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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः
॥९१॥
CASTHASER-
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| गएलो जीव चनो होय, पडखामेर होय, केरीनी जेम कुब्ज होय, उमेलो होय ? बेठेलो होय, के मूतेलो होर ? तथा ज्यारे माता
य, क मृतला हार तथा ज्यार माता१शतके सुती होय, त्यारे सतो होय ! ज्यारे माता जागती होय त्यारे जाम्तो होय ? माता सुखी होय त्यारे सुखी होय? अने ज्यारे
उद्देशः ८ माता दुःखी होय त्यारे दुःखी होय ? [उ०] हे गौतम ! गर्भमां गएलो जीच यावत्-ज्यारे माता दुःखी होय त्यारे दुःखी. हवे जो ते गर्भ प्रसव समये माथाद्वारा, के पगद्वारा बहार आवे, तो सरखी रीते आवे अने जो आडो थइने बहार आवे तो मरण पामे.
॥९१॥ (जो कदाच जीवतो आवे तो) अने ते जीवना को अशुभ रीते बद्ध होय, स्पृष्ट होय, निधत्त होय, कृत होय, प्रस्थापित होय, अमिनिविष्ट होय, अभिसमन्वागत होय, उदीर्ण होय, अने उपशांत न होय, तो ते जीव कर रूपो, दुर्वणालो, दुगंधवाळो, खराब रसवालो, खराव स्पर्शवाळो, अनिष्ट, अकांत अप्रिय, अशुभ, अमनोज्ञ, सांभों पण सारो न लागे तेवो, हीन स्वरवाळो, दीन, अनिष्ट, अकांत, अप्रिय अशुभ, अमनोज्ञ, स्वरवाळो अप्रियस्वरवाळो, अने अनोदय वचन थाये. अने जो ने जीवना कर्म अशुभ रीते बद्ध न होय तो वधू प्रशस्त जाणवू. यावत्-ते जीव आदेय वचन थाय छे अर्थात् जेनुं वचन बधा माने तेवो थाय छे. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे. एम कही यावत् विचरे छे. ।। ६३ ॥ सुधर्मास्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमूत्रना प्रथम शतकमां सातमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
उद्देशकः ८ रायगिहे समोसरणं जाव एवं बयासी-एगंतवाले णं भंते ! मणूसे किं नेरइयाउयं पकरेंइ तिरिक्ख० मणुक
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