यावत्-विनीत, तथा निरंतर अट्ठम अट्ठम अने उपर पारणे आंबील, एवा आकरा तपवडे आत्माने भावतो, उंचे हाथ राखी, I For Private and Personal Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या- प्रज्ञप्तिः ॥२१९॥ सूर्यनी सामे उभो रही आतापनभूमिमां आतापन लेतो, तडकाने सहतो, परेपूरा छ मास साधुपणु पाळी, पार दिवसनी संलेखना वडे आत्माने संयोजी, त्रीस टंक सुधी अनशन पाळी, आलोचन अने प्रतिक्रमण करी, समाधि पामी, काळमासे काल करी आप | ३ शतक देवानुप्रियनो शिष्य कुरुदत्त नामनो अनगार इशान कल्पमा पोताना विमानमा इशानेंद्रना सामानिकपणे देव थयो के. जे वक्तव्यतामा उद्देशः१ | तिष्यकदेव संबंधे आगळ कही छे ते बधी अहीं कुरुदत्त देव विषे फ्ण कहेवी. तो ते कुरुदत्तपुत्र देव केवी मोटी ऋद्धिवालो के ? | ॥२१९॥ [उ.] विशेष ए के, कुरूदत्तपुत्रनी विकुर्वणा शक्ति आखा चे जंबूद्वीप जेटली छे अने बाकी बधुं तेज प्रमाणे जाणवू. ए प्रमाणे वीजा सामानिक देवो, त्रायविंशक देवो, लोकपालो तथा पट्टराणीओ संबंधे पण समज. वळी हे गौतम ! देवेंद्र, देवराज इशाननी प्रत्येक पट्टगणीनी ए विकुर्वणाशक्ति, ते विषयरूप छे अने विषयमात्र छे, पण कोइए संप्राप्तिवडे विकुयु नथी, विकुर्वता नथी अने | विकुर्वशे पण नहीं. ॥ ३१ ॥ एवं सर्णकुमारिड्ढी, नवरं चत्तारि केवलकप्पे जंबुद्दीवे दीवे अदुत्तरं च र्ण तिरियमसंखेज, एवं सामाणियतायत्तीमलोगपाल अग्गमहिसीणं असंवले दीवसमुहे सब्वे विउठवंति, सणकुमाराओ आरद्धा उवरिल्ला लोगपाला सब्वेवि असंखेल्ने दीवसमुद्दे विउविति,एवं माहिंदेवि, नवरं सातिरेगे चत्तारि केवलकप्पे जंबुद्दीवे २, एवं घंभलोएवि, नवरं अट्ठ केवलकप्पे, एवं लंतएवि, नवरं सातिरेगे अट्ट केवलकप्पे, महामुक्के सोलस केवलकप्पे, सह-13 सारे सातिरेगे सोलम, एवं पाणएवि, नवरं बत्तीस केवल०, एवं अच्चुएवि०, नवरं सातिरेगे बत्तीस केवलकप्पे जंबुद्दीवे २, अन्नं तं चेव, सेवं भंते २ त्ति तच्चे गोयमे वायुभूती अणगारे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसति For Private and Personal Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२२० ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाब विहरति । तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाई मोयाओ नगरीओ नंदणाओ बेतियाओ पडिनिक्वमइ २ बहिया जणवयविहारं विहरड़ । (सू० १३२) । एप्रमाणे सनत्कुमार देवलोक संबंधे पण जाणवु विशेष ए के, तेनी विकुर्वणाशक्ति आखा चार जंबूद्वीप जेटली . अने तिरछे तेनी विकुर्वणाशक्ति असंख्येय छे. ए प्रमाणे सामानिक देवो, त्रायखिंशक देवो, लोकपालो अने पट्टराणीओ ए बधा असंख्येय द्वीप, समुद्री सुधी विकुर्वी शके छे. ए प्रमाणे माहेंद्रमां पण जाणवु विशेष ए के, आखा चार जंबूद्वीप करतां पण वधारे विकुर्वण शक्ति छे. ए प्रमाणे ब्रह्मलोकमां पण जाणयुं. विशेष ए के तेओनी विकुर्वणाशक्ति आखा आठ जंबूद्वीप जेटली . ए प्रमाणे लांतकमां पण समज. विशेष ए के, आखा आठ जंबूद्वीप करतां पण वधारे शक्ति छे. महाशक्रना देवोनी विकुर्वणाशक्ति सोळ जंबूद्वीप करतो पण अधिक छे, सहस्रारना देवोनी विकुर्वणशक्ति सोळ जंबूद्वीप करतां पण अधिक छे. अने प्राणतना देवोनी विकुर्वणनी शक्ति बत्रीश जंबूद्वीप जेटली छे. अने अच्युतदेवनी विकुर्वणाशक्ति आखा बत्रीस जंबूद्वीप करतां पण कडक वधारे छे. बाकी सघळं तेज प्रमाणे जाण हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, एम कही श्रीजा गौतम वायभूति अनगार श्रमण भगवंत महावीरने बांदे छे, नमे छे, अने यावत्-बिहरे छे. ॥। १३२ ।। I तेण कालेनं तेणं० रायगिहे नाम नगरे होत्था, चन्नओ, जाव परिसा पज्जुवा सह । तेणं काले २ ईसाणे देविंदे देवराया सूलपाणी वसभवाहणे उत्तरढलोगहिवई अट्ठावीसविमाणावाससयसहस्साहिबई अपरंबरव| स्थघरे आलय मालमउडे नवहेमचारुवित्तचंचलकुंडलविलिहिज्ज माणगंडे जाब दस दिसाओ उज्जोवेमाणे पभा For Private and Personal Use Only ३ शतके उपेशः १ ॥२६०॥ Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavesain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२२१॥ ३ शतके उद्देशन ॥२२१॥ *** सेमाणे ईसाणे कप्पे ईसाणवडिसए विमाणे जहेव रायप्पसेणइले जाव दिव्वं विदेड्ढ जाब जामेव दिसि | पाउन्भूए तामेव दिसिं पडिगए । भंतेत्ति भगवं गोयमे समण भगवं महावीरं वंदति णमंसति एवं वदासी-| अहोणं भंते ! ईसाणे देविंदे देवराया महिइढिए० ईसाणस्स णं भंते ! सा दिब्वा देविड्ढी कहिं गता कहिं अणु- पविट्ठा?, गोयमा! सरीरं गता २, से केणद्वेणं भंते ! एवं धुञ्चति-सरीरं गता? २, गोयमा! से जहानामए-1 कूडागारसाला सिया दुहओ लित्ता गुत्ता गुत्तदुवारा णिवाया णिवायगंभीरा तीसे णं कूडागार जाप कूडागारसालादितो भाणियब्यो। [प्र०] त्यारपछी कोइ एक दिवसे श्रमण भगवंत महावीर मोका नगरीना नंदन नामना चैत्यथी बहार नीकळी जनपद विहारे। विहरे छे. ते काळे, ते समये राजगृह नामर्नु नगर हतुं. र्णक. यावत्-सभा पर्युपासे के. ते काळे ते समये देवेंद्र देवराज, हाथमा शूटने धारण करनार, बळदना वाहनवाळो, लोकना उत्तरार्धनो धणी, अठ्ठावीसलाख विमानानो सत्ताधीश इशानेंद्र, आकाश जेवा निर्मळ वस्त्रने पहेरी, माळाथी शणगारेला मुकुटने माथे मूकी, नवा सोनाना सुंदर, विचित्र अने चंचळ कुंडळोथी गालो देदीप्यमान करतो, दशे दिशाओने प्रकाशित करतो, ते इशानकल्पमा, इशानावतंसक विमानमां रायपसेणीय उपांगमा कह्या प्रमाणे दिव्य । देवऋद्धिने अनुभवतो यावत्-जे दिशामांथी प्रकाशमान थयो हतो, तेज दिशाने विपे पाछो चाल्यो गयो. हवे हे भगवन् ! अहो !!! देवेंद्र, देवराज इशान मोटो ऋद्धिवाळो छे. हे भगवन् ! इशानेंद्रनी ते दिव्य देवऋद्धि क्यां पेसी गइ ? [उ०] हे गौतम ! ते दिव्य देवऋद्धि शरीरमा गइ अने शरीरमा पेसी गइ. [प्र०] हे भगवन ! ते दिव्य देवऋद्धि शरीरमा गइ. एम कईवानुं शुं कारण ? * * * *** For Private and Personal Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३ शतके उडेशः१ ॥२२२॥ उ.] हे गौतम! जेम कोइ एक कुटाकार-शिखरनी आकारवाळु घर होय, अने ते बन्ने बाजुथी लिपेलं होय, गुप्त होय, गुप्त " द्वारवालु होय, जेमां पवन न पेसे ए, उर्दु होय; कूटाकारशाळानुं दृष्ट्वांत कहे. प्रज्ञप्तिः । ईसाणेणं भंते ! देविदेणं देवरण्णा सा दिब्बा देविड्दी दिव्या देवजुत्ती दिब्वे देवाणुभागे किण्णा लहे। ॥२२२॥ किमा पत्ते किण्णा अभिसमन्नांगए, के वा एस आसि पुश्वभवे किण्णामए वा किंगोत्ते वा कयरंसि वा गामंसि जवा नगरंसि वा जाव संनिवेसंसि वा, किं वा सुच्चा किं वा दचा किं वा भोचा किंवा किच्चा किं वा समायरित्ता कस्स या तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एगमवि आयरियं धम्मियं सुवयणं सोचा निसम्म जपणं ईसाणेणं देविंदेणं देवरण्णा सा दिव्वा देविढी जाव अभिसमन्नागया?, a [प्र०] हे भगवन् ! देवेंद्र देवराज इशानने ते दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवकांति अने दिव्य देवप्रभाव केवी रीते.लब्ध कर्यो, केवी रीते प्राप्त कर्यों अने केवी रीते सामे आण्यो ? तथा ते पूर्वभवमा कोण हतो? तेनु नाम अने गोत्र शुं हतुं ? अने ते क्या गाममां, क्या नगरमा, तथा क्या संनिवेशमा रहेतो हतो! तथा तेणे शुं सांभळयूं हतुं, शुं दीयुं हतुं, शुं खाधुं हतुं ! शुं कर्यु हतु, शु आचर्यु हतुं ? अने तथा प्रकारना क्या श्रमण या ब्राह्मणनी पासे एq एक पण कर्यु आर्य अने धार्मिक बचन सांभळी अवधायु हतुं के जेने लइने देवंद्र, देवराज इशाने ते दिव्य देवऋद्धि यावन् सामे आणी? 1 एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं २ इहेव जंबुद्दीवे २ भारहे वासे तामलित्ती नाम नगरी होत्था, वन्नओ, तत्थ णं तामलित्तीए नगरीए तामली नाम मोरियपुत्ते गाहावती होत्या, अड्ढे दित्ते जाव बहुजणस्स अपरिभू" For Private and Personal use only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२२३॥ ३ शतके उद्देशः१ २२३॥ यावि होत्या, तएणं तस्म मोरियपुत्तरस तामलित्तस्स गाहावइयस्स अण्णया कयाइ पुव्वरसावरत्तकालसमयंसि कुटुंबजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए जाच ममुप्पजित्था-अस्थि ता में पुरा पोराणाणं सुचि. नाणं सुपरिवंताणं सुभाणं कल्लाणाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणफलवित्तिविसेसो जेणाहं हिरणेणं वदामि सुधनेण वड्दामि धणेणं वदामि धन्नणं वदामि पुत्तेहिं बहामि पसूहिं वहामि विउलधणकणगरयणमणिमोत्ति- यसंखसिलप्पयालरत्तरयणसंतसारसावतेजेणं अतीव २ अभिवड्ढामि, तं किपर्ण अहं पुरा पोराणाणं सुचिन्नाणं जाव कडाणं कम्नाणं एगंतसोरवयं उवेहेमाणे विहरमि?, तंजाव ताव अहं हिरण्णेणं बड्दामि जाव अतीव २ अभिवड्दामि जावं च णं मे मित्तनातिनियगसंबंधिपरियणो आढाति परियाणाइ सक्कारेइ सम्माणेह कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं विणएणं पज्जुवासइ ताव ता मे सेयं कल्लं पाउपभायाए रयणीए ज व जलते मयमेव दासमयं पडिग्गहियं करेत्ता विउलं अमणं पाणं खातिम मातिम उबवावेत्ता मित्तणातिनियगमणयसंबंधिपरियणं आमंतेत्ता तं मित्तनाइनियगसंबंधिपरियणं विउलेणं अमणपाणम्यातिमसातिमेणं वत्थगंधमल्लालंकारेण य? सकारेत्ता मम्माणेसा तस्सेव मित्तणाइनियगसंबंधिपरियणस्स पुरतो जेट्टपुत्तं कुटुंबे वेसान मित्तणातिणि| यगसंबंधिपरियणं जेट्टपुत्तं च आपुच्छित्ता सयमेव दारुमयं पडिग्गरं गहाय मुंडे भवित्ता पाणामाए | पञ्चजाए पब्वइत्तए, (तामलीवृत्तांत)-हे गौतम! ते काळे ते समये आज जंबूद्वीप नामना द्वीपमा भारत वर्षमा ताम्रलिप्ती नामनी नगरी For Private and Personal Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३ शतके व्याख्याप्रज्ञप्तिः उमेशः१ ॥२२४॥ ॥२२४।। XXX हती. (वर्णक) ते ताम्रलिप्ती नगरीमा तामली नामनो मौर्यपुत्र (मौर्यवंशमां थयेलो) गृहपति रहेतो हतो. ते तामलीगृहपति धनाव्य अने दीप्तिवालो हतो, तथा यावत्-घणा माणसोथी ते चढीयातो हतो अर्थात् कोइपण मनुष्य तेनी बरोबरी करी शके तेम न इता. हवे एक दिवसे ते मौर्यपुत्र तामली गृहपतिने रात्रीना आगळना अने पाछळना भागमा अर्थात् रात्रिना मधभागमा कुटुंबनी चिंता करता एका प्रकारनो संकल्प उत्पन्न थयो के पूर्व करेला जूनां सारी रीते आचरेलां, सुपराक्रमयुक, शुभ अने कल्याणरूप या मारा कर्मोने कल्याणफळरूप प्रभाव हजु सुधी जागतो छ के जेथी मारा गृहने विषे हिरण्य बघे बे, सुवर्ग बधे छे, धन वधे छे, धान्यो वधे डे, पुत्रो वधे के, पशुओ वधे छे, अने पुष्कळ धन, कनक, रन, मणि, मोती, शंख, चंद्रकांत बगेरे पत्थर, प्रवाळां, तया माणेकरूप सारवाळु धन मारे घरे घणु घणु वधे छे. तो शुं हुं पूर्वे करेलां, मारी गो आचरेला, यावत्-जूनां कर्मोनो तद्दन नाश थाय तो जोइ रहुं-ते नाशनी उपेक्षा करतो रहुं, अर्थात् मने आटलं सुख वगेरे ले एटले बस छे एम मानी भाविलाभ तरफ उदासीन रहुं ! पण ज्यांसुधी हिरण्यथी वृद्धि पाएं छु, अने मारे घरे घY घणुं वधे छे, तथा ज्यांसुधी मारा मित्रो, मारी नात, मारा पित्राइओ, मारा मोसाळिआ के मारा सासरीआ अने मारो नोकरवर्ग मारो आदर करे हे, मने स्वामी तरीके जाणे हे, मारो सत्कार करे छे, मारु सन्मान करे छे अने मने कल्याणरूप, मंगलरूप अने देवरूप जाणी चैत्यनी पेठे विनयपूर्वक मारी सेवा करे छे त्यांसुधी मारे मारु कल्याण करी लेवानी जरूर छे, अर्थात् आवती काले प्रकाशवाळी रात्री यया पछी-सूर्य उग्या पछी मारे मारी पोतानीज मेळे लाकडानुं पात्र करी, पुष्कळ खानपान मेवा मिष्टान अने मशाला विगेरे तैयार करावी, मारा मित्र, नात, पित्राइ, मोसाळिआ के सासरीआ अने मारा नोकरचाकरने नोतरी, ते मित्र, नात, पित्राइ, मोसाळिआ के सासरिआ तथा नोकरचाकरने For Private and Personal Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३ शतके व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥२२५|| उद्देशः१ पुष्कळ खानपान मेवा मिष्टान अने मशाला विगेरेथी अमाडीने कपडा अत्तर वगेरे सुगंधी वस्तु, माळाओ घरेणा वगेरेथी तेनो सत्कार करीने, तेओनुं सन्मान करीने तथा तेज मित्र, ज्ञाति, पित्राइ, मोसालिआ के सासरीआ अने नोकरचाकरनी समक्ष मारा मोटा पुत्रने कुटुंबमां स्थापीने-तेना उपर कुटुंबनो भार मूकीने ते मित्र, नात, पित्राइ, मोसाळीया सासरी अने नोकरवर्गने पूछीने मारी पोतानी मेळेज लाकडांनुं पातरं लइने, सुंदर मुंड थइने 'प्राणामा' नामनी दीक्षावडे दीक्षित थाउं. पब्वइएऽबि य णं समाणे इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिहिस्सामि-कप्पड़ मे जावजीवाए छठंछोणं अणिविरवत्तेणं तवोकम्मेणं उड्दं पाहाओ पगिजिमय र सूराभिमुहस्स आयावणभूमीए आयावेमाणस्म विहरित्तण, छट्ठस्सवि य णं पारणयंसि आयावणभूमीतो पचोरुभित्ता सयमेव दारुम पडिग्गहयं गहाय तामलित्तीए नगरीए उच्चनीयमज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडित्ता सुद्धोदणं पडिग्गाहेत्ता तं तिसत्तखुत्तो उदएण पक्खालेता तओ पच्छा आहारं आहारित्तएत्तिकहु एवं संपेहेइ २ कल्लं पाउप्पभायाए जाव जलते सयमेव दारुमयं पडिग्गहयं करेइ २ विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेहर तओ पच्छा पहाए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगलपायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवरपरिहिए अप्पमहग्धाभरणालंकियसरीरे भोयणवेलाए भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए, तए णं मित्तणाइनियगसयणसंपंधिपरिजणेणं सद्धिं तं विउलं असणं पाणं खातिमं साइमं आसादेमाणे वीसाएमाणे परिभोएमाणे परिभाएमाणे परिभुजेमाणे विहरइ । जिमियभुत्तुत्तरागएवि य णं समाणे आयंते चोक्खे परमसुइभूए तं मित्त जाव For Private and Personal Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परियणं विउलेणं असणपाण ४ पुष्कवत्थगंधमल्लालंकारेण य सकारेइ २ तस्सेव मित्तणाइ जाव परियणस्स व्याख्या- ४ पुरओ जेठ्ठे पुत्तं कुटुंबे ठावे २ त्ता तस्सेव तं मित्तनाइणिवगसयणसंबंधिपरियणं जेट्ठपुत्तं च आपुच्छद्द २ मुंडे प्रज्ञप्तिः ॥२२६॥ भविता पाणामाए पव्वज्जाए पइए, वळ हुं दीक्षित थयो के तुरतज आ अभिग्र धारण करीश के, हुं जीतुं त्यांसुधी निरंतर छ छ वे उपवास करीश तथा सूर्यनी सामे उंचा हाथ राखी तडको सहन करतो रहीश आतापना लड्श, बळी छट्टना पारणने दिवसे ते आतापना लेवानी जग्याथी नीचे उतरी पोतानी मेळेज लाकडानुं पात्र लइ ताम्रलिप्ति नगरीमां उत्कृष्ट मध्यम अने जघन्य कुळोमांथी मिक्षा लेवानी विधिपूर्वक शुद्ध ओदन- दाळ शाक वगेरे रहित एकला चोखा लावी तेने पाणीवडे एकवीसवार धोइ त्यारपछी तेने खाइश' ए प्रमाणे विचारी काले मळसकुं श्या पछी सूर्य प्रकाशित धया पछी पोतानी मेळेज लाकडानुं पात्र करावीने, पुष्कळ खानपानादिक मेवा मिठाइ अने मशाला वगेरेने तैयार करावीने पछी स्नान करी, बलिकर्म करी, कौतुक, मंगळ अने प्रायश्चित करी, शुद्ध अने पहेरचा योग्य मांगलिक उत्तम वखोने सारी रीते पहेरी, वजन विनाना अने महामूल्य घरेणाओथी शरीरने अलंकृत करी भोजननी वेळाए ते तामली गृहपति भोजनना मंडपमां आवी सारा आसन उपर सारी रीते बेटो. त्यारपछी मित्र, नात, पित्राइ सासरीया के मोसाळीआ अने नोकरचाकरोनी साथे ते पुष्कळ खाणु ं पीणु' मेवा मिठाइ अने मशाला विगेरेने चाखतो, वधारे स्वाद लेतो, परस्पर देतो, जमाडतो, | अने जमतो ते तामली गृहपति विहरे ले रहे छे. ते तामली गृहपति जम्यो अने जग्या पछी तुरतज तेणे कोळा कर्या, स्वच्छ थयो, अने ते परम शुद्ध बन्यो. पछी तेणे पोताना मित्र यावत् - नोकरचाकरने पुष्कळ वस्त्र, अत्तर वगेरे सुगंधी द्रव्य, माळा अने For Private and Personal Use Only ३ शतके उद्देशः १ ॥२२६॥ Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्ति दापरेणाओथी सत्कारी तथा ते मित्र, नात यावत्-नोकरचाकरनी समक्ष पोताना मोटा पुत्रने कुटुंबमा स्थापी अने ते मित्र, नात I&I यावत्-नोकरचाकरने तथा पोताना मोटा पुत्रने पूछी ते तामली गृहपति मुंड थह 'प्राणामा' नामनी दीक्षावडे दीक्षित थयो. ३ शतके पवइएविय णं समाणे इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ-कप्पड़ मे जावजीवाए छटुंण्डेणं जाव उद्देशः१ आहारित्तएत्तिकटु इमं एयारूपं अभिग्गहं अभिगिण्हइ २त्ता जावजीवाए ण्टुंछटेणं अणिक्वित्तं तवोक २२७॥ म्मेणं उड्दं वाहाओ पगिजिमय र सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे विहरइ, छहस्सवि य णं पारणयंसि आयावणभूमीओ पचोरुहार सयमेव दारुमयं पडिग्गहं गहाय तामलित्तीए नगरीए उच्चनीयमज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्वायरियाए अडइ २ सुद्धोयणं पडिग्गाहेह २ तिसत्तखुत्तो उदएर्ण पक्वालेइ, तओ पच्छा आहारं आहारेड । से केणठेणं भंते! एवं बुच्चइ-पाणामा पन्जा २१, गोयमा! पाणामाए ण पबजाए पचहए समाणे जं जत्थ पासह इंदं वा खयं वा रुई वा सिवं वा वेसमणं वा अज वा कोकिरियं वा रायं वा जाव सत्यवाहं वा कागं वा साणं वा पाणं वा उच्चं पासइ उचं पणाम करेइ नीयं पासह नीयं पणामं करेड़, जं जहा। पासति तस्स तहा पणामं करेइ, से तेणणं गोयमा! एवं बुच्चइ-पाणामा जाव पब्धजा (न. १३३)।। ___हवे ते तामली गृहपतिए 'प्राणामा' नामनी दीक्षा लीधी अने माथेज तेनो आवो अभिग्रह कयों के:-हुं ज्यांसुधी जी त्यां सुधी छदु छट्टनुं तप करीश अने यावत्-पूर्व प्रमाणेनो आहार करीश' ए प्रमाणे अभिग्रह करी यावल्लीव निरंतर छट्ट छट्टना तपपूर्वक उंचे हाथ राखी सूर्यनी सामे उभा रही तडकाने सहता ते तामली तपस्वी विहरे छे, छट्ठना पारणाने दिवसे आतापनभूमिथी । For Private and Personal Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३ शतके उदेशः१ ॥२८॥ *** नीचे उतरी, पोतानी मेळेज ते लाकडान पातरूं लइ, ताम्रलिप्ती नगरीमा उत्कृष्ट मध्यम अने जपन्य कुळीमांथी भिक्षा लेवानी ध्याख्या-४ाविधिपूर्वक भिक्षा माटे फरी ते, एकला चोखाने लइ आवे छे अने ते चोखाने एकवीश वखत घोड तेनो आहार करे छ. [प्र. है प्रज्ञप्तिः भगवन् ! दामलिए लीधेली प्रव्रज्या 'प्राणामा' कहेवाय तेनु शु कारण ? [उ०] गौतम ! जेणे 'प्राणामा' प्रत्रज्या ग्रहण करी होय ॥२२८॥ |ते, जेने ज्यां जोवे तेने अर्थात् इंद्रने, स्कंदने, रुद्रने, शिवने, कुबेरने आर्या-पार्वतीने, महिषासुरने कुटती चंडिकाने, राजाने, यावन् सार्थवाहने, कागडाने, कुतराने तथा चांडाळने प्रणाम करे छे उंचाने जोइने उंची रीते अने नीचाने जोइने नीची रीते प्रणाम करे छे, जेने जेवी रीते जूए छे तेने तेवी रीते प्रणाम करे छे. ते कारणथी ते प्रव्रज्यान नाम 'प्राणामा' प्रव्रज्या ३. ॥ १३३ । । तर णं से तामली मोरियपुत्ते तेणं ओरालेणं विपुलेणं पयत्तेणं पग्गहिएण पालतबोकम्मेणं सुक्के भुक्खे जजाब धमणिसंतए जाए याचि होत्था, तए णं तस्स तामलिस्स पालतवसिस्स अन्नया कयाइ पुव्यरत्तावर-16 त्तकालसमयंसि अणिञ्चजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चिंतिए जाच समुप्पवित्था-एवं खलु अहं इमेणं ओरालेण विपुलेणं जाव उदग्गेणं उदत्तणं उत्तमेणं महाणुभागेणं तवोकम्मेणं सुक्के भुक्ख जाव धमणिसंतए जाए, त अत्थि जा मे उहाणे कम्मे बले बीरिए पुरिसक्कारपरकमे ताव ता मे सेयं कल्लं जाव जलते ताम|लित्तीए नगरीए दिट्ठाभट्टे य पासंडत्थे य पुब्वसंगतिए य गिहत्थे य पच्छासंगतिए य परियायसंगतिए य आपुच्छित्ता तामलित्तीए नगरीए मज मज्झेणं निग्गच्छित्ता पाउग्गं कुंडियमादीयं उवकरणं दारुमयं च पडिजग्गहियं एगते [एडेइ ] एडित्ता तामलित्तीए नगरीए उत्तरपुररिछमे दिसीभाए णियत्तणियमंडलं [आलिहइ] *** * * For Private and Personal Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३ शतके व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२२९॥ उद्देशः ॥२२९॥ 6-1546434646 आलिहिता संलेहणायूसणाझूसियस्स भत्तपाणपडियाइक्खियस्म पाओवगयस्स कालं अणवकंग्वमाणस्म विहरित्तएत्तिक गवं संपेहेड, एवं संपेहेत्ता कल्लं जाव जलते जाव आपुच्छह २ तामलित्तीय [एगते एडेड) जाव जलंते जाव भत्तपाणपडियाइक्खिए पाओवगमण निवन्ने । त्यारपछी ते मौर्यपुत्र तामली ते उदार, विपुल, प्रदत्त अने प्रगृहीत बालतपकर्मवडे मुकाइ गया, लुखा थया, तेनी वधी नाडीओ उपर देखाइ आधी एवा ते दुर्बल थया. त्यारपछी कोइ एक दिवसे मधराते जागता जागता अनित्यता संपंधे विचार करता ते तामली चालतपस्वीने आ ए प्रकारनो यावत् विकल्प उत्पन्न थयो के:-९ आ उदार, विपुल, यावत्-उदय, उदत्त, उत्तम अने ६ महाप्रभावशालि तपकर्मबडे सकाइ गयो छ, रुक्ष थयो छु, अने यावत्-मारी घधी नसो शरीर उपर देखाई आवी. माटे ज्यांसुधी मने उत्थान के, कर्म छे, बळके, वीर्य छे अने पुरुषाकार पराक्रम छे त्यांसुधी मारुं श्रेय एमाहे के हुँ काले अलंत सूर्यनो उदय थया पछी ताम्रलिप्ती नगरीमा जइ में देखीने बोलावेला पुरुषोने, पाखंडस्थोने, गृहस्थोने, मारा आगळना ओळखिताओने, तपस्वी थया पछीना मारा पिश्चानवालाओने पूछीने, ताम्रलिप्ती नगरीनी वचोवच नीकळीने, चाखडी, कुंडी वगेरे उपकरणोने अने लाक- | डाना पातराने एकांते मूकी ताम्रलिप्ती नगरीना उत्तरपूर्वना दिग्भागमा इशानखूणामां. निवर्तनिक मंडळने आळेखी संलेखना तपबडे आत्माने सेवी, खावा पीवानो त्याग करी, वृक्षनी पेठे स्थिर रही, काननी अवकांक्षा सिवाय विहरवू श्रेयस्कर के. एम | विचारी काले ज्वलंत सूर्यनो उदय थया पछी, पूछे हे, तेओने पूछी ते तामली तपस्वीए पोताना उपकरणोने एकांते मुक्यां, यावत्-तेणे आहारपाणीनो त्याग कर्यो अने पादोपगमन नामर्नु अनशन कयु. For Private and Personal use only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३ शतके जोशः ॥२३॥ स तेणं कालेणं २ बलिचंचारायहाणी अजिंदा अपुरोहिया यावि होत्था। तए णं ते बलिचंचारायहाणिवस्थन्वया | व्याख्या यहवे असुरकुमारा देवा य देवीओयतामलिं यालतबस्सि ओहिणा आहोयंति २ अन्नमन्नं सदावेंति २ एवं वायसी प्रजाप्तिः दिएवं खलु देवाणुप्पिया! बलिचंचा रायहाणी अणिंदा अपुरोहिया अहे णं देवाणुप्पिया! इंदाहीणा इंदाधिट्टिया ॥२३॥ इंदाहीणकज्जा, अयं च णं देवाणुप्पिया! तामली बालतबस्सी तामलित्तीए नगरीए पहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए | नियत्तणियमंडलं आलिहिता संलेहणाझूसणाझूसिए भत्तपाणपडियाइक्विए पाओवगमणं निवन्ने, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया अम्हं तामलिं बालतवस्सि बलिचंचाए रायहाणीए ठितिपकप्पं पकरावेत्तएत्तिकहु अन्नमन्नस्स अंतिए| एयमढे पडिसुणेति २ बलिचंचाए रायहाणीए मज्झमज्झेणं निग्गच्छइ २ जेणेव रुयगिंदे उपायपश्चए तेणेव उवागच्छह २ घेउब्वियसमुग्धाएणं समोहणति जाव उत्तरवेउब्वियाई रुवाई विकुवंति, ताए उफिट्टाए तुरियाए चवलाए चंडाए जइणाए छेयाए सीहाए सिग्घाए दिव्वाए उधुयाए देवगतीए तिरियमसंखेजाणं दीवसमुदाणं मसंमज्झेण जेणेव जंबुद्दीवे २ जेणेव भारहे वासे जेणेव तामलित्ती[१] नगरी [ए]जेणेव तामलित्ती मोरियपुत्ते तेणेव उवागच्छंति २ ता तामलिस्स बालतवस्सिस्स उप्पि सपि] सपक्खि सपडिदिसिं ठिच्चा दिवं देवि ड्ढीं दिब्वं देवजुत्तिं दिव्वं देवाणुभागं दिव्यं यत्तीसविहं नहविहिं उवदंसंति २ तामलिं बालतवस्सि तिक्खुत्तो Mआयाहिणं पयाहिणं करेंति वदति नमसंति २ एवं वदासी ते काळे ते समये बलिचंचा राजधानी इंद्र अने पुरोहित विनानी हती. त्यारे ते बलिचंचा राजधानीमां बसनारा पणा असुर For Private and Personal Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२३१॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुमार देवोए अने देवीओए ते तामली बालतपस्वीने अवधिवडे जोयो, जोया पछी तेओए एक बीजांने बोलावी आ प्रमाणे कथं के हे देवानुप्रियो ! आपणे बधा इंद्रने ताबे रहेनारा तथा अधिष्ठित छीये, आपणुं बधुं कार्य इंद्रने ताबे के अने हे देवानुप्रियो ! आ तामली बालतपस्वी ताम्रलिप्ती नगरीनी बहार इशान खूणामां निर्वर्तनिक मंडळने आळेखी, संलेखनावडे आत्माने सेवी, खावा पीवानो त्याग करी अने पादपोपगमन अनशनने धारण करीने रह्यो छे. तो आपणे ए श्रयरूप छे के, हे देवानुप्रियो ! ते तामली बालतपस्वीने बलिचंचा राजधानीमां इंद्र तरीके आववानो संकल्प करावीए एम करीने परस्पर एक बीजानी पासे ए वातने मनावीने ते बघा असुरकुमारो बलिचंचा राजधानीना मध्यभागमांथी नीकळी जे तरफ रुचकेंद्र उत्पात पर्वत के ते तरफ आवे छे, आवी वैक्रि|यसमुद्घातवडे समवहणीने उत्तरवैक्रियरूपोने विकुर्थी उत्कृष्ट स्वरित, चपल, चंड, जयत्रती निपुण, सिंह जेवी, शीघ्र उद्भूत अने दिव्य देवगतिवडे तिरछा असंख्येय द्वीप समुद्रोनी वचोवच जे तरफ जंबूद्वीप नामे द्वीप छे, ते तरफ भारतवर्ष के, ते तरफ आया, आवी तामली बालतपस्वीनी उपर, सपक्ष सप्रतिदिशे अर्थात् बराबर सामे रही दिव्य देवऋद्धिने, दिव्य देवकांतिने, दिव्य देवप्रभावने अने वत्रीश जातना दिव्य नाटकविधिने देखाडी, तामली बालतपस्वीने त्रणवार प्रदक्षिणा करी, वांदी अने नमी ते असुरकुमार देवो आ प्रमाणे बोल्या केः एवं खलु देवाणुपिया ! अम्हे बलिचंचारायहाणीवत्थव्वया बहवे अमरकुमारा देवा य देवीओ य देवाणुष्वियं वंदामो नमसामो जाव पज्जुवासामो, अम्हाणं देवाणुपिया ! बलिचंचा रायहाणी अनिंदा अपुरोहिया, अम्हेऽवि य णं देवाणुपिया ! इंदाहीणा इंदाहिट्टिया इंदाहीणकज्या, तं तु णं देवाणु For Private and Personal Use Only ३ शतके उद्देश : १ ॥२३१॥ Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandir ध्याच्या ३ शतके महहिं सद्धि विहार असुराल चारापहाणाहणं उद्देशः१ ॥२३२॥ प्पिया! बलिचचाराधहाणिं आढाह परियाणह सुमरह अट्ट बंधह निदाणं पकरेह ठितिपकप्प पकरेह. तते णं तुम्भे कालमासे कालं किचा बलिचंचारायहाणीए उववजिस्मह, तते णं तुम्भे अम्हं इंदा भविप्रज्ञप्तिः स्सह, तए ण तुम्भे अम्हेहिं सद्धिं दिव्बाई भोगभोगाई भुंजमाणा विहरिस्सह । तए णं से तामली यालतबस्सी ॥२३२। तेहिं बलिचचारायहाणिवत्थब्वेहिं बहहिं असुरकुमारहिं देवेहिं देवीहि य एवं वुत्ते समाणे एयमद्वं नो आढाइ नो परियाणेइ तुसिणीए संचिट्ठइ. तए णं ते बलिचंचारायहाणिवत्यन्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ दिय तामलिं मोरियपुत्तं दोचंपि तचंपि तिक्खुत्तो आयाहिणप्पयाहिणं करेंति २ जाव अम्हं च णं देवाणुप्पिया!x बलिचंचारायहाणी अणिवा जाव ठितिपकप्पं पकरेह, जाव दोचंपि तचंषि एवं वुत्ते ममाणे जाव तुसिणीए संचिद्वइ, तए णं ते बलिचंचारायहाणिवत्थब्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य तामलिणा बालतवस्मिणा अणाढाइजमाणा अपरियाणिजमाणा जामेव दिसिं पाउन्भूया तामेव दिसिं पडिगया ॥ (स०१३४)॥ हे देवानुप्रिय अमे बलिचंचा राजधानीमा रहेनारा घणा असुरकुमार देवो अने घणी अमुरकुमार देवीओ आपने वांदीए छीप, नमीए छीए, अने आपनी पर्युपासना करीए छीए. हे देवानुप्रियो ! हाल अमारी बलिचचा राजधानी इंद्र अने पुरोहित विनानी अने हे देवानुप्रिय! अमे आ बधा इंदने ताबे रहेनारा छीए अने अमारं कार्य पण इंद्रने ताबे छ. तो हे देवानुप्रिय ! तमे बलिचंचा राजधानीनो आदर करो, तेनुं स्वामिपणुं स्वीकारो, तेने मनमा लाबो, ते संबंधी निश्चय करो, निदान करो अने बलिचंचा राजधानीना स्वामी थत्रानो संकल्प करो. जो तमे अमे कj तेम करशो तो अहींथी कालमासे काळ करी तमे बलिचंचा राजधानीमा For Private and Personal Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailaseagarsuri Gyanmandie व्याख्या IR ३ शतके ॥२३३॥ उद्देशः१ ॥२३३॥ उत्पन्न थशो, त्या उत्पन्न थया पछी तमे अमारा इंद्र यशो, तथा अमारी साथे दिव्य भोम्यभोगने भोगवता तमे आनंद अनुभवशो. ज्यारे ते बलिचंचा राजधानीमा रहेनारा घणा असुरकुमार देवो अने देवीओए आ प्रमाणे कडु अने ते वातने ते बालतपस्वीए | | आदरी नहि. स्वीकारी नहि, पण तेणे चुपकी पकडी, त्यारे ते बलीचंचा राजधानीमा रहेनारा घया असुरकुमार देवो अने देवी- ओए ते तामली मौर्यपुत्रने बीजीवार अने त्रीजीवार पण त्रण त्रण प्रदक्षिणा करीने पूर्वनी वात कही. अर्थात् हे देवानुप्रिय ! हाल | अमारी बलिचंचा राजधानी इंद्र अने पुरोहित विनानी छे अने यावत्-तमे तेना स्वामी यवानुं स्वीकारो. ते असुरकुमारोए पूर्व प्रमाणे वे, त्रणवार यावत्-कर्यु तो पण ते तामली मौर्यपुत्र काइपण जवाब न दीधो अने मौन धारण क. पछी ठेवटे ज्यारे तामली बालतपस्वीए ते बलि चंचा राजधानीमा रहेनारा घणा असुरकुमार देवोनो अने देवीओनो अनादर कर्यो, तेओर्नु कथन मान्य नहीं त्यारे ते देयो जे दिशामाथी प्रकट्या हता तेज दिशामा पाछा चाल्या गया. ॥१४॥ तेण कालेणं २ ईसाणे कप्पे अणिंदे अपुरोहिए यादि होत्था, तते णं से तामली चालतबस्सी बहुपडिपुनाई सट्टि वाससहस्साई परियागं पाउणित्ता दोमासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता सवीस भत्तसयं अणसणाए छेदित्ता कालमासे कालं किच्चा ईसाणे कप्पे ईसाणवडिसए विमाणे उववायसभाए देवसयणिज्जंसि देवसंतरिये 5 अंगुलस्स असंखेजभागमेत्ताए ओगाहणाए ईसाणदेविंदविरहकालसमयंसि ईसाणदेविंदत्ताण उवषण्णे, तएणं ह से ईसाणे देविंदे देवराया अहुणोववन्ने पंचविहाए पजत्तीए पजत्तीभावं गच्छति, तंजहा-आहारप० जाव भास मणपजत्तीए, तए णं ते बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य तामलिं बालतबस्सि % AAAAARCH * *** For Private and Personal Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥२३४॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालगयं जाणित्ता ईसाणे य कप्पे देविंदत्ताए उबवण्णं पासित्ता आसुरुत्ता कुविया चंडिक्किया मिसिमिसेमाणा | बलिचंचाराय • मज्ंमज्झेणं निग्गच्छति २ ताए उक्किट्टाए जाव जेणेव भारहे वासे जेणेव तामलित्ती [ए] नयरी [ए] जेणेव तामलिस्स बालतवस्सिस्स सरीरए तेणेव उवागच्छति २ वामे पाए सुबेणं बंधति २ तिक्खुत्तो मुहे उद्दहति २ तामलिसीए नगरीए सिंघाडगतिगचउक्कचच्चरच उम्मुहमहापहपहेतु आकड्ढविकढीं करेमाणा महया २ सद्देणं उग्घोसेमाणा २ एवं क्यासि - केस र्ण भो से तामली बालतव० सयंगहियलिंगे पाणामाए पव्वज्जाए पब्वइए ? केस णं भंते (भो) ! ईसाणे कप्पे ईसाणे देविंदे देवराया इतिकडु तामलिस्स बालतव० सरीरयं हीलति निदति खिंसति गरिहिंति अवमन्नंति तज्वंति तालेति परिवर्हेति पञ्च र्हेति अकडूढविक करेंति हीलेत्ता जाव आकड्ढविकटिं करेत्ता एगंते एडति २ जामेव दिसिं पाउन्भूया तामेव दिसिं पडिगया (सू० १३५) काळे, ते समये इशान कल्प इंद्र अने पुरोहित विनानो हतो. ते वखते तामली बालतपस्वीए पूरेपूरां साठ हजार वर्ष सुधी साधु पर्यायने पाळीने, वे मास सुधीनी, संलेखनावडे आत्माने सेवीने, एकसोनेवीस टंक अनशन पाळीने काळमासे काळ करीने ईशानकल्पमां, ईशानावतंसक विमानमां, उपपात सभामां, देवशय्यामां, देववस्त्रधी ढंकाएल अने आंगळनी असंख्येय भाग जेटली अवगाहनामां ईशानकल्पमां देवेंद्रनी गेरहाजरीमां ईशान देवेंद्रपणे जन्म धारण कर्यो. हवे ते ताजा उत्पन्न थएल देवेंद्र, देवराज ईशान पांच प्रकारनी पर्याप्तिवडे पर्याप्तिपणाने पामे छे. अर्थात् आहारपर्याप्तिवडे अने यावत्- भाषामनः पर्याप्तिवडे ते देवेंद्र, देवराज ईशान पर्याप्तपणाने पामे छे. हवे, बलिचंचा राजधानीमा रहेनारा घणा असुरकुमार देवो अने देवीओए एमजायं के, तामली बालतपस्वी For Private and Personal Use Only ३ शतके उद्देशः १ ॥२३४॥ Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२३५॥ | काळधर्मने पाम्यो, अने ते ईशानकल्पमा देवेंद्रपणे उत्पन्न थयो. तेथी तेओए घणो क्रोध कर्यो, कोप कयों, भयंकर आकार धारणा कर्यो, अने तेओ बहु गुस्से भराणा. पछी तेओ बधा पलीचंचा राजधानीना मध्यभागमा थइ नीकळ्या. अने ते उत्कृष्टगतिवडे जे || ३ शतके तरफ भारतवर्ष छ, जे तरफ ताम्रलिप्ती नगरी छे अने जे तरफ तामली बालतपस्वीनुं शरीर छे ते तरफ आवीने ते देवो ते तामली उद्देशः१ | मौर्यपुत्रना मुडदाने डावे पगे दोरी बांधी पछी तेना मोढामांत्रणवार थुकी, एने ताम्रलिप्ती नगरीमा सिंगोडाना घाटवाळा मार्गमा, B ॥२३५॥ त्रण शेरी भेगी थाय तेवा मार्गमां-त्रिकमां, चोकमां, चतुर्मुख मार्गमां, मार्गमा अने महामार्गमां, अर्थात् ताम्रलिप्ती नगरीना बधी जातिना मागों उपर ते मुडदाने ढसळता ढसळता अने बुलंद अवाजे उद्घोषणा करता ते देवो आ प्रमाणे बोल्या के-हे ! पोतानी मेळेज तपस्वीना वेषने धारण करनार अने 'प्राणामा' नामनी प्रवज्याथी प्रबजीत थयेला ते तामली बालतपस्वी कोण ? तथा ईशानकल्पमा थयेल देवेंद्र देवराज ईशान कोण ? एम करीने तामली बालतपस्वीना शरीरनी हीलना करे हे, निंदा करे छे, खिसा करे छे, गर्दा करे के, अपमान करे छे, तर्जना करे , मार मारे हे, कदर्थना करे हे, तेने हेरान करे छेअने आई अवलं जेम फावे तेम ढसळे छे, तथा तेम करीन तेना शरीरने एकांते नाखी जे दिशामांथी ते देवो प्रकट्या हता तेज दिशामां पाछा ते देवो चाल्या गया. ॥ १३५॥ तए णते ईसाणकप्पवासी बहवे वेमाणिया देवाय देवीओय बलिचंचारायहाणिवत्थवएहिं असुरकुमारेहिं देवहिं देवीहि य तामलिस्स बालतवसिस्स सरीरयं हीलिजमाण निदिजमाण जाव आकडूढविकड्ढि कीरमाणं पासंति २ आसुरुत्ता जाव मिसिमिसेमाणा जेणेव ईसाणे देविंदे देवराया तेणेव उवागच्छंति २ करयलपरिग्ग *******於本Sky的中八中 For Private and Personal Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandie ॐ ३ शतके सेत्ता आसक्तो असरकुमारा देवा या देवा बदाति २ एव वदार उदेशः१ ॥२३॥ % % हियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं का जएणं विजएणं बद्धाति २ एव वदासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! ध्याख्या बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य देवाणुप्पिए कालगए जाणित्ता ईसाणे कप्पे प्रज्ञप्तिः इंदत्ताए उवचन्ने पासेत्ता आसुरुत्ता जाव एगते एडेति २ जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया। तए ॥२३६॥ से ईसाणे देविंदे देवराया तेर्सि ईसाणकप्पवासीणं बहणं वेमाणियाणं देवाण य देवीण य अंतिए एयमढे सोचा निसम्म आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे तत्थेव सयणिज्जवरगए तिवलियं भिउडि निहाले साहड्ड बलिचिंचारायहाणि अहे सपक्खि सपडिदिसिं समभिलोएइ, तप णं सा पलिचचारायहाणी ईसासेणं देविदेणं देवरना अहे सपक्खि सपडिदिसिं समभिलोइया समाणी तेणं दिवप्पभावेणं इंगालन्भूया मुम्मुरभ्या छारियन्भूया तत्तकवेल्लकब्भूया तत्ता समजोइभूया जाया यावि होत्या, तए णं ते बलिचंचारायहाणिवत्थब्धया | बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य तं बलिचंच रायहाणिं इंगालम्भूयं जाव समजोतिम्भूयं पासंति &२ भीया तत्था तसिया उब्धिग्गा संजायभया सवओ समंता आधाति परिधावेंति २ अन्नमन |स्स कार्य समतुरंगेमाणा २ चिट्ठति, तए णं ते बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य ६ देवीओ य ईसाणं देविंदं देवरायं परिकुवियं जाणित्ता ईसाणस्स देविंदस्स देवरनो तं दिव्वं देविहिं दिवं है देवज्जुइं दिव्वं देवाणुभागं दिवं तेयलेस्सं असहमाणा सव्वे सपक्खि सपडिदिसि ठिचा करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कहु जएणं विजएणं बद्धाविति ९एवं वयासी ** २ भीया तथा वा य देवीओकया जाया याविषयमा For Private and Personal Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२३७|| www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हवे ते ईशानकल्पमा रहेनारा घणा वैमानिक देवो अने देवीओए आ प्रमाणे जो के, बलीचंचा राजधानीमा रहेनारा घणा असुरकुमार देवो अने देवीओ बालतपस्वी तामलिना शरीरने हीले छे, निंदे हैं, खिसे छे, अने तेना शरीरने आडु अबलं जेम फावे | तेम ढसडे छे. त्यारे ते वैमानिक देवो पूर्व प्रमाणे जोवाथी अतिशय गुस्से भराणा अने कोथी मिसिमिसेमाणा मिसमीसाट करता (वैमानिक) देवोए देवेंद्र, देवराज ईशाननी पासे जइने बने हाथ जोडीने-दशे नखने भेगा करीने माथे अंजलि करी ते इंद्रने जय अने विजयथी वधाव्यो. पछी तेओ आ प्रमाणे बोल्या के:- हे देवानुप्रिय ! बलिचंचा राजधानीमा रहेनारा घणा असुरकुमार देवो अने देवीओ, आप, देवानुप्रियने काळने प्राप्त थरला जाणी, तथा ईशानकल्पमां इंद्रपणे उत्पन्न थएला जोइ ते असुरकुमारो घणा गुस्से भराणा अने यावत्-तओए आपना मृतक देहने ढसडीने एकांतमां मूक्यूं पछी जेओ त्यांची आव्या हता त्यां पाछा चाल्या गया. ज्यारे ते देवेंद्र, देवराज ईशाने ते ईशानकल्पमां रहे नारा बहु वैमानिक देवो अने देवीओद्वारा ए वातने सांभळी अने अवधारी, त्यारे तेने घणो गुस्सो थयो अने यावत्-क्रोधथी मिसमिसाट करतो, त्यांज देवशय्यामां सारी रीते रहेला ते ईशान इंद्रे कपालमां त्रण आड पंड तेम भवां चडावी, ते बलिचंचा राजधानीनी बराचर सपक्षे अने सप्रतिदिशे जो जे समये देवेंद्र देवराज शक्रे ईशने पूर्व प्रमाणे बलिचंचा राजधानीनी बराबर साम-नीचे जोयुं अने सप्रतिदिशे जोयुं तेज समये ते दिव्य प्रभाववडे बलिचंचा राजधानी अंगारा जेबी थइ गड़, आगना कणीया जेवी थइ गड़, राख जेवी थइ गइ, तपेली रेतीना कणिया जेवी थइ अने अति उष्ण लाइ जेवी थइ गइ. हवे | ज्यारे ते बलिचंचा राजधानीमा रहेनारा घणा असुरकुमार देवो अने देवीओ ते बलीचंचा राजधानीने अंगारा जेवी थएली अने यावत्- खूब तपेली लाय जेवी थएली जोह, तेवी जोइने असुरकुमारो भय पाम्या, सुकाइ गया, उद्वेगबाळा गया अने भयथी व्यापी For Private and Personal Use Only ३ शतके उद्देशः १ ॥२३७॥ Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - प्रज्ञप्तिः गया तथा तेओ बधा चारे तरफ दोडया लाग्या, भागवा लाग्या, अने एक बीजानो आश्रय लेबा लाग्या. ज्यारे ते बलीचंचा राजधानीमा रहेनारा असुरकुमार देवो अने देवीओए 'देवेंद्र, देवराज ईशान कोप्यो छे' एम जाण्युं त्यारे तेओ देवेंद्र, देवराज ईशाननी ३ शतके सामे, उपर, सपक्षे, अने सप्रतिदिशे बेसी, दशे नख भेगा थाय तेम बन्ने हाथ जोडवापूर्वक शिरसावर्तयुक्त माथे अंजली करी ते उद्देशः१ ईशान इंद्रने जय अने विजयवडे वधामणी आपी आ प्रमाणे बोल्या के: ॥२३८॥ अहोणं देवाणुप्पिएहिं दिव्या देविड्ढी जाव अभिसमन्नागता तं दिब्बा गं देवाणुपियाणं दिब्बा देविड्ढी जाव लद्धा पत्ता अभिसमन्नागया तं स्वामेमिणं देवाणुप्पिया! खमंतु णं देवाणुप्पिया! [स्वमंतु मरिहंतु णं देवाणुप्पिया! णाइ भुज्जो २ एवंकरणयाएत्तिकङ एयमटुं सम्मं विणएणं भुजोर खामेंति, तते णं से ईमाणे देविंदे देवराया तेहिं बलिचंचारायहाणीवत्थब्वेहिं बहहिं असुरकुमारेहिं देवेहिं देवीहि य एयमढे सम्म विणएणं भुजो २ स्वामिए समाणे तं दिव्वं देविड्डिं जाव तेयलेस्सं पडिसाहरइ, तप्पभितिं च णं गोयमा, ते बलिचचारायहाणिवथवया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य ईसाणं देविंद देवरायं आदति जाव पज्जुवासंति, ईमाणस्स देविंदस्स देवरन्नो आणाउववायवयणनिदेसे चिट्ठति, एवं खलु गोयमा ! ईसाणेणं देविदेण देवरना सा दिब्वा देविड्डी जाव अभिसमन्नागया। ईसाणस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरन्नो केवतियं कालं ठिती पण्णता ?, गोयमा ! सातिरेगाई दो सागरोवमाई ठिती पन्नत्ता । ईसाणे णं भंते ! देविंदे देवराया ताओ देवलोगाओ आउखएणं जाब कहिं गच्छिहिति ? कहिं उववजिहिति ?, गो! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव | AT For Private and Personal Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२३॥ | अंतं काहेति ॥ (सू०१३६) ।। अहो ! आप देवानुप्रिये दिव्य देवऋद्धि यावत्-प्राप्त करेली, अने आप देवानुप्रिये लन्ध करेली, प्राप्त करेली अने सामे ३ शतके आणेली एवी दिव्य देवऋद्धि अमे जोड हे देवानुप्रिय ! अमे आपनी पासे क्षमा मांगीए छीए, हे देवानुप्रिय ! आप अमने क्षमा का उद्देशः१ आपो. हे देवानुप्रिय ! तमे क्षमा करवाने योग्य छो, वारंवार पुनः एम नहीं करीए, एम कही विनयपूर्वक ए अपराध बदल तेनी ४ २३९॥ पासे विनयपूर्वक सारी रीते क्षमा मागे छे. हवे ज्यारे ते बलीचंचा राजधानीमा रहेनारा घणा असुरकुमार देवो अने देवीओए पोताना अपराध बदल ते देवेंद्र, देवराज ईशाननी पासे विनयपूर्वक सारी रीने वारंवार क्षमा मागी त्यारे ते ईशान इंद्रे ते दिव्य देवऋद्धिने अने तेजोलेश्याने पाली खेंची लीधी. अने हे गौतम! त्यारथीज मांडीने ते बलिचंचा राजधानीमा रहेनारा अनेक अमुरकुमार देवो अने देवीओ ते देवेंद्र, देवराज ईशाननो सत्कार करे छ, तेनी सेवा करे छे तथा त्यारथीज देवेंद्र, देवराज ईशाननी आनामां, सेवामां, | आदेशमा,अने निर्देशमा से असुरकुमार देवो तथा देवीओ रहे है. हे गौतम देवेंद्र, देवराज ईशाने ते दिव्य देवऋद्धि ए प्रमाणे मेळवी. [प्र०] हे भगवन् ! देवेंद्र, देवराज ईशाननी स्थिति केटला काळ सुधी कही छे ? [उ०] हे गौतम ! तेनी स्थिति बे मागरोपम करता काइक अधिक कही छे. [प्र०] हे भगवन् । देवेंद्र, देवराज ईशान पोताना आयुष्यनो क्षय-पोतानी आवरदा पूरी यया पछी ने देवलोकथी च्यवीने क्या जशे ? अने क्या उत्पन्न थशे ? [उ.] हे गौतम! ते, महाविदेहक्षेत्रमा जाने सिद्ध थशे, अने यावत्-पोताना सपना | दुःखोनो अंत करशे ? ॥ १३६ ।। सकस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरन्नो विमाणेहिंतो ईसाणस्स देविंदस्स देवरन्नो विमाणा ईसिं उच्चयरा For Private and Personal use only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥२४॥ शतके उदेशः१ ॥२४॥ चेव ईसि उन्नयतरा चेव, ईसाणस्स वा देविदस्म देवरन्नो विमाणेहिंतो सास्स देविंदस्स देवरन्नो विमाणा णीययरा चेव ईसि निन्नयरा चेव ?, हता! गोयमा! सकस्स तं चेव सव्वं नेयब्वं । से केण?ण?, गोयमा से जहानामए-करयले सिया देसे उच्चे देसे उन्नए देसे णीए देसे निन्ने, से तेणटेणं गोयमा! सकस्त देविंदस्स देवरन्नो जाव ईसिं निण्णतरा चेव । (सू. १३७ । [प्र०] हे भगवन् ! शुं देवेंद्र, देवराज शक्रनां विमानो करतां देवेंद्र, देवराज ईशानना विमानो जराक उंचां छे, जराक उन्नत छ ? अने देवेंद्र, देवराज ईशानना विमानो करतां देवेंद्र, देवराजशक्रनां विमानो जराक नीचां, जराक निम्न छ ? [उ०] हे गौतम ! हा, ते प्रमाणे २. अहीं उपरना सूत्रनो पाठ उत्तर तरीके जाणवो. [प्र०] हे भगवन् ! तेम कहे वानुं शुं कारण ? [उ०] हे गौतम ! जेम कोइ एक हाथy तळिउं हथेळी-एक भागमा उंची होय, एक भागमा उन्नत होय, तथा एक भागमां नीचे होय अने एक भागमा निम्न होय, तेज रीते विमानो संबंधी पण जाणवु अने एज हेतुथी पूर्व प्रमाणे का छे. ॥ १३७ ॥ ला पभू णं भंते ! सके देविंदे देवराया ईसाणस्म देविंदस्स देवरन्नो अंतियं पाउन्भवित्तए?, हंता पभू, से णं भंते! किं आढायमाणे पभू अणाढायमाणे पभू, गोयमा! आढायमाणे पभू , नो अणाढायमाणे पभू, पभू णं भंते ! ईसाणे देविंदे देवराया सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो अंतियं पाउन्भवित्तए ?, हंता पभू, | से भंते ! किं आढायमाणे पभू अणाढायमाणे पभू?, गोयमा! आढायमाणेऽवि प, अणादायमाणेऽवि पभू । पभू णं भंते ! सके देविंदे देवराया ईसाणं देविदं देवरायं सपक्खि सपडिदिसिं समभिलोएत्तए ? जहा For Private and Personal Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३ शतके व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२४॥ उद्देशः१ ॥२४॥ पादुन्भवणा तहा दोऽवि आलावगा नेयव्वा । प णं भंते ! सके देविंदे देवराया ईसाणेणं देविदेणं देवरना सद्धिं आलावं वा सलावं या करेत्तए ?, हता! पभू जहा पादुम्भवणा। अत्थि णं भंते ! तेसि सकीसाणाणं देविंदाणं देवराईणं किचाई करणिज्जाइं समुप्पज्नति, हंता ! अस्थि, से कहमिवाणिं पकरेंति'. गोयमा ! ताहे चेव णं से सके देविंदे देवराया ईसाणस्स देविंदस्स देवरन्नो अंतियं पाउन्भवति, ईसाणे णं देविंदे देवराया | सक्कस्स देविदस्स देवरायस्स अंतियं पाउम्भवइ, इति भो! सक्का देविंदा देवराया दाहिणहलोगाहिवई, इति भो! ईसाणा देविंदा देवराया उत्तरढलोगाहिवई, इति भो! इति भोत्ति ते अन्नमन्नस्स किचाई करणिजाई पञ्चणुभवमाणा विहरति ।। (सू. १३८)। [प्र०] हे भगवन् ! देवेंद्र, देवराज शक्र देवेंद्र, देवराज ईशाननी पासे प्रकट थवाने समर्थ है ? [30] हे गौतम ! हा, [प्र०] हे भगवन् ! ज्यारे ते, तेनी पासे आवे त्यारे तेनो आदर करतो आवे के अनादर करतो आवे ? [उ.] हे गौतम ! ज्यारे ते शक्र ईशाननी पासे आवे त्यारे तेनो आदर करतो आवे परंतु अनादर करतो न आवे. [H०] हे भगवन् ! देवेंद्र, देवराज ईशान देवेंद्र, देवराज शक्रनीपासे आववाने समर्थछे? उ०] हे गौतम! हा.[प्र.] हेभगवन्! ज्यारे ते(ईशानेंद्र)तेनी पासे आवे स्यारे ते (शकेंद्र)नो आदर करतोआवे केअनादरकरतोआवे?[उ.]आदरकरतोअने अनादरकरतो पण आवे.[म.]हे भ.! देवेंद्र देवराज शक्र देवेंद्र,देवराज ईशाननी चारे तरफम्बधी तरफ जोवाने समर्थ छ ? [उ.] हे गौतम ! जेम पासे आववा संबंधे बे आलापक कह्या. तेम जोवा संबंधे पण बे आलापक कहेवा. [प्र०] हे भगवन् ! देवेंद्र, देवराज शक्र, देवेंद्र, देवराज ईशाननी साथै वार्तालाप करवा समर्थ छ ? [उ०] हे गौतम For Private and Personal Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२४२॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हा से बातचीत करवा माटे समर्थ छे तथा पासे आववा संबंधे जणान्युं तेम बातचीत संबंधे पण समज. [प्र०] हे भगवन् ! ते देवेंद्र, देवराज शक्र अने ईशान बच्चे प्रयोजन के विधेय- कार्य होय छे. [उ०] हे गौतम ! हा, होय छे. [प्र० ] हे भगवन् ! हमणा तेओ पोतपोताना कार्योंने केवी रीते करे छे ? [उ०] हे गौतम ! ज्यारे देवेंद्र, देवराज शक्रने कार्य होय त्यारे ते देवेंद्र, देवराज ईशाननी पासे प्रादुर्भावे छे=आवे छे. अने ज्यारे देवेंद्र देवराजईशान ने कार्य होय त्यारे ते देवेंद्र, देवराज शनी पासे आवे छे तेओनी परस्पर बोलवानी रीती आवी छे:- हे दक्षिण लोकार्थना धणी देवेंद्र देवराज शक्र ! अनं हे उत्तर लोकार्धना धणी देवेंद्र देवराज ईशान ! ए प्रमाणे संबोधने संबोधी तेओ पोतपोतानुं कार्य करता रहे छे. ॥ १३८ ॥ अस्थि भंते! तेर्सि सक्कीसाणाणं देविंदाणं देवराईणं विवादा समुप्पांति ?, हंता ! अस्थि । से कहमिदाणि पकरेंति ?, गोयमा । ताहे चेव णं ते सकीसाणा देविंदा देवरा याणो सणकुमारं देविंदं देवरायं मणसीकरेंति, तए णं से सणकुमारे देविदे देवराया तेहिं सकीसाणेहिं देवि देहिं देवराईहिं मणसीकए समाणे विप्पामेव सक्कीसाणाणं देविदाणं देवराईणं अंतियं पाउन्भवति, जं से वदह तस्स आणाउववायवयणनिद्देसे चिट्ठति ॥ ( सू० १३९ ) ॥ [प्र० ] हे भगवन् ! ते बने देवेंद्र, देवराज शक्र अने देवेंद्र, देवराज ईशान - बच्चे विवादो थाय छे ? [अ०] हे गौतम हा, ते बने बच्चे विवाद थाय छे. [अ०] हे भगवन् ! ज्यारे ते वे बच्चे विवाद थाय छे त्यारे तेओ शुं करे छे ? [उ०] हे गौतम! ज्यारे ते वे बच्चे विवाद थाय छे त्यारे तेओ, देवेंद्र, देवराज सनत्कुमारने संभारे छे अने संभारतांज ते देवेंद्र, देवराज सनत्कुमार For Private and Personal Use Only ३ शतके उद्देशः १ ॥२४२॥ Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३ शतके व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥२४३॥ | देवेंद्र, देवराज शक्र अने ईशाननी पासे आवे छे. तथा ते आचीने जे कहे छ तेने तेओ माने ठे-ते बने इंद्रो तेनी आज्ञामां, है सेवामां, आ देशमा अने निर्देशमा रहे छे. ॥ १३९ ।। सणंकुमारे णं भंते । देविंदे देवराया किं भवसिद्धिए अभवसिद्धिए ? सम्मबिडी मिछदिट्टी परितसं-14 उद्देशः१ सारए अणंतसंसारण! सुलभबोहिए दुलभवोहिए? आराहए विराहए? चरिमे अचरिमे?. गोयमा! सणंकुमारे ४२४३।। णं दविंद देवराया भवसिद्धीप नो अभवसिद्धीए, एवं सम्मट्टिी परित्तसंमारए सुलभयोहिए आराहए चरिमे पसत्थं नेयब्वं। सेकेणटेणं भंते !?, गोयमा ! सणकुमारे देविंदे देवराया वहणं ममणाणं वहणं समणीणं यहूर्ण सावयाणं यहूर्ण सावियाणं हियकामए सुहकामए पत्थकामए आणुकंपिए निस्सेयमिए हियसुहनिस्मसकामए, से तेणटेणं गोयमा ! सणकुमारेणं भवसिद्धिए जाव नो अच रिमे । सणकुमारस्स ण भंते ! देविंदस्स परन्नो केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता?, गोयमा! सत्त सागरोबमाणि ठिती पन्नत्ता । से शंभेत ! ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं जाव कहिं उववजिहिति ?, गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव अंतं करेहिति, सेवं भंते ! सेवं भंते ! २ । गाहाओ-छहममासो अद्धमासो वासाइं अट्ट छम्मासा । तीसगकुरुदत्ताणं तवभत्तपरिणपरियाओ॥२४॥ उच्चत्तविमाणाणं पाउन्भव पेच्छणा य संलावे । किंचि विवादुप्पत्ती सणकुमारे य भवियवं (त्तं ) ॥ २५ ॥ (मु०१४०) मोया संमत्ता । तईयसए पढमो उद्देसो संमत्तो ॥ ३-१।। [प्र.] हे भगवन् ! शुं देवेंद्र, देवराज सनत्कुमार पणा श्रमण, घणी साध्वीओ घणा श्रावक अने धणी श्राचिकाओनो हितेच्छु For Private and Personal Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२४४॥ ३ शतके उदेशः१ ॥२४॥ %CK कर छे. सुखेच्छु छे, पथ्येच्छु छे, तेओना उपर अनुकंपा करनार छे, तेओर्नु निःश्रेयस इच्छनार छे तथा तेओना हितनो, सुखनो अने निःश्रेयसनो अर्थात् ए बधानो इच्छुक छे, माटे हे गौतम! ते सनत्कुमार इंद्र भवसिद्धक छे यावत्-ते चरम छे, पण अचरम नथी. [प्र.] हे भगवन् ! देवेंद्र, देवराज सनत्कुमारनी स्थिति केटला काळ सुधीनी कही छे ? [उ०] हे गौतम! तेनी स्थिति सात सागरोपमनी कही छे प्र०] हे भगवन् ! तेनी आवरदा पूरी थया पछी ते, देवलोकथी च्यवी यावत्-क्यां उत्पन्न यशे? [उ.] हे गौतम ! ते महाविदेहक्षेत्रमा सिद्ध थशे, यावत्-तेनां सर्व दुःखनो नाश करशे. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे. गाथार्थ:-तिष्यक श्रमणनो तप छट्ट अने एक मासर्नु अनशन छे. कुरुदत्त श्रमानो तप अट्ठम अने अडधा मासर्नु अनशन छे. तिष्यक श्रमणनो | साधु पर्याय आठ वर्षनो अने कुरुदत्त श्रमणनो साधु पर्याय छ मामनो छे अर्थात् ए वे श्रमणोने लगती बीना आ उद्देशकमां आवी छे, बीजी विगत-विमानोनी उंचाइ, इंद्रन इंदनी पासे जवू, जोधू, संलाप, कार्य, विवादनी उत्पति, तेनो निवेडो अने सनत्कुमारमा | भव्यपणु, ए बीनाओ पण आ उद्देशकमां कही छे. मोया सम्मत्त-मोका समाप्त (आ बीना मोका नगरीमां कहेवाएली होवाथी चालु उद्देशकनुं नाम पण मोका राख्युं छे) ।। १४० ॥ भगवन् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद्भगवतीसूत्रमा त्रीजा शतकमा प्रथम उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. For Private and Personal Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * * व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२४५॥ ३ शतके उद्देशः२ ॥२४॥ * * * उद्देशक २. -000-- प्रथमोद्देशके देवानां विकुर्वणोक्ता, द्वितीये तु तद्विशेषाणामेवासुरकुमाराणां गतिशक्तिप्ररूपणायेदमाह अर्थः-प्रथम उद्देशकमां देवोनी विकुर्वणाशक्ति संबंधे हकीकत कहेवाइ. अने आ बीजा उद्देशकमां पण देवोनी, असुरकुमारोनी गति शक्ति संबंधे प्ररूपण थशे अर्थात् कहेवामां आवशे... तेणं कालेण तेण समएण रायगिहे नाम नगरे होत्था जाव परिसा पज्जुवासइ, तेणं कालेण तेणं समएणं चमरे असुरिंदे असुरराया चमरचंचाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए चमरंसि सीहासणसि चउसठ्ठीए मामाणियमाहस्सीहिं जाव नविहिं उपदंसेत्ता जामेव दिसिं पाउन्भूए तामेव दिसिं पडिगए। भंतेत्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं चंदति नमंसति २ एवं वदासी-अस्थि णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीग अहे असुरकुमारा देवा परिवसंति ?, गोयमा ! नो इणद्वे समढे, जाव अहेसत्तमाए पुढवीए, सोहम्मस्स कप्पस्स अहे जाव अस्थि णं भंते! असुरकुमारा देवा परिवसंति !, णो इण? समठे। से कहिं स्वाइ णं भंते! असुरकुमारा देवा परिवसति?, गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसयमहस्सवाहल्लाए, एवं असुरकुमारदेववत्तब्वया जाय दिव्वाई भोग भोगाई भुंजमाणा विहरति । अस्थि णं भंते । असुरकुमाराण देवाण अहे गतिविसए ?, हंता अस्थि, केवतियं च ण पभू! ते असुरकुमाराणं देवाणं अहे गतिविसए पन्नत्ते?, गोयमा! * * * * For Private and Personal Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ध्याख्या प्रज्ञप्ति ॥२४६॥ 20-25 % जाव अहे सत्तमाए पुढवीए, तच्चं पुण पुढविं गया य गमिस्संति य । किं पत्तियन्नं भंते ! असुरकुमारा देवा तचं | पुढधि गया य गमिस्मति य?, गोयमा ! पुब्ववेरियस्स वा वेदण उदीरणयाए पुब्वसंगइयस्स वा वेदणउवसा ३ शतके उरेशः२ मणयाए, एवं खलु असुरकुमारा देवा तच्चं पुढविं गया य गमिस्संति य। (प्र०) ते काळे, ते समये राजगृह नामर्नु नगर हवें. यावत् सभा पर्युपासना करे छे. तं काळे ते समये असुरेंद्र, असुरराज ॥२४॥ चमर, चमरचंचा नामनी राजधानीमा मुधर्मासभामां चमर नामना सिंहासनमा बेठेलो तथा चोसठहजार सामानिक देवोथी वीटाएलो (ते) नाट्यविधिने देखाडीने जे दिशामाथी आव्यो हतो ते दिशामा पाछो गयो. 'हे भगवन् !' एम कही भगवान् गौतम, श्रमण भगवंत महावीरने बंदइ-चांदे छे, नमे छे, अने बांदी, नमी तेओ आ प्रमाणे बोल्याः -हे भगवन् ! रयणप्पभाएपुढवीएरत्नप्रभा पृथिवीनी नीचे असुरकुमार देवो रहे छे? [उ०] हे गौतम! ए अर्थ समर्थ नथी ए प्रमाणे यावत्-सातमी पृथिवीनी नीचे, सौधर्मकल्प तथा बीजा कल्पोनी नीचे असुरकुमार देवो रहेता नथी. हे भगवन् ! ईपत्प्रागभारा पृथिवीनी नीचे असुरकुमार देवो रहे छे! [उ०] हे गौतम : ए अर्थ समर्थ नथी. [40] हे भगवन् ! त्यारे क्यु ए, प्रसिद्ध स्थान छे के, ज्यां असुरकुमार देवो निवास || करे छ ? [उ०] हे गौतम ! एक लाख अने एंशीहजार योजननी जाडाईवाळा आ रत्नप्रभा पृथिवीना मध्यभागे ते असुरकुमार देवो रहे छे. अहीं असुरकुमार देवो संबंधी वक्तव्यता कहेवी. अने तेओ दिव्यभोगोन भोगवता विहरे छे. [म.] हे भगवन् ! ते असुरकुमारोमा एवं सामर्थ्य ले के तेओ पोताना स्थानथी नीचे जइ शके ? [उ.] हे गौतम ! हा. सामर्थ्य के. [प्र०] हे भगवन् ! ते असुरकुमारो पोताना स्थानथी केटला भागसुधी नीचे जद शके छ ? [उ०] हे गौतम ! सातमी पृथिवी सुधी नीचे जइ शके छ ? For Private and Personal Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२४७॥ ३ शतके उद्देशः२ ॥२४७॥ तेओनी नीचे जवानी मात्र आटली शक्ति के. परंतु तेओ त्यांसुधी कोइबार गया नथी, जशे नहि, अने जाता पण नथी. किंतु त्रीजी पृथिवी सुधी जाय छे, गया के अने जशे पण खरा. [प्र.] हे भगवन् ! ने असुरकुमारो श्रीजी पृथिवीसुधी जाय रे, गया छे, अने जशे तेनुं शुं कारण ? [उ०] हे गौतम ! पोताना पूर्वना-जुना वैरीने वेदनादःख देवा, पोताना जूना सोबतीओने सुखी करवा ए कारणथी असुरकुमार देवो त्रीजी पृथिवी सुधी गया छे, जाय छे तथा जशे. __ अत्थि णं भंते ! असुरकुमाराणं देवाणं तिरियं गतिविसप पन्नत्ते !, हंता अस्थि, केवतियं च णं भंते! असुरकुमा. राणं देवाणं तिरियं गइविसए पन्नत्ते?, गोयमा ! जाव असंखेजा दीवसमुदा, नंदिस्मरवरं पण दीयं गया य गमिस्संति य । किं पत्तियन्नं भंते ! असुरकुमारा देवा नंदीसरवरदीवं गया य गमिस्संति य?, गोयमा जे इमे अरिहंता भगवंता एएसि णं जम्मणमहेसु वा निक्खमणमहेसु वा णाणुप्पायमहिमासु वा परिनिवाणमहिमासु वा, एवं खलु असुरकुमारा देवा नंदीसरवरदीचं गया य गमिस्संति य । अस्थि ण भंते ! असुरकुमाराणं देवाणं उड्ढे गतिविसए ?, हता! अत्थि। केवतियं च णं भंते ! असुरकुमाराणं देवाणं उढं गतिधिसए ?, गोयमा! जावऽरचुए कप्पे, सोहम्म पुण कप्पं गया य गमिसतिय। [प्र.] हे भगवन् ! ते असुरकुमारोमा एबुं सामर्थ्य छे के लेओ पोताना स्थानथी तिरछे जइ शके ? [उ०] हे गौतम ! हा, जवानुं सामर्थ्य छे. [प्र०] हे भगवन् ! ते असुरकुमारो पोताना स्थानथी केटला भाग सुधी तिरछा जइ शके ? [उ०] हे गौतम ! पोताना स्थानथी यावन्-असंख्येय द्वीप समुद्रो सुधी तिरछा जवानुं तेओर्नु मात्र सामर्थ्य हे. पण तेओ नंदीश्वरद्वीप सुधी तो For Private and Personal Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥२४८ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गया है, जाय छे, अने जशे पण खरा. [प्र० ] हे भगवन् ! ते असुरकुमारो नंदीश्वरद्वीप सुधी जाय छे, गया के अने जशे तेनुं शुं कारण ? [अ०] हे गौतम! जे आ अरिहंत भगवंत छे, एओना जन्मोत्सवमां दीक्षा- उत्सवमां, ज्ञानोत्पतिमहोत्सवमां अने परिनिर्वाणना उत्सवमां ए असुरकुमार देवो नंदीश्वरद्वीप सुधी जाय छे, गया छे अने जशे अरहंतना जन्म वगेरेना उत्सवो असुरकुमार देवोने नंदीश्वरद्वीप जवानुं कारण छे [प्र० ] हे भगवन् ! ते असुरकुमारोमां एवं सामर्थ्य छे के तेओ, पोताना स्थानथी उंचे जह शके ? [अ०] गौतम ! हा, जइ शके छे. [प्र० ] हे भगवन् ! ते असुरकुमारो पोताना स्थानथी केदला भाग सुधी उंचे जइ शके छे? [ उ० ] हे गौतम ! अच्युतकल्पसुधी उपर जइ शके छे, परंतु तेओ गया नथी जशे नहिं अने जाता पण नयी. परंतु सौधर्मकल्प सुधी जाय छे. गया के अने जशे पण खरा. किं पत्तियण्णं भंते! असुरकुमारा देवा सोहम्मं कप्पं गया य गमिस्संति य १, गोयमा ! तेसि णं देवाणं भवपचइयवेराणुबंधे, ते णं देवा विकुब्वैमाणा परियारेमाणा वा आयरक्खे देवे वित्तासेंति, आहालहस्सगाई रयणाई गहाय आयाए एगंतमंत अवकामति । अस्थि णं भंते! तेसिं देवाणं आहालहुस्सगाई रयणाई, हंता अस्थि । से कहमियाणि पकरेंति ?, तओ से पच्छा कार्य पत्रवहंति । पभू णं भंते ! ते असुरकुमा देवा तत्थ गया वेव समाणा ताहि अच्छराहिं सद्धिं दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणा विहरितए ?, णो तिट्टे समट्टे, ते णं तओ पडिनियत्तति २ त्ता इहमागच्छति २ जति णं ताओ अच्छराओ आढायंति परियाणंति० । पभूपणं भंते । ते असुरकुमारा देवा ताहिं अच्छराहिं सद्धि दिव्वाई भोग भोगाई भुंजमाणा बिहरित्तए अहन्न For Private and Personal Use Only ३ शतके उद्देशः २ ||२४८|| Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः ३ शतके उद्देशः२ ॥२४॥ ॥२४९॥ *444 ताओ अच्छराओ नो आदाति नो परियाणति ?, णो णं पभू ते असुरकुमारा देवा ताहिं अच्छराहि सद्धि | | दिव्वाइंभोगभोगाई भुंजमाणा विहरित्तए, एवं ग्बल गोयमा! असुरकुमारा देवा मोहम्मं कप्पं गया पगमिस्संति य । (सू१४१)। ०] हे भगवन् ! ते अमरकुमारो उंचे सौधर्मकल्प सुधी जाय छे, गया , अने जशे तेनु शु कारण ? [उ.] हे गौतम ! | ते देवोने जन्मथीज बैरानुबंध छे. वैक्रियरूपोने बनावता तथा भोगोने भोगवता से देयो आत्मरक्षक देवीने त्रास उपजाचे हे तथा यथोचित नाना नाना रत्नो लइने पोते उजड गाममा चाल्या जाय हे. [.] हे भगवन् ! ते देवो पासे यथोचित नाना नाना रत्नो होय छे ? [उ०] हे गौतम ! हा, तेओनी पासे नाना नाना रत्नो होय छे. [प्र०] हे भगवन् ! ज्या ते असुरो, वैमानिकोना रत्नो उपाडी जाय त्यारे वैमानिको तेओने शुं करे छ ? [उ०] हे गौतम ! रत्नो लीधा पछी ते असुरोने शारीरिक व्यथा-दुःख सहन करवू पडे छे. [प्र.] हे भगवन् ! उपर गया एवाज ते असुरकुमार देवो त्यां रहेली अपसराओ माथे दिव्य अने भोगवा योग्य मोगोने भोगवी शके खरा, विहरी शके खरा ? [उ.] हे गौतम ! ए प्रमाणे करवाने ते अमुरकुमार देवो समर्थ नथी. किंतु तेओ त्यांथी पाछा वळे के अने अहीं आवे छे. जो कदाच ते अप्सराओ तेओनो आदर करे, तेओनो स्वामी तरीके स्वीकार करे तो ते ४ असुरकुमार देवो, ते त्यां रहेली अप्पसराओ साथे दिव्य अने भोगववा योग्य भोगोने भोगवी शके छे, भोगबता रही विहरी शके छे. हवे कदाच ते अप्सराओ लेओनो आदर न करे तथा तेओने स्वामी तरीके न स्वीकारे तो ते अमरकुमार देवो, ते अप्पसगओ साथे दिव्य अने भोगववायोग्य भोगोने भोगवी शकता नथी. हे गौतम ! 'अमुरकुमार देवो, सौधर्मकल्पमुधी गया छ, जाय छे 44X 2 . For Private and Personal Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥ २५० ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अने जशे' तेनुं पूर्व प्रमाणे कारण छे. ॥ १४१ ॥ haarata i ते ! असुरकुमारा देवा उडूढं उप्पयंति जाब मोहम्मं कप्पं गया य गमिस्संति य?, गोगमा ! अणंताहिं उस्सप्पिणीहिं अणताहि अवसप्पिणीहिं समतिक्कंताहिं, अस्थि णं एस भावे लोयच्छेरयभूए समुप्पज्जह जश्नं असुरकुमारा देवा उटं उप्पयंति जाव सोहम्मो कप्पो, किं निस्साए णं भंते ! असुरकुमारा देवा उडूढं उप्पयंति जाव सोहम्मो कप्पो ?, से जहानामए-इह सवरा इ वा बच्बरा इ वा टंकणा इ वा भुत्या इ वा पल्हया इ वा पुलिंदा इ वा एगं महं गई वा खडुं वा दुग्गं वा दरिं वा विसमं वा पव वा णीसाए सुमहलमवि आसवलं वा हत्थिबलं वा जोहवलं वा धणुबलं वा आगलेति, एवामेव असुरकुमारावि देवा, णण्णत्थ अरिहंते वा अरिहंतचेइयाणि वा अणगारे वा भावियप्पणो निस्साए उडूढं उप्पयंति जाव सोहम्मो कप्पो । सब्वेऽविणं भंते ! असुरकुमारा देवा उडूढं उप्पयंति जाव सोहम्मो कप्पो ?, गोयमा ! जो इण समद्वे, महिढिया णं असुरकुमारा देवा उडूढं उप्पयंति जाब सोहम्मो कप्पो । एसवि णं भंते ! चमरे असुरिंदे अमरकुमारराया उड्ढ उप्पइयपुवि जाव सोहम्मो कप्पो ?, हंता गोयमा ! २ । अहो णं भंते ! चमरे असुररिंदे असुरमारराया महिड्दीए महज्जुईए जाव कहिं पविट्ठा ?, कूडागारसालादिट्ठतो भाणियव्वो । ( सु०१४२ ) [प्र० ] हे भगवन् ! केटलो समय वीत्या पछी असुरकुमारदेवो उंबे जाय छे तथा सौधर्मकल्पसुधी गया छे अने जशे ? [30] हे गौतम! अनंत उत्सर्पिणी अने अनंत अवसर्पिणी वीत्या पछी लोकोमा आश्चर्य पमाडनार ए भाव उत्पन्न थाय छे के, For Private and Personal Use Only ३ शतके | उद्देशः २ ॥२५०॥ Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२५॥ * | अमुरकुमारदेवो उंचे जाय छे अने यावत्-सौधर्मकल्पमुधी जाय छे. [प्र०] हे भगवन् ! कह निश्रावडे-कोनो आश्रय करीने-ते असुरकुमार देवो यावत्-सौधर्मकल्प सुधी जाय छे ? [उ०] हे गौतम ! जेम कोई एक शबर जातिना लोको, बब्बर जातिना लोको, | ढंकण जातिना लोको, भुत्तुअजातिना लोको, पण्हजातिना लोको, अने पुलिंद लोको एक मोग जंगलनो, खाडानो, जलदुर्गनो के | | उद्देशा२ ६ स्थलदुर्गनो, गुफानो खाडा अने वृक्षोथी गीच थएल भागनो अने पर्वतनो आश्रय करी एक मारा अने मोटा पण घोडाना लश्करने, & ॥२५॥ हाथीना लश्करने, योद्धाओना लश्करने, धनुष्यना लश्करने हंफाववानी हिंमत करे छे, एज प्रमाणे असुरकुमार देवो पण अरिहंतोने अरिहंतना चैत्योने अने भावित आत्मा साधुओनो आश्रय करी उंचे यावत् सौधर्मकल्पमृधी जाय रे. पण ते शिवाय जता नथी. [प्र.] हे भगवन् ! शुं बधाय अमुरकुमारो यावत्-सौधर्मकल्प सुधी उवे जाय छे ? [उ०] हे गौतम ! ए अर्थ समर्थ नथी-वधाय ला असुरकुमार देवो उंचे जाता नथी, किंतु दिव्य ऋद्धिवाळा असुरकुमार देवो उंचे सौधर्मकल्प सुधी जाय छे. [प्र०] हे भगवन् ! शुं ए अमुरेंद्र, असुरराज चमर पण कोइवार पूर्वे उपर यावत्-सौधर्मकल्पसुधी गएलो छ ? [उ०] हे गौतम ! हा, [प्र०] हे भगवन् ! नीचे रहेतो असुरेंद्र, असुरराज चमर केवो मोटो ऋद्धिवाळो छ, केवो मोटो कांतिवाळो के अने यावत्-तेनी ते ऋद्धि क्यां गड ? उ०] हे गौतम! पूर्वे कह्या प्रमाणे कुटाकारशालान दृष्टांत कहेचु. ।। १४२ ॥ चमरेणं भंते ! असुरिंदेणं असुररन्ना सा दिवा देविड्ढी तं चेव जाव किन्ना लद्धा पत्ता अभिसमन्ना|गया, एवं खल गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे २ भारहे वासे विंझगिरिपायमले बेमेले नामं संनिवेसे होत्था, वनओ, तत्थ णं बेभेले संनिवेसे पूरणे नामंगाहावती परिवसति अड्ढे दित्ते जहा ताम लिस्सी For Private and Personal Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रखतिः ॥२५२॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वत्तच्वया तहा नेयव्वा, नवरं चउप्पुडयं दारुमयं परिग्गह्यं करेत्ता जाव विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं जाव सयमेव वउडयं दारुमयं पडिग्गह्यं गहाय मुंडे भवित्ता दणामाए फबजाए पब्वइत्तए, पत्रवइविय समाणे तं चेव, जाव आयावणभूमीओ पश्चोरुभइ २ ता सयमेव चउप्पुयं दारुमयं पडिग्गहियं गहाय बेभेले सन्निवेसे उच्चनीयमज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडेत्ता जं मे पढमे हुए पडड़ कप्पड़ मे तं पंधे पहियाणं दलहत्तए, जं मे दोचे पुडए पडइ कप्पड़ में तं कागसुणयाणं दलइत्तए, जं मे तचे पुडए पडइ कप्पइ मे त मच्छकच्छभाणं दलइत्तए, जं मे चउत्थे पुडए पडइ कप्पड़ मे तं अप्पणा आहारितएत्तिकहु एवं संपेer २ कल्ले पाउप्पभागाए रयणीए तं चैव निरवसेसं जाव जं मे (से) वउत्थे पुडर पडइ तं अप्पणा आहारं आहारेह, तए णं से पूरणे बालतवस्सी तेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं बालतबोकम्मेणं तं चेत्र जाव बेभेलस्स सन्निवेसस्स मज्झमज्झेणं निग्गच्छति २ पाउयं कुंडियमादीयं उवकरणं चउप्पुडये च दारुमयं पडिग्गहियं एगंतमंते एडेड़ २ बेमेलस्स सन्निवेमस्स दाहिणपुरच्छिमे दिसीभाते अनियत्तणियमंडलं आलिहित्ता संदेहणासणानूसिए भत्तपाणपडियाइक्खिए पाओवगमणं निवण्णे । [प्र० ] हे भगवन् ! असुरेंद्र, असुरराज चमरे ते दिव्य देवऋद्धि अने यावत् ते बधुं केबी रीने लब्ध कर्यु, केवी रीते प्राप्त कयूँ, अने केवी रीने सामे आण्णुं ? [ उ० ] हे गौतम! ते काळे ते समये आज जंबूद्वीप नामना द्वीपमां, भारतवर्षमां विंध्य नामे | पहाळनी तळेटीमां वेमेल नामनो संनिवेश हतो. वर्णक. ते वेमेल नामे संनिवेशमां पूरण नामनो गृहपति रहेतो हतो. ते आढ्य अने For Private and Personal Use Only ३ शतके उदेशः २ ॥२५२॥ Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२५३॥ शतके हा उद्देशः२ | ॥२५॥ दीप्त हतो. तामली तपस्वीनी पेठे आ पूरणनी पण वक्तव्यता कहेवी. विशेष ए के, चार खानावालं काष्टर्नु पात्र करीने यावत्विपुल खानपान, खादिम-मेवा वगेरे अने स्वादिम-मशाला विगेरे यावत्-पोवानी मेळेज ते चारखानावाडं लाकडानुं पात्र लइने, मुंड थइने, 'दानामा' नामनी प्रव्रज्यावडे ते पूरण गृहपति प्रव्रजित थयो. यावत्-ते पूरण तपस्वी आतापन भूमिथी नीचे आवी, पोतानी मेळेज ते चार खानाबालुं पात्र लई ते बेमेल नामना सन्निवेशमा उंचा नीचा अने मध्यम कुलोमा मिक्षा लेवानी विधिपूर्वक मिक्षा माटे फर्यो. अने मिक्षाना नीचे प्रमाणे चार भागो कर्या-जे कांह मारा पात्रना पहेला खानामां आवे ते मारे बटेमाणुओने देवू, पण खावू नहि. जे काइ मारा पात्रना बीजा खानामां आवे ते मारे कागडाओने अने कुरोने खबराबवं, जे कांड मारा पात्रना त्रीजा खानामां पडे ते मारे माछलांओने अने कच्छमाण-काचवाओने खवरावी देवु अने जे काइ मारा चोथा खानामां पडे ते मारे खावाने कल्प्य के एम कहीने एम विचारीने काल प्रकाशवाळी रात्री थया पछी-अहीं वधु पूर्व प्रम गेज कहे. यावत्-जे मारा चोथा खानामा पडे ते पोते आहार करे हे. पछी पूरण नामे बालतपस्वी, ते उदार, विपुल, प्रदन अने प्रगृहीत बालतपकर्मबडे अहीं बधुं पूर्व प्रमाणेज कहे, यावत्-ते वेभेल नामना संनिवेश वचोवच नीकळे हे, नीकळी पावडी तथा कुंडी बगेरे उपकरणोने चारखानावाला लाकडाना पात्रने एकांते मूकी, ने वेभेल संनिवेशथी अनिखूणे अर्धनिवर्तनिक मंडळने आलेखे . आळेखी, संलेषणा जूसणथी जूषित थइ, खान तथा पाननो त्याग करी ते पूरण तपस्वी पादोपगमन नामर्नु अनशन म्बीकारी 'देवगत श्या. तेणं कालेणं तेणं समएणं अहं गोयमा ! छउमत्थकालियाए पकारसयासपरियार उछ?गं अनिकिवतेणं तबोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावे माणे पुब्बाणुपुब्बि चरमाणे गामाणुगाम दहजमाणे जेणेच सुसमार 46 For Private and Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥२५४॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुरे नगरे जेणेव असोयवणसंडे उज्जाणे जेणेव असोयवरायवे जेणेव पुढविसिलावहओ तेणेव उवागच्छामि २ असोगवरपायस्स ट्ठा पुढविसिलापट्ट्यंसि अट्टमभत्तं परिगिण्हामि, दोवि पाए साहहु बग्घारियपाणी एगपो ग्गलनिविठ्ठदिट्ठी अणिमिसनयणे ईसिंप भारगएणं कारणं आहापणिहिएहिं गत्तेहिं सव्विदिएहिं गुत्तेहिंएगराइयं महापडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरामि । तेणं कालेणं तेणं समएणं चमरचंचा रायहाणी अणिदा अपुरोहिया यावि होत्था, तए र्ण से पूरणे वालतवस्सी बहुपडिपुन्नाई दुबालसवासाई परियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं सेत्ता सहि भत्ताइ अणस णाए छेदेत्ता कालमासे कालं किवा चमरवंचाए रायहाणीए उबवायसभाए जाब इंदत्ताए उबबन्ने, तए णं से चमरे असुरिंदे असुरराया अहुणोववने पंचविहाए पत्तीए पज्जत्तिभावं गच्छइ, तंजहा हे गौतम! ते काळे ते, समये हुं छद्यावस्थामां हतो अने मने दीक्षा लीघे अगीयार वर्ष थया हतां तथा हुं निरंतर छट्टछट्टना तपकर्मपूर्वक संयम अने तपवडे आत्माने भावतो, पूर्वानुपूर्वीए चरतो अने गामेगाम फरतो जे तरफ सुंसुमारपुर नगर के, जे तरफ अशोक वनखंड छे, जे तरफ उत्तम अशोकनुं वृक्ष झाड छे अने जे तरफ पृथिवीशिलापट्टक छे ते तरफ आन्यो अने पछी ते अशोकना उत्तम वृक्षनी हेठळ पृथिवीशिलापट्ट्क उपर में अट्ठमनो तप आदयों तथा हुं बन्ने पगने मेळा करीने, हाथने नीचा नमता लांबा करीने अने मात्र एक पुद्गल उपर नजर मांडीने, आंखोने फफडाव्या शिवाय जराक शरीरने आगळना भागमां नमतुं मेलीने, यथास्थित गोत्रवडे गुप्त थहने, एक रात्रिनी मोटी प्रतिमाने स्वीकारीने विहरतो हतो. ते काळे ते समये चमरचंचा राजधानीमां इंद्र For Private and Personal Use Only ३ शतके उद्देशः२ ॥२५४॥ Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२५॥ ३ शतके उदेशः२ ॥२५॥ अने पुरोहित न हता. हवे ते पूरण नामे पालतपस्वी, पूरेपूरी पार वर्ष सुधी पर्यायने पाळीने, मासिक संलेखनावडे आत्माने सेबीने, साठ टंक सुधी अनशन राखीने,काळमासे काळ करी चमरचंचा राजधानीमा उपपात सभामां इंद्रपणे उत्पन्न थयो हवे ते ताजोज उत्पन्न यएलो असुरेंद्र, असुरराज चमर पांचे प्रकारनी पर्याप्तिवडे पर्याप्तपणाने पामे छे ते पांच प्रकारनी पर्याप्ति आ छे:र आहारपजत्तीए जाव भासमणपज्जत्तीए, तए णं से चमरे असुरिंदे असुरराया पंचविहाए पज्जत्तीए पजत्तिभावं गए समाणे उड्दं वीससाए ओहिणा आभोएइ जाव सोहम्मो कप्पो, पासइ य तत्थ सकं देविंद देवरायं मघवं पागसासणं सय कतुं सहस्सक्ख बजपाणिं पुरंदरं जाव दस दिसाओ उज्जोवेमाण पभासेमाण मोहम्मे कप्पे सोहम्मवडेंसए विमाणे सकंसि सीहासणंसि जाव दिब्वाइं भोगभोगाइं भुजमाणं पासइ २ इमेयारूवे अज्झथिए चिंतिए पथिए मणोगए संकप्पे समुप्पजित्था-केसणं एस अपत्थियपत्थए दुरंतपंतलकखणे हिरिसिरिपरिवजिए हीणपुन्नचाउद्दसे जन्नं ममं इमाए एयारूवाए दिव्वाए देविड्ढीए जाव दिब्वे देवाणुभावे लद्धे पत्ते अभिसमन्ना|गए उप्पि अप्पुस्सुए दिखाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरह, एवं संपेहेइ २मामाणियपरिसोववन्नए देवे सहावेइ २ एवं वयासी-केस णं एस देवाणुप्पिया! अपत्थियपत्थए जाव भुंजमाणे विहरइ १. तए णं ते सामाणियपरिसोवबन्नगा देवा चमरेणं असुरिदेणं असुररन्ना एवं वुत्ता समाणा हट्टतुट्ठा जाव हयहियया करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कॉ जएणं विजएणं बद्धावेंति २ एवं वयासी आहारपर्याप्ति अने यावत्-भाषा-मनःपर्याप्ति. हवे ते अमुरेंद्र, अमुरराज चमर, पांच प्रकारनी पर्याप्तिथी पर्याप्तपणाने For Private and Personal Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२५६॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाम्या पछी अवधिज्ञानवडे स्वाभाविक रीते उंचे यावत्-सौधर्मकल्पमा देवेंद्र, देवराज, मघवा पाकशासन, सयकडे - शतक्रतु, सहस्राक्ष - हजार आंखोवाळा, वज्जपाणि-हाथमां वजूने धारण करनार, पुरंदर शक्रनो यावत्-दशे दिशाओनो अजवाळतो तथा प्रकाशित करतो अने सौधर्मकल्पमां, सौधर्मवतंसक नामना विमानमां, शक्र नामना सिंहासन उपर बेसी दिणाई भोगभोगई - दिव्य भोगवा योग्य भोगोने भोगवतो जूए छे. तेने ते प्रकारे जोइ ते चमरना मनमां आ ए प्रकारनो आध्यात्मिक चिंतित, प्रार्थित मनोगत संकल्प थयो के:- अरे ए मरणनो इच्छुक, नठारी लक्षणवाळो, लाज अने शोभा विनानो तथा पुन्यहीन चौदशने दहाडे जन्मेलो ए कोण छे ? जे, मारी पासे आ ए प्रकारनी दिव्य देवऋद्धि यावत्-दिव्य देवानुभाव होवा छतां में दिव्य देवऋद्धि यावत्-दिव्य देवानुभाव लब्ध प्राप्त अने अभिसमन्वागत कर्या छतां पण मारी उपर विना गभराटे-ओळी-उतावळे दिव्य अने भोगवा योग्य भोगोनें भोगवतो विहरे छे. एम विचारी ते चमरे सामानिकसभामा उत्पन्न थएल देवोने बोलावी आ प्रमाणे कां:- हे देवानुप्रियो ! अरे ए मरणनो इच्छुक यावत्-भोगोने भोगवतो कोण छे ? ज्यारे असुरेंद्र असुरराज चमरे, ते देवोने पूर्व प्रमाणे कथं त्यारे ते सामानिक सभामा उत्पन्न धयेल ते देवो ते चमरनुं कथन सांभळी हर्षवाळा, तोषवाळा, यावत् हृत हृदयवाळा थया अने बने हाथने जोडवापूर्वक दशे नखने भेळा करी शिरसावर्ते सहित मायामां अंजलि करी ते देवोए ते चमरने जय अने विजयथी वधाव्यो, पछी तेओ आ प्रमाणे बोल्याः एस देवाशुपिया सक्के देविंदे देवराया जाब विहरइ, तए णं से चमरे असुरिंदे असुरराया तेसिं सामाजियपरिसोववन्नगाणं देवाणं अंतिए एयमहं सोचा निसम्म आसुरुते रुद्धे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे ते सामाणि For Private and Personal Use Only ३ शतके उद्देशः २ ॥२५६॥ Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२५७॥ ३ शतके जोशः२ ॥२५॥ यपरिसोववन्नए देवे एवं बयासी-अम्ने खलु भो ! (से) सक्के देविदे देवराया, अने खलु भो ! से चमरे असुरिंदे असुरराया, महिढीए स्खलु से सके देविंदे देवराया, अप्पड्दिए खलु भो। से चमरे असुरिंदे असुरराया, तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया! सकं देविंदं देवरायं सयमेव अचासादेत्तएत्तिकदु उसिणे उसिणभूए यावि होत्या, तए णं से चमरे असरिंदे असुरराया ओहिं पउंजइ २ ममं ओहिणा आभोएड २ इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था हे देवानुप्रिय ! ए देवेंद्र, देवराज शक्र यावत्-मोगोने भोगवतो विहरे छे. पछी असुरेंद्र, असुरराज चमर, ते सामानिक A सभामा उत्पन्न भएला देवोनामुखयी ए प्रमाणे मांभळी, अवधारी, क्रुद्ध थयो, रोपे भरायो, कुपित थयो. भयंकर आकृतिवाळो बन्यो अने क्रोधना वेगथी धमधम्यो. पण तेणे, ते सामानिकसभामा उत्पन्न थएल देवोने आ प्रमाणे कयु के-हे देवो ! देवंद्र, देवरान शक बीजो छे. अने हे देवो! असुरेंद्र असुरराज चमर बीजो के. देवेंद्र देवराज शक मोटी ऋद्धिवाळो छे अने असुरेंद्र, असुरराज चमर ओछी ऋद्धिवाळो ले तो हे देवानुप्रियो ! हुं मारी पोतानीज मेळे देवेंद्र देवराज शक्रने तेनी शोभाथी भ्रष्ट करवा इच्छु ९. एम करीने ते चमर गरम थयो अने तेणे अस्वभाविक गरमीने प्राप्त करी- बहु रोपे भराणो. हवे ते असुरेंद्र, असुरराज चमरे अवधिज्ञाननो प्रयोग कयों अने ते अवधिज्ञानना प्रयोगद्वारा ते चमरे मने जोयो. मने जोइने तेने आ प्रकारनो आध्यात्मिक | यावत् संकल्प उत्पन्न थयो के: एवं खलु समणे भगवं महावीरे जंबुद्दीवे २ भारहे वासे सुसमारपुरे नगरे असोगवणसंडे उजाणे असोगवरपाय For Private and Personal use only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शतके | उद्देशा२ २५८॥ वस्म अहे पुढविसिलावयंसि अट्टमभत्तं पडिगिण्हित्ता एगराइयं महापडिमं उवसंपजित्ताण विहरति, तं सेयं व्याख्या-४ स्वलु मे समाण भगवं महावीरं नीसाए सकं देविंद देवरायं सयमेव अचासादेत्तएत्तिकहु एवं संपेहेइ २ सयणि ज्जाओ अब्भुटेइ २ त्ता देवदूस परिहेइ २ उववायसभाए पुरच्छिमिल्लेणं दारेणं णिग्गच्छइ, जेणेव सभा मुहम्मा ॥२५८ जेणेव चोप्पाले पहरणकोसे तेणेव उवागच्छद २त्ता फलिहरयणं परामुमइ २ एगे अबीए फलिहरयणमायाए महया अमरिसं वहमाणे चमरचंचाए रायहाणीए मज्झमज्झेणं निग्गच्छह २ जेणेव तिमिच्छकूडे उप्पायपव्वए तेणामेव उवागच्छद २ त्ता वेउब्वियसमुग्घाएणं समोहणइ २त्ता संखेलाई जोयणाई जाव उत्सरवेउ. वियरूवं विउबह २त्ता तार उकिट्ठाए जाव जेणेव पुढविसिलापट्टए जेणेव मम अंतिए तेणेव उवागच्छति MIR मम तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेति जाव नमंसित्ता एवं वयासी| श्रमण भगवंत महावीर, जंबूद्वीप नामे द्वीपमा, भारतवर्षमां, सुसमारपुर नामना नगरमां, अशोकवनखंड नामना उद्यानमा अशोकवृक्षनी नीचे पृथिवीशीलापट्टक उपर अट्ठमना तपने आदरीने, एक रात्रिनी महाप्रतिमाने स्वीकारीने विहरे छे. तो हुँ श्रमण भगवंत महावीरनो आशरो लइ देवेंद्र देवराज शक्रने तेने शोभाथी भ्रष्ट करवा जाउँ, ए मारे कल्याणरूप थशे. एम करी एम विचारी ते चमरेंद्र पोताना शयनमाथी उठी, देवदृष्यने पहेरी, उपपात सभाथी पूर्व दिशा तरफ नीकळ्यो. अने जे तरफ सुधर्मा सभा छे, जे तरफ 'चोप्पल' नामनो हथीयार राखबानो भंडार छे ते तरफ ते चमर गयो अने त्यांथी ते चमरे परिघरत्न नामर्नु हथीयार लीधुं. पछी ते, एकलो, कोइ बीजाने संगाते लीपा विना ते परिघ रत्ननेलइने मोटा रोषने धारण करतो चमरचंचा राज For Private and Personal Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२५॥ धानीना मध्यभागे थइ नीक के अने ज्यां तिगिच्छकूट नामनो उत्पात पर्वत आवे छे त्यां आवे छे. पछी फरीने पण वैक्रियसमु| धातवडे समवहत थाय छे अने संख्येय योजन सुधीनां उत्तर वैक्रियरूपोने बनावी ते उत्कृष्ट गतिवडे ज्या पृथिवीशीलापट्टक छे, ३ शतके | ज्यां हुं (महावीर) छु त्यां आवी. मने त्रणवार प्रदक्षिणा करी, नमस्कार करी, ते चमर आ प्रमाणे बोल्यो: उमेशः२ इच्छामि णं भंते ! तुम्भं नीसाए सकं देविंदं देवरायं सयमेव अच्चासादित्तएत्तिकहु उत्तरपुरच्छिमे दिसि- ता॥२५॥ | भागे अवक्कमइ २ वेउब्बियसमुग्घाएणं समोहणइ २ जाव दोपि वेउब्वियसमुग्घाएणं समोहणइ २ एगं महं घोरं घोरागारं भीमं भीमागारं भासुरं भयाणीयं गंभीरं उत्तासणयं कालहरत्तमासरासिसंकासं जोयणसयसाहस्सीयं महाबोंदि विउवह २ अप्फोडेइ २ वग्गइ २ गजइ २ यहेसियं करेइ २ हथिगुलगुलाइयं करेइ २ रहघणघणाइयंकरेइ २ पायदरगं करेइ २ भूमिचवेडयं दलयइ २ सीहणादं नदइ २ उच्छोलेइ २ पच्छोलेइ २ तिपई छिंदइ २ वामं भुयं ऊसवेइ २ दाहिणहत्थपदेसिणीए य अंगुट्ठणहेण य वितिरिच्छमुहं विडंबह २ महया २ सद्देणं कलकलरवेणं करेइ, एगे अबीए फलिहरयणमायाए उड्दं वेहासं उत्पइए, ग्बोभते चेच अहेलोयं कंपेमाणे चेव मेयणितलं आकर्ट (साकडूढं ) तेव तिरियलोयं फोडेमाणेव अंबरतलं कत्थई गर्जतो कत्था विज्जुयायंते कत्थइ वासं वाममाणे कत्थई रउग्घायां पकरेमाणे कत्थइ तमुकाय पकरेमाणे वाणमंतरदेवे बित्तासेमाणे २ जोइसिए देवे दुहा विभयमाणे २ आयरक्खे देवे विपलायमाणे २ फलिहरयणं अंबरतलंसि वियहमाण २ विउज्झाएमाण २ ताए उकिट्ठाए जाव तिरियम संखेजाणं दीवसमुदाणं मज्झमज्झेणं वीयीवयमाणे २ जेणेव सोहम्मे कप्पे जेणेव XXXX For Private and Personal Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥२६० ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सोहम्मवडेंसर विमाणे जेणेव सभा सुधम्मा तेणेव उवागच्छइ २ एगं पाये पउमवरवेश्याए करेइ एवं पायं सभाप सुहम्जाए करेइ फलिहरणेणं महया २ सद्देणं तिक्खुत्तो इंदकीलं आउडेइ २ एवं वयासी हे भगवन् ! तमारो आशरो लइने, हुं स्वयमेव-मारी पोतानी जातेज देवेंद्र, देवराज शक्रने तेनी शोभाथी भ्रष्ट करना इच्छु हुँ, एम करीने ते चमर उत्तरपूर्वना दिग्भाग तरफ चाल्यो गयो। पछी तेथे वैक्रियसमुद्धात कर्यो यावत्-फरीवार पण ते वैक्रियसमुद्घातथी समवहत थयो. तेम करी ते चमरे एक मोई, घोर, घोर आकारवाळु भयंकर, भयंकर आकारवाळु, भास्वर, भयानक, गंभीर, त्रास उपजावे एवं, काळी अडधी रात्री अने अडदना ढगला जेवुं काळं तथा एक लाख योजन उंचं मोडु शरीर बनान्युं. तेम करी ते चमर पोतामा हाथने पछाडे छे, कूदे छे, मेघनी पेठे गांजे छे, घोडानी पेठे हेषारव करे छे, हाथीनी पेठे किलकिलाट करे छे, रथनी पेठे झणकार करे छे, भोंय उपर पग पछाड़े छे, भोंय उपर पाठु लगावे छे, सिंहनी पेठे अवाज करे छे, उछळे छे, पछाड़ा मारे छे, त्रिपदीनो छेद करे छे, डावा हाथने उंचो करे छे, जमणा हाथनी तर्जनी आंगळीवडे अने अंगुठाना नखवडे पण पोताना सूखने विडंबे छे, वांकु पहों करे छे, अने मोटा मोटा कलकलरवरूप शब्दोने करे छे. एम करतो ते चमर, एकलो, कोहने साधे लीधा विना परिघ रत्नने लइने उंचे आकाशमा उड्यो, जाणे अधोलोकने खळभळावतो न होय, भूमितळने कंपावतो न होय, तिरछालोकने खेचतो न होय, गगनतळने फोडतो न होय, ए प्रमाणे करतो ते चमर, क्यांय गाजे छे, क्यांय विजळीनी पेठे सबके ले, क्यांय वरसादनी पेठे वरसे छे, क्यांय धूळनो वरसाद वरसांवे छे, क्यांय अंधकारने करे छे, एम करतो करतो ते चमर उपर चाल्यो जाय छे, जतां जतां तेणे वानभ्यंतर देवोमां त्रास उपजान्यो, ज्योतिषिक देवोना तो वे भाग करी नाख्या अने आत्म For Private and Personal Use Only ३ शतके उद्देशः २ ॥२६०॥ Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२६॥ ***** ३ शतके जोशः२ ॥२६॥ * रक्षक देवोने पण भगाडी मक्या, एम करतो ते चमर रत्नने आकाशमा फेरवतो, शोभावतो ते उत्कृष्ट गतिवडे तिरछे असंग्थ्य द्वीप अने समुद्रोनी बच्चीवच नीकळयो. नीकळीने ज्या सौधर्मकल्प छे, ज्यां सौधर्मावतंसक नामे विमान थे. अने ज्या सुधर्मासमा छ स्यां आध्यो. आवीने तेणे पोतानो एक पग पावरवेदिका उपर मुक्यो अने बीजो एक पग सुधर्मासभामा मूक्यो. तथा पोताना परिघ रत्नबडे मोटा मोटा होकारापूर्वक तेणे इंद्रकीलने प्रणचार कुठलो. त्यारबाद ते चमर आ प्रमाणे बोल्यो के: कहिणं भो सके देविंदे देवराया कहिणंताओचउरासीह सामाणियसाहस्मीओ! जाच कहिणंताओचत्तारि चउरासीइओ आयरकखदेव साहस्सीओ? कहिणंताओअणेगाओ अच्छराकोडीओ अज अजहणामि अजमहेमि अन्ज वहेमि अज मम अवसाओ अच्छाओ वसमुषणमंतुत्तिकातं अणिटुं अकंतं अप्पियं असु. अमणु० अमणा फरुसं गिरं निसिरह, तए णं से सके देविंदे देवराया तं अणिé जाव अमणामं अस्सुयपुव्वं फरसं गिरं सोचा निम्मस आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडि निडाले साहह चमरंअसुरिंदं असुररायं एवं वदासी-हं भो चमरा! असुरिंदा! असुरराया! अपस्थियपत्थया! जाव हीणपुन्नचाउहस्सा अजं न भवसि नाहि ते सुहमत्थीतिकटु तत्व सीहाणवरगए वजं परामुसहरतं जलनं फुडतं तडतडतं उकामहस्माई विणिम्मुयमाणं जालासहस्साई पमुंघमाणं इंगालसहस्साइं पविश्विरमाणं २ फुलिंगजालामालासहस्सेहिं चक्खुविक्खे| बदिहिपडिघायं पकरेमाणं हयवहअइरेगतेयदिपंतं जतिणवेगं फुल्लकिंसयसमाणं महन्भगं भयंकरं चमरस्स हा असुरिंदस्स असुररमो वहाए वजं निसिरह । तते णं से चमरे अमुरिंदे असुरराया तं जलंत जाब भयंकर * For Private and Personal Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥२६२॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वज्रमभिमुर्ह आवयमाणं पासइ पासइत्ता झियाति पिहाइ झियायित्ता पिहाइत्ता तहेव संभग्गमउडविडए सालबहत्था भरणे उपाए अहोसिरे कक्खागयसेयंपिव विणिम्मुयमाणे २ ताए उक्किट्ठाए जाव तिरियमसंस्वेज्जाणं दीवसमुद्दाणं मज्झमज्झेणं वीईवयमाणे २ जेणेव जंबुद्दीवे २ जाव जेणेव असोगवरपायवे जेणेव मम अंतिए तेणेव उवागच्छह २त्ता भीए भयगग्गरसरे भगवं सरणमिति बुयमाणे ममं दोपहवि पायाणं अंतरंसि वेगेण समोवडिए (सू० १४३) (ग्रन्थाग्रम् २००० ) भो ! देवेंद्र, देवराज शक्र क्यां छे ? ते चोरासीहजार सामानिक देवो क्यां ले ? यावत् ते चार चोरासीहजार (३, ३६००० ) अंगरक्षक देवो क्यां छे ? तथा ते क्रोडो अप्सराओ क्यां छे ? आजे हणुं छु, आजे वध करूं छु, ते बधी अप्सराओ जेओ मारे तावे नथी, आजे ढाबे यह जाओ, एम करीने तेवा प्रकारना अनिष्ट, अकांत, अप्रिय, अशुभ, असुंदर, मनने न गमे तेवा अने कानमां खटके तेवा वचनो ते चमरे काठ्यां. हवे ते देवेंद्र, देवराज शक्र तेवा प्रकारनी अनिष्ट यावत्-मनने अणगमती तथा कोइवार नहि सांभळेली अने कानने अप्रिय एवी ते चमरनी वाणी सांभळी, अवधारी रोषे भराणो अने यावत् क्रोधथी धमधम्यो तथा कपाळमां त्रण आड पडे तेम भवां चडावीने ते शक्रे असुरेंद्र, असुरराज चमरने आ प्रमाणे कां केः-हं भो ! मरणना इच्छुक अने यावत्-हीणी पुण्य चौदशने दहाडे जन्मेल असुरेंद्र, असुरराज चमर! आजे तुं न हइश आजे तुं हतो न इतो यह जइश, आज तने सुख नथी, एम करी, त्यांज उत्तम सिंहासन उपर बेठां बेठां ते शक्र इंद्रे वज्र ग्रहण करें. अने जळहळतुं स्फुटतुं, तडतडाट करतु, हजारो उल्कापातने मूकतुं, हजारो जाळोने छोडतुं, हजारो अंगारोने खेखतुं, आगना कणिआ अने जाळाओनी माळाओथी For Private and Personal Use Only ३ शतके उद्देशः २ ॥२६२॥ Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥२६३॥ ३ शतके उशः२ ॥२६॥ |भमावतु, तथा आंखोने अंजावी देतु, आग करतां पण घणुं वधारे तेजथी दीपतुं सौथी सारा वेगवाळ, फुलेला केसुदा जेवू लाल,मोटा भयने उत्पन्न करनारुं अने भयंकर वजू, असुरेंद्र, असुरराज चमरना बध माटे मूक्यु, हवे ते जळहळता भयंकर वजूने सामु आवतुं | जोह, ते असुरेंद्र, असुरराज चमर, आ शुं एम चितवना करे छे तथा 'आर्बु शस्त्र मारे होत तो केबुं ठीक थात' एम स्पृहा करे ? फरीने षण पूर्व प्रमाणे स्पृहा करे छे अने चिंतन करे के. एम करीने तुरतज ते मुकुटथी खरी गएल छोगावालो, आलंबवाळा हाथना | घरेणावाळो, अमरेंद्र, असुरराज चमर, पगने उंचा राखीने माथाने नीचे करीने, जाणे शरीरमा परसेवो न वळ्यो होय एम परसेवाने लूछतो लूछतो ते तीव्र गतिवडे तिरछे असंख्य द्वीप तथा समुद्रोनी वचेथी पसार थतो जे तरफ जंबूद्वीप छे अने जे तरफ उत्तम अशोकवृक्ष छे. तथा जे तरफ हुं (महावीर) छु ते तरफ आत्री बीनलो अने भयथी गळगय स्वरवाळो 'हे भगवन् !' तमे मारुं शरण | छो' एम बोलतो ते चमर मारा बन्ने पगना बच्चे शीघपणे वेगपूर्वक पडयो.॥१४३ ॥ तए णं तस्स सकस्स देविंदस्म देवरन्नो इमेयारूवे अज्झस्थिए जाव समुप्पज्जित्था-नो खलु पभू चमरे असुरिंदे असुरराया नो खलु समत्थे चमरे असरिंदे असुरराया नोखलु विसए चमरस्स असुरिंदस्स असुररन्नो अप्पणो निस्साए उड्ढं उप्पइत्ता जाव सोहम्मो कप्पो, णण्णस्थ अरिहंते वा अरिहंतचेइय.णि वा अणगारे वा भावियप्पणो णीसाए उड्डे उप्पयति जाव सोहम्मो कप्पो, तं महादुग्वं खलु तहारूवाण अरहताणं भग. वंताणं अणगाराण य अच्चासायणाएत्तिकटु ओहिं पउंजति २ ममं ओहिणा आभोएति २ हा हा अहो पाहतोऽहमंसित्तिकटु ताए उनिहाए जाव दिव्वाए देवगतीग बजस्स बीहिं अणुगच्छमाणे २ तिरियमसंखेवाण For Private and Personal Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३ शतके उद्देशः२ ॥२६४|| ॥२६॥ दीवसमुदाणं मज्झमझेणं जाव जेणेष असोगवरपायवे जेणेव ममं अंतिए तेणेष उवागरछह २ ममं चउरंगुव्याख्यालमसंपत्तं वजं पडिसाहरइ (सूत्रं १४४) प्रज्ञप्तिः | हवे आ वखते ते देवेंद्र, देवराज शक्रने आ ए प्रकारनी यावत्-संकल्प उत्पन्न थयो के, असुरेद्र असुरराज चमर, प्रभु शक्ति वाळो नथी, असुरेंद्र, असुरराज चमर, समर्थ नथी तेम असुरेंद्र, अमरराजनो विषय नथी के, पोताना बळथी सौधर्मकल्पसुधी उंचे आवी शके. परंतु हा, जो तेणे अरिहंत, अरिहंतना चैत्यो के भावित आत्मा अनगारोनो आशरो लीघो होय तो ते उपर आवी शके के, पण ते शिवाय उपर आववा तेनुं सामर्थ्य नथी. जो ते चमर कोइ अरहंत भगवंत के भावित आत्मा अनमार महापुरुषनो आशरो लइने उपर आव्यो होय तो तो मारा फेंकेल वजूद्वारा ते अरहंत भगवंत के महापुरुषनी आशातना थशे, अने एम थर्बु ते मारा | माटे दुःखरूप छे, एम विचारी ते देवेंद्र, देवराज शके पोताना अवधिज्ञाननो प्रयोग कयों अने ते द्वारा तेणे मने (श्रीमहावीरने) जोयो. मने जोइने तुरतज 'अरे। रे अहो!!! हुं मरी गयो' एम करी ते उत्कृष्ट यावत्-दिव्य देवगतिवडे वजनी पाछळ नीकळ्यो, | ते शक इंद्रे तिरछे असंख्य द्वीप अने समुद्रोनी बच्चे यावत्-जे तरफ उत्तम अशोकर्नु वृक्ष हतुं अने जे तरफ हुं महाबीर हतो ते तरफ आवीने माराथी मात्र चार आंगळ छेटे रहेलं वजू लइ ली . ॥ १४४ ॥ | अवियाई मे गोयमा! मुहिवारण केसग्गे वीइत्था, तए णं से सके देविंदे देवराया वजं पडिमा हरिता ममं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ २ वंदइ नमसइ २ एवं व यासी-एवं खलु भंते ! अहं तुम्भं नीसाए चमरेणं असुरिंदेणं असुररमा सयमेव अबासाइए, तए णं मए परिकुविएणं समा For Private and Personal Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२६५॥ ३ शतके जोशः२ | ॥२६५॥ Cc- मेणं चमरस असुरिंदस्स असुररन्नो बहाए बजे निसष्टे, तए णं मे इमेयारूवे अज्झथिए जाच समुप्पजित्था-नो खलु पभू चमरे असुरिंदे असुरराया तहेव जाव ओहिं पउंजामि देवाणुप्पिए ओहिणा आभोएमि हा हा अहो हतोमीतिकहु ताए उक्किट्ठाए जाव जेणेव देवाणुप्पिए तेणेव उवागच्छामि देवाणुप्पियाणं चउरंगुलमसंपत्तं बज पडिसाहरामि वजपडिसाहरणट्ठयाए णं इहमागए इह समोसने इह संपत्ते इहेव अज उवसंपबित्ताणं विहरामि, तं खामेमि गं देवाणुप्पिया! ग्वमंतु णं देवाणुपिया। ग्वमंतु मरहंतु णं| देवाणुप्पिया! णाइभुजो एवं पकरणयाएत्तिकटु ममं वंदइ नमसह २ उत्तरपुरच्छिमं दिसीभार्ग अवकमइ २ | वामेणं पादेणं तिक्खुत्तो भूमि दलेइ २ चमरं असुरिदं असुरराय एवं वदासी-मुकोऽसि णं भो चमरा ! असु. | रिंदा असुरराया ! समणस्स भगवओ महावीरस्स पभावेणं, न हि ते दाणिं ममाओ भयमस्थीतिकटु जामेष दिसि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए ॥ (सू० १४५) ४ हे गौतम ! ज्यारे ते शके वज़ लीधुं त्यारे तेणे एवा वेगथी मुठीवाळी हती के ते मुठीना वायुथी मारा कशाग्र वीजाया हवे | स देवेंद्र देवराज शके वजूने लइने, मने त्रण प्रदक्षिणा करी पछी तेणे भने नमन करी आ प्रमाणे का के:-हे भगवन् ! तमारो आशरो लइने असुरेंद्र, अमुरराज चमरे मने मारी शोभाथी भ्रष्ट करवो धार्यों हतो. तेथी में क्रोधित थइ असुरेंद्र. असुरराज चमरने मारवा तेनी पाछळ वजू मृत्यु, त्यारपछी मने आ ए प्रकारनो आध्यात्मिक यावत्-संकल्प उत्पन्न थयो केः-असुरेंद्र, अमरराज चमर पोताना बळथी उपर न आवी शके. पछी में अवधिज्ञाननो प्रयोग कयों अने ते द्वारा में आप देवानुप्रियने जोया के तुरतज 'हा! २. ५२-4 For Private and Personal Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandit व्याख्या प्राप्ति ॥२६६॥ उमेशः२ ॥२६६|| हो !, अहो !! हुं मराइ गयो' एम विचारी ते उत्कृष्ट दिव्यगतिवडे ज्यां आप देवानुप्रिय विराजो छो त्या आल्यो अन आप देवानुप्रिययी चार आंगळ दूर रहेलं वजू में लइ लीधुं. वज़ लेवाने माटे अहीं आव्यो छु, अहीं समवसर्यो छु, अहीं संप्राप्त थयो ई, अने अहींज उपसंपन्न थइने विहरु छु, तो हे देवानुप्रिय ! हुँ क्षमा मागं, हे देवानुप्रिय ! आप क्षमा आपो, हे देवानुप्रिय ! आप | क्षमा करवाने योग्य छो. हु वारंवार एम नहीं करूं-एम करीने मने वांदी, नमी ते शक्र इंद्र उत्तरपूर्वना दिग्भागमा चाल्यो गयो. त्यां जइने तेणे (शके) पृथ्वी उपर त्रणवार डाचो पग पछाडयो अने असुरेंद्र, असुरराज चमरने आ प्रमाणे कई केः हे अमुरेंद्र, असुरराज चमर ! श्रमण भगवंत महावीरना प्रभावथी तुं बची गयो छे, अत्यारे माराथी तने जरापण भय नथी, एम करी ते शक्र, जे दिशामांथी आव्यो हतो तेज दिशामा पाछो चाल्यो गयो.।। १४५॥ भंतेत्ति भगवं गोयमे समर्ण भगवं महावीरं वंदति २ एवं वदासी-देवे णं भंते! महिड्डीए महज्जुतीए जाव महाणुभागे पुवामेव पोग्गलं खिवित्ता पम् तमेव अणुपरियहित्ताणं गिण्हित्तए ?, हंता पभू ।। से केणटेणं भंते ! जाव गिणिहत्तए?, गोयमा! पोग्गले निक्खित्ते समाणे पुब्बामेव सिग्धगती भवित्ता ततो पच्छा मंदगती, भवति, देवे णं महिड्डीए पुबिपिय पच्छावि सीहे सीहगती चेव तुरियतुरियगती चेव, से तेणटुणं पभू गेण्हित्तए । जति णं भंते ! देविंदे महिड्दीए जाव अणुपरियहित्ताणं गेण्हित्तए कम्हा णं भंते! सक्के ण देविंदे देवरना (राया)चमरे असुरिंदे असुरराया नो संचाएति साहत्यि गेण्हित्तए ?, गोयमा! असुरकुमाराणं देवाणं अहे गतिविसए सीहे २ चैव तुरिए २ चेव, उडूढं गतिविसए अप्पे २ चेव मंदे मंदे चेव, वेमा For Private and Personal Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir WI ३ शतके उमेशः२ ॥२६७॥ A % A णियाणं देवाणं उड्ढें गतिविसए सीहे २ चेव तुरिए २ चेव, अहे गतिविसए अपे२ चेव मंदे २ चेव, जावतियं व्याख्या- | खेत्तं सके देविदे देवराया उड्ढे उप्पयति एकेणं समएणं तं वजे दोहिं. ज बज दोहिं तं चमरे तीहि, सब्बप्रज्ञप्तिः जत्थोवे सकस्स देविंदस्स देवरन्नो उड्डलोयकंडए, अहेलोयकंडए संखेनगुणे, जावतियं खत्तं चमरे असुरिंदे असु॥२६७॥ रराया अहे ओवयति एकेणं समएणं तं सक्के दोहिं, जं सके दोहितं बन तीहिं, सम्वत्थोवे चमरस्स असरिंदस्स असुररन्नो अहेलोयकंडए, उड्ढलोयकंडए संखेजगुणे । एवं खलु गोयमा! सकेणं देविदेणं देवरपणा चमरे असुरिंदे असुरराया नो संचापति साहस्थि गेणिहत्तए । [प्र०] हे भगवन् ! एम करी श्रमण भगवंत महाबीरने बांद्या, नमस्कार कर्यों अने तेओए आ प्रमाणे क{ के:-हे भगवन् ! देव मोटी ऋद्धिवाळो छे, मोटी कांतिवाळो छे अने यावत्-मोटा प्रभाववालो के के, जेथी ते पूर्व-पडेलांज पुद्गलने फेंकीने पछी | तेनी पाछळ जइने तेने ग्रहण करवा समर्थ छ ? [उ.] हे गौतम ! हा, देव तेम करवा समर्थ हे. [प्र०] हे भगवन् ! पहेला फेकेल पुद्गलने, देव, पाछळ जइने लइ शके के, तेनुं शुं कारण ? [उ०] हे गौतम ! ज्यारे पुद्गल फेंकवामां आवे रे न्यारे तेनामां शरु| आतमांज शीघ्रगति होय छे. अने पछी ते मंदगतिवाडं थइ जाय छे. त्या मोटी ऋद्धिवानो देव तो पहेलो पण अने पछी पण शीघ्र होय छे. शीघ्र गतिवाळो होय छे, त्वरित होय के अने त्वरित गतिवाळो होय छे, माटे ए कारणथीज यावत्-देव, फेंकेल पुद्गलने पण तेनी पाछळ जइने लइ शके हे. [प्र०] हे भगवन् ! जो मोटी ऋद्धिवालो देव, यावत्-पाछळ जइने लइ शके छे तो पछी हे भगवन् ! देवेंद्र, देवराज शक्र, पोताना हाथे असुरेंद्र, असुरराज चमरने पकडबा केम न समर्थ निवडयो ! [उ०] हे गौतम ! A % % For Private and Personal use only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रज्ञप्तिः | ३ शतके उद्देशः२ ॥२६८॥ ॥२६८॥ असुरकुमार देवोनो नीचे जवानो विषय शीघ, शीघ्र तथा त्वरित होय छे अने उंचे जवानो विषय अल्प, अल्प तथा मंद, मंद होय २. वैमानिक देवोनो उंचे जवानो विषय शीघ्र, शीघ्र तथा त्वरित,त्वरित होय छे अने नीचे जवानो विषय अल्प, अल्प तथा मंद, मंद | होय छे-एक समयमा देवेंद्र, देवराज शक्र, जेटलो भाग उपर जइ शके छ तेटलंज उपर जवाने क्जने के समय लागे छे अने तेटलुंज उपर जवाने चमरने ऋण समय लागे छे अर्थात् देवेंद्र, देवराज शक्रनुं उघलोककंडक उंचे जवाने थतुं काळमान-सौथी थोई| के अने अधोलोककंडक तेना करतां संख्येयगणुं छे. एक समयमा असुरेंद्र, अमुरराज चमर, जेटलो भाग नीचे जइ शके छे तेटलुज नीचे जवाने शक्रने बे समय लागे छे अने तेटलुं नीचे जवाने वजूने त्रण समय लागे छ अर्थात् असुरेंद्र, असुरराज चमरनुं अधोलोककंडक सौथी थोडं छे अने उर्ध्वलोककंडक तेना करता संख्येय गणु छे. हे गौतम ! ए कारणने लइने देवेंद्र, देवराज शक्र हा पोताना हाथे असुरेंद्र, असुरराज चमरने पकडया समर्थ न नीवडयो. सकस्स ण भंते ! देविंदस्स देवरन्नो उड्ढे अहे तिरियं च गतिविसयस्स कयरेशहितो अप्पे वा बहुए वा तुल्ले है वा विसेसाहिए वा!, गोयमा! सब्बत्यो खेत्तं सके देविदे देवराया अहे ओवयह एकेण समएणं, तिरियं संखज्जे | भागे गच्छह, उड्ढं संखजे भागे गच्छद। चमरस्सणंभंते ! असुरिंदस्स असुररन्नो उड्दं अहे तिरियं च गतिवि|सयस्स कयरे रहिंतो अप्पे वा बहुए वा तुल्ले वा विसे साहिए वा!, गोयमा! सव्वत्थोवं खेत्तं चमरे असुरिदे असुरराया उड्दं उप्प यति एक्केणं समएणं, तिरियं संखेने भागे गच्छइ, अहे संखेजे भागे गच्छद, वजं जहा सकस्स देविंदस्स तहेव नवरं विसेसाहियं कायवं । सक्कस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरन्नो ओवयणकालस्स य + 12-% A CC For Private and Personal Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२६९॥ गव्यूतत्रिभागापेक्षया गम्यगन्त्रपेक्षया उप्पयणकालस्स य कयरे हितो अप्पेटा | २४ । १२ । ८ . ऊर्ध्व तिर्यक | अधः | वा बहुए वा तुल्ले वा विसंसाहिए था,शतके १८ १० । १६ । इंद्रः यो योग०२ यो०११ गोयमा ! मम्वत्थोवे मकस्म देविंदस्म 31 नरेशः२ १२ । ८ । २४ वगं यो०१ ग.३. ग. वरना उड्ड उप्पयणकाल, आवयण ||२६९॥ • शक्रः वज्रं चमरः चमरः ग० २१ गदा यो काले संखेनगुणे ॥ चमरस्सवि जहा सक तिर्यक अधः। . . इंद्रः वजः चमरः स्म, वरं मब्वत्थोवे ओवषणकाले, १८ १२ शक्रः अर्द्ध यो० २ योग० २. उप्पयणकाले मखेजगुणे ॥ वज्जस्म पुच्छा, गोयमा सम्वत्थोवे उपयणकाले, ओववजं तिर्यक योग० ३१ ग०५: त्रि यणकाले विसेसाहिए । एयस्मणं भंते! न्यूनग०६ बजस्स बजाहिवइस्स चमरस्म य असु१० । २४ चमरः । अधः योग०२.यो०२ रदस्म असुररना आवयणकालस्स य उप्पयणकालस्स यकयरेरहिंतो अप्पे वा ४१, गोयमा ! सकस्स प उप्पयणकाले चमरस्स य ओवयणकाले एए णं दोनिवि तुल्ला सम्वत्थोवा, सकस्स य ओबयणकाले वनस्स य उप्पयणकाले एसणं दोण्हवि तुल्ले संखेनगुणे, चमरस्स उ उप्पयणकाले वजस्स य For Private and Personal Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥२७॥ ओवयणकाले एस णं दोण्हवि तुल्ले विसेसाहिए (मू० १४६) [प्र.] हे भगवन् : देवेंद्र, देवराज शक्रनो उर्ध्वगतिविषय, अधोगतिविषय अने तिर्यग्गतिविषय ए बधामा कयो विषय ३ शतके कया विषयथी अल्प छ, बहु छे, सरखो छ के विशेषाधिक छे ? [उ.] हे गौतम ! एक समये देवेंद्र, देवराज शक्र सौथी थोडो उद्देशः२ भाग उपर जाय छ, तिरछु, ते करतां संख्येय भाग जाय के अने नीचे पण संख्येय भाग जाय छे. [प्र०] हे भगवन् ! अमुरेंद्र, IN२७०॥ असुरराज चमरनो उर्धगतिविषय, अधोगतिविषय अने तिर्यगगतिविषय, ए बधामा कयो विषय कया विषयथी अल्प छे, बहु छ, सरखो के विशेषाधिक छे ? [उ०] हे गौतम ! असुरेंद्र, असुरराज चमर, एक समये थोडो भाग उपर जाय छे, तिरछ, ते करतां संख्येय भाग जाय छे. अने नीचे पण संख्येय भाग जाय हे. वजू संबंधी गतिनो विषय शक्रनी पेठे जाणवो. विशेष एके गतिनो विषय विशेषाधिक करवो. [प्र०] हे भगवन् । देवेंद्र, देवराज शक्रनो नीचे जवानो काळ अने उपर जबानो काळ ए वे काळमां कयो काळ कोनाथी थोडो छे, वधारे छे, सरखो के, अने विशेषाधिक छे ? [उ.] हे गौतम ! देवेंद्र, देवराज शक्रनो उपर जवानो काळ सौथी थोटो छे अने नीचे जवानो काळ संख्येय गुण छे. चमर संबंधे पण शक्रनी पेठे जाणव. विशेष ए के, तेनो नीचे जवानो काळ सौथी थोडोळे अने उपर जवानो काळ संख्येय गुण छ [प्र०) हे भगवन् ! वजूना ए बने काळमां कयो काळ थोडोके, वधारे छे, सरखो, अने विशेषाधिक छे ? [उ.] हे गौतम ! बजूनो उंचे जवानो काळ सौथी थोडो छे अने नीचे जवानो काळ विशेषाधिक छे. [४०] हे भगवन् ! ए वजू, वजाधिपती-इंद-अने अमुरेंद्र अमरराज चमर, ए वधानो नीचे जवानो काळ अने उंचे जवानो काळ, ए बेमा कयो कोनाथी अल्प छ, वधारे छ, सरखो के के विशेषाधिक के ? [उ.] हे गौतम ! शक्रनो उपर जवानो For Private and Personal Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२७॥ ३ शतके सोशः२ ॥२७॥ काळ अने चमरनो नीचे जवानो काळ, ए बने सरखा हे अने सौथी थोडा के, शक्रनो नीचे अरानो काळ अने वचनो उपर जवानो काळ, ए बन्ने सरखा छे अने संख्येयगणा हे. चमरनो उंचे जवानो काळ अने वजनो नीचे जवानो काल, ए बन्ने | सरखा अने विशेषाधिक छे. ॥ १४६ ।। तए णं चमरे असुरिंदे असुरराया बजभयविप्पमुक्के सोणं देविंदेणं देवरना महणा अवमाणेणं अवमाणिए समाणे चमरचंचाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए चमरंसि सीहासणंसि ओहयमणसंकप्पे चिंतासोयसागरसंपविढे करयलपत्हस्थमुहे अग्झाणोवगए भूमिगयदिट्टीए नियाति, तते णं तं चमरं असुरिंद असुररायं सामाणियपरिसोववन्नया देवा ओहयमणसंकप्पं जाव झियायमाणं पासंति २ करयल जाव एवं बयासीकिपणं देवाणुपिया! ओहयमणसंकप्पा जाब झियायह?, तए णं से चमरे अमरिंदे असुर० ते मामाणियपरिसोववन्नए देवे एवं वयासी-एवं स्वलु देवाणुप्पिया! मए समणं भगवं महावीरं नीसाए सके देविंदे देवराया मयमेव अचासादिए, तए णं तेण परिकुविएणं ममाणेणं मम वहाए वजे निसिढे, तं भरणं भवतु देवाणुप्पिया! समणस्स भगवओ महावीरस्स जस्म मम्हिमनुपभावेण अकिटे अब्धहिए अपरिताविए इहमागए इह समोसड्ढे इह संपत्ते इहेब अज्ज उपसंपत्तिाणं विहरामि, हवे वतना भयथी मुक्त थएलो, देवेंद्र, देवराज शक्रद्वारा मोटा अपमानथी अपमानित थएलो, हणाएल मानसिक संकल्पवाळो, चिंता अने शोकरूप समुद्रमा पेटेलो, मुखने हथेली उपर टेकवी राख्नार, आर्तध्यानने पामेलो अने नीचे मांडेल नजरवाळो ते For Private and Personal use only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetit.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir ध्याख्या ३ शतके | उद्देशः२ ॥२७॥ १२७२।। माटे मारो लदने देवेंद, उत्पन्न थयेल देवाला मानसिक र अमुरेंद्र, असुरराज चमर, चमरखंचा नाममी राजधानीमा मुधर्मासभामां, चमर नामना सिंहासनमा बेसी विचार करे छे. पछी हणायेल मानसिक संकल्पवाळा अने यावत्-विचारमा पडेला ते असुरेंद्र, अमरराज चमरने जोइ सामानिकसभामा उत्पन्न थयेल देवोए हाथ जोडीने तेने आ प्रमाणे का के:-हे देवानुप्रिय! तमे आज हणाएला मानसिक संकल्पवाळा थइ यावत्-शुं विचार करो छो? त्यारे असुरेंद्र, असुरराज चमरे ते सामानिकसभामा उत्पन्न धयेल देवोने आ प्रमाणे कथु के:-हे देवानुप्रियो ! में मारी पोतानीज मेळेज श्रमण भगवंत महावीरनो आशरो लइने देवेंद्र, देवराज शक्रने तेनी शोभाथी भ्रष्ट करवो धार्यो हतो. त्यारे तेणे (शक) मारा उपर कोप करी मने मारवा माटे मारी पाछळ वजू फेंक्यूं. पण हे देवानुप्रियो ! श्रमणभगवंत महावीरनुं भलं याओ, के जेना प्रभावथी हुँ अक्लिष्ट रह्यो छु, अव्यथित-पीडा विनानो रह्यो छु तथा परिताप पाम्या शिवाव अहीं आव्यो मु. अहीं | | समवसर्यों छ. अहीं संप्राप्त थयो फु अने अहींज उपसंपन्न थइने विहरु छु. तंगच्छामोणं देवाणुप्पिया! समण भगवं महावीरं वंदामोणमंसामो जाव पज्जुवासामोत्तिकहु चउसट्ठीए सामाणियसाहस्सीहिं जाव सब्धिडीए जाव जेणेव असोगवरपायवे जेणेव ममं अंतिए तेणेव उवागच्छइ २ ममं तिक्खुत्तोआयाहिणं पयाहिणं जावनमंसित्ता एवं वदासी-एवं स्वल भंते ! मए तुम्भं नीसाए सके देविंदे देवराया सयमेव अचासादिए जाव तं भई णं भवतु देवाणुप्पियाणं मम्हि जस्स अणुपभावेणं अकिडे जाव विहरामि, तं स्वाममि ण देवाणुप्पिया! जाव उत्तरपुरच्छिम दिसीभार्ग अवक्कमइ २त्ता जाव बत्तीसइबद्धं नहविहिं उवदंसेइ २ जामेव दिसिं पाउन्भूए तामेव दिसिं पडिगए, एवं खलु गोयमा ! चमरेणं अंसुरिंदेणं असुररना सा For Private and Personal Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |दिवा देविड्ढी लद्धा पत्ता जाव अभिसमन्नागया, ठिती सागरोवर्म, महाविदेहे वासे सिमिहिति जाव अंतं व्याख्याकाहिति॥ (मनं १४७)॥ इशतके प्रज्ञप्तिः तो हे देवानुप्रियो ! आपणे वधा जइए अने श्रमणभगवंतमहावीरने चांदीए, नमीए, यावद-तेओनी पर्युपासना करीए, एमोशः२ ॥२७३॥ तकरी ते, चोसठाजार सामानिक देयो साथे यावत्-सर्व ऋद्धिपूर्वक यावत्-जे तरफ अशोकनु उत्तम वृक्ष के अने जे तरफ हुं महावीर ॥२७३॥ छु ते तरफ आवी मने प्रणवार प्रदक्षिणा देह-नमस्कार करी ते आ प्रमाणे बोल्या के:-हे भगवन् ! में मारी पोतानी जातेज तमारो आशरो लइने देवेंद्र, देवराज शकने तेनी शोभाथी भ्रष्ट करवो धार्यो हतो यावत्-आप देवानुप्रियर्नु भलु थानो के जेना प्रभाव हुँ । क्लेश पाम्या शिवाय यावत-विहरूं छु. तो हे देवानुप्रिय ! ९ ते संबंधे आपनी पासे क्षमा मागं छु यावत्-एम कही ते इशानवणामा चाल्यो गपो यावत्-तेणे यत्रीश जातनो नाट्यविधि देखाइयो अने पछी ते, जे दिशामांथी आन्यो हतो, तेज दिशामां पाछो । चाल्यो गयो. हे गौतम ! अमरेंद्र, असुरराज चमरे ते दिव्य देवऋद्धि ए प्रमाणे लब्ध करी, प्राप्त करी अने यावत्-सामे आणी. ते चमरेंद्रनी आवरदा सागरोपमनी के अने ते महाविदेहक्षेत्रमा सिद्ध थशे यावत्-सर्व दुःखनो नाश करशे ॥ १४७॥ किंपत्तियं गं भंते ! असुरकुमारा देवा उड्ढं उप्पयंति जाव सोहम्मो कप्पो, गोयमा ! सेसि गं देवाणं अहुणोचवन्नगाण वाचरिमभवत्थाण वा इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पजइ-अहोणं अम्हहिं दिव्चा देविड्दी लद्धा पत्ता जाव अभिसमझागया जारिसिया ण अम्हेहिं दिव्या देविड्ढी जाव अभिसमन्नागया तारिसिया णं सकेणं देविदेणं देवरना दिवा देविड्दी जाब अभिसमन्नागया जारिसिया णं सकेणं देविंदेणं For Private and Personal Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः उद्देशः२ ॥२७४ देवरना जाव अभिस नागया तारिसिया णं अम्हेहिवि जाव अभिसमन्नागया, तं गच्छामो णं सकस्स देवि- | ३ शतके दस्स देवरन्नो अंतियं पाउन्भवामो, पासामो ताव सकस्स देविंदस्स देवरन्नो दिव्वं देविढि जाव अभिसमन्नागयं, पामतु ताव अम्हवि सके देविंदे देवराया दिव्वं देविढि जाब अभिसमण्णागयं, तं जाणामो ताव सक ॥२७४॥ * स्स देविंदस्स देवरन्नो दिव्वं देविइिंढ जाव अभिसमन्नागयं, जाणउ ताव अम्हवि सक्के देविंदे देवराया दिव्वं देदिदि जाव अभिसमपणागयं, एवं खलु गोयमा! अरकुमारा देवा उड्दं उप्पयंति जाव सोहम्मो कप्पो। हा सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति ॥ (सू० १४८) चमरो समत्तो ॥ ३-२।। [प्र०] हे भगवन् ! असुरकुमार देवो यावत् सौधर्मकल्पसुधी उंचे जाय छे तेनु शुं कारण ? [उ.] हे गौतम ! ते ताजा उत्पन्न थएल के मरवानी तैयारीवाला देवोने आए प्रकारनो आध्यात्मिक यावत्-संकल्प उत्पम थाय छे के, अहो!!! अमे दिव्य देवऋद्धि लन्ध करी छे, प्राप्त करी छे अने सामे आणी के. जेवी दिव्य देवऋद्धि अमे सामे आणी छे, तेवी दिव्य देवऋद्धि देवेंद्र, देवराज शके पण यावत्-सामे आणी छे तेवीज दिव्य देवऋद्धि देवेंद्र. देवराज शके सामी आणी छे. अने जेवी दिव्य देवऋद्धि| देवेंद्र, देवराज शक्रे सामी आणी छे तेवीज दिश्य देवऋद्धि अमे पण सामे आणी छे. तो जइए अने ते देवेंद्र, देवराज शक्रनी पासे प्रकट थइए अने ते देवेंद्र, देवराजे सामे आणेली दिव्य देवऋद्धिने आपणे जोइए तथा देवेंद्र, देवराज शके अमे सामे आणेली दिव्य देवऋद्धिने जुए. वळी देवेंद्र, देवराज शके सामे आणेली दिव्य देवऋद्धिने आपणे जाणीए अने देवेद्र, देवराज शक्रं पण सामे पावत् दिव्य देवऋद्धिने जाणे. हे गौतम! ए कारणने लइने असुरकुमार देवो यावत्-सौधर्मकल्पमृधी उंचे जाय छे. हे भगवन् ! ते || LA. For Private and Personal Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रशतिः ॥२७५॥ www.kobatirth.org ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, चमर संबंधी वृतांत पूरो भयो. ॥ १४८ ॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमूत्रना श्रीजा शतकमा बीजा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण पयो. 0 उद्देशक ३. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( बीजा उद्देशक्रमों चमरना उस्पात विषे हकीकत कही छे. अने ते 'उत्पात-उंचे जनुं' एक प्रकारनी क्रिया गणाय छे. माटे हवे बांचक वर्गने सहेज शंका याय के, 'क्रिया' ए शुं ? तो अहीं 'क्रियानुं' स्वरूप जणावीने ते संदेहना निवारण माटे आ श्रीजा देशकानी शरुआत थाय छे. ) तेणं काले नेणं समएणं रायगिहे नाम नगरे होत्था जात्र परिसा पडिगया । तेणं कालेणं लेणं समर्पणं जाव अंतेवासी मंडियपुत्ते णामं अणगारे पगतिभद्दए जाव पज्जुवासमाणे एवं वदासी काळे, ते समये राजगृह नामे नगर हतुं यावत्-सभा धर्मकथा श्रवण करीने पाछी गई.' ते काळे ते समये यावत्-मगवंतना मंडितपुत्र नामना मद्रस्वभाववाळा शिष्य यावत् पर्युपासना करतां आ प्रमाणे बोल्याः कति णं भंते! किरियाओ पण्णत्ताओ, मंडियपुत्ता ! पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तंजहा-काइया अहिगरणिया पाउसिया पारियाबणिया पाणावायकिरिया । काहया णं भंते! किरिया कतिबिहा पण्णत्ता?, मंडियपुत्ता! दुबिहा For Private and Personal Use Only ३ शतके उद्देशः ३ ॥२७६॥ Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२७६॥ पण्णत्ता, संजहा-अणुवरयकायकिरिया य दुप्पउत्तकायकिरिया य । अहिगरणिया णं भंते ! किरिया कतिविहा हापण्णत्ता, मंडियपुत्ता! दुबिहा पण्णत्ता, तंजहा-संजोयणाहिगरणकिरिया य निव्वत्तणाहिगरणकिरिया य||३ शतके पाओसिया णं भंते ! किरिया कतिविहा पण्णत्ता, मंडियपुत्ता ! दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-जीवपाओसिया उद्देशः३ य अजीवपादोसिया य। पारियावणिया गं भंते ! किरिया कइविहा पण्णत्ता?, मंडियपुत्ता! दुविहा ॥२७६॥ ६ पण्णत्ता, संजहा-सहत्थपारियावणिया य परहत्यपारियावणिया य । पाणाइवायकिरिया गं भंते ! पुच्छा, पाणाइवायकिरिया कइविहा पण्णता?, मंडियपुत्ता! दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-सहत्यपा० परहत्थपा. किरिया य ॥ (मू. १४९)॥ [प्र.] हे भगवन् ! केटली क्रियाओ कही छे ? [उ.] हे मंडितपुत्र ! क्रियाओ पांच प्रकारनी कही छे. ते आ प्रमाणे:-कायिकी, अधिकरणिकी, प्रादेषिकी, पारितापनिकी, अने प्राणातिपातक्रिया. [प्र०] हे भगवन् ! कायिकी क्रिया केटला प्रकारनी कही छे ? [उ०] हे मंडितपुत्र ! कायिकी क्रिया के प्रकारनी कही छे. अनुपरतकायक्रिया अने दुष्प्रयुक्तकायक्रिया. [प्र०) हे भगवन् ! आधिकरणिकी क्रिया केटला प्रकारनी कही छे ? [उ०] हे मंडितपुत्र ! आधिकरणिकी क्रिया वे प्रकारनी कही :- १ संयोजनाधिकरणक्रिया अने २ निवर्तनाधिकरणक्रिया. [म०] हे भगवन् ! प्राद्वेषिकी क्रिया केटला प्रकारनीकही छे ! [उ०] हे मंडितपुत्र ! प्राद्वेषिकी क्रिया में प्रकारनी कही बे. ते आ प्रमाणे:-जीवप्रादेषिकी क्रिया अने अजीवप्रादेषिकी क्रिया. [प्र.] हे भगवन् ! पारितापनिकी क्रिया केटला प्रकारनी कही छे ! [उ०] हे मंडितपुत्र ! पारितापनिकी क्रिया के प्रकारनी कही के:- स्वहस्त पारितापनिकी अने For Private and Personal Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२७॥ शतके उमेशः३ | ॥२७॥ परहस्तपारितापनिकी. [प्र०] हे भगवन् ! प्राणतिपात क्रिया केटला प्रकारनी कही छे ? [36] है मंडितपुत्र प्राणातिपात क्रिया बे प्रकारनी कही छे, ते आ प्रमाणे:-स्वहस्तप्राणातिपातक्रिया अने परहस्तप्राणातिपातक्रिया. ।। १४९ ।। पुब्धि भंते! किरिया परछा वेदणा पुन्धि वेदणी पच्छा फिरिया!, मंडियपुत्ता! पुब्धि किरिया पच्छा वेदणा, णो पुब्धि वेदणा पच्छा किरिया ।। (सूत्रं १५०)। [प्र०] हे भगवन् ! पहेलां क्रिया थाय अने पछी वेदना थाय के पहेला वेदना थाय अने पछी किया थाय ? [उ०] हे मंडितपुत्र ! पहेलो क्रिया थाय अने पछी वेदना थाय, पण पहेला घेदना थाय अने पछी क्रिया थाय' एम न बने. ॥ १५० ।। अस्थि णं भंते! समणाण निग्गंधाण किरिया काइ, हता! अस्थि । कहं णमंते! ममणाणं निग्गंथाण | किरिया कजइ ?, मंडियपुत्ता! पमायपचया जोगनिमित्तं च, एवं खलु समणाणं निग्गंधाणं किरिया कजति ॥ (सूत्रं १५१)॥ [0] हे भगवन् ! श्रमण निर्गथोने क्रिया होय ! [उ०] हे मंडितपुत्र ! हा होय. [प्र.] हे भगवन् । श्रमण निगथोने केवी | रीते क्रिया होय ? [उ.] हे मंडितपुत्र! प्रमादने लीथे अने योगना-शरीरादिकनी प्रवृत्ति निमित्ते श्रमण निग्रंथोने पण क्रियाओ होय छे.॥ १५ ॥ जीवे णं भंते ! सया समियं एयति वेयति चलति फंदर घट्टइ खुम्भह उदीरइ तं भावं परिण|मति ?, हन्ता ! मंडियपुत्ता! जीवे णं सया समिय एयति जाव तं तं भावं परिणमइ । जावं च ण भंते ! से जीवे For Private and Personal Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥२७८॥ | ३ शतके उद्देशः३ ॥२७८॥ CAR 4562- सया समितं जाव परिणमइ तावं च णं तस्स जीवस्स अंते अंतकिरिया भवति?, णो तिणढे समढे, से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ-जावं च णं से जीवे सया समितं जाव अंते अंतकिरिया न भवति !, मंडियपुत्ता! जावं च ण से जीवे सया समितं जाव परिणमति तावं च णं से जीवे आरंभह सारंभह समारंभइ आरंभे | वदृइ सारंभे वह समारंभे वहइ आरंभमाणे सारंभमाणे समारंभमाणे आरंभेवमाणे सारंभे वहमाणे समारंभ वहमाणे वरणं पाणाणं भूयाण जीवाणं सत्ताणं दुक्खावणयाए सोयावणयाए जूरावणयाए तिप्पावणयाए पिहावणयाए परियावणयाए वहइ, से तेण?णं मंडियषुत्ता! एवं बुच्चइ-जावं च णं से जीवे सया समियं एथति जाव परिणमति तावं च णं तस्स जीवस्स भंते अंतकिरिया न भवइ । [4] हे भगवन् ! जीव, हमेशां मापपूर्वक कंपे छे, विविध रीते कंपे छे, एक ठेकाणेथी बीजे ठेकाणे जाय छ, स्पंदन क्रिया करे छे. पधी दिशाओमां जाय छे, थोम पामे छे, प्रबळतापूर्वक प्रेरणा करे छे अने ते ते भावने परिणमे छे ? [प्र.] हे मंडितपुत्र! हा, जीव हमेशां मापपूर्वक कंपे छे, अने ते ते भावने परिणमे के.[प्र.] हे भगवन् ! ज्यांसुधी ते जीव, हमेशां मापपूर्वक कंपे के ते ते भावने परिणमे छे, त्यांमुधी ते जीवनी मरण समये अंतक्रिया तेनी (मुक्ति) थाय! [उ०] हे मंडितपुत्र ! ए अर्थ समर्थ नथी. [३०] हे भगवन् ! ज्यांमुधी ते जीव, हमेशा माषपूर्वक कंपे त्यसुधी मुक्ति न थाय' एम कहेवानुं शुं कारण ! [उ०] हे मंडितपुत्र ! भ्यांसुधी ते जीव, हमेशां मापपूर्वक कंपे हे यावत्-ते ते भावने परिणमे छे त्यांसुधी ते जीव, आरंभ करे , संरंभ करे के, समारंभ करे , आरंभमां वर्ने छ, संरंभमां व छ, समारंभमां वर्ते के अने ते आरंभ करतो, संरंभ करतो, समारंभ करतो तथा SHARE** For Private and Personal Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ३२७२ |३ शतके उमेशः३ ॥२७॥ आरंभमों वर्ततो, संरंभमा वर्ततो अने समारंभमा पर्ततो जीव, पणा प्राणोने, भूतोने, जीवोने अने सच्चोने दुःख पमाडवामां, शोक कराषवामा, जूरावधामा टिपावबामा, पिटाववामां उस्त्रास पमाडयामां अने परिताप कराववामां वते हे-कारण पाय छे. हे मंडितपुत्र ! ते कारणे लइने एम कई डे के, ज्यांसुधी ते जीव, हमेशां मापपूर्वक कंपे के यावत्-ते ते भावने परिणमे छे त्यांसुधी ते जीवनी मरण समये मुक्ति थइ शकती नथी. ___ जीवे णं भंते ! सया समियं णो एयइ जाव नो तं तं भावं परिणमइ ?, हता मंडियपुत्ता! जीवे णं सया समियं जाब नो परिणमति । जापं च णं भंते ! से जीधे नो एयति जाब नो तं तं भाष परिणमति तावं च | तस्स जीवस्स अंते अंततिरिया भवइ!, हता! जाब भवति । से केणढणं भंते! जाप भवति?, मंडियपुत्ता! जावं च णं से जीवे सया समियं णो एयनि जाव णो परिणमइ तार्य चणं से जीये नो आरंभइ नो सारंभह नो समारंभइ नो आरंभे वइ णो सारंभे वह णो समारंभे वह अणारंभमाणे असारेभमाणे असमारंभमाणे आरंभे अवमाणे सारंभ अवमाणे ममारंभे अवमाणे बहणं पाणाणं ५ अदुखावणयाए जाव अपरियावणयाए वह । से जहानामए केइ पुरिसे सुकं तणहत्थयं जायतेयंसि पक्खिवेजा, से नृणं मंडियत्ता से सुक्के तणहत्यए जायतेयंसि पक्वित्ते समाणे विप्पामेव मसमसाविजह?, हंता! मसमसाविनइ, से जहानामए के पुरिसे तत्तसि अयकवलंसि उदयचिंदू पक्खिवेजा, से नूर्ण मंडियपुत्ता से उदयबिंदू तत्तंसि अयक वल्लंसि पक्खित्ते समाणे खिप्पामेव विद्धसमागच्छद?, हता! विद्धंसमागच्छा, *%%863 For Private and Personal Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२८॥ ३ शतके | उद्देशा३ ॥२८॥ [प्र.] हे भगवन् ! जीव, हमेशा समित न कंपे अने यावत्-ते ते मारने न परिणमे ? अर्थात् जीव निष्किय पण होय? [उ०] हे मंडितपुत्र ! हा, जीव हमेशा समित न कंपे अने यावत्-ने ते भावने न परिणमे अर्थात् जीव निष्क्रिय होय. [प्र०] हे भगवन् ! ज्यांसुधी ते जीव, न कंपे यावत्-ते ते भावने न परिणमे त्यांसुधी ते जीवनी मरण समये मुक्ति थाय? [उ.] हे मंडितपुत्र ! हा, एवा जीवनी मुक्ति थाय. [५०] हे भगवन् ! एवा जीवनी मुक्ति थाय तेनु शु कारण ? [उ.] हे मंडितपुत्र ! ज्यांमुधी ते जीव, हमेशा समित न कंपे यावत्-ते ते भावने न परिणमे त्यांसुधी ते जीव, आरंभ करतो नथी, सरंभ करतो नथी, समारंभ करतो मथी, आरंभमा वर्ततो नथी, सरंभमां वर्ततो नथी, समारंभमा वर्ततो नवी अने ते आरंभ न करतो, सरंभ न करतो, समारंभ न करतो, तथा आरंभमा न वर्ततो, समारंभमा न वर्ततो, जीव बहु प्राणोने, भूतोने, जीवोने अने सच्चोने दुःख पमाडवामांक परिताप उपजाववामा निमित्त थतो नथी. जेम कोइ एक पुरुष होय अने ते सूका घासना पूळाने अग्निमां नाखे. तो हे मंडितपुत्र ! | अग्निमा नाख्यो के तुरतज ते सूका घासनो पूछो बळी जाय, ए खरं के नहीं ? हा, ते बळी जाय. बळी जेम कोई एक पुरुष होय, अने ते, पाणीना टीपाने तपेला लोढाना कडाया उपर नाखे. तो हे मंडितपुत्र ! तपेला लोढाना कडाया उपर नाख्यु के तुरतज ते ते पाणीनुं बींदु नाश पामे, ए खरु के नहिं हा, ते नाश पामी जाय. से जहानामए हरए सिया पुण्णे पुण्णप्पमाणे बोलमाणे बोसहमाणे समभरघडत्ताए चिट्ठति ?, हता चिति, अहे णं केइ पुरिसे तंसि हरयंसि एग महं णावं सतामवं सयच्छिई ओगाहेजा, से नूणं मंडियपुत्ता ! सा| नावा तेहिं आसवदारेहिं आपूरेमाणी २ पुण्णा पुण्णप्पमाणा वोलट्टमाणावोसहमाणा समभरघडताए चिट्ठति ?, 4440% * For Private and Personal Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या हंता ! चिट्ठति, अहे णं केइ पुरिसे तीसे नावाण सम्वतो समंता आमदाराई पिहेड २ नावाउस्सि चणएव उदयं उस्सिचिज्जा से नृणं मंडियपुत्ता ! सा नावा संसि उदयंसि उसिचिांसि समाणंसि विप्पामेव उहू उदाइ ?, प्रज्ञप्तिः *ता ! उदाइज्जा. एवामेष मंडियपुत्ता ! अत्तत्तासंवुडस्स अणगारस्स ईरियासमियस्स जाव गुत्तबं भयारियरस ॥२८१ ॥ आउत गच्छमाणस्स चिट्टमाणस्स निसीयमाणस्स तुग्रहमाणस्स आउनं वत्थपडिग्गहकंबलपायपुंछणं गेण्हमाणस्स णिक्विवमाणस्स जाव चक्खुपहनिवायमवि बेमाथा सहुमा ईरियावहिया किरिया कज्जइ, सा पढ़मसमयबद्धपुट्ठा वितियसमयवेतिया ततियसमयनिज्जरिया मा बद्धा पुट्ठा उदीरिया वेदिया निज्जिण्णा से काले अकम्मं बावि भवति, से तेणट्टेण मंडियपुत्ता ! एवं बुचति-जावं च णं से जीवे सया ममियं नो एयति जाय अंते अंतकिरिया भवति ।। (सू० १५२) पछी जेम को एक झरो होय पाणीथी भरेलो होय, पाणीथी छलछल भरेलो होय, पाणीथी छलकातो होय, पाणीथी बघतो होय. तथा ते भरेल घडानी पेठे बधे ठेकाणे पाणीथी व्याप्त होय अने तमां-ते झरामां-कोड़ एक पुरुष, सेंकडो नाना काणावाळी : अने सेंकडो मोटा काणाचाळी, एक मोटी नावने प्रवेशावे, हवे हे मंडितपुत्र ! ते नाव, ते कागाओद्वारा पाणीथी मराती भराती पाणीथी भरेली थइ जाय, तेमां पाणी छलोबल भराड़ जाय अने पाणीथी बध्येज जाय अने छेवटे ते भरेला घडानी पेठे बधे ठेकाणे: पाणीथी व्याप्त थइ जाय, हे मंडितपुत्र ! ए खरुं के नहीं ? हा.. खरुं. हवे कोड़ एक पुरुष, ते नावनां वां काणां वृरी दे अने नौकाना चाटवावती तेमानुं वधुं पाणी महार काढी नाखे. तो हे मंडितपुत्र ! ते नौका, तेमानुं वधुं पाणी उलेचाया पछी शीश्रम For Private and Personal Use Only ३ शतके उद्देशः ३ ॥२८१॥ Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रज्ञप्तिः पाणी उपर आवे ए खरूं के मही ? हा, ते वर-तुरतज पाणी उपर आवे. हे मंडितपुत्र ! एज रीते आत्माद्वारा आत्मामा संवृत्त थएल व्याख्या- ईर्यासमित अने यावत्-गुप्त ब्रह्मचारी सावधानीधी गमन करनार, स्थिति करनार, बेसनार, मूनार तथा सावधानीथी वस्त्र, पात्र, ४३ शतके कंबल, अने रजोहरणने ग्रहण करनार अने मृकनार अनगारने यावत्-आँखने पटपटावतां पण विमात्रापूर्वक मृक्ष्मईर्यापथिकी क्रिया उद्देशः३ ॥२८२॥ थाय छे अने प्रथमसमयमां बद्धस्पृष्ट थएली, बीजा समयमां वेदारली, त्रीजा समयमा निर्जराने पामेली ते क्रिया भविष्यकाळे २८॥ अकर्म पण थइ जाय . माटे हे मंडितपुत्र ! 'ज्यांसुधी ते जीव, हमेशा समित कंपतो नथी यावत्-तेनी मरण समये द्र मुक्ति थाय हे. ॥ १५२ ।।। HI पमत्तसंजयस्स णं भंते ! पमत्तसंजमे बहमाणस्म सव्वावि य णं पमत्तद्धा कालओ केवचिरं होइ ?, मंडि यपुत्ता। एगजीवं पञ्च जहन्नेणं एवं समयं, उकोसेणं देसूणा पुब्बकोडी, णाणाजीवे पडच सम्बद्धा ।। अप्प मत्तसंजयस्स णं भंते ! अप्पमत्तसंजमे बहमाणस्म सव्वावि य णं अप्पमत्तद्धा कालओ केवच्चिरं होई ?, मंडि★यपुत्ता! एगजीवं पडुच जहनेणं अंतोमुहुतं, उक्को. पुटवकोडी देमणा, णाणाजीवे पडुच्च सम्बद्धं, सेवं भंते ! त्ति भयवं मंडियपुत्ते अणगारे समण भगवं महावीरं बंदह नमंसह २ संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे ६ विहरइ ।। (मृ. १५३) । हा [प्र०] हे भगवन् ! प्रमत्त संयमने पाळता प्रमत्त संयमिनो बधो मळीने प्रमत्तसंयम-कान केटलो थाय छ ? [उ.] हे मंडित पुत्र ! एक जीवने आश्रीने जघन्ये एक समय अने उत्कृष्टे देशोन पूर्वकोटि, एटलो प्रमत्तसंयमकाळ-थाय हे अने अनेक जातना For Private and Personal Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२८॥ W ३ शतके उमेश:३ ॥२८३॥ जीवोने आश्रीने सर्व काळ, प्रमत्तसंयमकाळ हे. [म.] हे भगवन् ! अप्रमत्त संयमने पाळता अप्रमत्तसंयमिनो बधो मळीने अप्रमत्तसंयम-काळ केटलो थाय छे ? [उ०] हे मंडितपुत्र! एक जीवने आश्रीने जघन्ये अंतर्मुहर्त अने उस्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि, एटलो अप्रमत्तसंयम-काळ थाय छे. अने अनेक जातना जीवोने आश्रीने सर्व काळ, अप्रमत्त संयम-काळ. हे भगवन! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, एम कही भगवान् गौतम मंडितपुत्र अनगार श्रमण भगवंत महावीरने बांदे छे, नमे अने तेम करीने संयम तथा तपवडे आत्मान भावता विहरे छे. ॥ १५३ ॥ भंते ! त्ति भगवं गोयमे समण भगवं महावीरं वंदह नमसह २ ता एवं बयासी-कम्हा णं भंते ! लवणसमुद्दे चाउद्दसमुद्दिडपुन्नमासिणीसु अतिरेयं बड्दति वा हायति वा?, जहा जीवाभिगमे लवणसमुहवत्तव्वया नेयव्या जाव लोपहिती, जगणं लवणसमुद्दे जंबुद्दीवं २ णो उप्पीलेति णो घेवणं एगोदगं करेइ (लोयट्टिई) लोयाणुभावे । सेवं भंते! रत्ति विहरति । किरिया समत्ता (सू. १५४ ) ॥ तनियस्म सयस्म तहओ।। ३-३ ॥ [प्र०] हे भगवन् ! एम कही गौतम श्रमणभगवंतमहाबीरने वांदे , नमे थे, अने तेम करी तेओ आ प्रमाणे बोल्या के:-हे * भगवन् ! लवणसमुद्र, चौदशने दिवसे, आठमने दिवसे, अमासने दिवसे अने पूनमने दिवसे वधार केम वधे में अन वधारे केम | घटे छे? [उ०] हे गौतम ! जेम जीवाभिगममत्रमा लवणसमुद्र संबंधे का छ नेम अहीं जाण अने यावत्-'लोकस्थिति अने लोकानुभाव' ए शब्द सुधी जाणवू. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे. एम कही यावत्-विहरे छे. ॥ १५४ ॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमूत्रना त्रीजा शतकमा त्रीजा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. For Private and Personal Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ३ शतके उद्देशा४ ||२८४॥ ॥२८४|| उद्देशक १. (आगना उद्देशकमा क्रिया संबंधे हकीकत कही छे. अने ते क्रिया, ज्ञानी मनुष्योने प्रत्यक्ष होय छे माटे तेज क्रियाविशेषने आश्राने तेने विचित्रपणे देखाडवा चोथो उदेशक कई :-) ___ अणगारे णं भंते ! भाषियप्पा देवं विउब्वियसमुग्घाएणं समोहयं जाणरूवेणं जायमाणं जाणइ पासइ?] गोयमा ! अत्धेगइए देवं पासइ णो जाणं पासइ १ अत्थेगहए जाणं पासइ नो देवं पासइ २ अत्थेगइए देवंपि पासइ जाणंपि पासइ ३ अत्थेगइए नो देवं पासइ नो जाणं पासइ ४ ॥ अणगारे गं भंते ! भावियप्पा देविं वेउब्बियसमुग्धापणं समोहयं जाणरूवेणं जायमाणं जाणइ पासइ, गोयमा! एवं चेव ॥ अणगारे णं भंते! |भावियप्पा देवं सदेवीयं वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहयं जाणरूवेणं जायमाणं जाणइ पासइ ?, गोयमा ! अत्थेगइए देवं सदेवीयं पासह नो जाणं पासइ, एएणं अभिलावेणं चत्तारि भंगा ४॥ अणगारे णं भंते ! भावियप्पा रुवस्स किं अंतो पासह पाहि पासइ चउभंगो । एवं किं मूलं पासह कंद पा० १, चउभंगो, मूलं पा खं, पा चउभंगो, एवं मूलेण बीजं संजोएयव्वं, एवं कंदेणवि समं संजोएयव्वं जाव बीयं, एवं जाव पुप्फेण समं* बीपं संजोएयव्वं ।। अणगारे णं भंते ! भावियप्पा रुक्खस्स किं फलं पा०वीयं पा., उभंगो॥ (सू० १५५) [0] हे भगवन् ! भावितात्मा अनगार, पक्रिय समुद्घातथी समवहत थएला अने यानरूपे गति करता देवने जाणे, जूए ? For Private and Personal Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥२८५|| + ३ शतके उद्देशः४ ॥२८॥ 9 [उ०] हे गौतम ! कोड तो देवने जूए पण यानने न जूए, कोई यानने जूए पण देवने न जूए. कोई देव अने यान, ए बनेने जूए अने कोइ तो देव अने यान, ए मांथी कोई वस्तुने न जूए. [प्र०] हे भगवन् ! मावितात्मा अनगार, बैंक्रिय समुद्घातथी समवहत थएली अने यामरूप गति करती एवा देवीवाला देवने जाणे, जूए ? [उ.] हे गौतम ! कोई तो देवीवाळा देवने जूए, | पण यानने न जूए. ए अभिलापथी अहीं पूर्व प्रमाणे चार भांगा करी ठेवा. [H०] हे भगवन् ! भावितात्मा अनगार, शुं शाडना अंदरना भागने जूए के पहारना भागने जूए । [उ०] हे गौतम ! अहीं पण चार मांगा कहेवा. एज रीने शुं मूळने जूए छे! कांदाने जूए छे ? हे गौतम ! पूर्व प्रमाणे चार भांगा करवा. मूळने जूए छे ? कांदाने जूए छे ? पूर्व प्रमाणे चार भांगा करवा. अने एज प्रमाणे मूळनी साथे चीजनो संयोग करवो, ए रीते कंदनी साथे पण जोडवू यावत्-धीज. ए प्रमाणे पुष्पनी साथे पीजनो संयोग करवो. [म.] हे भगवन् ! भावितात्मा अनगार, शु वृक्षतुं फळ जूए के बीज जूए! [उ.] हे गौतम ! अहीं चार भांगा करवा. ॥ १५५॥ पभूर्ण भंते ! बाउकाए एगं महं इत्थिरूवं वा पुरिसरूवं वा हत्थिरूवं वा जाणरूवं वा एवं जुग्गगिल्लिथिल्लिसीयसंदमाणियरूवं वा बिउब्बित्तए?, गोयमा! णो तिणो समझे, वाउकाएणं विकुब्वमाणे गगं महं पडागासंठियं रूवं विकुब्वइ । पभूर्ण भंते ! वाउकाए एग महं पडागासंठियं रूवं विउब्वित्ता अणेगाई जोयणाई गमित्तए, हंता! पभू । से भंते ! किं आयड्डीए गरछह परिड्डीए गच्छह !, गोयमा ! आयड्ढीए गणोपरिदीए ग०, जहा आयड्ढीए एवं चेव आपकम्मुणावि आयप्पओगेणवि भाणियन्वं । से भंते ! किं ऊसिओदगं गच्छा %rwari For Private and Personal Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२८६ ।। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यतोवगं गः १, गोयमा ऊसिओदपि ग० पययोदयंपिग से भंते । किं एगओपडागं गच्छ दुहुओपडागं गच्छद ?, गोगमा ! एगओ पडागं गच्छइ, नो दुहओ पडागं गच्छछ, से णं भंते! किं बाउकाए ? पडागा ?, गोघमा बाउकाए णं से, मो खलु सा पडागा ॥ ( सू० १५३) ॥ [अ०] हे भगवन् ! वायुकाय, एक मोटुं स्त्रीरूप, पुरूषरूप, हस्तिरूप, यानरूप, ए प्रमाणे जुग्ग, गिल्लि, थिल्ल, शिविका (डोळी) अन स्पंदमानिका ए मधानुं रूप विकुर्वी शके छे ? [अ०] हे गौतम! ए अर्थ समर्थ नथी. पण विकुर्वणा करतो वायुकाय, एक मो पताकाना आकार जेवं रूप विकुर्वे छे. [प्र० ] हे भगवन् ! वायुकाय, एक मोहुं पताकाना आकार जेवुं रूप विकुर्वी अनेक योजन सुधी गति करवाने शक्त छे ? [उ०] हे गौतम ! हा, तेम करवाने शक्त छे. [प्र०] हे भगवन् ! शुं ते वायुकाय, आत्मऋद्विधी गति करे छे के परनी ऋद्धिथी गति करे छे ? [अ०] हे गौतम! ते आत्मऋद्धिधी गति करे छे पण परनी ऋद्धिथी गति करतो नथी. जेम ने आत्मऋद्धिथी गति करे छे तेम ते आत्मकर्मथी अने आत्मप्रयोगथी पण गति करे छे' ए प्रमाणे कहे. [प्र० ] हे भगवन् ! शुं ते वायुकाय, उंची पताकानी पेठे रूप करी गति करे छे, के पडी गएली पताकानी पेठे रूप करी गति करे छे, [उ०] हे गौतम! ते, उंची पताकानी पेठे अने पडी गयेली पताकानी पेठे ए बन्ने प्रकारे रूप करी गति करे छे. [प्र०] हे भगबन् 1 शुं ते एक दिशामां (एक) पताका होय एवं रूप करी गति करे छे के वे दिशामां (एक साथे बे ) पताका होय एव ं रूप करी गति करे छे ? [अ०] हे गौतम! ते, एक दिशामां पताका होय एवं रूप करीने गति करे छे, पण वे दिशामां पताका होय एवं रूप करीने गति करतो नथी. [अ०] हे भगवन् ! तो शुं ते वायुकाय पताका छे ? [अ०] हे गौतम! ते वायुकाय, पताका For Private and Personal Use Only ३ शतके उद्देशः४ ॥२८६ ॥ Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * ******* ३ शतके उद्देशः४ ॥२८७॥ नथीपण वायुकाय के. ॥१५६ ॥ व्याख्या- पभू ण भंते ! पलाहगे एगं महंइत्थिरूपा जाव सरमाणिया परिणामेत्तए १, हंता पभू । पभू णं प्राप्ति भंते !षलाइए एगं महं इत्थिरूवं परिणामेसा अणेगाई मोषणाईगमित्तए, ताप, से भेते! किं आय॥२८७॥ ड्डीए गच्छा परिडीए गच्छह !, गोयमा! नो मायड्डीए गच्छति, परिदीए ग०, एवं नो आयकम्मुणा, परकम्मुणा, नो आयपओगेण, परप्पओगेणं, ऊसितोदयं वा गच्छह पयोदयं वा गछह, से भंते ! किं बलाहए? इस्थी?, गोयमा! बलाहए णं से, णो खलु सा इत्थी, एवं पुरिसेण आसे हत्थीपभू णं भंते ! बलाहए एग महं जाणरूवं परिणामेत्ता अणेगाई जोयणाई गमित्तए जहा इत्थिरूवंतहा भाणियवं, णवरं एगओचक्कवालंपि गण्इ(त्ति) भाणियब्वं, जुग्गगिल्लिथिल्लिसीयासंदमाणियाणं तहेव ॥ (सू. १५७)॥ [40] हे भगवन् ! बलाहगे-बलाहक एक मोटुं स्त्रीरूप यावत्-पालखी-मीयाना परिणमाववा समर्थ छ ? [उ०] हे गौतम ! दहा , ले, तेम करवा समर्थ . [प्र.] हे भगवन् ! बलाहक, एक मोटु स्त्रीरूप करीन ( परिणमावीने) अनेक योजनो मुधी जया | समर्थ के ? [उ.] हा, ते, तेम करवा समर्थ छे. [प्र०] हे भगवन् ! शुं ते बलाहक, आत्मऋद्धिथी गति करे छ के परऋद्धिथी गति | करे के ! [उ०] हे गौतम! ते, आत्मऋद्धिथी गति करतो नथी, पण परऋद्विधी गति करे छे. ए प्रमाणे आत्मकर्म अने आत्मप्रदयोगथी पण गति करतो नथी पण परकर्म अने परप्रयोगधी ते, गति करे छे. अने ते उंची थयेली के पडी गएली धजानी पेठे | गति करे . [प्र०] हे भगवन् ! शुं ते बलाहक, स्त्री छे ? [उ०] हे गौतम ! ते बलाहक, स्त्री नथी, पण बलाहक छे.ए प्रमाणे * SAX% * * EX For Private and Personal Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir H |३ शतके उद्देशः४ ॥२८॥ पुरुष, घोडो, तथा हाथी बगेरे माटे जाणवू. [प्र.] हे भगवन् : शुं ते बलाहक, एक मोटा यान- रूप परिणमावी (करी) अनेक ४] योजनो सुधी गति करी शके छ ? [उ०] हे गौतम ! जेम खीस्प संबंधे का तेम यानना रूप संबंधे पण समज. विशेष ए के, प्रज्ञप्तिः | ते एक पेडं राखीने पण चाले अने बन्ने तरफ पै९ राखीने पण ते चाले. तथा तेजरीते जुम्ग, गिल्लि, थिल्लि, शिविका अने | ॥२८८11NIस्पदमानिकाना रूप संबंधे पण जाणयु.॥१५७ ॥ ___ जीवे णं भंते ! जे भविए नेरइएसु उववजित्तए से णं भंते ! किंलेसंसु उवयजति ?, गोयमा ! जल्लेसाई दवाइं परियाइत्ता कालं करेइ तल्लेसेसु उववजह, तं०-कण्हलेसेसु वा नीललेसेसु वा काउलेसेसु वा, एवं जस्स जा लेस्सा सा तस्स भाणियव्वा जाव जीवे णं भंते! जे भविए जोतिसिएसु उबववित्तए? पुच्छा, गोयमा! जल्लेसाई दवाइं परियाइतिरत्ता कालं करेइ तल्लेसेसु उववजइ, तं.-तेउलेस्सेसु । जीवे गं भंते ! जे भविए वेमाणिएसु उववजित्तए से गं भंते ! किंलेस्सेसु उववजह, गोयमा! जल्लेस्साई दब्बाई परियाइत्ता कालं करेइ तल्लेसेसु उववजह, तं०-तेउलेस्सेसु वा पम्हलेसेसु वा सुक्कलेसेसु वा ॥ (सू० १५८) प्र०] हे भगवन् ! जे जीव, नैरयिकोमा उत्पन्न यवाने योग्य छे ते, हे भगवन् ! केवी लेश्यावाळाओमा उत्पन्न थाय? उ• हे गौतम! जीव, जेबी लेश्यावाठां द्रव्योर्नु ग्रहण करी काळ करे हे तेवी लेश्यावाळामां ते, उत्पन्न याय छे, ते आ प्रमाणे:कष्ण, नील, अने कापोतलेश्यावागा अर्थात् जे जेनी लेश्या होय, तेनी ते लेश्या कडेची. ए प्रमाणे वीजा पण प्रश्नो करवा यावत-[म.] हे भगवन् । जे जीव, ज्योतिषिकोमा उत्पन थवाने योग्य ने ते, केवी छेश्यावाळाओमां उत्पन्न थाय ? [उ.] हे For Private and Personal Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥ २८९ ॥ www.kobatirth.org * गौतम ! जीव, जेवी केश्यावाळा द्रव्योंनुं ग्रहण करी काम करे के तेवी लेयाळी ते श्यावाळाओमां [प्र० ] हे भगवन् ! जे जीव वैमानिकोंमां उत्पन्न थवाने योग्य पाय ? [अ०] हे गौतम! जीव, जेवी लेश्यावाळा ट्रेन्योर्नु ग्रहण करी काळ करें प्रमाणे तेजोलेश्यावाळा ओमां, पद्मलेश्यावाळा ओमां अमें शुक्ललेश्यावाळाओमां ॥ १५८ ॥ अणगारे णं भंते! भावियप्पा बाहिरए योग्मले अपरियाइत्ता पम् बेभार फवर्य उल्लवेत्तरं वा पलंबेत्तर वा ?, गोयमा ! णो तिणट्ठे समट्टे । अणगारै णं भते । भाविर्यप्पा बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू बेभार पव्ययं उल्लंघेत्तए वा पलंघेत्तए वा ?, हंता पभू । अणगारे णं भंते!- भावियप्पा बाहिरए पोग्गले अपरियाईसा जावइयाई रायगिहे नगरे रुवाई एवइयाई विकुव्वित्ता वैभारं पव्वयं अंतो अणुष्पविसित्ता पभू ममं वा विसमं करेत्तए विसमं वा समं करेत्तए १, गोयमा ! णो ईई समट्ठे, एवं चैव वितिओऽवि आलावगो, णवरं परियातित्ता पभू ॥ से भंते! किं माई विकुब्वति अमाई विकुब्बइ ?, गोयमा ! माई बिकुव्वड, नो अमाई विक्रव्वति, से केणद्वेण भंते ! एवं बुच्चइ जाव नो अमाई विश्व ?, गोयमा ! माई गं पणीयं पाणभोयणं भीषा२ वामेति, तस्मणं तेणं पणीएणं पाणभोषणेण अट्ठि अहंमजा पहली भवति पयणुए मंससोणिए भवति, जेविय से अहाबायरा चौरंगला तेऽविय से परिणमंति, तजहा- सोनिंदियत्ताए जावं फार्मिदिग्रत्ताए अडिडिमिकेससुरोमनहताएं सुबत्ताए सोणियत्ताएँ, अमाई णं हे पाणभीगण भोचा २ णो वामेइ, तस्स तेण लूपां For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ते तेषी उत्पन्न यायेने ते ज प्रमाणे:- तेजीलेमगवन् ! केवी श्यावालाओमा उत्पन्न वाळामातें, उत्पन्न थाय छे ते आ ३ शतके जोशः ४ ॥ २८९ ॥ Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥२९॥ शतक उद्देशा४ ॥२९॥ पायभोयणेणं अद्विअद्विमिजा. पणुभवति बहले मंससोणिए, जेषिय से अहाषादरा पोग्गला तेऽविय से | ठा परिणमंति, तंजहा-उच्चारत्ताए पासवणसाए जाव सोणियत्ताए, से तेणदेणं जाव नो अमाई विकुब्वह। माई ण तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कते कालं करेइनधि सस्स आराहणा। अमाई णं तस्स ठाणस्स आलो- इयपडिकते कालं करेइ अत्थि तस्स आराहणा । सेवं भेत से भेत! त्ति (सू. १५९) ॥ तईयसए चउत्थो उद्देसो समत्तो ३-४॥ द्रा [प्र०] हे भगवन् ! भावितात्मा अनगार, बहारना पुद्गलोर्नु ग्रहण कर्या सिवाय भार पर्वतने ओळंगी शके छे, प्रलंघी शके | छ ? [३०] हे गौतम ! ए अर्थ समर्थ नथी. [म.] हे भगवन् ! भावितात्मा अनगार, बहारनां पुद्गलोनुं ग्रहण करीने वैभार पर्वजीतने ओळंगी शके छे, प्रलंघी शके छ ? [उ०] हे गौतम ! हा, ते, तेवी रीते तेम करवा समर्थ . [प्र.] हे भगवन् ! भावितात्मा अनगार, बहारनां पुद्गलोर्नु ग्रहण कर्या सिवाय, जेटलां रूपो राजगृह नगरमांछे, तेटलां रूपोने विकु/ वैभार पर्वतमा प्रवेश करी ते मम पर्वतने विषम करी शके ? के ते विषम पर्वतने सम करी शक ! [उ०] हे गौतम ! ए अर्थ समर्थ नथी, ते ए प्रमाणे न करी शके. एज रीते बीजो आलापक पण कहेको. विशेष ए के, पुद्गलो ग्रहण करीने पूर्व प्रमाणे करी शके छे' ए प्रमाणे कहे. [प्र.] हे भगवन् ! शुं मायी (प्रमत्त) मनुष्य विकुर्वण करे के अनायी (अप्रमत्त) मनुष्य विकुर्वण करे. [उ०] हे गौतम ! मायी मनुष्य, प्रणीत (घी वगेरेथी खूब चिकाशदार) एवं पान भोजन करे के, एभोजन करी करीने वमन करे छे. ते प्रणीत पान भोजनद्वारा तेमा हाड अने हाइमा रहेली मजा ते घने थाय के तथा तेनुं मांस अने. लोही प्रतनु थाय . वळी तेना (ते भोज 1497-% For Private and Personal Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥२९॥ ***** ३ शतके जोशः४ ॥२९॥ नना) जे यथावादर पुद्गलो छे तेनु नेने ते ते रूपे परिणमन शय छै. ते आ प्रमाणे:-श्रोत्रंद्रियपणे यावत्-स्पसेंद्रियपणे, तथा | हाडपणे, हाडनी मज्जापणे, केशपणे, श्मश्रुपणे, रोमपणे, नखपणे, वीर्यपणे अने लोहिपणे (ते पुदगलो) परिणमे के. अने अमायी मनुष्य तो लूखं एबुं भोजन करे , एवं मोजन करीने ते वमन करतो नथी. ते लूखा पान भोजनद्वारा तेनां हाडनी मज्जा प्रतनु थाय से अने तेनुं मांस अने लोही धन थाय के तथा तेना जे यथावादर पुद्गलो छ तेनुं पण तेने परिणमन थाय के. ते आ प्रमाणे :-उच्चारपणे, मूत्रपणे अने यावत्-लोहिपले. तो ते कारणथी यावत्-अमायी मनुष्य विकुर्वण करतो नयी ? मायी, ते करेली प्रवृत्तिनुं आलोचन अने प्रतिक्रमण कर्ण सिवाय काळ करे छ माटे तेने आराधमा नथी अने अमायी, ते पोतानी भूलवाळी प्रकृचिर्नु आलोचन अने प्रतिक्रमण करीने काळ करे छे माटे तेने आराधना छे. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन ! ते ए प्रमाणे थे, ॥ १५९ ॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमूत्रना त्रीजा शतकमा चोथा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. * * * * For Private and Personal Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AR व्याख्याप्रज्ञप्ति ॥२९२॥ उद्देशक ५. | ३ शतके ( चोथा उदेशकमां विकुर्वणा संबंधी हकीकत कही के अने पांचमा उद्देशकमां तेज हकिकतने विशेषताथी कहे छे.) उद्देश:५ अणगारे णं भंते ! भावियप्पा बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू एग महं इत्थिरूवं वा जाव संदमाणि- २९२॥ यरूवं वा विउवित्ता ?, णो ति०, अणगारे णं भंते ! भावियप्पा बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू एग महं इत्थिरूवं वा जाव संदमाणियरूवं वा विउवित्तए, हंता पभू , अणगारे णं भंते! भावि. केवतियाई पभू इत्थिरूवाई बिकुग्वित्तए?, गोयमा ! से जहानामए जुबई जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेजा चकस्स वा नाभी अरगा उत्तासिया एवामेव अणगारेऽवि भावियप्पा वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहणइ जाव पभू णं गोयमा! अणगारे णं भावियप्पा केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं बहहिं इत्थीरूवेहिं आइन वितिकिन्न जाब एसणंगोयमा! अण-18 गारस्स भावि. अयमेयारूपे विसए विसयमेत्ते बुच्चइ, नो चेव णं संपत्तीए विकविसु वा ३, एवं परिवाडीए नेयव्वं जाव संदमाणिया। [प्र०] हे भगवन् ! भावितात्मा अनगार, बहारनां पुद्गलोने लीधा सिवाय एक मोटा स्त्रीरूपने यावन्-पालखी=मीयाना रूपने विकुर्ववा समर्थ छ ? [उ.] हे गौतम ! ए अर्थ समर्थ नर्थ. [प्र.] हे भगवन् ! मावितात्मा अनगार, बहारनां पुद्गलोने लईने | एक मोटा श्रीरूपने यावत्-पालखी मियाना रूपने विकुर्वधा समर्थ छ ? [उ०] हे गौतम ! हा, ते तेम करवा समर्थ छे. [प्र.] हे For Private and Personal Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥२९३॥ भगवन् ! भावितात्मा अनगार केटला स्त्रीरूपोने विकुर्ववा समर्थ ? [उ०] हे गौतम ! जैम कोई एक युवान, युवतिने कांडाथी वाळचापूर्वक पकडे अथवा जेम पंडानी धरी आराओबी व्याप्त होय तेम भावितात्मा अनगार पण वैक्रियसमुद्घातथी समवहत थई ३ शतके यावत्-हे गौतम ! भावितात्मा अनगार आखा जंवृद्धीपने घणां स्त्रीरूपोबड़े आकीर्ण. व्यतिकीर्ण यावत-करी शकेले. गौतम!131 उपशा४ भावितात्मा अनगारनो आ ए प्रकारको मात्र विषय छे, पण ए प्रकारे कोईवार विकुर्वण थयं नथी, थतुं नथी अने चशे नहि. एज | ॥२९॥ | प्रमाणे क्रमपूर्वक यावत्-पालखी=मीयानारूप संबंधे समजबूं. से जहानामए केइ पुरिसे असिचम्मपायं गहाय गच्छेज्जा एवामेव भावियप्पा अणगारेऽवि असिचम्मपायहस्थकिचगएणं अप्पाणेणं उ हास उप्पइज्जा, हंता उप्पाइजा। अणगारे णं भंते ! भावियप्पा केवतियाई पभू अमिचम्मपायहत्थकिञ्चगयाई रूवाई विउवित्तए?, गोपमा! से जहानामए-जुवतिं जुधाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेजा तं व जाब विउब्धिसु वा ३ से जहानामा केइ पुरिसे एगओग्हागं काउं गरजा, एवा६ मेव अणगारेऽवि भावियप्पा एगओग्डागाहत्यकिञ्चगएणं अप्पाणेण उडूद वेहास उप्पएन्जा ?, हंता गोयमा ! उप्पएज्जा । अणगारे णं भंते ! भावियप्पा केवतियाई पभू एगोण्डागाहस्थकिच्चगयाई रूवाई विकुञ्चित्तए ? एवं चेय जाव विकुब्बिसु वा ३ । एवं दुहओपडागंपि।। (प्र०] हे भगवन् ! जेम कोइ एक पुरुष तरवार अने ढाल लइने गति करे, एज प्रमाणे भावितात्मा अनगार पण तरवार अने ढालवाला मनुप्यनी पेठे कोइपण कार्यने अंगे पोते उंचे आकाशमा उडे ? [उ०] हे गौतम ! हा, उडे. [प्र०] हे भगवन् ! भावि For Private and Personal use only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥२९४॥ ३ शतके उद्देशः४ ॥२९४॥ CSCREASE | तात्मा अनगार, तरवार अने ढालबाळा मनुष्यना जेवा केटलां रूपो विकुर्वी शके ? [उ०] हे गौतम ! जेम कोइ एक युवान युवतीने कांडाथी पकडे यावत्-विकुर्वणा थती नथी अने विकृर्वणा थशे पण नहि. [4] हे भगवन् ! जेम कोइ एक पुरुष एक पताका | करीने गति करे एज प्रमाणे भावितात्मा अनगार पण, हाथमां एक पताका धरीने चालनार पुरुषना जेवां केटलां रूपो करी शके ? [उ०] हे गौतम ! पूर्वनी पेठेज जागवं. अने यावत्-चिकुर्वण ययुं नथी, धतुं नथी, अने थशे नहि. ए प्रमाणे वे तरफ धजावाळी पताका संबंधे पण समजवू. [प्र.] हे भगवन् ! जेम कोई एक पुरुष एक तरफ जनोइ करीने गति करे एज प्रमाणे भावितात्मा ६ अनगार पण, एक तरफ जनोइ करीने चालनार पुरुषनी पेठे पोते कोइ कार्यने लीधे उंचे आकाशमा उडे ? [उ.] हे गौतम ! हा | उडे. [प्र.] हे भगवन् ! भावितात्मा अनगार पोने, कार्य परत्वे एक तरफ जनोइवाळा पुरुषना जेवा केटलां रूपो विकुर्वी शके ? | [उ०] हे गौतम ! तेज प्रमाणे जाणवू. अने यावत्-विकुर्वण कयु नथी, विकुर्वण करतो नथी अने विकुर्वण करशे पण नहि. ए प्रमाणे ये तरफ जनोइवाळा पुरुषना जेवां रूपो संबंधे पण समज. सा से जहानामए-केइ पुरिसे एगओजन्नोव इतं काउं गच्छेजा, एवामेव अण. भा० एगओजपणोवइयकिच्चगएणं अप्पाणेणं उड्ढे वेहासं उप्पएज्जा ?, हंता! उप्पएज्जा, अणगारेणं भंते ! भावियप्पा केवतियाई पभू एगओजण्णो वइयकिञ्चगयाई रुवाई विकुवित्तए? तं चेव जाव विकुबिसु वा ३, एवं दुहओजण्णोबइयंपि । से जहानामएकेइ पुरिसे एगओ पल्हत्थियं काउं चिडेजा, एवामेव अणगारेवि भावियप्पा एवं चेव जाव विकुन्धिसु वा ३, एवं दुहओपलियंकंपि । अणगारे णं भंते ! भावियप्पा बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू एगं महं आसरूवं For Private and Personal Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir माया. ३ शतके उमेशः४ ॥२९५॥ दवा हस्थिरूवं वा सीहरूवं वापग्धवगदीवियअच्छतरच्छपरासररूवं वा अभिजुजित्तए १, णो तिणढे समढे, अण-1 गारे णं एवं बाहिरए पोग्गले परियादित्ता पभू । अणगारे णं भंते ! भा० एग महं आसरूवं वा अभिजुजित्ता प्रज्ञप्तिः अणेगाई जोषणाई गमित्तए?, हंता! प , से भंते ! किं आयड्डीए गच्छति परिड्डीए गच्छति?, गोयमा! ॥२९५॥ आइइडीए गच्छद, नो परिडीए, एवं आयकम्मु णा, नो परकम्मुणा, आयप्पओगेणं, नो परप्पओगेणं, उस्सिओदयं वा गच्छद, पयोदगं वा गच्छह ।। [प्र०] हे भगवन ! जेम कोई एक पुरुष एक तरफ पलोंठी करीने बेसे, एज प्रमाणे भावितात्मा अनगार पण एना जेवू रूप | करीने आकाशमा उडे ! [उ०) हे गौतम ! एज प्रमाणे जाणवू अने यावत-विकुर्वण कयु नथी, विकुर्वता नथी. अने विकुर्वशे पण | नहि, ए प्रमाणे बे तरफ पलोंटी संबंधे पण समजवू. [म.] हे भगवन् ! जेम कोइ एक पुरुष एक तरफ पर्यकासक करीने बेसे, एज प्रमाणे भावितात्मा अनगार पण एना जेवू रूप करीने आकाशमा उडे ? [उ.] हे गौतम ! एज प्रमाणे जाणवू अने यावन्विकुर्वण कयु नथी, विकुर्वण यतुं नथी अने विकुर्वण पशे पण नहिं, ए प्रमाणे वे तरफना पर्यकामन संबंधे पण समजवं. [प्र.] हे भगवन् ! भावितात्मा अनगार बहारनां पुद्गलो ग्रहण कर्या शिवाय एक मोटा घोडाना रूपने, हाथीना रूपने, सिंहना रूपने, वाधना रूपने, नारना रूपन, दीपडाना रूपने, रीछना रूपने, नाना वाघना रूपने, अने शरमना रूपने अभियोजवा समर्थ के ? [उ०] हे गौतम! ए वात समर्थ नथी. [प्र.] हे भगवन् ! भावितात्मा अनगार बहारना पुद्गलोने लईने पूर्व प्रमाणे करवा समर्थ छ ? [उ०] हे गौतम ! बहारना पुद्गलोने लईने ते अनगार पूर्व प्रमाणे करी शके छे. [प्र०] हे भगवन् ! भावितात्मा अनमार, NAWARENE For Private and Personal Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३ शतके व्याख्या- प्रजातः .१२९६ उद्देशः५ ॥२९६॥ एक मोटा घोडाना रूपने अभियोजी अनेक योजनो मुधी जवाने समर्थ छ ? [उ०] हे गौतम ! ते तेम करवा समर्थ छे. [प्र०] हे भगवन् ! शुं ते आत्मऋद्धिथी जाय छ, पारकी ऋद्धिथी जाय छे १ [३०] हे गौतम! आत्मऋद्धिथी जाय छे, पण पारकी ऋद्धिथी जतो नथी. ए प्रमाणे पोताना कर्मथी जाय छे. पण पारकाना कर्मथी जतो नथी, पोताना प्रयोमथी जाय छ पण पारकाना प्रयोगथी जतो नथी. तथा ते सीधो पण जई शके छे अने विपरीत पण जइ शके छे. | सेणं भंते ! किं अणगारे? आसे?, गोयमा अणगारेणं से, नो स्वलु से आसे, एवं जाव परासररूवं वा। से भंते किं मायी विकुब्वति, अमायी विकुम्वति ?, गोयमा! मायी विकुब्वति, नो अमायी विकुब्वति, माई णंभंते ! तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिकंते कालं करेइ कहिं उववजति?, गोयमा! अन्नयरेसु आभियोगेसु देवलोगेसु देवत्ताए उबवजइ, अमाई णं तस्स ठाणस्स आलोइयपडिकते कालं करेइ कहिं उवववति', गोयमा! अन्नयरेसु अणाभिओगेसु देवलोगेसु देवत्ताए उववजह, सेवं भंते २त्ति, गाहा-इत्थीअसीपडागा जण्णोवइए य होइ बोब्वे । पल्हत्थियपलियंके अभिओगविकुब्वणा माई ॥ २६ ॥ (सू० १६०) तईए सए पंचमो उद्देसो समत्तो ॥३-५॥ । [प्र.] हे भगवन ! शुं ते अनगार अश्व-घोडो कहेवाय [उ०] हे गौतम ! ते अनगार छे, पण घोडो नथी. ए प्रमाणे शरमना रूप द सुधीना बधारूपसंबंधी जाण.[प्र०] हे भगवन् ! सुते विकुर्वण मायी अनगार करे, के अमायी अनगार पण करे ! [उ०] हे गौतम | ते विकुर्वण मायी अनगार करे अमायी अनगार न करे.[म.] हे भगवन् : ते प्रकारनें विकुर्वण कर्या पछी ते संबंधी आलोचन के प्रतिक्रमण कर्या सिवाय जो ते विकुर्वण करनार मायी साधु काळ करे, तो ते क्या उत्पन्न थाय? [उ०] हे गौतम! ते साधु, कोइ -* - For Private and Personal Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एक जातना अनाभियोगिक देवलोकमां देवपणे उत्पन्न थाय? हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे हे... व्याख्या ता गाथार्थ:-इत्थी स्त्री, असी-तरवार, पडामा-पताका, जणगोवइ-जनोइ अने पर्यकासन, ए बां सपोने अमियोग अने विकुप्रज्ञप्तिः जण संबंधी हकीकत आ उद्देशकमा छे तथा ए प्रमाणे मायी साधु करे छे एम पण जणाव्यु के, ॥१५९ ॥ ॥२९॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमत्रना त्रीजा शतकमां पांचमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. ३ शतके उरेशः६ | ॥२९७॥ *** * उद्देशक ६. (पांचमा उशिकनी पेठे आ छट्ठो उद्देशक पण विकुर्वणा संबंधी हकीकतने लगतीज डे ) अणगारे ण भंते ! भावियप्पा माई मिच्छट्टिी वीरियलद्धीए बेउब्बियलद्धीए विभगनाणलडीए वाणारसिं। मगरिं समोहए समोहणित्ता रायगिहे नगरे रूवाई जाणति पासति ?, हंता जाणइ पासह । से मते ! किं तहाभावं जाण. पा. अन्नहाभावं जा. पा.?, गोयमा! णो तहाभावं जाण पा०, अपणहाभाचं जा० पा० । से केण?णं भंते ! एवं बुचह-नो तहाभावं जा पा०, अन्नहाभा जाण. पा. १, गोयमा ! तस्म णं एवं भवतिएवं खलु अहं रायगिहे नगरे समोहए समोहणित्ता वाणारसीए नगरीए रूवाई जाणामि पासामि, से से दसणे| विवच्चासे भवति, से तेणट्टेणं जाव पासति । अणगारे णं भंते ! भाबियप्पा माई मिच्छदिट्टी जाव रायगिहे *** For Private and Personal Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः २९८ ।। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नगरे समोहप समोहणित्ता बाणारसीए नगरीए रुवाई जाणइ पासह ?, हंता जाणइ पासह, तं चैव जाव तस णं एवं होइ एवं खलु अहं वाणारसीए नगरीए समोहए २ रायगिहे नगरे रुबाई जाणामि पासामि, से से दंसणे विवञ्चासे भवति, से तेणट्टेणं जाव अन्नहा भावं जाणइ पास ॥ [प्र० ] हे भगवन् ! राजगृह नगरमा रहेलो मिथ्यादृष्टि अने मायी-कषायी भावितात्मा अनगार वीर्यलब्धिथी, वैकिलब्धिथी अने विभंगज्ञानलब्धिथी वाणारसी नगरीतुं विकुर्वण करीने ( तद्गत ) रूपोने जाणे, जूए ? [अ०] हे गौतम! हा, ते, ते रूपोने जाणे अने जूए. [प्र० ] हे भगवन् ! शुं ते तथाभावे जाणे अने जूए, के अन्यथाभावे जेतुं छे तेथी विपरीत रीते जाणे अने जूए ? [[उ०] हे गौतम! ते तथाभावे न जाणे अने न जूए, पण अन्यथाभावे जाणे अने जूए [प्र०] हे भगवन् ! तेम थवानुं शुं कारण ? ते तथाभावे न जाणे अने न जुए; पण अन्यथाभावे जाणे अने जूए ? [अ०] हे गौतम! ते साधुना मनमां एम थाय छे केवाराणसीमां रहेलो हुं राजगृह नगरनी विकर्वणा करीने (तद्गत ) रूपोने जाणुं हुं अने जोउं हूं. एवं तेनुं दर्शन विपरीत होय छे माटे आ कारणथी-ने, जूए के. [प्र० ] हे भगवन् ! वाराणसीमां रहेलो मायी, मिध्यादृष्टि भावितात्मा अनगार यावत् - राजगृह नगरनुं विकुर्वण करीने ( तद्गत ) रूपोने जाणे अने जूए १ [अ०] हे गौतम! हा, ते, ते रूपोने जाणे अने जूए यावत्-ते साधुना | मनमां एम थाय छे के, राजगृह नगरमा रहेलो हुं वाराणसी नगरीनी विकुर्वणा करीने रूपोने जाणुं हुं अने जोडं कुं; एवं तेनुं दर्शन । विपरीत होय छे माटे आ हेतुथी ते अन्ययाभावे जाणे छे अने जूए छे. अणगारे णं भंते ! भावियथा माई मिच्छदिट्ठी वीरियलद्धीए वेडब्बियलद्वीप विभंगणाणलद्धीए वाणारसिं For Private and Personal Use Only ३ शतके उद्देशः ६ ।।२९८ ।। Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir R e व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२९९॥ ३ शतके सोशः६ ॥२९॥ % नगरि रायगिहं च नगरं अंतरा एगं महं जणवयवग्गं समोहए २ वाणारसिं नगरि रायगिहं च नगरं अंतरा एगं महं जणवयवग्गं जाणति पासति, से भंते। किंतहाभावं जाणा पासह अनहाभा जाणइ पा.?, गोयमा ! णो तहाभावं जाणति पासइ, अन्नहा भावं जाणइ पासह, से केणड्डेणं जाव पासइ, गोयमा तस्सम्बलु एवं भवतिएस खलु वाणारसी[ए] नगरी, एस खलु रायगिहे नगरे, एस खलु अंतरा एगे महं जणवयवग्गे, नो स्वल्लु एस महं बीरियलद्धी वेउब्वियलद्धी विभंगनाणल० इड्डी जुत्ती जस बले बीरिए पुरिसकारपरक्कमे लढे पत्ते अभिसमण्णागए, से से दसणे विवच्चासे भवति.से तेणडेणं जाव पासति ।। [म.] हे भगवन् ! मायी मिथ्यादृष्टि भावितात्मा अनगार वीर्यलन्धिथी, चैक्रियलन्धिी अने विभंगवानलब्धिथी वाराणसी नगरी अने राजगृह नगरनी बच्चे एक मोटा मनुष्य समुदायनी विकुर्वणा करे अने तेम कर्या पछी ते वाराणसी नगरी अने राजगृह नगरनी बच्चे एक मोटा जनसमूह वर्गने जाणे अने जूए ? [उ.] हे गौतम ! हा. ते, तेने जाणे अने जूर ? [प्र.] हे भगवन् ! शुं ते, तेने तशमावे जाणे जूए, के अन्यथाभावे जाणे जूए. [उ०] हे गौतम! ते, तेने तथाभावे न जाणे अने न जूग; पण अन्यथाभावे जाणे अने जूए. [.] हे भगवन् ! ने प्रकारे जाणे अने जूए, यावन्-तेनुं हुं कारण ? [उ.] हे गौतम ! ते साधुना मनमा एम थाय छे के, आ वाराणसी नगरी के अने आ राजगृह नगर छ, तथा ए बेनी वच्चे आवेलो आ एक भोटो जनपद वर्ग छे, पण ते मारी वीर्यलब्धि, वैक्रियलब्धी के विभंगज्ञानलब्धी नथी, तथा में मेळवेला प्राप्त करेला अने मारी पासे रहेला ऋद्धि, द्युति, यश, बल, वीर्य के पुरुषाकार पराक्रम नथी, तेवू ते साधु- दर्शन विपरीत थाय छे ने कारणथी यावत्-ते, ते प्रमाणे जाणे छे अने जूए छे. %***** **** For Private and Personal Use Only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रन्नतिः ACASSESSMSk अणगारे णं भंते ! भावियप्पा अमाई सम्मदिही बीरियलद्धीए वेउब्बियलद्धीए ओहिनाणलद्धीए रायगिहे | | नगरे समोहए २ वाणारसीए नगरीए रूवाई जाणइ पासइ, हंता, से भंते। किं तहाभावं जाण पासह अन्न- ३ शतके हाभाव जाणति पासति ?, गोयमा! तहाभावं जाणति पासति, नो अन्नहा भावं जाणति पासति, से केणट्टेणं उद्देशः६ भंते ! एवं बुच्चा, गोयमा! तस्स णं एवं भवति-एवं स्वल्लु अहं रायगिहे नगरे समोहणित्ता वाणारसीए नगरीए ॥३०॥ रूवाई जाणामि पासामि, से से दसणे अविवञ्चासे भवति, से तेणड्डेणं गोयमा! एवं वुञ्चति, बीओ आलावगो एवं चेव, नवरं वाणारसीए नगरीए समोहणा नेयब्वा, रायगिहे नगरे रूवाई जाणइ पासइ। [प्र.Jहे भगवन् ! वाराणसी नगरीमा रहेलो अमायी, सम्यग्दृष्टि भावितात्मा अनगार वीर्यलब्धिथी, वकियलब्धिथी, अने| अवधिज्ञानलब्धिथी राजगृह नगरनुं विकुर्वण करीने रूपोने जाणे अने जूए ? [उ०] हे गौतम ! हा, दे, ते रूपोने जाणे अने जूए. [प्र०] हे भगवन् ! शुं ते, ते रूपोने तथाभावे जाणे अने जूए, के अन्यथाभावे जाणे, जूए ? [उ.] हे गौतम ! ते, ते रूपोने तथाभावे जाणे अने जूए, पण अन्यथाभावे न जाणे अने न जूए. [प्र.] हे भगवन् ! तेम थवानुं शुं कारण ? [उ०] हे गौतम ! ते साधुना मनमा एम थाय छे के, वाराणसी नगरीमा रहेलो हुँ राजगृह नगरनी विकुर्वण करीने रूपोने जाणु छु, तथा जोर ई. तेवू तेनुं दर्शन विपरीतता विनानुं होय छे, ते कारणथी हे गौतम : 'ते तथाभावे जाणे छे अने जए छे' एम कयुछे. बीजो आलापक पण एरीते कहेवो. विशेष ए के,-विकुर्वणा बारारणसीनी समजवी अने राजगृहमा रहीने रूपोर्नु जोवू अने जाणवू समजबुं अणगारे णं भंते! भावियप्पा अमाई सम्मदिडी वीरियलद्धीए वेउब्वियलद्धीए ओहिनाणलद्धीप रायगिहं For Private and Personal Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥३०॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नगरं वाणारसिं नगरिं च अंतरा एगं महं जणवयवरगं समोहए २ रायगिहं नगरं वाणारसिं च नगरिं तं च अंतरा एवं महं जणवयवग्गं जाणइ पासइ ?, हंता जा० पा०, से भंते! किं तहाभावं जाणइ पासह अन्नहा भावं जाणइ पासइ ?, गोयमा ! तहाभावं जाणइ पा०, णो अन्नहाभावं जा० पा०, से केणद्वेणं ?, गोयमा ! तस्स एवं भवति न खलु एस रायगिहे जगरे, णो खलु एस वाणारसी नगरी, नो खलु एस अंतरा एगे जणवयवग्गे, एस खलु ममं वीरियलद्धी वेडब्बियलद्धी ओहिणा जल्दी इड्ढी जुत्ती जसे बले वीरिए पुरिसकारपरक्कमे लद्धे पत्ते अभिसमन्नागए से से दंसणे अविवश्वासे भवति से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुञ्चति तहाभावं जाणति पासति, नो अन्नाभावं जाणति पासति । अणगारे णं भंते ! भावियप्पा बाहिरए पोग्गले अपरियाहता पभू एगं महं गामरूवं वा नगररूवं वा जाव सन्निवेसरूवं वा विकुव्वित्तए ?, णो तिण्डे समट्टे, एवं वितिओऽवि आलावगो, णवरं बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू । अणगारे णं भंते! भावियप्पा केवतियाई पभू गामरूवाई विकुव्वित्तए ?, गोयमा ! से जहानामए जुवतिं जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेज्जा तं चैव जाव विकुव्विसु वा ३ एवं जाव सन्निवेसरूवं वा ।। (सू० १६२) [प्र०] हे भगवन् ! अमायी, सम्यग्दृष्टि भावितात्मा अनगार वीर्यलब्धिथी, वैक्रियलब्धिथी अने अवधिज्ञानलब्धिथी राजगृह नगर अने वाराणसी नगरीनी बच्चे एक मोटो जनपद वर्ग विकुर्वे अने पछी राजगृह नगर अने वाराणसी नगरीनी बच्चे एक मोटा जनसमूहवर्गने जाणे अने जूए ? [अ०] है गौतम ! हा, ते, तेने जाणे अने जूए [प्र०] हे भगवन् ! शुं ते साधु, तेने तथाभावे For Private and Personal Use Only ३ शतके उरेशः ६ ॥३०१ ॥ Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie व्याख्याप्रज्ञप्ति ॥३०२॥ ३ शतके उद्देशः६ ॥३०२॥ *4%ACROSSAR जाणे अने जूए, के अन्यथाभावे न जाणे अने जूए. [उ.] हे गौतम ! ते, तेने तथाभावे जाणे अने जूए, पण अन्यथाभावेन | जाणे अने जूए. [प्र.] हे भगवन् ! तेनुं शुं कारण ? [उ०] हे गौतम ! ते साधुना मनमा एम थाय के, ए राजगृह नगर नथी, ए वाराणसी नगरी नथी अने ए बेनी वच्चेनो एक मोटो जनपद वर्ग नथी; पण ए मारी वीर्यलब्धि, वैक्रियलब्धि, के अवधिज्ञान|लब्धि डे; ए में मेळवेला, प्राप्त करेलां अने मारी पासे रहेला ऋद्धि, युति, यश, बळ, वीर्य अने पुरुषाकार पराक्रम के तेनुं दर्शन अविपरीत होय छे. ते कारणथी हे गौतम ! एम कहेवाय ले के, ते साधु तथाभावे जाणे हे अने जूए के, पण अन्यथाभावे जाणतो नथी तेम जोतो नथी. [प्र०] हे भगवन् ! भावितात्मा अनगार बहारनां पुद्गलो मेळव्या सिवाय एक मोटा गामना रूपने, नगरना रूपने, यावत्-संनिवेशना रूपने विकुर्ववा समर्थ छे ? [उ.] हे गौतम ! ए अर्थ ममर्थ नथी. ए प्रमाणे बीजो आलापक कहेवो. विशेष ए के, बहारनां पुद्गलोने मेळवीने ते साधु तेवां रूपोने विकुर्ववाने समर्थ छे. [प्र०] हे भगवन् ! भावितात्मा अनगार केटलां ग्राम रूपोने विकुर्ववाने समर्थ है? [उ०] हे गौतम! जेम कोई एक युवान पुरुष पोताना हाथे युवति-स्वीना हाथने मजबूत पकडीने चाळे ए रीते साधु ग्रामरूपोने, संनिवेशरूपोने विकु. ॥ १६२ ॥ चमरस्स णं भंते ! असुरिंदस्स असुररन्नो कति आयरक्खदेवसाहस्सी पण्णता?, गोयमा! चत्तारि चउसडीओ आयरक्खदेवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, ते णं आयरक्खा वपणओ जहा रायप्पसेणइज्जे, एवं सव्वेसिं इंदाणं जस्स जत्तिया आयरक्खा भाणियब्वा । सेवं भंते! २॥ (सू० १६३) तइयसए छट्ठो उद्देसो संमत्तो ॥ ३-६॥ KHARA For Private and Personal Use Only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ।।३०३ ।। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [प्र.] हे भगवन् ! अमुरेंद्र, अमुरराज चमरना आत्मरक्षक देवो केटला हजार कक्षा के ? [अ०] हे गौतम! चमरना आत्मरक्षक देवी २५६ हजार छे, अहीं आत्मरक्षक देवोतुं वर्णन समज, अने सघळा इंद्रोमा जेटला आत्मरक्षक देवो होय ते बघा समजवा. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे. एम कही विहरे छे. ।। १६३ ॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना त्रीजा शतकमा छट्ठा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. उद्देशक ७. ( हा उद्देशकमाँ इंद्रोना आत्मरक्षक देवो संबंधी हकीकत जणावी छे अने हवे सातमा उद्देशक्रमां इंद्रोना लोकपालो संबंधी हकीकतने जणावशे. ) रायगिहे नगरे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी-सकस्स णं भंते ! देविंदस्म देवरन्नो कति लोगपाला पण्णत्ता?, गोयमा । चत्तारि लोगपाला पण्णत्ता, तंजहा- सोमे जमे वरुणे बेसमणे । एएसि णं भंते ! चउन्हं लोगपालाणं कति विमाणा पण्णत्ता १, गोयमा ! चत्तारि विमाणा पण्णत्ता, तंजहा - संझप्पने वरसिट्टे सयंजले वग्गू । कहिं णं भंते! सस्स देविंदिस्स देवरण्णो सोमस्स महारनो संझप्पमे णामं महाविमाणे पण्णत्ते ?, [प्र० ] राजगृह नगरमां यावत् पर्युपासना करता आ प्रमाणे बोल्या के:-हे भगवन् ! देवेंद्र, देवराज शकने केटला लोकपालो For Private and Personal Use Only ३ शतके उद्देशः ७ ॥ ३०३ ॥ Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कह्या छे ? [उ.] हे गौतम! तेने चार लोकपालो कया छे. ते आ प्रमाणे:-सोम, यम, वरुण अने वैश्रमण. [प्र०] हे भगवन् ! व्याख्याए चारे लोकपालोने केटलां विमानो कयां छ? [उ०] हे गौतम ! एओने चार विमानो कयां छे. ते आ प्रमाणे-संध्याप्रभ, ४३ शतक प्रज्ञप्तिः वरशिष्ट, स्वयंज्वल, अने वल्गु. [म०] हे भगवन् ! देवेंद्र, देवराज शक्रना लोकपाल सोम नामना महाराजानुं संध्याप्रभ नामनु ভৱঃ৩ मोटुं विमान क्या रहेलु ! ॥३०॥ 3 गोयमा! जंबुद्दीवे २ मंदरस्स पब्वयस्स दाहिणेणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिजाओ भूमि भागाओ उड्दं चंदिमसूरियगहगणणक्खत्ततारारूवाणं बहइं जोयणाई जाव पंच वडिंसया पण्णत्ता, तंजहाअसोयव.सए सत्तवन्नवडिंसा चंपयवडिंसए चूपवडिसए मज्झे सोहम्मवडिसए, तस्स णं सोहम्मवसयास महाविमाणस्स पुरथिमेणं सोहम्मे कप्पे असंखेजाई जोयणाई बीतिवहत्ता एत्थ णं सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो सोमस्स महारन्नो संझप्पभे नामं महाविमाणे पण्णत्ते अद्धतेरसजोयणसयसहस्साइं आयामविक्खंभणं उया. लीस जोयणसयसहस्माई वाचनं च सहस्साई अट्ट य अडयाले जोयणसए किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं प० जा सूरियाभविमाणस्स वत्तब्वया सा अपरिसेसा भाणियव्वा जाव अभिसेयो, नवरं सोमे देवे॥ संझप्पभस्स पण महाविमाणस्म अहे सपक्खि सपडिदिसिं असंखेजाई जोयणसयमहस्माई ओगाहित्ता एत्थ णं सबस्स देविंदस्स देवरन्नो सोमस्स महारनो सोमा नाम रायहाणी पण्णत्ता एगं जोयणसयसहस्सं आयामविखंभेणं जंबुद्दीवपमाणे(ण)वेमाणियाणं पमाणस्स अद्धं नेयव्वं जाव उवरियलेणं सोलस जोयणसहस्साई आयामवि For Private and Personal Use Only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥३०५॥ ३ शतके उमेशः ॥३०५॥ करवंभेणं पन्नासं जोपणसहस्साई पंच य सत्ताणउए जोयणसते किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं पण्णत्ते, पासायाणं चत्तारि परिवाडीओ नेयवाओ, सेसा नस्थि । [उ.] हे गौतम ! जंबूद्वीप नामना द्वीपमां मंदर पर्वतनी दक्षिणे आ रवप्रभा पृथिवीनी बहुसम रमणीय भूमिभागयी उंचे चंद्र, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र अने तारारूपो आवे . अने त्यांथी बहु योजन उंचे यावत-पांच अवतंसको कह्या छे. ते आ प्रमाणे: अशोकावतंसक, सप्तपर्णावतंसक, चंपकावतंसक, चूतावतंसक अने वच्चे सौधर्मावतंसक . ने सौधर्मावतंसक महाविमाननी पूर्वे PI सौधर्मकल्प छे, तेमा असंख्य योजन दूर गया पछी-अहीं-देवेंद्र, देवराज शक्रना लोकपाल सोम नामना महाराजानुं संध्यप्रभ नामनु महा विमान कयुठे, ते विमाननी लंबाइ अने पहोलाइ साडाबारलाख योजननी ने. नेनो घेराबो ओगणचालीशलाख, बावनहजार, आठसोने अडतालीस योजन करता कांडक वधारे छे. ए संबंधे सूर्याभदेवनी विमान वक्तव्यतानी पेठे वधी हकीकत कहेवी. अने ते देवने बदले सोमदेव कहेवो. संध्याप्रभ महाविमाननी बराबर नीचे असंख्य योजन आगळ अवगाद्या पछी अहींदेवेंद्र, देवराज शकना सोम महाराजानी सोमा नामनी राजधानी हे. ते राजधानीनी लंबाइ अने पहोलाइ एक लाख योजननी के.* आ राजधानीमा आवेला किल्ला वगेरे, प्रमाण वैमानिकोना किल्ला वगेरेना प्रमाण करता अइधुं कडे अने ए प्रमाणे घरना पीठ बंध सुधी जाणवू. घरना पीठबंधनो आयाम अने विष्कंभ सोळहजार योजन हे अने तेनो घेरावो पच्चासहजार, पांचसोनेसत्ताणु | योजन करता काइक विशेषाधिक छे. प्रासादोनी चार परिपाटीओ कहेवी अने पाकीनी नथी. . सकस्स णं देविंदस्स देवरन्नो सोमस्स महारन्नो इमे देवा आणाउबवायवयणनिइसे चिट्ठति, तंजहा-सोम For Private and Personal Use Only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रचप्ति ॥३०६॥ ३ शतके उद्देशः७ ३०६॥ Pाइवाति वा सोमदेवकाइयाति वा विज्जुकुमारा विज्जुकुमारीओ अग्गिकुमारा अग्गिकुमारीओ वाउकुमारा | बाउकुमारीओ चंदा सूरा गहा णवत्ता तारारूचा जे यावन्ने सहप्पगारा सब्वे ते तम्भत्तिया तप्पक्खिया तभारिया सकस्स देविंदस्म देवरसो सोमस्स महारन्नो आणाउबवायवयणनिद्देसे चिठ्ठति ॥ जंबुद्दीवे २ मंदरस्स पब्वयस्स दाहिणेणं जाई इमाई समुप्पजंति, तंजहा-गहदंडाति बा गहमुसलाति वा गहगजियाति वा, एवं गहयुद्धाति वा गहसिंघाडगाति वा गहावसब्वाइ वा अन्भाति वा अभरुकवाति वा संज्झाइ वा गंधब्बनगराति वा उक्कापायाति वा दिसीदाहाति वा गजियाति वा विज्जुयाति वा पंसुवुट्टीति वा जूवेत्ति वा जक्खालितत्ति वा धूमियाइ वा महियाइ वा रयुग्घायाइ वा चंदोव रागाति वा सूरोवरागाति वा चंदपरिवेसाति वा सूरपरिवेमाति वा पडिचंदाइ वा पडिसूराति वा इंदधणूति वा उदगमच्छकपिहसियअमोहा पाईणवायाति वा पडीणवातातिवा जाव संवयवाताति वा गामदाहाइ वा जाव सन्निवेसदाहाति वा पाणक्खया जणखया धणक्खया कुलवया वसणभूया अणारिया जे यावन्ने तहप्पगारा ण ते सकस्स देविंदस्स देवरन्नो सोमस्स महारनो अण्णाया अदिवा असुया अमुया अविण्णा यातेसिं वा सोमकाइयाणं देवाणं, सकस्स णं देविंदस्स देवरनो सोमस्स महारनो इमे आहावच्चा अभिन्नाया होत्था, तंजहा-इंगालए वियालए लोहियक्खे सणिञ्चरे चंदे सूरे सुके बुहे वहस्सती राहू ॥ सकस्स णं देविंदस्स देवरन्नो सोमस्स महारनो सत्तिभागं पलिओवर्म | ठिती पण्णत्ता, अहावच्चाभिन्नायाण देवाणं एगं पलिओवम लिई पण्णता, एवंमहिड्दीए जाव महाणुभागे For Private and Personal Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३ शतके उरेशा. ॥३०७॥ | सोमे महाराया (म० १६४)१॥ व्याख्या-AL. देवेंद्र, देवराज शक्रना सोम महाराजानी आज्ञामां, उपपातमां, कहेणमा अने निर्देशमा आ देवो रहे छः-सोमकायिको, सोमप्रज्ञप्तिः देवकायिको, विद्युत्कुमारो, वायुकुमारीओ, चंद्रो, सूर्यो, ग्रहो, नक्षत्रो, तारारूपो अने तेवाज प्रकारना बीजा पण बधा देवो तेनी ४ ॥३०७॥ भक्तिवाळा, तेना पक्षवाळा अने तेने ताचे रहेनारा छे-ए बधा देवो तेनी आज्ञामा उपपातमां, कहेणमां अने निर्देषमा रहे छे. जंबू द्वीप नामना द्वीपमां मंदर पर्वतनी दक्षिणे जे आ पेदा थाय हे:-ग्रहदंडो-मंगल विगैरे त्रण चार ग्रहो एक श्रेणीए तीरछा आवे ते, अहमुसलो-मंगल विगेरे चार ग्रहो उची श्रेणीए आवे ते, ग्रहगर्जितो ग्रहोने करवानी वखते गर्जारव थाय ते. ग्रहयुद्धो-एक नक्षत्रमां उत्तर दक्षिण ग्रहोर्नु समश्रेणीपणे रहे थाय ते. गृहशृंगाटको एक नक्षत्रमा गृहनुं सीघोडाना आकारे रहे ते, ग्रहापसव्यो ग्रहोर्नु | प्रतिकुल गमन. अभ्रवृक्षो वृक्षोना आकारनां वादळां. संध्या, गांधर्वनगरो, उल्कापातो, दिग्दाहो-नीचे अंधारु होवा साधे उपर मोहूँ नगर वळतुं होय तेवो प्रकाश. गर्जावो, विजळीओ, धूळनी वृष्टि, यूपोक-शुक्लपक्षना पहेला त्रण दिवसनी चंद्रनी झांखी, घूमिकापीगशवाळी झाकळ, महिका कंडक घोळाशवाळी झाकळ, रजनो उद्घात-दिशामां धूळनो समूह, चंद्रग्रहणो, सूर्यग्रहणो, मर्यपरिवषो, प्रतिचंद्रो, प्रतिस्यों, इंद्रधनुष्, उदकमत्स्य-खंडित एव॒ इंद्रधनुष, कपिहसित-आकाशमा वादळां न होय अने विजळी थाय ते अथवा वांदराना मोढा जेवु आकाशमां मोढुं देखाय ते, अमोध-गता अने आधमता मूर्यनी वरखने ते किरणना अंधकारथी याय ते. पूर्व दिशाना पवनी, पश्चिमना पवनी, ग्रामदाहो यावत्-संनिवेशवाहो-प्राणक्षय, जनक्षय, धनक्षय, कुलक्षय, यावत्-व्यसनभूत अनार्य तथा तेबाज प्रकारना बीजा पण वधा, देवेंद्र, देवराज शक्रना सोम महाराजाथी अजाण्या नथी, अणजोएला नथी, अणसां For Private and Personal use only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥ ३०८ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भळेला नथी, अणसमरेला नथी अने अविज्ञात नथी अथवा ते बघा सोमकायिक देवोथी अजाण्या नथी. देवेंद्र, देवराज शुक्रना सोम महाराजाने आ देवो अपमत्यरूप=पुत्र जेवो अभिमत मानीतो छे:- अंगारक, मंगल, विकोलिक = अठासी ग्रहोमांनी एक ग्रह. लोहिताक्ष शनैश्वर, चंद्र, सूर्य, शुक्र, बुध, बृहस्पति अने राहु. देवेंद्र, देवराज शक्रना सोम महाराजानी आवरदा त्रण भाग सहित पल्पोपमनी छे अने तेना अपायरूप, अभिमत देवोनी आवरदा एक पल्योपमनी कही छे, -ए प्रकारनी मोटी ऋद्धिवाको अने यावत् मोटा प्रभावशाली सोम महाराजा छे. ।। १६४ ॥ कहिणं भंते! सक्क्स्स देविंदस्स देवरन्नो जमस्स महारनो वरसिट्ठे णामं महाविमाणे पण्णत्ते !, गोयमा ! सोहम्मवर्डिसयस्स महाविमाणस्स दाहिणेणं सोहम्मे कप्पे असंखेवाएं जोयणसहस्साई वीवतित्ता एत्थ णं सक्करस देविंदस्म देवरन्नो जमस्स महारन्नो वरसिट्टे णामं महाविमाणे पण्णत्ते अद्धतेरस जोगणसयसहस्साई जहा सोमस्स विमाणे तहा जाव अभिसेओ रापहाणी तहेव जाव पासाग्रपंतीओ ॥ सकस्स णं देविंदस्स | देवरत्नो जमस्स महारनो इमे देवा आणा० जाव चिट्ठति, तंजहा-जमकाइयाति वा जमदेवकाइयाइ वा पेयकाइया इ वा पेयदेवकाइयाति वा असुरकुमारा असुरकुमारीओ कंदप्पा निरययाला आभिओगा जे पावने तहप्पगारा सच्वे ते तभत्तिगा तप्पक्खिया तव्भारिया सस्स देविंदस्स देवरन्नो जमस्स महारनो आणाए जाब चिति ॥ जंबुद्दीवे २ मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं जाई इमाई समुप्पांति, तंजहा हे भगवन् ! देवेंद्र, देवराज शकना यम महाराजानुं वरशिष्ट नामनुं महाविमान क्यों आव्युं क छे ? [अ०] हे गौतम! For Private and Personal Use Only ३ शतके उद्देशः ७ ||३०८|| Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्राप्तिः ॥१०॥ ३ शतके उमेशः. ॥३०९॥ सौधर्मावतंसक नामना महाविमाननी दक्षिणे सौधर्मकल्प छे. त्यांची असंख्यहजार योजनो मुक्या पछी-अही-देवेंद्र, देवराज शक्रना यम महाराजानुं वरशिष्ट नामर्नु महाविमान का छे. तेनी लंबाइ अने पहोलाइ साडाबारलाख योजननी छे, इत्यादि नथु सोमना विमाननी पेठे जाणवू अने यावत्-अभिषेक, राजधानी अने प्रासादनी पंक्तिओ संबंधे पण तेज रीते समजवू. देवेंद्र, देवराज शक्रना यम महाराजानी आज्ञामा यावत्-आ देवो रहे :-यमकायिक, यमदेवकायिक, प्रेतकायिक, प्रेतदेवकायिक, असुरकुमार, असुरकुमारीओ, कंदपों, नरकपालो, अमियोगो अने सेवा प्रकारचा वीजा पण पधा देवो तेनी भक्तिवाग, तेना पक्षवाळा, अने तेने ताके रहेनारा -ते बघा देवेंद्र, देवराज शक्रना यम महाराजानी आज्ञामां यावत्-रहे छे. जंबूद्वीप नामना द्वीपमां मंदर पर्वतनी दक्षिणे जे आ अत्पन्न थाय छे:डिवाति वा डमराति वा कलहाति वा बोलाति वा खारातिया महायुद्धाति बामहासंगामाति वा महासस्थनिवडणाति वा एवं पुरिमनिवडणाति वा महारुधिरनिषडणाइ वा दुब्भूयाति वा कुलरोगाति वा गामरोगाति वा मंडलरो-IR गाति या नगररोगातिवासीसवेयणाइ वा अग्छिवेयणाइ वा कन्ननहदंतवेयणाइ वा ईदगाहाइ वा खंदगाहाइवा कुमारगाहा जक्रवगा. भूयगाएगाहियाति वा बेआहियाति या तेयाहियाति चाउत्थहियाति वा उब्वेयगाति कासा. सासाति या सोसेतिवा जराइ वा दाहा. कच्छकोहाति वा अजीरया पंडरगा हरिसाइ वा भगंदराइ वा हिययसूलाति वा मत्थयसू० जोणिसू० पाससू० कुच्छिसू० गाममारीति वा नगर खेड कपड० दोणमुह मडंब. पट्टण. आसम० संवाह संनिवेसमारीति वा पाणक्खया धणक्खया जणक्खया कुलवसणभू RANA For Private and Personal Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रक्षतिः ॥३१०॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यमणारिया जे यावन्ने तह पगारा न ते सकस्स देविंदस्स देवरनो जमस्स महारन्नो अण्णाया० ५ तेसिं वा जमकाइयाणं देवाणं । सकस्स देविंदस्स देवरण्णो जमस्स महारनो इमे देवा अहावचा अभिष्णाया होत्या, तंजहा - अंबे १ अंबरिसे वेव २, सामे ३ सबलेति यावरे ४ । रुद्दो ५ वरुद्दे ६ काले ७ य, महाकालेति यावरे ८ ॥ २७ ॥ असिपत्ते ९ घणू १० कुंभे ११ (असी य असिपत्ते कुंभे) वालू १२ वेयरणीत्ति य १३ । खरस्सरे १४ महाघोसे १५, एए पनरसाहिया || २८ ॥ सक्कस्स णं देविंदस्स देवरन्नो जमस्स महारनो सत्तिभागं पलिओदमं । ठिती पण्णत्ता, अहाववाभिण्णायाणं देवाण एवं पलिओवमं ठिती पण्णत्ता, एवंमहिड्दिए जाब जमे महाराया २ (सू० १६५ ) डिंबो, डगरो, कलहो, बोलो, खारो, महायुद्धो, महासंग्रामो, महाशखनिपतनो, ए प्रमाणे महापुरुषनां मरणो, महारुधिरनां निपतनो, दुर्भूतो, कुलरोगो, ग्रामरोगो, मंडलरोगो, नगररोगो. माथानो दुःखावो, आंखनी पीडा, काननी वेदना, नखनो रोग, दांतनी पीडा, इंद्रना वळगाडो, स्कंदग्रहो, कुमारग्रहो, यक्षग्रहो, भूतग्रहो, एकांतरीओ तात्र, वे आंतरिओ तान, त्रण आंतरिओ ताव, चोथीओ ताव, उद्वेगो, खांसी, श्वास, दम, बळनाशक साब, दाह, शरीरना अमुक भागनुं सडी जनुं, अजीरण, पांडुरोग, हरस, भगंदर, छातीनुं शूळ, माथानुं शूळ, योनिनुं शूळ, पडखानुं शूळ, कांखनुं शूळ, गामनी मरकी, खेट, कर्बट, द्रोणमुख, मंडब, पढ्न, आश्रम, संबाध, अने सनिवेशनी मरकी, प्राणक्षय, जनक्षय, कुलक्षय, व्यसनभूत अनार्य ( पापरूप ) अने तेवाज प्रकारना बीजा बधा पण ते बधा, देवेंद्र, देवराज शक्रना यम महाराजाथी अथवा यमकायिक देवोथी यावत्-अजाण्या नथी, देवेंद्र, देवराज शकना यम For Private and Personal Use Only ३ शतके उद्देशः ७ ॥३१०॥ Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥३११॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महाराजाने आ देवो अपत्यरूप अभिमत छे:- १ अंब, २ अंबरीष, ३ श्याम, ४ सबल, ५ रुद्र, ६ उपरुड, ७ काल, ८ महाकाल, ९ असिपत्र १० धनुष, ११ कुंभ, १२ बालु, १३ वैतरणी, १४ खरस्वर, १५ महाघोष एम ए पअर छे. देवेंद्र, देवराज शक्रना यम महाराजानी आवरदा त्रण भाग सहित पल्योपमनी छे अने तेना अपत्यरूप, अभिमत देवोनी आवरदा एक पल्योपमनी के एवी मोटी ऋद्धिवाळो यावत्-ए यम महाराजा छे. ॥ १६५ ॥ कहि णं भंते! सस्स देविंदस्स देवरन्नो वरुणस्स महारन्नो सयंजले नामं महाविमाणे पत्ते १, गोयमा ! तस्स णं सोहम्मवर्डिसयस्स महाविमाणस्स पञ्चत्थिमेणं सोहम्मे कप्पे असंखेज्जाई जहा सोमरस तहा विभागरायहाणीओ भाणियव्वा जाव पासायवर्डिसया, नवरं नामणाणत्तं । मक्कस्स गं० वरुणस्म महारनो इमे देवा आणा जाव चिट्ठति, तं०- वरुणकाइयाति वा वरुणदेवयकाइयाइ वा नागकुमारा नागकुमारीओ उदहिकुमारा उदहिकुमारीओ थणियकुमारा धणियकुमारीओ जे यावण्णे तहपगारा मध्ये ते तब्भत्तिया जात्र चिति ॥ * १ अंब- नारकोने आकाशमा लह ज पढता मुके ते अंब' २ अंबरीष-कालशेवडे नारकोना कटका करीने तेने भामां पकावचाने योग्य बनावे. ३ श्याम - नारकोने पीडा पमाडी ग्राम आये. ४ शबल-रंगे कावरचितरो नारकोना आंतरदा अने हृदयने फडी नाले ५ रौद्र-नारकोने भालाधी प ले ते. ६ उपरौ - नारकोना अंग अने उपांगोने चीरी नाखे ते ७ काल- नारकोने कडायामां नाखी पकावे छे. ८ महाकाल - नारकोना मौसना दुकाने पीसी स्वाद ले ते. ९ असिपत्र- नारकोने तरवारथी छेदे वन विकुर्वी नारकोने ग्रास आपे ते. १० कुंभ - नारकोने घडामां नाखी पकाये ते. ११ धनुषagees नारकोना कानने मेदे ते. १२वालुक- नारकोने कदंबना कुलनी आकृति जेवी रेतीमां पकावे ते. १३ वैतरणी-रुधीग्थी भरपुर नदीने वहावे ते. १४ खरस्वर - नारकोने चीस पडावे. १५ महाघोष-दीघेला एवा नारकोने मोटी गर्जना करी पशुओनी पेठे बांधी राखे छे. For Private and Personal Use Only ३ शतके उद्देशः ७ ॥३११ ॥ Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रतिः ॥३१२॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जंबुद्दीवे २ मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं जाई इमाई समुप्पचंति, संजहा- अतिवासाति वा मंदवासाति वा सुबुद्धीति वा दुष्बुट्टीति वा उदब्मेयाति वा उदप्पीलाइ वा उदवाहाति वा पव्वाहाति वा गामवाहाति वा बा जाव सन्निवेसवाहाति वा पाणक्खया जाव सेसि वा वरुणकाइयाणं देवाणं समस्त णं देबिंदस्स देवरन्नो वरुणस्स महारनो जाब अहावचाभिन्नाया होत्या, तंजहा कक्कोडए कश्मए अंजणे संखवालए पुंडे पलासे मोएजए दहिमुहे अयंपुले कायरिए । सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो वरुणस्स महारण्णो देवणाई दो पलिओ माई ठिती पण्णत्ता, अहावचाभिन्नायाणं देवाणं एवं पलिओवमं ठिती पण्णत्ता, एवंमहिड्दीए जाब वरुणे महाराया ३ । (सू० १६६) [प्र०] हे भगवन् ! देवेंद्र, देवराज शक्रना वरुण महाराजानुं स्वयंज्वल नामनुं महाविमान क्यां आन्युं क छे [उ०] हे गौतम ! सौधर्मावतंसक विमाननी पश्चिमे सौधर्मकल्प के, त्यांथी असंख्येय हजार योजन मूक्या पछी - अहीं वरुण महाराजानुं स्वयंज्वल नामनुं महाविमान आवे छे. आ संबंधीनो सर्व वृत्तांत सोम महाराजानी पेठे जाणवो. तेमज विमान, राजधानी, अने यावत्प्रासादावतंसको संबंधे पण एज रीते समजनुं विशेष ए के, नामनो मेद जाणवो, देवेंद्र, देवराज शक्रना वरुण महाराजानी आज्ञामां यावत् आ देवो रहे छे:- वरुणकायिको, वरुणदेवकायिको, नागकुमारो, नागकुमारीओ, उदधिकुमारो, उदधिकुमारीओ, स्तनितकुमारो, स्तनितकुमारीओ अने बीजा पण मधा तेवा प्रकारना देवो तेनी भक्तिवाळा यावत् रहे छे. जंबूद्वीप नामना द्वीपमां मंदर पर्वतनी दक्षिणे जे आ उत्पन्न थाय छे:- अइवास = अतिवृष्टि, मंदवासा=मंददृष्टि, सुबुद्धी इ वा सृष्टि, दुबुद्धी दुर्दृष्टि, उदन्भेदा = पहाळनी For Private and Personal Use Only ३ शतके उद्देशः७ ॥३९२॥ Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥३१॥ उमेश. RASHTRA तळेटी विगैरे भागमाथी पाणीनु चहे. उहप्पीलतळाव विगेरेमा पाणीनो समूह, अपवाह-पाणीना नाना रेलाओ वाटे बहेवं, पाणीनो प्रवाह, गामर्नु तणाइ जर्छ, संनिवेश तणाइ ज, प्राणक्षय. ए बधा वरुण महाराजाथी अथवा वरुणकायिक देवोथी अजाण्या नथी. देवेंद्र, देवराज शक्रना वरुण महाराजाने आ देवो अपमत्यरूपं अभिमत छे. कर्कोटक-नागराजना आवासरूप पहाड छे, कदेमक-नागराजनुं नाम के. अंजन नामनो लोकपाल . शंखपालक-लोकपालतुं नाम ने. पुंडू, पलाश, मोद, जय, दधिमुख, अयंपुल, अने कातरिक देवेंद्र, देवराज शक्रना वरुण महाराजानी आवरदावे पल्योपम करतां कांइक ओछी रही छे अने तेना मानीता देवोनी एक पल्योपमनी कही के एबी मोटी ऋद्धिवाळो वरुण महारजा छे. ॥ १६६ ॥ ___कहि णं भंते ! सकस्स देविंदस्स देवरन्नो वेसमणस्स महारनो बग्गूणामं महाविमाणे पण्णत्ते?, गोयमा ! | तस्स णं सोहम्मवडिंसयस्स महाविमाणस्स उत्तरेणं जहा सोमस्स बिमाणरायहाणिवत्तव्वया तहा नेयव्या जाव पासायडिंसया। सक्कस्स णं देविंदस्स देवरनो वेसमणस्स महारन्नो इमे देवा आणाउववायवयणनिइसे चिटुंति, तंजहा-वेसमणकाइयाति वा वेसमणदेवकाइयाति वा सुवन्नकुमारा सुवन्नकुमारीओ दीवकुमारा दीवकुमारीओ दिसाकुमारा दिमाकुमारीओ वाणमंतरा वाणमंतरीओ जे यावन्ने तहप्पगारा सम्वे ते तम्भत्तिया जाव चिट्ठति ।। [म.] हे भगवन् ! देवेंद्र, देवराज शक्रना वैश्रमण महाराजानुं वला नामर्नु महाविमान क्या कहे ? [उ.] है गौतम ! तेनु विमान, सौधर्मावतंसक नामना महाविमाननी उत्तरे छे. आ संबंधी सर्व हकीकत सोम महाराजानी पेठे जाणवी अने ते यावत् For Private and Personal Use Only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्राप्तिः ॥३१४॥ राजधानी तथा यावत्-प्रामादवतंसक संबंधे पण तेमज जाणवं. देवा, देवराज शक्रना वैश्रमण महारामानी आज्ञामा, उपपातमां कडे. णमा,अने निर्देषमा आ देयो रहे छे:-वैश्रमणकायिक, वैश्रमणदेवकायिक, सुवर्णकुमारो, सुवर्णकुमारीओ, द्वीपकुमारो, द्वीपकुमारीओ, | दिक्कुमारो, दिक्कुमारीओ, वानभ्यंतरो, वानव्यंतरीभो तथा तेवा प्रकारना बीजा पण देवो तेनी भक्तिवाळा छे. जंबूद्वीप नामना | उदशः७ द्वीपमां मंदर पर्वतनी दक्षिणे जे आ उत्पन्न थाय : जंबुद्दीवे २ मंदरस्स पब्बयस्स दाहिणेणं जाई इमाई समुप्पळति, तंजहा-अयागराइ वा तउयागराइ वा तंबयागराइ वा एवं सीसागराइ वा हिरन सुखन. रयण वयरागराइ वा वसुहाराति वा हिरसवासाति वा सुवन्नवासाति या रयण. बहर आभरण पत्त० पुप्फ फल. बीय मल्ल. वण्ण चुना गंध० वत्थवासाइ वा हिरन्नवुड्डीइ वा सु०र०व० आ०प० पु० फ० बी०म.व. चुन्न• गंधषुट्ठी वत्थवुट्ठीति वा भायणवुडीति वा खीरचुड्डीति वा सुयालाति वा दुकालाति वा अप्परघाति वा महग्याति वा सुभिक्खाति या दुभिक्वाति वा कयविछयाति वा सन्निहियाति वा सन्निचयाति वा नीहीति वा णिहाणाति वा चिरपोराणाई पहीणसामियाति वा पहीणसेउयाति वा [पहीणमग्गाणि वा पहीणगोतागाराइ वा उच्छिन्नसामियाति वा उच्छिन्नसेउपाति वा उच्छिन्नगोतागाराति वा सिंघाडगतिगचउपचचरचउम्मुहमहापहपहेसु गामनि नगरनिद्धमणेसु वा सुसपणगिरिकंदरसंतिसेलोवट्ठाणभवणगिहेसु संनिक्खित्ताई चिट्ठति, एताई सकस्स देविंदस्म देवरनो वेसमणस्स महारनो(ण)अण्णायाई अदिहाई असुयाई अविनायाई तेर्सि वा वेममणकाइयाणं देवाणं, सकस्स For Private and Personal Use Only Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३ शतके उमेशः ॥३१५॥ देविवस्स देवरसो वेममणस्स महारत्रो इमे देवा अहावचाभिमाया होत्या, तंजहा-पुण्णभो माणिभरे सालिभर व्याख्या सुमणभद्दे चके रक्खे पुनरक्खे सव्वाणे [पव्वाणे] सब्बजसे सब्वकामे समिद्ध अमोहे असंगे, सकस्स णं प्रज्ञप्तिः देविंदस्स देवरम्रो वेसमणस्स महारनो दो पलिओषमाणि ठिती पण्णत्ता, अहायपाभिण्णायाण देवाणं एग पलिओवमं ठिती पण्णता, एमहिड्दीए जाव वेसमणे महारायाब्ब । सेवं भंते २॥ (मू० १६७)॥ तृतीयशतके सप्तमोरेशकः समाप्तः॥३-७॥ ___ लोढानी खाणो, कलाइनी खाणो, तांबानी खाणो, सीसानी खाणो, हिरण्यनी, सोनानी, रत्ननी, अने वजूनी खाणो, वसुधारा, | हिरण्यनी, सुवर्णनी, रत्ननी, वजूनी, घरेणानी, पदिदानी, फुलनी, फळनी, बीजनी, माळानी, वर्णनी, चूर्णनी. गंधनी अने वखनी, वर्षाओ, तथा ओछी के वधारे हिरण्यनी, सूवर्णनी, रत्ननी, वजूनी, आभरणनी, पत्रनी, पुष्पनी, फळनी, बीजनी, माल्यनी, वर्णनी, चूर्णनी, गंधनी, वखनी, भाजननी, अने क्षीरनी वृष्टि, सुकाळ, दुकाल, सोंधारत, मोंघारत, मिक्षानी समृद्धि, मिक्षानी हानि, खरीदी, | वेचाण, घी अने गोळ विगैरेनो संघरो करवो, अनाजनु संघरवू, तथा निधिओ, निधानो, घणां जूनां नष्ट धणिवाला, जेनी संमाळ करनार जण ओण के एवा, प्रहीन मार्गवाला, जेना घणिना गोत्रोनां घरो विरल थयां के एवा. नणिआता, जेनी संभाळ करनार || जनो नामशेष छे एवा, जेना धणीनां गोत्रोनां घरो नामशेष छे एवा अने सिंगोळाना घाटवाळा मार्गमा, तरमेटामा, चोकमां, चत्वरमां, चार शेरीओ ज्यां मेगी थाय एवा मार्गमा, राजमागोमां अने सामान्यमार्गोमां, नगरनी पाणीनी खालोमा, गटरोमां, मसाणमा, |पहाड उपरना घरमां, गुफामां, शांतिधर-धर्मक्रिया करवाना ठेकाणामां पहाडने कोतरीने बनावेल घरमां, सभाने स्थाने अने रहेवाना ॐॐॐ ****5 For Private and Personal use only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३ शतके उद्देशः७ Pघरमा राखेला लाखो रुपीयाना निधानो, अने दाटेली लाखो रूपीयानी दोलत, ए बधुं देवेंद्र, देवराज शकना वैश्रमण महाराजाथी, व्याख्या के वैश्रमणकायिक देवोथी अजाण्यु नथी, अणजोयु नथी, असांभळ्यू नथी, अणसमरेल नथी अने अविज्ञात नथी. देवेंद्र, देवराज प्रज्ञप्ति शक्रना वैश्रमण महाराजाने आ देवो अपमत्यरूप अभिमत :-पूर्णभद्र, मणिभद्र, शालिभद्र, सुमनोभद्र, चक्र, रक्ष, पूर्णरक्ष, सद्वान, ॥३१६॥ सर्वयशाः, सर्वकाम, समृद्ध, अमोघ, अने असंग, देवेंद्र, देवराज शक्रना वैश्रमणं महाराजानी आवरदा बे पल्योपमनी छे अने तेना अपत्यरूप अभिमत देवोनी आवरदा एक पल्योपम छे ए रीते वैश्रमण महाराजा मोटी ऋद्धिकाळो छे. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे.॥ १६७ ॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमूत्रना वीजा शतकमां सातमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण ययो. ** ॥३१६॥ *** * * * * For Private and Personal Use Only Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्यान प्रज्ञप्तिः ॥३१७॥ ३ शतके जोशः८ ॥३१७॥ उद्देशक ( आठमा उद्देशामां पण देव संबंधीज वक्तव्यता छे.) | रायगिहे नगरे जाव पज्जुवासमाणे एवं वदासी-असुरकुमाराण भंते। देवाण कति देवा आहेवच्चं जाव विहरति ?, गोयमा ! दस देवा आहेवचं जाव विहरंति, तंजहा-चमरे असुरिंदे असुरराया सोमे जमे वरुणे वेसमणे चली वइरोयणिंदे बहरोयणराया सोमे जमे वरुणे बेसमणे । नागकुमाराणं भंते ! पुरुछा, गोयमा ! दस देग आहेवचं जाव विहरंति, तंजहा-धरणे नागकुमारिंदे नागकुमारराया कालवाले कोलबाले सेलवाले संखवाले भूयाणंदे नागकुमारिंदे णागकुमारराया कालवाले कोलवाले संखवाले सेलवाले, जहा नागकुमारिंदाणं एयाए बत्तव्वयाए णेयव्वं, एवं इमाणं नेयध्वं, सुबन्नकुमाराणं वेणुदाली चिस्ते विचित्ते चित्तपक्खे विचित्तपक्खे, विज्जुकुमाराणं हरिकंत हरिस्सइ पभ १ सुप्पभ २ पभकंत ३ सुप्पभकत ४, अग्गिकुमाराणं अग्गिसीहे अग्गिमाणवे तेऊ तेउसीहे तेउकंते तेउप्पभे, दीवकुमाराणं पुण्णविसिहरूयसुरूयरूयकंतरूयप्पभा, उदहिकुमाराण जसकते जलप्पभे जलजलरूयजलकंतजलप्पभा, दिसाकुमाराणं अमियगति अमियवाहण तुरियगति विप्पगति सीहगति सीह विक्कमगति, वाउकुमाराणं वेलंब पभंजण काल महाकाला अंजण रिट्ठा, थणियकुमाराणं | घोस महाघोस आवत्तवियावत्तनंदियावत्तमहानंदियावत्ता, एवं भाणियब्वं जहा असुरकुमारा। For Private and Personal Use Only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [प्र०] राजगृह नगरमा यावत्-पर्युपासना करता आ प्रमाणे बोल्याः-हे भगवन ! असुरकुमार देवो उपर केटला देवो अधिव्याख्यान | पतिपणुं भोगवता यावत्-विहरे छे! [उ०] हे गौतम ! अधिपतिपणुं भोगवता दस देवो रहे छे, असुरेंद, असुरराज चमर, सोम, 11 शतके प्रज्ञप्ति चम, वरुण, वैश्रमण, वेरचनेंद्र, वरोचनराज बलि, सोम, यम, वरुण अने क्श्रमण. [प्र०] हे भगवन् ! नागकुमार देवो उपर केटला उद्देशः८ ॥३१॥ देवो अधिपतिपणुं भोगवता विहरे छे ! [उ०] हे गौतम ! अधिपतिपगुं भोगत्रता यावत्-दस देवो रहे के, ते आ प्रमाणेः-नाम- ॥३१८॥ मारेंद्र, नागकुमारराज धरण, कालवाल, कोलवाल, शैलपाल, शंखपाल, नागकुमारेंद्र, नागकुमारराज, भूतानंद, कालवाल, कोलवाल, शखबाल अने शैलपाल, जेम नागकुमारोना इंद्रो संबंधे ए वक्तव्यतायी जणान्यु तेम आ देवो संबंधे पण समजवू. सुवर्णकुमारोना उपरीओ, वणुदेव, वेणुदालि, चित्र विचित्र, चित्रपक्ष अने विचित्रपक्ष छे. विद्युत्कुमारोना उपरीओ हरिकांत, हरिसह, प्रभ, सुप्रभ, प्रभाकान्त, अने सुप्रभाकान्त छे. अग्निकुमारोना उपरीओ अग्निसिंह, अग्निमाणव, नेजः, तेजसिंह, तेजःकान्त अने तेजःप्रभ छे, द्वीपकुमारोना उपरीओ, पूर्ण, विशिष्ट, रूप, रूपांश, रूपकांत, अने रूपाभ छे उदधिकमारोना उपरीओ-जलकान्त, जलप्रभ, जल, जलरूप, जलपान्त अने जलप्रम छे. दिक्कुमारोना उपरीओ-अमितगति, अमितवाहन, त्वरितगति, क्षिप्रगति, सिंहगति अने सिंह विक्रमगति के वायुकुमारोना उपरीओ:-घोष, महापोष, आवर्त, व्यावर्त, नंदिकावर्त, अने महा नंदिकात छे. ए प्रमाणे बधुं ४ असुरकुमारोनी पेठे कहे. दक्षिण भवनपतिना इंद्रोना प्रथम लोकपालोना नामो आद्य अक्षरे आ प्रमाणे छे: सो०१ का २चि०३१०४ ते०५१०६ ज०७ तु०८ का०९आ०१०, पिसायकुमाराणं पुच्छा, गोयमा! दो IPIदेवा आहेवचं जाव विहरंति, तंजहा-काले य महाकाले सुरूवाडिरूव पुनभहे य । अमरवह माणिभद्दे भीमे या For Private and Personal Use Only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org मज्ञप्तिः 4% % हा महाभीमे ॥ २९॥ किनकिपुरिसे खलु सप्पुरिसे खलुतहा महापुरिसे। अतिकाय महाकाए गीयरती चेव व्याख्या-४ | ३ शतके | गीयजसे ॥ ३०॥ एते वाणमंतरण देवाण । जोतिसिवाणं देवाणं दो देवा आहेवचं जाव विहरंति, तंजहा-चंदे य सूरे य । सोहम्मीसाणेसु णं भंते! कप्पेसु कर देचा आहेवचं जाच विहरति !, गोयमा! दस देवा जाव उमेशः८ ॥३१९॥ विहरंति, तंजहा-सके देविंदे देवराया सोमे जमे बरुणे वेसमणे, ईसाणे देविंद देवराया सोमे जमे वरुणे ॥३१९॥ वेसमणे, एसा वत्तब्वया सब्वेसुरवि कप्पेसु, एए चेष भाणियव्वा, जे य ईवा ते य भाणियव्वा, सेवं भंते ६॥ (सू०१६८) ॥ तृतीयशतेऽष्टमोडेशः ॥३-८॥ सोम्सोम, का-कालवाल, चि-चित्र, पम्प्रभ ते-तेजस रू-कप, ज-जल, तु-त्वरितगति, काकाल अने आ आयुक्त. [प्र.] हे भगवन् ! पिशाचकुमारो उपर अधिपतिपणु भोगवता केटला देवो के ? [उ०] हे गौतम ! तेओ उपर अधिपतिपणुं भोगवता यावन् : बेबे देवो विहरे छे:-काल जने महाकाल, सुरूप अने प्रतिरूप, पूर्णभद्र, अने अमरपति मणिमद्र, भीम अने महाभीम, किंनर अने किंपुरुष, सत्पुरुष अने महापुरुष, अतिकाय अने महाकाय, गीतरति अने गीतयश ए बधा वानव्यंतर देवोमा इंद्रो के. ज्योतिषिक देवोनी उपर अधिपतिपणुं भोगवता बे वे देवो :-चंद्र अने सूर्य. प्र०) हे भगवन् ! सौधर्म अने ईशानकल्पमा अधिपतिपणु भोगवता यावत्-केटलो देवो रहे है ? [उ०] हे गौतम ! त्यां अधिपतिपणु भोगवता यावत्-श देवो रहे है:--देवेंद्र, देवराज शक्र, सोम, यम, वरुण, वैश्रमण जने देवेंद्र, देवराज ईशान, सोम, यम, वरुण, अने चैश्रमण, ए बधी वक्तव्यता बधाय कल्पोमां जाणवी अने जे इंद्रो छे से कहेवा. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे. एम कही विहरे छे. ॥१६८॥ भगवत् सुधर्मम्बामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमूत्रना बीजा शतकमा आठमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण ययो. CHIL2 For Private and Personal Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उद्देशक ९. व्याख्या प्रवृष्टिः ॥३२॥ ३ शतके उद्देशः९ ॥३२०॥ देवोने अवधिज्ञान होवा छता पण इंद्रियना उपयोगनी जरूर रहे छे ते माटे इंद्रियोना विषयोतुं निरूपण करवा आ नवमा उद्देशकने कहे के: रायगिहे जाव एवं वदासी-कतिविहे गं भंते ! ते इंदियविसए पण्णत्त?, गोयमा! पंचबिहे इंदियविसए पण्णत्ते, तं०-सोतिदियविसए जीवाभिगमे जोतिसिपउद्देसो मेयब्बो अपरिसेसो ॥ (मू. १६९) तृतीयशते ४ नवमोद्देशः ॥३-९॥ प्र. राजगृह नगरमा यावत्-आ प्रमाणे पोल्या के-हे भगवन् ! इंद्रियोना विषयो केटला प्रकारना कहा ? [उ.] हे गौतम ! इंद्रियोना विषयो पांच प्रकारना कग छे, ते आ प्रमाणे:-श्रोत्रं द्रयनो विषय इत्यादि आ संबंधे जीवामिगमसूत्रमा कहेलो आखो ज्योतिषिक उद्देशक जाणवो. ॥ १६९ ॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीस्त्रना श्रीजा शतकमां नेवमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. For Private and Personal Use Only Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥३२१॥ ३ शतके उमेशः१० ॥३२॥ उद्देशक १०. (आ दशमा उद्देशकमां देवो संबंधी वक्तव्यता कहे छे) रायगिहे जाव एवं वयासी-चमरस्स णं भंते! असुरिंदस्स असुररनो कति परिसाओ पपणत्ताओ?, गोपमा! तओ परिसाओ पपणत्ताओ, तंजहा-समिता चंडा जाया, एवं जहाणुपुब्बीए जावडरचुओ कप्पो, सेवं भंते २॥ (सू. १७०) ॥ तहयसए दसमोइसो संमत्तो ३-१०॥ ततियं सयं समत्तं ॥३॥ [प्र०] राजगृह नगरमा यावत आ प्रमाणे बोल्या के-हे भगवन् ! असुरेंद्र, असुरराज चमरने केटली सभाओ कही छे ? [उ.] हे गौतम ! तेने प्रण सभाओ कही छे. ते आ प्रमाणेः-१ शमिका २ चंडा ३ जाता ए प्रकारे क्रमपूर्वक अच्युतकल्प सुधी जाणवू. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे. एम कही यावत्-विहरे छे. ॥ १७० ॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमत्रना श्रीजा शतकमां दशमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. शमिका-पोताना उत्तमपणाने लीधे स्थिर स्वभाववाळी होवाधी समतावाली अने पोताना उपरीप कहेल कोप अगर उतावलवाळा घचनोने मान्य करी शांत रहेनारी शमिका-२ चडा-साधारण प्रसंगमा पण बोली नासनारी से चंडा. जाता-कोपने अस्थाने प्रगट करनारी ते जाता. मात्रणे सभा क्रमपूर्वक अभ्यंतर, मध्यमा मने याह्या छ समिका अभ्यंतरसभा छे, चंडा वचली सभा For Private and Personal Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥३२२॥ ३ शतके उद्देशः१० ३२२॥ A के अने जाता यहारनी सभा छे, तेमांनी अभ्यंतर सभानी प्रावालिका मा प्रमाणे छे:-तेनो उपरी कांदपण कारणसर मभ्यंतर सभाने बोलावे के अने सभानी बेठक थया पछी ते उपरी सभाने पोतार्नु प्रयोजन कही देखाडे छे. ते गौरब मोटाइने योग्य है. बचली सभा तो तेनो उपरी बोलावे अथवा न बोलावे तो पण आवे छे. कारण तेनी मोटाइ थोडी छे. ते वचली सभानी बेठक बया पछी अभ्यंतर सभा साथे धयेल वार्तालापने जणावे छे. अने नक्की करे . घाजी जाता सभा बोलाव्या विनाज चाली आके. कारण तेनी मोटाइ वणी ओछी है. प्रथम सभामा २४००० देवो ३५० देवीओ, आयुष्य २॥ पल्योपम ने देवीन १॥ पस्यीपमर्नु पीजी का सभामा २८००० देवो. ३०० देवीओ. आयुष्य २ पल्योपम, ने देवीनु १ पस्योपमनु. श्रीजी सभामा ३२... देवो. २५० वेषीओ. साभायुष्य १॥ पस्योषमनु मे देवीना पल्योपमनु. आ रीते टुंकाणमां जणाव्यु बाकी जीवामिगम उपांगधी जाणवू. FREERINEERRIERARRAHAARAANEE प्रथमोभागः समाप्त. SARKARRASSHARERARINTERNHAR HABAR For Private and Personal Use Only Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तैयार छे प्रथमभाग तैयार छे शासनधुरंधर अभपदेव टीका सहित श्रीमद्भगवतीसूत्र भाग-१ थी ३ ददेक भागनी कि रु. ५-०-० आनंदपुस्तकालयना नवा प्रकाशनो. विशेषावश्यक-कोब्याचार्य (सं.) रु. ११) भाग १-२ उत्पादादिसिद्धिः हैं. २॥) प्रवचनपरीक्षा. षोडशकवृत्ति, पडावश्यक. रु. ॥ मळवार्नु ठे-पंडित हीरालाल हंसराज For Private and Personal Use Only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir DINESED%DIA ACAKKARANE / इति श्रीमद्भगवतीसूत्रे प्रथमो भागः समाप्तः / DDDDDDDDIDID For Private and Personal Use Only