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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः
॥१२॥
देवा० पक०, नेरहयाउयं किचा नेरइएसु उव. तिरियाउयं कि तिरिएसु उवव० मणुस्साउयं मणुस्से० उब.|
|१ शतके | देवाउ० कि. देवलोएसु. उववजह?, गोयमा! एगंतवाले णं मणुस्से नेरइयाउयंपि पकरेइ तिरि० मणु.
उद्देशः८ देवाउपि पकरेइ, नेरइयाउयंपि किचा नेरइएसु उव०, तिरि० मणु देवाउयं किच्चा तिरि० मणु, देवलोएसु उववजह ।। (सू०६४)॥
का॥९२ ।। राजगृह नगरपां समवसरण थयु, अने यावत्-आ प्रमाणे बोल्या- [प्र०] हे भगवन् ! एकांत बालक मनुष्य शुं नैरयिकर्नु, तिर्गच, मनुष्यनु के देवर्नु आयुष्य बांधे ? अने नैरयिक आयुष्य बांधी नैरयिकमां जाय, तिर्यचनुं आयुष्य बांधी तिर्यंचमां जाय, मनुष्यनु आयुष्य बांधी मनुष्यमा, के देवनुं आयुष्य बांधी देवलोकमां जाय ? [३०] हे गौतम! एकांत बालक मनुष्यनुं नैरयिकर्नु पण आयुष्य बांधे. तथा नरयिकर्नु आयुष्य बांधी नैरयिकोमा, तिर्यचनुं आयुष्य बांधी तिर्यचमां, मनुष्यनुं आयुष्य बांधी मनुष्यमां,
अने देवन्द्रं आयुष्य बांधी देवलोकमा उत्पन्न याय. ॥ ६४ ॥ Pा एगंतपंडिए णं भंते ! मणुस्से किं नेर पकरेइ जाव देवाउयं किया देवलोएसु उवव.?, गोयमा! एगंत
पंडिए णं मणुस्से आउयं सिय पकरेइ सिय नो पकरेइ, जइ पकरेइ नो नेरइया. पकरेइ नो तिरि० नो मणु०, देवाउयं पकरेइ, नो नेरइयाउयं किच्चा नेर० उव०, णो तिरि० णो मणुस्स०, देवाउयं किच्चा देवेसु उव०, से केण-| देणं जाव देवा० किचा देवेसु उचवजह?, गोयमा ! एगंतपंडियस्स णं मणुसस्स केवलमेव दो गईओ पन्नायति, तंजहा-अंतकिरिया चेव कप्पोववत्तिया चेव, से तेणटेणं गोयमा ! जाव देवाउयं किच्चा देवेसु उवव
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